शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019


जीत.., लूट का पर्यायवाची..?
हार के भूत भगाने के टोने टोटके
 कुर्सी- बदल.. दी गई, घंटा.. घड़ियाल 
   (त्रिलोकीनाथ)
निश्चित तौर पर भाजपा ने राजनीति की दिशा बदल दिए जीतने का मतलब सिर्फ संगठन और समूह की ताकत को इकट्ठा करके अगर कहें कि गिरोह बनाकर जीत जाना है। और फिर जीत कर उनके लिए छोड़ देना है। जो उसे लूट सके।
 जीत को लूट का पर्यायवाची बना देना भाजपा की राजनीति का हिस्सा, गत 15 वर्षों में शहडोल नगर पालिका परिषद में देखने को मिला। जब हारी हुई बाजी राजेंद्र शुक्ला ने अपनी कुशल  कार्यप्रणाली से उसे जीत में बदल दिया। और अलग-थलग पड़ी नगर पालिका अध्यक्ष उर्मिला कटारे जीत गई जीत कर उनका जो जश्न मनाया गया।

अपने चेंबर में हार के भूत को भगाने के लिए कहते हैं कुर्सी बदल दी गई, घंटा.. घड़ियाल और शंख लगे हाथ तथाकथित वेद मंत्रों का भी उद्घोष किया गया.... जैसे महाभारत का युद्ध जीत लिया गया हो। लेकिन वास्तव में गत 15 वर्षों से उर्मिला कटारे जी के 2 वर्ष और जोड़ने तो 17 वर्षों से शहडोल हार रहा है।

 मोहनराम तालाब इस हार का प्रमाण पत्र है। शहडोल के पूरे तालाब नष्ट होने की कगार पर हैं, चाह कर भी भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे कांग्रेस के ऊपर नहीं थोप सकते..... क्योंकि सत्ता पर वही थे... तो क्या पूरे तालाबों को लूटने के लिए अतिक्रमण के लिए छोड़ दिया गया ......
और अब जीत का जश्न किस मुंह से मनाया जा रहा है यह बात पत्रिका की  जमीर में देखने को मिला। सुखद भी लगा कि जमीर जीवित है.... पत्रकारिता का।
 क्यों जीत का जश्न मनाया जाना चाहिए यह बार-बार भारतीय जनता पार्टी के लोगों से पूछा जाना चाहिए कलेक्ट्रेट के ठीक सामने सड़क आधी पड़ी है , कमिश्नरी के ठीक सामने सड़क क्या पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है..... कि अगले 20 साल और बनाना है. नया गांधी चौक का सड़क मार्ग नागरिकों की मजबूरी में अतिक्रमण होता जा रहा है ....लोगों ने अपने हिसाब से उसे बना लिया है । क्योंकि नागरिकों को मालूम है  कि नेता  अपना कर पाएंगे इसे ।
असुरक्षित ठीक चौक के बगल का गड्ढा क्या अगले 20 साल भाजपा के राज् बन पाएगा .....? यह भी उनकी जीत का जश्न है ...?

ऐसे प्रश्न इसलिए खड़े होते हैं क्योंकि पिछले 17 साल में भाजपा का परिषद सिर्फ भू संपदा का उपयोग भ्रष्टाचार के लिए कर रहा था उसे नगर सुधार के लिए कोई योजना उसके दिमाग में नहीं आई.. कहते हैं ट्रांसपोर्ट नगर की कथित घोषित भूमि लूट ली गई या लुट वादी गई या फिर शहडोल को एक सुरक्षित ट्रांसपोर्ट नगर नहीं बन पाया क्योंकि समय नहीं है भाजपा समूह को लगातार जीतने के जश्न के लिए।
 मॉडल सड़कें भाजपा के नेताओं की भ्रष्टाचार की काली दुनिया का आलीशान अट्टालिका जगह-जगह खड़े कर दिए गए ।
मोहनराम तालाब चुकी प्राइवेट ट्रस्ट है अब तो प्रमाणित हो चुका है जब कमिश्नर आरबी प्रजापति ने दो इंजीनियरों को दोषी पाते हुए सस्पेंड कर दिया कि भ्रष्टाचार हुआ है। किंतु इस भ्रष्टाचार को शहडोल के तब प्रभारी मंत्री रहे इंजीनियर राजेंद्र शुक्ला जान गए थे और इसीलिए मोहनराम तालाब का लोकार्पण में उन्होंने किनारा किया।
 यह अलग बात है कि उनके नाम की पट्टिका लगाकर शहडोल भाजपा परिषद ने अपने पाप को छुपाने का काम किया है.... बावजूद इसके अवैध रूप से भ्रष्टाचार की कमाई पर अपने पिताजी की स्मृतियों का सेड पीपल के पेड़ के पास लगाकर जगबानी और शर्मा पदाधिकारियों ने भ्रष्टाचार का प्रमाण पत्र गाड़ दिया है। कि वे भी शामिल थे...., बावजूद इसके शहडोल कमिश्नर ने इन नेताओं को उसमें शामिल नहीं किया?
 बेचारे कर्मचारी  छोटे ,मारे गए जो लगातार उच्च निर्देशों का सिर्फ पालन करते रहे.....
क्योंकि गुलामी में आदेशों का पालन करना ही कर्तव्यनिष्ठा मानी जाती है ...."स्मृतियों " के इस प्रमाण पत्र को भी शायद नहीं देखा .जांचकर्ताओं ने, क्योंकि वह आंख मूंदे हुए थे। बाकी जो है, सो है....

