गुरुवार, 30 जुलाई 2020

यह देश पागल क्यों नहीं हो रहा है.....?

सोसल मीडिया का पागल संवाद...

हालांकि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली पारी में ही भारतीय पत्रकारिता को खारिज तो नहीं किए थे किंतु अमेरिका में जाकर जिस अंदाज में उन्होंने  सोशल मीडिया फेसबुक  के हेड क्वार्टर  में जाकर  कहा "सोशल मीडिया पांचवा स्तंभ है" तो हमें समझ में आया कि लोकतंत्र के गर्भ में पल रहे चौथे स्तंभ पत्रकारिता को खारिज कर रहे हैं बहराल सोशल मीडिया का एक चेहरा फेसबुक को आज सुबह खोला तो कुछ इस क्रम से घटनाएं घटी जिन्हें आपसे शेयर करके नरेंद्र मोदी के पांचवें स्तंभ के बारे में सोचता हूं तो लगता है जनता पागल क्यों नहीं हो रही है तो आप भी देखिए क्रम क्या था कुछ बोलते चित्र इस प्रकार हैं

1
 रफाल की गौरव पूर्ण रफ्तार

2
रफ्तार मे कटती हमे दूध पिलाने वाली गौमाता


3
हमारे पी एम उनका तोता


4
अभिव्यक्ति पर डाक्टर गिरफ्तार




बुधवार, 29 जुलाई 2020

तेरा तुझको अर्पण... 100 साल पहले, गांधी की ताकत को कमजोरी में बदलता आज का लोकतंत्र (त्रिलोकीनाथ)

तेरा तुझको अर्पण,  100 साल पहले......
 गांधी की ताकत को
 कमजोरी में बदलता
 आज का लोकतंत्र..

                  (त्रिलोकीनाथ )
प्रसिद्ध गाने  के बोल  
"100 साल पहले  मुझे तुमसे प्यार था , आज भी है  और कल भी रहेगा ..."
 महात्मा गांधी के साथ  कुछ इसी प्रकार का  प्रेम  बरकरार है  लेकिन  लगता है कुछ लोग  उनकी भावनाओं मैं निहित लोकतांत्रिक ताकत को कमजोरियों मैं बदल कर  देश को  गुलाम बनाने का काम कर रहे हैं

 बहरहाल इसके ठीक पहले संकलनकर्ता ने उनकी पत्रिका "हरिजन" के  18 जनवरी 1948 को तब ऐसा वातावरण नहीं रहा होगा जैसा अभी है। उन्होंने लिखा
" सच्ची लोकशाही केंद्र में बैठे हुए 20 आदमी नहीं चला सकते वह तो नीचे से हर एक गांव के लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिए"
 देश की आजादी के बाद उनकी यह विचार तत्कालिक और दूरदर्शी थे। उन्होंने भीड़ के राज्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है। 28 जुलाई 1920 यंग इंडिया में लिखते हुए उन्होंने कहा 
"मैं खुद को सरकार की नाराजगी का इतनी परवाह नहीं करता जितनी भी कि भीड़ नाराजी का। भीड़ की मनमानी राष्ट्रीय बीमारी का लक्षण है। और इसलिए सरकार की नाराजगी की- जो अल्पकाय संघ तक ही सीमित होती है -तुलना में उससे निपटना ज्यादा मुश्किल है। ऐसी किसी सरकार को, जिसने अपने को शासन के लिए अयोग्य सिद्ध कर दिया हो अपदस्थ करना आसान है लेकिन किसी भीड़ में शामिल अनजाने आदमियों का पागलपन दूर करना ज्यादा कठिन है।"(28.7.1920)

