शहडोल लोकसभा :विरासत की सियासत
हिमाद्री और भाजपा को
कांग्रेस ने उपहार में दी पहली जीत..
मतदान-29 अप्रैल को
................( त्रिलोकी नाथ )..........................





लोकसभा मध्य चुनाव में हिमाद्री सिंह को जैसे टिकट देकर जंगल में छोड़ दिया गया हो.... नतीजतन जीता हुआ चुनाव, वे हार गई और इस परिवेश में भारतीय जनता पार्टी ने मौके का पूरा लाभ उठाया उन्होंने दलवीर सिंह और राजेशनंदीनी सिंह के विरासत की लोकप्रियता की राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीमती हिमाद्री सिंह को भारतीय जनता पार्टी मे न सिर्फ शामिल किया बल्कि उन्हें प्रत्याशी बना कर दूर की कौड़ी खेली ।उन्हें एक आदिवासी क्षेत्र में ऐसा प्रत्याशी मिल गया जोकि लंबे समय तक भाजपा की राजनीति को लोकसभा क्षेत्र में खाली नहीं होने देगा।
अब बात रही कि राजेशनंदीनी और दलबीर सिंह किसकी राजनीतिक पूंजी हैं...? तो इसमें कोई शक नहीं कि वे कांग्रेस पार्टी की धरोहर हैं और पूंजी हैं, किंतु कांग्रेस अपनी इस-पूंजी को अपने हितों में शामिल करने की बजाय हेय दृष्टि से उपयोग करने की वस्तु के रूप में देखने का काम करती थी जिससे वह अपनापन नहीं बना पाई जो अक्सर किसी राजनीतिक घराने में उसकी अनुपस्थिति पर जिम्मेदारी होती है.... श्रीमती राजेशनन्दिनी सिंह की मृत्यु के बाद जैसे कांग्रेस ने उन्हें पहचाना ही नहीं और परिवार को अकेला छोड़ दिया, कि वे जाएंगे कहां....?, कुछ इस नजरिए से।

सुनने में यह बात स्पष्ट रूप से आई कि जब कांग्रेस में उम्मीदवार बनाए जाने के लिए हिमाद्री सिंह को बुलाया गया तो शर्त यह थी कि वह अपने पति नरेंद्र मरावी को कांग्रेस पार्टी में शामिल करें। जोकि इतनी जल्दी सहज नहीं था और शायद यही बहाना बना कि उन्हें भाजपा में हो रही अपनी राजनैतिक मांग की निमंत्रण को स्वीकार करना पड़ा। तो यह बड़ा स्पष्ट है कि जब अपनापन निस्वार्थ अथवा निष्पक्ष ना हो तब दलवीर सिंह और राजेश नंदनी की राजनीतिक ख्याति का लाभ स्वाभाविक रूप से हिमाद्री सिंह की विरासत के रूप में देखी जाएगी।
यह आश्चर्यजनक था की जिनकी लड़की भाजपा से प्रत्याशी हो उनके माता-पिता की फोटो कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी अपने राजनीतिक फायदे के लिए छपाये ...यह भी सही है कि दोनों ही नेता कांग्रेस के बड़े पदों पर रहे हैं तो विरासत भी कांग्रेस की कह लाएगी किंतु जब जिम्मेदारी निर्वहन की बात आई थी, वसीयत को संभालने की बात आई थी तब कांग्रेसमें अपने पिचकाटो के कारण विरासत की वसीयत को अनदेखा किया... अब राजनीतिक साख की वसीयत मैं वह चुनाव जीतने का दावा करें .. ना तो यह नैतिक है, और ना ही व्यावहारिक भी ।
इस प्रकार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अधिकारी कलेक्टर अनूपपुर का यह आदेश स्वागतयोग्य है कि बिना उत्तराधिकारी के अनुमति के कोई भी फोटो राजेशनन्दिनी यथा दलवीर सिंह की कही उपयोग की जाए।
हो सकता है इस घटना से कांग्रेस पार्टी को अपना कुछ खो देने की समझ विकसित हो और वह इससे कुछ सीख सकें कि सिर्फ चंद पहुंच वाले नेताओं की बदौलत उन्होंने मध्य प्रदेश के आदिवासी कबीले के बड़े नेता की वसीयत खो दी है और यह सब कुछ उसी प्रकार से होता दिखाई दे रहा है जैसे कि समाजवादी परिवारों ने दलपत सिंह परस्ते के नाम की वसीयत भारतीय जनता पार्टी के नाम लिख दी थी। देखना होगा कि दलवीर सिंह राजेशनन्दिनी की लोकप्रियता और उनके कार्यों को जनमानस कितना संज्ञान में लेता है, लेता भी है अथवा नहीं.... यह भी दिखेगा। जो मतदाता के चिंतन पटल का प्रमाण होगा। बहरहाल कांग्रेस के लिए यह पहली हार है ....उन्होंने अपनी जीती हुई पारी को अनदेखा जो किया ..........? फिलहाल अपनी राजनीतिक वसीयत की विरासत के मामले में हिमाद्री सिंह और भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस ने उपहार में जीत दे दी है बाकी 29 अप्रैल को मतदाता का काम शेष है तो चलो देखते हैं मतदाता आदिवासी क्षेत्र की राजनीति के प्रति अपना क्या नजरिया रखता है.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें