सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

नया इंडिया का नया स्टार्टअप धंधा तो है..... (त्रिलोकीनाथ)

नया इंडिया का नया स्टार्टअप

धंधा तो है.....


(त्रिलोकीनाथ)

एनडीटीवी के एंकर और वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने सोशल मीडिया में खुला खत लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है।  रवीश कुमार ने अपने इस ओपन लेटर में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया है। रवीश कुमार ने देश के युवाओं की भी चुटकी ली है। रवीश ने लिखा है कि प्रधानमंत्री जी


आप इन बेरोजगारों को नौकरी मत दीजिए, इन्हें मंदिर निर्माण के चंदा वसूली की रसीद ही दे दीजिए।

बेरोजगारी के आलम में रवीश की सोच भी सही है की। भलाई दिशा भटकाने के लिए राम मंदिर का चंदा और भजन मंडली में युवाओं का उपयोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भारत मैं बेरोजगारी खत्म करने के लिए कम से कम पकोड़ा तलने के रोजगार से कुछ बेहतर है। तो रोजगार और बेकारी का आलम यह भी है की शहडोल के कुछ अधिवक्ता प्रधानमंत्री के बनाए गए एससी-एसटी वर्ग के हितों के लिए


जो कानून बने हैं उसमें कई लोगों को रोजगार स्टार्टअप कार्यक्रम दिखाई देता है।

 हाल में शहडोल में कोतवाली के इर्द-गिर्द  दलित आदिवासियों द्वारा सामान्य वर्ग के खिलाफ उसकी धन संपदा लूटने के लिए सामान्य वर्ग के पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के ऊपर कई शिकायतें करवाई गई। बार-बार एक ही प्रकार की शिकायतों का जमावड़ा कम से कम यह तो प्रदर्शित करता है की प्रताड़ना जिंदा है और भरपूर है । यह अलग बात है कि गिरोह बनाकर प्रताड़ित करने वाला पक्ष, दूसरे पक्ष को प्रताड़ित कर रहा है या फिर अकेले अपने को सुरक्षित करने में लगा पक्ष, गिरोह को प्रताड़ित कर रहा है ।

अगर एससी-एसटी वर्ग इस बात की बार-बार धमकी देकर कि सामान्य वर्ग के खिलाफ उसके मान सम्मान की हत्या करके उसे जेल पहुंचा करके वह प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बनाए गए कानून में रोजगार के अवसर इसलिए ढूंढ रहा है क्योंकि उसे शासन से इस प्रताड़ना के बदले कोई बड़ी रकम मिलेगी तो इसमें जुड़ा या इन्हें प्रोत्साहित करने वाला सामान्य वर्ग का अधिवक्ता भी अपने बीवी-बेटों और बेटियों, मां बाप को जिंदा रखने के लिए इस कानून मैं अपने हिस्से को तलाशता है।

 फिर यदि इसमें चरित्रहीन समाज जैसा कि भारतीय जनता पार्टी का स्लोगन है चाल चरित्र और चेहरा बनाए रखा जा सकता है, बावजूद इसके कि चरित्रहीन समाज में रोजगार के अवसर हैं और भोग विलास के भी अवसर हैं, तो क्यों ना ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए और यह सब कहीं ना कहीं कोतवाली के इर्द-गिर्द समाज का विकास हो रहा है ।

हालांकि 1 वर्ग यह मानता है कि हमें इस प्रकार की घटनाएं घट रही घटनाओं में


इसलिए दूरी बना कर रखना चाहिए ताकि उसके छीटें हमारे
सभ्य समाज परना पड़ेगी किंतु अगर प्रधानमंत्री स्टार्टअप कार्यक्रम में चाल चरित्र और चेहरा मैं चरित्रहीन समाज और एससी एसटी वर्ग के कानून का दुरुपयोग रोजगार के अवसर देता है तो उसे क्यों नहीं स्वीकार कर लेना चाहिए...? ऐसा एक अधिवक्ता से मिलने के बाद मुझे संभावना नजर आई। अधिवक्ता की यह सोच उनके संस्कार और परिवार की संयुक्त समूह की सोच का उत्पादन हो सकता है । जिसमें इस प्रकार के गैर कानूनी समाज निर्माण में भी कानून से रक्षा की जिम्मेदारी रखकर बिना प्रमाण के ऐसे समाज में तब तक पैसा चूसने की और अपने बच्चों को पालने की अवशर क्यों नहीं ढूंढना चाहिए जब तक न्यायालय यह प्रमाणित न कर दे या प्रमाणित ना हो जाए कि एससी एसटी वर्ग के हित का दुरुपयोग, चरित्रहीन व्यक्तियों के साथ खुलेआम हो रहा है।

 महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था कि अधिवक्ता का पेशा मैं अधिवक्ता जान जाता है पहली नजर में कि दोषी कौन है इसलिए न्याय के पक्ष में उसे वकालत करने चाहिए। अधिवक्ताओं का जो नया दौर आया है न्यायपालिका की यह कमजोरी है कि महात्मा गांधी के इस मूल सिद्धांत को दफन करते हुए इस बात को जोर-जोर से चिल्लाकर बोलकर न्यायिक रूप दे दिया गया है कि जब तक प्रमाणित ना हो जाए तब तक इस अपराध को


होते रहने देना चाहिए। तो क्या फर्क पड़ता है कि हम डंका और ढोल तो चाल चरित्र और चेहरा का , सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ठेका लेकर अयोध्या के राम मंदिर के नाम पर जगह जगह चंदा वसूलने का कारोबार करते हैं और उसमे रोजगार की संभावना देखते हैं।

 रवीश कुमार ने अगर इस स्टार्टअप में बेरोजगारों को राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार की संभावना के अवसर दिखाई देते हैं तो क्यों नहीं होने देना चाहिए। अकेले एक समूह को राम के नाम पर, धर्म के नाम पर चंदा घोषित और अघोषित तौर पर लेने का रोजगार क्यों आरक्षित होना चाहिए। यह प्रश्न बड़ा अहम है।

 उस वक्त जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मंदिर बनाने के नाम पर एक तरफ भजन मंडली के साथ शासकीय अधिवक्ता रह चुके एक अधिवक्ता का चेहरा अक्सर फेसबुक में हमें गौरवान्वित करता है किंतु इन्हीं के सहजन भारतीय जनता पार्टी के भाजपा मंडल का अध्यक्ष जैतपुर का कोई प्रमुख व्यक्ति तब तक अपराध को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के गौरव के रूप में छुपाता रहा जब तक सत्ता और अपराध का नशा मिलकर गाढ़ासरई मैं समूह बनाकर बलात्कार को अंजाम देने की घटना सामने ना आ जाए।, तब तक जब तक की पुलिस के रिकॉर्ड में यह दर्ज ना हो जाए कि बलात्कार की कोई घटना भी हुई है । कोई जरूरी नहीं है की आप पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद के स्तर पर जब तक पहुंचना जाएं तब तक आपको सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आनंद लेने का अधिकार नहीं है। आखिर जैतपुर के भाजपा मंडल अध्यक्ष द्वारा समूह बनाकर बलात्कार किए जाने की घटना भी एक रोजगार पैदा करती थी। उन युवाओं को भी जो इसमें शामिल थे, उन नेताओं को भी जो इसे संरक्षित करते थे। ऐसी हालात में समाज आखिर क्यों यह नहीं स्वीकार करता की घोषित कानून अगर रोजगार पैदा करता है तो अघोषित तौर पर भी कई रोजगार दे रहा है ।तो अधिवक्ता , यदि चरित्रहीन समाज और एससी एसटी वर्ग हित के दुरुपयोग में भी अपने बीवी बच्चों के पेट पालने का इंतजाम करता है तो यह भी एक स्टार्टअप है। अब यदि सभ्य समाज इसे अस्वीकार करता है तो वह उसकी कमी है या नासमझ है। ऐसा प्रमाणित भी करने का प्रयास किया जाता है।

 फिर कौन से रास्ते हैं लोकतंत्र में स्वतंत्र भारत के जहां अपराधों में रोजगार की संभावना को निंदनीय बनाया जाए...?

निश्चित तौर पर आधुनिक नया इंडिया में बेरोजगारी और बेकारी बहुत तेजी से बढ़ रही है यह भी उसका एक पक्ष है। क्या बुरा है कि बलात्कार, चरित्रहीन समाज और एससी-एसटी वर्ग के हित में बनाए गए कानून के दुरुपयोग का एक उद्योग स्थापित हो.... जो पूरी भजन मंडली के साथ जगह जगह गांव गांव जाकर उसी तरह चंदा वसूलने का काम करें जिस प्रकार से धर्म के नाम पर युवाओं को चंदा वसूलने के काम में लगा दिया गया है। क्योंकि इसका तो कोई नियंत्रण है कुछ बड़ा हिस्सा हेड क्वार्टर में पहुंचता ही होगा..., किंतु सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नकाब पहनकर चरित्रहीन समाज से बनने वाली इंडस्ट्री का पूरा पैसा बौद्धिक समाज के अपने परिवार पालने के काम में आएगा ..,क्या फर्क पड़ता है उस समाज को जो नकाब तो अधिवक्ता का पहनता है पत्रकार का पहनता है किंतु अपने बीवी और बच्चों में भी यह संभावना तलाश करेगा की उसका बुढ़ापा चरित्रहीन पैसे से कैसे कट जाए.... यह भी बड़ा मंथन है ।

