रविवार, 29 दिसंबर 2019

अमरकंटक से नर्मदा विलुप्त ..,;.गंभीर कदम ...धन्यवाद, चंद्रमोहन जी 😊 (trilokinath)150 मीटर में नलकूप खनन प्रतिबंध




 धन्यवाद..,
 चंद्रमोहन जी 
😊
(trilokinath)
शहडोल| देर से ही सही अनूपपुर के कलेक्टर चंद्रमोहन का चंद्रमा प्रकाशित हुआ, उन्हें आभास हुआ कि यदि तत्काल गंभीर कदम नहीं उठाए गए तो अमरकंटक से नर्मदा विलुप्त हो जाएंगी..... हो सकता है यह हमारी शंका हो....?
 हो सकता है कलेक्टर का आईएएस ब्रेन कुछ और देख और समझ कर यह निर्णय लिए हो, ताकि कुछ और बचाया जा सके ...,जल के अलावा?
 नर्मदा.., सोन..., जुहिला आदि अन्य सहायक नदियों के अलावा भी कुछ और बचाया जा सके...?

 बहरहाल प्रथम दृष्टया यही दिखता है कि कलेक्टर चंद्रमोहन ने इन्हें ही बचाने के लिए डेढ़ सौ मीटर के अंतर पर किसी भी प्रकार के नलकूप खनन पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है। ठीक भी है छोटी सी मुट्ठी भर बस्ती को अगर आप नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं या ठीक करने की कोई भी नवाचार नहीं कर पा रहे हैं तो आप किस बात के लिए आईएएस अधिकारी हैं....?
 उत्तरप्रदेश में हालिया दंगों के बीच में एक विधायक सिटी एसपी को डांटते हुए यह कहता है कि उसे भी प्रोटोकॉल की सुरक्षा है.. यही नहीं वह उसी स्थित पर काम करता है। तो हमारे यहां के भी विधायक या सांसद भी अधिकारी स्तर की लोकतांत्रिक योग्यता निर्णय लेने के रखते हैं।
 किंतु जिम्मेदारी कलेक्टर की ही है कि वे प्राकृतिक संसाधनों पर, उसकी सुरक्षा पर उसके विनाश, विलुप्त होने पर अपनी योग्यता का प्रदर्शन करें ....यदि उनमें कुछ है तो...?
 अन्यथा जैसे विधायक आदिवासी क्षेत्र के काम करते हैं और वीआईपी गिरी का आनंद लेते हैं तो कुछ उसी प्रकार का आनंद कलेक्टर लेते हैं और चले जाते हैं ....., कुछ धनसंपदा भी इकट्ठे कर लेते होंगे...., यह सब बात मायने नहीं रखती, बात यह मायने रखती है कि क्या कलेक्टर चंद्रमोहन ने अपनी योग्यता का प्रदर्शन अमरकंटक क्षेत्र को बचाने के लिए कुछ किया.....?
 मुझे आज भीअच्छी तरह से याद है, शहडोल में कलेक्टर सूर्य प्रताप सिंह परिहार हुआ करते थे, मैं भी बैठा था चेंबर में क्योंकि वे भी रुचि लेते थे कि नए पत्रकार उनसे कुछ सीखे और वह भी पत्रकारों से कुछ सीखें..... तो हम अक्सर बैठते थे और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते थे। ऐसी एक चर्चा के दौरान एक अमरकंटक से किसी सेक्रेटरी स्तर के व्यक्ति का पत्र लेकर साधु नुमा कोई व्यक्ति आए थे और कलेक्टर उनसे पूछ रहे थे कि आप बताएं किस काम के लिए आए हैं....? और वे सिफारिश नुमा लिफाफा आगे बढ़ा रहे थे.... कुछ देर तक लखनवी अंदाज में यह सब चलता रहा किंतु वे नहीं माने अंततः कलेक्टर ने उन्हें विदा किया और लिफाफा ले लिया । 
बाद में मेरे सामने ही लिफाफे को बिना खोले टुकड़े टुकड़े कर डाले और कचरे में फेंक दिए.... मैंने पूछा क्या है...? अमरकंटक को लेकर चिंता प्रकट कर रहे थे... कि कुछ भी लोग भेज देते हैं।
 तो इस प्रकार कलेक्टर परिहार ने कलेक्टरी की और अमरकंटक के हित के संरक्षण के लिए कर्तव्यनिष्ठ रहे। हां, यह बताना भी जरूरी होगा शायद वही एकमात्र कलेक्टर थे जो सुबह सुबह अमरकंटक भी जाते थे अक्सर और ड्यूटी टाइम पर 10:30 बजे तक वापस शहडोल की करते थे क्योंकि उन्हें अमरकंटक और उसके पर्यावरण से बहुत प्यार था ।और उनकी कर्तव्यनिष्ठा अमरकंटक के पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित थी।
 उसके बाद यह साहस मैं तलाशता रहा.....।
हालांकि एक समय बाद यह साहस एनजीटी ने दिखाया और कुछ आदेश भी पारित किए ताकि अमरकंटक का पर्यावरण क्षेत्र संरक्षित हो सके किंतु हमारा ब्यूरोक्रेट्स शायद बहुत कमजोर है या भयभीत.....? लोकतंत्र के प्रति उसकी निष्ठा इतनी प्रगाढ़ नहीं है जितनी अपेक्षित है।
 यही कारण है कि वन विभाग का एक उच्च अधिकारी मुझसे सिफारिश करता है एनजीटी ने यदि आदेश किया है अमरकंटक का यूकेलिप्टस प्लांटेशन हटा दिया जाए तो उसके उच्च अधिकारी ऐसा करने की अनुमति दें.... ताकि बिना भू छरण के कर्म से क्रमसः यूकेलिप्टस को वहां से हटाया जा सके।
 और ना मुझे शहडोल के उच्चाधिकारियों में व समर्पण दिखा और ना ही मैंने कोई सिफारिश किया।
 क्योंकि अधिकारी ऐसे भी आए जिन्होंने पूरी बेशर्मी के साथ "वृक्षारोपण का 1 दिन का विश्व रिकॉर्ड" बनाने का न सिर्फ दावा किया शहडोल सीसीएफ क्षेत्र पर बल्कि विश्व रिकॉर्ड बनाने का उन्होंने मानस भवन में जमकर पुरस्कार भी बांटा। किसी पतन का गरिमा पूर्ण इवेंट में शासकीय धन को कैसे खर्च करते हैं यह भी हमने देखा। हमने भी चाहा कि आरटीआई के जरिए हमें जानकारी मिले कि ऐसे विश्व रिकॉर्ड किस आधार पर बने। तो आज तक हमें  सूचना सामग्री नहीं मिली ।
 जबकि वास्तविकता और सच्चाई यह थी के एक उद्योगपति के इशारे पर "यूकेलिप्टस के प्लांटेशन" के लिए जंगल विभाग का पूरा अमला पूरी सहकारिता "गुलाम नौकरों" की तरह विश्व रिकॉर्ड बनाने में समर्पित रही। यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सपना देखने वाली भारतीय जनता पार्टी के शासन का वन मंत्रालय रहा।
 ऐसे में कहीं कोई कलेक्टर चंद्रमोहन का चंद्रमा अगर पूर्णिमा की तरह प्रकाशित हो रहा है
शहडोल संभाग में वर्ष 2019 में यह खबर बड़ी सुखद, बड़ी ही साहसी और बेहद समर्पित कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाणपत्र सी दिखती है। क्योंकि विलुप्त होते नर्मदा को बचाने का अगर काम हो रहा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्व के सबसे बड़े सरदार पटेल के पुतले को भी बचाया जा रहा है... नहीं तो गुजरात में 3000 करोड रुपए का लोहे का सरदार वल्लभभाई पटेल का यह पुतला कबाड़ बन कर ही रह जाता.... तो हम इस बात को लेकर भी भ्रमित हैं कि क्या विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति को बचाने के लिए  "150 मीटर में नलकूप खनन को प्रतिबंध करना" वरदान साबित होगा....।
 हताशा और निराशा के माहौल में express news portal seशहडोल संभाग में अमरकंटक क्षेत्र पर भू जल पर पारदर्शी तरीके से यानी 150 मीटर पर किसी भी प्रकार के भूजल उत्खनन पर प्रतिबंध लगाया जाने की घटना सलूट करने योग्य है। यूं तो और भी आर्डर हुए हैं अमरकंटक क्षेत्र के लिए किंतु क्या उनके प्रति भी ऐसा कोई समर्पण दिखेगा..... ऐसे किसी भी साहस को हम बारंबार सुलूट करेंगे.....

