रविवार, 28 अप्रैल 2019

जियो और जीने दो.... शहडोल लोकसभा क्षेत्र में कुल 13 उम्मीदवार

जियो और जीने दो.... 

( त्रिलोकीनाथ )


हजारों साल की गुलामी के बाद भारत में स्वतंत्रता का एहसास हुआ और एक त्यौहार हर 5 साल में मनाया जाता है. मतदान का त्यौहार.. जिसे पूरी लगन के साथ और उत्साह के साथ मनाना चाहिए. जिसमें हमारा भविष्य है.., और भविष्य का भी भविष्य. तो आइए जाने अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए मतदान की प्रक्रिया क्या होगी और हम इसे कैसे उपयोग करें

 भारत के निर्वाचन आयोग ने हमारे शहडोल लोकसभा क्षेत्र में  कुल 13 उम्मीदवार सुनिश्चित  किए हैं, इनके नाम, पता और चुनाव चिन्ह इस प्रकार है

तो आप 29 तारीख को इन्हें वोट देने जाएंगे.... बेहतर है, सबसे पहले वोट देने का काम होना चाहिए..... वोट देने जाने के पहले  आपके पास कौन सी चीज एक ऐसी होनी चाहिए जो मतदान में सहायक बने अन्यथा बाधा उत्पन्न होगी और आपको परेशानी होगी. तो जो त्यौहार का उत्साह है वह थोड़ा तकलीफ दे हो जाएगा, मतदान तो फिर भी होगा. आप निश्चिंत रहें. इसलिए वोट देने तैयारी से जाएं... बाहर मतदान स्थल पर यह सभी सूचनाएं आपका स्वागत करेंगे... आपके याद दिलाने के लिए कि आप मतदान के त्यौहार में आए हैं... आपका स्वागत है.

















घर से पीने का पानी की व्यवस्था करके चलें..खुद पिए और कोई तकलीफ में है उसे भी पिलाएं
 हलांकि मतदान इ जश्न में, मौके पर (मतदान-स्थल) पर ,

सब मिलेगा.... बावजूद इसके, खुद तैयार रहने मैं क्यों कसर छोड़े..... 
 यही है जिंदगी... तो हार्दिक शुभकामनाएं, मतदान त्यौहार के लिए.



Namami Devi Narmade : An article discussing current status of River

                            | नमामि देवी नर्मदे  | 

                                                  ---------- शुभांश ----------  

नर्मदा मंदिर अमरकंटक 
उद्गम से 500 मीटर दूर ही प्रदूषित होने लगती है नर्मदा, अमरकंटक में बड़े नाले से सीधे नर्मदा में मिला देते हैं गंदा पानी
नर्मदा नदी की फोटो पत्रिका द्वारा 
क्या आप शांति और सुख की तलाश में है... ?
तो आइये...., माँ
 (क्यूंकि वो पालक है उनके पवित्र जल से कई परिवार पलते है )
 नर्मदा ( नदी )
 के धाम अमरकंटक में , सौभाग्य मिलेगा आपको माँ नर्मदा को मूर्त रूप में सुशोभित देखते हुए वास्तविक (नदी ) रूप में उपेक्षित देखने का , सुन्दर वातावरण मानो भगवान् का साक्षात्कार करा रहा हो और पन्नी, कचरा और पेड़ो की घटती संख्या असुरो ( मानव ) का साक्षात् कार। इन्ही क्षणों  में लिखा था की माँ नर्मदा को आभूषण भेंट करने के लिए यहाँ संपर्क करे , मेरे दिमाग में आया माँ यह डिज़ाइनर ज्वेलरी कैसे पहनेगी और नदी के हिसाब से डिज़ाइनर ज्वेलरी की व्याख्या क्या होनी चाहिए । किन्ही सोच विचार के बाद नदी के लिए डिज़ाइनर ज्वेलरी के रूप में  पेड़ बेहतर लगा और फेसिअल के रूप में नदी का साफ होना।  ख़ैर हमने कुछ उल्टा उल्टा सा समझा है , इसे ऐसे देखते है ,मूर्ति रूप में हमने माँ नर्मदा के लिए ज्वेलरी निर्धारित की और पालक माँ नर्मदा के लिए हमने निर्धारित किया आभूषणों की पैकिंग सामग्री (प्लास्टिक, पन्नी आदि ) , किन्ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट का आदेश था की महाकाल को RO के पानी से अभिषेक करे क्यूंकि महाकाल की मूर्ति को उस पानी से खतरा था जो मानवो ने सालो की मेहनत से तैयार किआ।

ख़ैर कुछ इतिहासकार मानते है की नदिओं में सोना चांदी का दान एक सार्थक मतलब रखता था क्यूंकि उसी दान के तहत नदिओं में सोना चांदी के  घुलने के बाद जब मानव उसे ग्रहण करता था तो एक पोषक तत्व  के रूप में शुशोभित होता था।  और उस नदी के जल को और पवित्र एवं  पोषक बनाने में लाभकारी होता था।  अब मूर्ति को आभूषण से शुशोभित कर नदी को आर्सेनिक प्लास्टिक से शुशोभित कर सुख समृद्धि की तलाश ? बेशक यह चिंतनीय विषय है।
  काश .....,ऐसा दान मंदिरो में लिखा हो की.,
-- इतने वृक्षो के पोषण के लिए यहाँ संपर्क करे , 
--या इतने घन पानी की साफ़ सफाई के लिए रसीद बुक कराए
 तो समस्या भी हल होजाएगी।  नहीं तो अन्ततः समस्या यही रहेगी , और राजनेता अपनी राजनीती समस्या की चर्चा कर के चमकाते रहेंगे न की समाधान की चर्चा।
समरसता को प्रदर्शित करते वृक्ष 

जगह जगह पेड़ो की कटाई देख के जब लोगो से पूछो की क्यों कर रहे हो ऐसा तो जवाब आता है हमारे एक पेड़  से कुछ नहीं होता , उन्हें बोलो जो जंगल साफ़ कर दे रहे है।  मन में आया ये भी सही है , फिर उसी पावन  भूमि में एक जगह दिखी जहा एक पतला सा पेड़ अपनी जान लगाए हुए एक विशाल पत्थर को समेटे हुए है की व्यवस्था न बिगड़े और प्रकृति का संतुलन बना रहे , थोड़े आगे जाके जब देखा रो सोन मुड़ा आगया था और वह पे भी मानवो की समेटने की व्यवस्था देखने को मिली जो उतनी कारगार नहीं दिख रही थी जितना उस पेड़ की थी।  फोटो का अवलोकन कर के यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अंततः मोदी जी के समर्थको को हर हर गंगे , शिवराज जी के समर्थको को नर्मदे हर , दिग्विजय जी के समर्थको को नर्मदे हर। बाकि ठेकेदारों के समर्थको को ठेकेदारी हर। 

अपने महत्व को परिभाषित करता एक पतला वृक्ष 

अपने महत्व को परिभाषित करने की कोशिश करता भ्रमित मानव 

ऐ शाम, तू बता दे ....तू शाम ही है ,

 तेरे किरदार को सवेरा मान के उजाला सोच रहे है ,

 बता ..,तेरे बाद अँधेरा ही है... 

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

लोकसभा का चुनावी मुद्दा...

लोकसभा का चुनावी मुद्दा........
  "अंडरवियर"   "विरासत"  
------------( त्रिलोकीनाथ ) -----------------
पता नहीं "कांग्रेस मुक्त भारत" , यह ख्वाब, प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी के लिए कितना कठिन है..? किंतु उन्होंने "गरीब की जोरू" याने "भारत की पत्रकारिता" को पत्रकारिता मुक्त करने का जो काम किया उसका हालिया प्रदर्शन बहुचर्चित फिल्म स्टार अक्षय कुमार, हां..., वहीं अक्षय कुमार जिन्होंने "टॉयलेट एक प्रेम कथा" कही थी, प्रधानमंत्री के साथ "टॉयलेट-इंटरव्यू" किया गैर-राजनीतिक-इंटरव्यू.., साक्षात्कार नाम दिया गया.

 मेरे समझ में नहीं आया कि जब सदी का महानायक अमिताभ बच्चन साक्षात वर्तमान में जी रहे हैं... अमिताभ बजाय यह इंटरव्यू प्रधानमंत्री ने अक्षय कुमार क्यों करवाया..? क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और उनका नेटवर्क अगर चाहता है तो भारत कोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर से    भाजपा के मोदी के लिए गवैया बना देता है.. इसमें  कोई इलाज लोक-लाज की बात नहीं..., मुंबई के बाजार में पैसा कमाने के लिए बैठे कलाकार कोई साधु सन्यासी तो है नहीं..... कि वे यह सब सोचते बैठे...?

