मामला शिक्षक गैरकानूनी संलग्न करण का
दो-दो कैबिनेट मंत्री के आदिवासी संभाग में
आदिवासी विभाग में
जारी है जंगलराज
(त्रिलोकीनाथ)
इसमें कोई शक नहीं की आदिवासी विभाग में जंगलराज सफलता से चल रहा है और साहब सुविधा के हिसाब से उच्चाधिकारियों के निर्देश बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।
और हो भी क्यों ना जब जिला कोषालय अधिकारी तृतीय वर्ग के कर्मचारी प्रभारी सहायक आयुक्त बनाए गए एमएस अंसारी के लिए आहरण करने का विशेषाधिकार का भ्रष्टाचार का कानून लागू करता है तो आदिवासी विभाग में कानून की अराजकता सातवें आसमान पर उड़ने लगती है।
यही कारण है कि उच्चाधिकारियों के निर्देश को उपआयुक्त आदिवासी विभाग लागू करने का आदेश 2018 मे तो देते हैं किंतु स्वयं "पद बिकता है बोलो खरीदोगे" के सिद्धांत के तहत मनमानी स्थानांतरण भी करते रहते हैं। और हो भी क्यों ना सरकारी धन में लूट का आरक्षण सिर्फ अफसरों के लिए बना ही है ऐसा प्रतीत होता है।
तो पहले 7 दिसंबर 2018 मे उपआयुक्त आदिवासी विभाग सरकारी फरमान को जारी करते हैं कि शिक्षकों का संलग्नकरण समाप्त किया जाता है।
और फिर आश्चर्यजनक तरीके से "भ्रष्टाचार की बोली और नीलामी के हिसाब से नए नए तरीके से संलग्नकरण के कार्य किए जाते हैं। एक भ्रष्ट शिक्षक को गोहपारू मैं मंडल संयोजक बनाए जाने पर जो बवाल खड़ा हुआ अंततः उसका अंत घर वापसी से हुआ। किंतु चर्चाा है कि भ्रष्टाचार के धरातल में ₹50000 की धनराशि साहब के कार्यालय ने वापस नहीं की है। अब गैर कानूनी तरीके से 22 फरवरी को श्रीमती आराधना तिवारी शिक्षक का अमलाई से कन्या माध्यमिक शाला वार्ड नंबर 3 शहडोल में संलग्न करण कर दिया गया है। किंतु यह मर्यादा बनाकर रखी गई है की मूल वेतन अमलाई से ही निकलेगी।किंतु प्रभारी सहायक आयुक्त तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी की बेगम साहिबा जावेद अंसारी का संलग्न करण गैरकानूनी तरीके से करीब दो दशक बाद भी प्राइमरी शिक्षक से अपग्रेड करके हाई स्कूल सोहागपुर में बरकरार है। तो यह फिर भ्रष्टाचार का आईकॉन-मॉडल बनाने का काम भी करता है। कि जब प्रभारी सहायक आयुक्त तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी की बेगम के लिए कानून तोड़कर नियम कानूनों की और निर्देशों की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं तो फिर अन्य शिक्षक यदि भ्रष्टाचार करने की ताकत रखता है और पद खरीद सकता है तो क्यों नहीं संलग्नी करण के आदेश जूतों के तले रौंद दिए जाएं...? तो यह एक प्रकार का ओपन-भ्रष्टाचार का टेंडर भी है, यदि आप में ताकत है और आप "भ्रष्टाचार के जन्मसिद्ध अधिकार" पर यकीन रखते हैं तो आदिवासी विभाग का जंगलराज आपका स्वागत करता है।, कुछ इस अंदाज में आदिवासी विभाग का कार्यालय उच्चाधिकारियों के निर्देश का धज्जियां उड़ा रहा है। जल्द ही जंगल विभाग के वन मंडल अधिकारी के उन निर्देशों को आदिवासी विभाग में भी देखा जा सकता है
जिसमें वन मंडल अधिकारी श्रीमती स्नेहा श्रीवास्तव ने नोटिस चस्पा कर रखा है कि मीडिया-कर्मी का जंगल राज के कार्यालयों में प्रवेश प्रतिबंधित है। देखना होगा कि आदिवासी विभाग के दो-दो कैबिनेट मंत्रियों वाले आदिवासी संभाग शहडोल में कानूनी अराजकता पर मंत्रियों की आंखें खुलती हैं या फिर वह स्वयं इन व्यवस्था पर अपनी मौन सहमति देते हैं...? बहरहाल कानून के शासन में यह सब गैरकानूनी कहा जाता है और अलोकतांत्रिक भी।
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