बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

आदिवासी विभाग में जारी है जंगलराज (त्रिलोकीनाथ)

 मामला शिक्षक गैरकानूनी संलग्न करण का

दो-दो कैबिनेट मंत्री के आदिवासी संभाग में


आदिवासी विभाग में 

जारी है जंगलराज

(त्रिलोकीनाथ)

इसमें कोई शक नहीं की आदिवासी विभाग में जंगलराज सफलता से चल रहा है और साहब सुविधा के हिसाब से उच्चाधिकारियों के निर्देश बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।

 और हो भी क्यों ना जब जिला कोषालय अधिकारी तृतीय वर्ग के कर्मचारी प्रभारी सहायक आयुक्त  बनाए गए  एमएस अंसारी के लिए  आहरण करने का विशेषाधिकार का भ्रष्टाचार का कानून लागू करता है तो आदिवासी विभाग में कानून की अराजकता सातवें आसमान पर उड़ने लगती है।

 यही कारण है कि उच्चाधिकारियों के निर्देश को उपआयुक्त आदिवासी विभाग लागू करने का आदेश 2018 मे तो देते हैं किंतु स्वयं "पद बिकता है बोलो खरीदोगे" के सिद्धांत के तहत मनमानी स्थानांतरण भी करते रहते हैं। और हो भी क्यों ना सरकारी धन में लूट का आरक्षण सिर्फ अफसरों के लिए बना ही है ऐसा प्रतीत होता है।

तो पहले 7 दिसंबर 2018 मे उपआयुक्त आदिवासी विभाग सरकारी फरमान को जारी करते हैं कि शिक्षकों का संलग्नकरण  समाप्त किया जाता है।

और फिर आश्चर्यजनक तरीके से "भ्रष्टाचार की बोली और नीलामी के हिसाब से नए नए तरीके से संलग्नकरण के कार्य किए जाते हैं। एक भ्रष्ट शिक्षक को गोहपारू मैं मंडल संयोजक बनाए जाने पर जो बवाल खड़ा हुआ अंततः उसका अंत घर वापसी से हुआ। किंतु चर्चाा है कि भ्रष्टाचार के धरातल में ₹50000 की धनराशि साहब के कार्यालय  ने वापस नहीं की है। अब गैर कानूनी तरीके से 22 फरवरी को श्रीमती आराधना तिवारी शिक्षक का अमलाई से कन्या माध्यमिक शाला वार्ड नंबर 3 शहडोल में संलग्न करण कर दिया गया है। किंतु यह मर्यादा बनाकर रखी गई है की मूल वेतन अमलाई से ही निकलेगी। 

किंतु प्रभारी सहायक आयुक्त तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी की बेगम साहिबा जावेद अंसारी का संलग्न करण गैरकानूनी तरीके से करीब दो दशक बाद भी प्राइमरी शिक्षक से अपग्रेड करके हाई स्कूल सोहागपुर में बरकरार है। तो यह फिर भ्रष्टाचार का आईकॉन-मॉडल बनाने का काम भी करता है। कि जब प्रभारी सहायक आयुक्त तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी की बेगम के लिए कानून तोड़कर नियम कानूनों की और निर्देशों की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं तो फिर अन्य शिक्षक यदि भ्रष्टाचार करने की ताकत रखता है और पद खरीद सकता है तो क्यों नहीं संलग्नी करण के आदेश जूतों के तले रौंद दिए जाएं...? तो यह एक प्रकार का ओपन-भ्रष्टाचार का टेंडर भी है, यदि आप में ताकत है और आप "भ्रष्टाचार के जन्मसिद्ध अधिकार" पर यकीन रखते हैं तो आदिवासी विभाग का जंगलराज आपका स्वागत करता है।, कुछ इस अंदाज में आदिवासी विभाग का कार्यालय उच्चाधिकारियों के निर्देश का धज्जियां उड़ा रहा है। जल्द ही जंगल विभाग के वन मंडल अधिकारी के उन निर्देशों को आदिवासी विभाग में भी देखा जा सकता है


जिसमें वन मंडल अधिकारी श्रीमती स्नेहा श्रीवास्तव ने नोटिस चस्पा कर  रखा है कि मीडिया-कर्मी का जंगल राज के कार्यालयों में प्रवेश प्रतिबंधित है। देखना होगा कि आदिवासी विभाग के दो-दो  कैबिनेट मंत्रियों वाले आदिवासी संभाग शहडोल में कानूनी अराजकता पर मंत्रियों की आंखें खुलती हैं या फिर वह स्वयं इन व्यवस्था पर अपनी मौन सहमति देते हैं...? बहरहाल कानून के शासन में यह सब गैरकानूनी कहा जाता है और अलोकतांत्रिक भी।

पूर्व अध्यक्ष हुआ गिरफ्तार ,पीड़िता बदल रही है बार-बार बयान

 


 मामला जैतपुर सामूहिक बलात्कार कांड का


पूर्व
 भाजपा मंडल अध्यक्ष  हुआ गिरफ्तार  ;पीड़िता बदल रही है बार-बार बयान, कहा; पुलिस अधीक्षक ने

अंततः  जैतपुर  भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी  अपने साथियों सहित  गिरफ्तार  कर लिए गए हैं  । 20 वर्षीय युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के तीन आरोपी हुए गिरफ्तार ,  पूर्व भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी, शिक्षक राजेश शुक्ला, मुन्ना ठाकुर हुए गिरफ्तार . आरोपी मोनू महाराज अभी भी फरार, 18 फरवरी को युवती को अगवा कर नशीले पदार्थ का सेवन करा  सामूहिक दुष्कर्म किया था।

 पुलिस निरीक्षक अवधेश गोस्वामी ने माना कि पीड़िता बार-बार बयान बदल रही है ।पीड़िता के निकटतम सनी मिश्रा ने बताया कि मजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दिए गए हैं उसके बाद कोई बदलाव नहीं आया है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार मजिस्ट्रेट के सामने चारों आरोपियों पर बयान दर्ज किए गए हैं हालांकि पीड़िता के निकटतम ने बताया कि अवश्य उन पर बहुत ज्यादा दबाव था किंतु मजिस्ट्रेट के बयान के बाद दबाव नहीं रह गए हैं उन्हें पुलिस की पर्याप्त सुरक्षा मिली हुई है दूसरी ओर यह बात भी चर्चा का विषय बनी हुई है कि जब बयान बदलते हैं तब गिरफ्तारी होती है तो क्या गिरफ्तारी बदलते बयान की वातावरण पर हो रही है। यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है..? राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक बलात्कार कांड की चर्चा ने मामले को गर्म कर दिया था ज्ञातव्य है कि खनन रेत माफिया की काली कमाई से जन्मे  नव धनाढ्यमें भाजपा मंडल अध्यक्ष रहे नेता भोग विलास की तुष्टि के लिए गाड़ाघाट में बलात्कार कांड को अंजाम दिया था और जब पीड़िता की तबीयत खराब हो गई उसे लाल कलर की कार से उसके घर में फेंक दिया गया था अपुष्ट सूत्रों के अनुसार लाल कलर की कार जप्त कर ली गई है।






मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

बलात्कार कांड में शहडोल कांग्रेस के दो फाड़..?( त्रिलोकीनाथ)

 R.s.s. का यह कैसा विजय अभियान..?




मंडल-अध्यक्ष बलात्कार कांड में शहडोल कांग्रेस के दो फाड़..?

(त्रिलोकीनाथ)

मेरा अखबार का नाम है विजयआश्रम, क्योंकि मुझे अपने पत्रकारिता के संसार में एक ऐसे आश्रम बनाने की अपेक्षा थी  जिसने विजय सुनिश्चित हो। इसलिए अपने अखबार का नाम विजयआश्रम रखा।

 कुछ प्रशासनिक कारणों से तो कुछ व्यक्तिगत कारणों से और थोड़ा-बहुत वित्तीय कारणों से अखबार विजयआश्रम अपने लक्ष्य को पाने में पीछे रहा। आकर पत्रकारिता आयोग होता तो शायद हमें इस प्रकार की कोई मदद मिलती।

 क्योंकि मैंने पत्रकारिता की दुनिया में तब,अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्पना का स्टार्टअप के तहत काम आरंभ किया था। 1998 में जिला पंचायत शहडोल से प्रस्ताव पारित कराकर पंचायती व्यवस्था का प्रवक्ता समाचार पत्र के रूप में विजयआश्रम मैंने शुरुआत की थी। उस समय कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को पंचायती राज व्यवस्था का वोट के धंधे के लिए बुखार चढ़ा हुआ था। हमें भी गांधी दर्शन में स्थापित "भारत की आत्मा गांव में निवास करती है" यह सोच कर ग्रामीण पंचायती व्यवस्था में पत्रकारिता के अवसर दिखाई दिए...।

