बुधवार, 31 जुलाई 2019

हिंदू -मुस्लिम महिलाओं की अधिकार दिवस 30 जुलाई 2019



हिंदू -मुस्लिम महिलाओं की 
अधिकार दिवस 30 जुलाई 2019

(  त्रिलोकीनाथ  )  

30 जुलाई 2019 भारत की महिलाओं के लिए चाहे वह हिंदू हो या फिर मुस्लिम दोनों के लिए ही आजादी का दिन माना जाना चाहिए।

 मुस्लिम महिलाओं को लेकर तीन तलाक का विषय उनके आजादी का अहम कारण है ।समान अधिकार और महिला सुरक्षा की चिंता भारत के महासदन लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया ।विवादों के अंतर्विरोध के बावजूद यह गारंटी सुनिश्चित हो गई है अब कानूनन कि यह एक आचार संहिता है ।इस्लामी समाज में की महिलाओं का सम्मान और उनके अधिकारों के प्रति ज्यादा जागरूक होने की जरूरत है । यह काम मुस्लिम समाज अपने धर्म-निष्ठ राष्ट्रों के अनुगमन से स्वयं सुनिश्चित कर सकता था , जिसमें उसने परंपरा और बाद में कुप्रथा के रूप में अघोषित मान्यता दे रखी थी। जो कठमुल्लापन के कारण लोकतंत्र के आजादी के परिपेक्ष में नागरिक हक का उल्लंघन करता था।
 भारी सुधार की गुंजाइश के संभावनाओं के बावजूद तीन तलाक बिल अंततः कानून बन गया है ।अब इसका सम्मान करना और न करना या कराना मुस्लिम समाज के रवैया पर निर्भर करता है.... अन्यथा उन्हें कानून का अपराधी माना जा सकता है।

 चलिए अब दूसरी तरफ चलते हैं,  परंपराओं की आड़ में बहुत कुछ हिंदू समाज में भी होता रहा है जिसके कारण सनातन धर्मी समाज का एक वर्ग स्वयं को तार्किक आधार पर अपमानित महसूस करता रहा। इसके कारण कल ही महाकाल के दरबार , उज्जैन में हिंदुत्व की फायर ब्रांड नेता सन्यासी उमा भारती ने एक और परंपरा को तोड़ कर महाकाल पर जलाभिषेक करने का काम किया है। कथित तौर पर यह परंपरा पुजारियों द्वारा साड़ी पहनकर महाकाल के पूजा की विधि पर निर्मित था। जिसे उमा भारती ने तोड़ते हुए अपनी ही पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री की ड्रेस कोड  पर बगावत कर  30 जुलाई को सुबह अचला और धोती पहने उमा भारती ने गर्भ गृह में जाकर महाकाल के दर्शन किए और जल चढ़ाया।
  इससे विवाद खड़ा हो गया, यह काम पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चाहती तो पूरी आजादी के साथ 14 साल मुख्यमंत्री रहे भाजपा के शिवराज सिंह चौहान के हिंदुत्व ब्रांड वाली भाजपा सरकार में कर सकती थी ...... और पूजा के अधिकार  मामले में महिला स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त कर सकती थी ....? किंतु शायद उन्हें अपने हिंदुत्व वाली भाजपा सरकार से अपमानित होने का खतरा था ।इसलिए वे शोषण को बर्दाश्त करती रही.... ?

 जैसे बरसों बरस आजादी के बाद प्रभावित व तार्किक मुस्लिम महि महिलाओं लाओं ने शोषण को बर्दाश्त किया । इससे यह कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की ताकत अपनी अपनी परिभाषा में अपनी अपनी सत्ता पर स्वतंत्रता को हमेशा महसूस करती है। वह स्वतंत्रता गलत है या सही है यह वक्त के पैमाने पर कितना खरा उतरेगा.... एक अलग बात हो सकती है। 

किंतु वर्तमान संदर्भ में उसे ठीक समझ कर स्वतंत्रता  निर्णय का दिन 30 जुलाई 2019 महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता का दिन रहा एक तरफ महाकाल के समक्ष स्वतंत्रता तो दूसरी तरफ लोकतंत्र के महा सदन में तीन तलाक बिल पर मुस्लिम महिलाओं की स्वतंत्रता का अधिकार का दिवस समझा जाना चाहिए।

