रविवार, 28 अप्रैल 2019

Namami Devi Narmade : An article discussing current status of River

                            | नमामि देवी नर्मदे  | 

                                                  ---------- शुभांश ----------  

नर्मदा मंदिर अमरकंटक 
उद्गम से 500 मीटर दूर ही प्रदूषित होने लगती है नर्मदा, अमरकंटक में बड़े नाले से सीधे नर्मदा में मिला देते हैं गंदा पानी
नर्मदा नदी की फोटो पत्रिका द्वारा 
क्या आप शांति और सुख की तलाश में है... ?
तो आइये...., माँ
 (क्यूंकि वो पालक है उनके पवित्र जल से कई परिवार पलते है )
 नर्मदा ( नदी )
 के धाम अमरकंटक में , सौभाग्य मिलेगा आपको माँ नर्मदा को मूर्त रूप में सुशोभित देखते हुए वास्तविक (नदी ) रूप में उपेक्षित देखने का , सुन्दर वातावरण मानो भगवान् का साक्षात्कार करा रहा हो और पन्नी, कचरा और पेड़ो की घटती संख्या असुरो ( मानव ) का साक्षात् कार। इन्ही क्षणों  में लिखा था की माँ नर्मदा को आभूषण भेंट करने के लिए यहाँ संपर्क करे , मेरे दिमाग में आया माँ यह डिज़ाइनर ज्वेलरी कैसे पहनेगी और नदी के हिसाब से डिज़ाइनर ज्वेलरी की व्याख्या क्या होनी चाहिए । किन्ही सोच विचार के बाद नदी के लिए डिज़ाइनर ज्वेलरी के रूप में  पेड़ बेहतर लगा और फेसिअल के रूप में नदी का साफ होना।  ख़ैर हमने कुछ उल्टा उल्टा सा समझा है , इसे ऐसे देखते है ,मूर्ति रूप में हमने माँ नर्मदा के लिए ज्वेलरी निर्धारित की और पालक माँ नर्मदा के लिए हमने निर्धारित किया आभूषणों की पैकिंग सामग्री (प्लास्टिक, पन्नी आदि ) , किन्ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट का आदेश था की महाकाल को RO के पानी से अभिषेक करे क्यूंकि महाकाल की मूर्ति को उस पानी से खतरा था जो मानवो ने सालो की मेहनत से तैयार किआ।

ख़ैर कुछ इतिहासकार मानते है की नदिओं में सोना चांदी का दान एक सार्थक मतलब रखता था क्यूंकि उसी दान के तहत नदिओं में सोना चांदी के  घुलने के बाद जब मानव उसे ग्रहण करता था तो एक पोषक तत्व  के रूप में शुशोभित होता था।  और उस नदी के जल को और पवित्र एवं  पोषक बनाने में लाभकारी होता था।  अब मूर्ति को आभूषण से शुशोभित कर नदी को आर्सेनिक प्लास्टिक से शुशोभित कर सुख समृद्धि की तलाश ? बेशक यह चिंतनीय विषय है।
  काश .....,ऐसा दान मंदिरो में लिखा हो की.,
-- इतने वृक्षो के पोषण के लिए यहाँ संपर्क करे , 
--या इतने घन पानी की साफ़ सफाई के लिए रसीद बुक कराए
 तो समस्या भी हल होजाएगी।  नहीं तो अन्ततः समस्या यही रहेगी , और राजनेता अपनी राजनीती समस्या की चर्चा कर के चमकाते रहेंगे न की समाधान की चर्चा।
समरसता को प्रदर्शित करते वृक्ष 

जगह जगह पेड़ो की कटाई देख के जब लोगो से पूछो की क्यों कर रहे हो ऐसा तो जवाब आता है हमारे एक पेड़  से कुछ नहीं होता , उन्हें बोलो जो जंगल साफ़ कर दे रहे है।  मन में आया ये भी सही है , फिर उसी पावन  भूमि में एक जगह दिखी जहा एक पतला सा पेड़ अपनी जान लगाए हुए एक विशाल पत्थर को समेटे हुए है की व्यवस्था न बिगड़े और प्रकृति का संतुलन बना रहे , थोड़े आगे जाके जब देखा रो सोन मुड़ा आगया था और वह पे भी मानवो की समेटने की व्यवस्था देखने को मिली जो उतनी कारगार नहीं दिख रही थी जितना उस पेड़ की थी।  फोटो का अवलोकन कर के यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अंततः मोदी जी के समर्थको को हर हर गंगे , शिवराज जी के समर्थको को नर्मदे हर , दिग्विजय जी के समर्थको को नर्मदे हर। बाकि ठेकेदारों के समर्थको को ठेकेदारी हर। 

अपने महत्व को परिभाषित करता एक पतला वृक्ष 

अपने महत्व को परिभाषित करने की कोशिश करता भ्रमित मानव 

ऐ शाम, तू बता दे ....तू शाम ही है ,

 तेरे किरदार को सवेरा मान के उजाला सोच रहे है ,

 बता ..,तेरे बाद अँधेरा ही है... 

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