 भारत के लोकतंत्र ही नहीं दुनिया के इतिहास में शायद यह पहला अवसर रहा होगा कि किसी आदिवासी क्षेत्र शहडोल से विजयआश्रम जिला पंचायत शहडोल का पहला पाक्षिक समाचार पत्र के रूप में दर्ज हुआ और 2 साल चला भी। क्योंकि तब तक आईएएस अधिकारी कुछ सुर्री टाइप के संजय दुबे मुख्य कार्यपालन अधिकारी नहीं थे। और जब आए  पंडित जी के कारण करीब ढाई लाख रुपए भुगतान नहीं किए जाने के कारण वित्तीय  असहयोग से समन्वय के अभाव के कारण विजयआश्रम का प्रकाशन मुझे रोकना पड़ा। तब से  अखबार के रूप में विजयआश्रम स्पीड-ब्रेकर मेंं खड़ा है बाद में डिजिटल इंडिया ने  इसे मदद की है।लगातार दो वर्ष करीब प्रकाशन हुआ यह कथा बीसवीं सदी में ही एक मुकाम में पहुंच गई क्योंकि मेरे निकटवर्ती सज्जन को कैंसर हो गया था और मुझे वक्त नहीं मिला संघर्ष का इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।

 तो मैं बता रहा था की विजयआश्रम अखबारी टाइटल इसलिए रखा कि मुझे गर्व हो, जैसे "गर्व से कहो  हम हिंदू हैं" टाइटल का उपयोग कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्टार्टअप में उपयोग करता चला आ रहा है। यदा-कदा अभी भी उनका टाइटल दिख जाता है। अब यह दूसरी बात है कि  स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता जब हाफपेंट पहनते थे। जिनका विकास मोदी सरकार आने के बाद फुलपैंट तक हो गया है।

 तो मेरे अखबार के विजय नाम का उपयोग तीन-चार दिन पहले तक आर एस एस की भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी विशेष क्षेत्र जिले शहडोल मे जैतपुर मंडल के मंडल अध्यक्ष माननीय श्री विजय त्रिपाठी जी के नाम से तब तक चलता आया जब तक उनकी चाल चरित्र और चेहरा, बैंडबाजा बजाता हुआ गाढ़ासरई फार्म हाउस शाखा में अपने ही जैतपुर विधानसभा क्षेत्र की कथित तौर पर अपनी ही स्वजातीय  लड़की को अगवा करके, अपने  अन्य भाजपा साथियों के साथ बलात्कार-उत्सव में घटित दुर्घटना के बाद लड़की को "यूज एंड थ्रो" की तरह उसके घर में नहीं फेंक दिया।

 तो क्या गाढ़ासरई शाखा में कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक विजय अपना आश्रम चला रहा था...? और उसके इस विजय-आश्रम में अक्सर रासलीला का आयोजन होता था...? अगर पुलिस पारदर्शी रही तो शायद बातें सामने आएंगी। अन्यथा बापू आसाराम की तरह उन्हें भी सत सम्मान करोड़ों रुपए की जेल में भेज दिया जाएगा

 तो यह फोटो इस बात का प्रमाण भी है की भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री श्रीमती मनीषा सिंह के जैतपुर विधानसभा क्षेत्र के जैतपुर मंडल का मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी  तब से कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक रहा है और अपने नेता के साथ फोटो खिचाता रहा जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हाफपेंट संस्कृति मे सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद के सपने देखता था। अब सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद फुलपैंट में विकास कर लिया है।

 किंतु भाजपा मंडल अध्यक्ष ने पूरे परदे, पूरी क्षमता के साथ पारदर्शी तरीके से बैंडबाजा बजा कर पुलिस रिकॉर्ड में न सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने साथियों को जिसमें बहुतायत ब्राह्मण हैं एक नए "चरित्रहीन-समाज" का पारदर्शी चाल,चरित्र और चेहरा स्थापित करने का काम किया है।

 शहडोल का मीडिया हमसे भी मांगता रहा कि क्या माननीय विजय त्रिपाठी जी का फोटो है जो हमें तो नहीं मिला ना हम विजय भाईसाहब को पहचानते थे।

 किंतु कांग्रेस पार्टी के अधिवक्ता प्रदीप सिंह ने इस फोटो को शेयर किया है जिसमें वह कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक कार्यकर्ता के रूप में अनुशासन बंद अपने नेता के साथ खड़े दिखते हैं।

 बावजूद इन सबके क्या बात तारीफे काबिल है कि पुलिस प्रशासन ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निर्भयता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्माण किया है उनके जज्बे को सेल्यूट करना ही चाहिए।

"थोड़ी सी जो पी ली है...,

 चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला..."

 के अंदाज में इस समर्पित भाईसाहब भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय अपने गाढ़ासरई आश्रम में जो कृत्य किया उससे भाजपा के अंदर बहुत खलबली नहीं दिखाई देती है, किंतु कांग्रेस पार्टी में हैं टुकड़े-टुकड़े हो गए प्रतीत होते हैं। एक टुकड़ा


जिला अध्यक्ष आजाद बहादुर सिंह के नेतृत्व में जहां इस घटना को चरित्रहीन-समाज का चेहरा बताने में लगे हैं, वही कांग्रेस नेता प्रदीप सिंह ने चरित्रहीन समाज के चेहरे को जरिए फोटो प्रदर्शित किया है।

 किंतु एक दूसरा टुकड़ा भी है जो इससे इत्तेफाक नहीं रखता दिखाई दे रहा है या नजरअंदाज कर रहा है शायद यही कारण है कि पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष और अब प्रदेश नेता सुभाष गुप्ता के नेतृत्व वाला कांग्रेश टुकड़ा अभी भी विजयत्रिपाठी को माननीय विजयत्रिपाठी के रूप में मानता है। और यही कारण है कि वह इसका ना तो सार्वजनिक तौर पर निंदा कर रहा है और ना ही कोई धरना आंदोलन उसी स्तर पर कर रहा है जिस स्तर पर जब मुकुल वासनिक प्रदेश प्रभारी कांग्रेस पार्टी शहडोल में आए थे तो पूरे शहडोल जिले में लाखों रुपए के फ्लेक्सी के जरिए बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर कांग्रेस का चाल, चरित्र और चेहरा दिखाने का काम किया गया था।

 ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी के  टुकड़े-टुकड़े इनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे फ्लेक्सी के जरिए, प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अखबार समाज के जरिए चरित्रहीन-समाज के प्रतीक बन चुके विजय त्रिपाठी को अपने राजनैतिक फायदे के लिए ही उनके सेक्स-इंडस्ट्री पर हमला करके यह बताते कि चरित्रहीन-समाज ना तो कांग्रेस पार्टी के हित में है और ना ही भारतीय जनता पार्टी के हित में। आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के हित में यह कतई नहीं है। किंतु कांग्रेस में शायद सेक्स-इंडस्ट्री को लेकर एक मत और एक राय अभी तक तो बनती नहीं दिखाई देती.... हो सकता है कांग्रेस पार्टी के अंदर इस इंडस्ट्री को लेकर अपने-अपने मापदंड हो...?, अपनी अपनी नैतिकता हो...? और अपनी-अपनी भाजपा के साथ नूरा-कुश्ती भी हो...? जिसमें राजनीति की रहस्य-नीति अपना काम कर रही हो।

 अन्यथा शहडोल की बेटी आरजू के लिए न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस पार्टी का एकजुट विरोध भारी संख्या में ऐतिहासिक एकता दिखा कर बेटियों के साथ अत्याचार के खिलाफ आंदोलन किया था। हो सकता है तब भी कांग्रेस का सुभाष गुप्ता के नेतृत्व वाला  टुकड़ा ऐतिहासिक एकता का हिस्सा न रहा हो।

 किंतु भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी के इस बलात्कार-इंडस्ट्री में वह अपना भूमिका अदा कर सकते थे। उनकी चुप्पी के क्या रहस्य हैं...? कम से कम यह तो तय है कि राजनीति के प्रोपेगेंडा कारोबार में मुकुल वासनिक के आगमन पर जितने फ्लेक्स और बोर्ड सुभाष गुप्ता नेतृत्व वाले टुकड़े मैं दिखे थे उससे लगता था कि कांग्रेस पार्टी अगर जिंदा है तो उन्हीं के नेतृत्व में जिंदा है शहडोल में।

 तो फिर आखिर भाजपा मंडल अध्यक्ष के अखिल भारतीय स्तर के इस वीभत्स कांड पर उनका प्रोपेगंडा फ्लेक्सी के जरिए कम से कम क्यों नहीं दिख रहा है...? क्या विजय त्रिपाठी के गाढ़ासरई आश्रम में उनकी कोई सहमति है.... हमें यह झूठा-शक जानबूझकर करना चाहिए..,

 क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व के की राजनीतिक-स्पेस को फिल-अप करने के लिए यदि आपका तन-मन-धन सक्रिय हो जाता है, तो इस निंदनीय कृत्य पर आप की चुप्पी के क्या रहस्य हैं...? सार्वजनिक होना ही चाहिए।

 क्योंकि जब कोई कांग्रेस का विधायक शहडोल में खनन माफिया बनकर सफलता से काम करता है और भाजपा की सत्ता आने पर उसकी सफलता में पूरा भाजपा शामिल हो जाता है यह सहयोग देता है तो यह तो साफ है की सत्ता के काले कारोबार में सभी एकजुट है  और सब मिलजुल कर  अपराधिक कृत्य को अंजाम देते हैं क्यों शक नहीं करना चाहिए  कि भाई साहब  के बलात्कार कांड में  कांग्रेस के कुछ टुकड़े अपने मौन सहमति दे रहे हो...? अगर ऐसा होगा तो जैतपुर सामूहिक बलात्कार कांड मे पुलिस और कानून दोनों ही लक्ष्य पर असफल हो जाएंगे । शहडोल की बेटी को बचाने के लिए भी। क्योंकि अभी तक किसी राहत भरी घोषणा का प्रदर्शन होता भी नहीं दिखता  क्योंकि वह आदिवासी समाज से नहीं है तो उस पीड़िता को तत्काल कोई राहत राशि भी नहीं मिल सकती... चिकित्सा राहत राशि की घोषणा भी दिखाई नहीं देती...?

