शहडोल क्षेत्र में होंगे 4 गुना यानी 12000 से ज्यादा सक्रिय मरीज ....
काश यह झूठा साबित हो....
आमीन...।
क्या हम हैं तैयार....?
(त्रिलोकीनाथ)
तब साहब नए-नए सत्ता में आए थे, नशा भी सातमें आसमान पर था। कांग्रेस मुक्त राष्ट्र ही नहीं, उन्हें विरोधी प्रेस मुक्त राष्ट्र भी चाहिए था। शो एनडीटीवी ग्रुप के ऊपर छापे डलवा दिया, तब सन्नाटे को चीरता हुआ उनके सांसद और विद्वान राजनीतिक सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा "डर कर रहना चाहिए.." हालांकि यह बात उन्होंने विनोद में कही थी किंतु वर्तमान में "कोरोना भाईसाहब" के हालात जो कहर बरपा रहे हैं उससे इनकी बात जरूर सही साबित होती है कि "डरना बहुत जरूरी है...."
कोरोनावायरस के उफान का पीक टाइम सामने आया
जो मध्य-मई में यह अपने चरम उफान पर होगा, ऐसा अनुमान है। फिर उतार में भी आएगा। तब तक हमें कोरोना रफ्तार- रास्तों से बचना होगा। उसके रास्ते में बिल्कुल नहीं आना होगा। क्योंकि रफ्तार दिन प्रतिदिन तेज होती चली जाएगी।
बीते रविवार 11 अप्रैल को जो आंकड़े उपलब्ध थे वह कुछ इस प्रकार के हैं
देश और दुनिया के और शहडोल क्षेत्र के भी।
तो शहडोल क्षेत्र को जिसमें टुकड़े टुकड़े में बटा उमरिया और अनूपपुर तथा जिला शामिल है
वह पूरे प्रदेश में करीब साढ़े तीन हजार संक्रमित मरीजों
तो अब वर्तमान में 15 दिन पश्चात शहडोल की क्या हालात हैं उसे भी देखिए
आंकड़ों को अपनी छोटी समझ से समझना चाहे तो आंकड़े स्पष्ट करते हैं की 11 अप्रैल की तुलना में दोगुना, कंफर्म की,4 गुना सक्रिय प्रकरणों की वृद्धि हुई है। बीते 15 दिवस में और आगामी 15 दिन बाद जो चरम का प्रारंभ होने वाला है क्या उसके लिए हम तैयार हैं...?
इस आधार पर जो कोरोना की रफ्तार है आज की तुलना में हम आगामी 15 दिवस बाद कम से कम सोच में रखें तो शहडोल क्षेत्र में 26000 कंफर्म संक्रमित व्यक्तियों का तथा एक्टिव संक्रमित व्यक्तियों का आंकड़ा 4 गुना याने 12000 को पार करने वाला है। सोचिए और समझ के साथ तैयार रहिए... क्योंकि प्रशासन कि अपनी उपलब्ध क्षमता व सीमा है और यह हमें डराने के लिए इसलिए भी पर्याप्त है और डर जाने के लिए भी, कि अगर आज 3000 के आसपास सक्रिय संक्रमित आंकड़े में पूरी चिकित्सा व्यवस्था की सांस फूलती नजर आ रही है तो 12000 में क्या वह कुछ कर पाएगी....? जब पीक टाइम के इर्द-गिर्द मेरे काल्पनिक और मिथक आंकड़े, धोखे से भी अगर सच साबित होने लगेंगे...।
वैसे भी आदिवासी क्षेत्र होने के कारण यहां का पिछड़ापन संपूर्ण प्रबंधन को लकवा ग्रस्त कर देता है। भगवान भरोसे चलने वाली लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली हमें कब तक जिंदा रह पाएगी.... इसलिए डरना बहुत जरूरी है..।
अगर प्रशासन डराने में असफल है तो आप स्वअनुशासन से जितना डर सकते हैं डर कर सतर्क रहिए.... कि आपका स्वास्थ्य जरा भी खराब ना होने पाए और इसी प्रकार पूरे परिवार को डरा कर रखिए... क्योंकि यही डर हमें भगवान भरोसे चिकित्सा प्रणाली में कोरोना से बचा पाएगा।
चिकित्सा जगत अपनी संपूर्ण ताकत भी लगा देगा तो उसे अपनी सीमा में ही काम करना होगा और फिलहाल आज के हालात में सीमा का अनुमान लगाना सहज है।
