गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

कोरोना युद्ध मे रोल मॉडल बने डी पी त्रिवेदी

 कहानी सच्ची है

बुजुर्ग ने अपने सकारात्मक ऊर्जा से कोरोना महामारी को दी मात


कोरोना मरीजों के लिए रोल

मॉडल बने बुजुर्ग दुर्गाप्रसाद त्रिवेदी

 29 अप्रैल 21- शहडोल निवासी बुजुर्ग  दुर्गा प्रसाद त्रिवेदी जिनकी उम्र लगभग 81 वर्ष है, वे कोरोना पीड़ित हो गए थे और उन्हें मेडिकल कॉलेज के कोविड-19 भर्ती किया गया था। बुजुर्ग दुर्गा प्रसाद त्रिवेदी सकारात्मक ऊर्जा के अनुकरणीय उदाहरण बन गए। उन्होंने अपनी सकारात्मक सोच एवं सकारात्मक उर्जा के कारण कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को मात देकर अब वे पूर्णतः स्वस्थ हैं।

     श्री  त्रिवेदी का कहना है की यदि व्यक्ति में सकारात्मक सोच, सकारात्मक ऊर्जा, के साथ-साथ दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो वे कोरोना बीमारी को भी हरा कर अपनी जिंदगी का विजय का परचम लहरा सकता है। श्री त्रिवेदी कोरोना पीड़ित मरीजों के लिए रोल मॉडल साबित हो रहे हैं। उनका कहना है कि जिला प्रशासन एवं मेडिकल कॉलेज शहडोल के चिकित्सक एवं नर्सिंग स्टाफ के अभूतपूर्व चिकित्सकीय सेवा भाव से वे स्वस्थ हुए हैं।

    उन्होंने सभी नागरिकों को से अपील की है की कोरोना संक्रमण से बचने के लिए शासन के दिशा निर्देशों का पालन करें। मास्क का उपयोग करें, सोशल डिस्टेंसिंग पालन करें तथा साबुन या सैनिटाइजर से बार-बार हाथ धोए, अनावश्यक घर से बाहर ना निकले तथा भीड़-भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचें, तभी हम सब मिलकर कोरोना महामारी को हरा सकते हैं।

 


   बुजुर्ग डी पी
 त्रिवेदी ने कहा कि हर व्यक्ति के पास सकारात्मक सोच एवं सकारात्मक ऊर्जा का भंडार रहता है। आवश्यकता इस बात की है उसे सही रूप इस्तेमाल किया जाए। यदि मन में दृढ़ विश्वास हो तो सामान्य कोरोना के मरीज होम आइसोलेशन में रहकर भी शासन द्वारा उपलब्ध कराई गई मेडिकल किट, रोग प्रतिरोधक काढा का उपयोग कर तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली दवाओं का प्रयोग कर अपने को सुरक्षित कर सकता है। उन्होंने कहा है कि टीकाकरण भी अवश्य कराएं, क्योंकि टीकाकरण ही वह माध्यम है जो आपके सकारात्मक ऊर्जा एवं सकारात्मक सोच को मजबूत करेगा और आप कोरोना जैसी महामारी को भी हरा सकते हैं।

          



बुधवार, 28 अप्रैल 2021

जथा पुलिस तथा व्यवस्था... (त्रिलोकीनाथ)

 जथा पुलिस-तथा व्यवस्था...

अपराधियों के लिए कोरोना बना वरदान...

कोरोना संक्रमण काल में

प्रताड़ित आदिवासियों पर दोहरी मार

(त्रिलोकीनाथ)

जब भी कोई बड़ी महामारी या आपदा आती है तो दलित शोषित और वंचित समाज पर उसकी दोहरी मार पड़ती है, एक तो वह पहले से ही अन्याय और शोषण का शिकार होता है दूसरा महामारी उसकी कमर तोड़ देती है। ऐसे में न्याय की जो आशा  भी धूमिल होती चली जाती है। प्रतिदिन उसे निराशा और हताशा के माहौल में जीना होता है ।

उमरिया जिले के नौरोजाबाद का आदिवासी समाज के केवल सिंह इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। भलाई शहडोल में पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी ने शंखनाद जैसा ऑपरेशन चलाकर सूदखोरी में एक बड़ी मुहिम चलाई और उस पर कुछ हद तक सफलता भी हासिल किया किंतु जब पुलिस महानिरीक्षक जनार्दन  ने शहडोल क्षेत्र में "ऑपरेशन शंखनाद" का विस्तार तो किया किन्तु 20 वर्ष से सूदखोरी के पर्याय बन चुके नौरोजाबाद बैंक और सूदखोर उमेश सिंह की मिलीभगत से लगभग लुट चुका व प्रताड़ित केवल सिंह की रही सही आशा भी दम तोड़ती नजर आई।

 कोरोना महामारी के लॉकडाउन लगने के पूर्व महा


निरीक्षक से मिलकर न्याय की आशा जगाने का जो प्रयास केवल सिंह के दिमाग में था, वह टूट गया। केवल सिंह पुलिस महानिरीक्षक के कार्यालय तक आया किंतु अपने निजी मजबूरियों के चलते वह महानिरीक्षक की व्यस्तता को देखकर आवेदन देकर वापस चला गया। कुछ दिनों बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री जनार्दन के आशा जगाने पर वह किराए की राशि उधारी लेकर लॉकडाउन अवधि में ही उमरिया तक गया किंतु प्रशासनिक भ्रमजाल में वह निराशा के माहौल में  घर लौट आया। और तब से अब तक न्याय की आशा उससे दूर ही होती चली जा रही है।

 करीब 2 साल पहले उसने अपनी लड़ाई नरोजाबाद थाने से लेकर  जनजाति आयोग मध्य प्रदेश तक न्याय की गुहार लगाता रहा, किंतु महामारी ने उसकी रही सही ताकत भी तोड़ दी दिया। 

दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करता पुलिस अधीक्षक कार्यालय उमरिया, नौरोजाबाद पुलिस थाना अथवा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल का कार्यालय से उसे न्याय मिलता दूर होता चला गया। किंतु महामारी के चलते अधिकारी से मुलाकात कर व्यथा सुनाना उसके लिए जैसे ईद के चांद को पाना हो गया।

 करीब 10 साल पहले नरोजाबाद थाने के अंतर्गत सूदखोरी का खुला अपराध करने वाले दबंग उमेश सिंह नामक व्यक्ति ने उसकी जीवन भर की नौकरी की करीब 17लाख रुपए एटीएम के जरिए बैंक के सहयोग से उसी तरह 1 साल के अंदर निकाल लिया जैसे कि क्षेत्र के कई लोगों को उसने सूदखोरी के जाल में फंसा कर नरोजाबाद पुलिस के सहयोग से लूटता रहा। इसलिए नरोजाबाद पुलिस केवल सिंह के मामले में भी उसी तरह हीला हवाली करती रही और थोड़ा बहुत  पैसा दिला कर समझौता कराने का काम करती रही। जैसे अन्य मामलों में उमेश सिंह के लिए कर रही थी ।किंतु क्योंकि आदिवासी केवल से को लोकतंत्र में न्याय की उम्मीद मरी नहीं थी इसलिए वह अपनी यथाशक्ति से जगह-जगह गुहार लगाता रहा।

 शहडोल पुलिस अधीक्षक गोस्वामी के नवाचार ने जब "ऑपरेशन शंखनाद" चलाकर सूदखोरी के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया तो उसे पुलिस अधीक्षक उमरिया से भी पुनः उसकी मरी हुई आशा जाग गई किंतु कोरोना महामारी जैसे सूदखोर सिस्टम याने "माफिया" जिसमें नरोजाबाद पुलिस संबंधित बैंक कर्मचारी और सामने दिखने वाला सूदखोर उमेश सिंह के लिए वरदान बन गई।