हमें तो  इसलिए भी परेशानी है कि विजयआश्रम का नाम हमने गौरव के लिए चुना था, उस पर कलंक लग रहा है.., तो क्या "पराजय-आश्रम" बदलने की दिशा में अब हम काम करें...?

 क्योंकि विजय ने इस नाम को कलंकित किया है इस पर चर्चा तब तक करते ही रहना चाहिए जब तक विजय अपने नाम के विरुद्ध समाज के किसी भी धारा में चाहे वह कार्यपालिका और न्यायपालिका हो, विधायिका हो अथवा पत्रकारिता ,विजय का नकाब पहनकर समाज को पराजित करने का काम करता रहेगा...... अन्यथा एक चरित्रहीन-समाज विजय का  नकाब पहनकर ठीक उसी प्रकार से एक चरित्रहीन समाज का निर्माण करता रहेगा जैसे आर एस एस का नकाब पहनकर यह व्यक्ति भाजपा का मंडल अध्यक्ष बन बैठा था।

 तो राजनीति को और राजनीतिज्ञों को भी कम से कम अपनी आदिवासी स्तर की सोच में आदिवासी क्षेत्र में कम से कम सुचिता का पालन करना ही चाहिए। हमारी चुप्पी भी चरित्रहीन-समाज को बढ़ावा देती है।

 और यह बात कोतवाली शहडोल के बगल में प्रमाणित होती है क्योंकि वहां भी कांग्रेस के बड़े नेता और भाजपा के बड़े नेता मूक-बधिर होकर जिंदा रहना चाहते हैं। यह समस्या, बड़ी समस्या बने इस पर व्यापक विमर्श होते रहना चाहिए। क्योंकि कोतवाली शहडोल के बगल में पत्रकारिता , विधायिका और न्यायपालिका का भी एक हिस्सा अपने स्तर पर चरित्रहीन-समाज पर आश्चर्यजनक चुप्पी बनाए हुए हैं, इतना कायर होना भी अच्छा नहीं...।


सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

नया इंडिया का नया स्टार्टअप धंधा तो है..... (त्रिलोकीनाथ)

नया इंडिया का नया स्टार्टअप

धंधा तो है.....


(त्रिलोकीनाथ)

एनडीटीवी के एंकर और वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने सोशल मीडिया में खुला खत लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है।  रवीश कुमार ने अपने इस ओपन लेटर में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया है। रवीश कुमार ने देश के युवाओं की भी चुटकी ली है। रवीश ने लिखा है कि प्रधानमंत्री जी


आप इन बेरोजगारों को नौकरी मत दीजिए, इन्हें मंदिर निर्माण के चंदा वसूली की रसीद ही दे दीजिए।

बेरोजगारी के आलम में रवीश की सोच भी सही है की। भलाई दिशा भटकाने के लिए राम मंदिर का चंदा और भजन मंडली में युवाओं का उपयोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भारत मैं बेरोजगारी खत्म करने के लिए कम से कम पकोड़ा तलने के रोजगार से कुछ बेहतर है। तो रोजगार और बेकारी का आलम यह भी है की शहडोल के कुछ अधिवक्ता प्रधानमंत्री के बनाए गए एससी-एसटी वर्ग के हितों के लिए


जो कानून बने हैं उसमें कई लोगों को रोजगार स्टार्टअप कार्यक्रम दिखाई देता है।

 हाल में शहडोल में कोतवाली के इर्द-गिर्द  दलित आदिवासियों द्वारा सामान्य वर्ग के खिलाफ उसकी धन संपदा लूटने के लिए सामान्य वर्ग के पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के ऊपर कई शिकायतें करवाई गई। बार-बार एक ही प्रकार की शिकायतों का जमावड़ा कम से कम यह तो प्रदर्शित करता है की प्रताड़ना जिंदा है और भरपूर है । यह अलग बात है कि गिरोह बनाकर प्रताड़ित करने वाला पक्ष, दूसरे पक्ष को प्रताड़ित कर रहा है या फिर अकेले अपने को सुरक्षित करने में लगा पक्ष, गिरोह को प्रताड़ित कर रहा है ।

अगर एससी-एसटी वर्ग इस बात की बार-बार धमकी देकर कि सामान्य वर्ग के खिलाफ उसके मान सम्मान की हत्या करके उसे जेल पहुंचा करके वह प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बनाए गए कानून में रोजगार के अवसर इसलिए ढूंढ रहा है क्योंकि उसे शासन से इस प्रताड़ना के बदले कोई बड़ी रकम मिलेगी तो इसमें जुड़ा या इन्हें प्रोत्साहित करने वाला सामान्य वर्ग का अधिवक्ता भी अपने बीवी-बेटों और बेटियों, मां बाप को जिंदा रखने के लिए इस कानून मैं अपने हिस्से को तलाशता है।

 फिर यदि इसमें चरित्रहीन समाज जैसा कि भारतीय जनता पार्टी का स्लोगन है चाल चरित्र और चेहरा बनाए रखा जा सकता है, बावजूद इसके कि चरित्रहीन समाज में रोजगार के अवसर हैं और भोग विलास के भी अवसर हैं, तो क्यों ना ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए और यह सब कहीं ना कहीं कोतवाली के इर्द-गिर्द समाज का विकास हो रहा है ।

हालांकि 1 वर्ग यह मानता है कि हमें इस प्रकार की घटनाएं घट रही घटनाओं में


इसलिए दूरी बना कर रखना चाहिए ताकि उसके छीटें हमारे
सभ्य समाज परना पड़ेगी किंतु अगर प्रधानमंत्री स्टार्टअप कार्यक्रम में चाल चरित्र और चेहरा मैं चरित्रहीन समाज और एससी एसटी वर्ग के कानून का दुरुपयोग रोजगार के अवसर देता है तो उसे क्यों नहीं स्वीकार कर लेना चाहिए...? ऐसा एक अधिवक्ता से मिलने के बाद मुझे संभावना नजर आई। अधिवक्ता की यह सोच उनके संस्कार और परिवार की संयुक्त समूह की सोच का उत्पादन हो सकता है । जिसमें इस प्रकार के गैर कानूनी समाज निर्माण में भी कानून से रक्षा की जिम्मेदारी रखकर बिना प्रमाण के ऐसे समाज में तब तक पैसा चूसने की और अपने बच्चों को पालने की अवशर क्यों नहीं ढूंढना चाहिए जब तक न्यायालय यह प्रमाणित न कर दे या प्रमाणित ना हो जाए कि एससी एसटी वर्ग के हित का दुरुपयोग, चरित्रहीन व्यक्तियों के साथ खुलेआम हो रहा है।

 महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था कि अधिवक्ता का पेशा मैं अधिवक्ता जान जाता है पहली नजर में कि दोषी कौन है इसलिए न्याय के पक्ष में उसे वकालत करने चाहिए। अधिवक्ताओं का जो नया दौर आया है न्यायपालिका की यह कमजोरी है कि महात्मा गांधी के इस मूल सिद्धांत को दफन करते हुए इस बात को जोर-जोर से चिल्लाकर बोलकर न्यायिक रूप दे दिया गया है कि जब तक प्रमाणित ना हो जाए तब तक इस अपराध को


होते रहने देना चाहिए। तो क्या फर्क पड़ता है कि हम डंका और ढोल तो चाल चरित्र और चेहरा का , सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ठेका लेकर अयोध्या के राम मंदिर के नाम पर जगह जगह चंदा वसूलने का कारोबार करते हैं और उसमे रोजगार की संभावना देखते हैं।

 रवीश कुमार ने अगर इस स्टार्टअप में बेरोजगारों को राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार की संभावना के अवसर दिखाई देते हैं तो क्यों नहीं होने देना चाहिए। अकेले एक समूह को राम के नाम पर, धर्म के नाम पर चंदा घोषित और अघोषित तौर पर लेने का रोजगार क्यों आरक्षित होना चाहिए। यह प्रश्न बड़ा अहम है।

