रविवार, 29 दिसंबर 2019

अमरकंटक से नर्मदा विलुप्त ..,;.गंभीर कदम ...धन्यवाद, चंद्रमोहन जी 😊 (trilokinath)150 मीटर में नलकूप खनन प्रतिबंध




 धन्यवाद..,
 चंद्रमोहन जी 
😊
(trilokinath)
शहडोल| देर से ही सही अनूपपुर के कलेक्टर चंद्रमोहन का चंद्रमा प्रकाशित हुआ, उन्हें आभास हुआ कि यदि तत्काल गंभीर कदम नहीं उठाए गए तो अमरकंटक से नर्मदा विलुप्त हो जाएंगी..... हो सकता है यह हमारी शंका हो....?
 हो सकता है कलेक्टर का आईएएस ब्रेन कुछ और देख और समझ कर यह निर्णय लिए हो, ताकि कुछ और बचाया जा सके ...,जल के अलावा?
 नर्मदा.., सोन..., जुहिला आदि अन्य सहायक नदियों के अलावा भी कुछ और बचाया जा सके...?

 बहरहाल प्रथम दृष्टया यही दिखता है कि कलेक्टर चंद्रमोहन ने इन्हें ही बचाने के लिए डेढ़ सौ मीटर के अंतर पर किसी भी प्रकार के नलकूप खनन पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है। ठीक भी है छोटी सी मुट्ठी भर बस्ती को अगर आप नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं या ठीक करने की कोई भी नवाचार नहीं कर पा रहे हैं तो आप किस बात के लिए आईएएस अधिकारी हैं....?
 उत्तरप्रदेश में हालिया दंगों के बीच में एक विधायक सिटी एसपी को डांटते हुए यह कहता है कि उसे भी प्रोटोकॉल की सुरक्षा है.. यही नहीं वह उसी स्थित पर काम करता है। तो हमारे यहां के भी विधायक या सांसद भी अधिकारी स्तर की लोकतांत्रिक योग्यता निर्णय लेने के रखते हैं।
 किंतु जिम्मेदारी कलेक्टर की ही है कि वे प्राकृतिक संसाधनों पर, उसकी सुरक्षा पर उसके विनाश, विलुप्त होने पर अपनी योग्यता का प्रदर्शन करें ....यदि उनमें कुछ है तो...?
 अन्यथा जैसे विधायक आदिवासी क्षेत्र के काम करते हैं और वीआईपी गिरी का आनंद लेते हैं तो कुछ उसी प्रकार का आनंद कलेक्टर लेते हैं और चले जाते हैं ....., कुछ धनसंपदा भी इकट्ठे कर लेते होंगे...., यह सब बात मायने नहीं रखती, बात यह मायने रखती है कि क्या कलेक्टर चंद्रमोहन ने अपनी योग्यता का प्रदर्शन अमरकंटक क्षेत्र को बचाने के लिए कुछ किया.....?
 मुझे आज भीअच्छी तरह से याद है, शहडोल में कलेक्टर सूर्य प्रताप सिंह परिहार हुआ करते थे, मैं भी बैठा था चेंबर में क्योंकि वे भी रुचि लेते थे कि नए पत्रकार उनसे कुछ सीखे और वह भी पत्रकारों से कुछ सीखें..... तो हम अक्सर बैठते थे और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते थे। ऐसी एक चर्चा के दौरान एक अमरकंटक से किसी सेक्रेटरी स्तर के व्यक्ति का पत्र लेकर साधु नुमा कोई व्यक्ति आए थे और कलेक्टर उनसे पूछ रहे थे कि आप बताएं किस काम के लिए आए हैं....? और वे सिफारिश नुमा लिफाफा आगे बढ़ा रहे थे.... कुछ देर तक लखनवी अंदाज में यह सब चलता रहा किंतु वे नहीं माने अंततः कलेक्टर ने उन्हें विदा किया और लिफाफा ले लिया । 
बाद में मेरे सामने ही लिफाफे को बिना खोले टुकड़े टुकड़े कर डाले और कचरे में फेंक दिए.... मैंने पूछा क्या है...? अमरकंटक को लेकर चिंता प्रकट कर रहे थे... कि कुछ भी लोग भेज देते हैं।