 उन्होंने यंग इंडिया में ही 8 सितंबर 1920 को इस पर और प्रकाश डाला, गांधी कहते हैं
" भीड़ को अनुशासन सिखाने से ज्यादा आसान और कुछ नहीं है। कारण सीधा है। भीड़ कोई काम बुद्धि पूर्वक नहीं करती है, उसकी कोई पहले से सोची हुई योजना नहीं होती ।भीड़ के लोग जो कुछ करते हैं सो आवेश में करते हैं। अपनी गलती के लिए पश्चाताप भी वे जल्दी करते हैं। मैं असहयोग का उपयोग लोकशाही का विकास करने के लिए कर रहा हूं।"(8.9.1920)
 इसी तरह 22 सितंबर 1920 को उन्होंने कहा 
"हमें इन हजारों लाखों लोगों को, जिनका हृदय सोने का है, जिन्हें देश से प्रेम है, जो सीखना चाहते हैं और यह इच्छा रखते हैं कि कोई उनका नेतृत्व करें, सही तालीम देनी चाहिए।"
 "केवल थोड़े से बुद्धिमान और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की जरूरत है। यह मिल जाए तो सारे राष्ट्र को बुद्धि पूर्वक काम करने के लिए संगठित किया जा सकता है तथा भीड़ की अराजकता की जगह सही प्रजातंत्र का विकास किया जा सकता है। "(22.9.1920)
  22 फरवरी 1921 को यंग इंडिया में ही भीड़ के राज्य पर पुनः लिखते हैं-
" सरकार की ओर से या प्रजा की ओर से आतंकवाद चलाया जा रहा हो तब लोकशाही की भावना की स्थापना करना असंभव है। और कुछ अंशों में सरकारी-आतंकवाद की तुलना में प्रजाकीय-आतंकवाद, लोकशाही की भावना के प्रसार का ज्यादा बड़ा शत्रु है । कारण, सरकारी-आतंकवाद से लोकशाही की भावना को बल मिलता है जबकि प्रजाकीय-आतंकवाद तो उसका हनन करता है ।"(23.2.1921)
    इस तरह महात्मा गांधी अपने अनुभवों को आज से 100 साल पहले लिपिबद्ध कर रहे थे जैसे उन्हें भारत की आजादी दिख गई थी जैसे वर्तमान सत्ता का अद्यतन 100 साल पहले दिख गया था। किंतु वे उसे संभालेंगे कैसे इस पर उनका चिंतन और मनन लगातार जारी था।प ठीक आज से 100 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी अपनी पत्रकारिता के सहारे कभी यंग इंडिया में तो कभी हरिजन में अपनी भावनाओं को और काल्पनिक आजाद भारत के लिए ताना-बाना रचते रहते थे। और पत्रकारिता तथा महात्मा गांधी का यह संयोग भारत की आजादी के कपाट क्रम से संघर्ष पूर्ण तरीके से खोल रहा था। देश की आजादी के 20 वर्ष पहले महात्मा गांधी ने आजाद भारत खुद देख लिया था उसकी बुराइयां भी उन्हें नजर आ गई थी इसीलिए उनकी हर बातें लगभग लिपिबद्ध हो रही थी।
 "ताकि लिख दिया वक्त में काम आवे" के अंदाज पर उन्हें कोई गलत साबित न कर सके। और यह उनका ही कॉन्फिडेंस था, आत्मविश्वास रहा कि 20 वर्ष पहले वे आजाद भारत कैसा रहना चाहिए इस पर काम प्रारंभ कर दिए थे।
 फिर कभी "तेरा तुझको अर्पण" में गांधी जी की बातें किसी ने विषय पर लेकर प्रकट होंगे। तब तक आप गांधी को मंथन करते रहिए उन्हें गुथते रहिए.., क्योंकि गांधी से गुथने का मतलब संपूर्ण स्वतंत्रता है और लाखों लोगों की बलिदान से निकली आजादी है अभी आपके ऊपर है कि आप तय करें आप गुलाम रहना चाहते हैं या स्वतंत्र...., अथवा स्वतंत्र भारत नामक स्थान पर गुलाम नागरिक.....

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

मन का तंज...1 आईसीआई का पहला वैध आत्मनिर्भर उपभोक्ता सेंटर बनेगा भोपाल में , कलेक्टर भोपाल की नई खोज (त्रिलोकीनाथ)

मन का तंज...1

"आईसीआई"  का  पहला वैध आत्मनिर्भर उपभोक्ता सेंटर बनेगा भोपाल में

(त्रिलोकीनाथ)

 इंडियन कोरोना इंडस्ट्रीज (आईसीआई) यह बड़े लोगों की भाषा है आम आदमी की भाषा में भारत में जो कोरोनावायरस फैला है उसका औद्योगिकरण जैसा हुआ है। उससे एक अदृश्य इंडियन-कोरोना-इंडस्ट्रीज का जिस रफ्तार में विकास हुआ है भारत के ही नहीं दुनिया के किसी भी मुल्क में इतना तेजी से विकास नहीं हुआ हो सकता है।

औद्योगीकरण के क्षेत्र में अन्य क्षेत्र में घाटा हुआ हो किंतु आईसीआई ने जो डर पैदा किया है इस देश में और इस देश की डरपोक जनता ने इस डर को जितना आत्मनिर्भर बनने में मदद किया है उसके नतीजे आईसीआई के पक्ष में बनने लगे हैं ...।दुनिया में यह बात अभी तय नहीं हुई है कि अगर कोरोनावायरस का टीका / वैक्सीन बनेगी तो किन सर्वोच्च लोगों को प्राथमिक क्रम से बांटा जाएगा।

 बहराल भारत में मध्यप्रदेश ही पहला ऐसा राज्य था जहां आईसीआई का सफल प्रयोग हुआ है ।अब इसी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की कलेक्टर ने सफलता पूर्ण तरीके से आईसीआई से पैदा होने वाले उपभोक्ताओं के लिए भोपाल के होटलों को क्वॉरेंटाइन करने की जगह के लिए तलाश किया है । आप अपनी आर्थिक क्षमता के हिसाब से चुन सकते हैं कि आप कहां क्वॉरेंटाइन होना चाहेंगे। वैसे अघोषित तौर पर दिल्ली में यह बात स्पष्ट रूप से प्रकट हुई थी कि वहां के हॉस्पिटल  तेरह से पंद्रह लाख रुपये एक बिस्तर मरीज उपभोक्ता को ब्लैक में बेच रहे थे चुकी वहां के कलेक्टर ने इसे वैध करार नहीं किया था तो हल्ला मच गया तो वातावरण चेंज हो गया किंतु अब जो खबर आ रही है भोपाल से उसे क्योंकि कलेक्टर ने वैधानिक जामा पहनाने का काम किया है इसलिए वह वैध रूप से मानी जाएगी।

 आईसीआई मैं प्रभावित होने वाले व्यक्तियों या उपभोक्ताओं के लिए खुशी की खबर है उन्हें 14 दिन सरकारी त्रासदी पूर्ण जीवन में नहीं बिताने पड़ेंगे और गरीब तो कीड़े मकोड़े हैं आईसीआई के गरीब उपभोक्ताओं को सिर्फ मार्केटिंग डर का बाजार बनाने की प्रयोग में लाया जाएगा। कुछ इस प्रकार की मनसा इस फैसले में प्रगट होती है ... बहरहाल,

"जो दैनिक भास्कर की जो खबर है पहले वह जान लेते हैं

 जिला कलेक्टर अविनाश लवानिया ने कहा कि कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों को क्वारैंटाइन होना जरूरी है। उन्होंने कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों के क्वारैंटाइन की व्यवस्था की है। इसके लिए पेड क्वारैंटाइन सेंटर की व्यवस्था कुछ होटल में भी उपलब्ध कराई गई है। इन होटलों की सूची उपलब्ध कराई जाएगी।

कलेक्टर ने बताया कि शासन स्तर पर क्वारैंटाइन सेंटर में भी सभी के लिए व्यवस्था की गई है। जो कोई अपनी सुविधा अनुसार निजी होटल में क्वारैंटाइन होना चाहते है, उसके लिए स्वयं के व्यय पर चिह्नित होटल में क्वारैंटाइन हो सकते हैं। इसके लिए एसडीएम से संपर्क कर निजी होटल की सूची ली जा सकती है। इनका किराया और व्यवस्थाओं के रेट भी निर्धारित हैं। इस संबंध में भुगतान होटल को करना होगा।

होटल में बनाए क्वारैंटाइन सेंटर में कौन रुक पाएगा ?

ऐसे में सवाल ये है कि एक तरफ जहां कोरोना मरीजों का पूरा इलाज करने का दावा किया जा रहा है, वहीं उनके संपर्क में आए लोग खुद के खर्चे से क्वारैंटाइन सेंटर बनाए गए होटलों में रहेंगे। जबकि राजधानी में प्रशासन ने कई कोविड सेंटर बनाए हैं, जहां पर संक्रमित के संपर्क में आए मरीजों को ठहराया जा रहा है। अब प्रशासन उनकी देखभाल नहीं कर पा रहा है, इसलिए नया तरीका ईजाद कर रहा है।

मंगलवार को ही आरजीपीवी में बनाए गए क्वारैंटाइन सेंटर में लोगों ने खराब भोजन और गंदगी की शिकायत की थी। जब वह ठीक नहीं हुई तो लोगों ने हंगामा कर दिया। ऐसी शिकायतें हर रोज क्वारैंटाइन सेंटरों से आ रही हैं। सवाल ये भी है कि होटलों में बनाए गए सेंटर का किराया आम लोग कैसे भर पाएंगे।"


यदि करीब 4 माह बाद एक आईएएस कि दिमाग में यह प्रयोग आया है तो निश्चित तौर पर 4 महीने पहले भी भारत की बौद्धिक संपदा धारी व्यक्तियों के दिमाग में प्रयोग आ सकता था... कि विदेश से जो आईसीआई का प्रोडक्ट कोविड-19 बीमारी लाया जा रहा है उन्हें जो बड़े आदमी हैं ऐसी ही होटलों में जहां यह जिस देश में हैं उन्हें उन्हीं होटलों में या फिर वहां के राजदूत कार्यालय में सुरक्षित करके ठीक कर भारत ला सकते थे। अगर ले भी आए तो भारत के ही किसी होटल में उन्हें ठीक करने तक रोक सकते थे, किंतु ऐसा करने से शायद आज आईसीआई का इतना बड़ा विस्तार, इतनी बड़ी जीडीपी और इतनी बड़ी टीआरपी नहीं देती..... भारत में 4 महीने के अंदर ही इतनी बड़ी इंडस्ट्री यह भारतीय राजनेताओं की ऐतिहासिक सफलता का उदाहरण भी है ।

 

   इंडियन कोरोना हमारे मित्र देश रूसी करोना की तरह नहीं जो रुक जाए और ठहर जाए, इसका विकास लगातार तो रहा है इसीलिए "जान है जहान है" उसके नजर में अब "आत्मनिर्भर" क्वॉरेंटाइन सेंटर की खोज भी भोपाल के कलेक्टर ने कर ली है। वह बधाई के पात्र इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी बौद्धिक क्षमता का संपूर्ण उपयोग किया है । 

कोई जरूरी नहीं कि लोकतंत्र में लोकहित की गारंटी का पालन किया ही जाए, "लोकहित" जनतंत्र में संविधान की बड़ी त्रुटि थी, हमारे राजनेताओं ने जो गलतियां की हैं उनका सुधार, संवैधानिक-संशोधन राज्यसभा में पूर्ण बहुमत आने के तत्काल बाद कर लिया जाएगा।

 और इस प्रकार एक गौरवशाली आत्मनिर्भर भारत की घोषणा भी हो जाएगी।

 कोरोना काल में धर्म का नकाब धर्म ध्वजा की तरह लहराएगा। जिसका शिलान्यास राम जन्मभूमि मंदिर के नाम पर अयोध्या में पूरे जश्न के साथ शीर्ष आमंत्रित उपस्थित विशिष्ट लोगों के मध्य होगा। जिन्हें आईसीआई का निमंत्रण मिलेगा...

 यही लोकतंत्र है वर्तमान भारत का...

 और यही आत्मनिर्भरता है....

इसे ही जान है जहान है....