 उस वक्त जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मंदिर बनाने के नाम पर एक तरफ भजन मंडली के साथ शासकीय अधिवक्ता रह चुके एक अधिवक्ता का चेहरा अक्सर फेसबुक में हमें गौरवान्वित करता है किंतु इन्हीं के सहजन भारतीय जनता पार्टी के भाजपा मंडल का अध्यक्ष जैतपुर का कोई प्रमुख व्यक्ति तब तक अपराध को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के गौरव के रूप में छुपाता रहा जब तक सत्ता और अपराध का नशा मिलकर गाढ़ासरई मैं समूह बनाकर बलात्कार को अंजाम देने की घटना सामने ना आ जाए।, तब तक जब तक की पुलिस के रिकॉर्ड में यह दर्ज ना हो जाए कि बलात्कार की कोई घटना भी हुई है । कोई जरूरी नहीं है की आप पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद के स्तर पर जब तक पहुंचना जाएं तब तक आपको सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आनंद लेने का अधिकार नहीं है। आखिर जैतपुर के भाजपा मंडल अध्यक्ष द्वारा समूह बनाकर बलात्कार किए जाने की घटना भी एक रोजगार पैदा करती थी। उन युवाओं को भी जो इसमें शामिल थे, उन नेताओं को भी जो इसे संरक्षित करते थे। ऐसी हालात में समाज आखिर क्यों यह नहीं स्वीकार करता की घोषित कानून अगर रोजगार पैदा करता है तो अघोषित तौर पर भी कई रोजगार दे रहा है ।तो अधिवक्ता , यदि चरित्रहीन समाज और एससी एसटी वर्ग हित के दुरुपयोग में भी अपने बीवी बच्चों के पेट पालने का इंतजाम करता है तो यह भी एक स्टार्टअप है। अब यदि सभ्य समाज इसे अस्वीकार करता है तो वह उसकी कमी है या नासमझ है। ऐसा प्रमाणित भी करने का प्रयास किया जाता है।

 फिर कौन से रास्ते हैं लोकतंत्र में स्वतंत्र भारत के जहां अपराधों में रोजगार की संभावना को निंदनीय बनाया जाए...?

निश्चित तौर पर आधुनिक नया इंडिया में बेरोजगारी और बेकारी बहुत तेजी से बढ़ रही है यह भी उसका एक पक्ष है। क्या बुरा है कि बलात्कार, चरित्रहीन समाज और एससी-एसटी वर्ग के हित में बनाए गए कानून के दुरुपयोग का एक उद्योग स्थापित हो.... जो पूरी भजन मंडली के साथ जगह जगह गांव गांव जाकर उसी तरह चंदा वसूलने का काम करें जिस प्रकार से धर्म के नाम पर युवाओं को चंदा वसूलने के काम में लगा दिया गया है। क्योंकि इसका तो कोई नियंत्रण है कुछ बड़ा हिस्सा हेड क्वार्टर में पहुंचता ही होगा..., किंतु सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नकाब पहनकर चरित्रहीन समाज से बनने वाली इंडस्ट्री का पूरा पैसा बौद्धिक समाज के अपने परिवार पालने के काम में आएगा ..,क्या फर्क पड़ता है उस समाज को जो नकाब तो अधिवक्ता का पहनता है पत्रकार का पहनता है किंतु अपने बीवी और बच्चों में भी यह संभावना तलाश करेगा की उसका बुढ़ापा चरित्रहीन पैसे से कैसे कट जाए.... यह भी बड़ा मंथन है ।

विदेशों में एक ऐसे समाज का भी जिक्र आता है जिसमें पति अपने पत्नी से सहमति देकर सेक्स इंडस्ट्री से अपने परिवार चलाता है अपवाद में ही सही यह एक स्टार्टअप भी है ।तो क्या भारत का जो नया इंडिया है वह इस प्रकार के "आत्मनिर्भर भारत" की तरफ भी बढ़ रहा है... जो रहस्यमय तरीके से आत्मनिर्भरता की ओर जीवन पद्धति में संभावना देखता है..? और उसे कानून के संरक्षण में सही भी ठहराता है, बावजूद इसके की स्वस्थ समाज सभ्य समाज इसे गलत ठहराता है । क्योंकि  समाज आंतरिक मंथन यह विमर्श बहुत कम करते हैं  पूरा ठेका  न्यायपालिका और न्यायाधीशों पर थोप दिए हैं । किंतु जब तक वह इस पर सार्वजनिक तौर पर पूरी ताकत से इसका विरोध नहीं करता तब तक चरित्रहीन समाज ही  वह व्यवस्था बन जाता है।

 शहडोल में चाहे कोतवाली के बगल में घट रही घटनाओं में एससी एसटी वर्ग के कानून के दुरुपयोग का मामला हो अथवा भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री  महिला विधायक  मनीषा सिंह के जैतपुर क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के मंडल अध्यक्ष और जोर से जय श्री राम बोलने का ठेका लेने वाला समूह के बलात्कार के दुष्कर्म का मामला हो , बाणसागर में किसी भाजपा नेता के चरित्र हीनता की कुकृत्य  का मामला हो या फिर गैर कानूनी काम करने वाले वर्ग का, तब तक जब तक की न्यायालय उन्हें प्रमाणित ना कर दे, तब तक ऐसे कार्यों में रोजगार के अवसर बढ़ते चले जाएंगे ।

फिर चाहे गैरकानूनी तरीके से राम मंदिर के नाम पर चंदा एकत्रीकरण करने का काम हो, जिसका कोई जिला स्तर पर पारदर्शी नियंत्रण प्रतिदिन प्रदर्शित ना हो अथवा खनिज माफिया के खुली लूट का छूट का मामला क्यों ना हो ,क्या फर्क पड़ता है कि सड़क में कीड़ों मकोड़ों की तरह मरने वाले नागरिकों के मामले में शासन प्रशासन की लापरवाही से समूह में दुर्घटना के कारण किसी नहर में डूब कर मरने वाले घटनाओं के मामले हो इन सब पर भी चिंतन मनन करते रहना चाहिए... अन्यथा यह सब भी बेरोजगारी और बेकारी के दौर में एक रोजगार के अवसर की तरह ही दिखने लगेंगे। क्योंकि पुलिस प्रशासन कि अपनी गुप्तचर एजेंसियां ऐसे अवैध कार्यों के बारे में कोई रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक को या उच्च स्तर पर नहीं भेजती हैं इसमें कोई शक नहीं अगर गुप्तचर शाखा ऐसे संगठित अपराधों में सूचनाएं जब बार-बार घट रही हो आकलन करके काम करें तो परिस्थितियां कुछ और होती।

 बहरहाल  क्योंकि बेरोजगारी और बेकारी से घर-परिवार बर्बाद हो रहे हैं तो सोचते रहिए और समझते रहिए कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और चाल चरित्र चेहरा का जो "नया इंडिया" बन रहा है विशेषकर इस आदिवासी क्षेत्र में उसमें हमारे और आपके बच्चे किस प्रकार की रोजगार में और  अवसर तलाशगे....? क्योंकि आज भी कुछ लोग इसी पर रोजगार का अनुसंधान करते हैं आज भी वे इसे सही ठहराते हैं... समाज को इस पर नजर रखनी ही चाहिए... और क्या कोई आक्रामक वैचारिक हमला चरित्रहीन समाज पर हो सकता है...? सोचते-विचारते रहना चाहिये अन्यथा कोई भाई-बहन के रिश्ते में तो कोई पिता-पुत्री के रिश्ते में तो कोई गुरु-शिष्य के रिश्ते में तो कोई अधिवक्ता और पक्षकार के रिश्ते दिखाकर,  अपवित्र समााज निर्माण कर रहा होता है.... और धीरे-धीरे वह मीठा जहर बन कर पवित्र समाज के संभावना के अवसर को खत्म् कर देता। क्योंकि वह नकाबपोश होता है। और इन नकाबपोशो पर पारदर्शी बहस भी होनी चाहिए।

 इसीलिए आरएसएस से जुड़े गोविंदाचार्य "मुख और मुखौटा" पर चिंतित रहते थे, कुछ लोग मरने के बाद बेमानी हो जाते हैं तो गोविंदाचार्य जैसे लोग जिंदा रहते बेमानी हो जाते हैं.... यह कैसा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और कैसा स्टार्टअप......?


रविवार, 21 फ़रवरी 2021

कमल के पत्ते पर बदबूदार कीचड़ के दाग...

 कमल के पत्ते पर


बदबूदार कीचड़ के दाग...

मंडल अध्यक्ष पर महिला दुष्कर्म के लगे आरोप....?