 धन्यवाद ..,
चंद्रमोहन जी😊

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस
आया राम-गया राम
(त्रिलोकीनाथ)

 सर्वप्रथम उपभोक्ता अधिकार अधिनियम 1986 बनाया गया, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 भी लागू किया गया आदि आदि नियम कानून श्रुति में यह लिखित ज्ञान है। किंतु वास्तव में क्या उपभोक्ताओं विभिन्न प्रकार की विषय सामग्री को क्रय करने की क्षमता और बिल से भुगतान की कार्यप्रणाली के साथ ही उस पर विकसित विहित वैधानिक स्वरूप जिससे क्रेता के हितों का संरक्षण के साथ शासन की राजस्व की बढ़ोतरी की गारंटी भी है , नहीं तो शायद इन अधिनियम का बनाने की पीछे संपूर्ण मंसा और संकल्प यही रहा होगा।
 क्योंकि यदि संकल्प सही रहा तो उद्देश्य प्राप्त क्यों नहीं किए गए। यह बात सुनिश्चित है कि किसी भी कार्य का उद्देश्य की प्राप्ति ही किए गए प्रस्ताव व संकल्प का परिणाम होता है ।
 137 करोड़ की आबादी में और उसके बाद प्रतिपल जन्म लेने वाले नागरिक की क्रय क्षमता के आधार पर उपभोक्ताओं का हित सुरक्षित करने की गारंटी उपभोक्ता दिवस हमको देता है, फिर चाहे वह विषय सामग्री की क्रय प्रणाली या विनिमय प्रणाली में हितों की सुरक्षा हो अथवा सेवाओं में हितों की सुरक्षा हो। इनके अलावा भी हम सब संविधान की पांचवी अनुसूची में अधिसूचित आदिवासी विशेष क्षेत्र के निवासी हैं, तो हमें एक और सुरक्षा चक्र संविधान की गारंटी देता है। किंतु क्या पांचवी अनुसूची में शामिल होने के सुरक्षा चक्र हमारी सुरक्षा कर पाए....? यह बात उपभोक्ता दृष्टिकोण से हमें बार बार सोचना चाहिए।

उपभोक्ता  
धर्मनिरपेक्ष-नागरिक का 
साकार स्वरूप 
 क्योंकि उपभोक्ता की कोई जाति नहीं होती ।देखा जाए तो उपभोक्ता ही धर्मनिरपेक्ष-नागरिक का साकार स्वरूप है और आदिवासी नागरिक एक वर्गीकृत सुरक्षा का अधिकारी है। जो संविधान में निहित व्यवस्था का उपभोक्ता भी है। किंतु आदिवासी उपभोक्ता चिन्हित है, उसके हितों की सुरक्षा क्यों नहीं हो पा रही....?

 हाल में उसके लिए समर्पित आरक्षित नौकरियां में यह बात खुलकर आई है कि अकेले शहडोल संभाग में 84 फर्जी जनजाति का प्रमाण पत्र लेकर लोग शासकीय नौकरी कर रहे हैं, यह उसके लिए समर्पित सेवाओं का शोषण है जो सरकारें करा रही हैं, यदि वे इसे पारदर्शी कर नहीं पाई हैं ।

इसी प्रकार पांचवी अनुसूची क्षेत्र की चाहे नदियां हो, जल हो, जंगल हो अथवा जैव विविधता की सुरक्षा की गारंटी देने वाले तमाम विषय सामग्री हो, वह भी असफल हो गए। नदियों में खनिज माफिया, जंगल में यूकेलिप्टस का प्लांटेशन अब तो किसानों के यहां भी घुसपैठ प्रशासन की मदद से हो गई है अथवा प्रदूषण नियंत्रण विभाग की असफलता के कारण खराब होता शहडोल का पर्यावरण या फिर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल यह क्षेत्र विद्युत उपलब्धता के लिए अक्सर संघर्षरत दिखता है, अलग-अलग प्रकार के शोषण यह बतलाते हैं कि हम उपभोक्ताओं के 1 प्रकार आदिवासी उपभोक्ताओं की सुरक्षा चक्र को भी बचाकर नहीं रख पाए हैं। तो फिर करोड़ों उपभोक्ताओं सुरक्षा चक्र तो सिर्फ औपचारिकता है।

 तब जब वह एक एक सेकंड में उद्योगपतियों का घर भर रहा हो, तब वह जब 1 साल में एक लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा की आमदनी अंबानी ग्रुप के फायदे का कारण और उनके विकास की गारंटी देता हो.... तब जबकि ठीक इसी समय भारतीय मुद्रा रुपया , डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होती जा रही है......
 तो लगता है कि भारत भी एक व्यापक उपभोक्ता मात्र है जिसका शोषण हो रहा है..। और वह कुछ नहीं कर पा रहा, तो फिर आदिवासी उपभोक्ता का शोषण क्यों नहीं होना चाहिए.... क्योंकि विकास का पैमाना ही गलत है तो यह सब एक भ्रम जाल है।
 कम से कम उपभोक्ता दिवस में ही प्रशासन की प्रतिबद्धता यह होनी चाहिए कि कुल कितने प्रकरण जिला स्तर पर अथवा संभाग स्तर पर या फिर राज्य स्तर पर प्राप्त किए गए? कुल कितने प्रकरण निराकृत किए गए अथवा निराकृत नहीं किए गए? इससे यह तो कम से कम तय होता कि उपभोक्ताओं के शोषण का वर्गीकरण किस प्रकार का, किस क्षेत्र में ज्यादा है....?, सेवा के क्षेत्र में ज्यादा है अथवा विनिमय में के क्षेत्र में ज्यादा है या
फिर पर्यावरण क्षेत्र में ज्यादा है...? इसी प्रकार अन्य क्षेत्र भी हैं, तो शायद इसमें भी प्राथमिकताएं पैदा हो सकती थी ।

