R.s.s. का यह कैसा विजय अभियान..?
मंडल-अध्यक्ष बलात्कार कांड में शहडोल कांग्रेस के दो फाड़..?
(त्रिलोकीनाथ)
मेरा अखबार का नाम है विजयआश्रम, क्योंकि मुझे अपने पत्रकारिता के संसार में एक ऐसे आश्रम बनाने की अपेक्षा थी जिसने विजय सुनिश्चित हो। इसलिए अपने अखबार का नाम विजयआश्रम रखा।
कुछ प्रशासनिक कारणों से तो कुछ व्यक्तिगत कारणों से और थोड़ा-बहुत वित्तीय कारणों से अखबार विजयआश्रम अपने लक्ष्य को पाने में पीछे रहा। आकर पत्रकारिता आयोग होता तो शायद हमें इस प्रकार की कोई मदद मिलती।
क्योंकि मैंने पत्रकारिता की दुनिया में तब,अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्पना का स्टार्टअप के तहत काम आरंभ किया था। 1998 में जिला पंचायत शहडोल से प्रस्ताव पारित कराकर पंचायती व्यवस्था का प्रवक्ता समाचार पत्र के रूप में विजयआश्रम मैंने शुरुआत की थी। उस समय कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को पंचायती राज व्यवस्था का वोट के धंधे के लिए बुखार चढ़ा हुआ था। हमें भी गांधी दर्शन में स्थापित "भारत की आत्मा गांव में निवास करती है" यह सोच कर ग्रामीण पंचायती व्यवस्था में पत्रकारिता के अवसर दिखाई दिए...।
भारत के लोकतंत्र ही नहीं दुनिया के इतिहास में शायद यह पहला अवसर रहा होगा कि किसी आदिवासी क्षेत्र शहडोल से विजयआश्रम जिला पंचायत शहडोल का पहला पाक्षिक समाचार पत्र के रूप में दर्ज हुआ और 2 साल चला भी। क्योंकि तब तक आईएएस अधिकारी कुछ सुर्री टाइप के संजय दुबे मुख्य कार्यपालन अधिकारी नहीं थे। और जब आए पंडित जी के कारण करीब ढाई लाख रुपए भुगतान नहीं किए जाने के कारण वित्तीय असहयोग से समन्वय के अभाव के कारण विजयआश्रम का प्रकाशन मुझे रोकना पड़ा। तब से अखबार के रूप में विजयआश्रम स्पीड-ब्रेकर मेंं खड़ा है बाद में डिजिटल इंडिया ने इसे मदद की है।लगातार दो वर्ष करीब प्रकाशन हुआ यह कथा बीसवीं सदी में ही एक मुकाम में पहुंच गई क्योंकि मेरे निकटवर्ती सज्जन को कैंसर हो गया था और मुझे वक्त नहीं मिला संघर्ष का इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
तो मैं बता रहा था की विजयआश्रम अखबारी टाइटल इसलिए रखा कि मुझे गर्व हो, जैसे "गर्व से कहो हम हिंदू हैं" टाइटल का उपयोग कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्टार्टअप में उपयोग करता चला आ रहा है। यदा-कदा अभी भी उनका टाइटल दिख जाता है। अब यह दूसरी बात है कि स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता जब हाफपेंट पहनते थे। जिनका विकास मोदी सरकार आने के बाद फुलपैंट तक हो गया है।
तो मेरे अखबार के विजय नाम का उपयोग तीन-चार दिन पहले तक आर एस एस की भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी विशेष क्षेत्र जिले शहडोल मे जैतपुर मंडल के मंडल अध्यक्ष माननीय श्री विजय त्रिपाठी जी के नाम से तब तक चलता आया जब तक उनकी चाल चरित्र और चेहरा, बैंडबाजा बजाता हुआ गाढ़ासरई फार्म हाउस शाखा में अपने ही जैतपुर विधानसभा क्षेत्र की कथित तौर पर अपनी ही स्वजातीय लड़की को अगवा करके, अपने अन्य भाजपा साथियों के साथ बलात्कार-उत्सव में घटित दुर्घटना के बाद लड़की को "यूज एंड थ्रो" की तरह उसके घर में नहीं फेंक दिया।
तो क्या गाढ़ासरई शाखा में कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक विजय अपना आश्रम चला रहा था...? और उसके इस विजय-आश्रम में अक्सर रासलीला का आयोजन होता था...? अगर पुलिस पारदर्शी रही तो शायद बातें सामने आएंगी। अन्यथा बापू आसाराम की तरह उन्हें भी सत सम्मान करोड़ों रुपए की जेल में भेज दिया जाएगा