शहडोल। भाजपा के कमल के पत्ते पर बदबूदार कीचड़ के दाग जिला भाजपा शहडोल की निर्मल छवि को दागदार बनने की खबर में  एक महिला के साथ कई लोगो ने दुष्कर्म किया और दुष्कर्म करने के बाद महिला को उसके घर के सामने ही फेक दिया।


 सूत्रों के अनुसार प्रदेश भाजपा की महामंत्री जैतपुर क्षेत्र की विधायक मनीषा सिंह के जैतपुर क्षेत्र में बीते शनिवार की रात बाद कुछ लोगो ने महिला को उसके ही घर से  ले जाकर महिला को कथित तौर पर जबरदस्ती शराब पिलाकर एक साथ कई लोगों ने मिलकर महिला के साथ दुष्कर्म किया। दुष्कर्म के बाद जब महिला की हालत खराब हो गई तो उसे  उसके घर के सामने ही फेंक दिया गया। महिला को घर के बाहर पड़े देख उसकी दर्द से कराहने की आवाज सुनकर परिजनों ने महिला को नजदीकी थाना ले जाकर एफआईआर दर्ज करवाई, जहां पीड़िता की गंभीरता को देखते हुए पर मामला  जिला चिकित्सालय शहडोल रेफर कर दिया गया। 

विश्वसनीय जानकारी के अनुसार महिला के साथ दुष्कर्म करने वालों में विजय त्रिपाठी, राजेश शुक्ला, मोनू शर्मा, मुन्ना सिंह के नाम शामिल हैं साथ ही अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पूरे मामले में अपराध पंजीबद्ध किया जा रहा है। खबरों के अनुसार जैतपुर मंडल अध्यक्ष व उनके साथी इस प्रकरण में आरोपी बनाए गए हैं जिला भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा यह राजनीतिक आरोप भी हो सकते हैं प्रकरण की जांच की जा रही हैऔर भारतीय जनता पार्टी तत्काल इस पर बैठक करेगी सही पाए जाने पर कार्यवाही की जाएगी ज्ञातव्य है की जैतपुर विधानसभा क्षेत्र में ही एक पुलिस सिपाही इसी तरह महिला को साथ दुष्कर्म किए जाने के कारण बर्खास्त किया गया था, जबकि बाणसागर में भाजपा के एक बड़े नेता एक महिला के अपराध में चर्चित हुए थे भारतीय जनता पार्टी की छवि में दागदार नेताओं में कुछ जेल में माफिया गिरी में बंद हैं ।इस तरह जिला भाजपा के कमल के पत्ते बदबूदार कीचड़ से झुलस रहे हैं देखना होगा पार्टी और संगठन तब जबकि प्रदेश संगठन मंत्री के अपने निर्वाचन क्षेत्र में इस तरह की आपराधिक घटनाएं  घट रही हैं मनीषा सिंह क्षेत्र के दबी कुचली वर्ग को कितना न्याय दिला पाते हैं मामला तब चर्चा में आया जब संगठन अपने प्रदेश युवा मोर्चा के नेता के जिले दौरे पर जश्न मना रहा था।




बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

लोक-तंत्र का बंदर-तंत्र (त्रिलोकीनाथ)


लोक-तंत्र  का  बंदर-तंत्र और  महान चरित्र नायक विशिष्ट-नस्ल का कुत्ता ....... 

------------------ त्रिलोकीनाथ---------------------------
"पंचतंत्र"आचार्य विष्णु शर्मा की लिखी महान पुस्तक में आदि काल से मानव जाति का साथी रहा उसका रक्षक कुत्ता का जिक्र बहुत

कम आया है, पशु-पक्षी के चरित्र में खरगोश, बंदर,मगर; मिट्ठू,कौवा और सूअर आदि जंगली जानवरों पर लेखक ने ज्यादा फोकस किया।

 विष्णु शर्मा अगर आज जिंदा होते तोआज कुत्तों पर फोकस करते । आधुनिक मानवीय सभ्यता में कुत्ता सबसे विश्वस्त जानवर रहाहै। हमने बड़े-बड़े नेताओं को कुत्तों के साथ खेलते हुए देखा है, अटल बिहारी वाजपेई उनमें से एक हैं... हाल में स्वदेशी कुत्तों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोकस किया था... तो कुत्ता किस नस्ल का होना चाहिए इस पर भी खूब चर्चा हुई ।

शहडोल संभाग भू माफियाओं का नया स्वर्ग है रेत की तस्करी मैं कथित 5 साल के अनुबंध पर जिला स्तर पर ठेकेदारी का नकाब पहनकर कई मुरारी रेप तस्करी का बंसी बजा रहे हैं..., जिन्हें चिल्ल-पों करना हो, करते रहे... नए इंडिया में इसकी कोई जगह नहीं..।

 किंतु शानदार अपनी चौथी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कुछ अलग हटके कहा था कुछ ऐसा  "माफिया को जिंदा गाड़ देंगे..." लेकिन अगर माफिया कुत्ते पालना सीख जाएं, अपनी चौकीदारी के लिए तो फिर उन्हें जिंदा कैसे गाड़ा जाएगा..., यह बड़ा प्रश्न है।

 अगर कुत्ता कांग्रेस-नस्ल, भाजपा नस्ल, समाजवादी नस्ल का या किसी राजनैतिक नस्ल का है तो समझा जा सकता है कि कुत्ता किस विचारधारा से ओतप्रोत है। और कैसी चौकीदारी करने में दक्ष है। और इसी को ध्यान में रखकर शिवराज सिंह जी ने उन्हें यानी माफिया को जिंदा गाड़ने की बात सोची रही होगी.... लेकिन अगर कुत्ता Rss विचारधारा का है और वह किसी माफिया की चौकीदारी कर रहा है तो उसे कैसे जिंदा गाड़ा जाएगा यह बड़ा प्रश्न है...?

 और अगर वह उस माफिया की चौकीदारी करता हो जो शहडोल मोहनराम मंदिर ट्रस्ट मे अवैध निर्माण करता रहा तो उसे कैसे जिंदा गाड़ा जाएगा.? यह इसलिए भी बड़ा प्रश्न है क्योंकि एक तो राम, ऊपर से नस्ली विचारधारा... दो-दो योग्यताधारी कुत्ता जब किसी की रक्षा करता है तो उसे जिंदा नहीं गाड़ा जा सकता और वे सुरक्षित रहते हैं।

 यह बात प्रदेश ही नहीं देश के माफियाओं को भी गांठ-बांध आईकॉन कर रखना चाहिए क्योंकि ऐसा विशिष्ट योग्यता धारी कुत्ता जिन लोगों ने भी शहडोल में पाला है उन्हें हमारे



स्वी मुख्यमंत्री भी जिंदा नहीं गाड़ पाए हैं। और वे लगातार भ्रष्टाचार की माफिया गिरी की चंद्रलोक में चमक रहे हैं।

 आचार्य विष्णु शर्मा होते तो सिर्फ जंगल पर नहीं "जंगल और मानव समाज" मे आज मिलकर कोई नया "वर्णसंकर- पंचतंत्र" लिख रहे होते हैं... जो कुछ इसी प्रकार का होता है... इसमें शहडोल मे अपनी निजी धन और संपत्ति के दानदाता पूजनीय स्वर्गीय मोहनराम पांडे द्वारा निर्मित मंदिर के "गरीब राम" को लूटने के लिए विशिष्टनस्ल का कुत्ता माफिया की चौकीदारी कर रहा होता। क्योंकि अयोध्या के अमीर राम के लिए भजन-मंडली करने वाले और चंदा इकट्ठा कर करोड़ों रुपए "अमीर-राम" की पत्थर की मूर्ति और मंदिर के लिए जो दिन रात चंदा एकत्र कर फोटो सहित फेसबुक में छाए रहते हैं उन्हें शहडोल के "गरीब-राम" से कोई लेना देना नहीं  है।


 शहडोल के "गरीब-राम" की गरिमा को वहां पर अवैध निर्माण करवा कर राम मंदिर  लूटने वाले और लूट का हिस्सा "अमीर-राम" को पहुंचाने वाले शहडोल के हिंदुत्व और राम से कोई नाता नहीं रखते,


शायद यही कारण है कलेक्टर शहडोल के निर्देश के बाद भी अवैध अतिक्रमण रुका तो जरूर, बाद में विशिष्ट-नस्ल के कुत्तों के संरक्षण में डंके की चोट पर अवैध निर्माण और अवैध कार्य पुनः चालू हो गया.... इसलिए भी विशिष्ट-नस्ल के कुत्तों को पालना कॉर्पोरेट जगत के लिए वरदान साबित हो रहा है..।

 जैसे शहडोल संभाग में रेत तस्करी पर रेत


माफिया के लिए, उनके विशिष्ट-नस्ल के पालतू कुत्ते ट्रांसपेरेंट-लोकतांत्रिक-माफिया-गिरी के लिए वरदान बने  हैं फिर विंध्य पर्वत श्रंखला को हिमालय का पहाड़ तो है नहीं जहां शिव का कहर पर्यावरण विनाश का दंड देता हो। हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के लिए यह भी एक बड़ी चुनौती है। कि वह ऐसे भू-माफिया, रेत-माफिया को जिंदा कैसे गाड़े..?

 फिलहाल तो सड़क माफिया और कारपोरेट माफिया के गिफ्ट से मिली नहर की लाशों का हिसाब उन्हें तंग कर रहा होगा...


