जथा पुलिस-तथा व्यवस्था...
अपराधियों के लिए कोरोना बना वरदान...
कोरोना संक्रमण काल में
प्रताड़ित आदिवासियों पर दोहरी मार
(त्रिलोकीनाथ)
जब भी कोई बड़ी महामारी या आपदा आती है तो दलित शोषित और वंचित समाज पर उसकी दोहरी मार पड़ती है, एक तो वह पहले से ही अन्याय और शोषण का शिकार होता है दूसरा महामारी उसकी कमर तोड़ देती है। ऐसे में न्याय की जो आशा भी धूमिल होती चली जाती है। प्रतिदिन उसे निराशा और हताशा के माहौल में जीना होता है ।
उमरिया जिले के नौरोजाबाद का आदिवासी समाज के केवल सिंह इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। भलाई शहडोल में पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी ने शंखनाद जैसा ऑपरेशन चलाकर सूदखोरी में एक बड़ी मुहिम चलाई और उस पर कुछ हद तक सफलता भी हासिल किया किंतु जब पुलिस महानिरीक्षक जनार्दन ने शहडोल क्षेत्र में "ऑपरेशन शंखनाद" का विस्तार तो किया किन्तु 20 वर्ष से सूदखोरी के पर्याय बन चुके नौरोजाबाद बैंक और सूदखोर उमेश सिंह की मिलीभगत से लगभग लुट चुका व प्रताड़ित केवल सिंह की रही सही आशा भी दम तोड़ती नजर आई।
कोरोना महामारी के लॉकडाउन लगने के पूर्व महा
निरीक्षक से मिलकर न्याय की आशा जगाने का जो प्रयास केवल सिंह के दिमाग में था, वह टूट गया। केवल सिंह पुलिस महानिरीक्षक के कार्यालय तक आया किंतु अपने निजी मजबूरियों के चलते वह महानिरीक्षक की व्यस्तता को देखकर आवेदन देकर वापस चला गया। कुछ दिनों बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री जनार्दन के आशा जगाने पर वह किराए की राशि उधारी लेकर लॉकडाउन अवधि में ही उमरिया तक गया किंतु प्रशासनिक भ्रमजाल में वह निराशा के माहौल में घर लौट आया। और तब से अब तक न्याय की आशा उससे दूर ही होती चली जा रही है।
करीब 2 साल पहले उसने अपनी लड़ाई नरोजाबाद थाने से लेकर जनजाति आयोग मध्य प्रदेश तक न्याय की गुहार लगाता रहा, किंतु महामारी ने उसकी रही सही ताकत भी तोड़ दी दिया।
दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करता पुलिस अधीक्षक कार्यालय उमरिया, नौरोजाबाद पुलिस थाना अथवा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल का कार्यालय से उसे न्याय मिलता दूर होता चला गया। किंतु महामारी के चलते अधिकारी से मुलाकात कर व्यथा सुनाना उसके लिए जैसे ईद के चांद को पाना हो गया।
करीब 10 साल पहले नरोजाबाद थाने के अंतर्गत सूदखोरी का खुला अपराध करने वाले दबंग उमेश सिंह नामक व्यक्ति ने उसकी जीवन भर की नौकरी की करीब 17लाख रुपए एटीएम के जरिए बैंक के सहयोग से उसी तरह 1 साल के अंदर निकाल लिया जैसे कि क्षेत्र के कई लोगों को उसने सूदखोरी के जाल में फंसा कर नरोजाबाद पुलिस के सहयोग से लूटता रहा। इसलिए नरोजाबाद पुलिस केवल सिंह के मामले में भी उसी तरह हीला हवाली करती रही और थोड़ा बहुत पैसा दिला कर समझौता कराने का काम करती रही। जैसे अन्य मामलों में उमेश सिंह के लिए कर रही थी ।किंतु क्योंकि आदिवासी केवल से को लोकतंत्र में न्याय की उम्मीद मरी नहीं थी इसलिए वह अपनी यथाशक्ति से जगह-जगह गुहार लगाता रहा।
शहडोल पुलिस अधीक्षक गोस्वामी के नवाचार ने जब "ऑपरेशन शंखनाद" चलाकर सूदखोरी के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया तो उसे पुलिस अधीक्षक उमरिया से भी पुनः उसकी मरी हुई आशा जाग गई किंतु कोरोना महामारी जैसे सूदखोर सिस्टम याने "माफिया" जिसमें नरोजाबाद पुलिस संबंधित बैंक कर्मचारी और सामने दिखने वाला सूदखोर उमेश सिंह के लिए वरदान बन गई।