तो यह फोटो इस बात का प्रमाण भी है की भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री श्रीमती मनीषा सिंह के जैतपुर विधानसभा क्षेत्र के जैतपुर मंडल का मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी तब से कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक रहा है और अपने नेता के साथ फोटो खिचाता रहा जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हाफपेंट संस्कृति मे सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद के सपने देखता था। अब सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद फुलपैंट में विकास कर लिया है।
किंतु भाजपा मंडल अध्यक्ष ने पूरे परदे, पूरी क्षमता के साथ पारदर्शी तरीके से बैंडबाजा बजा कर पुलिस रिकॉर्ड में न सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने साथियों को जिसमें बहुतायत ब्राह्मण हैं एक नए "चरित्रहीन-समाज" का पारदर्शी चाल,चरित्र और चेहरा स्थापित करने का काम किया है।
शहडोल का मीडिया हमसे भी मांगता रहा कि क्या माननीय विजय त्रिपाठी जी का फोटो है जो हमें तो नहीं मिला ना हम विजय भाईसाहब को पहचानते थे।
किंतु कांग्रेस पार्टी के अधिवक्ता प्रदीप सिंह ने इस फोटो को शेयर किया है जिसमें वह कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक कार्यकर्ता के रूप में अनुशासन बंद अपने नेता के साथ खड़े दिखते हैं।
बावजूद इन सबके क्या बात तारीफे काबिल है कि पुलिस प्रशासन ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निर्भयता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्माण किया है उनके जज्बे को सेल्यूट करना ही चाहिए।
"थोड़ी सी जो पी ली है...,
चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला..."
के अंदाज में इस समर्पित भाईसाहब भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय अपने गाढ़ासरई आश्रम में जो कृत्य किया उससे भाजपा के अंदर बहुत खलबली नहीं दिखाई देती है, किंतु कांग्रेस पार्टी में हैं टुकड़े-टुकड़े हो गए प्रतीत होते हैं। एक टुकड़ा
जिला अध्यक्ष आजाद बहादुर सिंह के नेतृत्व में जहां इस घटना को चरित्रहीन-समाज का चेहरा बताने में लगे हैं, वही कांग्रेस नेता प्रदीप सिंह ने चरित्रहीन समाज के चेहरे को जरिए फोटो प्रदर्शित किया है।
किंतु एक दूसरा टुकड़ा भी है जो इससे इत्तेफाक नहीं रखता दिखाई दे रहा है या नजरअंदाज कर रहा है शायद यही कारण है कि पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष और अब प्रदेश नेता सुभाष गुप्ता के नेतृत्व वाला कांग्रेश टुकड़ा अभी भी विजयत्रिपाठी को माननीय विजयत्रिपाठी के रूप में मानता है। और यही कारण है कि वह इसका ना तो सार्वजनिक तौर पर निंदा कर रहा है और ना ही कोई धरना आंदोलन उसी स्तर पर कर रहा है जिस स्तर पर जब मुकुल वासनिक प्रदेश प्रभारी कांग्रेस पार्टी शहडोल में आए थे तो पूरे शहडोल जिले में लाखों रुपए के फ्लेक्सी के जरिए बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर कांग्रेस का चाल, चरित्र और चेहरा दिखाने का काम किया गया था।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी के टुकड़े-टुकड़े इनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे फ्लेक्सी के जरिए, प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अखबार समाज के जरिए चरित्रहीन-समाज के प्रतीक बन चुके विजय त्रिपाठी को अपने राजनैतिक फायदे के लिए ही उनके सेक्स-इंडस्ट्री पर हमला करके यह बताते कि चरित्रहीन-समाज ना तो कांग्रेस पार्टी के हित में है और ना ही भारतीय जनता पार्टी के हित में। आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के हित में यह कतई नहीं है। किंतु कांग्रेस में शायद सेक्स-इंडस्ट्री को लेकर एक मत और एक राय अभी तक तो बनती नहीं दिखाई देती.... हो सकता है कांग्रेस पार्टी के अंदर इस इंडस्ट्री को लेकर अपने-अपने मापदंड हो...?, अपनी अपनी नैतिकता हो...? और अपनी-अपनी भाजपा के साथ नूरा-कुश्ती भी हो...? जिसमें राजनीति की रहस्य-नीति अपना काम कर रही हो।
