रविवार, 25 जुलाई 2021

हाईकोर्ट ने कहा, गलत हुआ।

हाईकोर्ट ने कहा, गलत हुआ।

मामला रेमडीशिविर कालाबाजारी में फंसाए आरोपी का

निर्दोष साबित हुए अमित मिश्रा

रासुका से बाहर निकालने का आदेश किया कलेक्टर ने

(त्रिलोकीनाथ)

बहुत सहज होता है कोविड-19 की महामारी के दौरान अघोषित आपातकाल पुलिस का ड्रेस पहन कर 25-50 लोगों के दलबल सहित किसी भी प्रतिष्ठित व सभ्य समाज के व्यक्ति के दुकान में, उसके घर में, उसके रिश्तेदारों के घर में, उसके बेडरूम में और बाथरूम में जाकर तलाशी लेना... इस बात के लिए कि वह व्यक्ति तथाकथित प्राण बचाने वाली रेमदेसीविर नामक इंजेक्शन कालाबाजारी करने के लिए उसे छुपा कर रखा हुआ है। यह आरोप लगाकर क्योंकि वह एक इंजेक्शन से लाखों रुपए कालाबाजारी के जरिए कमाता है।

 यूं तो अमित फार्मा के प्रोपराइटर


अमित मिश्रा मेडिकल कॉलेज के सामने इकलौती दुकान इसलिए खोले थे ताकि वहां पर मरीजों को सहज रूप से दवाइयां उपलब्ध हो जाएं या यू कहना चाहिए कि मेडिकल मार्केट का वह बड़ा संभावित स्थान था किंतु इकलौती दुकान होने का अपराध अमित मिश्रा को न सिर्फ अपराधी बनाकर शहडोल जेल में बल्कि खूंखार अपराधी बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी गंभीर धाराओं में केंद्रीय जेल रीवा तक शिफ्ट कर देने की कार्यवाही को भुगतना पड़ेगा..., यह न सिर्फ अमित बल्कि उसके परिवार और समाज में भी कभी कल्पना में नहीं सोचा रहा होगा।

 


किंतु भाग्य में जेल लिखा है तो उसे भोगना ही पड़ेगा यह मानकर संतुष्ट हो जाने का समय उस वक्त आ गया जब  मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ इंदौर ने अंततः अमित मिश्रा को जेल से बाहर निकाले जाने का निर्देश दिया। क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का अथवा रेमदेसीविर से संबंधित अपराध का उसने दोषी नहीं पाया।

 इससे पुलिस प्रशासन ने क्या  सीखा...? कुछ सीखा भी या नहीं सीखा... कि ग्रुप बनाकर रात के अंधेरे में किसी व्यक्ति की मान प्रतिष्ठा और  चरित्र की हत्या करने के लिए क्या निचले स्तर के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी अथवा नहीं ...? या फिर यह कि तहसीलदार न्यायालय सोहागपुर के अनुसार हाईकोर्ट आर्डर करता रहता है.... हमें अपने हिसाब से चलना होगा। इसलिए कोई आश्रम संचालक गुरुदीन को अगर आग लगाकर आत्महत्या भी करना पड़े तो कर ले कोई बात नहीं ।

 पुलिस विभाग ने क्या सीखा, यह आगे देखने वाली बात होगी और यह बात भी होगी की रेमदेसीविर इंजेक्शन जिस डॉक्टर ने एडवाइस किया है क्या वह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत इस बात के लिए जेल जाने का अधिकारी नहीं था...? जो जानबूझकर रेमडेसीविर की कालाबाजारी बढ़ाने के लिए सिस्टमैटिक तरीके से अपने मेडिकल कॉलेज के आदमियों/ कर्मचारियों की सहायता से यह नेटवर्क चलाता था...? अगर कोई ऐसा करता था वह कौन था। क्या यह भी सीखा...?

 कह सकते हैं के शहडोल आदिवासी जिला है कोई भारतीय-राष्ट्र नहीं कि अपनी सुरक्षा और समाज के लिए इजरायल की पेगासस कंपनी की जासूसी के जरिए वह रेमदेसीविर बेचने वाले तमाम लोगों के टेलीफोन, मोबाइल फोन, ईमेल की जांच कर सकती थी... कि रेमडेसीविर शहडोल मेडिकल कॉलेज के अंदर बनाया गया या कहीं से आया...? यह भी कहा जा सकता है कि गांजा और नशा के कारोबारियों को अभी तक हम ट्रेस तो कर नहीं पाए कि उसका जन्म दाता कौन है...? रेत माफिया के बड़े-बड़े डंपर के जरिए होने वाले अवैध करोड़ों रुपए के कारोबार को  ट्रेस  तो कर नहीं पाए....? तो रेमडेशिविर के छोटे से इंजेक्शन के कालाबाजारी करने वाले जन्मदाता को कैसे ढूंढ पाएंगे...?

 कोई हम भारत-राष्ट्र तो है नहीं, कि पेगासस के जासूसी को हायर करके यह जांच करें..? तो जितना समझ में आया, उतना कर दिया। अब किसी की चरित्र हत्या होती हो.., किसी का परिवार परेशान हो तो क्या किया जाए..? यही तो व्यवस्था है । 

कुछ इसी अंदाज में शहडोल जिला की पुलिस रेमडेसीविर के तलाशी में अमित फार्मा के अमित मिश्रा को शहडोल जेल और रीवा केंद्रीय जेल का मेहमान बना कर रखा। कल-परसो अगर कोई अड़चन है ना आए तो अमित फार्मा का अमित मिश्रा पूर्व की भांति दुकान में बैठकर पुनः मेडिकल कॉलेज शहडोल को देखकर अपने ऊपर हुई पुलिस प्रताड़ना की कार्यवाही को याद करता रहेगा, कि यही व्यवस्था है और उसे ज्यादा कमाने के लिए अगर जेल भी जाना पड़े तो क्या बुरा है...? जेल तो हो आया है।

 आपराधिक मानसिकता का जन्म पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से मेडिकल कॉलेज के कुछ अपराधियों को छुपाने के लिए यदि किया गया और उन्हें फिर भी बचा कर रखा जा रहा है...? दोषी व्यक्ति, दंडित नहीं होता है तो अमित मिश्रा इस बुरे ख्याल में क्यों परहेज करेगा..? क्योंकि व्यवस्था अपराधियों की चरणदास बनती जा रही है ...

बहरहाल आषाढ़ का पूर्णिमा और सावन का सोमवार, मिश्रा परिवार के लिए कलंक नाश करने वाला साबित हुआ है। क्योंकि न्यायालय में अभी भी न्याय बाकी है अन्यथा सिस्टम ने तो उन्हें अपराधी घोषित कर ही दिया था। अब देखना यह है कि वास्तविक अपराधी ढूंढ पाने में हमारा सिस्टम, हमारी पुलिस की योग्यता अपने को सक्षम पाती भी है या नहीं.....? या फिर मेडिकल अफसरों की भांति इस सफेद झूठ को बोलने में गर्व करती है कि "एक भी व्यक्ति ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा..?" अथवा फिर मेडिकल कॉलेज के छोटे दिहाड़ी मजदूर कर्मचारी, बड़ी खूंखार मछलियों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी गंभीर अपराधों में जिंदगी भर जेल की पड़े रहेंगे ...?


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