1919 का चुनाव, मुद्दा का चुनाव नहीं  कहलाएगा......, हवा हवाई बातें.. जैसे "चौकीदार चोर है..." तो "मैं ही चौकीदार" हूं कमोवेश, इसी प्रकार के हालात चाहे उत्तरप्रदेश के रामपुर लोकसभा क्षेत्र की हो अथवा शहडोल मध्यप्रदेश की बात | कोई मुद्दा ही नहीं.... लोग वोट क्यों दे रहे हैं...? अपने ससद  उनको क्या भेजा... , किसी से भी पूछो तो समझ में नहीं आता और इस वातावरण में मुद्दे खोजते-खोजते अचानक सामने आ जाते हैं, जैसे रामपुर में अंडरवियर किस कलर का है..., मुद्दा बन गया और शायद पूरा चुनाव "अंडरवियर" में लड़ा जाएगा....
शुद्ध हिंदी में कहे तो "अंतर्वस्त्र "में|
 तो शहडोल में पूरी लड़ाई कांग्रेश से जंप किया तो भाजपा की डाल में जा बैठी, हिमाद्री सिंह..., तो भाजपा की धोखाधड़ी से त्रस्त होकर उनकी विधायक प्रमिला सिंह जंप मारी और कांग्रेसी प्रत्याशी बन गई ....,अब जब कोई मुद्दा है ही नहीं...., विचारधारा भी नहीं है..., कोई सोच भी नहीं दिख रही है तो रिक्त स्थान को कौन भरें....?
 भाजपा के लिए नरेंद्र मोदी एक मुद्दा है |भाजपा की सरकार से ज्यादा "मोदी-सरकार" बनाना तो कांग्रेस के लिए "चौकीदार चोर है...." | राहुल गांधी, लालपुर हवाई अड्डे पर महिलाओं का मन जीतने का बहुत प्रयास किए,राहुल ने कहा  बैंक खातों में जिसका पैसा मोदी निकाल लिए हैं,  5 साल में साढे तीन लाख साठ हजार रुपय़ॆ अब उनके खातों में आएंगे  और यह पैसा निश्चिंत रहना महिलाओं के खाते में जाएगा... पुरुषों को खुश होने की जरूरत नहीं है
| देखा गया महिलाओं के चेहरे में मुस्कुराहट तो आई,  बहरहाल कांग्रेस के घोषणापत्र में अच्छे-अच्छे वादे हैं, लेकिन एक पत्रकार होने के नाते घोषणा पत्र की कॉपी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है. कहते हैं वेबसाइट में है, एक जमीनी पत्रकार को घोषणापत्र का ज्ञान नहीं है तो जमीन के मतदाताओं को तो मालूम ही नहीं होगा, कि क्या... क्या घोषणा हो गई |बहराल यह जरूर है कि जब राजीव गांधी बोलते हैं "मोदी... तो लोग कहते हैं,. चोर है.." जब वह कहते हैं, "चौकीदार... तो लोग कहते हैं.. चोर है..."| यही है अब बचा यह जानने का...?
 स्थानी मुद्दा क्या है..? जैसे रामपुर में जयप्रदा परेशान हैं भाजपा का बुर्का पहनकर... प्रत्याशी बन कर. फिलहाल जयाप्रदा सपा नेता आजम खान के खिलाफ चुनाव लड़ रही.. जया प्रदा का फिल्म शराबी का वह गाना बहुत चर्चित हुआ था "..मुझे नौलखा मंगा दे रे, ओ सैया दीवाने..."
 आजम खान अपनी शैली में ही.., जैसा कि उनका दावा है उन्होंने जयप्रदा का नाम नहीं दिया ब कहा तो बड़े स्टाइल से "17 साल लग गए पहचानने में" जबकि आजम खान को 17 दिन में ही पता चल गया था "अंडरवियर का रंग भी खाकी है".. बस क्या था आजम खान ने क्या कहा खाकी रंग को... बस फिर क्या था, आजम खान ने तुक्का छोड़ा था.., तीर बन गया शब्द-खंड "अंडरवियर का खाकी रंग" रामपुर की चुनावी फिजा में चर्चित नारा बन गया....  भारत की पूरी राजनीति जैसे मदहोश हो गई..., लगा अब न "गंगा पार लगाएगी ना राम और ना ही बुलेट ट्रेन, पुलवामा का सैनिक  भी छोटा दिख गया...? एकाएक राजनीतिक-पतन की तमाम सीमाओं को चीरता हुआ जैसे पाकिस्तान के लाहौर में फट गया .अंडरवियर  और उसका खाकी रंग.. जबकि टेलीविजन में यही अंडरवियर पूरी शिद्दत के साथ मल्टीनैशनल्स के मार्केटिंग करने वाले ऐसा प्रदर्शित करते हैं मानव बस-चले, टीवी के डब्बे को तोड़कर बाहर निकाल दे.., किंतु इतना हल्ला नहीं हुआ कभी भी... अगर आजम खान इसी अंडरवियर को खाकी रंग की बजाए किसी मल्टीनेशनल कंपनी का नाम लेकर बोल दिया होता.. तो करोड़ों अरबों रुपए से झड़ जाते... आजम खान कि सपा की गरीबी खत्म हो गई होती.... बहहाल.., यही तो रामपुर की चुनावी फिजा है... अगर बरेली लोकसभा में यह होता अंडरवियर नहीं वहां के बाजार में झुमका गिरता क्योंकि गाना बना था "झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में...." खूब चला... और जब नायिका को डकैत आंख मारता है राहुल गांधी को भी शर्मिंदा कर देता है... नायिका भी हतप्रभ हो जाती है .. क्या इतने में भी वोट नहीं मिलते......?
हवा में जो बातें हैं उड़ी वह "लज्जा" नाम की उपन्यास को भी पीछे छोड़ दी, कुछ पल के लिए... कहते हैं इस उपन्यास में लेखक को बांग्लादेश से बेदखल कर दिया गया था| 
तो अंडरवियर जमकर मुद्दा बना, खाकी रंग से बहुत मतलब नहीं था क्योंकि अब आर एस एस के मोहन भागवत की इच्छा से , अपना संविधान बदल कर "हाफ-पेंट" की ह "फुल-पैंट" का खाकी रंग स्वीकार कर लिया है.. क्योंकि समय की मांग थी| अंडरवियर का मतलब महिलाओं के अंडरवियर से जोड़कर देखा गया, जिसका रंग आजम खान को कैसे पता चला...? इस प्रकार हम भी जयप्रदा और भाजपा दोनों की ही बातों पर आंख मूंदकर विश्वास किए..
 जब चुनाव आयोग ने लगेहाथ आजमखान को भी कहा "जवान बंद रखो, कुछ घंटों के लिए" का आदेश दिया तब हम गंभीर हो गए, अरे;यह चुनाव का मुद्दा था ..?
.इस प्रकार से अंडरवियर खाकी रंग का रामपुर की लोकसभा में मुद्दा बन गया|   और उसका रंग जमकर चला बीच में बड़े नेता अमर सिंह भी बौखला गए क्योंकि आजम खान ने अस्पष्ट रूप से ही सही.., स्पष्टीकरण दिया था उन्होंने जयप्रदा के लिए अंडरवियर का रंग का बात नहीं कही थी... बल्कि वह   यूपी की राजनीति में फिल्मी सितारों का सिक्का चलाने वाले अमर, अमरसिंह के लिए कही थी| तब अमर सिंह ने भी खूब दाएं-बाएं बोला, इस प्रकार लोकसभा रामपुर क्षेत्र का बहुत चर्चित मुद्दा 2019 में अंडरवियर बन गया |
अब हम बात करते हैं मध्यप्रदेश के  शहडोल यहां पर भी कमोबेश सभी लोकसभा क्षेत्रों की तरह स्थानीय मुद्दा गायब ही था... जबकि खनिज की लूट.., कोयला-कबाड़-सट्टा खोरी., पर्यावरण, भू माफिया, औद्योगिक प्रदूषण , रिलायंस कंपनी का भूमि शोषण जैसे बहुत से मुद्दे बेरोजगारी और बेकारी के साथ साथ बरकरार हैं..... इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में मुद्दा बना "विरासत की सियासत" का क्योंकि कांग्रेस वाले कांग्रेसी सांसद रहे दलवीर सिंह और उनकी धर्मपत्नी राजेश नंदनी सिंग को अपनी जागीर मान कर कांग्रेस के पोस्टर में उनकी फोटो का उपयोग किए, जबकि कांग्रेस जानती है इन्हीं दोनों नेताओं की लड़की श्रीमती हिमाद्री सिंह भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी हैं... बैरल जिलानिर्वाचन अधिकारी अनूपपुर ने फैसला देकर कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया कि बिना हिमाद्री सिंह की अनुमति के उनके माता-पिता की फोटो  लगाई जाए| एक तो शहडोल आदिवासी क्षेत्र के अपन मतदाता ऊपर से लेखक-पत्रकार सो लि मारे कि "कांग्रेस ने हिमाद्री को उपहार में दी पहली जीत.." 
अभी कुछ ही दिन बीते थे नया आवेदन आ गया, मुद्दा है.. कि स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते जो  सांसद थे भारतीय जनता पार्टी से, उनकी धर्मपत्नी ने आवेदन दिया है क्योंकि पति की फोटो बिना उनकी इजाजत के भारतीय जनता पार्टी दलवीर सिंह  के साथ ना लगावे, क्योंकि दोनों ही हमेशा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे... इस तरह "विरासत की सियासत" अबकी बार दलपत सिंह परस्ते की धर्मपत्नी के ओर से चली है.., देखना होगा की जिला निर्वाचन अधिकारी क्या अपने पुराने फैसले पर बरकरार रहते हैं, भाजपा को अब प्रतिबंधित करेंगे कि वे अपने सभी पोस्टर से दलपत सिंह परस्ते की फोटो हटा दें....? दरअसल बात यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने जमकर दलपत सिंह परस्ते का खूब उपयोग किया, भाजपा की अमानत नहीं है.. दलपत सिंह, मूलतः समाजवादी विचारधारा के नेता रहे और समाजवादियों ने ही उन्हें पहले पहल नेता बनाया किंतु जब समाजवाद का आर एस एस करण होने लगा, शहडोल के समाजवादी नेताओं को अंडरवियर खाकी रंग की पहनी जाने लगी या फिर आर्थिक परिस्थितियों के दबाव में नेताओं ने पहनना चालू कर दिया...? फिर भाजपा के सांसद का पट्टा भी लगाने लगे.., इस प्रकार दलपत सिंह भाजपा की विरासत बन गए थे..., अब जबकि उनकी धर्मपत्नी ने एक नया दावा किया है विरासत की सियासत का देखना होगा विरासत की सियासत का यह मुद्दा मतदान होने तक कितनी देर तक गर्म रह पाता.... और उसका क्या कोई असर भी होने वाला है...?
 इस संबंध में राजनीतिक दलों में कांग्रेस की प्रत्याशी श्रीमती प्रमिला सिंह की टिप्पणी इसलिए नहीं जा सकी दूरभाष काम नहीं कर रहा था
 जब भारतीय जनता पार्टीी के लोकसभा प्रभारी गिरीश द्विवेदी जिसे बातचीत हुई तो उन्होंने कहा की दलपत सिंह परस्ते अंतिम समय तक भाजपा में रहे उनकेेे परिवार की लड़की अनूपपुर मेंं जिला पंचायत अध्यक्ष उनकीी बहू शहडोल में पार्षद हैं भाजपा से इस प्रकार परिवार हमारे से पार्टी में हैं और जहां तक हिमाद्री सिंह के माता-पिता की बात हैै वे इकलौती उत्तराधिकारीी हैं स्वाभाविक है उनका अधिकार है कि बिना अनुमति के उनकी माताा पिता की फोटो काा उपयोग कोई दूसरा न करें प्रति प्रश्न करने पर की जिन्होंने आपत्ति कीी है दलपत सिंह की धर्मपत्नी है श्री द्विवेदी ने कहा कि मुझे नहीं मालूम उनकी कितनी पत्नियां है लेकिििन कोई मसला है तो सुलझा लिया जाएगा श्री द्विवेदी के अनुसार यह कोई मुद्दा नहीं है भाजपाा में अपना मुद्दा है और भाजपा उसपर चुनाव लड़ती है।
बहराल रोचक है नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ किया हो... या, ना किया हो....केंद्र में और संसदीय क्षेत्रों में मुद्दों को मूक-बधिर कर दिया है...खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से हर सांसद को 5 साल में सिऱ्फएक काम करने की चुनौती दी थी.... "सिर्फ एक गांव को आदर्श गांव के रूप में सुविधाजनक बनाने की बात कही थी.., वह भी मुद्दा नहीं बन पाया.. अगर शहडोल लोकसभा की करीब 1000 ग्राम पंचायतों में शहडोल का ग्राम  केलनिया, ग्राम पंचायत को ही मुद्दा बनाकर आदर्श प्रस्तुत किया जाता.. तो शायद राजनीतिक और संसदीय मर्यादा कायम रह पाती..., वह भी मुद्दा नहीं बना...?