 हालांकि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री जनार्दन चाहते तो ऑपरेशन शंखनाद की गूंज उसके घर तक जो नौरोजाबाद पुलिसथाना से करीब 2 किलोमीटर के पास में ही है अवश्य सुनाई देती किंतु सिस्टम का यह फैलियर ही है कि ना तो आईजी शहडोल और ना ही पुलिस अधीक्षक, उमरिया के शंख में इतना "शंख-नाद" है कि वह माफिया सूदखोर के जाल को तोड़कर केवल सिंह जैसे प्रताड़ित आदिवासियों के घर तक शंख-नाद पहुंचा पाते और उन्हें इस कोरोनावायरस महामारी में उसके अपने जीवन भर की कमाई का कुछ पैसा उसे अजीबका में जीने के लिए राहत की सांस पहुंचा पाता।

 यह बात सिर्फ अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति केवल सिंह जैसे आदिवासी समाज के व्यक्तियों के लिए प्रताड़ना का कारण नहीं है बल्कि उस नई व्यवस्था में शहडोल जिले के व्योहारी के पपौंध थाना अंतर्गत गायब हो रही अवयस्क आदिवासी लड़कियों के लिए भी लागू होता है। सामान्य रूप से यह माना की लड़कियां स्वयं किसी के साथ भाग गई हैं और इसी धारणा से अपने मनोबल को मजबूत बनाकर थाना पपौंध निश्चिंत होकर थाना अंतर्गत गायब हो रही लड़कियों के लिए निश्चिंत टाइप का है।


एक मामला गांव की 17 वर्षीय दसवीं पढ़ने वाली किशोरी का है जो 3 अप्रैल को सुबह 5:00 बजे महुआ बीनने गई तो आज तक घर लौट के नहीं आई। लड़की के पिता ने थाने में विधिवत

रिपोर्ट 8 तारीख को की गई थाना प्रभारी पुलिसिया अंदाज में कहते हैं लड़कियां गायब ही हो रही हैं ।

बात की जानकारी क्षेत्रीय विधायक शरद कोल को लगी तो उन्होंने पपौंध थाने के अधिकारी को


फटकार भी लगाई , किंतु नतीजा तब तक आदिवासी मामलों में कारगर साबित नहीं होता जब तक कि उच्चअधिकारी इसका संज्ञान ना ले। 3 तारीख से गायब आदिवासी किशोरी के अथवा अन्य अपऑन थाने में गायब हुई युवतियों के परिवार वालों के लिए कोरोना महामारी दोहरी मार का प्रताड़ना का दंश दे रही है। और पुलिस की व्यवस्था है कि घर पहुंच कर ऐसे गंभीर मामलों में राहत पहुंचाने पर अब तक तो असफल ही सिद्ध हुई है।

 केवल सिंह के मामले में जहां उसका जीवन भर की पूरी कमाई  नौरोजाबाद पुलिस के चलते खुली डकैती का शिकार हो गया । तो पपौंध मे गायब किशोरियां सिर्फ एक प्रकरण की तरह  की फाइल मे  नस्तीवध हो गई प्रतीत होती है। तो शहडोल थाने में गुमशुदा के मामले में सूचना मिलने के बाद भी पुलिस की विवश है कि वह कोरोना से युद्ध का सामना करें या फिर गुमशुदा की तलाश...?

  बहरहाल आदिवासी क्षेत्र में कम से कम आदिवासियों को न्याय की आशा तब भी मिलती नहीं दिखाई देती जबकि वह भारत के संविधान के पांचवी अनुसूचित सूची में सीधे महामहिम राष्ट्रपति जी के संरक्षण में बनाई गई व्यवस्था में स्वयं को संरक्षित होने की बात सोचते हैं तो क्या सिस्टम फेल हो रहा है या फिर जिम्मेदार उच्च अधिकारी इस संक्रमण काल में महात्मा गांधी के शब्दों में अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्तियों के लिए न्याय कराना सुनिश्चित करेंगे जो उन्हें घर पहुंचकर राहत दे सके...?

 विशेषकर वे अपराध जो थाना पुलिस के संरक्षण में घटित हो रहे हैं क्या उन्हें रोक पाने में उच्च अधिकारी पहल करेंगे ...? देखना होगा...

 क्या ऑपरेशन शंखनाद की गूंज के संग में पुलिस अधीक्षक उमरिया अपनी जोर आजमाइश के लिए चिन्हित क्षेत्रों में शंख बजाएंगे यह भी देखना होगा....?


मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

कोरोना 15 मई तक चरम मे: सावधान

 15 मई तक आएगा कोरोना चरम पर

जिला पंचायत शहडोल के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के घर के सामने मजबूरी मे बैठी  यह महिला बिना मास्क के है। जो यह बताने में पर्याप्त है की अपर कलेक्टर विकास के घर के सामनेे भी जागरूकता मास्क पहनने की  लगभग नगण्य है..... कारण जो भी हो...? 
तो दूसरी तरफ हालात अखबारोंं मे छाए हुए हैं






ना फिकर कोई इंसान की....
अगर यह 15 मई तक शहडोल क्षेत्र में 12000 कोरोना सक्रिय संक्रमित व्यक्तियों के के बढ़ जाने की आसंका लक्ष्य में है तो भी अगर हम डर पर नहीं रहना चाहते तो कोरोना भाईसाहब का कोई दोष नहीं.....,
क्योंकि 28 अप्रैल को सुबह सब्जी वाले कुछ इस अंदाज में सब्जी बेचते देखे गए 


तो आप को खरीदने की जरूरत नहीं है बीमारी को आपके घर में आकर वह पैसा देकर भी खरीदी जा सकती है

नीचे दिए गए फोटोग्राफ मैं बड़ा स्पष्ट है कि किस प्रकार से सब्जी विक्रेताओं को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है कि वे सब्जी बेचते वक्त मास्क का पूरा उपयोग करे मुंह और नाक ढक कर रखें इस तरह

तो शासन और प्रशासन का पूरा प्रयास ही विफल हो जाता है जब आप मोहल्ले मोहल्ले घर घर जाकर गलत तरीके से सब्जी बेचने का काम करते हैं

किंतु उससे भी ज्यादा दोषी वे लोग हैं जो सब्जी खरीदने आते हैं और बिना मास्क के सब्जी खरीदते हैं 

पिछले दो दिनों में सक्रिय मरीजों की संख्या शहडोल क्षेत्र में कम प्रदर्शित होकर आ रही है किंतु इससे लक्ष्य 12000 सक्रिय मरीजों की संख्या घट जाएगी यह सूचना बीमारी को बढ़ावा देना जैसा है बेहतर होता सब्जी विक्रेता संघ अपने सब्जी विक्रेताओं को स्पष्ट व कड़क निर्देश देता कि बिना मुख और नाक कवर मास्क के सब्जी विक्रय कदापि ना किए जाएं। और उससे ज्यादा हम नागरिकों को ज्यादा सतर्क रहना है अगर बिना माचिस के कोई सब्जी विक्रेता आपके घर आता है

तो सबसे पहले स्वयं मास्क पहनकर जाएं, उसे मास्क पहनने को कहें और अगर उसके पास मास्क नहीं है तो एक मास्क पहनने को दें और मास्क की कीमत सब्जी की कीमत से काट लें....।
 दंड का दंड, चेतावनी की चेतावनी और सुरक्षा की सुरक्षा... इस तरह स्वयं की सुरक्षा सुनिश्चित करना

दूसरों की सुरक्षा की गारंटी है




कहां से कहां आ गए हम, जरा सोचिए ..... (शैलेंद्र श्रीवास्तव)

 पृथ्वी दिवस सप्ताह --------------

कहां से कहां 

आ गए हम,





जरा सोचिए .....