यह कहना/ सोचना भी अब मूर्खतापूर्ण होगा कि जो भारत का होगा वह हमारा भी हो जाएगा....? अब हम "उल्टे बांस बरेली को.." चल रहे हैं, जो शहडोल में होता है वह दिल्ली में हो रहा है.... यह शाश्वत सत्य भी है।
वह ऐसे, कि सबसे बुरी खबर यह कि शहडोल मेडिकल कॉलेज में उस रात जब ऑक्सीजन का लेवल कम हो गया, क्योंकि ऑक्सीजन की प्रॉपर सप्लाई नहीं थी करीब 16 लोग मृत हो गए, जिन्हें पूरी ताकत लगाकर प्रशासन और शासन ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत मानने से इनकार कर दिया। क्योंकि यह देश की पहली घटना थी। इसके बाद प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी और अब देश की राजधानी दिल्ली में भी ऑक्सीजन का लेवल कम होने से 25 लोगों की मौत की खबर चीख-चीख कर, चिल्ला-चिल्ला कर और मेडिकल इंस्टिट्यूट के कर्ताधर्ता रो-रो कर बता रहे हैं। और और प्रोपेगंडा-इंडस्ट्री पर विश्वास करने
वाले नेता, शासन-प्रशासन भी स्वीकार कर रहे हैं कि हां दिल्ली में ऐसा हो गया।
तो शहडोल में क्यों नहीं हुआ था..? क्योंकि शहडोल में नेता,शासन और प्रशासन के साथ न सिर्फ झूठ बोलता है बल्कि वह उसे चीख और चिल्ला कर सच बनाने का काम भी करता है। और यह बात हर मामले में होती है। क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र है ।दमन... शोषण और माफियागिरी यहां की नियत बन चुकी है। उन्हें मालूम है कि कहीं कोई सुनवाई नहीं है। क्योंकि जिन्हें सुनना है वह तो शहडोल को गोद लेकर बैठने की घोषणा कर दी हैं। ताकि आप आसमानी दुनिया में मरने का गर्व कर सकें।
तो वक्त उलाहना देने का भी नहीं रह गया। इंदौर एक लाख के आंकड़े को पार कर गया है 1100 से आदमी मर गए हैंकिंतु निवेदन करने का जरूर रह गया है की हालात के मद्देनजर आदिवासी क्षेत्रशहडोल को ही अपनी प्रजा मानकरऔर उन पर दया करके सच बोलिए। क्योंकि वह आपका कुछ भी नहीं कर सकते। अनुभव में यही हुआ है किंतु सच बोलने से एक फायदा होने वाला है कि वह प्रधानमंत्री के "आत्मनिर्भर सिद्धांत" पर अपना जीवन बचा सकते हैं, अगर संभावना जीवित है......? क्योंकि वह किसी झूठी आशा पर विश्वास करना छोड़ देंगे।
और यह सुखद है कि मेडिकल कॉलेज में सच को स्वीकार कर लिया उन्होंने बोर्ड लगा दिया की व्यवस्थाएं "नो एडमिशन की हैं" ।
तब और क्या कर सकते हैं इस पर विचार होना चाहिए। शहडोल कलेक्टर महोदय ने सभी ऑक्सीजन सिलेंडर को उच्च निर्देशों के पालन में मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर के रूप में परिवर्तित करने का आदेश पारित किया है। जो बहुत उचित है किंतु अगर वर्तमान समय कोरोना का चरम नहीं है जो मध्य-मई में विशेषज्ञों के अनुसार आएगा। तब तक हालात बहुत बिगड़ जाएंगे।
इन हालातों में आपदा प्रबंधन के लिए पिछले 15 दिनों के रफ्तार के हिसाब से क्यों तैयारियां नहीं होनी चाहिए....? जब प्राइवेट हॉस्पिटल के बिस्तर कोविड-19 हेतु आरक्षित किए जा रहे हैं तो फिर जिले का सबसे पुराना रमाबाई अस्पताल सभी सुविधाओं से युक्त होने के बाद भी मूर्खतापूर्ण तर्कों के बीच में क्यों गिरवी रखा पड़ा है ....?
