यह सोचकर मैं इतराता...?
काश,
पेगासस में हमारा भी नाम होता है..
(त्रिलोकीनाथ)
जिस प्रकार की राजकाज की व्यवस्था में हम पिछले 70 साल से पत्रकारिता के दौर में गुजर रहे हैं शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में ,और 7 दशक बाद हमारी महानराष्ट्रवादी सरकार के दौर में 7 साल के कार्यकाल में पत्रकारिता को जिस प्रकार नष्टभ्रष्ट किया जा रहा है उसका सबसे बड़ा उदाहरण कल पेगासस जासूसी कंपनी के माध्यम से भारत के जिन अपने और पराए लोगों की जासूसी करवाई जा रही थी उससे यह तो स्पष्ट हो रहा है कि मध्यप्रदेश सरकार हमें पत्रकार होने के अधिमान्यता दे या ना दे, वह अब वह महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। अगर, पेगासस की अधिमान्य सूची में मेरा नाम त्रिलोकीनाथ भी लिखा होता। तो मैं स्वयं को गौरवशाली महसूस करता कि उन्हें मेरी भी चिंता है...
किंतु वे सब जानते हैं कि हम बाल नहीं उखाड़ सकते उनका... इसलिए क्यों आदिवासी क्षेत्र के मुझ पत्रकार का जासूसी करवाते...? यह अलग बात है कि जिस उद्योगपति का हमने बाल उखाड़ने का काम किया है वह भारतीय जनता पार्टी व इनकी समर्थक मल्टीनेशनल मित्रों का शायद कम हितैषी है...; अगर गुजराती मित्र अडानी या अंबानी का बाल उखाड़े होते तो शायद पेगासस की सूची में मेरा भी नाम गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ता लगता.. तीन दशक की पत्रकारिता के बाद अब यह भी करना पड़ेगा पेगासस की सूची में आने के लिए...? क्योंकि असली सरकार तो वही चला रहा है तो सौदा उसी से क्यों ना हो। जिस पेगासस में आने की मेरी तड़प है उसने क्या किया आइए जानिए क्योंकि यह आपका धर्म भी है और यही कर्म भी एक सच्चा राष्ट्रवादी नागरिक होने का। जनसत्ता में आज यह प्रमुख खबर रही....
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