रविवार, 26 जुलाई 2020

यथा राजा - तथा प्रजा -क्या गैर कानूनी लौटे ललित पांडे...? (त्रिलोकीनाथ)

एक और गैर कानूनी स्थानांतरण...?
बहाल होकर पुष्पराजगढ़ गए,
संशोधित करा गोहपारू लौटे ललित
 आदिवासी विभाग में कायम है जन-धन-योजना का राज...
 (त्रिलोकीनाथ)
शहडोल जिले में अशोक शर्मा और एसपीएस चंदेल बैगा सम्मेलन लालपुर कि भ्रष्टाचार से मुक्त होकर  विकास खंड अधिकारी के रूप में पदस्थ हुए| लाखों रुपए  इस मायाजाल में नुकसान हुआ|  ललित पांडे 16 सितंबर 2019 को तत्कालीन कमिश्नर आरबी प्रजापति के द्वारा निलंबित किए गए थे, 16 नवंबर 19 को उन्हेंबहाल करते हुए कमिश्नर ने अनूपपुर जिले के हाई स्कूल  में प्राचार्य पद पर पदस्थ किया|
 अब 9 माह बाद संभागीय उपायुक्त आदिवासी विकास जगदीश सरवटे ने कमिश्नर के बहाली आदेश को स्वत संज्ञान लेते हुए संशोधित कर दिया और एक नोटशीट प्रस्तुत करके प्राचार्य पद पर पदस्थ ललित पांडे को कोरोना काल में शहडोल जिले के गोहपारू विकासखंड में खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में पदस्थ करवा दिया। शासन के नियमों को न मानने की जिद पर अड़े उपायुक्त  सरवटे ने जरा भी नहीं सोचा कि 9 माह पूर्व जिसने बहाली आदेश पर अपनी उपस्थिति अनूपपुर जिले में दे दी है और उस पद पर वह अपना वेतन भी ले रहा है उसके आदेश में संशोधन कैसे हो सकता है...?
 तो क्या जन-धन-योजना क ही यह प्रभाव रहा की कमिश्नर शहडोल को गुमराह करते हुए इस तरह के आदेश कराए गए हैं..? कमिश्नर शहडोल नरेश पाल के लिए आदिवासी विभाग एक रहस्यमय जगह बनता जा रहा है जहां से जिसकी जो इच्छा पड़ती है वह मंत्री से संत्री तक अंगूठा लगाकर अपना काम करवा लेता है।खबर तो यहां तक है की यदि आपके पास धन की ताकत है तो आप उच्च अधिकारियों के तमाम आदेशों को किनारे करके अपना संलग्न करण बनाम स्थानांतरण करवा सकते हैं । यह भी एक नए प्रकार का प्रयोग है कोरोना काल में जब चुनौती अवसर के रूप में देखा जा रहा है तो आदिवासी विभाग में भी किसी भी चुनौती को एक अवसर के रूप में तलाश करते हुए जमकर भ्रष्टाचार का आवरण बन रहा है।  
बहरहाल ललित पांडे का प्रकरण इसलिए ज्यादा गरम हो गया है कि जब कुछ विधायकों ने उपायुक्त सरवटे को इस बात के लिए दवाब दिया कि विकास खंड अधिकारी किसे बनाया जाए तो उन्हें नियम का हवाला देकर विकास खंड अधिकारी का प्रभार देने से बाधा बताई थी |   ललित पांडे के लिए गैर कानूनी कार्य  उपायुक्त  के लिए नियम  बाधा नहीं बनता...?
   क्योंकि आदिवासी विभाग में जन-धन-योजना की खुली कार्यप्रणाली जनप्रतिनिधियों को उनकी औकात बताती है। और जनप्रतिनिधियों को अफसरशाही की हुक्मरानी करनी सीखनी चाहिए, क्योंकि आदिवासी विभाग का अफसर ही यहां का राजा है, बाकी सब प्रजा है ...।
तो क्या फर्क पड़ता है ललित पांडे पुष्पराजगढ़ से नियम कानून को धता बताते हुए एक  सरकारी अनुमोदन में, सरकारी आदेश करवा कर स्वयं को गोहपारू विकास खंड शिक्षा अधिकारी रूप में कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी की तरह राजाओं के लिए काम  करेंगे।
 यथा राजा - तथा प्रजा और वह भी क्यों ना हो भी क्यों ना..? यदि बहुपत्नी प्रणाली आदिवासी विभाग के कई कर्मचारियों को आकर्षित करती है तो स्वाभाविक है की उनके साज श्रृंगार रखरखाव और व्यवस्थापन के लिए ऊपर से जनधन आता रहे|
 इस तरह  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तथाकथित गोद ली हुई आदिवासी संभाग शहडोल का मुख्यालय मनमाने तरीके से गैरकानूनी कार्यो खुलेआम करने पर जरा भी नहीं हिच-किचा रहा है क्योंकि विधायक अथवा मंत्री सब इन्हीं अफसरों की कृपा पर अपना सल्तनत चला रहे हैं ऐसा प्रतीत होता है...

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