इस पर तत्काल न्यायपालिका कार्यपालिका अथवा विधायिका के बीच में समन्वय बनाते हुए महामारी के दौर में क्यों नहीं खोला जाना चाहिए...? यह बड़ा प्रश्न है।
वह इसलिए क्योंकि सच बहुत तेजी से सामने आ गया है। कि सभी मेडिकल सुविधाएं आदिवासी क्षेत्र में आपदा को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है। जो आंकड़े दिखाएं भी जा रहे हैं उन पर विश्वास भी नहीं होता। फिर भी उन्हें ही विश्वास करके भयानक सपना खड़ा हो रहा है।
इसी तरह प्रतिदिन कहां किस अस्पताल में कितनी बिस्तर की क्या हालात हैं... सार्वजनिक तौर पर अथवा वॉलिंटियर्स नियुक्त करके, जन अभियान परिषद के सैकड़ों एनजीओ के हजारों सदस्यों को प्रशिक्षण देकर इसी तरह अन्य उचित संगठनों से परामर्श करके मरीज को प्राथमिक उपचार मौका स्थल पर ही देने के प्रयास क्यों नहीं करने चाहिए...? ताकि अस्पतालों पर अनावश्यक दबाव न बढ़ सके। डॉक्टर पूर्ण आत्मविश्वास हुआ स्थिरता से गंभीर मरीजों को देख सकें ....,प्राथमिक संकेत होने पर ही उसे रोका जा सके। अति गंभीर मरीज ही हॉस्पिटलों तक पहुंच पाए। आदि-आदि तरीके से सतर्कता बहुत जरूरी है। जो फिलहाल होती नहीं दिख रही है..? अब तो मुख्यमंत्री का फोटो लगा काढ़ा भी नहीं दिख रहा है।
जिलो के कोविड-19 प्रभारी मंत्री का अपडेट भी रोज नहीं आ रहा है। उनके निकटवर्ती लोगों का सहयोग आम आदमियों को सुनिश्चित तरीके से इस महामारी के निदान में कैसे मिले यह भी सुनिश्चित होना चाहिए। आर एस एस के संगठन या भाजपा के सर्वाधिक सदस्यों वाले संगठन अथवा कांग्रेसी या अन्य दलों के संगठन का लाभ भी टुकड़े-टुकड़े रूप में इस आपदा प्रबंधन में उनकी सेवाएं क्यों नहीं लिया जाना चाहिए...? क्या यह सब हो हल्ला मचाने के लिए और झंडा गिरी करने के लिए ही पैदा हुए थे.....?
भलाई देश में मेडिकल इमरजेंसी घोषित ना हुई हो किंतु हालात मेडिकल इमरजेंसी के स्तर पर ही दिख रहे हैं।
यदि शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में बना दिए गए और सुविधाएं मिलने लगी तो निश्चित मानिए कि आप मॉडल के रूप में उभर कर आएंगे.. देश के लिए और प्रदेश के लिए भी।
क्योंकि अगर यही चुनौती है यही एकमात्र अवसर भी है, ऐसा प्रधानमंत्री जी ने भी कहा था। तो देखते चलिए शुभकामनाएं ईश्वर ना करें मेरे कोई भी अनुमान के आंकड़े सही हो.. इस मामले में मूर्ख साबित रहूं इस पर मुझे गर्व रहेगा।
और इसीलिए मैं तो डर ही रहा हूं हर व्यक्ति को डर कर रहना सीखना होगा.. क्योंकि यही डर हमें जिंदा बचा पाएगी। क्योंकि अब लोकतंत्र में साबित होने वाला है कि जनता ही जनार्दन है। कोई भगवान नहीं आने वाला..., "अहम् ब्रह्मास्मि..." समझ कर जिम्मेवारी का निर्वहन करिए.. यही दैत्यराज कोरोनावायरस कोविड-19 भाईसाहब के साथ युद्ध की घोषणा होनी चाहिए। और हम ब्रह्मअंश होने के कारण जीतेंगे, यह तय है। किंतु लड़ाई एक ही है.... "एकांत में रहे ,देहांत से बचें.. बस कम से कम 25 दिन। "सेल्फ -लॉकडाउन" की घोषणा आपको जीवनदान दे सकती है।
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