 क्यों कुछ सबको मालूम है पूरे भारत में ऐसे ही  केलनिया गांव बीते कल की बातें हो गई हैं..... बीता हुआ मुद्दा हो गया है..           अब मुद्दा तो विरासत की सियासत और अंडरवियर तक में चला गया है जिसका नतीजा यह है कि रामपुर में अंडरवियर वोट दिला रहा है शहडोल में माना जा रहा है की विरासत की सियासत वोट दिलाएगी...? अंतिम निर्णय 29 तारीख को पेटी में बंद हो जाएंगे किंतु जो परिणाम आएंगे वे अंडरवियर से निकल कर विरासत की सियासत ..यासियासत  की विरासत,तक क्या पहुंच पाएंगे.... और उससे जनहित किस प्रकार प्रदर्शित होगा यह भी देखेंगे...............................................? जय हिंद मित्रों...?
...



रविवार, 21 अप्रैल 2019

विरासत की सियासत:कांग्रेस ने हिमाद्री को उपहार में दी पहली जीत.......( त्रिलोकी नाथ ).


शहडोल लोकसभा  :विरासत की सियासत

हिमाद्री और भाजपा को
कांग्रेस ने उपहार में दी पहली जीत..
मतदान-29 अप्रैल को
................(   त्रिलोकी नाथ  )..........................
लोक सभा निर्वाचन अधिकारी अनूपपुर ने शहडोल लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद दलवीर सिंह व उनकी धर्मपत्नी पूर्व सांसद श्रीमती राजेश नंदिनी सिंह की फोटो बिना उनके परिवार के अनुमति के चुनाव प्रचार में उपयोग करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है पिछले ही मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस पार्टी  से शहडोल लोकसभा के प्रत्याशी रही सुश्री हिमाद्री सिंह अब भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार के बताओ शहडोल लोकसभा से प्रत्याशी हैं।
इसके बावजूद भी पुष्पराजगढ़ क्षेत्र में ही नहीं पूरे लोकसभा क्षेत्र में दलवीर सिंह और राजेश नंदनी सिंह की राजनीतिक परिपक्वता व लोकप्रियता का आलम यह है विपक्षी राजनीतिक प्रत्यासी होने के बावजूद श्रीमती हिमाद्री सिंह के माता पिता की फोटो कांग्रेस पार्टी अपने राजनीतिक फायदे के लिए फ्लेक्सी में या पोस्टरों में उपयोग कर रही थी। स्वाभाविक है शहडोल में कांग्रेस को मालूम है कि जो भी आजादी के बाद किसी आदिवासी राजनीतिक परिवार ने अपनी साख स्थापित की है तो वह दलवीर सिंह की साख रही है जिन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता व सोच के चलते शहडोल को वह सब कुछ देने का प्रयास किया, जो भी कर सकते थे। एक आदिवासी राजनेता होने के नाते
 राजनीतिक दलों में आदिवासी उपयोग करो और फेंक दो के अंदाज पर एक उपयोगी सामग्री के अलावा कुछ नहीं रहे। दलवीर सिंह की सोच इन सब से पृथक थी, एक बार पुष्पराजगढ़ में उनके पुराने मकान पर मुलाकात हुई उस समय अमरकंटक क्षेत्र से बॉक्साइट खनन पर प्रतिबंध लग गया था और खनन कर्ता कंपनी अपने रोप-वे उखाड़ कर वापस ले जा रही थी ,उन्होंने इच्छा प्रकट की; जो उनकी दूरदर्शिता को बताता था: की संभावनाएं पर्यटन की अमरकंटक क्षेत्र में बहुत है। उन्होंने कहा कि "मैंने कंपनी से बातचीत किया है कि इतने दिनों तक उन्होंने यहां पर बॉक्साइट खनन का काम किया वह लाभ कमाया है अब उच्चतम न्यायालय के कारण यदि उत्खनन प्रतिबंधित हो गया है बॉक्साइट को अलग अलग पहाड़ियों से निकाल कर पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने वाले "रोप-वे" के लिए लगाए गए टावर आदि वे यहां पर छोड़ दें ताकि कंपनी का क्षेत्रीय विकास में योगदान भी सुनिश्चित होगा और रेलवे स्टेशन पेंड्रा रोड से अमरकंटक के समस्त प्रकृति क्षेत्र तक रोप-वे के जरिए यात्रियों को जो सुविधा मिलेगी वह मध्य प्रदेश में एक बड़ी पहचान बनेगी।"
किंतु उनका प्रयास शायद असफल हो गया उन्होंने इसी प्रकार से आदिवासी क्षेत्र में तमाम प्रकार की सुविधाओं और योजनाओं के बारे में बात की किसी भी आदिवासी नेता की यह पहली सोच थी, संकल्पना थी। जिससे क्षेत्रीय विकास का हित सीधा जुड़ता था। दलवीर सिंह और राजेश नंदिनी सिंह की राजनीति इसी प्रकार से विकास पूर्ण कार्यों की राजनीति पर आधारित थी, वहीं उनके लोकप्रियता का मापदंड था। राजनीति का छूट-भैयापन उनमें नहीं था। इस प्रकार वे दूरदृष्टि के बड़े आदिवासी नेता थे, जिनमें कुछ कर गुजरने की योग्यता थी। किंतु वक्त ने उन्हें अवसर नहीं दिया और उनका आपात निधन हो गया। शहडोल में आकाशवाणी अथवा विभिन्न बीमा कंपनियों का बड़े कार्यालय भी उनकी विकास परख सोच का संकेत देता था। दिल्ली में यदि शहडोल क्षेत्र के व्यक्ति उनसे मिल जाए तो वे हर संभव समय व सहयोग देने को तत्पर रहते थे। जिससे शहडोल के लोगों को दिल्ली में होने का अनजान-पन खत्म हो जाता था ।, ऐसे ही कई उदाहरण है जो उन्हें लोकप्रियता की उस मुकाम पर ले गए जहां तक् और कोई भी नेता नहीं पहुंच पाए और इतने बड़े नेता का कांग्रेस पार्टी अपने परिवार में वह स्थान दे पाने में शायद कमजोर रही जो उनकी अनुपस्थिति में उनकी पारिवारिक विरासत को संरक्षण दे पाता...?
लोकसभा मध्य चुनाव में हिमाद्री सिंह को जैसे टिकट देकर जंगल में छोड़ दिया गया हो.... नतीजतन जीता हुआ चुनाव, वे हार गई और इस परिवेश में भारतीय जनता पार्टी ने मौके का पूरा लाभ उठाया उन्होंने दलवीर सिंह और राजेशनंदीनी सिंह के विरासत की लोकप्रियता की राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीमती हिमाद्री सिंह को भारतीय जनता पार्टी मे न सिर्फ शामिल किया बल्कि उन्हें प्रत्याशी बना कर दूर की कौड़ी खेली ।उन्हें एक आदिवासी क्षेत्र में ऐसा प्रत्याशी मिल गया जोकि लंबे समय तक भाजपा की राजनीति को लोकसभा क्षेत्र में खाली नहीं होने देगा।
अब बात रही कि राजेशनंदीनी और दलबीर सिंह किसकी राजनीतिक पूंजी हैं...? तो इसमें कोई शक नहीं कि वे कांग्रेस पार्टी की धरोहर हैं और पूंजी हैं, किंतु कांग्रेस अपनी इस-पूंजी को अपने हितों में शामिल करने की बजाय हेय दृष्टि से उपयोग करने की वस्तु के रूप में देखने का काम करती थी जिससे वह अपनापन नहीं बना पाई जो अक्सर किसी राजनीतिक घराने में उसकी अनुपस्थिति पर जिम्मेदारी होती है.... श्रीमती राजेशनन्दिनी सिंह की मृत्यु के बाद जैसे कांग्रेस ने उन्हें पहचाना ही नहीं और परिवार को अकेला छोड़ दिया, कि वे जाएंगे कहां....?, कुछ इस नजरिए से।
किंतु 21वीं सदी की राजनीति में बहुत कुछ विकास हो गया है नई पीढ़ी सोचने और समझने मैं देर नहीं करती, खासतौर से आदिवासी समाज चुप तो रहता है किन्तु दमन और शोषण एक सीमा तक ही बर्दाश्त करता है.....
सुनने में यह बात स्पष्ट रूप से आई कि जब कांग्रेस में उम्मीदवार बनाए जाने के लिए हिमाद्री सिंह को बुलाया गया तो शर्त यह थी कि वह अपने पति नरेंद्र मरावी को कांग्रेस पार्टी में शामिल करें। जोकि इतनी जल्दी सहज नहीं था और शायद यही बहाना बना कि उन्हें भाजपा में हो रही अपनी राजनैतिक मांग की निमंत्रण को स्वीकार करना पड़ा। तो यह बड़ा स्पष्ट है कि जब अपनापन निस्वार्थ अथवा निष्पक्ष ना हो तब दलवीर सिंह और राजेश नंदनी की राजनीतिक ख्याति का लाभ स्वाभाविक रूप से हिमाद्री सिंह की विरासत के रूप में देखी जाएगी।
यह आश्चर्यजनक था की जिनकी लड़की भाजपा से प्रत्याशी हो उनके माता-पिता की फोटो कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी अपने राजनीतिक फायदे के लिए छपाये ...यह भी सही है कि दोनों ही नेता कांग्रेस के बड़े पदों पर रहे हैं तो विरासत भी कांग्रेस की कह लाएगी किंतु जब जिम्मेदारी निर्वहन की बात आई थी, वसीयत को संभालने की बात आई थी तब कांग्रेसमें अपने पिचकाटो के कारण विरासत की वसीयत को अनदेखा किया... अब राजनीतिक साख की वसीयत मैं वह चुनाव जीतने का दावा करें .. ना तो यह नैतिक है, और ना ही व्यावहारिक भी ।
इस प्रकार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अधिकारी कलेक्टर अनूपपुर का यह आदेश स्वागतयोग्य है कि बिना उत्तराधिकारी के अनुमति के कोई भी फोटो राजेशनन्दिनी यथा दलवीर सिंह की कही उपयोग की जाए।
  हो सकता है इस घटना से कांग्रेस पार्टी को अपना कुछ खो देने की समझ विकसित हो और वह इससे कुछ सीख सकें कि सिर्फ चंद पहुंच वाले नेताओं की बदौलत उन्होंने मध्य प्रदेश के आदिवासी कबीले के बड़े नेता की वसीयत खो दी है और यह सब कुछ उसी प्रकार से होता दिखाई दे रहा है जैसे कि समाजवादी परिवारों ने दलपत सिंह परस्ते के नाम की वसीयत भारतीय जनता पार्टी के नाम लिख दी थी। देखना होगा कि दलवीर सिंह राजेशनन्दिनी की लोकप्रियता और उनके कार्यों को जनमानस कितना संज्ञान में लेता है, लेता भी है अथवा नहीं.... यह भी दिखेगा। जो मतदाता के चिंतन पटल का प्रमाण होगा। बहरहाल कांग्रेस के लिए यह पहली हार है ....उन्होंने अपनी जीती हुई पारी को अनदेखा जो किया ..........? फिलहाल अपनी राजनीतिक वसीयत की विरासत के मामले में हिमाद्री सिंह और भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस ने उपहार में जीत दे दी है बाकी 29 अप्रैल को मतदाता का काम शेष है तो चलो देखते हैं मतदाता आदिवासी क्षेत्र की राजनीति के प्रति अपना क्या नजरिया रखता है.....

