गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

आइए आत्मनिर्भर "चूकुर समाज" की तैयारी करें (त्रिलोकीनाथ)

जय "आत्मनिर्भर भारत".....

आइए आत्मनिर्भर


 "चूकुर समाज" 

की तैयारी करें

(त्रिलोकीनाथ)

अगर, यह कल्पना सही है तो कि "जनसंपर्क विभाग  निजी हाथों में सौंपा जा रहा है..." अगर यह संभावना मर गई है तो  कि पत्रकारिता आयोग बना कर  उसे जिंदा नहीं रखा जा सकता.... तो अगर माखनलाल चतुर्वेदी जिंदा होते तो उनका पद नाम लिखा जाता... 

चूकुर माखनलाल चतुर्वेदी और अगर दिशा यही है तो जल्द ही भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय नाम बदल कर "माखनलाल चतुर्वेदी चूकुर विश्वविद्यालय" हो जाता ......

अभी तक आईएएस अधिकारी जो भी थे जैसे भी थे उनकी निष्ठा चाहे जिसके लिए समर्पित रही हो किंतु पत्रकारिता की मूक भाषा को वह समझने का प्रयास करते थे क्योंकि उन्हें देश की स्वतंत्रता के प्रति की कसम शायद याद रहती थी शायद उन्हें अपने योग्यतम बुद्धि और विवेक पर कम से कम इतनी गरीबी स्तर पर  तरस तो आता ही था  कि देश उनके स्वाभिमान का  अंग है ...? जब निजी करण  जनसंपर्क विभाग का हो जाएगा  तो  सत्ता के  अज्ञात सुपर मालिक उनके नौकर हमारे नेता और नेता के नौकर कार्यपालिका और उसके चाकर निजी करण के ठेकेदार फिर  इन चाकर के चुकुर ठेकेदार के पालतू लोग अब पत्रकारिता को नियंत्रित करेंगे याने एक चुकुर समाज का नया इंडियाा के निर्माण करेंगे ऐसा हम सोच सकते हैं हो सकता है यह हमारी घटिया ही हो किंतु ऐसा भी हमेंं सोचना चाहिए क्योंकि आत्मनिर्भर भारत कल की ही अखबार में छपा दिखता है 

अभी कल की ही बात है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में अपना विचार प्रकट कर रहे थे कि भारत में लोग वह काम जो हुआ ही नहीं उस पर आंदोलन करते हैं... तो अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी काल्पनिक आंदोलन पत्रकारिता का जो अभी भ्रूण अवस्था में भी पैदा होने में सक्षम नहीं है... होता, तो भी जोर जोर से चिल्ला कर संसद में कहते "पत्रकारिता रही है .....है ....और रहेगी....

 जैसे किसान आंदोलन में 200 किसानों की शहीदी मौत के बात उन्हें वफादार कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी की तरह इस बात का दुख तो रहा कि पंजाब में 100 टेलीकॉम टावर गिरा दिए गए किंतु जीवित किसान दिल्ली में आकर दम तोड़ दिए उस पर कोई चर्चा नहीं की....? बल्कि इस जुमले को बरकरार रखा गया एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य )किसानी उपज का था... है ...और रहेगा....

 ठीक इसी तरह वे पत्रकारिता में भी संसद में अपना वक्तव्य बोलते दिखाई देते।

 लेकिन यह सब काल्पनिक चीजें हैं तो जो हरिजन के संपादक रहे मोहनदास करमचंद गांधी तो उनके समाधि स्थल पर भी "चूकुर समाधि" लिखने में आधुनिक राष्ट्रवादी सोच को गौरव होता....


क्योंकि अगर लाल किले के प्राचीर से धोखे से ही  सही यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनाकर रखा गया है..., बावजूद इसके कि इसे निजीकरण करके निजी हाथों में सौंप दिया गया और उस उद्योगपति की इतनी औकात नहीं थी कि वह किसी "षड्यंत्र के सिद्धू "को इस प्राचीर से तिरंगे की जगह कोई अन्य झंडा फहराने के पहले गोली मार देता....।

 यकीनन यदि यही काम सिद्धू आरएसएस मुख्यालय में अगर ,कभी तिरंगा फहराया होता


जब पूरी तरह से प्रतिबंधित था वहां ,तब उसे अवश्य उसी तरह गोली मार दिया गया होता जिस तरह दिल्ली में महात्मा गांधी को गोली मार दिया गया था....., सबके सामने।

 तो यह एक व्यवस्था है इसलिए इन सब काल्पनिक, जो कभी हुए ही नहीं और कभी नहीं होंगे गारंटी नहीं लिया जा सकता, सोच पर हमें "आत्मनिर्भर "हो जाना चाहिए। "आत्मनिर्भर भारत "का यह मॉडल आइकॉन भी होना चाहिए क्योंकि देश की आजादी के पहले से काल्पनिक"चतुर्थ स्तंभ" पत्रकारिता यदि देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी भूमिका अदा किया था। तो उसे देश की आजादी के बाद  लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के किसी ख्याली काल्पनिक स्तंभ का दर्जा क्यों हासिल रहना चाहिए  ...?