(शैलेंद्र श्रीवास्तव)

जब मोबाइल, इंटरनेट, 3G, 4G, 5G, बुलेट ट्रेन, शॉपिंग मॉल, गेम ज़ोन, विलासिता के अत्याधुनिक संसाधन नहीं थे, शायद तब हम भारत के लोग कहीं ज्यादा सुखी और समृद्ध थे। ये पश्चिम के देशों से होड़ में हमारा सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय अब भारत की पहचान नहीं रहे, गुरुकुल समाप्त हो गए अब विदेश में पढ़ना और रहना भारतीय छात्रों का स्टेटस/कैरियर सिंबल बन गया है। देश में मातृ भाषा हिंदी पर आधारित स्कूल अब अपने अस्तित्व की आखरी लड़ाई लड़ते हुए दिखाईं पड़ रहे हैं।

सैंकड़ों वर्ष गुलाम रहने के बाद भी हम


आत्मनिर्भर, समृद्ध और शायद कहीं ज्यादा खुशहाल थे। पर अगर देश का सबसे ज्यादा नुकसान किसी एक चीज से हुआ है तो वो है - भ्रष्टाचार।

आप घंटों बैठकर सोच लीजिए, हर समस्या की जड़ में आपको भ्रष्टाचार जरूर मिलेगा, या यूं कह लीजिए की यदि भ्रष्टाचार ना होता तो शायद वह समस्या ही ना होती।

आज प्राकृतिक संसाधनों का जिस प्रकार दोहन हुआ है या लगातार हो रहा है, जिस तरह जंगल कम हो रहें हैं, नदियों का अस्तित्व ख़तरे में है।


तालाब की बात इसलिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि अब बचे ही कितने हैं और जो बचे भी हैं तो उनमें से ज्यादातर तो अब गड्ढों में तब्दील हो चुके हैं। वन्य प्राणी सही मायनों में सिर्फ किताबों और चिड़िया घरों में सिमट चुके हैं। पक्षी तक रेडियेशन से नहीं बच पा रहें हैं। संक्षेप में कहूं तो पूरा का पूरा पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा रहा है या गड़बड़ा चुका है। सही तरीके से अध्ययन किया जाए तो देश में मानव की औसत आयु अब लगभग आधी बची है।पर फिर भी हमें किसी भी कीमत पर सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए ?


कभी कभी सोचता हूं कि यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता असमय इस धरा से ना गए होते तो ये देश आज फिर सोने की चिड़िया कहलाता और विश्वगुरु बनकर दुनियां को राह दिखा रहा होता।

  (आलेख प्रस्तुत करता जिला भारतीय जनता पार्टी शहडोल के प्रवक्ता है)


युवा सांसद विधायक मौन क्यों...? कैलाश तिवारी

 वरिष्ठों ने अंततः बेखौफ बोला-

संभाग,जनप्रतिनिधि मौन क्यों..? ऑक्सीजन लाने के मामले में ? कैलाश तिवारी

वैकल्पिक संसाधनों का क्यों नहीं हो रहा उपयोग: आजाद बहादुर

 शहडोल । हर जिले में रिमोट कंट्रोल की तरह काम करने वाला भारतीय जनता पार्टी का संगठन


मंत्री है जिसकी उंगलियों पर पूर्ण प्रबंधन चला करता था। अथवा संभाग में युवा नेताओं की भरमार होने के बाद भी जैसे सब अज्ञानता के अंधेरे में अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़े बैठे हैं। इस माहौल पर आशा की किरण बनकर भारतीय जनता पार्टी से  वरिष्ठ नेता कैलाश तिवारी ने संभाग के मंत्री सांसद एवं विधायकों से पूछा है कि वह शहडोल संभाग के शहडोल मेडिकल कॉलेज सहित चिकित्सालयों में ऑक्सीजन उपलब्धता की कमी पर मौन क्यों है  ?
 

वरिष्ठ नेता श्री तिवारी ने कहा हर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अपने अपने जिले के लिए भरसक प्रयास करके ऑक्सीजन टैंकर एवं सिलेंडरों की आपूर्ति कराने में लगे हुए हैं ताकि उनके क्षेत्र की जनता को लगातार प्राणवायु मिलती रहे ।लेकिन शहडोल संभाग में बड़ी घटना होने के बाद भी जिसमें 10 से ज्यादा मौतें भी हो गई थी और उसके बाद भी लगातार ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है। जनप्रतिनिधि इस मामले में मौन है ...?

स्थानीय सांसद और विधायक को को सलाह देते हुए उन्होंने कहा उन्हें इस मामले को मुख्यमंत्री जी के समक्ष तक ले जाना चाहिए तथा जिले के औद्योगिक घराने रिलायंस, ओरिएंट पेपर मिल, कोल माइंस आदि के माध्यम से ऑक्सीजन टैंकर एवं सिलेंडरों की व्यवस्था का प्रयास करना चाहिए था।

         भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश तिवारी ने कहा है की कमिश्नर एवं कलेक्टर ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए दिन रात लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों का मौन जनता को सोचने पर विवश कर रहा है कि इतनी कठोरता क्यों  ? क्या उनका कोई दायित्व नहीं है जनता को वह यूं ही छोड़ देंगे...?  रायगढ़ के टैंकर जब भोपाल दिल्ली जा सकते हैं तो शहडोल मैं क्यों नहीं...? कोई दूरी भी नहीं है  लेकिन राजनीतिक पहल ना होने के कारण जिले की जनता असहाय सी दिख रही है। भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन जब तक मुखिया    को जनप्रतिनिधि बताएंगे नहीं तो वहां पर कैसे पता चलेगा की शहडोल की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है...?

 अभी भी वक्त है कि जनप्रतिनिधि  अपने दायित्व के प्रति सजग होकर सक्रिय हो जाए।तथा  जनता को अकाल मौत होने से बचा लिया जाए.। 

इतना ही नहीं जिला कांग्रेस अध्यक्ष शहडोल


आजाद बहादुर ने आश्चर्य प्रकट किया है की तेजी से बढ़ रहे कोरोनावायरस की रफ्तार को देखकर वैकल्पिक अस्पतालों चाहे वह रेलवे का हॉस्पिटल हो अथवा मिशन अस्पताल या फिर आयुर्वेद अस्पताल इन पर ताला आखिर क्यों चढ़ा हुआ है...? क्या जिला प्रशासन अपनी क्षमता का उपयोग करके उपलब्ध संसाधनों का उपयोग महामारी को नियंत्रित करने के लिए नहीं कर सकता..? किंतु प्रशासन में और शासन में बैठे हुए लोग अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग महामारी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए नहीं करते बल्कि देखा यह गया है कि आज भी इस ध्यान रख महामारी में एक दूसरे का पैर खींचने एक दूसरे को नीचा दिखाने और चाटुकारिता पर विश्वास कर रहे हैं। होना यह चाहिए की खुली बहस करके जो स्वस्थ निष्कर्ष निकलकर आवे उसमें नीतिगत सिद्धांत बनाकर सबको इस दिशा में कैसे अमल करना है उस पर काम करना चाहिए।

 और सच बात भी यह है की युवा नेतृत्व होने के बावजूद जैसे वह अपने घर में सोया हुआ हो उनकी तरफ से कोई बड़ी पहल होती नहीं दिखाई दे रही है। और यही कारण है कि वरिष्ठ नेताओं को परंपरागत स्थितियों से निकलकर जनता के हित में महामारी से निवारण का रास्ता तय करना पड़ रहा है। आशा करनी चाहिए कि प्रशासन शासन और जागरूक लोगों का तालमेल से एक ऐसा समन्वय दीक्षित हो जिसस एक भी व्यक्ति जो बीमारी से प्रभावित है वह बिना मांगे ही सभी सुविधाओं को प्राप्त कर सके देखा गया है की आपदा प्रबंधन में भी प्राइवेट अस्पताल वाले जैसे उनके अच्छे दिन आ गए हैं उन्होंने अभी तक अपनी भारी भरकम अस्पताल के बिलों को विशेषकर को भी प्रभावित मेडिकल बिलों को कम नहीं कर रहे हैं अगर वे कम नहीं कर रहे हैं तो आपदा प्रबंधन में क्या जिला प्रशासन को कोई अधिकार नहीं है या फिर वह मूक बधिर होकर प्राइवेट अस्पताल वालों को प्रोत्साहित कर रहा है....?



रविवार, 25 अप्रैल 2021

शहडोल क्षेत्र में होगी 12000 सक्रिय मरीज .. (त्रिलोकीनाथ)

 शहडोल क्षेत्र में होंगे 4 गुना यानी 12000 से ज्यादा सक्रिय मरीज ....

 काश यह झूठा साबित हो....


आमीन...।

 क्या हम हैं तैयार....?