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

न्याय का "एक अर्धसत्य " ------------- ( त्रिलोकीनाथ )-----------------



न्याय का "एक अर्धसत्य " 



ता नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री  दिग्विजय सिंह जी को क्या सूझा, उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था मध्य प्रदेश में लागू करने का काम किया, कहा; महात्मा गांधी की सोच को जमीन में उतार रहे हैं । हम भी भटक गए .. ,जिला पंचायत शहडोल में अपने अखबार "विजयआश्रम" को मूर्त रूप देने में की ,20वीं सदी के अंत में पत्रकारिता को पंचायती राज व्यवस्था के साथ जोड़ें । और 1998 के आसपास"पाक्षिक विजयआश्रम" को जिला पंचायत शहडोल के माध्यम से 




------------- (  त्रिलोकीनाथ  )-----------------
चलाया। तब शहडोल संभाग जो अभी दिख रहा है वह जिला था, करीब 900 ग्राम पंचायतें, 12 ब्लॉक के हर गांव में हमने व्यवस्था की जिला पंचायत में होने वाले प्रत्येक निर्णय अखबार के माध्यम से ग्राम पंचायत तक पहुंच सके। ताकि प्रशासनिक शक्ति विकेंद्रीकरण की व्यवस्था में समन्वय व पारदर्शिता बनी रहे । ,प्रयोग था ....

तब कलेक्टर असवाल शहडोल में हुआ करते थे , क्रियावन के दौर में उनकी एक चिंता प्रतिक्रिया के रूप में आई ,की यह कौन सा अखबार है जो सारी सूचनाएं गांव तक दे रहा है....., हमें बहुत खुशी हुई कि हम सफल हैं। मुद्दा अखबार की सफलता के पीछे आर्थिक अनिश्चितता का भी था। जैसा कि होता है लोकतंत्र में ब्यूरोक्रेट्स अकसर  तानाशाह होते हैं संजय दुबे मुख्य कार्यपालन अधिकारी थे। उन्हें लगा कि हम हस्तक्षेप कर रहे हैं उनके प्रशासन पर, उनकी पारदर्शिता में अतिक्रमण कर रहे हैं ।अतः पहले हमसे लड़ाई-झगड़ा किए बाद में व्यवस्था दे दी कि आपका "चंदा" यानी "पाक्षिक विजयआश्रम" की सालाना (एक प्रति) कीमत करीब 72 रुपए प्रति पंचायत थी आप हर ग्राम पंचायत जाकर वसूले ....? जो असंभव था..। जबकि हमारी मांग थी कि इसे जनपद स्तर से यह जिला पंचायत स्तर से भुगतान करा दिया जाए। बहरहाल इस विवाद में करीब ₹ दो लाख से ऊपर तब के जिला पंचायत  उमरिया शहडोल और अनूपपुर में हमारा उलझ गया...... और ऐसा उलझा की घर-वापसी का नाम नहीं लिया । क्योंकि  हमारे महान राजनीतिज्ञों ने  शहडोल के तीन टुकड़े कर दिए थे एक बना  पाकिस्तान दूसरा बांग्लादेश तीसरा स्वयं  भारत।  शहडोल  के बंटवारे में हमारा  फंड भी बट गया ... ? हमने भी ठानी की "विजयआश्रम" अब नहीं चलाएंगे, क्योंकि "भूखे भजन न होय गोपाला"... त्रिस्तरीय पंचायती राज की सफलता में समन्वय हमने एक प्रयोग किया था जो असफल हो गया ...।

दो-ढाईलाख रुपए, भैया मानो डूबी गए शहडोल जिले के बंटवारे में। आज तक वसूली नहीं हुई। उनके कार्यकाल में शिक्षाकर्मी भर्ती का एक बड़ा घोटाला हुआ, उसके मुख्य नायक थे माननीय मदन त्रिपाठी जी तब कमला सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष वा उपाध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह थे।
21वीं सदी के 1919 तक हम पहुंच गए। गाहे-बगाहे दो-ढाई लाख रुपया याद आता रहा ।अब तक तो वसूल नहीं हुआ है पूरा बिल्कुल नहीं.. रह रह के जिम्मेदार तबका अपनी नैतिकता के नाते शुरू होकर पहुंचाते रहे... बहरहाल भाई हमारा एक प्रयोग था ... ।
अब जब कमिश्नर शहडोल श्री शोभित जैन का एक ज्ञापन 15 मार्च का लिखा संज्ञान में आया जिसमें श्री मदन त्रिपाठी जी को लघु-शास्ती के आरोप का विवरण है, हमें याद आ गया "विजयआश्रम" में अपने पुराने दो -ढाई लाख के क्या अभी भी मिल सकता है....?
तो चलिए बताते चलें यह ज्ञापन 11 बिंदुओं पर आरोपित है:-
पहला बिंदु, लोकायुक्त कार्यालय के प्रकरण  30 /2018 जिला खनिज प्रतिष्ठान की धनराशि पर केंद्रित है।
दूसरा, आरोप नियम विरुद्ध तरीके से बैंक खाता खोले जाने पर है
तीसरा, यह प्रदर्शित करता है कि श्री त्रिपाठी जी को 30000रुपए  तक की राशि का आहरण और व्यय का अधिकार रहा इसके बावजूद उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए का आहरण किया
चौथा, मॉडल स्कूल भटिया में 5000000 रुपए धनराशि में अनियमितता पर है
पांचवा, निर्धारित  जिला स्तरीय समिति और भंडार क्रय अधिनियम 2015 का पालन न करने के बारे में
छठा, ई टेंडरिंग को अनदेखा करके जबलपुर के किसी  न बटने वाले अखबार मैं विज्ञापन छपाने का है
सातवां, कस्तूरबा गांधी छात्रावासों में 5000000 की बजाय रुपए 5600000 अनुपयोगी सामग्री क्रय किए जाने का है
 सातवा, वैश्णवी इंडस्ट्रीज के फर्जी बिलों को बना कर राशि आहरण में कूट रचना का है
 नवा, 50 माध्यमिक शालाओं में विज्ञान क्रीड़ा शैक्षणिक सामग्री में नियम विपरीत क्रय का है
दशमा, बुढार छात्रावास में नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति का  तथा
ग्यारहवॉं, "जेंडर-अधिकारिता" की अनदेखी कर महिला की बजाय पुरुषों को प्रधानता देने का है यानी पुरुष नियुक्ति का है 
और अंत में 7 दिन की नोटिस में स्पष्टीकरण चाह है श्री मदन त्रिपाठी जी आपने गंभीर वित्तीय अनियमितता व गबन की श्रेणी का मामला के आरोप आप पर हैं क्यों ना आप के विरुद्ध लघु-शास्ती ंं निर्धारित किया जाए...?


