प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम
मेडिकल की लाशों पर, सल्तनत का सपना...
ना रहेगी बांस.,
ना बजेगी बांसुरी...
बिसाहूलाल तुम संघर्ष करो..,
हम तुम्हारे साथ हैं....
(त्रिलोकीनाथ)
कोरोना भाईसाहब अपना काम ही तो कर रहे हैं इसलिए शासन द्वारा सुनिश्चित दौरे में कटौती करके अपना निजी काम करने के लिए शहडोल के कोविड-19 प्रभारी मंत्री बिसाहू लाल जी शासकीय दौरे छोड़ कर चले गए ।
जब हल्ला मचा तो रात को मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन के सपने में आए और कहा ऑक्सीजन का लेवल कम हो रहा है देखना कहीं कोई मरीज मर ना जाए... क्योंकि शहडोल मेडिकल कॉलेज में मध्यप्रदेश के सर्वाधिक पांचवी प्रभावित क्षेत्र का दबाव है।
जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रबंधन ने बड़े साहब को ब्रह्ममुहूर्त में टेंशन रिलीज करते हुए फोन किया ,कि भर्ती मरीजों की सप्लाई ऑक्सीजन लेबल कम हो रहा है इसलिए व्यवस्था जरूरी है। सजगता और सतर्कता के तहत अंततः पाया गया की ऑक्सीजन सप्लायर सेंटर जैतहरी से कई सिलेंडर ऑक्सीजन के आने चाहिए, क्योंकि गंभीरता की स्थिति का सपना है। इसलिए दमोह से भी एक ट्रक में सिलेंडर चल रहा है और इमरजेंसी में शहडोल मेडिकल कॉलेज के 3 दिनों के प्रबंधन वाले जिला अस्पताल में भी कुछ सिलेंडर रहते हैं, इसलिए तत्काल वहां से मेडिकल कॉलेज के मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराए जाएं।
कई सिलेंडर एहतियात के तौर पर मेडिकल कॉलेज में खुद भी रहते हैं ,तो अकूत सिलेंडर का भंडार उपलब्ध है। इसलिए तय यह हुआ कि पूरा तर्क है की मरीज अपनी मौत, भगवान भरोसे मौत और सीरियस पेशेंट होने की मौत तो मर सकते हैं किंतु ऑक्सीजन लेवल की कमी होने के कारण उन्हें नहीं मरने दिया जाएगा ....।
ऐसा औपचारिक घोषणा में दिखाने वाला सत्य दिखाया जाए। क्योंकि पहली बार जब कोविड-19 कोरोना भाईसाहब के देखभाल के लिए शहडोल जिले के प्रभारी मंत्री के रूप में अपने बिसाहूलाल का भव्य शहडोल आगमन हुआ और उन्होंने मेडिकल कॉलेज या जिला अस्पताल से जिला मुख्यालय में ही बैठकर पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर लिया की "ऑल इज वेल "
तो फिर अनावश्यक समय नष्ट करने की वजाय शहडोल में होने वाली निजी आवासीय प्रयोजन को क्यों ना "ढाई घंटा "दे दिया जाए। इसलिए शासकीय दौरे में कटौती करके जो गलती की गई थी उसकी भरपाई मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी से मरने वाले या प्रबंधन की अभाव...
जैसे बीते 1 साल से स्टाफ की कमी का रोना रोने वाले मेडिकल कॉलेज के डीन की बातों को मानते हुए क्यों अनावश्यक कोविड-19 के लिए समय दिया जाए ....आखिर, हर आदमी का अपना निजी परिवार और मकान भी तो होता है... ऐसे में यदि कोई ऑक्सीजन लेवल के कम होने से मरता है तो उससे बड़ा झूठ विपक्षी पार्टी बोल ही नहीं सकती ....,विपक्षियों का क्या औकात है ...?और जनता तो गिनती में ही नहीं आती है, कीड़े-मकोड़े हैं.... यह हमेशा रोते ही रहते हैं...।
इसलिए भी अगर यह चिल्लाते हैं कि ऑक्सीजन की लेवल की कमी होने से प्रबंधन के अनुसार है 6 सीरियस मरीज, मीडिया के अनुसार 12 से 16 मरीज और मूर्ख जनता के अनुसार और ज्यादा कोरोना प्रभाव इस मरीज का मर जाना सिर्फ एक मिथक है ।
इसे प्रमाणित करना ऑक्सीजन के भंडार की पर्याप्तता..., पर्याप्त है ।और इसी को सर्टिफाइड करने हेतु अंततः इच्छा ना होने पर भी मेडिकल कॉलेज की बैठक में उन्हें आना पड़ा ।
तो चलिए हम मान लेते हैं इस सब के सब झूठ बोल रहे हैं कोई मरीज ऑक्सीजन की लेवल की कमी से नहीं मरा ,वैसे भी यह सिद्धांत सर्वव्यापी है कि 100 बार झूठ बोलो तो सच हो ही जाएगा ।