 बधाई हो ,भारत की महिला अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली सभी महिलाओं को।

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

नई दिल्ली:
तीन तलाक बिल Updates: राज्यसभा से पास हुआ तीन तलाक बिल, समर्थन में 99, विरोध में 84 वोट पड़े
 तलाक़ बिल (Triple Talaq Bill) राज्यसभा से पास हो गया. बिल के समर्थन में 99, विरोध में 84 वोट पड़े. इससे पहले बिल पर चर्चा के लिए चार घंटे का समय तय किया गया है. बिल को लेकर बीजेपी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है. राज्यसभा में बिल को पास कराने के लिए मोदी सरकार की राह थोड़ी आसान होती दिख रही है. यह जदयू और एआईएडीएमके के वॉकआउट के बाद संभव हो पाया है. जदयू और एआईएडीएमके के सदन से वॉकआउट के बाद राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 213 रह गई. ऐसे में अब बहुमत के लिए 109 वोट चाहिएं. इससे पहले विपक्ष के विरोध के बावजूद लोकसभा में ये बिल आसानी से पास हो गया था. हालांकि लोकसभा में जेडीयू ने वोटिंग नहीं की थी. 



सोमवार, 29 जुलाई 2019

भ्रष्टाचार को बलिदान हो रहा....? बलिदानियो का जयस्तंभ चौक ( त्रिलोकीनाथ )अथ आदिवासी क्षेत्रे-1


अथ आदिवासी क्षेत्रे-1

 भ्रष्टाचार को बलिदान हो रहा....?
 बलिदानियो का जयस्तंभ चौक

(  त्रिलोकीनाथ )

बेहतर होता कि लोकतंत्र के सभी प्रतिनिधि नव निर्मित हो रहे शहडोल नगर कि विकासशील धारा के सड़ी हुई व्यवस्था ना बन कर एक मजबूत भविष्य का निर्माण करने के बारे में एकमत हो। और प्रत्येक जमीनी विकास के लिए फूंक-फूंक कर कदम रखें। यह बात इसलिए कहीं जा रही है क्योंकि बार-बार उदाहरण सामने आने के बावजूद भी हमारी नपुंसक विचारधारा हमें ठोस निर्णय लेने से डराती है ...? 




कौन नहीं जानता कि कटनी से लेकर के गुमला तक कहीं भी सड़क के टायर कभी इस प्रकार से नहीं फ़ूटते जिस प्रकार नियमित रूप से जय स्तंभ चौक शहडोल में टायर फूट से रहे हैं..... यह स्थान बमबारी का अक्सर जाना पहचाना स्थल बन गया, हमें तब भी दिखा था जब 1998 में हमने तब "स्वतंत्र मत" में एक रिपोर्ट छापी थी विजय स्तंभ चौक यातायात अभियांत्रिकी के विरुद्ध बना हुआ है। इस कारण इस सड़क में दुर्घटना आम हो चली है। और प्रत्येक दुर्घटना के लिए संबंधित निर्माण करता अधिकारी दोषी होना चाहिए। बहरहाल बातें नहीं सुंंनी गये, इसी टायर बम विस्फोट में एक राहगीर की मौत भी हो गई। घायल करने वाली दुर्घटनाएं आम बात है। धारा 144 में शामिल जयस्तंभ चौक क्षेत्र अक्सर बम विस्फोट का अड्डा बन गया ।