 तो भैया समझ ले "लघु-शास्ती" क्या होती है...? और उसमें क्या प्रावधान है। हम मुख्य-शास्ती की चर्चा नहीं करेंगे..... यह काम कर जबरदस्ती लेख को बढ़ाना उचित नहीं..... ।

 मध्यप्रदेश सिविल सेवा नियम 1966 के नियम 10 में लघु-शास्ती और मुख्य-शास्ती का वर्णन है।  लघु-शास्ती  कर दी हैं तो जान ले शासकीय सेवक पर निम्नलिखित लघु-शास्ती   की जा सकती हैं :-

एक - परिंंनिंंदा
दो -   उसकी पदोन्नति का रोका जाना
तीन- उपेक्षा से या आदेशों के भंग द्वारा शासन को उसके द्वारा पहुंचाई गई किसी आर्थिक हानि को सम्पूर्ण  रूप से या उसके किसी भाग कि उसके वेतन से वसूली
चार- वेतन की वृद्धियों का या गतिरोध भत्ते का रोका जाना ।

 बाद में मुख्य शक्तियों का वर्णन है, जिसे आप जानना चाहे तो वेबसाइट खोले....।

 हमारा  दो-ढाईलाख रुपए डूबा, क्योंकि हम पारदर्शिता, त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में पत्रकारिता का प्रयोग कर रहे थे....... तो हमें लगा कि लघु-शास्ती में आर्थिक हानि को पूर्ण रूप से या उसके किसी भाग की वेतन वसूली  से क्या हमारा बकाया वसूल हो सकता था...? हालांकि जो असंभव है। क्योंकि शहडोल के बंटवारे के शिकार थे, हम भी लगातार प्रयोग करते रहते है...।

इस आरोप पत्र में बहरहाल शासन अपने करोड़ों रुपए यदि श्री मदन त्रिपाठी से वसूली करने की सोचें कि भी तो क्या वसूल सकती है ,शायद नहीं ..?क्योंकि इतनी तो उनकी तनख्वाह भी नहीं होगी जितने की एकादश-बिंदुओं" में वह सुशोभित किए गए हैं ।

तो फिर क्या होगा इस व्यवस्था का... क्या  ये  धन भी उसी प्रकार से डूब जाएंगे जैसे त्रिलोकीनाथ के  आश्रम का रुपए डूबने को छोड़ दिया गया है...? नदी  में बैठकर किसी किनारे में हम बहते हुए जल धारा से यह प्रश्न कर रहे हैं....?

 जब तक हम सोचेंगे.., पानी बहुत बह चुका होगा ..

इसलिए तीन बिंदु ही याने परनिंदा ,पदोन्नति रोका जाना और वेतन वृद्धि भत्ता रोकना ही संभव है...

सही है कि "विजयआश्रम" जिला पंचायत शहडोल में आर्थिक रफ्तार के अभाव में या असहयोग में रुक गया किंतु आश्रम की विजय पताका कभी नहीं रुकेगी और ना ही उसे रोकने की चेष्टा किसी को करना चाहिए... इसी प्रकार लोकतंत्र में भ्रष्टाचारी चाहे कितना ताकतवर क्यों ना हो वह किसी भी सिस्टम को किसी भी प्रकार से क्यों ना दवा ले वह मुख्य-शास्ती से क्यों ना अपने आप को निकाल ले... किसी भी प्रबंधन से... हम कोई आरोप नहीं लगाना चाहते ..क्योंकि कमिश्नर शहडोल ने 11बिन्दुओ मे आरोप लगाकर यह तो सुनिश्चित कर दिया है कि अपराध हुआ है ।

अब राष्ट्रपति जी के यहां से  फांसी में माफीनामा का भी एक अवसर होता है ....यही हमारे संविधान की व्यवस्था है ।और फासी के लिए किए गए अपराधों से बढ़कर क्या आर्थिक अपराध किए जा सकते हैं...., फिलहाल हमने तो किसी आर्थिक-अपराध के लिए अपने भारत मे किसी को फांसी चढ़ते नहीं देखा....? तो निश्चित तौर पर अपराध कमतर होते होंगे ....

फिर चाहे वे ललित मोदी द्वारा किए जाएं या नीरव मोदी द्वारा अथवा अपने माननीय-पूर्वसांसद राज्यसभा श्री विजय माल्या द्वारा जो इन दोनों लंदन के प्रवास पर हैं, अपराधों की दुनिया में चमकता चेहरा, भी वहां से बैठकर वे लोकतंत्र को ज्ञान भी बताते रहते हैं....

 यह बड़े-बड़े लोगों की बातें है,अपन तो आदिवासी क्षेत्र के निवासी है, दो-ढाईलाख रुपए में ही"पाक्षिक विजयआश्रम"  ब्रेक करना पड़ा, किसी ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह नहीं बल्कि अस्थाई प्रवास की तरह। इसलिए की आदिवासी क्षेत्रों में सब चलता है.... पता नहीं नरेंद्र मरावी जिला पंचायत अध्यक्ष को क्या सूझा जो उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा कर अपनी ही तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ  धरना प्रदर्शन आंदोलन कर दिया था..? और जिसका एक नतीजा कमिश्नर श्री शोभित जैन के हस्ताक्षर से सुशोभित हो रहा है ।

बहर हाल प्रशासन के हर प्रयास को नमन है... कुछ ना होने से कुछ होना ज्यादा बेहतर है....  बी पॉजिटिव यार.... यही लाइफ है...। यह तो इसी सर्वशिक्षा मिशन की "लिपिकीय-त्रुटि" थी जो "महिला समंंन्यवक " को मात्र 9000 रुपयों के लिए "गबन की श्रेणी" में न सिर्फ पर खड़ा कर दिया बल्कि 4 साल के लिए दंडित कारावास तक पहुंचा दिया..... 
अपन तो आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं इसलिए दिव्य शक्ति और लघु सस्ती के झमेले में बिल्कुल न पड़े...? आशा करना चाहिए कि 15 मार्च को 1 सप्ताह का समय विदित हो जाने के बाद कुछ ना कुछ प्रायश्चित -दंड स्वरूप निर्धारित हो गया होगा , कहते हैं पांडेजी की कृपा जिस किसी पर रहती है वह पतित भी पावन हो जाता है...

 और यही प्रशासन का बल्कि हमारी न्याय-व्यवस्था का  , न्यायिक व्यवस्था का "एक अर्धसत्य है".......?

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

नर्मदा चले , उल्टी चाल नर्मदे हर..... नर्मदे हर........ नर्मदे हर...?( त्रिलोकीनाथ )




नर्मदा चले , उल्टी चाल

नर्मदे हर..... नर्मदे हर........ नर्मदे हर...?

  ( त्रिलोकीनाथ )

चलो भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में, 10 साल मुख्यमंत्री रहे दिग्गी राजा याने दिग्विजय सिंह के सामने एक प्रज्ञा का प्रज्वलन करने का साहस तो हुआ, नहीं तो आरोप लगते की नूरा-कुश्ती हो गई, भैया ।बहराल प्रज्ञा सिंह याने साध्वी प्रज्ञा के उम्मीदवार बनाए जाने का पहला स्वागत दिग्विजय सिंह ने किया और अंत में कहा नर्मदे हर... इससे यह साफ हो गया कि नरेंद्र मोदी जी को अगर गंगा मां बुलाती हैं तो नर्मदा का कॉपीराइट पर पहला हक दिग्गी राजा को है।
 बहराल चुनाव रोचक होगा ,जीत और हार दोनों ही आनंददाई होगा ।भोपाल वासियों के लिए ही नहीं बल्कि प्रदेशवासियों के लिए भी कि कांग्रेस का हिंदुत्व जीतता है या भाजपा का ...?क्योंकि अन्य कोई विकल्प है भी नहीं ....?