 तो इस प्रकार कलेक्टर परिहार ने कलेक्टरी की और अमरकंटक के हित के संरक्षण के लिए कर्तव्यनिष्ठ रहे। हां, यह बताना भी जरूरी होगा शायद वही एकमात्र कलेक्टर थे जो सुबह सुबह अमरकंटक भी जाते थे अक्सर और ड्यूटी टाइम पर 10:30 बजे तक वापस शहडोल की करते थे क्योंकि उन्हें अमरकंटक और उसके पर्यावरण से बहुत प्यार था ।और उनकी कर्तव्यनिष्ठा अमरकंटक के पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित थी।
 उसके बाद यह साहस मैं तलाशता रहा.....।
हालांकि एक समय बाद यह साहस एनजीटी ने दिखाया और कुछ आदेश भी पारित किए ताकि अमरकंटक का पर्यावरण क्षेत्र संरक्षित हो सके किंतु हमारा ब्यूरोक्रेट्स शायद बहुत कमजोर है या भयभीत.....? लोकतंत्र के प्रति उसकी निष्ठा इतनी प्रगाढ़ नहीं है जितनी अपेक्षित है।
 यही कारण है कि वन विभाग का एक उच्च अधिकारी मुझसे सिफारिश करता है एनजीटी ने यदि आदेश किया है अमरकंटक का यूकेलिप्टस प्लांटेशन हटा दिया जाए तो उसके उच्च अधिकारी ऐसा करने की अनुमति दें.... ताकि बिना भू छरण के कर्म से क्रमसः यूकेलिप्टस को वहां से हटाया जा सके।
 और ना मुझे शहडोल के उच्चाधिकारियों में व समर्पण दिखा और ना ही मैंने कोई सिफारिश किया।
 क्योंकि अधिकारी ऐसे भी आए जिन्होंने पूरी बेशर्मी के साथ "वृक्षारोपण का 1 दिन का विश्व रिकॉर्ड" बनाने का न सिर्फ दावा किया शहडोल सीसीएफ क्षेत्र पर बल्कि विश्व रिकॉर्ड बनाने का उन्होंने मानस भवन में जमकर पुरस्कार भी बांटा। किसी पतन का गरिमा पूर्ण इवेंट में शासकीय धन को कैसे खर्च करते हैं यह भी हमने देखा। हमने भी चाहा कि आरटीआई के जरिए हमें जानकारी मिले कि ऐसे विश्व रिकॉर्ड किस आधार पर बने। तो आज तक हमें  सूचना सामग्री नहीं मिली ।
 जबकि वास्तविकता और सच्चाई यह थी के एक उद्योगपति के इशारे पर "यूकेलिप्टस के प्लांटेशन" के लिए जंगल विभाग का पूरा अमला पूरी सहकारिता "गुलाम नौकरों" की तरह विश्व रिकॉर्ड बनाने में समर्पित रही। यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सपना देखने वाली भारतीय जनता पार्टी के शासन का वन मंत्रालय रहा।
 ऐसे में कहीं कोई कलेक्टर चंद्रमोहन का चंद्रमा अगर पूर्णिमा की तरह प्रकाशित हो रहा है
शहडोल संभाग में वर्ष 2019 में यह खबर बड़ी सुखद, बड़ी ही साहसी और बेहद समर्पित कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाणपत्र सी दिखती है। क्योंकि विलुप्त होते नर्मदा को बचाने का अगर काम हो रहा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्व के सबसे बड़े सरदार पटेल के पुतले को भी बचाया जा रहा है... नहीं तो गुजरात में 3000 करोड रुपए का लोहे का सरदार वल्लभभाई पटेल का यह पुतला कबाड़ बन कर ही रह जाता.... तो हम इस बात को लेकर भी भ्रमित हैं कि क्या विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति को बचाने के लिए  "150 मीटर में नलकूप खनन को प्रतिबंध करना" वरदान साबित होगा....।
 हताशा और निराशा के माहौल में express news portal seशहडोल संभाग में अमरकंटक क्षेत्र पर भू जल पर पारदर्शी तरीके से यानी 150 मीटर पर किसी भी प्रकार के भूजल उत्खनन पर प्रतिबंध लगाया जाने की घटना सलूट करने योग्य है। यूं तो और भी आर्डर हुए हैं अमरकंटक क्षेत्र के लिए किंतु क्या उनके प्रति भी ऐसा कोई समर्पण दिखेगा..... ऐसे किसी भी साहस को हम बारंबार सुलूट करेंगे.....

 धन्यवाद ..,
चंद्रमोहन जी😊

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