शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

न्याय का "एक अर्धसत्य " ------------- ( त्रिलोकीनाथ )-----------------



न्याय का "एक अर्धसत्य " 



ता नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री  दिग्विजय सिंह जी को क्या सूझा, उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था मध्य प्रदेश में लागू करने का काम किया, कहा; महात्मा गांधी की सोच को जमीन में उतार रहे हैं । हम भी भटक गए .. ,जिला पंचायत शहडोल में अपने अखबार "विजयआश्रम" को मूर्त रूप देने में की ,20वीं सदी के अंत में पत्रकारिता को पंचायती राज व्यवस्था के साथ जोड़ें । और 1998 के आसपास"पाक्षिक विजयआश्रम" को जिला पंचायत शहडोल के माध्यम से 




------------- (  त्रिलोकीनाथ  )-----------------
चलाया। तब शहडोल संभाग जो अभी दिख रहा है वह जिला था, करीब 900 ग्राम पंचायतें, 12 ब्लॉक के हर गांव में हमने व्यवस्था की जिला पंचायत में होने वाले प्रत्येक निर्णय अखबार के माध्यम से ग्राम पंचायत तक पहुंच सके। ताकि प्रशासनिक शक्ति विकेंद्रीकरण की व्यवस्था में समन्वय व पारदर्शिता बनी रहे । ,प्रयोग था ....

तब कलेक्टर असवाल शहडोल में हुआ करते थे , क्रियावन के दौर में उनकी एक चिंता प्रतिक्रिया के रूप में आई ,की यह कौन सा अखबार है जो सारी सूचनाएं गांव तक दे रहा है....., हमें बहुत खुशी हुई कि हम सफल हैं। मुद्दा अखबार की सफलता के पीछे आर्थिक अनिश्चितता का भी था। जैसा कि होता है लोकतंत्र में ब्यूरोक्रेट्स अकसर  तानाशाह होते हैं संजय दुबे मुख्य कार्यपालन अधिकारी थे। उन्हें लगा कि हम हस्तक्षेप कर रहे हैं उनके प्रशासन पर, उनकी पारदर्शिता में अतिक्रमण कर रहे हैं ।अतः पहले हमसे लड़ाई-झगड़ा किए बाद में व्यवस्था दे दी कि आपका "चंदा" यानी "पाक्षिक विजयआश्रम" की सालाना (एक प्रति) कीमत करीब 72 रुपए प्रति पंचायत थी आप हर ग्राम पंचायत जाकर वसूले ....? जो असंभव था..। जबकि हमारी मांग थी कि इसे जनपद स्तर से यह जिला पंचायत स्तर से भुगतान करा दिया जाए। बहरहाल इस विवाद में करीब ₹ दो लाख से ऊपर तब के जिला पंचायत  उमरिया शहडोल और अनूपपुर में हमारा उलझ गया...... और ऐसा उलझा की घर-वापसी का नाम नहीं लिया । क्योंकि  हमारे महान राजनीतिज्ञों ने  शहडोल के तीन टुकड़े कर दिए थे एक बना  पाकिस्तान दूसरा बांग्लादेश तीसरा स्वयं  भारत।  शहडोल  के बंटवारे में हमारा  फंड भी बट गया ... ? हमने भी ठानी की "विजयआश्रम" अब नहीं चलाएंगे, क्योंकि "भूखे भजन न होय गोपाला"... त्रिस्तरीय पंचायती राज की सफलता में समन्वय हमने एक प्रयोग किया था जो असफल हो गया ...।