 कहा जाता है

सबका साथ सबका विकास का मूल मंत्र भी जिन लोगों के लिए गढ़ा गया है वह सब अयोध्या में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हिंदुत्व के राम की स्थापना के साथ काम प्रारंभ करेंगे... और उनका हेड क्वार्टर बनाएंगे।

 इस हेड क्वार्टर में हमारे भोपाल के कलेक्टर का निमंत्रण है या नहीं यह सूची आने के बाद पता चलेगा। तब तक आत्मनिर्भर भारत में अमीर आईसीआई उपभोक्ताओं के लिए "चिरायु" जैसी सुविधा की आप अनुमान ही लगा सकते हैं।

 बधाई हो इस देश के अमीर आईसीआई उपभोक्ताओं को.।

वाह रे मेरे देश..... 

वाह मेरे देश के नेता...,

सचमुच में हिंदुत्व को अब गर्व हो रहा है।

किंतु मैं सनातन धर्मी हूं ,हिंदू नहीं। इसलिए थोड़ा निराश हूं।

आशा करता हूं हिंदू बन जाऊं.......

                         ---------


सोमवार, 27 जुलाई 2020

सवाल रहस्य में मौतों के न्याय का..... (त्रिलोकीनाथ)

रहस्य में मौतों को क्या मिलेगा न्याय.....?


जस्टिस लोढ़ा के बाद न्यायाधीश महेंद्रत्रिपाठी की मौत ने न्यायपालिका में भरी दहशत.....


(त्रिलोकीनाथ)


संवेदना और विश्वास के संकट भरे माहौल में

शहडोल जिले के निवासी महेंद्र त्रिपाठी

और उनके बड़े लड़के की इस प्रकार से हुई मृत्यु ने न्यायपालिका को हिला दिया है इसके पहले बहुचर्चित जस्टिस लोढ़ा की मौत ने भी अब तक अपने रहस्य में मृत्यु की चादर पर कोई खुलासा नहीं कर पाए
जस्टिस लोया की मृत्यु मे हलांकि उनके परिवार के लोग सामने आकर उसे स्वाभाविक मौत का रूप दे रहे थे। लेकिन आम जनमानस है इसको मानने को तैयार नहीं। चुंकि उच्चतम  न्यायालय फिर जस्टिस की मौत रहस्य में परिस्थितियों में कि धुंध में बरकरार हैं।
इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगी कि एडीजे महेंद्र  की मौत का खुलासा पारदर्शी होगा तो आइए जानते हैं समाचार सूत्र एडीजे की मृत्यु को किस प्रकार बता रहे हैं




स्रोत-"(इरशादहिंदुस्तानी/बैतूल:) बैतूल के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश महेंद्र कुमार त्रिपाठी एवं उनके बेटे अभियनराज मोनू की मौत हो गई है. जज पिता और पुत्र की अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मजिस्ट्रेट और उनके बेटे की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद जिला प्रशासन में हड़कम्प मच गया है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक एडीजे महेंद्र कुमार त्रिपाठी की रविवार सुबह इलाज के दौरान एलिक्सिस अस्पताल में मृत्यु हो गई, जबकि पुत्र ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया.


बैतूल की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रद्धा जोशी के मुताबिक जज पिता और उनके पुत्र को बीते 23 तारीख को पाढर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहां दोनों को फूड पॉइजनिंग (Food Poisoning) होने की बात पता चली. दोनों की हालत बिगड़ने पर उन्हें नागपुर रेफर किया गया था. अस्पताल ले जाते समय बेटे की रास्ते में ही मौत हो गई, जबकि जज पिता ने अस्पताल में दम तोड़ा. इस मामले में पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. एएसपी के मुताबिक मजिस्ट्रेट महेंद्र कुमार त्रिपाठी और उनके बेटे की 20 जुलाई की तारीख भोजन करने के बाद हालत बिगड़ी.


पुलिस को संदेह है कि मजिस्ट्रेट और उनके बेटे परिवार ने जो चपातियां खाई थीं उससे उन्हें फूड पॉइजनिंग हुई. मजिस्ट्रेट और उनके दोनों पुत्रों ने ही चपातियां खाई थीं, जबकि उनकी पत्नी ने चपाती नहीं खाई थी. एएसपी ने बताया कि पुलिस इस मामले में मजिस्ट्रेट के घर में रखे आटे की सैम्पलिंग करेगी, वहीं बिसरा भी जांच के लिए भेजा जाएगा. मजिस्ट्रेट पिता और उनके पुत्र के शवों का पोस्टमार्टम नागपुर में ही किया जा रहा है. एसडीओपी विजय पुंज ने बताया कि मजिस्ट्रेट परिवार से उन्हें जानकारी मिली है कि न्यायालय में या सर्किट हाउस के पास किसी परिचित ने उन्हें आटा दिया था, जिसे घर जाकर रोटियां बनाई गई थीं.


इधर कोतवाली और गंज टीआई मजिस्ट्रेट के आवास पर जांच के लिए पहुंचे. नौकर के मुताबिक मजिस्ट्रेट की पत्नी और उनके दोनों बेटे कुछ दिन पहले ही इंदौर से आए थे. उस रात खाना मजिस्ट्रेट की पत्नी ने ही बनाया था. पुलिस ने मजिस्ट्रेट के आवास से आटे की थैली, इलाज में उपयोग की गई इंजेक्शन की सिरिंज जब्त की है. खबर है कि मजिस्ट्रेट पिता और उनके बेटे के शवों को बैतूल न लाकर उनके गृह ग्राम ले जाया जाएगा. इस मामले में मजिस्ट्रेट का परिवार महाराष्ट्र के नागपुर स्थित मानपुरा थाने में हत्या का मामला दर्ज कराया है. एडीजे महेंद्र कुमार त्रिपाठी मूलत: शहडोल जिले के धनपुरी क्षेत्र के निवासी थे."


वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली में क्या अपर जिला सत्र न्यायाधीश महेंद्रत्रिपाठी और उसके परिवार को क्या न्याय मिल पाएगा....? यह एक संशय भरा प्रश्न है। क्योंकि मध्य प्रदेश की सीमा में या फिर कहना चाहिए महाराष्ट्र के थाने के अंतर्गत एडीजे महेंद्र की पत्नी ने रिपोर्ट किया है।

 हालांकि वर्तमान में जो लोकतांत्रिक संकट चल रहा है उसमें सिर्फ और सिर्फ न्यायपालिका की अपना ही सांगठनिक ढांचा है जिसमें वह स्वतंत्रता से न्याय दिला सपने की दावा कर सकता है।

 न्याय चाहे एडीजे महेंद्र त्रिपाठी की रहस्यमई मौत का हो अथवा न्याय, कानपुर वाले विकास दुबे की रहस्यमई मौत का हो....।

 

चुंकी महेंद्र त्रिपाठी न्यायाधीश थे या फिर विकास दुबे हत्या का आरोपी था दोनों ही मानव हैं और मानवीय संवेदना के साथ लोकतांत्रिक मौलिक अधिकार में पारदर्शी न्याय अत्यावश्यक है। महेंद्र त्रिपाठी की मृत्यु का अधिक खतरनाक संवेदन सील स्वरूप पहली खबर में आया था जब बताया गया की "प्रसाद" खाने के कारण पिता-पुत्र की मृत्यु हो गई थी। संवेदना इस बात की थी कि धर्म में ईश्वर का प्रसाद पूरी आस्था के साथ और विश्वास करके कोई भी व्यक्ति प्रसाद खाता है। यदि घर पहुंचा कर भगवान का प्रसाद धार्मिक वातावरण में न्यायधीश को खिलाया जाएगा और उसका परिवार मृत्यु तक संवेदना से हिल जाएगा तब मानवीय संवेदना में सुरक्षा की भावना कैसे स्थापित रह पाएगी...?

 क्योंकि धार्मिक श्रद्धा और भावनाओं को भड़का कर हमारे देश में इतना ज्यादा धंधा हो चुका है की प्रसाद में जहर मिलाकर के खाने की बात ईश्वर के अस्तित्व पर एक सिरे से अविश्वास करने का संदेश था।

 इरशाद हिंदुस्तानी की इस समाचार से राहत मिली है कि जहर "प्रसाद" में चढ़कर नहीं आया था बल्कि आटे में चढ़कर आया था। और यह है मौत के धंधे में एक संतोषजनक खबर जस्टिस लोया के मामले में मौत किस पर चढ़कर आई थी न्यायपालिका के लिए अभी भी यह एक खतरनाक रहस्य है।

     देखते हैं एडीजे महेंद्र त्रिपाठी और उनके पुत्र की मृत्यु के मामले में क्या हमारा लोकतंत्र न्याय की गारंटी पारदर्शी तरीके से दिखा पाता है.... या फिर जस्टिस लोया की तरह न्यायपालिका को भयभीत करने के एक हथियार मात्र साबित होता है...। क्योंकि बार-बार यह साबित होना की न्यायपालिका के जज को भी हत्या की जा सकती है हमारी लोकतांत्रिक संवैधानिक ढांचे पर बड़ा प्रहार है.....

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रविवार, 26 जुलाई 2020

यथा राजा - तथा प्रजा -क्या गैर कानूनी लौटे ललित पांडे...? (त्रिलोकीनाथ)