 और इनमें विद्वान योग्य अधिकारी यह सुनिश्चित कर पाते कि ज्यादा शोषण वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता से निराकृत कर उसमें उपभोक्ताओं के हितों को सफलता पूर्ण तरीके से संभावना देख कर गारंटी दी जा सकती थी किंतु वह सब नहीं किया गया...? सिर्फ एक दिन 24 दिसंबर को उपभोक्ता दिवस मना कर क्यों हम अपने आईने से झूठ बोलते हैं...?
 जैसे पत्रकारिता का जीवन आजादी के बाद एक भ्रामक परिस्थितियां हैं...., वैसे ही उपभोक्ता नाम का विषय-वस्तु और उसके संरक्षण का विषय-वस्तु सिर्फ उपभोक्ता दिवस के नाम पर "आयाराम गयाराम" ही बनकर रह गया है।
 "ऊंट के मुंह में जीरा" के अंदाज पर हमारे न्यायालय सिर्फ उन्हीं को हित दे पा रहे हैं जो उनके द्वार को खटखटा लेते हैं.... अन्यथा उपभोक्ता हितों के अधिनियम मृत पड़े शवों के समान हैं। और मोटी पुस्तकों में कुछ लोगों के लिए मनोरंजन के लिए आधार मात्र हैं ।
बेहतर होता जिस प्रकार राजस्व आय प्राप्ति के लक्ष्यों का निर्धारण होता है उसी प्रकार उपभोक्ताओं, विशेषकर आदिवासी उपभोक्ताओं, शहडोल की नजर से देखे तो प्रकरणों को ज्यादा से ज्यादा चिन्हित कर बढ़ोतरी देकर विकास पूर्ण लक्ष्य तय किए जाने चाहिए... ताकि उपभोक्ता नियम जागरूक नागरिक के चर्चा के विषय बन सकें... किंतु फिलहाल "दिल्ली दूर दिखती है।
 इसलिए उपभोक्ता दिवस हमारे और आपके लिए पिछले 25 साल से एक स्मारक की तरह श्रद्धांजलि के काम ही आ रहे हैं ।ऐसे "आयाराम और गयाराम" को हमारी भी श्रद्धांजलि☹

शनिवार, 14 दिसंबर 2019



सीएबी और एनआरसी ने 
असम में  लगाई आग
कर्फ्यू का अवज्ञा-आंदोलन
 अथवा
सविनय अवज्ञा आंदोलन 2019 

    ( त्रिलोकीनाथ )

उधर आसाम में कर्फ्यू लागू है कर्फ्यू प्रशासन का चरम अनुशासनिक शस्त्र है जिससे नियंत्रण कर कानून व्यवस्था को बनाने का प्रयास किया जाता है इसके बावजूद कर्फ्यू को नजरअंदाज कर और सभी प्रकार के जान की बाजी लगाकर नागरिकों ने कर्फ्यू की व्यवस्था को नहीं माना है हजारों की संख्या में नागरिक खुले मैदान में आकर शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होते हुए नागरिकता कानून का बहिष्कार कर रहे हैं, तो क्या माने कि कानून व्यवस्था को थोपने की कयावद को आसाम के नागरिक ने, 1942 के अवज्ञा-आंदोलन की तरह अपनी बात रखने का जरिया बना लिया है.....।

 एक तरफ सरकार है की धमकीनुमा अंदाज में सीएबी और एनआरसी को लागू करने का मन बनाया है तो दूसरी तरफ नागरिकों ने अवज्ञा-आंदोलन का ऐलान कर दिया है। और बगावत के अंदाज पर अपनी बात को रखने का मन बना दिया है। सच बात तो यह है कि तथाकथित हिंदुत्व राष्ट्र के ब्रांड में मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए भारत का बड़ा बाजार खोल दिया गया है। उससे होने वाले नुकसान से भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से लड़खड़ा गई है। बेकारी, बेरोजगारी आम समस्या होती जा रही है ....पर्यावरण संरक्षण की नई नई चुनौतियां खड़ी होती जा रही हैं.... और शासन को इन सब से समाधान निकालने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है....
 क्योंकि यह या तो मल्टीनेशनल कंपनियां की गुलामी के लिए अपना वक्त दें..... अथवा भारत की आजादी और उसकी संपूर्ण स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए.... या संविधान की रक्षा के लिए काम करें।
 इन हालातों में सबसे ज्यादा सरल उपाय है कि आम नागरिक को आपस लड़ा दिया जाए । वह भावनाओं के बाजार में बिक जाए। किंतु 70 साल की आजादी के बाद संभवतः हिंदू हो या मुस्लिम अथवा अन्य कोई नागरिक यह तो समझ ही गया है की लड़ाई हिंदू-मुस्लिम की कम है, लोकतंत्र को बचाने की ज्यादा है....