बहुचर्चित फिल्म "दीवार" मैं अमिताभ बच्चन और शशि कपूर एक पुल के नीचे संवाद करते हैं ।अमिताभ कहते हैं मेरे पास यह है.., वह है.., फलाना है.., ढिकाना है ; तुम्हारे पास क्या है...? और कुल मिलाकर अभिमान प्रकट करते हैं ।तो शशि कपूर जो इंस्पेक्टर होते हैं तथा अमिताभ के भाई  हैं बड़े ही शांत भाव से उत्तर देते हैं ...
"मेरे पास मां है...."
 तो भैया नर्मदा मां के भरोसे नर्मदे-हर कर के शतरंज की बिसात पर दिग्गी राजा की चाल काबिले तारीफ थी। 
यह बात बड़े-बड़े लोगों की है, अपन तो शहडोल आदिवासी धरा के निवासी हैं इसलिए जब कमलनाथ जी ब्योहारी मे खिल रहे थे, कमोवेश इसी दौर पर नर्मदा जी भोपाल से शहडोल की ओर उल्टा बहती आई.... चुनाव का वक्त है कई लोगों को अपने प्रजा को आशीर्वाद देना उचित लगा. किंतु , क्योंकि कॉपीराइट चिन्हित लोगों के पास है कांग्रेसका, इन दिनों, शहडोल में। तो नर्मदा को वही-वही बहाया गया या चिन्हित लोगों को ही पवित्र होने का वरदान दिया गया ।बाकी पूरी प्रजा वरदान से महरूम रही। ऐसे में नर्मदा का दोष कुछ भी नहीं होगा वे तो वही ही थी पवित्रता के लिए थकान खत्म करने के लिए। प्रबंधन ठीक करने के लिए ताकि लोग रिफ्रेश हो सके हो सके,लोकसभा चुनाव के लिए। किंतु जिन्होंने कॉपीराइट कर लिया था वह चिन्हित प्रजा के पास प्रजापति को पहुंचाएं और नर्मदा का आशीष दिलाने का काम किया।
 इससे शहडोल में कांग्रेस को कितना लाभ मिलेगा यह तो अभी कहना जल्दबाजी होगी... किंतु जिस प्रकार से कांग्रेसका कुप्रबंधन कुछ चिन्हित हाथों के भरोसे हो रहा है यह उसी अंदाज को, दोबारा ,कहीं दोहरा न दे ,जिस अंदाज में पर्वतों की रानी हिमाद्री लोकसभा की मध्यावधि चुनाव की नैया पार करने निकली थी और उन्हें हताशा का सामना करना पड़ा। क्योंकि तब एक होटल में पड़ाव डाले कांग्रेसी महारथी कांग्रेसका संचालन कर रहे थे । इस बार कुछ दूसरा तरीका है
 किंतु कुछ वैसा ही है ,जैसा अनुभव में देखा गया ।
बहरहाल अपन बात कर रहे थे नर्मदा के उल्टा बहने की और कुछ खास लोगों को पवित्र करने की, तो कम से कम यह आसरा तो बनता ही था कि नर्मदा कहीं भी बहे, कहीं भी रहे वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे शिव के पास जरूर जाएंगी। किंतु कॉपीराइट होल्डर नर्मदा को वही-वही बहाते रहे, जहां-जहां उन्हें लगता रहा यही के प्रजा पात्र है , नर्मदा के आशीष के लिये अन्यथा शिव कुमार जी वरिष्ठतम भी हैं, वरिष्ठ भी हैं और कमलनाथ जी के नजदीक भी, नर्मदा का उनके यहां प्रवास ना होना दुर्भाग्य जनकहै? कांग्रेस को उल्टा बहने की आदत तो ठीक है किंतु देश के लिए राजनीति करना और व्यक्तिगत दुकानदारी की तरह राजनीत का व्यवहार कुछ अटपटा रहा इसलिए अपन भी कहेंगे नर्मदा के प्रथम प्रवास पर  ,
 नर्मदे हर..... नर्मदे हर........ नर्मदे हर...?


देखना होगा भाजपा की गंगा किसको किसको कहां कहां शहडोल में पवित्र करती है फिलहाल जमीनी स्तर का कार्यकर्ता भी मुंहबाए बैठा है, गंगा आए ..,पवित्र कर जाएं ...?जय गंगा मां की.....

रविवार, 14 अप्रैल 2019

           "रहिमन भ्रष्टता राखिए ,
                     बिन भ्रष्टता ,सब सून....."?
       दिग्विजय ने कि घोषणा ; राम मंदिर के लिए कांग्रेस की जमीन को दे देंगे.....     







तो मित्रो यह तय हो गया कि अयोध्या का विवादित ढांचा "राम मंदिर-बाबरी मस्जिद"की समस्या को ज्यादा वोट की राजनीति में इस्तेमाल नहीं  किया जा सकता और इसके राजनीतिक पक्ष कार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी अन्य पार्टियां सत्ता मैं आने के बाद इस बात से संतुष्ट हो गई हैं कि यह वोट उगलने से ज्यादा सिर दर्द मशीन है। इस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक कूड़ेदान में फेंक दिया गया । 

लेकिन राम मंदिर की श्रंखला का नया शंखनाद हो गया है। वह भी नवाबों की बस्ती भोपाल में। जहां कल पूर्व मुख्यमंत्री जी  दिग्विजय सिंह ने घोषणा किया कि वह राम मंदिर के लिए कांग्रेस पार्टी की जमीन को दे देंगे ।स्वभाविक है उन्हें लगता भी है मध्य प्रदेश में कांग्रेस का रजवाड़ा उनकी अपनी विरासत है ।तू जिसे चाहे जहां चाहे दे देंगे, अभी तक वक्त नहीं आया था देने का उन्होंने नहीं दिया। अब उन्हें लग रहा है कमलनाथ जी उनकी अपनी गवर्नमेंट के पवाईदार हैं और उनके कहने पर इतना होना भी चाहिए और लगे हाथ अगर इस आश्वासन से राम मंदिर से जन्म लेने वाला हिंदुत्व का कीड़ा या वायरस अगर कांग्रेस के लिए भोपाल की कांग्रेस के लिए प्राण दाई बनता है या फिर भाजपा के लिए वायरस बनता है इससे भला क्या हो सकता है .... पहले चोरी छुपे बोली जाती थी किंतु जब से हिंदुत्व की संस्था राज्य और केंद्र में स्थापित रही हैं मुखर अघोषित संविधान का हिस्सा है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पहचान है .और हमारी धार्मिक आस्था का बड़ा वोट बैंक भी ।इसे संविधान में भी स्थापित कर ही देना चाहिए और यही 21वीं सदी की राजनीति की सबका साथ-सबका विकास की पहचान बनाया जा सके।

 ना जाने मध्यप्रदेश में कितनी मंदिर और कितने मस्जिद वीरान पड़े होंगे ...कितनी मंदिरों में राजनीतिक दलों के अपने अपने गुर्गे राजनीति की फसल को बोते और काटते होंगे...? इन्हीं फसल काटने वालों में आसाराम और राम रहीम दुर्भाग्य से करोड़ों अरबों की शासकीय भवनों के शान बने हुए हैं ।कहते हैं वे जेल में हैं लेकिन सच कुछ और होगा बस इससे ज्यादा शायद नहीं ,ई पहले भी बाहर थे अब नजर बंद है। 
शासकीय भवनों में  यह कटाक्ष इसलिए नहीं कर रहे हैं की बोट  बैंक के धंधे में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के हम किसी पैरोकार का विषय बन जाए बल्कि यह इसलिए किया जा रहा है अयोध्या के संत महंत जो समझे हमें नहीं मालूम , हम तो यह जानते हैं शहडोल में भी एक मोहन राम मंदिर है जिसे 15 साल भाजपा के सत्ता में उनके छुटपुट-किस्म के नेताओं ने इस हालात में पहुंचा दिया, सत्ता के जरिए गैर कानूनी; बल्कि हाई कोर्ट के निर्देशों की खुली अवमानना करते हुए, पूरी गुंडागर्दी के साथ ,मोहन राम मंदिर और उसके तालाब के अस्तित्व को चुनौती दिया। तालाब को तो नष्ट ही कर दिया ।
हाल में यह देखा गया है इस शहडोल के रघुराज स्कूल ग्राउंड के बगल में मोहन राम मंदिर की अचल संपत्ति को मंदिर के अंदर अवैध रूप से कब्जा कर रहने वाले धर्म का चोला पहने है लवकुश शास्त्री ने पूरे भवन पर मनमानी  तोड़फोड़ की आम के वृक्षों को काटा, कई पेड़ों को नष्ट किया, पूरी अचल संपत्ति को खुर्द-बुर्द किया 
और जब तहसीलदार न्यायालय सोहागपुर ने इस पर स्थगन जारी किया तो उनके आदेश को अपनी जूते की नोक में रखते हुए पूरी गुंडागर्दी के साथ ,आदेश की अवमानना करते हुए न सिर्फ बिल्डिंग को बनाया बल्कि डबल स्टोरी बनाकर उसका उपभोग निजी हितों के लिए करने लगा। यह बताते हुए कि वह यह उसकी  आराजी है, न्यायालय तहसीलदार सोहागपुर की क्या औकात कि उसने "स्थगन-आदेश" जारी कर दिया .....?यहां पर वह एक ठेकेदार की हैसियत से अपना दावा प्रस्तुत किया। बिल्डिंग का ठेकेदार होने के नाते यह बिल्डिंग उसकी है ।
वास्तव में यह आराजी श्री पांडे मोहन राम समिति शहडोल याने श्री रघुनाथ जी राम जानकी शिव पार्वती मोहन राम मंदिर ट्रस्ट शहडोल की घोषित आराजी है जिस पर शासकीय अभिलेखों में धोखाधड़ी-कूट रचना करते हुए लव कुश शास्त्री ने, जो कि कर्वी बांदा का निवासी है शहडोल आकर अपनी रोजी-रोटी चला रहा है मनमानी तरीके से धोखाधड़ी किया ....?जिला प्रशासन कम से कम जो वर्तमान में भाजपा की तो नहीं है भारतीय जनता पार्टी के गुर्गों के संरक्षण में मोहन राम मंदिर की याने दिग्गी राजा की माने तो राम मंदिर की निजी अचल संपत्ति को लूटने और लूटवाने का काम हुआ।
               ऐसा बात नहीं है कि शहडोल के मोहन राम मंदिर मामले में दिग्विजय सिंह अनजान है, उनको मालूम है शहडोल की विधायक विश्व-प्रसिद्ध शबनम मौसी ने  दिग्गी राजा से ही  राम मंदिर के भ्रष्टाचार को समाप्त करने का काम किया था और उच्च न्यायालय तक मुकदमा पहुंचाने का रास्ता खोला था... दिग्गी राजा 10 साल के वनवास को भोग कर वापस लौटे हैं, लेकिन मंदिर भाजपा के राज में लुट गया....?
 तो दूसरा पहलू भी देखें कि जब भाजपा के सांसद और प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रभात झा से पूछा गया  "राम मंदिर अगर आप पहले देख लेते हैं तो यह दुर्दशा नहीं होती..? तो उन्होंने कहा कि "भगवान की ऐसी ही इच्छा थी. आप माने...."
 हो सकता है अयोध्या के राम देश को बोट पैदा करने की राजनीति देते हो ....जो अब बीते समय की बात हो गई हो। किंतु भोपाल के राम जिनको कांग्रेस की जमीन दी जाएगी वह भोपाल में वोट देते देने वाले हो...? किंतु बिचारे शहडोल के राम ....इनका कोई धणी-धोरी नहीं.... क्योंकि यह आदिवासी अंचल है यहां लूटपाट करने की खुली छूट,कानून और न्यायलीन आदेशों को अवमनना करने की प्रशासनिक व्यवस्था है। इसलिए शहडोल के राम का कोई वोटबैंक भी नहीं है। और शायद यही कारण है कि वे विचारे खुद  भाजपाई-हिंदुओं वर्तमान में कांग्रेसी-हिंदुओं के लूट के शिकार हो रहे हैं ....? किंतु भारतीय हिंदुओं या वास्तविक हिंदुओं या यू कहना चाहिए जो भारत की धार्मिक विरासत सनातनी हिंदू हैं के हालात हैं वे बद से बदतर होते जा रहे हैं उनकी धार्मिक आस्था लुटती हटती और हिंदुत्व के लूटपाट में बिखरती चली जा रही है आखिर इसका भी तो संरक्षण करना भारत की आजादी का लक्ष्य होना चाहिए था जिसके लिए फिलहाल तो सब कुछ ठीक नहीं दिखता।
क्या इन हालातों पर भी दिग्गी राजा कि कोई सोच का क्रियान्वयन होगा या भोपाल के ही राम को वे अयोध्या की राम की तरह बनाने के बारे में सोच रहे हैं...? चुनाव आयोग तो इन रामरहीमओ के चकल्लस में ज्यादा पड़ता दिखता नहीं....
इसीलिए हमारे नेता मनमानी तरीके से ताकतवर राम को प्रणाम करते हैं और गरीब राम को उसके अंजाम में छोड़ देते हैं..? जैसा कि शहडोल के श्री मोहन राम मंदिर के  राम ।