एक और गैर कानूनी स्थानांतरण...?
बहाल होकर पुष्पराजगढ़ गए,
संशोधित करा गोहपारू लौटे ललित
 आदिवासी विभाग में कायम है जन-धन-योजना का राज...
 (त्रिलोकीनाथ)
शहडोल जिले में अशोक शर्मा और एसपीएस चंदेल बैगा सम्मेलन लालपुर कि भ्रष्टाचार से मुक्त होकर  विकास खंड अधिकारी के रूप में पदस्थ हुए| लाखों रुपए  इस मायाजाल में नुकसान हुआ|  ललित पांडे 16 सितंबर 2019 को तत्कालीन कमिश्नर आरबी प्रजापति के द्वारा निलंबित किए गए थे, 16 नवंबर 19 को उन्हेंबहाल करते हुए कमिश्नर ने अनूपपुर जिले के हाई स्कूल  में प्राचार्य पद पर पदस्थ किया|
 अब 9 माह बाद संभागीय उपायुक्त आदिवासी विकास जगदीश सरवटे ने कमिश्नर के बहाली आदेश को स्वत संज्ञान लेते हुए संशोधित कर दिया और एक नोटशीट प्रस्तुत करके प्राचार्य पद पर पदस्थ ललित पांडे को कोरोना काल में शहडोल जिले के गोहपारू विकासखंड में खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में पदस्थ करवा दिया। शासन के नियमों को न मानने की जिद पर अड़े उपायुक्त  सरवटे ने जरा भी नहीं सोचा कि 9 माह पूर्व जिसने बहाली आदेश पर अपनी उपस्थिति अनूपपुर जिले में दे दी है और उस पद पर वह अपना वेतन भी ले रहा है उसके आदेश में संशोधन कैसे हो सकता है...?
 तो क्या जन-धन-योजना क ही यह प्रभाव रहा की कमिश्नर शहडोल को गुमराह करते हुए इस तरह के आदेश कराए गए हैं..? कमिश्नर शहडोल नरेश पाल के लिए आदिवासी विभाग एक रहस्यमय जगह बनता जा रहा है जहां से जिसकी जो इच्छा पड़ती है वह मंत्री से संत्री तक अंगूठा लगाकर अपना काम करवा लेता है।खबर तो यहां तक है की यदि आपके पास धन की ताकत है तो आप उच्च अधिकारियों के तमाम आदेशों को किनारे करके अपना संलग्न करण बनाम स्थानांतरण करवा सकते हैं । यह भी एक नए प्रकार का प्रयोग है कोरोना काल में जब चुनौती अवसर के रूप में देखा जा रहा है तो आदिवासी विभाग में भी किसी भी चुनौती को एक अवसर के रूप में तलाश करते हुए जमकर भ्रष्टाचार का आवरण बन रहा है।  
बहरहाल ललित पांडे का प्रकरण इसलिए ज्यादा गरम हो गया है कि जब कुछ विधायकों ने उपायुक्त सरवटे को इस बात के लिए दवाब दिया कि विकास खंड अधिकारी किसे बनाया जाए तो उन्हें नियम का हवाला देकर विकास खंड अधिकारी का प्रभार देने से बाधा बताई थी |   ललित पांडे के लिए गैर कानूनी कार्य  उपायुक्त  के लिए नियम  बाधा नहीं बनता...?
   क्योंकि आदिवासी विभाग में जन-धन-योजना की खुली कार्यप्रणाली जनप्रतिनिधियों को उनकी औकात बताती है। और जनप्रतिनिधियों को अफसरशाही की हुक्मरानी करनी सीखनी चाहिए, क्योंकि आदिवासी विभाग का अफसर ही यहां का राजा है, बाकी सब प्रजा है ...।
तो क्या फर्क पड़ता है ललित पांडे पुष्पराजगढ़ से नियम कानून को धता बताते हुए एक  सरकारी अनुमोदन में, सरकारी आदेश करवा कर स्वयं को गोहपारू विकास खंड शिक्षा अधिकारी रूप में कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी की तरह राजाओं के लिए काम  करेंगे।
 यथा राजा - तथा प्रजा और वह भी क्यों ना हो भी क्यों ना..? यदि बहुपत्नी प्रणाली आदिवासी विभाग के कई कर्मचारियों को आकर्षित करती है तो स्वाभाविक है की उनके साज श्रृंगार रखरखाव और व्यवस्थापन के लिए ऊपर से जनधन आता रहे|
 इस तरह  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तथाकथित गोद ली हुई आदिवासी संभाग शहडोल का मुख्यालय मनमाने तरीके से गैरकानूनी कार्यो खुलेआम करने पर जरा भी नहीं हिच-किचा रहा है क्योंकि विधायक अथवा मंत्री सब इन्हीं अफसरों की कृपा पर अपना सल्तनत चला रहे हैं ऐसा प्रतीत होता है...

17 चीन का भारत... बेशर्म राजनीति को नहीं है चिंता( त्रिलोकीनाथ)

बेशर्म-राजनीति  को नहीं है चिंता...
 भारत में 17 चीन  बने ,
कोरोना का कहर बरकरार..
पिछले हफ्ते के 2 मुकाबले इस बार करीब 3.5 लाख कोरोना संक्रमण का दायरा बढ़ा
 शहडोल क्षेत्र में अबतक 
160 मरीज दर्ज किए गए
(त्रिलोकीनाथ)

 भारत में पिछले हफ्ते दोलाख की सप्ताहिक बढ़ोतरी के मुकाबले इस हफ्ते साढे लाख  कोरोना संक्रमित लोगों के आंकड़े बढे हैं। पिछले रविवार को 10 लाख 78 हजार के करीब संक्रमित व्यक्ति दर्ज किए गए थे, इस रविवार को 14 लाख 12 हजार के करीब संक्रमित व्यक्तियों का दायरा बढा है। 
एक नजर से देखें तो अगर चीन (कोरोना का जन्मदाता) को पैरामीटर माना जाए तो चीन में  नागरिकों की दर्ज संक्रमित आंकड़े 83839 के नजर से भारत में इस रविवार 17 चीनी राष्ट्र के संक्रमित व्यक्तियों का समावेश भारत में हो चुका है।
 पांच राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में क्रमशः चार,ढाई, डेढ़ व एक-एक चीन का समावेश याने 10


