पृथ्वी दिवस सप्ताह --------------
कहां से कहां
आ गए हम,
जरा सोचिए .....
(शैलेंद्र श्रीवास्तव)
जब मोबाइल, इंटरनेट, 3G, 4G, 5G, बुलेट ट्रेन, शॉपिंग मॉल, गेम ज़ोन, विलासिता के अत्याधुनिक संसाधन नहीं थे, शायद तब हम भारत के लोग कहीं ज्यादा सुखी और समृद्ध थे। ये पश्चिम के देशों से होड़ में हमारा सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय अब भारत की पहचान नहीं रहे, गुरुकुल समाप्त हो गए अब विदेश में पढ़ना और रहना भारतीय छात्रों का स्टेटस/कैरियर सिंबल बन गया है। देश में मातृ भाषा हिंदी पर आधारित स्कूल अब अपने अस्तित्व की आखरी लड़ाई लड़ते हुए दिखाईं पड़ रहे हैं।
सैंकड़ों वर्ष गुलाम रहने के बाद भी हम
आत्मनिर्भर, समृद्ध और शायद कहीं ज्यादा खुशहाल थे। पर अगर देश का सबसे ज्यादा नुकसान किसी एक चीज से हुआ है तो वो है - भ्रष्टाचार।
आप घंटों बैठकर सोच लीजिए, हर समस्या की जड़ में आपको भ्रष्टाचार जरूर मिलेगा, या यूं कह लीजिए की यदि भ्रष्टाचार ना होता तो शायद वह समस्या ही ना होती।
आज प्राकृतिक संसाधनों का जिस प्रकार दोहन हुआ है या लगातार हो रहा है, जिस तरह जंगल कम हो रहें हैं, नदियों का अस्तित्व ख़तरे में है।
तालाब की बात इसलिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि अब बचे ही कितने हैं और जो बचे भी हैं तो उनमें से ज्यादातर तो अब गड्ढों में तब्दील हो चुके हैं। वन्य प्राणी सही मायनों में सिर्फ किताबों और चिड़िया घरों में सिमट चुके हैं। पक्षी तक रेडियेशन से नहीं बच पा रहें हैं। संक्षेप में कहूं तो पूरा का पूरा पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा रहा है या गड़बड़ा चुका है। सही तरीके से अध्ययन किया जाए तो देश में मानव की औसत आयु अब लगभग आधी बची है।पर फिर भी हमें किसी भी कीमत पर सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए ?
कभी कभी सोचता हूं कि यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता असमय इस धरा से ना गए होते तो ये देश आज फिर सोने की चिड़िया कहलाता और विश्वगुरु बनकर दुनियां को राह दिखा रहा होता।
(आलेख प्रस्तुत करता जिला भारतीय जनता पार्टी शहडोल के प्रवक्ता है)
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