क्योंकि कॉर्पोरेट माफिया को भी जिंदा रखना है और वोट बैंक को भी... क्योंकि अगर लालकिले में तिरंगा का अपमान  किए जाने का रास्ता किसी हरदीप सिंह सिद्धू के लिए सड़क मार्ग खोल दिया जाता है तो नहर में नागरिकों सुनियोजित हत्या का मार्ग रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग "छुहिया घाटी" के तरफ जाम लगाकर बंद भी किया जा सकता है...? ताकि दुर्घटनाएं आसानी से हो सके और समूह में लोग नहर में डूब कर मर सके, क्योंकि "चुल्लू भर पानी में डूब कर मरने" की कहावत पुरानी हो चुकी है...।

 इसलिए टुकड़े-टुकड़े खबरों में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग में मरने वालों की भी कोई गिनती नहीं होती, क्योंकि "माफिया को जिंदा गाड़ने" का नया कहावत नए जुमले को भी बनाए रखना है...। आखिर विशिष्ट-नस्ल के कुत्तों को पालने वाले नई कहानियों के सूत्रधार जो हैं....  ।

अगर आचार्य विष्णु शर्मा आज होते तो कुछ इसी प्रकार की बेसिर पैर की "वर्णसंकर पंचतंत्र" का निर्माण करते हैं... ऐसा हम सोचते हैं.. जिसे कुछ टीवी चैनल "आधा हकीकत-आधा फसाना" बताते हैं..., ना सच, ना झूठ..... सच मानो तो सच  झूठ मानो तो झूठ....।



गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

आइए आत्मनिर्भर "चूकुर समाज" की तैयारी करें (त्रिलोकीनाथ)

जय "आत्मनिर्भर भारत".....

आइए आत्मनिर्भर


 "चूकुर समाज" 

की तैयारी करें

(त्रिलोकीनाथ)

अगर, यह कल्पना सही है तो कि "जनसंपर्क विभाग  निजी हाथों में सौंपा जा रहा है..." अगर यह संभावना मर गई है तो  कि पत्रकारिता आयोग बना कर  उसे जिंदा नहीं रखा जा सकता.... तो अगर माखनलाल चतुर्वेदी जिंदा होते तो उनका पद नाम लिखा जाता... 

चूकुर माखनलाल चतुर्वेदी और अगर दिशा यही है तो जल्द ही भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय नाम बदल कर "माखनलाल चतुर्वेदी चूकुर विश्वविद्यालय" हो जाता ......

अभी तक आईएएस अधिकारी जो भी थे जैसे भी थे उनकी निष्ठा चाहे जिसके लिए समर्पित रही हो किंतु पत्रकारिता की मूक भाषा को वह समझने का प्रयास करते थे क्योंकि उन्हें देश की स्वतंत्रता के प्रति की कसम शायद याद रहती थी शायद उन्हें अपने योग्यतम बुद्धि और विवेक पर कम से कम इतनी गरीबी स्तर पर  तरस तो आता ही था  कि देश उनके स्वाभिमान का  अंग है ...? जब निजी करण  जनसंपर्क विभाग का हो जाएगा  तो  सत्ता के  अज्ञात सुपर मालिक उनके नौकर हमारे नेता और नेता के नौकर कार्यपालिका और उसके चाकर निजी करण के ठेकेदार फिर  इन चाकर के चुकुर ठेकेदार के पालतू लोग अब पत्रकारिता को नियंत्रित करेंगे याने एक चुकुर समाज का नया इंडियाा के निर्माण करेंगे ऐसा हम सोच सकते हैं हो सकता है यह हमारी घटिया ही हो किंतु ऐसा भी हमेंं सोचना चाहिए क्योंकि आत्मनिर्भर भारत कल की ही अखबार में छपा दिखता है 

अभी कल की ही बात है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में अपना विचार प्रकट कर रहे थे कि भारत में लोग वह काम जो हुआ ही नहीं उस पर आंदोलन करते हैं... तो अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी काल्पनिक आंदोलन पत्रकारिता का जो अभी भ्रूण अवस्था में भी पैदा होने में सक्षम नहीं है... होता, तो भी जोर जोर से चिल्ला कर संसद में कहते "पत्रकारिता रही है .....है ....और रहेगी....

 जैसे किसान आंदोलन में 200 किसानों की शहीदी मौत के बात उन्हें वफादार कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी की तरह इस बात का दुख तो रहा कि पंजाब में 100 टेलीकॉम टावर गिरा दिए गए किंतु जीवित किसान दिल्ली में आकर दम तोड़ दिए उस पर कोई चर्चा नहीं की....? बल्कि इस जुमले को बरकरार रखा गया एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य )किसानी उपज का था... है ...और रहेगा....

 ठीक इसी तरह वे पत्रकारिता में भी संसद में अपना वक्तव्य बोलते दिखाई देते।

 लेकिन यह सब काल्पनिक चीजें हैं तो जो हरिजन के संपादक रहे मोहनदास करमचंद गांधी तो उनके समाधि स्थल पर भी "चूकुर समाधि" लिखने में आधुनिक राष्ट्रवादी सोच को गौरव होता....


क्योंकि अगर लाल किले के प्राचीर से धोखे से ही  सही यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनाकर रखा गया है..., बावजूद इसके कि इसे निजीकरण करके निजी हाथों में सौंप दिया गया और उस उद्योगपति की इतनी औकात नहीं थी कि वह किसी "षड्यंत्र के सिद्धू "को इस प्राचीर से तिरंगे की जगह कोई अन्य झंडा फहराने के पहले गोली मार देता....।

 यकीनन यदि यही काम सिद्धू आरएसएस मुख्यालय में अगर ,कभी तिरंगा फहराया होता


जब पूरी तरह से प्रतिबंधित था वहां ,तब उसे अवश्य उसी तरह गोली मार दिया गया होता जिस तरह दिल्ली में महात्मा गांधी को गोली मार दिया गया था....., सबके सामने।

 तो यह एक व्यवस्था है इसलिए इन सब काल्पनिक, जो कभी हुए ही नहीं और कभी नहीं होंगे गारंटी नहीं लिया जा सकता, सोच पर हमें "आत्मनिर्भर "हो जाना चाहिए। "आत्मनिर्भर भारत "का यह मॉडल आइकॉन भी होना चाहिए क्योंकि देश की आजादी के पहले से काल्पनिक"चतुर्थ स्तंभ" पत्रकारिता यदि देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी भूमिका अदा किया था। तो उसे देश की आजादी के बाद  लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के किसी ख्याली काल्पनिक स्तंभ का दर्जा क्यों हासिल रहना चाहिए  ...?

उसे पूर्णकालिक चतुर्थ स्तंभ बनने की बजाय उसे पद नाम बदलकर चूकुर कह कर जब पुकारा जाएगा तो वह पत्रकार, 4 अक्षरों की बजाए आत्मनिर्भर "चूकुर" 3 अक्षरों का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक जैसा लगेगा।

 और 1924 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मशती पर यह सब मिशन पूरे हो जाएंगे।

 धन्य है इस देश की वह सत्ता भी जिसने इतने सालों तक इस पर राज किया और धन्य ,वह सत्ता भी है जो पूरी निष्ठा, लगन, कर्तव्यसीलता के साथ वफादारी के साथ किसी अज्ञात शक्ति के द्वार पर फेंके गए रोटी के टुकडे नमक को अदा कर रही है ।

भलाई, यह मेरी सब काल्पनिक नकारात्मक या हताशा जनक सोच है किंतु जिस प्रकार से पत्रकारिता को किसी अक्षय कुमार में या फिर किसी अर्णब गोस्वामी में देखने की जो विचार रखते हैं ...उन्होंने पिछले 6 साल में सिर्फ यही नपुंसक समाज पैदा करने का काम किया है। और अब इसे कानूनी जामा पहनाने की दिशा में काम हो रहा है ।बजाय, इसके जो पत्रकार समाज पिछले 72 साल से शोषण का शिकार है उसमें उपार्जित आय, उसे उसी प्रकार से सुनिश्चित करने की दिशा में काम नहीं होता दिख रहा है, जैसे कि किसी कर्मचारी के भविष्य की सुरक्षा के लिए आय सुरक्षित की जाती है ।इससे ज्यादा और भी भयानक दुखद हालात यह है की एक बड़ी भीड़ ऐसी पैदा हो गई है विदेश की धरती में नरेंद्र मोदी के बोले गए पांचवी स्तंभ की, जो आपसी समन्वय करके पत्रकारिता  चतुर्थ स्तंभ पर ऐसे भयानक आक्रमण का करारा जवाब दे सके.... तो  जो जिम्मेदार अखबार मालिक या मीडिया मालिक तबका है, क्या वह इतना ही नपुंसक होता चला जा रहा है जितना कि अर्णब गोस्वामी भारतीय रक्षा के 40 सैनिकों के पुलवामा शहीद कांड पर किसी नौकरशाह के साथ जश्न मनाने की भाषा में अपनी सोच रखता है ....., तो यह बात हम इसलिए बोल पा रहे हैं क्योंकि पत्रकारिता का जमीर हमें जिंदा रहने की साहस देता है... क्या यह साहस नई पीढ़ी में जिंदा भी रह पाएगी....?

