---- प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् ----
मामला रेत स्मगलिंग का
जब
हर शाख पे उल्लू बैठा हो....
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल ही मेरा भारत इस नजर से देखें तो शहडोल में कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो बैठा नहीं, जो कोरोनावायरस की दूसरी लहर में जब जनता की चीख-पुकार और लाखों लोगों के मरने की कहर से परेशान हो जाए तो चमत्कारिक तरीके से राम भक्त हनुमान की तरह ऑक्सीजन के सिलेंडर लगे ट्रकों को हवाई जहाज से उठाकर यहां से वहां पहुंचा दे..।
शहडोल तो एक करोड़पति कंगाल की तरह है जहां का माई-बाप कोई नहीं है। इसलिए कम भार क्षमता वाली बनाई गई सड़कों में पिछले 1 वर्ष से दुगने भार के रेत वाहनों का खुलेआम परिवहन कर सड़कों को बर्बाद किया जा रहा है। अगर शहडोल में कोई प्रधानमंत्री मोदी होते तो वह हवाई जहाज से लोकहित में रेत के लिए इन सड़कों की सुरक्षा के मद्देनजर हवाई जहाज से रेत के ट्रक तड़ीपार करवा देते। किंतु यह सब काल्पनिक मिथक है।
इसलिए छोटा सा रेत माफिया शासन और प्रशासन और राजनीतिक दलों के साथ मिलकर खुली लूट का डाका डाल रहा है। पर्यावरण अधिनियम के अंतर्गत जब नदी नालों से रेत खनन प्रतिबंधित हो गई है ताकि जैव विविधता बची रहे, रेत स्मगलर बिना इसकी परवाह ही किए अपने भारी मुनाफाखोरी के लिए नदीनालों मे जल संरक्षण की हत्या कर रहा है। और जो रेत निकल रही है वह उसे पिछले 70 साल में शहडोल की वाली जैसीतैसी विकास पूर्ण सड़कों से माध्यम से सड़कों की हत्या करते हुए स्मगलिंग करता है।
कहते हैं स्मगलिंग के कारोबार मे अपना हिस्सा पाने के लिए वाणिज्य कर के अधिकारी भी यानी जीएसटी वाले अपना बेरियल अलग-अलग जगह लगा रखे हैं।
और उनके कारिंदे घूम घूम कर अपना हिस्सा वसूलने में लगे रहते हैं ।कितनी गाड़ी कहां कब निकली, एक-एक गाड़ी का हिसाब जीएसटी वालों के पास है ।किंतु जब उनसे लोकहित में यह जानकारी ली जाए तो वे उसे वाणिज्य गोपनीयता का हवाला देकर स्मगलर लोगों को छुपाने का काम करते हैं । क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि प्रदेश में अलग-अलग मंत्रालय के मंत्री जब हिसाब किताब लेंगे तो उनके हिस्से क्या बाबा जी का ठुल्लू दिया जाएगा...? शहडोल क्षेत्र में रेत खनन से जुड़े सभी विभागीय अमले इसी कर्तव्यनिष्ठा से शहडोल के प्राकृतिक संसाधन मैं विकास का सपना देखते है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरण का अधिकारी ईमानदार और पारदर्शी तरीके से इस भ्रष्टाचार को संरक्षण देता है इसलिए एक भी प्रकरण उसने रेत माफिया अथवा संबंधित ठेकेदारों के खिलाफ कहीं कायम नहीं किया कहते हैं। इन अधिकारियों की अलग-अलग बंगले अपने अपने आशियाने शहडोल की रेत कारोबार से बन रहे हैं हैदराबाद और मुंबई तक शहडोल की रेत की चमक दिखती है जब पकड़े जाएंगे तो कोई एमके दुबे कई करोड़ का आसामी सोने की ईंट के साथ पकड़ा जाएगा क्योंकि उसका तालमेल माफिया गिरी से हटकर हो गया था बहरहाल शहडोल के हिस्से में सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों का विनाश ही नजर आता है।
तब ईमानदार आईएएस ने कई जेसीबी और डंपर अवैध कार्य में जप्त कर पुलिस को दिए थे
