शनिवार, 31 जुलाई 2021

प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्-4 (त्रिलोकीनाथ)

 प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्-4


ट्रांसफर इंडस्ट्री  

और 

शिव की साधना

(त्रिलोकीनाथ)

 षाढ़ बीतते ही सावन प्रारंभ हो जाता है, सावन में शिव-आराधना का दिन भी होता है किंतु इस बार कि मध्यप्रदेश के लोकतंत्र में कुछ और लोगों के दिन फिर गए । राम-नाम जपना पराया, माल अपना.. के अंदाज में कई अषाढ़ीए (एक प्रकार का सांप )को छूट दे दी गई कि वे ट्रांसफर उद्योग में आराधना के जरिए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लें.... ।

 तो पूरे मध्यप्रदेश में  कई एप्लीकेशन ट्रांसफर इंडस्ट्री ओपन होते ही बेरोजगारों को रोजगार मिल गया। अपने-अपने शिकार में सारे निकल पड़े। शहडोल में भी एक तृतीय वर्ग कर्मचारी जो नकाब पहन कर सहायकआयुक्त आदिवासी विकास के रूप में स्थापित है, उसने जमकर अपना ओपन मार्केट चालू किया। क्योंकि मार्केटिंग उसका पुराना पेसा रहा, हॉस्टलो से अवैध वसूली के जरिए ही वह तृतीय वर्ग कर्मचारी सहायक आयुक्त की कुर्सी में न सिर्फ पैर जमा लिया बल्कि शिक्षा विभाग के तमाम स्थापित भ्रष्टाचारियों को इतरा कर देखने लगा कि तुम अभी बच्चे हो....।

 क्योंकि जिले का कोषालय अधिकारी गर्व से कहता है की तृतीय वर्ग कर्मचारी को सहायक आयुक्त स्तर का आहरण का अधिकार देकर करोड़ों  रुपए कोषालय से  निकालने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। अगर महालेखाकार को आपत्ति होगी तो वह जाने.... जब होगी, तब देखा जाएगा....।

 फिलहाल तो भ्रष्टाचारियों के बल्ले-बल्ले ।यह आदिवासी क्षेत्र है यहां क्या तृतीय वर्ग, क्या चतुर्थ वर्ग, क्या द्वितीय वर्ग अथवा उनकी भाषा में अगर कुत्ता भी प्रभार ले आए तो उसे भी कोषालय से करोड़ों रुपए आहरण करने दिया जाएगा। क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल विशेष आदिवासी क्षेत्र में यहां भ्रष्टाचार की अपने पैमाने होते हैं । 

 तो फिर ट्रांसफर-इंडस्ट्री, अदृश्य इंडस्ट्रीज होती है जिसमें अपने-अपने शिव होते हैं, उनकी आराधना होती है लेकिन कुछ बड़े अधिकारियों के लिए इस आराधना से काम नहीं चलता उन्हें शिव के लक्ष्य पाने के लिए "साधना" की जरूरत होती है। बिना साधना के शिव को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इसलिए वे आराधना को त्याग कर साधना का लक्ष्य संधान करते हैं ।स्वभाविक है क्योंकि आराधना गणों की जाती है; शिव कि नहीं । वर्तमान परिदृश्य में देखें  तो आराधना द्वितीय वर्ग तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों के भ्रष्टाचार का अपना सिस्टम होता है किंतु साधना उच्चाधिकारियों की शिव-लक्ष्य पूर्ति का बड़ा माध्यम है..।

  जिन्होंने शिव के गले पड़े नाग को न देखा हो और अचानक असाड़िये सांप को देख ले तो वह उसे नाग ही समझ लेते हैं । क्योंकि शिव एक आकार है नर और नारी का साक्षात अवतार है। इस साधना से ट्रांसफर-इंडस्ट्री के   लक्ष्य को पाया भी जाता है। और प्रकोप से बचा भी जा सकता है क्योंकि शिव की साधना ही यही एक मार्ग है।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के स्टार्टअप मे ट्रांसफर इंडस्ट्री मात्र कुछ समय के लिए जन्म लेती है। इसलिए मध्यप्रदेश  में जमकर बाजारीकरण होने लगा।

 तो कर्मचारियों की हर स्तर पर अपने-अपने शिव हैं अपनी-अपनी आराधना है और शिव की अपनी साधना है। आराधना से साधना ज्यादा निकट होती है जिससे शिव खुश हो जाते हैं और सावन में शिव की साधना से बड़ा कोई मार्ग दिखता नहीं इसी से तमाम असाढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है। शिव भी खुश, साधना भी खुश और उनके अपने याचक में खुश यही है लोकतंत्र।

 शहडोल जिले के तमाम शिक्षकों के स्थानांतरण में भारी लाभ का कारोबार कैसे बन जाता है इस तरह जब कभी आराधना के जरिए शिव को प्राप्त करने वाला कोई तृतीय वर्ग कर्मचारी , सहायक आयुक्त का नकाब पहनकर आराधना की बजाय साधना के जरिए शिव को पाने का लक्ष्य प्राप्त करता है। और दावा करता है की उच्चअधिकारी को शिव की प्राप्ति हो गई है, तभी वह कोषालय अधिकारी झूठ को भी सच बदल कर बोलने का प्रयास करता है। की तृतीय वर्ग कर्मचारी को आहरण का अधिकार गंगा-कसम कानूनन है, अन्यथा करोड़ों रुपए के आहरण के अवैध ट्रांजैक्शन को अब-तक रोक दिया गया होता। किंतु जो हो रहा है वह भी सच है। क्योंकि साधना के जरिए शिव जल्दी खुश हो जाते हैं। और सावन में इसीलिए तमाम असाढ़िये साधना के जरिए लक्ष्य को प्राप्त कर रहे हैं ।

 प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम।



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