अन्यथा शहडोल की बेटी आरजू के लिए न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस पार्टी का एकजुट विरोध भारी संख्या में ऐतिहासिक एकता दिखा कर बेटियों के साथ अत्याचार के खिलाफ आंदोलन किया था। हो सकता है तब भी कांग्रेस का सुभाष गुप्ता के नेतृत्व वाला टुकड़ा ऐतिहासिक एकता का हिस्सा न रहा हो।
किंतु भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय त्रिपाठी के इस बलात्कार-इंडस्ट्री में वह अपना भूमिका अदा कर सकते थे। उनकी चुप्पी के क्या रहस्य हैं...? कम से कम यह तो तय है कि राजनीति के प्रोपेगेंडा कारोबार में मुकुल वासनिक के आगमन पर जितने फ्लेक्स और बोर्ड सुभाष गुप्ता नेतृत्व वाले टुकड़े मैं दिखे थे उससे लगता था कि कांग्रेस पार्टी अगर जिंदा है तो उन्हीं के नेतृत्व में जिंदा है शहडोल में।
तो फिर आखिर भाजपा मंडल अध्यक्ष के अखिल भारतीय स्तर के इस वीभत्स कांड पर उनका प्रोपेगंडा फ्लेक्सी के जरिए कम से कम क्यों नहीं दिख रहा है...? क्या विजय त्रिपाठी के गाढ़ासरई आश्रम में उनकी कोई सहमति है.... हमें यह झूठा-शक जानबूझकर करना चाहिए..,
क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व के की राजनीतिक-स्पेस को फिल-अप करने के लिए यदि आपका तन-मन-धन सक्रिय हो जाता है, तो इस निंदनीय कृत्य पर आप की चुप्पी के क्या रहस्य हैं...? सार्वजनिक होना ही चाहिए।
क्योंकि जब कोई कांग्रेस का विधायक शहडोल में खनन माफिया बनकर सफलता से काम करता है और भाजपा की सत्ता आने पर उसकी सफलता में पूरा भाजपा शामिल हो जाता है यह सहयोग देता है तो यह तो साफ है की सत्ता के काले कारोबार में सभी एकजुट है और सब मिलजुल कर अपराधिक कृत्य को अंजाम देते हैं क्यों शक नहीं करना चाहिए कि भाई साहब के बलात्कार कांड में कांग्रेस के कुछ टुकड़े अपने मौन सहमति दे रहे हो...? अगर ऐसा होगा तो जैतपुर सामूहिक बलात्कार कांड मे पुलिस और कानून दोनों ही लक्ष्य पर असफल हो जाएंगे । शहडोल की बेटी को बचाने के लिए भी। क्योंकि अभी तक किसी राहत भरी घोषणा का प्रदर्शन होता भी नहीं दिखता क्योंकि वह आदिवासी समाज से नहीं है तो उस पीड़िता को तत्काल कोई राहत राशि भी नहीं मिल सकती... चिकित्सा राहत राशि की घोषणा भी दिखाई नहीं देती...?
हमें तो इसलिए भी परेशानी है कि विजयआश्रम का नाम हमने गौरव के लिए चुना था, उस पर कलंक लग रहा है.., तो क्या "पराजय-आश्रम" बदलने की दिशा में अब हम काम करें...?
क्योंकि विजय ने इस नाम को कलंकित किया है इस पर चर्चा तब तक करते ही रहना चाहिए जब तक विजय अपने नाम के विरुद्ध समाज के किसी भी धारा में चाहे वह कार्यपालिका और न्यायपालिका हो, विधायिका हो अथवा पत्रकारिता ,विजय का नकाब पहनकर समाज को पराजित करने का काम करता रहेगा...... अन्यथा एक चरित्रहीन-समाज विजय का नकाब पहनकर ठीक उसी प्रकार से एक चरित्रहीन समाज का निर्माण करता रहेगा जैसे आर एस एस का नकाब पहनकर यह व्यक्ति भाजपा का मंडल अध्यक्ष बन बैठा था।
तो राजनीति को और राजनीतिज्ञों को भी कम से कम अपनी आदिवासी स्तर की सोच में आदिवासी क्षेत्र में कम से कम सुचिता का पालन करना ही चाहिए। हमारी चुप्पी भी चरित्रहीन-समाज को बढ़ावा देती है।
और यह बात कोतवाली शहडोल के बगल में प्रमाणित होती है क्योंकि वहां भी कांग्रेस के बड़े नेता और भाजपा के बड़े नेता मूक-बधिर होकर जिंदा रहना चाहते हैं। यह समस्या, बड़ी समस्या बने इस पर व्यापक विमर्श होते रहना चाहिए। क्योंकि कोतवाली शहडोल के बगल में पत्रकारिता , विधायिका और न्यायपालिका का भी एक हिस्सा अपने स्तर पर चरित्रहीन-समाज पर आश्चर्यजनक चुप्पी बनाए हुए हैं, इतना कायर होना भी अच्छा नहीं...।
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