विदेशों में एक ऐसे समाज का भी जिक्र आता है जिसमें पति अपने पत्नी से सहमति देकर सेक्स इंडस्ट्री से अपने परिवार चलाता है अपवाद में ही सही यह एक स्टार्टअप भी है ।तो क्या भारत का जो नया इंडिया है वह इस प्रकार के "आत्मनिर्भर भारत" की तरफ भी बढ़ रहा है... जो रहस्यमय तरीके से आत्मनिर्भरता की ओर जीवन पद्धति में संभावना देखता है..? और उसे कानून के संरक्षण में सही भी ठहराता है, बावजूद इसके की स्वस्थ समाज सभ्य समाज इसे गलत ठहराता है । क्योंकि  समाज आंतरिक मंथन यह विमर्श बहुत कम करते हैं  पूरा ठेका  न्यायपालिका और न्यायाधीशों पर थोप दिए हैं । किंतु जब तक वह इस पर सार्वजनिक तौर पर पूरी ताकत से इसका विरोध नहीं करता तब तक चरित्रहीन समाज ही  वह व्यवस्था बन जाता है।

 शहडोल में चाहे कोतवाली के बगल में घट रही घटनाओं में एससी एसटी वर्ग के कानून के दुरुपयोग का मामला हो अथवा भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री  महिला विधायक  मनीषा सिंह के जैतपुर क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के मंडल अध्यक्ष और जोर से जय श्री राम बोलने का ठेका लेने वाला समूह के बलात्कार के दुष्कर्म का मामला हो , बाणसागर में किसी भाजपा नेता के चरित्र हीनता की कुकृत्य  का मामला हो या फिर गैर कानूनी काम करने वाले वर्ग का, तब तक जब तक की न्यायालय उन्हें प्रमाणित ना कर दे, तब तक ऐसे कार्यों में रोजगार के अवसर बढ़ते चले जाएंगे ।

फिर चाहे गैरकानूनी तरीके से राम मंदिर के नाम पर चंदा एकत्रीकरण करने का काम हो, जिसका कोई जिला स्तर पर पारदर्शी नियंत्रण प्रतिदिन प्रदर्शित ना हो अथवा खनिज माफिया के खुली लूट का छूट का मामला क्यों ना हो ,क्या फर्क पड़ता है कि सड़क में कीड़ों मकोड़ों की तरह मरने वाले नागरिकों के मामले में शासन प्रशासन की लापरवाही से समूह में दुर्घटना के कारण किसी नहर में डूब कर मरने वाले घटनाओं के मामले हो इन सब पर भी चिंतन मनन करते रहना चाहिए... अन्यथा यह सब भी बेरोजगारी और बेकारी के दौर में एक रोजगार के अवसर की तरह ही दिखने लगेंगे। क्योंकि पुलिस प्रशासन कि अपनी गुप्तचर एजेंसियां ऐसे अवैध कार्यों के बारे में कोई रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक को या उच्च स्तर पर नहीं भेजती हैं इसमें कोई शक नहीं अगर गुप्तचर शाखा ऐसे संगठित अपराधों में सूचनाएं जब बार-बार घट रही हो आकलन करके काम करें तो परिस्थितियां कुछ और होती।

 बहरहाल  क्योंकि बेरोजगारी और बेकारी से घर-परिवार बर्बाद हो रहे हैं तो सोचते रहिए और समझते रहिए कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और चाल चरित्र चेहरा का जो "नया इंडिया" बन रहा है विशेषकर इस आदिवासी क्षेत्र में उसमें हमारे और आपके बच्चे किस प्रकार की रोजगार में और  अवसर तलाशगे....? क्योंकि आज भी कुछ लोग इसी पर रोजगार का अनुसंधान करते हैं आज भी वे इसे सही ठहराते हैं... समाज को इस पर नजर रखनी ही चाहिए... और क्या कोई आक्रामक वैचारिक हमला चरित्रहीन समाज पर हो सकता है...? सोचते-विचारते रहना चाहिये अन्यथा कोई भाई-बहन के रिश्ते में तो कोई पिता-पुत्री के रिश्ते में तो कोई गुरु-शिष्य के रिश्ते में तो कोई अधिवक्ता और पक्षकार के रिश्ते दिखाकर,  अपवित्र समााज निर्माण कर रहा होता है.... और धीरे-धीरे वह मीठा जहर बन कर पवित्र समाज के संभावना के अवसर को खत्म् कर देता। क्योंकि वह नकाबपोश होता है। और इन नकाबपोशो पर पारदर्शी बहस भी होनी चाहिए।

 इसीलिए आरएसएस से जुड़े गोविंदाचार्य "मुख और मुखौटा" पर चिंतित रहते थे, कुछ लोग मरने के बाद बेमानी हो जाते हैं तो गोविंदाचार्य जैसे लोग जिंदा रहते बेमानी हो जाते हैं.... यह कैसा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और कैसा स्टार्टअप......?


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