बहराल हाल में कमिश्नर शहडोल श्री शोभित जैन ने राम मंदिर का दौरा किया और उनके दिमाग में आया कि क्यों ना यहां शौचालय बना दिया जाए जो भूमि अनावश्यक कभी एकता बिल्डिंग वाले लूटते हैं तो कभी कोई और। किसी लोकतांत्रिक जनहित में ही काम आ जाए चलो, अच्छा है कोई प्रशासनिक अधिकारी कोई दृष्टिकोण तो रख भी रहे हैं अन्यथा कई ऐसे प्रशासनिक अधिकारी आए जिन्होंने अच्छे खासे भरे भरे तालाब को ऐसे ही लवकुश शास्त्री जैसे लोगों से मिलकर दो तालाबों को हिस्सा बांट कर दिया ।.....मूल तालाब का स्रोत-तालाब लूटने के लिए अतिक्रमण करने के लिए ,भाजपाइयों के लिए छोड़ दिया गया और दूसरा तालाब भगवान राम के भरोसे...?
 जो अब जल विहीन हो गया है......
 यह तो बीते हुए संतों की वाणी है कि, "बिन पानी सब सून....." लेकिन शहडोल का मोहन राम तालाब बिना पानी के भी करोड़ों रुपए पी रहा है. ........यानी मधुशाला की भाषा में कहें तो शुद्ध "नीड,... बिना पानी के"....
 अगर रहिमन होते तो अपने दोहा को बदल देते ,कुछ इस अंदाज में की:-
" रहिमन भ्रष्टता राखिए ,
    बिन भ्रष्टता सब सून.
    भ्रष्टता गए न ऊबरे,
     मोती- मानुष -चून.."....
           ............?

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

देश

LK Advani Blog : आडवाणी का ब्लॉग बम- सबसे पहले देश, फिर पार्टी और उसके बाद...

Soujanya se /हरिभूमि, दिल्ली



LK Advani Blog In Hindi भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग (Lal Krishna Advani Blog) पर लिखा कि सबसे पहले उनके लिए देश है और उसके बाद पार्टी और फिर अंत में 'मैं' हूं। अडवाणी ने लिखा कि 6 अप्रैल को भाजपा अपना स्थापना दिवस मनाएगी। भाजपा में हम सभी के लिए यह महत्वपूर्ण अवसर है कि हम पीछे देखें, आगे देखें और भीतर देखें। भाजपा के संस्थापकों में से एक के रूप में, मुझे भारत के लोगों के साथ अपने प्रतिबिंबों को साझा करने के लिए मेरा कर्तव्य मानना ​​है, और विशेष रूप से मेरी पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं के साथ, दोनों ने मुझे अपने स्नेह और सम्मान के साथ ऋणी किया है।
अपने विचारों को साझा करने से पहले, मैं गांधीनगर के लोगों के लिए अपनी सबसे गंभीर कृतज्ञता व्यक्त करने का यह अवसर लेता हूं, जिन्होंने 1991 के बाद छह बार मुझे लोकसभा के लिए चुना है। उनके प्यार और समर्थन ने मुझे हमेशा अभिभूत किया है।
मातृभूमि की सेवा करना मेरा जुनून और मेरा मिशन है जब से मैंने 14 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ज्वाइन किया है। मेरा राजनीतिक जीवन लगभग सात दशकों से मेरी पार्टी के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ा रहा है - पहले भारतीय जनसंघ के साथ, और बाद में भारतीय जनता पार्टी और मैं दोनों के संस्थापक सदस्य रहे हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्री अटल बिहारी वाजपेयी और कई अन्य महान, प्रेरणादायक और स्वयं से कम नेताओं जैसे दिग्गजों के साथ मिलकर काम करना मेरा दुर्लभ सौभाग्य रहा है।
मेरे जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत Party नेशन फर्स्ट, पार्टी नेक्स्ट, सेल्फ लास्ट है। और सभी परिस्थितियों में, मैंने इस सिद्धांत का पालन करने की कोशिश की है और आगे भी करता रहूंगा।
भारतीय लोकतंत्र का सार विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान है। अपनी स्थापना के बाद से, भाजपा ने उन लोगों पर कभी विचार नहीं किया है जो राजनीतिक रूप से हमारे "दुश्मन" के रूप में असहमत हैं, लेकिन केवल हमारे सलाहकारों के रूप में। इसी तरह, भारतीय राष्ट्रवाद की हमारी अवधारणा में, हमने उन लोगों के बारे में कभी भी विचार नहीं किया है जो हमारे साथ राजनीतिक रूप से असहमत हैं। पार्टी व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर पर प्रत्येक नागरिक की पसंद की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।
लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा, पार्टी के भीतर और बड़ी राष्ट्रीय सेटिंग में, भाजपा के लिए गर्व की बात रही है। इसलिए भाजपा हमेशा मीडिया सहित हमारे सभी लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता, निष्पक्षता और मजबूती की मांग करने में सबसे आगे रही है। चुनावी सुधार, राजनीतिक और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता पर विशेष ध्यान देने के साथ, जो भ्रष्टाचार-मुक्त राजनीति के लिए बहुत आवश्यक है, हमारी पार्टी के लिए एक और प्राथमिकता रही है।
संक्षेप में, सत्य (सत्य), राष्ट्र निष्ठा (राष्ट्र के प्रति समर्पण) और लोकतन्त्र (लोकतंत्र, पार्टी के भीतर और बाहर दोनों) ने मेरी पार्टी के संघर्ष से भरे विकास को निर्देशित किया। इन सभी मूल्यों के कुल योग का संस्कृत में गठन होता है। राष्ट्रवाद (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद) और सु-राज (सुशासन), जिससे मेरी पार्टी हमेशा डटी रही। उपरोक्त मूल्यों को बनाए रखने के लिए एमर्जेंगी शासन के खिलाफ वीरतापूर्ण संघर्ष ठीक था।
यह मेरी ईमानदार इच्छा है कि हम सभी को सामूहिक रूप से भारत की लोकतांत्रिक शिक्षा को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। सच है, चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है। लेकिन वे भारतीय लोकतंत्र में सभी हितधारकों - राजनीतिक दलों, जन मीडिया, चुनाव प्रक्रिया का संचालन करने वाले अधिकारियों और सबसे ऊपर, मतदाताओं द्वारा ईमानदार आत्मनिरीक्षण के लिए एक अवसर हैं।
सभी को मेरी शुभकामनाएं।

बुधवार, 3 अप्रैल 2019


 डॉन की राजनीति
बबुआ बनाम  निरहुआ

======त्रिलोकीनाथ=========

उत्तर भारत में  जब  देवकी नंदन बहुगुणा के खिलाफ  कांग्रेस ने अमिताभ बच्चन को उतारा था  तो शायद पहला अवसर था  जब किसी  सीने माई कलाकार को  उसकी नाटक नौटंकी के लिए  वोट मिला था  यह अलग बात है  कि नैतिक रूप से अमिताभ बच्चन ने  राजनीति की धरातल को  जल्द ही बाय बाय कर लिया  और अपनी दुनिया में वापस चले गए  और सदी के महानायक कहलाए
1942 के आंदोलन में इनामी क्रांतिकारी थे, यूपी की राजनीति में नामी नेता बने हेमवती नंदन बहुगुणा
1919 को तत्कालीन पौड़ी जिले के बुधाणी गांव में हेमवती नंदन का जन्म हुआ था. 1936 से 1942 तक हेमवती नंदन छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे. वो वक्त ही ऐसा था कि जिससे जितना हो सकता था, वो करता था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती के काम ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी. अंग्रेजों ने हेमवती को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था. आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हेमवती गिरफ्तार हुए थे. पर 1945 में छूटते ही फिर बैंड बजा दी थी अंग्रेजों की. तुरंत ही देश भी आजाद हो गया.
विपक्ष के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता की छल-बल लगाकर ज़मानत भी ज़ब्त करवा दी थी. किंवदंतियां हैं कि चन्द्रभानु गुप्ता उनसे पूछते थे- रे नटवर लाल, हराया तो ठीक, लेकिन ज़मानत कैसे ज़ब्त करायी मेरी, ये तो बता. बहुगुणा का जवाब था- आपकी ही सिखाई घातें हैं गुरु देव. (वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी राजीव नयन बहुगुणा की फेसबुक वॉल से)



इमरजेंसी के विरोध में जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. इसी सिलसिले में वो लखनऊ भी गये. बहुगुणा ने उनको रोका नहीं. बल्कि रेड कारपेट वेलकम दिया. जयप्रकाश नारायण इतने प्रभावित हुए कि यूपी सरकार के खिलाफ एक भी प्रदर्शन नहीं किया. वापस हो गये. पर इंदिरा बहुगुणा से नाराज हो गईं.


