रहस्य में मौतों को क्या मिलेगा न्याय.....?
जस्टिस लोढ़ा के बाद न्यायाधीश महेंद्रत्रिपाठी की मौत ने न्यायपालिका में भरी दहशत.....
(त्रिलोकीनाथ)
संवेदना और विश्वास के संकट भरे माहौल में
शहडोल जिले के निवासी महेंद्र त्रिपाठी
और उनके बड़े लड़के की इस प्रकार से हुई मृत्यु ने न्यायपालिका को हिला दिया है इसके पहले बहुचर्चित जस्टिस लोढ़ा की मौत ने भी अब तक अपने रहस्य में मृत्यु की चादर पर कोई खुलासा नहीं कर पाए जस्टिस लोया की मृत्यु मे हलांकि उनके परिवार के लोग सामने आकर उसे स्वाभाविक मौत का रूप दे रहे थे। लेकिन आम जनमानस है इसको मानने को तैयार नहीं। चुंकि उच्चतम न्यायालय फिर जस्टिस की मौत रहस्य में परिस्थितियों में कि धुंध में बरकरार हैं। इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगी कि एडीजे महेंद्र की मौत का खुलासा पारदर्शी होगा तो आइए जानते हैं समाचार सूत्र एडीजे की मृत्यु को किस प्रकार बता रहे हैंस्रोत-"(इरशादहिंदुस्तानी/बैतूल:) बैतूल के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश महेंद्र कुमार त्रिपाठी एवं उनके बेटे अभियनराज मोनू की मौत हो गई है. जज पिता और पुत्र की अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मजिस्ट्रेट और उनके बेटे की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद जिला प्रशासन में हड़कम्प मच गया है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक एडीजे महेंद्र कुमार त्रिपाठी की रविवार सुबह इलाज के दौरान एलिक्सिस अस्पताल में मृत्यु हो गई, जबकि पुत्र ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया.
बैतूल की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रद्धा जोशी के मुताबिक जज पिता और उनके पुत्र को बीते 23 तारीख को पाढर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहां दोनों को फूड पॉइजनिंग (Food Poisoning) होने की बात पता चली. दोनों की हालत बिगड़ने पर उन्हें नागपुर रेफर किया गया था. अस्पताल ले जाते समय बेटे की रास्ते में ही मौत हो गई, जबकि जज पिता ने अस्पताल में दम तोड़ा. इस मामले में पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. एएसपी के मुताबिक मजिस्ट्रेट महेंद्र कुमार त्रिपाठी और उनके बेटे की 20 जुलाई की तारीख भोजन करने के बाद हालत बिगड़ी.
इधर कोतवाली और गंज टीआई मजिस्ट्रेट के आवास पर जांच के लिए पहुंचे. नौकर के मुताबिक मजिस्ट्रेट की पत्नी और उनके दोनों बेटे कुछ दिन पहले ही इंदौर से आए थे. उस रात खाना मजिस्ट्रेट की पत्नी ने ही बनाया था. पुलिस ने मजिस्ट्रेट के आवास से आटे की थैली, इलाज में उपयोग की गई इंजेक्शन की सिरिंज जब्त की है. खबर है कि मजिस्ट्रेट पिता और उनके बेटे के शवों को बैतूल न लाकर उनके गृह ग्राम ले जाया जाएगा. इस मामले में मजिस्ट्रेट का परिवार महाराष्ट्र के नागपुर स्थित मानपुरा थाने में हत्या का मामला दर्ज कराया है. एडीजे महेंद्र कुमार त्रिपाठी मूलत: शहडोल जिले के धनपुरी क्षेत्र के निवासी थे."
वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली में क्या अपर जिला सत्र न्यायाधीश महेंद्रत्रिपाठी और उसके परिवार को क्या न्याय मिल पाएगा....? यह एक संशय भरा प्रश्न है। क्योंकि मध्य प्रदेश की सीमा में या फिर कहना चाहिए महाराष्ट्र के थाने के अंतर्गत एडीजे महेंद्र की पत्नी ने रिपोर्ट किया है।
हालांकि वर्तमान में जो लोकतांत्रिक संकट चल रहा है उसमें सिर्फ और सिर्फ न्यायपालिका की अपना ही सांगठनिक ढांचा है जिसमें वह स्वतंत्रता से न्याय दिला सपने की दावा कर सकता है।
न्याय चाहे एडीजे महेंद्र त्रिपाठी की रहस्यमई मौत का हो अथवा न्याय, कानपुर वाले विकास दुबे की रहस्यमई मौत का हो....।
चुंकी महेंद्र त्रिपाठी न्यायाधीश थे या फिर विकास दुबे हत्या का आरोपी था दोनों ही मानव हैं और मानवीय संवेदना के साथ लोकतांत्रिक मौलिक अधिकार में पारदर्शी न्याय अत्यावश्यक है। महेंद्र त्रिपाठी की मृत्यु का अधिक खतरनाक संवेदन सील स्वरूप पहली खबर में आया था जब बताया गया की "प्रसाद" खाने के कारण पिता-पुत्र की मृत्यु हो गई थी। संवेदना इस बात की थी कि धर्म में ईश्वर का प्रसाद पूरी आस्था के साथ और विश्वास करके कोई भी व्यक्ति प्रसाद खाता है। यदि घर पहुंचा कर भगवान का प्रसाद धार्मिक वातावरण में न्यायधीश को खिलाया जाएगा और उसका परिवार मृत्यु तक संवेदना से हिल जाएगा तब मानवीय संवेदना में सुरक्षा की भावना कैसे स्थापित रह पाएगी...?
क्योंकि धार्मिक श्रद्धा और भावनाओं को भड़का कर हमारे देश में इतना ज्यादा धंधा हो चुका है की प्रसाद में जहर मिलाकर के खाने की बात ईश्वर के अस्तित्व पर एक सिरे से अविश्वास करने का संदेश था।
इरशाद हिंदुस्तानी की इस समाचार से राहत मिली है कि जहर "प्रसाद" में चढ़कर नहीं आया था बल्कि आटे में चढ़कर आया था। और यह है मौत के धंधे में एक संतोषजनक खबर जस्टिस लोया के मामले में मौत किस पर चढ़कर आई थी न्यायपालिका के लिए अभी भी यह एक खतरनाक रहस्य है।
देखते हैं एडीजे महेंद्र त्रिपाठी और उनके पुत्र की मृत्यु के मामले में क्या हमारा लोकतंत्र न्याय की गारंटी पारदर्शी तरीके से दिखा पाता है.... या फिर जस्टिस लोया की तरह न्यायपालिका को भयभीत करने के एक हथियार मात्र साबित होता है...। क्योंकि बार-बार यह साबित होना की न्यायपालिका के जज को भी हत्या की जा सकती है हमारी लोकतांत्रिक संवैधानिक ढांचे पर बड़ा प्रहार है.....Add caption
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