 तो हम बात कर रहे थे कि पालिका परिषद ने किस प्रकार की अराजकता का वातावरण और भ्रष्टाचार के धुन में एकाधिकार संगठन की ताकत से जीत को लूट के रूप में परिवर्तित कर पुराने बस स्टैंड स्थित सामुदायिक भवन के बड़े फंड को बाणगंगा की जमीन पर उपयोग कर डाला ......
यही तो जीतू सोनी बिना नगर पालिका के स्वयंभू सरकार चला रहा था इंदौर में जिसे हाल में शासन ने  जमींदोज  कर  दिया ।

भाजपा के एक पदाधिकारी भ्रष्टाचार और अतिक्रमण के शहडोल गांधी चौक स्थित यानी नगर पालिका परिषद के ठीक बगल में लगातार हो रहे नजूल भूमि के अनधिकृत निर्माण पर तब कहा था, "
लोग कहते हैं मैंने 500000 रुपए ले लिया .... उनसे कोई पूछ नहीं रहा था, बस वे स्वीकार कर रहे थे..... क्योंकि उन्हें मालूम था कि संगठन की ताकत और पार्टी का नकाब किसी भी लूट को जीत के रूप में परिभाषित कर सकता है... इसे यहीं छोड़ें, बात नगर के विकास की है यह तो तय है कि संगठन की ताकत हार के डर से अपने जमीर को जगा देती है कि गिरोह, टूट न जाए तो वह जीतने के लिए अपना उपयोग करती है और जीत जाती है

प्रसिद्ध समाजवादी जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा बताते हुए कहा था "राजनीति का मतलब लोगों की सेवा करना है"
 यह बात शायद पुरानी पीढ़ी के साथ खत्म होती दिखाई देती है.... नई पीढ़ी का राजनीति का परिभाषा संगठन को जीत के लिए लूट में परिवर्तित कर देना जैसा दिखाई देता है.. क्योंकि अनुभव यही बताता है।

आखिर कोई क्यों नहीं पूछा श्रीमती उर्मिला कटारे से या उनकी कमजोरियों को ताकत बनकर तब क्यों नहीं आए..... जब भाजपा के नाम पर ही वह बुरी तरह से असफल हो रही थी। वे किसी भी निर्माण कार्य में सिर्फ अपने लक्ष्य को दिमाग में रखकर निर्माण को असफल कर देती थी। उन्हें संगठन राह दिखाने वाला साबित क्यों नहीं हुआ... क्या गलत है ,और क्या सही है ...?
जैसे ही वे हारने लगी तो जैसे अपनी इज्जत बचाने के लिए उर्मिला कटारे जी को जीत में परिवर्तित कर दिया गया और शायद फिर छोड़ दिया जाएगा उनके भरोसे .... जीत का मतलब सिर्फ लूट होता है...!
 भाजपा  जानती है कि संगठन के जरिए आप सत्ता पर आइए और जमकर गैरकानूनी कार्यों को क्रियान्वित कीजिए फिर चाहे वह सड़क निर्माण हो या फिर नगर में दिए जाने वाले मकानों की अनुमति का प्रश्न जहां संगठन के नाम पर पूर्व पदाधिकारियों ने पालिका परिषद को कम पार्टी फंड की काली दुनिया में करोड़ों में जमा किए जो उनके अट्टालिका में दिख रहे हैं ....
हाल में भाजपा का चुनाव हुआ, खबर है जिस नेता में 30000 हर महीना संगठन के नाम पर फेंकने की ताकत होगी ....भारतीय जनता पार्टी उसी नेता को अपना अध्यक्ष घोषित करेगा। जब यह बात उस नेता के नजर में लाई गई तीन विधायक पांच ₹5000 महीना तो दे सकते हैं.... इसी प्रकार से अन्य खर्चे भी मैनेज हो जाएंगे, तो अच्छा नेता क्यों नहीं लाया जा सकता....? उन्होंने कहा संभव नहीं है ।
तो संगठन का निर्माण पार्टी का निर्माण कुशल प्रबंधन के जरिए जीत के लिए ही मात्र बन गया है.. और जीत का राजनीत की धारा में पर्यायवाची शब्द लूट है..... कम से कम शहडोल में परिषद की सत्ता असफल निर्माण कार्यों में यही प्रमाणित करती है।
 फिर चाहे सत्ता में बैठा हुआ पक्ष हो या फिर मूकबधिर विपक्ष........

अपडेट

 आज 6 दिसंबर 2019 को 3:00 बजे के बाद नगर पालिका की ओर से आधी अधूरी सड़क सीसी सड़क के अगल-बगल मिट्टी डालकर क्लोजिंग का काम किया जा रहा था याने अब तय हो चुका है कि सड़क जितनी बनी थी जय स्तंभ चौक की वह बन चुकी बाकी भगवान भरोसे आप रहे उपस्थित लोगों ने बताया नागरिकों ने सीएम हेल्पलाइन में कंप्लेंट की थी तो कंप्लेन का निराकरण मिट्टी डालकर सीसी सड़क पूर्ण करने का काम इस तरह किया गया तो यह तय हो चुका है कि अगर जयस्तंभ चौक कलेक्ट्रेट के सामने अपर कलेक्टर विकास ने जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के सामने की आधी अधूरी सड़क नहीं बन सकती तो जिला में निर्माण कार्यों की क्या गति है यह अलग बात है कि नगर पालिका परिषद जिले का ठेका नहीं ले रखी है किंतु नगर का ठेकेदार तो है ही तो क्या पूरा नगर का कारोबार ठप है लगता है अंतरराष्ट्रीय मंदी का असर जय स्तंभ चौक पर टूट पड़ा है



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