 बहरहाल कमिश्नर श्री  जैन ने इसे संज्ञान में लिया जब उन्हें यह बातें प्रकाशित की गई नतीजतन जयस्तंभ चौक का निर्माण करीब 21 वर्ष बाद तय हुआ, स्वाभाविक है निर्माण के लिए कुछ ना कुछ अगल बगल प्रभाव पड़ेगा.. लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई.., कहते हैं जबलपुर के इंजीनियर ने आकर अपनी राय दी....। नतीजतन दबाव में आकर भ्रष्टाचार ने अपने अवसरों का काम करना चालू किया। अब यह बात समझ से बाहर है कि वर्तमान में बन रही जयस्तंभ चौक की सड़क की मोटाई, जिस स्तर की है उससे दोगुनी स्तर पर सड़क निर्माण इसी ठेकेदार द्वारा कराया गया है। फिर अचानक आधी मोटाई की सड़क निर्माण में ठेकेदार को..., य संबंधित इंजीनियर को जयस्तंभ चौक सड़क में गुणवत्ता की गारंटी कहां से मिल गई ....?  यदि आपत्तियां दर्ज थी... तो जमीन की गहराई करके सड़क उसी गुणवत्ता स्तर की क्यों नहीं बनाई जा रही है.....? जिस गुणवत्ता में कमिश्नर ऑफिस के सामने की सड़क बनाई गई।
 फिर यह बात भी सामने आ चुकी है कि कटनी रोड में बनाई गई सड़कें जगह-जगह से टूट रही हैं और खराब हो रही हैं, कारण कुछ भी बताए जाएं किंतु निर्माण कार्य की गुणवत्ता और जयस्तंभ चौक में सड़क की मोटाई से भी दुगने मोटाई वाले सड़क में अगर टूट रही हैं तो जयस्तंभ चौक की सड़क टूट कर नष्ट भ्रष्ट नहीं होगी इसकी कौन गारंटी लेगा.......? याने सड़क निर्माण कर्ता  अपना बिल निकालेगा... पैसा लेगा और भाग जाएगा। अफसर भी, नेता भी अपना अपना  निर्माण के अनुसार  भाग प्राप्त कर चले जाएंगे ।

रह जाएगी शहडोल की जनता, तो इस सड़क से संघर्ष करती रहेगी......  क्योंकि वह अभी जागरुक नहीं है ....और ना ही जागरूकता उसके फितरत में है.... फिर भी जिन अफसरों को नेताओं को अथवा ठेकेदारों को भी शहडोल में रहना है उन्हें तो अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति समझदार और जागरूक होना चाहिए....। क्योंकि उन्हें यहां मरना भी है... और मरने तक कोई उन्हें गाली दे .....श्राप दे..., उससे भयभीत होना ही चाहिए ।

भ्रष्टाचार कहीं भी किया जा सकता है.... लेकिन जयस्तंभ चौक जोकि देश की आजादी के बलिदानयों के नाम पर बनाया गया है। उन्हें अपमानित करने का साहस, खून में क्यों पैदा हो जाता है ......  ? ऐसा करके हम अपने पूर्वजों को भी अपमानित कर रहे हैं.... जिन्होंने देश की आजादी में अहम योगदान दिया था ।जिनके पूर्वजों ने नहीं दिया.   यह नहीं सोचा., उन्हें इस भ्रष्ट व्यवस्था की गुलामी के लिए जरूर बधाई दी जा सकती है।

हालांकि नगर पालिका के जानकार सूत्र स्पष्ट करते हैं कि जिस बजट से कमिश्नर ऑफिस के सामने वाला डबल मजबूती का सड़क निर्माण हुआ है उस बजट से जयस्तंभ चौक का सड़क निर्माण नहीं हो रहा है इसकी लागत भी कोई 4000000 रुपए के आसपास बताई जाती है जिसका काम पेट्रोल पंप के सामने से जनपद सुहागपुर कार्यालय के सामने तक ही होना है और यही कारण है की उच्च स्तर पर मजबूती जयस्तंभ चौक को नहीं मिल पाएगी। जिस स्तर पर मजबूती आगे की सड़क को मिली है यह एक अलग बात है ऐसे मापदंड तय करने वाले अमीर सड़क और गरीब सड़क बनाकर क्या संदेश देते हैं और अगर गरीब सड़क बनी रही है तो फिर उसकी गरीबी की शिकायत हमको क्यों करना चाहिए.....?

 यह एक उदाहरण था.., देखने और समझने का नजरिया था ,विशेष आदिवासी क्षेत्र में, यही दायित्व सभी प्रशासनिक राजनैतिक लोगों का होना चाहिए ।तभी बन रही नई कालोनियों के लिए सुरक्षित पा सुनिश्चित आवास दिए जा सकते हैं ।और यही विकास है..., नहीं तो भ्रष्ट व्यवस्था में "सबका साथ-सबका विकास" हो ही रहा है, शायद यही मंंसा भी है....?

शनिवार, 27 जुलाई 2019

आदिवासी विभाग मे सफेद हाथी के खाने के दांत और.

आदिवासी विभाग मे 
सफेद हाथी के दिखाने के दांत  और.....