उसे पूर्णकालिक चतुर्थ स्तंभ बनने की बजाय उसे पद नाम बदलकर चूकुर कह कर जब पुकारा जाएगा तो वह पत्रकार, 4 अक्षरों की बजाए आत्मनिर्भर "चूकुर" 3 अक्षरों का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक जैसा लगेगा।

 और 1924 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मशती पर यह सब मिशन पूरे हो जाएंगे।

 धन्य है इस देश की वह सत्ता भी जिसने इतने सालों तक इस पर राज किया और धन्य ,वह सत्ता भी है जो पूरी निष्ठा, लगन, कर्तव्यसीलता के साथ वफादारी के साथ किसी अज्ञात शक्ति के द्वार पर फेंके गए रोटी के टुकडे नमक को अदा कर रही है ।

भलाई, यह मेरी सब काल्पनिक नकारात्मक या हताशा जनक सोच है किंतु जिस प्रकार से पत्रकारिता को किसी अक्षय कुमार में या फिर किसी अर्णब गोस्वामी में देखने की जो विचार रखते हैं ...उन्होंने पिछले 6 साल में सिर्फ यही नपुंसक समाज पैदा करने का काम किया है। और अब इसे कानूनी जामा पहनाने की दिशा में काम हो रहा है ।बजाय, इसके जो पत्रकार समाज पिछले 72 साल से शोषण का शिकार है उसमें उपार्जित आय, उसे उसी प्रकार से सुनिश्चित करने की दिशा में काम नहीं होता दिख रहा है, जैसे कि किसी कर्मचारी के भविष्य की सुरक्षा के लिए आय सुरक्षित की जाती है ।इससे ज्यादा और भी भयानक दुखद हालात यह है की एक बड़ी भीड़ ऐसी पैदा हो गई है विदेश की धरती में नरेंद्र मोदी के बोले गए पांचवी स्तंभ की, जो आपसी समन्वय करके पत्रकारिता  चतुर्थ स्तंभ पर ऐसे भयानक आक्रमण का करारा जवाब दे सके.... तो  जो जिम्मेदार अखबार मालिक या मीडिया मालिक तबका है, क्या वह इतना ही नपुंसक होता चला जा रहा है जितना कि अर्णब गोस्वामी भारतीय रक्षा के 40 सैनिकों के पुलवामा शहीद कांड पर किसी नौकरशाह के साथ जश्न मनाने की भाषा में अपनी सोच रखता है ....., तो यह बात हम इसलिए बोल पा रहे हैं क्योंकि पत्रकारिता का जमीर हमें जिंदा रहने की साहस देता है... क्या यह साहस नई पीढ़ी में जिंदा भी रह पाएगी....?

 इसके लिए संयुक्त सोच किसी जमीनी धरातल से क्यों पैदा नहीं होनी चाहिए ....? क्योंकि ऊपर कर्तव्यजीवी-वर्ग , पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत के लिए समर्पित है। 


तो   देखते चलिए.... हो सके तो सोचते भी चलिए... आपस में चर्चा भी करिए.... और यह भी तय करने का प्रयास करिए कि अगर हम "चूकुर " सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के गौरवशाली समाज से जब जन्म लेंगे, तो अगर नीता अंबानी की गोद में किसी हेलीकॉप्टर में, जो बैठी होंगी ....वहां से नीचे देखेंगे ,तो हमें नीचे का भारत कैसा दिखेगा .....?

बेहतर तो होता कि पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए पत्रकार आयोग का गठन होता और भारत का पहला पत्रकार आयोग मध्यप्रदेश में बनता है तो वह माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय चांद की तरह चमकता किंतु अब "चूकुर-समाज "कलंक की तरह चमकने को तैयार है... यही है नया इंडिया का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद....? अगर अखबार में छपी खबरें सही हैं...?

पुनश्च भावी भारत के आत्मनिर्भर होते चूकुर समाज याने पत्रकार समाज अभिनंदन के लिए तैयार हो जाइए... जय आत्मनिर्भर भारत......?

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