रेत ठेका के के शुरुआती दौर में इनका मुकाबला धोखे से एक ईमानदार आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ के दौर में फस गया था जिसमें एक मुश्त कई वाहन जप्त किए गए थे। जेसीबी डंपर और बड़े वाहन निश्चित तौर पर वे छूट भी गए होंगे ।अब तो ऐसे बड़े वाहनों को पकड़ने का दौर खत्म हो गया है छुटपुट स्थानीय निवासी ट्रैक्टर वाले, डग्गी वाले रेत माफिया के अवैध कारोबार के नाम पर थानों में स्वर्णिम अक्षरों में अपनी जगह बना रहे हैं । क्योंकि पुलिस व्यवस्था पूरी इमानदारी से लोकहित स्थानीय निवासियों को पकड़ धकड़ करती है, जो माफिया को परेशान करते हैं। और अपनी माफिया गिरी चलाते हैं। क्यों ठेकेदार के उदारवादी सोच से लाखों रुपए का दान भूखे पेट के लिए उनके फाउंडेशन से होता है।
स्वभाविक है जब बड़ा माफिया काम कर रहा हो तो छोटे माफियाओं को रेत की वेश्या बाजार में सिर्फ ग्राहक लाने का काम करना चाहिए, स्वयं अपना कारोबार की इजाजत कैसे हो सकती है। इस अंदाज में शहडोल क्षेत्र में( अनूपपुर, उमरिया और शहडोल) न सिर्फ नदीनालों की हत्या पर काम हो रहा है बल्कि बनी बनाई कमभार क्षमता वाली करोड़ों अरबों रुपए से निर्मित प्रधानमंत्री सड़कों का विनाश और अवैध रूप से निकलने वाली रेत की कालाबाजारी में करोड़ों रुपए का जीएसटी का भी नुकसान हो रहा है।
तो शायद हिंदूवादी सोच के लोगों ने इसी प्रकार के रामराज्य की कल्पना की थी जिसका शासक कोई राम नहीं बल्कि रावण होता है। हालात इस कदर खत्म हो गए हैं कि नवलपुर के पास नदी में एक चम्मच रेत भी नहीं है, जहां रेत का अथाह भंडार होता था अब पत्थर ही पत्थर दिख रहे हैं। तो अब पत्थर तोड़ने वाला माफिया वहां सक्रिय हो गया है नदी के अंदर पत्थर के ढेर खनिज विभाग के संरक्षण में अपना कारोबार करने लगा।
शायद प्रधानमंत्री मोदी का विकास की अवधारणा इसी रास्ते से आगे बढ़ती है इसलिए आदिवासी विशेष क्षेत्र पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल क्षेत्र महामहिम राष्ट्रपति के संरक्षण में पारदर्शी तरीके से विनाश के रास्ते पर चल पड़ा है।
रही बात पत्रकारों की उन्हें विभिन्न सैकड़ों रेट ठेकों से जहां अलग-अलग विज्ञापन का लाभ मिलता था वह अब रेत माफिया अधिकारियों और सत्ताधारी पार्टियों की कृपा का मोहताज बनना पड़ रहा है अन्यथा उन्हें इस कोरोनावायरस अपनी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। शहडोल जैसे क्षेत्र में न्यायपालिका तब जीवित होती है जब उसके सामने कोई शिकायत का ऑक्सीजन लेकर जाए और कहे कि मान्यवर इन नियमों और अधिनियम का सब के सब मिलकर उल्लंघन कर रहे हैं,
इस तरह शहडोल के भारत में लोकतंत्र लगभग विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर रहा है। क्योंकि कांग्रेस के विधायक का रेत का ठेके की शराब और सत्ताधारी भाजपा के नेताओं का सोडा और अन्य लोगों का पानी से जो कॉकटेल तैयार होता है उससे इसी प्रकार का"सबका साथ-सबका विकास" शायद यही उसका चेहरा निकल कर आता है । इसलिए यही रामराज्य है...?
फिर भी यह बयान आयुक्त संभाग शहडोल का तसल्ली देता है की अवैध खनिज पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए तो क्या बुरा है आशा पर आकाश टिका है....।
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