संक्रमित चीन बन गए हैं। पूरे भारत में 17 चीन के बराबर संक्रमित व्यक्ति दर्ज हैं। वर्ल्डोमीटर के आंकड़ों के अनुसार भारत तीसरे नंबर में तो चीन 26 में नंबर में संक्रमित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थापित है। भारत में रिकवरी रेट करीब 9लाख पार है और इस बीमारी से मृत  व्यक्तियों की संख्या 32000 से ज्यादा है हमारा पड़ोसी रूस 8लाख से ज्यादा मरीजों के साथ चौथे स्थान पर है। वहां मृत व्यक्तियों की संख्या  13 हजार से ज्यादा है।
 कुल मिलाकर भारत यदि बहुत जल्दी एक लाख  प्रतिदिन के दर से संक्रमित मरीजों के आंकड़े लाता है तो आश्चर्य नहीं होगा।
 क्योंकि भारत की राजनीति सत्ता की सोच साम्राज्यवादी विस्तार की तरह बनी हुई है जो राजस्थान की सरकार को खत्म कर भाजपा की सरकार के लिए भ्रम का वातावरण बनाए हुए हैं ।
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सबको याद होगा कि किस प्रकार से 4 माह पूर्व जब कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी झूठा ही सही बोल रहे थे कि कोरोनावायरस एक बड़ा खतरा है तब भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता को हटाने के लिए भाजपा सरकार लगातार व्यस्त रही है। उसका ध्यान कोरोनावायरस  की बजाय साम्राज्यवादी विस्तार पर ज्यादा लगा हुआ था। जो 4 माह बाद भी उसी गति में बरकरार है। जिस गति में भारत में कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है।

 तो अब मध्य प्रदेश मे नजर डालें जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं
कोरोनावायरस पॉजिटिव होकर एकांतवास में चले गए हैं। सोशल मीडिया में उनकी स्वास्थ्य लाभ की लाइव वीडियो चर्चा का विषय बने हुए हैं। कल मध्य प्रदेश का सेकंड सैटरडे और संडे फुल लाकडाउन  कर्फ्यू रहा ।लगता है सरकार ने भी तय कर लिया है, "कोरोना के साथ-साथ विकास"।
 बहरहाल कुछ शहरों को छोड़ दें मध्यप्रदेश में तो सभी संक्रमित जिलों के आंकड़े 100 व्यक्तियों के ऊपर हैं ।
शहडोल संभाग को राजनीतिक हितों के लिए और उद्योगपतियों के हित के लिए 3 जिले में बांटा गया है। यदि उसे पुनः एक जिला के रूप में देखें तो शहडोल क्षेत्र में 160 संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़े इस रविवार को दर्ज किए गए हैं। जिसमें 56 मरीज सक्रिय रुप से अद्यतन है। शेष रिकवर होकर जा चुके हैं। एक व्यक्ति की संक्रमण से मृत्यु उमरिया में बताई गई है। शहडोल संभाग में अनूपपुर के 69 शहडोल के 55 और उमरिया के 36 संक्रमित व्यक्ति इस रविवार तक को दर्ज किए गए हैं। अनूपपुर में सर्वाधिक 34 व्यक्ति सक्रिय रुप से संक्रमित हैं जबकि 11-11 व्यक्ति शहडोल और उमरिया में संक्रमित है।

शनिवार, 25 जुलाई 2020

8:00 गांधी चौक में बंद हो गई दुकाने अनलॉक फर्स्ट सैटरडे

8 का मतलब 8
पहले से तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार रात 8:00 बजे से सोमवार सुबह तक कर्फ्यू कोरोना कर्फ्यू लग गया है और ठीक 8:00 बजे सुहागपुर के एसडीएम धर्मेंद्र मिश्रा तहसीलदार बीके मिश्रा अपनी टीम सहित गांधी चौक शहडोल में खड़े हो गए नतीजतन पूरे गांधी चौराहा की दुकानें 8:00 सौ अनुशासन का पालन करते हुए बंद कर दी गई और धीरे से यातायात भी नियंत्रित होने लगा प्रशासन की सतर्कता देखने लायक थी





गुरुवार, 23 जुलाई 2020

अहम् ब्रह्मास्मि-2 क्या ब्रह्म-हत्या का पाप कटेगा...? हे राम (त्रिलोकीनाथ)

अहम् ब्रह्मास्मि-1 

हे राम......


क्या         इससे 

ब्रह्म-               हत्या

 का पाप 

कटेगा...?


(त्रिलोकीनाथ)



भारतीय सनातन पद्धति में सनातन धर्म हिंदू की 

धार्मिक पुनर्स्थापना का इतिहास शंकराचार्य के चार मठों से 

हुआ.., यह बात यदि कोई हिंदू है तो उसे मालूम है |

 इसी में  मठप्रमुख जगतगुरु
 
 
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का
 
 नाम हमेशा चर्चा मे रहा| उन्होंने 
 
कहा है कि यदि अयोध्या के राम
 
 
मंदिर की स्थापना वैदिक ज्योतिष
 
गणना के आधार पर नहीं होती है
 
 
तो वह राष्ट्रीय
 
स्वयंसेवक संघ का
 
एक कार्यालय मात्र
 
है ..|
तो क्या जिस
 
प्रकार से राम मंदिर
 
अयोध्या के
 
निर्माण की प्रक्रिया का शुभारंभ की
 
बात उठ रही है वह सिर्फ उत्तरभारत का संघ
 
-कार्यालय मात्र होगा...? जहां रामलला हिंदुत्व
 
के ब्रांड होंगे| यह बात मंथन की है|

तो यदि अच्छे दिन आ ही गए हैं रामलला के..., तो क्या सनातन धर्म की आधुनिकीकरण का संघ-कार्यालय के रूप में पुनरुद्धार भी हुआ है..? जैसे भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली स्थित, हाईटेक कार्यालय| जिसमें सिर्फ दो मूर्तियां दिखती हैं