(त्रिलोकीनाथ)

तब साहब नए-नए सत्ता में आए थे, नशा भी सातमें आसमान पर था। कांग्रेस मुक्त राष्ट्र ही नहीं, उन्हें विरोधी प्रेस मुक्त राष्ट्र भी चाहिए था। शो एनडीटीवी ग्रुप के ऊपर छापे डलवा दिया, तब सन्नाटे को चीरता हुआ उनके सांसद और विद्वान राजनीतिक सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा "डर कर रहना चाहिए.." हालांकि यह बात उन्होंने विनोद में कही थी किंतु वर्तमान में "कोरोना भाईसाहब" के हालात जो कहर बरपा रहे हैं उससे इनकी बात जरूर सही साबित होती है कि "डरना बहुत जरूरी है...."

 कोरोनावायरस के उफान का पीक टाइम सामने आया


जो मध्य-मई में यह अपने चरम उफान पर होगा, ऐसा अनुमान है। फिर उतार में भी आएगा। तब तक हमें कोरोना रफ्तार- रास्तों  से बचना होगा। उसके रास्ते में बिल्कुल नहीं आना होगा। क्योंकि रफ्तार दिन प्रतिदिन तेज होती चली जाएगी। 

बीते रविवार 11 अप्रैल को जो आंकड़े उपलब्ध थे वह कुछ इस प्रकार के हैं


 देश और दुनिया के और शहडोल क्षेत्र के भी।

 तो शहडोल क्षेत्र को जिसमें टुकड़े टुकड़े में बटा उमरिया और अनूपपुर तथा जिला शामिल है


वह पूरे प्रदेश में करीब साढ़े तीन
  हजार संक्रमित मरीजों
के साथ प्रदेश के पांचवें स्थान पर बना हुआ है।
 तो बुरी खबरों के साथ इसका विश्लेषण करना ही चाहिए।

 


तो अब वर्तमान में 15 दिन पश्चात शहडोल की क्या हालात हैं उसे भी देखिए


आंकड़ों को अपनी छोटी समझ से समझना चाहे तो आंकड़े स्पष्ट करते हैं की 11 अप्रैल की तुलना में दोगुना, कंफर्म की,4 गुना सक्रिय प्रकरणों की वृद्धि हुई है। बीते 15 दिवस में और आगामी 15 दिन बाद जो चरम का प्रारंभ होने वाला है क्या उसके लिए हम तैयार हैं...?

इस आधार पर जो कोरोना की रफ्तार है आज की तुलना में हम आगामी 15 दिवस बाद कम से कम सोच में रखें तो शहडोल क्षेत्र में 26000 कंफर्म  संक्रमित व्यक्तियों का तथा एक्टिव संक्रमित व्यक्तियों का आंकड़ा 4 गुना याने 12000 को पार करने वाला है।  सोचिए और समझ  के साथ तैयार रहिए... क्योंकि प्रशासन कि अपनी उपलब्ध क्षमता व सीमा है और यह हमें डराने के लिए इसलिए भी पर्याप्त है और डर जाने के लिए भी, कि अगर आज 3000 के आसपास सक्रिय संक्रमित आंकड़े में पूरी चिकित्सा व्यवस्था की सांस फूलती  नजर आ रही है तो 12000 में क्या वह कुछ कर पाएगी....? जब पीक टाइम के इर्द-गिर्द मेरे काल्पनिक और मिथक आंकड़े, धोखे से भी अगर सच साबित होने लगेंगे...।

 वैसे भी आदिवासी क्षेत्र होने के कारण यहां का पिछड़ापन संपूर्ण प्रबंधन को लकवा ग्रस्त कर देता है। भगवान भरोसे चलने वाली लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली हमें कब तक जिंदा रह पाएगी.... इसलिए डरना बहुत जरूरी है..।

 अगर प्रशासन डराने में असफल है तो आप स्वअनुशासन से जितना डर सकते हैं डर कर सतर्क रहिए.... कि आपका स्वास्थ्य जरा भी खराब ना होने पाए और इसी प्रकार पूरे परिवार को डरा कर रखिए... क्योंकि यही डर हमें भगवान भरोसे चिकित्सा प्रणाली में कोरोना से बचा पाएगा।

 चिकित्सा जगत अपनी संपूर्ण ताकत भी लगा देगा तो उसे अपनी सीमा में  ही काम करना होगा और फिलहाल आज के हालात में सीमा का अनुमान लगाना सहज है।

यह कहना/ सोचना भी अब मूर्खतापूर्ण होगा कि जो भारत का होगा वह हमारा भी हो जाएगा....? अब हम "उल्टे बांस बरेली को.." चल रहे हैं, जो शहडोल में होता है वह दिल्ली में हो रहा है.... यह शाश्वत सत्य भी है।

 वह ऐसे, कि सबसे बुरी खबर यह कि शहडोल मेडिकल कॉलेज में उस रात जब ऑक्सीजन का लेवल कम हो गया, क्योंकि ऑक्सीजन की प्रॉपर सप्लाई नहीं थी करीब 16 लोग मृत हो गए, जिन्हें पूरी ताकत लगाकर प्रशासन और शासन ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत मानने से इनकार कर दिया। क्योंकि यह देश की पहली घटना थी। इसके बाद प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी और अब देश की राजधानी दिल्ली में भी ऑक्सीजन का लेवल कम होने से 25 लोगों की मौत की खबर चीख-चीख कर, चिल्ला-चिल्ला कर और मेडिकल इंस्टिट्यूट के कर्ताधर्ता रो-रो कर बता रहे हैं। और और प्रोपेगंडा-इंडस्ट्री पर विश्वास करने


वाले नेता, शासन-प्रशासन भी स्वीकार कर रहे हैं कि हां दिल्ली में ऐसा हो गया।

 तो शहडोल में क्यों नहीं हुआ था..?  क्योंकि  शहडोल में नेता,शासन और प्रशासन  के साथ न सिर्फ झूठ बोलता है बल्कि वह उसे चीख और चिल्ला कर सच बनाने का काम भी करता है। और यह  बात हर मामले में होती है। क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र है ।दमन... शोषण और माफियागिरी यहां की नियत बन चुकी है। उन्हें मालूम है कि कहीं कोई सुनवाई नहीं है। क्योंकि जिन्हें सुनना है वह तो शहडोल को गोद लेकर बैठने की घोषणा कर दी हैं। ताकि आप आसमानी दुनिया में मरने का गर्व कर सकें।

 तो वक्त उलाहना देने का भी नहीं रह गया। इंदौर एक लाख के आंकड़े को पार कर गया है 1100 से  आदमी मर गए हैंकिंतु निवेदन करने का जरूर रह गया है की हालात के मद्देनजर आदिवासी क्षेत्रशहडोल को ही अपनी प्रजा मानकरऔर उन पर दया करके सच बोलिए। क्योंकि वह आपका कुछ भी नहीं कर सकते। अनुभव में यही हुआ है किंतु सच बोलने से एक फायदा होने वाला है कि वह प्रधानमंत्री के "आत्मनिर्भर सिद्धांत" पर अपना जीवन बचा सकते हैं, अगर संभावना जीवित है......? क्योंकि वह किसी झूठी आशा पर विश्वास करना छोड़ देंगे।

और यह सुखद है कि मेडिकल कॉलेज में सच को स्वीकार कर लिया उन्होंने बोर्ड लगा दिया की व्यवस्थाएं "नो एडमिशन की हैं" ।


तब और क्या कर सकते हैं इस पर विचार होना चाहिए। शहडोल कलेक्टर महोदय ने सभी ऑक्सीजन सिलेंडर को उच्च निर्देशों के पालन में मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर के रूप में परिवर्तित करने का आदेश पारित किया है। जो बहुत उचित है किंतु अगर वर्तमान समय कोरोना का चरम नहीं है जो मध्य-मई में विशेषज्ञों के अनुसार आएगा। तब तक हालात बहुत बिगड़ जाएंगे।

 इन हालातों में आपदा प्रबंधन के लिए पिछले 15 दिनों के रफ्तार के हिसाब से क्यों तैयारियां नहीं होनी चाहिए....? जब प्राइवेट हॉस्पिटल के बिस्तर कोविड-19 हेतु आरक्षित किए जा रहे हैं तो फिर जिले का सबसे पुराना रमाबाई अस्पताल सभी सुविधाओं से युक्त होने के बाद भी मूर्खतापूर्ण तर्कों के बीच में क्यों गिरवी रखा पड़ा है ....?