 इसलिए बहुत ही शांत पूर्ण तरीके से अहिंसा के रास्ते पर इस  विभाजनकारी  कानून के लिए आंदोलन की बातें हो रही हैं।
 आम नागरिकों में समझ विकसित  हो रही है कि यह ठीक है कि कांग्रेस पार्टी के लिए नेता उतने फिट नहीं थे जितना फिट एक स्वतंत्र राष्ट्र की रफ्तार के लिए चाहिए था, बावजूद इसके वे इस बात के लिए भी मन ही मन बहुत परेशान हैं कि क्या बंदर के हाथ में छुरा पकड़ा दिया गया है.... अब नए सिरे से सोचने की कयावद होने लगी है ।
  अर्ध-विकसित राजनीतिज्ञों की यही समस्या है कि वे जो भी काम करते हैं उसके पीछे कोई ना कोई साजिश पल्लवित होती रहती है, निश्चित तौर पर दिखनेवाली साजिश "विभाजन की साजिश" काफी प्रभाव डाल रही है किंतु इसके मूल में वास्तविक साजिश व्यक्तिगत राजनीतिज्ञों की हितों को प्रभावित करता होगा। जिसे ढूंढना विषय-विशेषज्ञों का अहम काम है...
 एक नजरिया यह भी  कि, देश में नोटबंदी के जरिए एकत्र हुए बैंक भंडार के बावजूद भी  पूरा कोष  क्यों खाली है....
  क्या कारण है कि जीडीपी  समुद्र में रहकर भी प्यासे मछली की तरह तड़प रही है...., 
नोटबंदी के जरिए  एकत्र की गई भारी-भरकम राशि  विदेशों में किन लोगों के हित में  या कर्ज माफी के हित में खर्च हो रही है.. उसके बदले  उन विदेशी नागरिकों  कि जो कि राजनीतिज्ञों के नाते-रिश्तेदार हैं अथवा  व्यापारी हैं जिनके हित में सरकार आज काम कर रही है,  कल उन्हें हो सकता है  की कर्ज माफी के लिए चुना जाए.... तब  विदेशों में बैठे अपने नाते-रिश्तेदारों  से कैसे  संपर्क बना पाएगी ...
शायद  नागरिकता संशोधन कानून  के जरिए वे अपने नियंत्रण में इन नाते-रिश्तेदारों को भारत की नागरिकता के नाम पर नियंत्रित कर ले....
  क्या यही  सच की परछाई है  जो इतनी जल्दबाजी में  विदेश में रहे गैर मुस्लिम भारतीय उपजाति के नागरिकों को संरक्षण देने का काम हो रहा है.....?
 यह बात भी शंके के दायरे में स्पष्ट होती है... इसमें कोई शक नहीं की हम अगर विश्वगुरु बन रहे हैं तो पूरी दुनिया हमारा घर है.... ऐसे में भारत को ही घर बनाना कहां तक जायज है.... और जिन लोगों ने बीते 70 साल में जिस देश की नमक रोटी हवा पानी के प्रति वफादारी की निष्ठा पैदा नहीं कर पाए हैं वे किस मुंह से भारत की नागरिकता और उसके निष्ठा के प्रति ईमानदार होंगे....?.
 निश्चित तौर पर वे कभी ना होंगे....।
 हाल में राजनीतिक मोहरे की तहत कश्मीर की धारा 370 में बदलाव हुआ, क्या आज कोई पूछेगा कि कश्मीरी पंडितों को जब इस हिंदूवादी तथाकथित पार्टी के संरक्षण में कश्मीर में रहने की गारंटी नहीं मिल पा रही है, वे अभी भी भयभीत हैं.... इसी प्रकार से तथाकथित वोट की राजनीति किंतु वास्तव में मल्टीनेशनल इंडस्ट्रीज के हित में भारत को बाजार बनाने के लिए और कब्जा कराने के लिए लोगों का दिमाग सांप्रदायिकता के लिए मोड़ने के बहस में छोड़कर अपने छुपे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बिना पांचवी अनुसूची वा छठवीं अनुसूची के विशेष राज्य के हितों के विचार विमर्श को सोचे-समझे, नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी बखेड़ा खड़ा किया गया है... जो किसी भी हालत में देश के हित में नहीं है।
 जिसका अपने-अपने नजरिए का उद्देश्य पूर्ति के लिए आंदोलन भी होने चालू हो गए हैं.... किंतु इन सब आंदोलनों आंदोलनों के पीछे भारत के संविधान के रक्षा के लिए एक मत होना अनिवार्य दिखता है...।
 तो क्या हम देश की आजादी के दौर में लौट गए हैं , क्या 1947 के बाद भारत के संविधान को लिखने जैसा काम किया जाना शेष है......?
 दुनिया आगे जा रही है और भारत पीछे.... यह है सनातन धर्म के परंपरा वादी स्वयं को ठेकेदार बताने वाले हिंदुत्व राष्ट्र के धरोहरों की असफलता है। कि हिंदुत्व एक "कट्टरपंथी-तानाशाह-सोच" का परिणाम मात्र है...?

 यह तो बहुत शानदार रहा कि समय रहते कट्टर हिंदुत्व का ब्रांड बन चुका महाराष्ट्र की शिवसेना, सरकार के अगुआ इस बात पर इन तथाकथित हिंदुओं से विमुख हो गए कि अगर आप कश्मीर में पीडीपी के साथ हाथ मिला सकते हैं तो मैं मेरे मराठी  के साथ क्यों हाथ नहीं मिला सकता.... यही सोच अब भारत के तमाम वर्ग के लोगों के लिए नियत बन चुका है।

 कि यदि आप मल्टीनैशनल कंपनीज के साथ हाथ मिला सकते हैं तो भारत का तमाम नागरिक विभिन्न धर्मों मतों और विभिन्न वर्गों के लोग देश की आजादी के लिए एक क्यों नहीं रह सकते...?
 देखेंगे कि क्या भारतीय जनमानस विचार मंथन में सफल होता है या फिर कथित हिंदुत्व ब्रांड के झंडे के तले पल रहे मल्टीनेशनल कंपनी के और उनके हितों के चाहनेवाले .....? फिलहाल तो भारत के सभी बॉर्डर में आग लग रही है पूर्वोत्तर अपने कारणों से सीएबी और एनआरसी से व्यथित है तो अन्य राज्यों के अपने-अपने कारण हैं पांचवी अनुसूची क्षेत्र के अपने कारण हैं
 कहीं ऐसा ना हो कि कट्टर हिंदुत्वराष्ट्र के कल्पनाकार; उन्हें प्रोपेगंडा के तहत फ्री में मिली विरासत की  धरोहर-राष्ट्र को टुकड़े-टुकड़े न कर दें....
 उनके अपने शब्दों में, उनकी ही "किसी टुकड़े-टुकड़े गैंग" की तरह।

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

फर्जी-जाति के आग में पक रहीं हैं, भ्रष्टाचार की रोटियाँ.... ( त्रिलोकीनाथ )






फर्जी-जाति के आग  में  पक रहीं  हैं 
भ्रष्टाचार की रोटियाँ ....
मारा जा रहा आदिवासियों  का हक..


(त्रिलोकीनाथ)

-तब IAS जोगी ने बनाया 
   फर्जी जाति प्रमाण पत्र ...