लेकिन अगर हम इन सब को सच मान भी लें तो भी हमारे बिसाहूलाल जी का इस्तीफा मांगने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए। इसलिए कि अनुभव बताता है कि हमारी सरकारों में दिल्ली राजधानी क्षेत्र की नवनिर्मित-अंतर्राष्ट्रीय-सीमा में अगर लाखों किसान धरने पर बैठे हैं और झूठे ही सही 300 किसान मर गए तो क्या कृषि मंत्री अपने मध्य प्रदेश के तोमर इस्तीफा दे देंगे ...?,नहीं देना चाहिए ।और यदि बाणसागर नहर पर सड़क की भ्रष्टाचार, अराजकता और अव्यवस्था से कोई बस वाला शॉर्टकट जाकर करीब 50 बड़े बूढ़े बच्चे महिलाओं को पानी में डुबोकर मार डालता है , तो क्या किसी ने इस्तीफा दिया...? नहीं दिया । इसलिए अनुभव सिद्ध है कि बिसाहूलाल जी को इस्तीफा नहीं देना चाहिए। वैसे भी सत्ता में आने के लिए हमारे बिसाहूलल जी पहले राजनीतिक सूत्रधार रहे हैं जिन्होंने भारत में कोरोनावायरस भाईसाहब को प्रवेश दिलाने में अप्रत्यक्ष मदद की थी ।और इस हालात में यदि कोरोना भाईसाहब उनके ही प्रभाव क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज में कुछ उठा पटक कर एक हजार से ज्यादा संक्रमित सक्रिय मरीज बना लेते हैं, तो कोई बुरा नहीं है ।अब जिनके भाग में जीना-मरना लिखा होगा, वह तो होगा ही...।
तो, "जाहि रुचि राखे राम ..,ताहि विधि रहिए", सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का गौरव अनुभव करते हुए यह आनंद करते हुए की "
जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है साथ लेकर जाएगी... अपने पसंद की मौत चुनने की आत्मनिर्भरता पर जीना सीखिए.... यह नया इंडिया है "आत्मनिर्भर" भारत बनने पर नागरिकों का योगदान इससे बड़ा क्या हो सकता है। यह गर्व की बात है क्योंकि मूर्खता भी एक गौरवशाली समाज का आधुनिक गर्व है ।
रही बात जिला अस्पताल के डॉ डीके सिंह डॉक्टर रीना गौतम आदि की जो किसी गुप्ता परिवार मैं घटित किसी मौत पर खड़ी हुई सरकारी जांच मैं दंडित पाए जाने की तो वह अस्पताल प्रबंधन का अभाव था जिस कारण वे फंस गए... उनके प्रति भी संवेदना है ।
क्योंकि तब किसी कमिश्नर ने अपनी दुर्बुद्धि यह एक आदेश भी जारी किया था कि "अगर मेडिकल कॉलेज में कोरोना में कोई मरीज मरता है तो उसका संपूर्ण परिस्थितिकी की जांच प्रतिवेदन कमिश्नर को भेजा जाना चाहिए" यह आदेश भी अब बेमानी हो चला, क्योंकि मरने वाले तांता लगाए बैठे हैं । रोज-रोज कोई जांच प्रतिवेदन थोड़ी देता फिरगा... ।
इस तरह हम कह सकते हैं कोविड-19 प्रभारी मंत्री, तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।
यह मूर्ख जनता ही है इतना बड़ा खाद्यान्न भंडार भारत में भरा रहा और 80 करोड़ लोगों भूखे लोगों को उन्होंने भोजन भी कराया फिर भी चिल्लाते हैं कि कुछ नहीं हुआ ।तो इतना सारा ऑक्सीजन का भंडार भरा हुआ है तो भी मूर्ख कहते हैं कि ऑक्सीजन की लेवल की कमी के कारण 16 लोग मर गए ...।
सब झूठ है एतद् द्वारा प्रमाणित कर सील और मोहर को द्वारा जारी किया जाता है विशेष आदिवासी क्षेत्र महामहिम राष्ट्रपति जी के संरक्षण में भारत के संविधान में पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी जिले शहडोल की सच्चाई है। राष्ट्रपति की ओर को सूचना भेजी जाए। और मृतकों के संबंधी फाइल नस्ती पत्र की जाए ।मृत्यु प्रमाण पत्र जरूर तैयार करा ली जाए अन्यथा मूर्ख जनता जैसे 1 साल बाद औरंगाबाद रेलवे स्टेशन में मारे गए शहडोल के मजदूरों का मृत्यु प्रमाण पत्र मांगेगी ,तब कहां ढूंढते फिरेंगे.... हम।
हम इसी नए इंडिया में रह रहे हैं बार-बार अनुभव करिए और गर्व करते रहिए। क्योंकि अंधभक्त मानेंगे नहीं। और सही बात है "जाके पैर ना पड़ी बिमाई वा का जाने पीर पराई"।
यही है नया इंडिया.......
डेमोक्रेसी .....
फार द अनैतिकता,
आफ द अनैतिकता,
वाई द अनैतिकता......।
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