 इसके लिए संयुक्त सोच किसी जमीनी धरातल से क्यों पैदा नहीं होनी चाहिए ....? क्योंकि ऊपर कर्तव्यजीवी-वर्ग , पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत के लिए समर्पित है। 


तो   देखते चलिए.... हो सके तो सोचते भी चलिए... आपस में चर्चा भी करिए.... और यह भी तय करने का प्रयास करिए कि अगर हम "चूकुर " सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के गौरवशाली समाज से जब जन्म लेंगे, तो अगर नीता अंबानी की गोद में किसी हेलीकॉप्टर में, जो बैठी होंगी ....वहां से नीचे देखेंगे ,तो हमें नीचे का भारत कैसा दिखेगा .....?

बेहतर तो होता कि पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए पत्रकार आयोग का गठन होता और भारत का पहला पत्रकार आयोग मध्यप्रदेश में बनता है तो वह माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय चांद की तरह चमकता किंतु अब "चूकुर-समाज "कलंक की तरह चमकने को तैयार है... यही है नया इंडिया का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद....? अगर अखबार में छपी खबरें सही हैं...?

पुनश्च भावी भारत के आत्मनिर्भर होते चूकुर समाज याने पत्रकार समाज अभिनंदन के लिए तैयार हो जाइए... जय आत्मनिर्भर भारत......?

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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

The cut-pest------ ऊंट पहाड़ के नीचे....

  --------The cut-pest------

ऊंट पहाड़ के नीचे......

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन पर बीते साल से ही चुप्पी साधे रखी।


लेकिन कल राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने अपील की है कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को खत्म किया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राज्यसभा में दिए गए भाषण पर किसान नेता शिवकुमार शर्मा ने प्रतिक्रिया जाहिर की है।

उन्होंने कहा है कि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान करते हैं। मेरी उनसे यह प्रार्थना है कि बीते साल से शुरू हुए किसान आंदोलन में अब तक 200 किसान शहादत दे चुके हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों की शहादत पर आंसू बहाना तो दूर श्रद्धांजलि तक नहीं दी है। किसानों की मौत पर किसी ने भी दुख व्यक्त नहीं किया है।

एक राज्यसभा सांसद द्वारा उसका कार्यकाल पूरा करना कोई कठोर काम नहीं है। राज्यसभा से सांसद आते जाते रहते हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसे मामले में कोई प्रधानमंत्री भावुक नहीं होता है। अगर राज्यसभा के एक सदस्य के विदाई समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए।

दूसरी तरफ जो किसान आंदोलन पर बैठे हुए हैं। उनका पानी बिजली तक काट दिया गया। उनके लिए सीमाओं पर लोहे के सरिए लगा दी गई।

किसानों के लिए अपमानजनक शब्द कहे गए। 75 दिनों से चल रहे इस किसान आंदोलन में कई युवा और बुजुर्ग किसान शहीद हो चुके हैं।

इस पर प्रधानमंत्री ने एक भी भावनात्मक शब्द नहीं कहा है। अगर वह ऐसा करते तो किसानों को भी लगता कि पीएम मोदी हमारे हैं उन्हें हमारी चिंता है।

किसान नेता शिवकुमार शर्मा का कहना है कि किसान शुरुआत से ही बातचीत के लिए तैयार थे और आज भी हम वार्तालाप के लिए बिल्कुल तैयार हैं।

पीएम मोदी कह रहे हैं कि वह किसानों से सिर्फ एक फोन कॉल दूर है। लेकिन हम उन से कैसे बात करें जब हमें उनका फोन नंबर नहीं पता है।

संसद में आप कितना भी बोलने की बातचीत के लिए सरकार तैयार है। वहां से बोलने का कोई अर्थ नहीं है। जब तक किसान संगठनों को बुलाया नहीं जाता।



बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

विस्तारित हिंदू राष्ट्र की सीमा भी क्या जुमला था (त्रिलोकीनाथ)


विस्तारित हिंदू राष्ट्र की सीमा भी क्या जुमला था 





क्यों दिल्ली के इर्द-गिर्द

चर्चित हो रहे हैं बॉर्डर

×××××××त्रिलोकीनाथ×××××××××××××××

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे,

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे,


पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता,

इमे सादरं त्वां नमामो वयम् |

त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं,

शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये |

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं,

सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् |

श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं,

स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।

समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं

परं साधनं नाम वीरव्रतम्

तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा

हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।


इस का हिंदी भावार्थ  कुछ इस प्रकार  है  जो इसके साथ ही  प्रकट किया गया है 

हे परम वत्सला मातृभूमि! मै तुझे निरंतर प्रणाम करता हु, तूने सब सुख दे कर मुझको बड़ा किया|   हे महा मंगला पुण्यभूमि! तेरे ही कारण मेरी यह काया, तुझको अर्पित, तुझे मै अनन्त बार प्रणाम करता हुं। हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत घटक,तुझे आदर पूर्वक प्रणाम करते है।

तेरे ही कार्य के लिए हमने कमर कसी है।उसकी पूर्ति के लिए हमें शुभ आशीर्वाद दे। सारा विश्व का सामना कर सके, अजेय ऐसी शक्ति दे सारा जगत विनम्र हो, ऐसा विशुद्ध (उत्तम) शील|तथा बुद्धि पूर्वक स्वीकृत, हमारे कंटकमय मार्ग को सुगम करे,ऐसा ज्ञान भी हमें दे।अभ्युदय सहित निःश्रेयस की प्राप्ति का,वीर व्रत नामक जो सर्वश्रेष्ठ, साधन है,उसका हम लोगों के अंत:करण में स्फुरहण हो,हमारे हृदय मे, अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जागृत रहे।तेरे आशीर्वाद से हमारी विजय शालीन संघटित कार्य शक्ति,धर्म का रक्षण कर ।

अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति,पर ले जाने में अतीव समर्थ हो ।

और अंत में भारत माता की जय हमेशा जुड़ जाता है

दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस प्रार्थना में और उस कल्पना में जिस का नक्शा कुछ इस प्रकार से है


उसके बॉर्डर्स यानी सीमाओं को जब पहचानने का प्रयास करता हूं तो वर्तमान भारत मुझे छोटा दिखता है...।

 तो लगता है की हमारी बॉर्डर अगर कथित हिंदू राष्ट्र जब विस्तारित होगा, तो वर्तमान से बड़ा होगा अभी हम जब बॉर्डर का नाम सुनते हैं तो पाकिस्तान बॉर्डर, बांग्लादेश बॉर्डर, चाइना बॉर्डर, नेपाल का बॉर्डर कभी माना ही नहीं, अफ़गानिस्तान बॉर्डर आदि मानते चले आ रहे हैं। स्वाभाविक रूप से जब नक्शा देखते हैं तो लगता है बॉर्डर का नाम कुछ दूसरा होगा। किंतु सिर्फ 6 साल में सत्ता की मदहोशी का आलम यह होगा कि कथित हिंदू राष्ट्र के संरक्षण में कल्पना-कार राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के शासन में हम दुनिया में इस बात के लिए चर्चित होंगे कि हमारे बॉर्डर्स सिंधु-बॉर्डर, गाजीपुर-बॉर्डर, टिकरी-बॉर्डर आदि-आदि नाम से जाने जाएंगे और इतना ही नहीं हमारी संपूर्ण हिंदुत्व की छमता और योग्यता जिसे हम "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि" कहते हैं वह दिल्ली के लुटियन जोंस के इर्दगिर्द सिमट कर रह जाएगी....?

  आखिर 56 इंच का सीना रखने वाले हमारे नरेंद्र मोदी की सरकार यह किस प्रकार का जुमला आर एस एस के हिस्से मेंं डाल रही है की 1924 को जन्मी आर एस एस 96 साल बाद दिल्लीके इर्द-गिर्द बॉर्डर के लिए ही नहीं राष्ट्रों की सीमावर्ती बॉर्डर की भांति आम रास्तों को जाम कर रही है ।क्या 96 साल में आर एस एस ने इन्हेंं  इतना भी ज्ञान नहींं दिया की किसी हरदीप सिंंह सिद्धू को  लाल किले के इर्द-गिर्द न फटकने दें; अगर सिख धर्म के "निशान-साहिब" का चिन्ह उस भगवा झंडेेे में नही होता, तो मुझे वह आर एस एस का झंडा नजर आता.... यह भ्रम अभी बरकरार है...।

 