 इस पर तत्काल न्यायपालिका कार्यपालिका अथवा विधायिका के बीच में समन्वय बनाते हुए महामारी के दौर में क्यों नहीं खोला जाना चाहिए...? यह बड़ा प्रश्न है।

 वह इसलिए क्योंकि सच बहुत तेजी से सामने आ गया है। कि सभी मेडिकल सुविधाएं आदिवासी क्षेत्र में आपदा को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है। जो आंकड़े दिखाएं भी जा रहे हैं उन पर विश्वास भी नहीं होता। फिर भी उन्हें ही विश्वास करके भयानक सपना खड़ा हो रहा है।

 इसी तरह प्रतिदिन कहां किस अस्पताल में कितनी बिस्तर की क्या हालात हैं... सार्वजनिक तौर पर अथवा वॉलिंटियर्स नियुक्त करके, जन अभियान परिषद के सैकड़ों एनजीओ के हजारों सदस्यों को प्रशिक्षण देकर  इसी तरह अन्य उचित संगठनों से परामर्श करके मरीज को प्राथमिक उपचार मौका स्थल पर ही देने के प्रयास क्यों नहीं करने चाहिए...? ताकि अस्पतालों पर अनावश्यक दबाव न बढ़ सके। डॉक्टर पूर्ण आत्मविश्वास हुआ स्थिरता से गंभीर मरीजों को देख सकें ....,प्राथमिक संकेत होने पर ही उसे रोका जा सके। अति गंभीर मरीज ही हॉस्पिटलों तक पहुंच पाए। आदि-आदि तरीके से सतर्कता बहुत जरूरी है। जो फिलहाल होती नहीं दिख रही है..? अब तो मुख्यमंत्री का फोटो लगा काढ़ा भी नहीं दिख रहा है।

जिलो के कोविड-19 प्रभारी मंत्री का अपडेट भी रोज नहीं आ रहा है। उनके निकटवर्ती लोगों का सहयोग आम आदमियों को सुनिश्चित तरीके से इस महामारी के निदान में कैसे मिले यह भी सुनिश्चित होना चाहिए। आर एस एस के संगठन या भाजपा के सर्वाधिक सदस्यों वाले संगठन अथवा कांग्रेसी या अन्य दलों के संगठन का लाभ  भी टुकड़े-टुकड़े रूप में इस आपदा प्रबंधन में उनकी सेवाएं क्यों नहीं लिया जाना चाहिए...? क्या यह सब हो हल्ला मचाने के लिए और झंडा गिरी करने के लिए ही पैदा हुए थे.....?

 भलाई देश में मेडिकल इमरजेंसी घोषित ना हुई हो किंतु हालात मेडिकल इमरजेंसी के स्तर पर ही दिख रहे हैं।

 यदि शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में बना दिए गए और सुविधाएं मिलने लगी तो निश्चित मानिए कि आप मॉडल के रूप में उभर कर आएंगे.. देश के लिए और प्रदेश के लिए भी।

 क्योंकि अगर यही चुनौती है यही एकमात्र अवसर भी है, ऐसा प्रधानमंत्री जी ने भी कहा था। तो देखते चलिए शुभकामनाएं ईश्वर ना करें मेरे कोई भी अनुमान के आंकड़े सही हो.. इस मामले में मूर्ख साबित रहूं इस पर मुझे गर्व रहेगा।

 और इसीलिए मैं तो डर ही रहा हूं हर व्यक्ति को डर कर रहना सीखना होगा.. क्योंकि यही डर हमें जिंदा बचा पाएगी। क्योंकि अब लोकतंत्र में साबित होने वाला है कि जनता ही जनार्दन है। कोई भगवान नहीं आने वाला..., "अहम् ब्रह्मास्मि..." समझ कर जिम्मेवारी का निर्वहन करिए.. यही दैत्यराज कोरोनावायरस कोविड-19 भाईसाहब के साथ युद्ध की घोषणा होनी चाहिए। और हम ब्रह्मअंश होने के कारण जीतेंगे, यह तय है। किंतु लड़ाई एक ही है.... "एकांत में रहे ,देहांत से बचें.. बस कम से कम 25 दिन। "सेल्फ -लॉकडाउन" की घोषणा आपको जीवनदान दे सकती है।



शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

आदिवासी क्षेत्र, न्याय की दरकार में दफन है मेडिकल ट्रस्ट...?( त्रिलोकीनाथ)

 उच्चतम न्यायालय  कहा


इमरजेंसी के हालात.... 

3 से 333000 हुआ एक दिन कोरोना संक्रमित व्यक्तियों रिकॉर्ड इजाफा।

आदिवासी क्षेत्र, न्याय की दरकार में दफन है मेडिकल ट्रस्ट...?

(त्रिलोकीनाथ)

पिछले साल तीन संक्रमित मरीजों की संख्या लेकर पहली सूचना के बाद खबर आई कि आज भारत में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की 1 दिन में करीब 3 लाख 33 हजार रिकॉर्ड इजाफा हुआ है ।इन हालातों में तैयारियां कितनी मुकम्मल है इस पर सब चिंतित हैं। चिंता शहडोल जैसे आदिवासी जिलों की भी है। क्यों की जब उच्च न्यायालय अपने संवेदना को प्रकट करने के लिए आदेश पारित करता है कि कार के अंदर बैठा हुआ व्यक्ति को भी मास्क लगाना होगा तो अब उच्चतम न्यायालय यह कहने में भी संकोच नहीं कर रहा है कि हालात इमरजेंसी के हैं, तो महसूस होता है की न्यायपालिका लगातार चिंतन मनन और मंथन कर रही है वह चुपचाप नहीं बैठी।

 किंतु यदि उच्चस्तरीय न्यायालय को खुद देख समझकर जिला स्तर के न्यायालय कोविड-19 से संबंधित विषयसामग्री चिकित्सा सर्वोच्च विषय को अपने फाइलों के कूड़ेदान से निकालकर झटकार कर आम जनमानस के लिए समर्पित नहीं करती है तब प्रश्न तो खड़े ही होते हैं...?

शहडोल क्षेत्र के गरीब मरीजों को महंगे ऑपरेशन एवं डायलिसिस जैसी महंगी सुविधाएं अत्यंत न्यूनतम दरों पर अथवा निशुल्क चिकित्सा उपलब्ध कराने वाला संभाग का एकमात्र चैरिटेबल अस्पताल रमाबाई मेमोरियल लाइफलाइन क्रिश्चियन अस्पताल अपने विवादों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत खोले जाने का आदेश होने के बाद भी आज महज एक न्याय का मोहताज है जबकि मेरे संज्ञान में अस्पताल सारी आवश्यक सुविधाओं से युक्त है जैसे  कि सभी बिस्तर पर ऑक्सीजन के सेंट्रललाइन व्यवस्था, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर एवं वेंटिलेटर की सौगात से युक्त है। लेकिन न्याय की आशा में लंबित रहने के कारण लाखों करोड़ों की मशीनें व्यर्थ ही सरकारी कूड़ेदान का हिस्सा वन रही हैं और इस अंतरराष्ट्रीय महामारी आपदा के दौर में जिले के कुछ मरीजों को जो शायद इस अस्पताल से लाभ प्राप्त कर सकते थे वह इस लाभ को प्राप्त करने से वंचित हो रहे हैं