दो-ढाईलाख रुपए, भैया मानो डूबी गए शहडोल जिले के बंटवारे में। आज तक वसूली नहीं हुई। उनके कार्यकाल में शिक्षाकर्मी भर्ती का एक बड़ा घोटाला हुआ, उसके मुख्य नायक थे माननीय मदन त्रिपाठी जी तब कमला सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष वा उपाध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह थे।
21वीं सदी के 1919 तक हम पहुंच गए। गाहे-बगाहे दो-ढाई लाख रुपया याद आता रहा ।अब तक तो वसूल नहीं हुआ है पूरा बिल्कुल नहीं.. रह रह के जिम्मेदार तबका अपनी नैतिकता के नाते शुरू होकर पहुंचाते रहे... बहरहाल भाई हमारा एक प्रयोग था ... ।
अब जब कमिश्नर शहडोल श्री शोभित जैन का एक ज्ञापन 15 मार्च का लिखा संज्ञान में आया जिसमें श्री मदन त्रिपाठी जी को लघु-शास्ती के आरोप का विवरण है, हमें याद आ गया "विजयआश्रम" में अपने पुराने दो -ढाई लाख के क्या अभी भी मिल सकता है....?
तो चलिए बताते चलें यह ज्ञापन 11 बिंदुओं पर आरोपित है:-
पहला बिंदु, लोकायुक्त कार्यालय के प्रकरण  30 /2018 जिला खनिज प्रतिष्ठान की धनराशि पर केंद्रित है।
दूसरा, आरोप नियम विरुद्ध तरीके से बैंक खाता खोले जाने पर है
तीसरा, यह प्रदर्शित करता है कि श्री त्रिपाठी जी को 30000रुपए  तक की राशि का आहरण और व्यय का अधिकार रहा इसके बावजूद उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए का आहरण किया
चौथा, मॉडल स्कूल भटिया में 5000000 रुपए धनराशि में अनियमितता पर है
पांचवा, निर्धारित  जिला स्तरीय समिति और भंडार क्रय अधिनियम 2015 का पालन न करने के बारे में
छठा, ई टेंडरिंग को अनदेखा करके जबलपुर के किसी  न बटने वाले अखबार मैं विज्ञापन छपाने का है
सातवां, कस्तूरबा गांधी छात्रावासों में 5000000 की बजाय रुपए 5600000 अनुपयोगी सामग्री क्रय किए जाने का है
 सातवा, वैश्णवी इंडस्ट्रीज के फर्जी बिलों को बना कर राशि आहरण में कूट रचना का है
 नवा, 50 माध्यमिक शालाओं में विज्ञान क्रीड़ा शैक्षणिक सामग्री में नियम विपरीत क्रय का है
दशमा, बुढार छात्रावास में नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति का  तथा
ग्यारहवॉं, "जेंडर-अधिकारिता" की अनदेखी कर महिला की बजाय पुरुषों को प्रधानता देने का है यानी पुरुष नियुक्ति का है 
और अंत में 7 दिन की नोटिस में स्पष्टीकरण चाह है श्री मदन त्रिपाठी जी आपने गंभीर वित्तीय अनियमितता व गबन की श्रेणी का मामला के आरोप आप पर हैं क्यों ना आप के विरुद्ध लघु-शास्ती ंं निर्धारित किया जाए...?


 तो भैया समझ ले "लघु-शास्ती" क्या होती है...? और उसमें क्या प्रावधान है। हम मुख्य-शास्ती की चर्चा नहीं करेंगे..... यह काम कर जबरदस्ती लेख को बढ़ाना उचित नहीं..... ।

 मध्यप्रदेश सिविल सेवा नियम 1966 के नियम 10 में लघु-शास्ती और मुख्य-शास्ती का वर्णन है।  लघु-शास्ती  कर दी हैं तो जान ले शासकीय सेवक पर निम्नलिखित लघु-शास्ती   की जा सकती हैं :-

एक - परिंंनिंंदा
दो -   उसकी पदोन्नति का रोका जाना
तीन- उपेक्षा से या आदेशों के भंग द्वारा शासन को उसके द्वारा पहुंचाई गई किसी आर्थिक हानि को सम्पूर्ण  रूप से या उसके किसी भाग कि उसके वेतन से वसूली
चार- वेतन की वृद्धियों का या गतिरोध भत्ते का रोका जाना ।

 बाद में मुख्य शक्तियों का वर्णन है, जिसे आप जानना चाहे तो वेबसाइट खोले....।

 हमारा  दो-ढाईलाख रुपए डूबा, क्योंकि हम पारदर्शिता, त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में पत्रकारिता का प्रयोग कर रहे थे....... तो हमें लगा कि लघु-शास्ती में आर्थिक हानि को पूर्ण रूप से या उसके किसी भाग की वेतन वसूली  से क्या हमारा बकाया वसूल हो सकता था...? हालांकि जो असंभव है। क्योंकि शहडोल के बंटवारे के शिकार थे, हम भी लगातार प्रयोग करते रहते है...।

इस आरोप पत्र में बहरहाल शासन अपने करोड़ों रुपए यदि श्री मदन त्रिपाठी से वसूली करने की सोचें कि भी तो क्या वसूल सकती है ,शायद नहीं ..?क्योंकि इतनी तो उनकी तनख्वाह भी नहीं होगी जितने की एकादश-बिंदुओं" में वह सुशोभित किए गए हैं ।

तो फिर क्या होगा इस व्यवस्था का... क्या  ये  धन भी उसी प्रकार से डूब जाएंगे जैसे त्रिलोकीनाथ के  आश्रम का रुपए डूबने को छोड़ दिया गया है...? नदी  में बैठकर किसी किनारे में हम बहते हुए जल धारा से यह प्रश्न कर रहे हैं....?