बहराल जो हुआ सो हुआ, बंदरों के हाथ में उस्तरा रहेगा या दिया जाएगा तो या तो ऐसी फैक्ट्री से अर्णब गोस्वामी जैसा पत्रकार निकलेगा या फिर हरदीप सिंह सिद्धू जैसा कलाकार। आप इस मोहल्ले स्तर की बचकानी प्रदर्शन की छूट देनेेे के बाद भारत सरकार की राजधानी इर्द गिर्द नॉन डेमोक्रेटिक हिंदी में गैर लोकतांत्रिक सीमावर्ती स्तर के बॉर्डर्सस बना दें ,यह बेहद आपातकाल लागू होने की धमकी भी है...? तो जो हम लिख रहे हैं तो यह भी हमारे लिए जेल जाने का प्रबंध है...  लेकिन अगर किसान जिसने पौने दो सौ लोग शहीद हो गए हैं और लाखोंं करोड़ों मैं बेचैनी छाई हुई है तो हमें भी बेचैन होना चाहिए.... हमें भी दंडित होना चाहिए... कुत्ते और बिल्लियों की तरह,  और जोड़े तो  सूअर की तरह पेट भरने और जीने सेेे ज्यादा बेहतर है कि सड़कोंं में लोहकील लगाकर ,कांटो की तारे लगाकर, आप आर्थिक साम्राज्यवादी सत्ताके पूंजी पतियों की चौकीदारी नहीं कर सकते.... क्योंकि आप लोकतंत्र में चौकीदार हैं। 

उम्मीद करना चाहिए कि आर एस एस की वंदना का कोई एक भाव आपको जमीर जिंदा होने का सबब बन सके, हम तो इसलिए चर्चा करते क्या हम भी जिंदा है...., बस और कोई बात नहीं... क्योंकि हम जानते हैंं हमारी बात हमारे राजा-महाराजा तक पहुंचाने की शक्ति किसी में नहीं है.. इसलिए हम आपस में जिंदा होने की चर्चा करते हैं.....।

 या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए् नमस्तस्ए नमो नमः 


 

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

मंदिर वहीं बनाएंगे, जय श्रीराम.

 बजट में नहीं आया प्रधानमंत्री के फोन कॉल का रिचार्ज वाउचर पेमेंट

मंदिर वहीं बनाएंगे,

जय श्रीराम...


जय श्रीराम...

(त्रिलोकीनाथ)

इस प्रकार के नारे लगाते हुए आज शहडोल में प्रभात फेरी देखी, क्योंकि मेरे रास्ते से  वे आगे निकल गए थे..  कोई 30-40 लोगों का हुजूम भगवा झंडा लिए और पीछे कुछ पुलिस केे कर्मचारी,क्योंकि उनके पास वायरलेस सेट दिखा, जो संभवत  उनकी मॉनिटरिंग के लिए लगाए गए रहे होंगे। यह तय कर पाना मेरे लिए शहज नहीं था कि शहडोल के बहुतायत लोग थे अथवा बाहर से आए हुए या फिर विश्व हिंदू परिषद तोगड़िया गुट के लोग थे या फिर अन्य हिंदूू पंथी जन थे।क्योंकि यह एक जागरूकता का कार्यक्रम भी रहा होगा। 

भारत में आजादी के पहले जब देश गुलाम था तब इसी प्रकार प्रभात  फेरी जन-जागरण का हिस्सा होती थी, ऐसा हमनेे पढ़ा ।या फिर जो सिर्फ देखते आ रहे थे वह कि हमारे यहां गुरुद्वारा से प्रभात रैलियां, संगीत भजन के साथ अक्सर निकलती रही है... बेहद सुखद और प्रेरणादाई अनुभव  मानस पटल पर छोड़ती हुई... ।

बहरहाल अब मंदिर बन रहा अयोध्या का और कितनेेेेेे हजार या लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी यह अपन नहीं बता सकते।

   अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि स्थित एक और मंदिर ट्रस्ट के मंदिर निर्माण की जिम्मेवारी  ट्रस्टी चंपत राय के पास भी है। हम तो शहडोल मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की बर्बादी के गवाह है क्योंकि यहां का हिंदू सनातन धर्म केे हिंदू इतने जागरूक नहीं है, जितने हिंदुत्वव के हिंदू ...यह अलग बात है इसमें बहुत से  हिंदू,  अयोध्या के  लिए चंदा मांग रहे हैं  जो  इस बर्बाद होती राम मंदिर के  साक्षी भी हैं  और  बर्बादी के  कारण भी ।

और सच बात यह भी है हमें जब चंदे की जरूरत पड़े तो हमने कभी प्रभात रैली के लिए जन जागरण अभियान भी नहीं चलाया  था। भविष्य में इस अनुभव का लाभ शायद मोहन राम मंदिर ट्रस्ट शहडोल को पापियों और अधर्मीयों से मुक्ति का कारण बन सके। यह फिलहाल शुभकामना है ....।

 30 जनवरी को प्रधानमंत्री जी बाबा नरेंद्र मोदी का एक बयान जनसत्ता में प्रमुख खबर के रूप में आया उससे लगा इतना चंदा तो मेरेेे पास था अगर कोई नंबर होता या किसी बैंक

खाते में मै भेज पाता तो ₹10 का एक चंदा भेजता ताकि मोदी सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी जी एक फोन रिचार्ज वाउचर डलवा लेते ताकि एक फोन कर सकते, किसानोंं को और उस फोन कॉल के जरिए किसानों सेेेे बात हो पाती। जिस कारण  करीब पौने दो सौ किसान  इस किसान आंदोलन में शहीद नहीं हो पाते।  ना ही  करोड़ों किसान  इस किसान आंदोलन से स्वयं को कुचले जाने  की प्रताड़ना से  बचा पाते। अपना मान-सम्मान अपने फटे-आंचल में छुपा पाते।  और इन सबसे बड़ी चीज भारत की आजादी में प्रमुख चेहरा बनने वाला दिल्ली का लाल किला स्थित तिरंगे की प्राचीर पर कोई सिरफिरा गंदी राजनीति की नाजायज पैदाइश, कोई सिद्धू ,तिरंगे झंडे का अपमान का साहस कर पाता...? किंतु मेरे पास प्रधानमंत्री जी को देने के लिए  क्या  इतना भी चंदा नहीं था ...? कि वह एक फोन कॉल पर पाते...।

 

बहुत अच्छी बात है कहते हैंं भारत में देर.... है अंधेर नहीं... और भगवान सबकी सुनता है। बाबा जी कि नींद भी टूटी है और उन्हें इस बात का दुख भी कि किसान आंदोलन सिर्फ एक फोन कॉल की जरूरत पर टिका है। जहां इंटरनेट सेवाएं खत्म की जा रही हो.. जहां शारीरिक, मानसिक,  व्यावहारिक , प्रताड़ना की  गंगा बह रही हो  वहां  आखिर कृषि संचार मंत्रालय  मृत क्यों पड़ा है..  कि प्रधानमंत्री जी को  इस बात की गरीबी है कि एक फोन कॉल  सब कुछ बदल सकता है....?

 

तो यह चिंतन और मंथन मेरे जैसे आदिवासी क्षेत्र् में मुझ जैसे आदिवासी पत्रकार को परेशान करता है की प्रभात फेरी के आखिर जन जागरण किसान आंदोलन के यह किसानों के हितों के लिए  क्यों नहीं हो रहे हैं....? आखिर इन प्रभात फेरीओं के जरिए पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में इतना चंदा इकट्ठा क्यों नहींं किया गया ताकि प्रधानमंत्री बाबा नरेंद्र मोदी सिर्फ एक फोन कॉल  कर सकें  और उनकी चिंता यह मिट सके कि किसानों का हित पूरा हो जाए...?

 

क्या भारत में एक भी ऐसा जागरूक मर्द समाज नहीं है जो इस गरीब देश की एक फोन कॉल का पेमेंट कर सकें...?

 

यह बात हालांकि जब से कृषि बिल पैदा हुआ है तब से  चुभती चली आ रही है किंतु हमारे जैसे लावारिस सोच वाले नागरिक को विशेष तौर से जब से बड़े बडे बुजुर्ग महिला बच्चे किसान परिवार दिल्ली की सड़कों में पिछले 2 माह से  कड़क ठंडी में  ठिठुर रहा है  तब से परेशान किए हुए।

 

और आज जब मंदिर वहींं बनाएंगे, जय श्रीराम जय श्रीराम... पुलिस के संरक्षण में मेरी गली से गुजरा जो शायद मेरे मोहनराम मंदिर की गरीबी को दूर करने का जन जागरण रैली नहींं थी बल्कि जन्म योगी राम की धरातल पर बनने वाले बालक राम के लिए  यानी रामलला के लिए था, तो बुरा तो लगता ही था कि आखिर यह रैलियां प्रधानमंत्री को फोन कॉल के चंदे के  लिए  क्यों नहीं की जाती... ताकि हमारे प्रधानमंत्री किसानोंं अन्नदाता से बात कर सके...?

 

परम परमात्मा भगवान राम से यह विनती भी है कि भारत भाग्य विधाता किसानों के लिए जन जागरण अभियान चले... प्रभात फेरी मैं उनको भी कोई चंदा देने वाला हो.... ताकि मदहोश सत्ताधीश-चमचा-समाज उन पर राष्ट्रद्रोही होने का फंडिंग एकत्र का आरोप न लगा सके... और ऐसेे नारे भी हर गलियों में गूंजे....

 भारत यहीं बनाएंगे....

  जय श्रीराम जय श्रीराम 


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