बरकड़े को बरगलाया..,
अब भ्रष्टाचार के स्रोत तय कर रहा है ...
 मंडल संयोजक ......?



शहडोल । जिले के आदिवासी विभाग प्रमुख रहे नरोत्तम बरकड़े के कार्यकाल में अपने स्टाफ के विभाग परिवर्तन का  आदेश हुआ था जिसमें उन्होंन बरसों बरस से अपने-अपने विभाग में बैठकर आदिवासी विभाग को पलीता लगा रहे थे कर्तव्यनिष्ठ तरीके से कुछ काम भी कर रहे थे प्रभार परिवर्तन करना था ताकि शुचिता और पारदर्शिता बनी रहे। बहराल 3 वर्ष के लिए नियुक्त विभाग प्रमुख को हटाने के या परिवर्तित करने के आदेश पर अमल कुछ इस प्रकार हुआ है कि अधिकारी तो चले गए किंतु कथित तौर पर दो कर्मचारी अंगद की पैर की तरह है शाखा में पांव जमा दिए हैं। और सहायक आयुक्त निराश और हताश हालात में इनकी मर्जी के गुलाम प्रतीत होते दिखते हैं ।इनमें से एक तो है ही..., लेकिन एक और हैं ,जिनका जिला में दबदबा आदिवासी विभाग में भ्रष्टाचार के नियंत्रण के रूप में ज्यादा है बजाएं कर्तव्यनिष्ठा के। वैसे तो इन्हें लेखापाल के पद पर हिसाब किताब ठीक रखने का काम रखने की जिम्मेदारी है किंतु लेखापाल  कौशल सिंह मरावी छात्रावास का प्रभार कुछ इस प्रकार से मिला कि वे स्थाई रूप से इस शाखा पर कब्जा कर लिए हैं। और पूरे आदिवासी विभाग के बॉस बने बैठे हैं ।बताया जाता है जिले के हर आदिवासी आश्रम और छात्रावासों से एक मोटी मोटी बड़ी रकम इन्हीं के शाखा से होते हुए उच्च स्तर पर सप्लाई होती है। उनके अनुभव का लाभ शायद ही कोई उच्चाधिकारी छोड़ना चाहता है......? और इसीलिए छात्रावास का प्रभार इनसे नहीं छुड़ाया जाता ।इस प्रकार विभाग में "खाने के दांत और दिखाने के दांत  और" के तर्ज पर सफेद हाथी चलता रहता है।
अधीक्षकों की नियुक्ति में जवानी जमा खर्च

 हाल में सहायक आयुक्त के पद पर अनुभवी मिस्टर श्रोती पदस्थ हुए ,उन्होंने भी इन्हें हटाना उचित नहीं समझा। बहरहाल कर्तव्य निष्ठा और पारदर्शिता का दिखाने का दांत को एक औपचारिकता के रूप में अपने पत्र क्रमांक 8339 दिनांक 8.7. 19 को एक प्रेस रिलीज के जरिए करीब जिले के 41 छात्रावासों और आश्रमों में अधीक्षकों की नियुक्ति की सूचना जारी  की गई।  8 जुलाई को प्रकाशीय सूचना में जो कार्यालय के बाहर शायद चिपकाकर रखी गई। सूचना के अनुसार आयुक्त भोपाल के निर्देश मे 2017 का हवाला है कि किस प्रकार से छात्रावास ,आश्रमों के अधीक्षकों की नियुक्ति की जाएगी ।मोटा-मोटा 3 वर्ष के लिए नियुक्ति होनी है इसलिए 15 जुलाई का समय देकर आवेदन आमंत्रित किए गए। सैकड़ों हजारों की संख्या में आश्रमों और छात्रावासों मे रुचि रखने वाले लोगों तक सूचना नहीं पहुंची ।इसलिए कथित तौर पर  मियाद जुलाई अंतिम तक बढ़ा दिए जाने की खबर है। फिर भी आवेदन नहीं आ रहे हैं.....?
पदस्थ क्षेत्र संयोजक को स्थानांतरित करवा दिया गया
 इसलिए खबर है कि मंडल संयोजक श्री अंसारी अपनी मित्र मंडली और सिस्टम के साथ इन आवेदनों को लेने की प्रक्रिया भी जारी कर रखे हैं, मंडल संयोजक श्री अंसारी फिलहाल क्षेत्र संयोजक के पद पर "प्रभार" में पदस्थ बताए जाते हैं और इस प्रकार जब सहायक आयुक्त नहीं होते हैं तब यह सहायक आयुक्त का काम भी देख लेते हैं....? श्री अंसारी स्वयं सभी नियमों कानूनों को धता बताकर वर्षों से मुख्यालय में जमे हैं ।एक जानकारी और भी चकित करने वाली है की क्षेत्र संयोजक का पद सहायक आयुक्त कार्यालय में वर्षो से रिक्त है किंतु किंतु जब आयुक्त कार्यालय में भ्रष्टाचार की पारदर्शिता का अभाव हो जाता है तब क्षेत्र संयोजक की नियुक्ति की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो जाती है.. अन्यथा इस पद को शायद मंडल संयोजक के लिए आरक्षित कर दिया गया है....?