 एक तरफ  शहडोल मेें करीब एक सैैैकडा  फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग करने वालों प्रकरण  व इसकी जांच करने वाले पुलिस व आदिवासी विभाग के  लोगों  के लिये "सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी" बन गयी है।
  पहली बार कोई  आय ए एस शहडोल के पूर्व कलेक्टर अजीत जोगी ने  फर्जी जाति प्रमाण पत्र बना कर आदिवासी बनकर यहां संसदीय क्षेत्र का चुनाव कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़े थे। उन्हें तब स्थानीय आदिवासियों ने मिलकर याने कांग्रेस के ही दलवीर सिंह और भाजपा से चुनाव लड़ रहे दलपत सिंह परस्ते ने अपनी आदिवासी अस्मिता को बचाने के लिए पराजित किया 

बाद में दलपत सिंह  ने उनके फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला उठाया | जो अंततः आयोग द्वारा सही पाया गया । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी पूर्व कलेक्टर शहडोल का अनुसूचित जनजाति जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया।

 सूत्रों के अनुसार आयुक्त, आदिवासी विकास राज्य स्तरीय अनुसूचित जनजाति छानबीन समिति मध्य प्रदेश द्वारा पुलिस अधीक्षक को कर्मचारियों के फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में कार्यवाही करने का निर्देश दिया गया। 


वैसे तो कई विभागो में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर लोग काम कर रहें हैं  शिक्षा सूत्रों के अनुसार  सहायक शिक्षिका  कुमारी पवनसुती बघेल, प्रभारी प्रशिक्षण अधीक्षक, आईटीआई बेनीबारी प्रवीण कुमार पनिका, श्यामलाल मांझी छाता,  सुखी चरण सोंधिया सहायक शिक्षक कपिलधारा सुहागपुर, शिवचरण मांझी सहायक शिक्षक अमराडंडी के द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर की जा रही  इसी तरह करीब एक सैकड़ा मामले  निराकरण हेतु लम्बित है। मामले में शहडोल पुलिस द्वारा डेढ़ साल से भी ज्यादा समय व्यतीत होने के बावजूद भी है बजाय कोई कार्यवाही करने के मामले को ठंडे बस्ते में रखा गया है।

आरक्षण के कानून का यह बड़ा दुरुपयोग

                            ताकि "सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे" इस अंदाज पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र वाले निश्चिंत होकर काम कर रहे हैं। पुलिस द्वारा कथन लेने के बाद  कोई प्रभावी कदम आरोपियों के विरुद्ध नहीं उठाई है इन सब से फर्जी जाति प्रमाण  पत्र के मामले में शहडोल स्वर्ग बनता जा रहा है ।कुछ तो खा कुछ मुझे खाने दे के अंदाज पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा कर शहडोल क्षेत्र में लोग अपने अपने ढंग से भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे हैं |
                          डेढ़ साल बाद भी कार्यवाही शून्य है। क्योंकि जितने भी लोग हैं राजनीतिक पकड़ रखते हैं और प्रभावशाली वर्ग से आते हैं। उन्होंने कहा पुलिस अधीक्षक शहडोल इसलिए निश्चित रूप से कार्रवाई किए जाने की आशा बनती है बहरहाल फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर काम करने वालों के लिए स्वर्ग बना शहडोल आदिवासी वर्ग के हितों  पर डाका डाल रहा है। बल्कि उनके लिए बनाए गए आरक्षण के कानून का यह बड़ा दुरुपयोग है।

सोमवार, 9 दिसंबर 2019







जीतूसोनी के मुकाबले जादाताकतवर है शहडोल का अतिक्रमणकारी...?
नेमचंद जूती तले दबा रखा है....
Kanoon,व्यवस्था को....





मां बाप ने जब नाम रखा होगा जीतू, तो जरूर सोच रही होगी यह सब कुछ जीतेगा किंतु जीतू हार गया.... क्योंकि वह जीतने के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए जीत रहा था... तो लक्ष्य को पा गया। और जीतू सोनी का काला संसार अवैध अतिक्रमण कुछ घंटे में ही जमींदोज हो गए। क्योंकि इंदौर का कलेक्टर कमिटेड थे कि वह अवैध अतिक्रमण को हटा  देंगे। तो अतिक्रमण कुछ घंटे में हट गया ।यह कर्तव्य निष्ठा का परिणाम था, प्रशासनिक दायित्व के निर्वहन में पत्रकारिता का नकाब काम ना आया, क्योंकि जो कुछ काली दुनिया में जीतू की जीत का कारण बना वह सब उसी काली दुनिया में जैसे गायब हो गया। उसके बंगले में सिर्फ एक सत्य "भगवान का मंदिर" को बचा दिया गया ।क्योंकि यही सच था, प्रशासन की मंदिर को बचाने की मनसा में कहीं ना कहीं सत्य स्थापित रखना एक उद्देश्य रहा होगा 
     बहरहाल, इंदौर में जीतू अतिक्रमणकारी माफिया के रूप में हार गया किंतु शहडोल में मुख्यगांधी चौक में सरकारी जमीन पर माफियागिरी कर कभी आरएसएस का नकाब पहनकर तो, कभी कांग्रेसी का दामन पकड़ कर अपने अवैध कारोबार में पालतू की तरह नेताओं को पालकर चौकीदारी कराने वाला नेमचंदजैन, जीतूसोनी से ज्यादा सफल अतिक्रमणकारी है।
 क्योंकि शहडोल के तहसीलदार सोहागपुर द्वारा 19अक्टूबर19 को उसके अवैध अतिक्रमण को जमींदोज करने के लिए पूरी तैयारी करने के बाद और तैयारी होने के बाद अचानक पर मौन साधना ले ली जाती है....?
 खबर है कांग्रेस पार्टी के लोगों के संरक्षण में और आरएसएस की एक नेता की चौकीदारी में अवैध अतिक्रमणकारी नेमचंद जीत जाता है यह जीत जीतूसोनी की हार में एक बड़ा तमाचा है.....।
अवैध निर्माण की पुष्टि होने के बाद कारोबारी जीतूसोनी के 3 होटल और 2बंगले  को ध्वस्त कर दिया। नगर निगम, पुलिस और प्रशासन ने संयुक्त रूप से 24 हजार वर्गफीट के प्लॉट पर 7 हजार वर्गफीट में बने बंगला 'जग विला', होटल- माय होम, बेस्ट वेस्टर्न और ओ टू के तथा एक आशियाने अवैध हिस्सों को गिरा दिया।
4 घंटे में जीतू की करोड़ों रुपए की संपति को धराशायीकरने की पटकथा ने 15 दिन पहले तब आकार लिया, जब जीतू के अखबार ने हनीट्रैप मामले में जेल में बंद महिलाओं से कुछ नेताओं और अधिकारियों से संबंध उजागर किए। इसमें आरोपी महिलाओं के साथ बातचीत और कृत्य के ऑडियो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। इसके बाद 30 नवंबर यानी 5 दिन पहलेनिगम इंजीनियर फरियाद लेकर पुलिस के पास पहुंचा और जीतू के सारे राजखोल दिए।
मध्य प्रदेश की राजनीति में हनी ट्रैप के नाम से मशहूर चेहरा स्वप्निल जैन का लिंक जैसे जीतू के घर तक उसकी काया-माया सेब जुड़ा सब कुछ जीतू हार गया ।उसका काला साम्राज्य उसका साथ ना दे सका और वह एक लाख का फरारी बन बैठा।

यह सही है कि हनीट्रैप की स्वप्निल जैन शहडोल के अतिक्रमणकारी नेमचंद जैन तक लिंक नहीं कर पाई.., किंतु नेमचंद जैन के अतिक्रमण उसके गांधीचौराहा स्थित "भ्रष्टाचार का चंद्रलोक" अभी उसी तरह से चमक रहा है जैसे जीतू की जीत इंदौर पर चमकती रही।


