संवेदना अभियान का हिस्सा क्यों नहीं बन रहा है...
समय की मांग खुले, रामाबाई अस्पताल यानी मिशन हॉस्पिटल (सुशील शर्मा विशेष आलेख )
आज के जनसत्ता में जो हेडिंग है वह बताती है कि भारत में कोरोना की रफ्तार सातवें आसमान पर है और यह तो बस शुरुआत है...? कहां जाएगी कहा नहीं जा सकता।
शहडोल क्षेत्र में भी जो विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र है कोरोना रफ्तार भयभीत करने वाली है किंतु प्रशासन जिस प्रकार से निजी अस्पतालों में लगातार निगरानी बनाए हुए हैं और उनकी मदद ले रहा है उसके साथ समन्वय बनाकर जो प्रयास किए जा रहे हैं वह सराहनीय भी है। मेडिकल कॉलेज की जो भी दुर्घटना हुई वह अपनी जगह है और उसमें यदि कोई जांच होनी होती है तो स्वागत होगा।
किंतु इस भीषण आपदा के संकट में भी शहडोल जिले में जिला अस्पताल की हैसियत रखने वाला समकक्ष रमाबाई अस्पताल जिसे मिशन अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है उसमें पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर भी है इसके बावजूद भी उसे किन्ही कानूनी विपत्तियों से निकालकर आम मरीजों के लिए अभी तक नहीं खोला जाना आश्चर्यजनक है। बेहतर होता कि इतनी बड़ी चिकित्सा सेवा की संस्थान को उसे दुरुस्त करके आम जनता के लिए खास तौर से कोविड-19 ओं के लिए क्यों नहीं खोला गया। जितनी भी सोशल डिस्टेंसिंग की अथवा इंफ्रासक्चर की गैस सिलेंडर की उपलब्ध मित्रों की आवश्यकता अनुरूप उपलब्धि है। आखिर वह क्यों ठंडे बस्ते में दफन करके रखा गया है जबकि उसके कर्ता-धर्ता लगातार इस प्रयास में रहे कि यह आम जनता के लिए तत्काल खुल जाए। फिर भी यदि कहीं कोई तकनीकी समस्या है तो जिला प्रशासन को तत्काल आपदा प्रबंधन के तहत इस जिला स्तरीय सर्वोच्च इंफ्रास्ट्रक्चर वाली अस्पताल को मरीजों के लिए चुस्त-दुरुस्त करा कर खोल दिया जाना चाहिए ताकि जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज पर पड़ने वाला दबाब कुछ कम हो सके। अब जबकि शहडोल संभाग के आयुक्त राजीव शर्मा संवेदना अभियान के तहत हर मुमकिन प्रयास मरीजों के हित में करते दिखाई दे रहे हैं तो बेहतर होता की कभी लोकप्रिय रहा रामा बाई अस्पताल याने मिशन हॉस्पिटल को तत्काल मरीजों के हित में खोल दिया जाए।
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