एक अमित शाह की और दूसरी सामने दिखने वाली नरेंद्र मोदी की..| क्या इसी का एक तरीका रामलला मंदिर के नाम पर संघ कार्यालय अपनी अघोषित सत्ता की स्थापना करेगा....|, जहां से वह हिंदुत्व का ब्रांड को और आगे ले जाने के लिए लोकतंत्र में मंदिर का प्रोपेगेंडा विश्वविद्यालय स्थापित करें|


 और वही उनके
 लिए आकर्षण का केंद्र होगा, देवताओं के लिए भी जो हिंदुत्व के विश्वविद्यालय स्थापित देवता की तरह पूजे जाएंगे... जिनके अपने अंध भक्त होंगे और अंध भक्तों की पूरी फौज उनकी होगी| कहीं भी, कभी भी हिंदुत्व के लिए तथाकथित-बलिदान के लिए समर्पित भी रहेंगे|

तो राजनीत का अखाड़ा बन चुकी अयोध्या की राममंदिर मैं जो भी आस्थावान सनातन धर्म में हिंदू धर्म को मानने वाला व्यक्ति होगा वह क्यों राममंदिर के इस भवन में आस्था रखता आएगा..| अगर वह जैसा कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा है कि संघ का कार्यालय मात्र है, बनता है तो यह सही है कि इसमें आधुनिक भारत की सांस्कृतिक-मंदिर का स्वरूप चमकेगा.. जो लोग हिंदुत्व-ब्रांड के मंदिर के लिए काम करते हैं उनका मुख्यालय इस प्रकार से भी हो सकता है...|

यदि सनातन प्रक्रिया से स्थापित जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और उनकी बातों को खारिज किया जाता है की ज्योतिष गणना के दृष्टिकोण से मंदिर तिथि का निर्माण उचित नहीं है... बैरहाल आर एस एस की अपने तरीके का रामजन्मभूमि का भवन के निर्माण की प्रक्रिया चालू होगी तो उसमें भारत के सबसे ज्यादाकट्टर हिंदुत्व चेहरा बने शिवसेना के लोगों को भी आहूत किया जाएगा इसमें लेकर संदेह है

 तो क्या त्रेता युग के राम की जन्मभूमि अयोध्या, कलयुग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर भारत में कार्यालय बन जाएगा..? यह एक चिंतनीय विषय है| यह अलग बात है कि जिस प्रकार से अलग-अलग प्रकार के धर्मशाला में मंदिर और भगवान की मूर्तियां स्वागत में लगी रहती हैं अयोध्या में बाल-राम की एकमात्र मूर्ति होगी| यह त्रेतायुग से कलयुग का भगवान राम के वनवास यात्रा का प्रमाण भी होगा| जो रामराज्य की कल्पना का प्रतिबिंब भी करेगा|

तो क्या राम-लक्ष्मण और सीता आज भी बनवास पर हैं...? क्या वे किसी रावण से मुक्ति के प्रयास में छटपटा रहे हैं..., जी हां यह बात उठ भी रहे.. अगर भारत का  सत्ता-धीश, राम जन्मभूमि मैं अपनी जीत का डंका पीट रहा है तो दुनिया में एकमात्र हिंदू राष्ट्र (अंतिम) रहे नेपाल के सत्ता ने प्रश्न खड़ा कर दिया है, कि भगवान राम नेपाली थे...?

 हालांकि वह अकेले ऐसे नहीं है, भारत के अंदर ही छत्तीसगढ़ में अपने चित्रकूट हैं और अपने ही राम की स्मृतियां हैं... राम अयोध्या में जन्मे थे किंतु ओरछा का रामराजा आज भी विद्यमान है| आज भी सनातन तरीके से वहां कार्यपद्धती होते हैं, यह अलग बात है कि अयोध्या के बाद क्या ओरछा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राम का ब्रांड बनता है..?

 बहरहाल संपूर्ण व स्वतंत्र 

निष्पक्ष परमब्रह्म मर्यादा

 पुरुषोत्तम राम हमेशा चर्चा के

 केंद्र में रहेंगे... क्योंकि राजनीति ब्राह्मणों की हत्या का बोझ झेल

 रही है.. खासतौर से उत्तरप्रदेश में सामूहिक रूप से तथाकथित

 अपराधियों के समूह जिसमें सभी ब्राह्मण थे उनकी हत्या का 

आरोप भगवाधारी मुख्यमंत्री और वह भी सन्यासी बताने वाले स्वयं

 को आदित्यनाथ योगी पर यह आरोप पूरे भारत के जनमानस को 

हिला कर रख दिए हैं... क्योंकि अगर यह सभी ब्राह्मण हत्यारे थे, 8

 पुलिस वालों के.. उनका न्याय पुलिस वालों और सब गिरोह ने 

मिलकर हत्या करके कैसे कर दिया....? और जब ब्राह्मण-

हत्यारे.., यह प्रोपेगेंडा बर्दाश्त नहीं हुआ भगवान राम का

 जन्मभूमि में असमय ही जन्म कराने का काम हिंदुत्व की सत्ता 

फिर करने लगे.. यह कोई नई बात नहीं है... क्या इससे ब्रह्म-हत्या

 का पाप कटेगा...?



भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...