 बावजूद इसके मध्यप्रदेश उच्चन्यायालय ने शहडोल के खसरा नंबर 119,120 के मुख्य गांधीचौक स्थित इस नजूलभूमि पर अवैधनिर्माण को हटाने के लिए निर्देश जारी किए थे । तब नगरपालिका परिषद ने कहा यह काम नजूलविभाग का है क्योंकि अतिक्रमण नजूलभूमि की है..., तो नगरपालिका क्यों हटाए....?
 अब जब तहसीलदार नजूल ने इस अतिक्रमण के एक भाग, 560 वर्ग फीट पर ₹90000 का जुर्माना ठोकते हुए 19 अक्टूबर को बेदखली की पूरी तैयारी की इसके बावजूद अचानक रातोरात उनका निर्णय कैसे बदल गया....?
- क्या तहसीलदार सोहागपुर की कार्यवाही विधि-विहीन और जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था...?
 - क्या हाई कोर्ट जबलपुर ने नगरपालिका परिषद को गलत निर्देश दिए थे...?
- या फिर शहडोल नगरपालिका परिषद के आवेदन पर अवैध अतिक्रमण किए जाने की बात को स्वीकारते हुए जो दो बार नेमचंद जैन ने जुर्म और जुर्माना स्वीकार किया था, क्या जिला न्यायालय गलत था...?
   क्या पूरी व्यवस्था विधि विरुद्ध कार्य कर रही थी..., नहीं, यह अतिक्रमणकारी नेमचंद जैन की जीत है, क्योंकि इंदौर का जीतू भी जीत रहा था जबतक राजनीति,प्रशासन विधायिका और कार्यपालिका ऐसे अतिक्रमण कारी माफियाओं के चंगुल में बंधी है वह न्याय की जीत को हार में बदल देती है.... किंतु प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत किसी स्वप्निल जैन को जीतू की जीत का काला संसार कुछ घंटे में धारासाई कर देता है 
    फिर भी शहडोल प्रशासन को मुख्य गांधी चौक पर तहसीलदार नजूल सोहागपुर के ₹90000 जुर्माना लगाए जाने के बावजूद तत्काल "रेमंड शोरूम खोल" कर प्रशासन को चुनौती देने वाली इस अतिक्रमण को अब हटा ही देना चाहिए..... या फिर "स-सम्मान" नेमचंद ए
के घर में जाकर उसे नजूल का "स्थगन आदेश" स्वर्ण-पत्र पर दे देना चाहिए। ताकि न्याय का सिद्धांत जीत जाए ....दिखाने के लिए ही सही एक सच कानून के नजर में स्थापित हो।
 अन्यथा यह तो साबित हो ही गया है जीतूसोनी के मुकाबले शहडोल का अतिक्रमणकारी नेमचंद जैन पूरी व्यवस्था को जूती तले दबा रखा है....

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019


जीत.., लूट का पर्यायवाची..?
हार के भूत भगाने के टोने टोटके
 कुर्सी- बदल.. दी गई, घंटा.. घड़ियाल 
   (त्रिलोकीनाथ)
निश्चित तौर पर भाजपा ने राजनीति की दिशा बदल दिए जीतने का मतलब सिर्फ संगठन और समूह की ताकत को इकट्ठा करके अगर कहें कि गिरोह बनाकर जीत जाना है। और फिर जीत कर उनके लिए छोड़ देना है। जो उसे लूट सके।
 जीत को लूट का पर्यायवाची बना देना भाजपा की राजनीति का हिस्सा, गत 15 वर्षों में शहडोल नगर पालिका परिषद में देखने को मिला। जब हारी हुई बाजी राजेंद्र शुक्ला ने अपनी कुशल  कार्यप्रणाली से उसे जीत में बदल दिया। और अलग-थलग पड़ी नगर पालिका अध्यक्ष उर्मिला कटारे जीत गई जीत कर उनका जो जश्न मनाया गया।

अपने चेंबर में हार के भूत को भगाने के लिए कहते हैं कुर्सी बदल दी गई, घंटा.. घड़ियाल और शंख लगे हाथ तथाकथित वेद मंत्रों का भी उद्घोष किया गया.... जैसे महाभारत का युद्ध जीत लिया गया हो। लेकिन वास्तव में गत 15 वर्षों से उर्मिला कटारे जी के 2 वर्ष और जोड़ने तो 17 वर्षों से शहडोल हार रहा है।

 मोहनराम तालाब इस हार का प्रमाण पत्र है। शहडोल के पूरे तालाब नष्ट होने की कगार पर हैं, चाह कर भी भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे कांग्रेस के ऊपर नहीं थोप सकते..... क्योंकि सत्ता पर वही थे... तो क्या पूरे तालाबों को लूटने के लिए अतिक्रमण के लिए छोड़ दिया गया ......
और अब जीत का जश्न किस मुंह से मनाया जा रहा है यह बात पत्रिका की  जमीर में देखने को मिला। सुखद भी लगा कि जमीर जीवित है.... पत्रकारिता का।
 क्यों जीत का जश्न मनाया जाना चाहिए यह बार-बार भारतीय जनता पार्टी के लोगों से पूछा जाना चाहिए कलेक्ट्रेट के ठीक सामने सड़क आधी पड़ी है , कमिश्नरी के ठीक सामने सड़क क्या पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है..... कि अगले 20 साल और बनाना है. नया गांधी चौक का सड़क मार्ग नागरिकों की मजबूरी में अतिक्रमण होता जा रहा है ....लोगों ने अपने हिसाब से उसे बना लिया है । क्योंकि नागरिकों को मालूम है  कि नेता  अपना कर पाएंगे इसे ।
असुरक्षित ठीक चौक के बगल का गड्ढा क्या अगले 20 साल भाजपा के राज् बन पाएगा .....? यह भी उनकी जीत का जश्न है ...?