इंदिरा का बदला लेने का अनूठा तरीका था. एकदम अपमानित कर देना. छह महीने के अंदर ही बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी के साथ ही लोकसभा की सदस्यता भी छोड़ दी. 1982 में इलाहाबाद की इसी सीट पर हुए उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी. लेकिन 1984 का चुनाव उनके लिए काल बनकर आया. राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया. पर बहुगुणा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था. बहुगुणा ने अमिताभ के खिलाफ दबा के प्रचार भी किया था-
हेमवतीनंदन इलाहाबाद का चंदन.
दम नहीं है पंजे में, लंबू फंसा शिकंजे में.
सरल नहीं संसद में आना, मारो ठुमका गाओ गाना.

बच्चन ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हराया. बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आये थे. यहां देवीलाल और शरद यादव ने उन पर गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये, जिससे वो अंदर से टूट गये थे.
 इस हार के बाद बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास ले लिया. पर्यावरण संरक्षण के कामों में लग गये.
3 साल बाद अमिताभ ने सीट छोड़ दी, राजनीति से संन्यास ले लिया.और उसी दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा की मौत हो गई.
 किंतु यह स्वस्थ भारत में राजनीतिज्ञों की आत्महत्या का ही एक प्रकार था लेकिन  अद-कचरे  क्षेत्री कलाकार  इतनी  समझ ले कर  जीवन नहीं जीते . वह तो बस अजीबका के लिए  राजनीत को चुनते हैं  क्योंकि उन्हें मालूम होता है  कि नाटक-नौटंकी की दुनिया  सफलता की गारंटी  नहीं देती है..?  उसका भविष्य  अस्थाई है,  सपने जैसा है..  इसलिए जल्द ही  एक मुकाम में पहुंचने के बाद  किसी  पेड़ की छाया में  अपना भविष्य में देखते हैं  और राजनीति का पेड़  उन्हें  स्थाई जान पड़ता है | मनोज तिवारी , भोजपुरी कलाकार  एक बड़ा उदाहरण है  जो  भोजपुरी क्षेत्र से निकल कर  दिल्ली की राजनीति में हाथ पैर मार रहे हैं  फिलहाल भाजपा ने उन्हें  हीरो बना कर रखा है|
 अब तो राजनीति में भी वे दिन लद गए हैं,  कभी कोई डॉन  आएगा और  किसी  लौहपुरुष  लालकृष्ण आडवाणी को  घर बैठा देगा  बिना बताए,  बिना समझाएं , बिना  किसी विनम्रता के जैसे  राजतंत्र में  अक्सर हुआ करता था  कि राजे-महाराजे  अपने  बाप-चाचा या परिवार को  नजर बंद कर देते थे  या फिर जेल में भेज देते हैं  और ज्यादा परेशानी हुई तो हत्या करवा देते थे | अब लोकतंत्र में  ना रजवाड़े हैं,  ना राजमहल ;  जहां नजरबंद  घोषित तौर पर किया जाए .., हत्या  एक अपराध है .. इसलिए  किसी अन्य तरीके से फिलहाल जो चल रहा है  उसके जरिए  राजनीतिक-संस्था  को उसके घर बैठाया जाता है,  जैसे लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी,  शत्रुघ्न सिन्हा, अरुणशौरी, यशवंत सिन्हा , जसवंत सिंह  और कितने ही नाम  गिनाए जा सकते हैं  हालांकि कांग्रेस ने  भी यही किया है  किंतु उसने जब किसी को नेता ही नहीं बनाया..? तो घर कैसे बैठाते | जो चेहरे आए भी, हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर अर्जुनसिंह, माधवरावसिंधिया  आदि.. आदि  वे या तो  नाराज होकर पार्टी छोड़ दिए या फिर  पार्टी में शामिल होकर दिल-दिमाग से काम किया | कम से कम नजरबंद तो कभी नहीं रहे|

 अब बदलाव का दौर है , लालकृष्ण आडवाणी की उम्र के लोग  के बारे में  बीता हुआ कल  कहा जा सकता है  कि नए दौर में  नई राजनीति का  चलन चल पड़ा है  किंतु  एक प्रकार के राजनीतिक संस्था भी थी  जिससे युवा पीढ़ी को बहुत कुछ सीखना था,  राजनीति के लिए|  किंतु राजनीति ही वैसी नहीं रही  इसलिए राजनीति का नकाब पहनकर कोई भी नाटक-नौटंकी वाला  राजनीति क्षेत्र में अतिक्रमण करने के लिए कहीं भी भेज दिया जाता है|  राजनीतिक परिवार के उत्तराधिकारी  अखिलेश यादव  युवा राजनीति की  एक प्रकार है  और क्योंकि मुख्यमंत्री रह चुके हैं  तो एक अनुभवी  भी | ऐसे में  यह लोकतांत्रिक  जिम्मेवारी होती  तो युवा के प्रति किसी युवा राजनीति को को  ही  प्रतियोगिता में भेजा भेजा जाता 
 किंतु ऐसा नहीं हुआ,  उन्हें बबुआ बनाकर,  निरहुआ को  सामने खड़ा कर दिया गया ....? इसके पहले भी  डॉन की राजनीति ने  पप्पू के सामने टीवी-स्टार स्मृतिईरानी को राजनीत का नकाब पहना कर  प्रतियोगिता में खड़ा किया था और  इस तरह  युवा राजनीतिज्ञों के खिलाफ  एक ऐसी नाटक-नौटंकी वाली मंडली  को प्रतियोगिता में खड़ा किया जा रहा है ताकि यह दिखाया या भ्रामक वातावरण बनाया जा सके  कि राजनीतिज्ञ अब पैदा ही नहीं होते  या उनका निर्माण ही नहीं हो रहा है  अथवा भी  नाटक-नौटंकी वालों से पहले जीते, बाद में संसद पहुंचे....?
 यह  घटना  ठीक उसी प्रकार की है जैसे शहडोल के  तब सुहागपुर विधानसभा क्षेत्र में  राजनीतिज्ञों  से  थक-हारकर  निराशा और हताशा के हालात में  जनता  ने जैसे ही मौका मिला  शबनम मौसी  एक-किन्नर को  चुनाव जीता दिया|  किंतु  यह एक प्रकार का मोटा को वोट करने जैसा  कार्य था..?  लेकिन अगर  राहुलगांधी के खिलाफ  स्मृति ईरानी  अथवा  अखिलेश यादव के खिलाफ  निरहुआ  को खड़ा किया जाता है  ते यह  उसी प्रकार की राजनीतिक कार्य प्रणाली है जैसे कि लालकृष्ण आडवाणी  या मुरलीमनोहर जोशी जैसे नेताओं को  उनके घर में  नजर बंद कर दिया जाए ...? यह एक अलग बात है  कि वे आडवाणी अपनी राजनीति के बंधुआ मजदूर हैं  तो  छुप कर रह गए...? अपनी विचारधारा के कारण..,
 प्रतियोगिता में  दूसरी विचारधारा है  तो कौन किस को पटका नहीं देता है भोजपुरी कलाकार दिनेशयादव निरहुआ को बीजेपी ने पूर्वी यूपी की आज़मगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया है. इसी सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 
कहते है।भोजपुरी स्टार दिनेश निरहुआ सपा के लिए चुनाव प्रचार भी कर चुके हैं. लेकिन अब वक्त का पहिया कुछ यूं घूमा कि दिनेश लाल यादव उसी नेता के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जिनके लिए कभी वोट मांगा करते थे . हालांकि  ये सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. फिलहाल आज़मगढ़ लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं. पूर्वांचल में आज़मगढ़ को समाजवादियों का गढ़ भी कहा जाता है.
निरहुआ के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के स्थानीय नेता होंगे. पिछली बार रमाकांत यादव आज़मगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़े थे और हार गए थे. रमाकांत का आज़मगढ़ में अच्छा दबदबा है. इस बार भी रमाकांत आज़मगढ़ से चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन बीजेपी ने रमाकांत को टिकट नहीं दिया. रमाकांत की नाराज़गी निरहुआ पर भारी पड़ सकती है. कांग्रेस अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी, इससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा नहीं होगा. 2017 के विधानसभा चुनाव में आज़मगढ़ की 10 विधानसभा सीट में से सपा- 5, बीएसपी- 4 और बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीती थी. आज़मगढ़ लोकसभा सीट का जातीय समीकरण देखें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है. यह देखने लायक होगा कि भारत में किस वीं सदी की राजनीति और संसदीय प्रणाली किस तरफ जा रही है क्या हम स्वस्थ राजनीतिक प्रणाली को विकसित करने में असफल सिद्ध हो रहे हैं.......?


यह अलग बात है कि तब डॉन की राजनीति कुछ समय के लिए इंदिरा गांधी ने की और अब डॉन की राजनीति कोई और कर रहा है लेकिन जब भी राजनीति में डॉन की हरकत देखी गई, उसने अपने महफिल में नाटक-नौटंकी वालों को अपने दरबार में हमेशा रखना चाहा और शायद यही राजनीति का पतन भी है......



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