 जब तक हम सोचेंगे.., पानी बहुत बह चुका होगा ..

इसलिए तीन बिंदु ही याने परनिंदा ,पदोन्नति रोका जाना और वेतन वृद्धि भत्ता रोकना ही संभव है...

सही है कि "विजयआश्रम" जिला पंचायत शहडोल में आर्थिक रफ्तार के अभाव में या असहयोग में रुक गया किंतु आश्रम की विजय पताका कभी नहीं रुकेगी और ना ही उसे रोकने की चेष्टा किसी को करना चाहिए... इसी प्रकार लोकतंत्र में भ्रष्टाचारी चाहे कितना ताकतवर क्यों ना हो वह किसी भी सिस्टम को किसी भी प्रकार से क्यों ना दवा ले वह मुख्य-शास्ती से क्यों ना अपने आप को निकाल ले... किसी भी प्रबंधन से... हम कोई आरोप नहीं लगाना चाहते ..क्योंकि कमिश्नर शहडोल ने 11बिन्दुओ मे आरोप लगाकर यह तो सुनिश्चित कर दिया है कि अपराध हुआ है ।

अब राष्ट्रपति जी के यहां से  फांसी में माफीनामा का भी एक अवसर होता है ....यही हमारे संविधान की व्यवस्था है ।और फासी के लिए किए गए अपराधों से बढ़कर क्या आर्थिक अपराध किए जा सकते हैं...., फिलहाल हमने तो किसी आर्थिक-अपराध के लिए अपने भारत मे किसी को फांसी चढ़ते नहीं देखा....? तो निश्चित तौर पर अपराध कमतर होते होंगे ....

फिर चाहे वे ललित मोदी द्वारा किए जाएं या नीरव मोदी द्वारा अथवा अपने माननीय-पूर्वसांसद राज्यसभा श्री विजय माल्या द्वारा जो इन दोनों लंदन के प्रवास पर हैं, अपराधों की दुनिया में चमकता चेहरा, भी वहां से बैठकर वे लोकतंत्र को ज्ञान भी बताते रहते हैं....

 यह बड़े-बड़े लोगों की बातें है,अपन तो आदिवासी क्षेत्र के निवासी है, दो-ढाईलाख रुपए में ही"पाक्षिक विजयआश्रम"  ब्रेक करना पड़ा, किसी ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह नहीं बल्कि अस्थाई प्रवास की तरह। इसलिए की आदिवासी क्षेत्रों में सब चलता है.... पता नहीं नरेंद्र मरावी जिला पंचायत अध्यक्ष को क्या सूझा जो उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा कर अपनी ही तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ  धरना प्रदर्शन आंदोलन कर दिया था..? और जिसका एक नतीजा कमिश्नर श्री शोभित जैन के हस्ताक्षर से सुशोभित हो रहा है ।

बहर हाल प्रशासन के हर प्रयास को नमन है... कुछ ना होने से कुछ होना ज्यादा बेहतर है....  बी पॉजिटिव यार.... यही लाइफ है...। यह तो इसी सर्वशिक्षा मिशन की "लिपिकीय-त्रुटि" थी जो "महिला समंंन्यवक " को मात्र 9000 रुपयों के लिए "गबन की श्रेणी" में न सिर्फ पर खड़ा कर दिया बल्कि 4 साल के लिए दंडित कारावास तक पहुंचा दिया..... 
अपन तो आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं इसलिए दिव्य शक्ति और लघु सस्ती के झमेले में बिल्कुल न पड़े...? आशा करना चाहिए कि 15 मार्च को 1 सप्ताह का समय विदित हो जाने के बाद कुछ ना कुछ प्रायश्चित -दंड स्वरूप निर्धारित हो गया होगा , कहते हैं पांडेजी की कृपा जिस किसी पर रहती है वह पतित भी पावन हो जाता है...

 और यही प्रशासन का बल्कि हमारी न्याय-व्यवस्था का  , न्यायिक व्यवस्था का "एक अर्धसत्य है".......?

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