ऐसे प्रश्न इसलिए खड़े होते हैं क्योंकि पिछले 17 साल में भाजपा का परिषद सिर्फ भू संपदा का उपयोग भ्रष्टाचार के लिए कर रहा था उसे नगर सुधार के लिए कोई योजना उसके दिमाग में नहीं आई.. कहते हैं ट्रांसपोर्ट नगर की कथित घोषित भूमि लूट ली गई या लुट वादी गई या फिर शहडोल को एक सुरक्षित ट्रांसपोर्ट नगर नहीं बन पाया क्योंकि समय नहीं है भाजपा समूह को लगातार जीतने के जश्न के लिए।
 मॉडल सड़कें भाजपा के नेताओं की भ्रष्टाचार की काली दुनिया का आलीशान अट्टालिका जगह-जगह खड़े कर दिए गए ।
मोहनराम तालाब चुकी प्राइवेट ट्रस्ट है अब तो प्रमाणित हो चुका है जब कमिश्नर आरबी प्रजापति ने दो इंजीनियरों को दोषी पाते हुए सस्पेंड कर दिया कि भ्रष्टाचार हुआ है। किंतु इस भ्रष्टाचार को शहडोल के तब प्रभारी मंत्री रहे इंजीनियर राजेंद्र शुक्ला जान गए थे और इसीलिए मोहनराम तालाब का लोकार्पण में उन्होंने किनारा किया।
 यह अलग बात है कि उनके नाम की पट्टिका लगाकर शहडोल भाजपा परिषद ने अपने पाप को छुपाने का काम किया है.... बावजूद इसके अवैध रूप से भ्रष्टाचार की कमाई पर अपने पिताजी की स्मृतियों का सेड पीपल के पेड़ के पास लगाकर जगबानी और शर्मा पदाधिकारियों ने भ्रष्टाचार का प्रमाण पत्र गाड़ दिया है। कि वे भी शामिल थे...., बावजूद इसके शहडोल कमिश्नर ने इन नेताओं को उसमें शामिल नहीं किया?
 बेचारे कर्मचारी  छोटे ,मारे गए जो लगातार उच्च निर्देशों का सिर्फ पालन करते रहे.....
क्योंकि गुलामी में आदेशों का पालन करना ही कर्तव्यनिष्ठा मानी जाती है ...."स्मृतियों " के इस प्रमाण पत्र को भी शायद नहीं देखा .जांचकर्ताओं ने, क्योंकि वह आंख मूंदे हुए थे। बाकी जो है, सो है....

 तो हम बात कर रहे थे कि पालिका परिषद ने किस प्रकार की अराजकता का वातावरण और भ्रष्टाचार के धुन में एकाधिकार संगठन की ताकत से जीत को लूट के रूप में परिवर्तित कर पुराने बस स्टैंड स्थित सामुदायिक भवन के बड़े फंड को बाणगंगा की जमीन पर उपयोग कर डाला ......
यही तो जीतू सोनी बिना नगर पालिका के स्वयंभू सरकार चला रहा था इंदौर में जिसे हाल में शासन ने  जमींदोज  कर  दिया ।

भाजपा के एक पदाधिकारी भ्रष्टाचार और अतिक्रमण के शहडोल गांधी चौक स्थित यानी नगर पालिका परिषद के ठीक बगल में लगातार हो रहे नजूल भूमि के अनधिकृत निर्माण पर तब कहा था, "
लोग कहते हैं मैंने 500000 रुपए ले लिया .... उनसे कोई पूछ नहीं रहा था, बस वे स्वीकार कर रहे थे..... क्योंकि उन्हें मालूम था कि संगठन की ताकत और पार्टी का नकाब किसी भी लूट को जीत के रूप में परिभाषित कर सकता है... इसे यहीं छोड़ें, बात नगर के विकास की है यह तो तय है कि संगठन की ताकत हार के डर से अपने जमीर को जगा देती है कि गिरोह, टूट न जाए तो वह जीतने के लिए अपना उपयोग करती है और जीत जाती है

प्रसिद्ध समाजवादी जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा बताते हुए कहा था "राजनीति का मतलब लोगों की सेवा करना है"
 यह बात शायद पुरानी पीढ़ी के साथ खत्म होती दिखाई देती है.... नई पीढ़ी का राजनीति का परिभाषा संगठन को जीत के लिए लूट में परिवर्तित कर देना जैसा दिखाई देता है.. क्योंकि अनुभव यही बताता है।

आखिर कोई क्यों नहीं पूछा श्रीमती उर्मिला कटारे से या उनकी कमजोरियों को ताकत बनकर तब क्यों नहीं आए..... जब भाजपा के नाम पर ही वह बुरी तरह से असफल हो रही थी। वे किसी भी निर्माण कार्य में सिर्फ अपने लक्ष्य को दिमाग में रखकर निर्माण को असफल कर देती थी। उन्हें संगठन राह दिखाने वाला साबित क्यों नहीं हुआ... क्या गलत है ,और क्या सही है ...?
जैसे ही वे हारने लगी तो जैसे अपनी इज्जत बचाने के लिए उर्मिला कटारे जी को जीत में परिवर्तित कर दिया गया और शायद फिर छोड़ दिया जाएगा उनके भरोसे .... जीत का मतलब सिर्फ लूट होता है...!
 भाजपा  जानती है कि संगठन के जरिए आप सत्ता पर आइए और जमकर गैरकानूनी कार्यों को क्रियान्वित कीजिए फिर चाहे वह सड़क निर्माण हो या फिर नगर में दिए जाने वाले मकानों की अनुमति का प्रश्न जहां संगठन के नाम पर पूर्व पदाधिकारियों ने पालिका परिषद को कम पार्टी फंड की काली दुनिया में करोड़ों में जमा किए जो उनके अट्टालिका में दिख रहे हैं ....
हाल में भाजपा का चुनाव हुआ, खबर है जिस नेता में 30000 हर महीना संगठन के नाम पर फेंकने की ताकत होगी ....भारतीय जनता पार्टी उसी नेता को अपना अध्यक्ष घोषित करेगा। जब यह बात उस नेता के नजर में लाई गई तीन विधायक पांच ₹5000 महीना तो दे सकते हैं.... इसी प्रकार से अन्य खर्चे भी मैनेज हो जाएंगे, तो अच्छा नेता क्यों नहीं लाया जा सकता....? उन्होंने कहा संभव नहीं है ।
तो संगठन का निर्माण पार्टी का निर्माण कुशल प्रबंधन के जरिए जीत के लिए ही मात्र बन गया है.. और जीत का राजनीत की धारा में पर्यायवाची शब्द लूट है..... कम से कम शहडोल में परिषद की सत्ता असफल निर्माण कार्यों में यही प्रमाणित करती है।
 फिर चाहे सत्ता में बैठा हुआ पक्ष हो या फिर मूकबधिर विपक्ष........

अपडेट

 आज 6 दिसंबर 2019 को 3:00 बजे के बाद नगर पालिका की ओर से आधी अधूरी सड़क सीसी सड़क के अगल-बगल मिट्टी डालकर क्लोजिंग का काम किया जा रहा था याने अब तय हो चुका है कि सड़क जितनी बनी थी जय स्तंभ चौक की वह बन चुकी बाकी भगवान भरोसे आप रहे उपस्थित लोगों ने बताया नागरिकों ने सीएम हेल्पलाइन में कंप्लेंट की थी तो कंप्लेन का निराकरण मिट्टी डालकर सीसी सड़क पूर्ण करने का काम इस तरह किया गया तो यह तय हो चुका है कि अगर जयस्तंभ चौक कलेक्ट्रेट के सामने अपर कलेक्टर विकास ने जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के सामने की आधी अधूरी सड़क नहीं बन सकती तो जिला में निर्माण कार्यों की क्या गति है यह अलग बात है कि नगर पालिका परिषद जिले का ठेका नहीं ले रखी है किंतु नगर का ठेकेदार तो है ही तो क्या पूरा नगर का कारोबार ठप है लगता है अंतरराष्ट्रीय मंदी का असर जय स्तंभ चौक पर टूट पड़ा है



गुरुवार, 5 दिसंबर 2019


"मॉब लिंचिंग आफ रेपिस्ट बाय पुलिस सिक्योरिटी......?"

(त्रिलोकिनाथ)

बहुचर्चित प्रकरण का अंत बिना न्याय के, बिना पारदर्शिता के गोली चला कर खत्म कर देने से विषय को खत्म नहीं करना चाहिए... जब तक पूरे प्रकरण के लिए दोषी अन्य व्यक्ति भी इसमें दंडित ना हो जाए। अन्यथा पुलिस की सुरक्षा "काउंटर की गारंटी" भी बन सकती हैं और अपनी असफलता को छुपाने के लिए पुलिस की कार्यप्रणाली पुलिस काउंटर का सहारा लेती रहेगी।
 ऐसे में तो जेल से निकालकर किसी भी अपराध की आरोपी की गोली मार देना हत्या कर देना बहादुरी का प्रतीक बन जाएगा। क्योंकि ऐसी हत्याओं से "दोषी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली" नकाबपोश हो जाएगी।
 यदि यही रास्ता अपनाना है तो जो पकड़ा जाए  अपराधी साबित होगा बाकी ऐसे जघन्य तम चिन्मयानंद जैसे लोग रोल मॉडल  अस्पतालों में सत्ता के संरक्षण में राजनीति करते रहेंगे। 
धार्मिक संस्थानों में लगातार हो रहे बलात्कारों के लिए आसाराम और राम रहीम को जेल से निकालकर गोली क्यों नहीं मार देनी चाहिए.....
 क्योंकि वह सत्ता के संरक्षण में है....? उनसे वोट की राजनीति चलती है....?
राजनीति का पेट पलता है.....?,

 क्योंकि वे.. बलात्कार के आरोपी अपराधी छोटे-मोटे रोजगार वाले थे इसलिए वे "सब्जेक्ट टू क्लोज" की विषय सामग्री बन गए...? यह दुखद है कि प्रशासन बहुत चर्चित बलात्कार प्रकरण में न्यायालय से दंड दिलाने की बजाये मामले में पानी फेरने का काम किया...। जब आरोप लग रहे हैं किसी भी अपराध का  तो प्रथम दृष्टया हर अश्लील और गंभीर आरोप के आरोपी को को स्वयं पद से दूर हो जाना चाहिए, जब तक कि वह पाक साफ ना हो....?
  पुलिस की यह कार्यप्रणाली असफलता छुपाने के लिए रोलमॉडल बन जाएगी और....
 तब अखबारों में हेडिंग आएगी "मॉब लिंचिंग आप रेपिस्ट बाय पुलिस सिक्योरिटी......?"
🤔😵🙁😣🤔
घटना के संदर्भ की कुछ जानकारी निम्नानुसार है
(अधोलिखित जानकारी लल्लनटॉप से कट पेस्ट है)
हैदराबाद रेप केस की वारदात 27 नवंबर की है. जिस 26 साल की लड़की के साथ अपराध हुआ, वो वेटनरी डॉक्टर थी. 27 नवंबर की शाम साढ़े पांच बजे वो घर से निकली. रात 9.22 मिनट पर उसने अपनी बहन को फोन किया. बताया कि उसे डर लग रहा है. उसकी स्कूटी का टायर पंचर हो गया था. कुछ लोग उसके पास आकर मदद देने की बात कह रहे थे. मगर डॉक्टर को वो ठीक नहीं लग रहे थे. यही बात उसने बहन को फोन पर बताई. बहन ने कहा, वो उनसे बात करती रही. इसके बाद रात 9.45 पर बहन ने उसे कॉल किया. फोन स्विच ऑफ आ रहा था. बहन राजीव गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट थाने पर शिकायत लिखवाने पहुंची. मगर वहां पुलिस ने कहा कि टोल प्लाजा उनके अधिकारक्षेत्र में नहीं आता. परिवार का आरोप है कि यहां पुलिस ने उनसे कहा कि शायद उनकी बहन किसी के साथ भाग गई हो. पुलिस ने उनसे ये भी पूछा कि क्या उसका (डॉक्टर) किसी के साथ अफेयर था.

हैदराबाद रेप केस में चारों आरोपियों को पुलिस ने मार दिया. 6 दिसंबर की तड़के सुबह हैदराबाद से ये ख़बर आई. फिलहाल जो घटनाक्रम बताया जा रहा है कि पुलिस चारों आरोपियों को लेकर वारदात वाली जगह पर गई थी. नेहरू-OR प्लाज़ा से कुछ मीटर दूर की वो जगह, जहां डॉक्टर के साथ गैंगरेप करके उन्हें जला डाला गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुबह के वक़्त धुंध थी. इस धुंध का फ़ायदा उठाकर चारों आरोपियों ने भागने की कोशिश की. और इसी दौरान पुलिस ने एनकाउंटर में उन्हें मार दिया. चारों आरोपी निहत्थे बताए जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि पुलिस उन्हें क्राइम सीन रिक्रिएट करने के लिए वारदात वाली जगह पर ले गई थी. मारे गए चारों आरोपियों के नाम हैं- जॉली शिवा, मुहम्मद आरिफ़, जोलू नवीन और केशवालु.



मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

नगर पालिका परिषद का फ्लोर टेस्ट 
भाजपा ने जीती बाजी
 पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला के कारीगरी से बची लाज


कुल मत-39
अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में -20
विपक्ष में -18
अमान्य-1
अविश्वास प्रस्ताव पारित नही हो सका।खबर है की नगर पालिका परिषद शहडोल में अध्यक्ष के अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया है.. और अध्यक्ष उर्मिला कटारे को बाकी कार्यकाल के लिए जीवनदान मिल गया विश्वसनीय लोग बतलाते हैं नगर पालिका परिषद से बाहर निकालने वालों में उपाध्यक्ष कुलदीप निगम पहली बार बाहर देखे गए इसी से अंदाज लगाया जा रहा था भाजपा ने बाजी मार ली है उसके संगठन ने अपनी लाज बचा ली है प्रभारी राजेंद्र शुक्ला पूर्व मंत्री कि यह बड़ी जीत मानी जाएगी किंतु यह बड़ी हार के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि कांग्रेसका संगठन आज ही ढेर सारे गुटबाजी में बटा हुआ है इससे आशंका प्रतीत होती है कि क्या उपाध्यक्ष कुलदीप निगम अपने खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को यदि उस पर भी टेस्ट होता है तो अपनी लाज बचा पाएंगे या उन्हें इस निर्णय में ही अपना आइना दिख रहा है

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...