 वह भी भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल जिले के मुख्यालय में कोई बड़ा चिकित्सा संस्थान इस कोविड-19 महामारी के दौर में इस बात के लिए बंद है कि संबंधित न्यायाधीश के पास वक्त नहीं है... अथवा वे न्याय की एक हस्ताक्षर करने के लिए फुर्सत नहीं पा रहे हैं... जिस कारण हजारों मरीजों को चिकित्सा सुविधा से मोहताज होना पड़े ।ऐसी न्यायपालिका की व्यवस्था क्या उच्चस्तरीय न्यायिक प्रशासनिक मंसा की की अवमानना करते नहीं दिखाई देते... जिनकी मंशा न्याय के साथ संवेदना का त्वरित निराकरण हो सके..? जी हां जिला न्यायालय शहडोल में शहडोल नगर के जिला चिकित्सालय के बाद अथवा उसके समकक्ष सबसे बड़े चिकित्सा सेवा के ट्रस्ट को बिचौलियों दलालों और अफसरशाही की भेंट में चढ़ता देखा जा रहा है जबकि उक्त चिकित्सा संस्था में संपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर इस बात का उपलब्ध है... । कम से कम कोविड-19 बंधित मरीजों के लिए वह सहज सेवा कर सकता है।

 बावजूद इसके पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चिकित्सा सेवा का लोकतंत्र की भूल भुलैया में कूड़ेदान का समान बनकर रह गया है। इतना तो तय है की कभी जिला चिकित्सालय के समकक्ष माने जाने वाली चिकित्सा सेवा ट्रस्ट की सेवाएं इसलिए अवरुद्ध हो गए हैं क्योंकि प्रशासन की संवेदना मरीजों के साथ सिर्फ फाइलों के इर्द-गिर्द होती दिखाई देने लगी अब जबकि संभाग आयुक्त राजीव शर्मा ने संवेदना अभियान की शुरुआत कर ही दी है तो उनके संवेदना अभियान मैं अपनी संवेदना का प्रेषण करते हुए यथा उचित माध्यम से जिला न्यायालय को कम से कम उन फाइलों को धूल-धक्कड़ से झटकार कर पेशी-गिरी से निकालकर तत्काल निर्णय देने का काम करना चाहिए। जिनका संबंध किसी भी चिकित्सा संस्थान और यदि वह संभाग स्तर का कोई बड़ा संस्थान है तो उसे सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए विवादित प्रकरण को तत्काल निराकरण करना चाहिए। ताकि संस्थान 1 हफ्ते के अंदर तैयार होकर हजारों मरीजों के लिए वरदान साबित हो सके।

 और जिससे यह आरोप स्थापित ना हो सके कि भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित आदिवासी विशेष क्षेत्र में न्यायपालिका की अक्षमता के कारण कोविड-19 से बचाए जा सकने वाले मरीज इसलिए पीड़ादायक परिस्थितियों और मृत्यु को ढेर चल गए क्योंकि शहडोल जिला न्यायपालिका ने अपनी भूमिका प्रस्तुत नहीं की। क्योंकि सब जानते हैं की कि बड़ी संस्थान को न्यायपालिका में किसी दलित व्यक्ति की तरह है पेसी दर पेसी भटक कर तिल-तिल मरना पड़ रहा है।

 इसलिए अपने अनुभव के संज्ञान सेचैरिटेबल अस्पताल रमाबाई मेमोरियल लाइफलाइन क्रिश्चियन अस्पताल अथवा न्यायालय की अपनी खोजबीन में चिकित्सा सेवा से जुड़े किसी भी बड़ी संस्था के न्याय को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए ताकि आपातकाल इस महामारी में न्याय की मंसा प्रभावित ना हो सके। इस बात का जवाब अवश्य न्यायपालिका के संबंधित पक्षों को सतर्कता व जागरूकता के साथ सुनिश्चित ही करना चाहिए कि यदि पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चिकित्सा के तत्पर है तो फिर न्यायपालिका के एकमात्र हस्ताक्षर से वह क्यों बाधक बना हुआ है....? क्योंकि न्याय जो भी होगा उसका सीधा लाभ मरीजों को मिलने वाला है और कोविड-19  महामारी भी अगर इतनी सी भी जागरूकता प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए जन्म नहीं लेती है तब यह न्याय संवेदनहीन न्याय का प्रतीक होकर रह जाएगा। किंतु उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय की मंशा फिलहाल तो ऐसी दिखाई नहीं पड़ती फिर चूक कहां है...




कलेक्टर शहडोल के आपातकालीन आदेश

 

आपदा प्रबंधन के आपातकालीनआदेश


कोविड संक्रमण के प्रसार के मद्देनजर  जिले में संचालित समस्त औद्योगिक ऑक्सीजन सिलेंडर को मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर में परिवर्तित के संबंध में आदेश जारी

शहडोल 23 अप्रैल 21 ।कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट डॉ सत्येंद्र सिंह ने जिले में कोरोनावायरस संक्रमण के प्रसार को देखते हुए संक्रमण की रोकथाम एवं उपचार हेतु पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन विस्फोटक विभाग भारत भारत सरकार के निर्देशों के पालन में तथा 

मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ अधिनियम 1949, महामारी रोगअधिनियम 1984 तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों का प्रयोग करते हुए शहडोल जिले में संचालित समस्त औद्योगिक ओरिएंट पेपर मिल, कास्टिक सोडा फैक्ट्री, केमिकल फैक्ट्री, एसईसीएल सोहागपुर, सीबीएम प्रोजेक्ट, अल्ट्रा ट्रैक आदि तथा स्टोन क्रेशर, समस्त वेल्डिंग वर्कशॉप तथा अन्य ऐसे औद्योगिक संस्थान जिनके पास  औद्योगिक सिलेंडर उपलब्ध है। उन समस्त प्रबंधन को औद्योगिक सिलेंडर को मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर में परिवर्तित कर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को तत्काल सौपे जाने का आदेश जारी किया है । कलेक्टर ने शहडोल जिले के समस्त अनुविभागीय अधिकारी राजस्व उपखंड मजिस्ट्रेट को निर्देशित किया है अपने अपने संबंधित क्षेत्रों में सभी औद्योगिक सिलेंडरों को मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर में परिवर्तित कराकर  मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी शहडोल को तत्काल सुपुर्द करने के लिए कहा।




बुधवार, 21 अप्रैल 2021

समय की मांग खुले, रामाबाई अस्पताल यानी मिशन हॉस्पिटल (सुशील शर्मा विशेष आलेख )

 संवेदना अभियान का हिस्सा क्यों नहीं बन रहा है...


समय की मांग खुले, रामाबाई अस्पताल यानी मिशन हॉस्पिटल (सुशील शर्मा विशेष आलेख ) 

आज के जनसत्ता में जो हेडिंग है वह बताती है कि भारत में कोरोना की रफ्तार सातवें आसमान पर है और यह तो बस शुरुआत है...? कहां जाएगी कहा नहीं जा सकता।



 शहडोल क्षेत्र में भी जो विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र है कोरोना रफ्तार भयभीत करने वाली है किंतु प्रशासन जिस प्रकार से निजी अस्पतालों में लगातार निगरानी बनाए हुए हैं और उनकी मदद ले रहा है उसके साथ समन्वय बनाकर जो प्रयास किए जा रहे हैं वह सराहनीय भी है। मेडिकल कॉलेज की जो भी दुर्घटना हुई वह अपनी जगह है और उसमें यदि कोई जांच होनी होती है तो स्वागत होगा।

 किंतु इस भीषण आपदा के संकट में भी शहडोल जिले में जिला अस्पताल की हैसियत रखने वाला समकक्ष रमाबाई अस्पताल जिसे मिशन अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है उसमें पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर भी है इसके बावजूद भी उसे किन्ही कानूनी विपत्तियों से निकालकर आम मरीजों के लिए अभी तक नहीं खोला जाना आश्चर्यजनक है। बेहतर होता कि इतनी बड़ी चिकित्सा सेवा की संस्थान को उसे दुरुस्त करके आम जनता के लिए खास तौर से कोविड-19 ओं के लिए क्यों नहीं खोला गया। जितनी भी सोशल डिस्टेंसिंग की अथवा इंफ्रासक्चर की गैस सिलेंडर की उपलब्ध मित्रों की आवश्यकता अनुरूप उपलब्धि है। आखिर वह क्यों ठंडे बस्ते में दफन करके रखा गया है जबकि उसके कर्ता-धर्ता लगातार इस प्रयास में रहे कि यह आम जनता के लिए तत्काल खुल जाए। फिर भी यदि कहीं कोई तकनीकी समस्या है तो जिला प्रशासन को तत्काल आपदा प्रबंधन के तहत इस जिला स्तरीय सर्वोच्च इंफ्रास्ट्रक्चर वाली अस्पताल को मरीजों के लिए चुस्त-दुरुस्त करा कर खोल दिया जाना चाहिए ताकि जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज पर पड़ने वाला दबाब कुछ कम हो सके। अब जबकि शहडोल संभाग के आयुक्त राजीव शर्मा संवेदना अभियान के तहत हर मुमकिन प्रयास मरीजों के हित में करते दिखाई दे रहे हैं तो बेहतर होता की कभी लोकप्रिय रहा रामा बाई अस्पताल याने मिशन हॉस्पिटल को तत्काल मरीजों के हित में खोल दिया जाए।