हालांकि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री जनार्दन चाहते तो ऑपरेशन शंखनाद की गूंज उसके घर तक जो नौरोजाबाद पुलिसथाना से करीब 2 किलोमीटर के पास में ही है अवश्य सुनाई देती किंतु सिस्टम का यह फैलियर ही है कि ना तो आईजी शहडोल और ना ही पुलिस अधीक्षक, उमरिया के शंख में इतना "शंख-नाद" है कि वह माफिया सूदखोर के जाल को तोड़कर केवल सिंह जैसे प्रताड़ित आदिवासियों के घर तक शंख-नाद पहुंचा पाते और उन्हें इस कोरोनावायरस महामारी में उसके अपने जीवन भर की कमाई का कुछ पैसा उसे अजीबका में जीने के लिए राहत की सांस पहुंचा पाता।
यह बात सिर्फ अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति केवल सिंह जैसे आदिवासी समाज के व्यक्तियों के लिए प्रताड़ना का कारण नहीं है बल्कि उस नई व्यवस्था में शहडोल जिले के व्योहारी के पपौंध थाना अंतर्गत गायब हो रही अवयस्क आदिवासी लड़कियों के लिए भी लागू होता है। सामान्य रूप से यह माना की लड़कियां स्वयं किसी के साथ भाग गई हैं और इसी धारणा से अपने मनोबल को मजबूत बनाकर थाना पपौंध निश्चिंत होकर थाना अंतर्गत गायब हो रही लड़कियों के लिए निश्चिंत टाइप का है।
एक मामला गांव की 17 वर्षीय दसवीं पढ़ने वाली किशोरी का है जो 3 अप्रैल को सुबह 5:00 बजे महुआ बीनने गई तो आज तक घर लौट के नहीं आई। लड़की के पिता ने थाने में विधिवत
रिपोर्ट 8 तारीख को की गई थाना प्रभारी पुलिसिया अंदाज में कहते हैं लड़कियां गायब ही हो रही हैं ।
बात की जानकारी क्षेत्रीय विधायक शरद कोल को लगी तो उन्होंने पपौंध थाने के अधिकारी को
फटकार भी लगाई , किंतु नतीजा तब तक आदिवासी मामलों में कारगर साबित नहीं होता जब तक कि उच्चअधिकारी इसका संज्ञान ना ले। 3 तारीख से गायब आदिवासी किशोरी के अथवा अन्य अपऑन थाने में गायब हुई युवतियों के परिवार वालों के लिए कोरोना महामारी दोहरी मार का प्रताड़ना का दंश दे रही है। और पुलिस की व्यवस्था है कि घर पहुंच कर ऐसे गंभीर मामलों में राहत पहुंचाने पर अब तक तो असफल ही सिद्ध हुई है।
केवल सिंह के मामले में जहां उसका जीवन भर की पूरी कमाई नौरोजाबाद पुलिस के चलते खुली डकैती का शिकार हो गया । तो पपौंध मे गायब किशोरियां सिर्फ एक प्रकरण की तरह की फाइल मे नस्तीवध हो गई प्रतीत होती है। तो शहडोल थाने में गुमशुदा के मामले में सूचना मिलने के बाद भी पुलिस की विवश है कि वह कोरोना से युद्ध का सामना करें या फिर गुमशुदा की तलाश...?
बहरहाल आदिवासी क्षेत्र में कम से कम आदिवासियों को न्याय की आशा तब भी मिलती नहीं दिखाई देती जबकि वह भारत के संविधान के पांचवी अनुसूचित सूची में सीधे महामहिम राष्ट्रपति जी के संरक्षण में बनाई गई व्यवस्था में स्वयं को संरक्षित होने की बात सोचते हैं तो क्या सिस्टम फेल हो रहा है या फिर जिम्मेदार उच्च अधिकारी इस संक्रमण काल में महात्मा गांधी के शब्दों में अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्तियों के लिए न्याय कराना सुनिश्चित करेंगे जो उन्हें घर पहुंचकर राहत दे सके...?
विशेषकर वे अपराध जो थाना पुलिस के संरक्षण में घटित हो रहे हैं क्या उन्हें रोक पाने में उच्च अधिकारी पहल करेंगे ...? देखना होगा...
क्या ऑपरेशन शंखनाद की गूंज के संग में पुलिस अधीक्षक उमरिया अपनी जोर आजमाइश के लिए चिन्हित क्षेत्रों में शंख बजाएंगे यह भी देखना होगा....?
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