वरिष्ठों ने अंततः बेखौफ बोला-
संभाग,जनप्रतिनिधि मौन क्यों..? ऑक्सीजन लाने के मामले में ? कैलाश तिवारी
वैकल्पिक संसाधनों का क्यों नहीं हो रहा उपयोग: आजाद बहादुर
शहडोल । हर जिले में रिमोट कंट्रोल की तरह काम करने वाला भारतीय जनता पार्टी का संगठन
मंत्री है जिसकी उंगलियों पर पूर्ण प्रबंधन चला करता था। अथवा संभाग में युवा नेताओं की भरमार होने के बाद भी जैसे सब अज्ञानता के अंधेरे में अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़े बैठे हैं। इस माहौल पर आशा की किरण बनकर भारतीय जनता पार्टी से वरिष्ठ नेता कैलाश तिवारी ने संभाग के मंत्री सांसद एवं विधायकों से पूछा है कि वह शहडोल संभाग के शहडोल मेडिकल कॉलेज सहित चिकित्सालयों में ऑक्सीजन उपलब्धता की कमी पर मौन क्यों है ?
वरिष्ठ नेता श्री तिवारी ने कहा हर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अपने अपने जिले के लिए भरसक प्रयास करके ऑक्सीजन टैंकर एवं सिलेंडरों की आपूर्ति कराने में लगे हुए हैं ताकि उनके क्षेत्र की जनता को लगातार प्राणवायु मिलती रहे ।लेकिन शहडोल संभाग में बड़ी घटना होने के बाद भी जिसमें 10 से ज्यादा मौतें भी हो गई थी और उसके बाद भी लगातार ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है। जनप्रतिनिधि इस मामले में मौन है ...?
स्थानीय सांसद और विधायक को को सलाह देते हुए उन्होंने कहा उन्हें इस मामले को मुख्यमंत्री जी के समक्ष तक ले जाना चाहिए तथा जिले के औद्योगिक घराने रिलायंस, ओरिएंट पेपर मिल, कोल माइंस आदि के माध्यम से ऑक्सीजन टैंकर एवं सिलेंडरों की व्यवस्था का प्रयास करना चाहिए था।
भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश तिवारी ने कहा है की कमिश्नर एवं कलेक्टर ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए दिन रात लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों का मौन जनता को सोचने पर विवश कर रहा है कि इतनी कठोरता क्यों ? क्या उनका कोई दायित्व नहीं है जनता को वह यूं ही छोड़ देंगे...? रायगढ़ के टैंकर जब भोपाल दिल्ली जा सकते हैं तो शहडोल मैं क्यों नहीं...? कोई दूरी भी नहीं है लेकिन राजनीतिक पहल ना होने के कारण जिले की जनता असहाय सी दिख रही है। भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन जब तक मुखिया को जनप्रतिनिधि बताएंगे नहीं तो वहां पर कैसे पता चलेगा की शहडोल की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है...?
अभी भी वक्त है कि जनप्रतिनिधि अपने दायित्व के प्रति सजग होकर सक्रिय हो जाए।तथा जनता को अकाल मौत होने से बचा लिया जाए.।
इतना ही नहीं जिला कांग्रेस अध्यक्ष शहडोल
आजाद बहादुर ने आश्चर्य प्रकट किया है की तेजी से बढ़ रहे कोरोनावायरस की रफ्तार को देखकर वैकल्पिक अस्पतालों चाहे वह रेलवे का हॉस्पिटल हो अथवा मिशन अस्पताल या फिर आयुर्वेद अस्पताल इन पर ताला आखिर क्यों चढ़ा हुआ है...? क्या जिला प्रशासन अपनी क्षमता का उपयोग करके उपलब्ध संसाधनों का उपयोग महामारी को नियंत्रित करने के लिए नहीं कर सकता..? किंतु प्रशासन में और शासन में बैठे हुए लोग अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग महामारी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए नहीं करते बल्कि देखा यह गया है कि आज भी इस ध्यान रख महामारी में एक दूसरे का पैर खींचने एक दूसरे को नीचा दिखाने और चाटुकारिता पर विश्वास कर रहे हैं। होना यह चाहिए की खुली बहस करके जो स्वस्थ निष्कर्ष निकलकर आवे उसमें नीतिगत सिद्धांत बनाकर सबको इस दिशा में कैसे अमल करना है उस पर काम करना चाहिए।
और सच बात भी यह है की युवा नेतृत्व होने के बावजूद जैसे वह अपने घर में सोया हुआ हो उनकी तरफ से कोई बड़ी पहल होती नहीं दिखाई दे रही है। और यही कारण है कि वरिष्ठ नेताओं को परंपरागत स्थितियों से निकलकर जनता के हित में महामारी से निवारण का रास्ता तय करना पड़ रहा है। आशा करनी चाहिए कि प्रशासन शासन और जागरूक लोगों का तालमेल से एक ऐसा समन्वय दीक्षित हो जिसस एक भी व्यक्ति जो बीमारी से प्रभावित है वह बिना मांगे ही सभी सुविधाओं को प्राप्त कर सके देखा गया है की आपदा प्रबंधन में भी प्राइवेट अस्पताल वाले जैसे उनके अच्छे दिन आ गए हैं उन्होंने अभी तक अपनी भारी भरकम अस्पताल के बिलों को विशेषकर को भी प्रभावित मेडिकल बिलों को कम नहीं कर रहे हैं अगर वे कम नहीं कर रहे हैं तो आपदा प्रबंधन में क्या जिला प्रशासन को कोई अधिकार नहीं है या फिर वह मूक बधिर होकर प्राइवेट अस्पताल वालों को प्रोत्साहित कर रहा है....?
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