सोमवार, 19 अप्रैल 2021

शहडोल मेडिकल काॅलेज वर्ल्ड क्लास तक ले जाएगे।।आयुक्त

 संवेदना से मरीजों को मिलेगा संबल

शहडोल मेडिकल काॅलेज

वर्ल्ड क्लास तक ले जाएगे। 

चिकित्सक समन्वय से कार्य कर कोरोना


मरीजो को जीवन दें- कमिश्नर

संवेदना अभियान शुभारंभ

शहडोल 19 अप्रैल 2021- मेडिकल कॉलेज में एक ही रात में कई मरीजों की मौत होने के बाद मरीजों और डॉक्टरों का मनोबल बढ़ाने के लिए आज कमिश्नर ने कमान संभाली। कमिश्नर राजीव शर्मा ने कहा है कि, कोरोना युद्व में चिकित्सक समन्वय बनाकर एवं समर्पित होकर कार्य कर कोरोना मरीजो को जीवन दें। उन्होने  कहा  चिकित्सको और प्रशासन का समर्पण लोगो के जीवन को सुरक्षित बनाएगा।  कहा कि, हेल्थ मशीनरी  किन परिस्थितियों में कार्य कर रही है यह सभी को मालूम है।  कहा कि, चिकित्सक कोरोना मरीजों से शालीन रहकर बेहतर संवाद करे, बेहतर कार्य कर मरीजो के जीवन की सुरक्षा करें। कमिश्नर शहडोल संभाग  राजीव शर्मा आज मेडिकल काॅलेज शहडोल में संवेदना अभियान के तहत मेडिकल काॅलेज के चिकित्सको को सम्बोधित कर रहे थे।  कमिश्नर ने कहा कि, महामारी काल में मरीजो को किस प्रकार हेंडल किया जाता है इसका तरीका सभी चिकित्सको को होना चाहिए। उन्होने कहा कि महामारी को एक आदमी डील नही कर सकता यह टीम वर्क है, टीम जब बनती है जब हम एक दूसरे के प्रति दोस्ती का हाथ बढाते है।

आपसे दोस्ती का हाथ बढाने आया हूं 



 कमिश्नर ने कहा कि आज मैं आपसे दोस्ती का हाथ बढाने आया हूं और कोरोना काल के इस संघर्ष में, मै भी आपका सहयोगी हूं। कमिश्नर ने कहा कि गांव की आषा कार्यकर्ता और आगनवाड़ी कार्यकर्ताओ का भी कोरोना के इस युद्व में महत्वपूर्ण योगदान है उनके बगैर यह युद्व नही लडा जा सकता है। कमिश्नर ने कहा कि, हम सभी को मिलकर निरंतर काम करना है स्वास्थ्य सेवाओ को बेहतर से बेहतर बनाना है। कमिश्नर ने चिकित्सको को सम्बोधित करते हुए कहा कि, कोरोना काल में आगे क्या होगा इसकी कोई गांरटी नही दे सकता हमें आगे की अच्छी प्लानिंग करके चलना चाहिए।

 उन्होने कहा कि, कोरोना काल में चिकित्सको ने जो सेवाएं दी है उसके लिए अभिनंदन , किन्तु कोरोना महामारी की चुनौती के लिए हमें और अधिक संघर्षशील, कर्मठ और जबावदेह होकर कार्य करना होगा। उन्होने कहा कि, सभी चिकित्सको का मनोबल अच्छा होना चाहिए ,अभी तक जो काम किया है अच्छा कार्य किया है, सपोर्ट और संसाधन मिल जाए तो आप और अधिक अच्छा कार्य कर सकते है।

मरीजो को ईश्वर मानकर उनकी सेवा करे, आत्म संतुष्टि मिलेगी

कमिश्नर ने कहा कि कोरोना के युद्व में शासन ,प्रशासन आपके साथ है जो भी समस्या है मुझे बताए मैं समस्या का समाधान करूगां।  कमिश्नर ने कहा कि चिकित्सक शालीन रहे मरीजो के साथ शालीन और अच्छा व्यवहार करे और मरीजो को ईश्वर मानकर उनकी सेवा करे, आत्म संतुष्टि मिलेगी। कमिश्नर ने कहा कि जो मरीजो आपके पास ईलाज कराने आ रहे है वे ईश्वर तुल्य है, जो सुविधाएं आपको मिल रही है ये सुविधाएं गरीबो और दीन-दुखियो की सेवा के लिए मिल रही है।

 कमिश्नर ने कहा कि, शहडोल मेडिकल काॅलेज की स्वास्थ्य सेवाओ को वह वर्ल्ड क्लास तक ले जाएगे इसके लिए संसाधन जुटाएं जाएगे। कमिश्नर ने कहा कि, इस के लिए सभी चिकित्सको का बेस्ट फारमेंस चाहिए। कमिश्नर ने कहा कि, मेरे प्रयास शहडोल मेडिकल काॅलेज में होटलो जैसी सुविधाओ का विस्तार करना है, मरीजो को मेडिकल काॅलेज में होटलो की अनूभूति हो इसके प्रयास किये जा रहे है।


 उन्होने कहा कि शहडोल मेडिकल काॅलेज की व्यवस्थाओ में सुधार एवं इसके सौंदर्यीकरण के लिए आज से संवेदना अभियान की शुरूआत हो चुकी है। कमिश्नर ने कहा कि संवेदना अभियान मे आपकी सक्रिय भागीदारी की अपेक्षा है।



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रविवार, 18 अप्रैल 2021

ना रहेगी बांस.., ना बजेगी बांसुरी... (त्रिलोकीनाथ)

 प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम

मेडिकल की लाशों पर,  सल्तनत का सपना...

ना रहेगी बांस., 


ना बजेगी बांसुरी...

बिसाहूलाल तुम संघर्ष करो..,

हम तुम्हारे साथ हैं....

(त्रिलोकीनाथ)

कोरोना भाईसाहब अपना काम ही तो कर रहे हैं इसलिए शासन द्वारा सुनिश्चित दौरे में कटौती करके अपना निजी काम करने के लिए शहडोल के कोविड-19 प्रभारी मंत्री बिसाहू लाल जी शासकीय दौरे छोड़ कर चले गए ।

जब हल्ला मचा तो रात को मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन के सपने में आए और कहा ऑक्सीजन का लेवल कम हो रहा है देखना कहीं कोई मरीज मर ना जाए... क्योंकि शहडोल मेडिकल कॉलेज में मध्यप्रदेश के सर्वाधिक पांचवी प्रभावित क्षेत्र का दबाव है।

 जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रबंधन ने बड़े साहब को ब्रह्ममुहूर्त में टेंशन रिलीज करते हुए फोन किया ,कि भर्ती मरीजों की सप्लाई ऑक्सीजन लेबल कम हो रहा है इसलिए व्यवस्था जरूरी है। सजगता और सतर्कता के तहत अंततः पाया गया की ऑक्सीजन सप्लायर सेंटर जैतहरी से कई सिलेंडर ऑक्सीजन के आने चाहिए, क्योंकि गंभीरता की स्थिति का सपना है। इसलिए दमोह से भी एक ट्रक में सिलेंडर चल रहा है और इमरजेंसी में शहडोल मेडिकल कॉलेज के 3 दिनों के प्रबंधन वाले जिला अस्पताल में भी कुछ सिलेंडर रहते हैं, इसलिए तत्काल वहां से मेडिकल कॉलेज के मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराए जाएं।

