सर्वोच्च प्रशासनिक बौद्धिक संस्था
क्यों बन गई एक भटकती हुई
आत्मा....
(त्रिलोकीनाथ)
कथित तौर पर सामान्य प्रशासन विभाग, मध्य प्रदेश ने डीओपीटी को पत्र दिनाक 9जुलाई द्वारा यह बताया है कि सिविल सेवा बोर्ड मध्य प्रदेश, 91 बार सत्र 2020 में एक साथ मुलाकात कर उन आईएएस अफसरों के ट्रांसफर करने के लिये चर्चा करी है जिन लोगों ने अपना न्यूनतम कार्यकाल भी पूर्ण नहीं किया है। अर्थात हर चौथे दिन यह कार्य किया है।
कर्ज के बोझ में दबा हुआ एक ऑटो चालक ने अपने पीछे लिखा रखा था एक भटकती हुई आत्मा ..... । कुछ इसी तर्ज पर भारत की सबसे ताकतवर हमारे कार्यपालिका की बौद्धिक संस्था भारत की संविधान की कानून व्यवस्था को मध्य प्रदेश की सरकार को समझा पाने में असफल रही है। कि उसे लोकतंत्र के हित में सर्वोच्च प्रशासनिक प्रणाली के अधिकारियों को व्यवस्थित करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र सही दिशा में काम कर पाए। क्योंकि यदि हर चौथे दिन सर्वोच्च बौद्धिक संस्था से जुड़े लोग यह महसूस करते हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है उसे ठीक करने की जरूरत है फिर भी सरकार मैं बैठे मदमस्त लोग लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने में उनकी मदद नहीं कर रहे हैं तो इस हालत में जिन्हें गरीब और दीन-हीन समझा जाता है, जिन्हें मुफ्त में राशन देने का काम किया जाता है उन्हें कैसे मिलेगा...? यह एक बड़ी चुनौती है।
फिर अगर मुख्यमंत्री की मंशा लोकहित में चाहे राजनीति के "उपयोग करो और फेंक दे" इस नजरिए से ही मुफ्त राशन मिल रहा है। शहडोल के जमुई गांव में जनता से सीधे पूछताछ की जाती है तो निष्कर्ष स्पष्ट निकल कर आता है कि कोई राशन नहीं मिला है।
फिर चाहे आप मंत्री को कहें या संत्री को, चाहे कलेक्टर को या कलेक्ट्री को कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि लोकतंत्र के सिस्टम की हत्या करने का काम कहीं ना कहीं हम ही कर रहे होते हैं.. बार-बार हर चौथे दिन आईएएस बौद्धिक संगठन आपसे मिलकर प्रशासनिक फेरबदल में गलत तरीके से हो रहे कार्यप्रणाली पर चिन्हित करता है। इसके बावजूद उसे ठीक करने के बजाएं आप उन्हें नजरअंदाज करते हैं। तो यह तो सब होना ही है ।
कभी नेहरू का या व्यंग चर्चित हुआ था तो कहां से कहां तक पहुंचे हैं हम
कुछ इसी को आगे बढ़ाते हुए इसका नजीर हमने हाल में माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शहडोल संभाग मुख्यालय से जुड़े ग्राम जमुई यात्रा के दौरान देखा है जहां सत प्रतिशत कोविड-19 टीका वैक्सीनेशन से खुश होकर भोपाल से सीधे जनता को धन्यवाद देने के लिए वे पहुंचे थे और जनता की पीठ ठोक कर उन्हें कहा भी था कि "वाह रे... जमुई की जनता, इंग्लैंड और अमेरिका से भी ज्यादा जागरूक है.. किंतु एक क्षण में पूरी खुशी जैसे गायब हो गई।
जब उन्होंने पूछा कि मैं मुक्त राशन भेजता हूं,मिल रहा है कि नहीं...?
और जनता ने जवाब दिया कि "नहीं मिल रहा है.."
फिर मुख्यमंत्री बगले झांकने लगे । यह सच है तो यह "ढपोलशंख" व्यवस्था भाजपा की 17 साल की सरकार मैं यूं ही नहीं आई है, क्योंकि अगर आईएएस एसोसिएशन चिन्हित करके बार-बार
आपसे निवेदन कर रहा है की व्यवस्थाएं लोकहित में ठीक करिए और अगर आप नहीं कर पा रहे हैं तो यह तो होना ही था।
इससे भी बदतर हालात हमें कहां ले जाएंगे...? यह फिलहाल अकल्पनीय है..। क्योंकि कार्यपालिका में सक्षम और योग्य प्रशासकों की नियुक्ति मे स्थिरता यदि नहीं की जाएगी। उन्हें डिस्टर्ब कर के रखा जाएगा।
तो भलाई आप चुनाव जीत जाएं एक दिन यह आनंद जोशी और टीनू जोशी के जीवन निष्कर्ष की तरह आपके हाथ में आपके आईने की तरह साफ रहेगी।
किंतु तबतक लोकहित बहुत पतित हो चुका होगा। इसलिए वक्त अभी गुजरा नहीं है समझ सके तो समझ जाएं ... अन्यथा सिस्टम तो चल ही रहा है..। कौन रोका है मनमानी करने से। आखिर लोकतंत्र का नकाब जो है।
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