 कई सिलेंडर एहतियात के तौर पर मेडिकल कॉलेज में खुद भी रहते हैं ,तो अकूत सिलेंडर का भंडार उपलब्ध है। इसलिए तय यह हुआ कि पूरा तर्क है की मरीज अपनी मौत, भगवान भरोसे मौत और सीरियस पेशेंट होने की मौत तो मर सकते हैं किंतु ऑक्सीजन लेवल की कमी होने के कारण उन्हें नहीं मरने दिया जाएगा ....। 


ऐसा औपचारिक घोषणा में दिखाने वाला सत्य दिखाया जाए। क्योंकि पहली बार जब कोविड-19 कोरोना भाईसाहब के देखभाल के लिए शहडोल जिले के प्रभारी मंत्री के रूप में अपने बिसाहूलाल का भव्य शहडोल आगमन हुआ और उन्होंने मेडिकल कॉलेज या जिला अस्पताल से जिला मुख्यालय में ही बैठकर पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर लिया की "ऑल इज वेल "


तो फिर अनावश्यक समय नष्ट करने की वजाय शहडोल में होने वाली निजी आवासीय प्रयोजन को क्यों ना "ढाई घंटा "दे दिया जाए। इसलिए शासकीय दौरे में कटौती करके जो गलती की गई थी उसकी भरपाई मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी से मरने वाले या प्रबंधन की अभाव...

 जैसे बीते 1 साल से स्टाफ की कमी का रोना रोने वाले मेडिकल कॉलेज के डीन की बातों को मानते हुए क्यों अनावश्यक कोविड-19 के लिए समय दिया जाए ....आखिर, हर आदमी का अपना निजी परिवार और मकान भी तो होता है... ऐसे में यदि कोई ऑक्सीजन लेवल के कम होने से मरता है तो उससे बड़ा झूठ विपक्षी पार्टी बोल ही नहीं सकती ....,विपक्षियों का क्या औकात है ...?और जनता तो गिनती में ही नहीं आती है, कीड़े-मकोड़े हैं.... यह हमेशा रोते ही रहते हैं...।

 


इसलिए भी अगर यह चिल्लाते हैं कि ऑक्सीजन की लेवल की कमी होने से प्रबंधन के अनुसार है 6 सीरियस मरीज, मीडिया के अनुसार 12 से 16 मरीज और मूर्ख जनता के अनुसार और ज्यादा कोरोना प्रभाव इस मरीज का मर जाना सिर्फ एक मिथक है ।

इसे प्रमाणित करना ऑक्सीजन के भंडार की पर्याप्तता..., पर्याप्त है ।और इसी को सर्टिफाइड करने हेतु अंततः इच्छा ना होने पर भी मेडिकल कॉलेज की बैठक में उन्हें आना पड़ा ।


तो चलिए हम मान लेते हैं इस सब के सब झूठ बोल रहे हैं कोई मरीज ऑक्सीजन की लेवल की कमी  से नहीं मरा ,वैसे भी यह सिद्धांत सर्वव्यापी है कि 100 बार झूठ बोलो तो सच हो ही जाएगा ।

लेकिन अगर हम इन सब को सच मान भी लें तो भी हमारे बिसाहूलाल जी का इस्तीफा मांगने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए। इसलिए कि अनुभव बताता है कि हमारी सरकारों में दिल्ली राजधानी क्षेत्र की नवनिर्मित-अंतर्राष्ट्रीय-सीमा में अगर लाखों किसान धरने पर बैठे हैं और झूठे ही सही 300 किसान मर गए तो क्या कृषि मंत्री अपने मध्य प्रदेश के तोमर इस्तीफा दे देंगे ...?,नहीं देना चाहिए ।और यदि बाणसागर नहर पर सड़क की भ्रष्टाचार, अराजकता और अव्यवस्था से कोई बस वाला शॉर्टकट जाकर करीब 50 बड़े बूढ़े बच्चे महिलाओं को पानी में डुबोकर मार डालता है , तो क्या किसी ने इस्तीफा दिया...? नहीं दिया । इसलिए अनुभव सिद्ध है कि बिसाहूलाल जी को इस्तीफा नहीं देना चाहिए। वैसे भी सत्ता में आने के लिए हमारे बिसाहूलल जी पहले राजनीतिक सूत्रधार रहे हैं जिन्होंने भारत में कोरोनावायरस भाईसाहब को प्रवेश दिलाने में अप्रत्यक्ष मदद की थी ।और इस हालात में यदि कोरोना भाईसाहब उनके ही प्रभाव क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज में कुछ उठा पटक कर एक हजार से ज्यादा संक्रमित सक्रिय मरीज बना लेते हैं, तो कोई बुरा नहीं है ।अब जिनके भाग में जीना-मरना लिखा होगा, वह तो होगा ही...।

 तो, "जाहि रुचि राखे राम ..,ताहि विधि रहिए", सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का गौरव अनुभव करते हुए यह आनंद करते हुए की "

जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी, मौत  महबूबा है साथ लेकर जाएगी... अपने पसंद की मौत चुनने की आत्मनिर्भरता पर जीना सीखिए.... यह नया इंडिया है "आत्मनिर्भर" भारत बनने पर नागरिकों का योगदान इससे बड़ा क्या हो सकता है। यह गर्व की बात है क्योंकि मूर्खता भी एक गौरवशाली समाज का आधुनिक गर्व है ।

रही बात जिला अस्पताल के डॉ डीके सिंह डॉक्टर रीना गौतम आदि की जो किसी गुप्ता परिवार मैं घटित किसी मौत पर खड़ी हुई सरकारी जांच मैं दंडित पाए जाने की तो वह अस्पताल प्रबंधन का अभाव था जिस कारण वे फंस गए... उनके प्रति भी संवेदना है ।

क्योंकि तब किसी कमिश्नर ने अपनी दुर्बुद्धि यह एक आदेश भी जारी किया था कि "अगर मेडिकल कॉलेज में कोरोना में कोई मरीज मरता है तो उसका संपूर्ण परिस्थितिकी की जांच प्रतिवेदन कमिश्नर को भेजा जाना चाहिए" यह आदेश भी अब बेमानी हो चला, क्योंकि मरने वाले तांता लगाए बैठे हैं । रोज-रोज कोई जांच प्रतिवेदन थोड़ी देता फिरगा...  ।

 इस तरह हम कह सकते हैं कोविड-19 प्रभारी मंत्री, तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।

 


यह मूर्ख जनता ही है इतना बड़ा खाद्यान्न भंडार भारत में भरा रहा और 80 करोड़ लोगों भूखे लोगों को उन्होंने भोजन भी कराया फिर भी चिल्लाते हैं कि कुछ नहीं हुआ ।तो इतना सारा ऑक्सीजन का भंडार भरा हुआ है तो भी मूर्ख कहते हैं कि ऑक्सीजन की लेवल की कमी के कारण 16 लोग मर गए ...।

सब झूठ है एतद् द्वारा प्रमाणित कर सील और मोहर को द्वारा जारी किया जाता है विशेष आदिवासी क्षेत्र महामहिम राष्ट्रपति जी के संरक्षण में भारत के संविधान में पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी जिले शहडोल की सच्चाई है। राष्ट्रपति की ओर को सूचना भेजी जाए। और मृतकों के संबंधी फाइल नस्ती पत्र की जाए ।मृत्यु प्रमाण पत्र जरूर तैयार करा ली जाए अन्यथा मूर्ख जनता जैसे 1 साल बाद औरंगाबाद रेलवे स्टेशन में मारे गए शहडोल के मजदूरों का मृत्यु प्रमाण पत्र मांगेगी ,तब कहां ढूंढते फिरेंगे.... हम। 

 हम इसी नए इंडिया में रह रहे हैं बार-बार अनुभव करिए और गर्व करते रहिए। क्योंकि अंधभक्त मानेंगे नहीं। और सही बात है "जाके पैर ना पड़ी बिमाई वा का जाने पीर पराई"।

 यही है नया इंडिया.......

 डेमोक्रेसी .....

फार द अनैतिकता, 

आफ द अनैतिकता,

वाई द अनैतिकता......


भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...