 हाल में कोई सज्जन क्षेत्र संयोजक के रूप में पदस्थ किए गए थे। स्वाभाविक है लाखों करोड़ों रुपए का बजट वाला विभाग का मुखिया यूं ही प्रभार को हाथ से नहीं जाने देता..., तो बड़े सम्मान के साथ जो-जहां चढ़ाओ चढ़ाना था उसे चढ़ाया गया और एक बड़ी विदाई के साथ पदस्थ क्षेत्र संयोजक को स्थानांतरित करवा दिया गया, उनके सुविधा के हिसाब से। अब वे भी खुश और शहडोल का सिस्टम भी खुश !

आदिवासी विभाग का यह चर्चा विभाग में सफलता के आयामों पर मुहावरे के रूप में देखी जा रही है भ्रष्टाचार की ताकत..., उसकी सक्रियता और सतत निगरानी में चलता है..। जो आदिवासी मुख्यालय संभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय में दम ठोकर चला रहा है बात फिसल ना जाए अपन 41 अधीक्षक पदों में जो कि मोटे मोटे 3 वर्षों के लिए होते हैं पर की जा रही थी प्रयास किया जा रहा है कि यदि इन पदों पर जो गुपचुप तरीके से भ्रष्ट जमात के लिए  पारदर्शी  तरीके से बताए जा रहे हैं, कोई नहीं आ रहा है तो डोर टू डोर सर्विस के जरिए विशेष सुविधा लेकर आवेदन प्राप्त किए जा रहे हैं....। जो सहायक आयुक्त के तरफ से प्रतिनिधि बनकर ....?,भ्रष्टाचार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। खबर तो यहां तक है मासिक नियमित भ्रष्टाचार शुल्क के अलावा पुनर्स्थापना अथवा सदस्य की नियुक्ति के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है। ताकि आश्रम छात्रावास अधीक्षकों में अपने आदमी नियुक्त कर "रेगुलर करप्शन रिसोर्स" तैयार किए जा सकें। अन्यथा कोई कारण नहीं है इतने ज्यादा पदों के लिए वीहित प्रक्रिया के जरिए भर्ती की प्रणाली नहीं अपनाई.....? .....

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

!@! अथ व्यापम घोटाला !@! लोकतंत्र में युवा विधवा उद्धार...( त्रिलोकीनाथ )

!@! अथ व्यापम घोटाला !@!

लोकतंत्र में युवा विधवा उद्धार...
राजनीति के शतरंज में एक अच्छी चाल ...

=  दिग्विजय का पवित्र  काम,  निरपराध छात्र  छोड़े जाएं
=  जरूरत है  राजा राममोहन राय की
 = विधवाओं की तरह  भ्रष्टाचार की चिता में  झोंके गए  
     युवा जीवन के लिए 

    (  त्रिलोकीनाथ  )

10 साल दिग्विजय सिंह के और 15 साल उमा-शिवराज सिंह की बीते 25 साल बाद दिग्विजय सिंह की एक बात जंच गई.., यह बात हो सकता है उनके दिमाग से निकली हो, लेकिन बात दिल की कही है । प्राकृतिक न्याय की कही है। जो देश की आजादी के बाद काले धब्बे के रूप में बच्चों के साथ भ्रष्टाचारियों की आपसी खेल में भविष्य बर्बाद हो रहा था क्या हो रहा है, उनके पक्ष में। दिग्गी राजा ने कहा है कि, जिन बच्चों का कोई अपराध नहीं उन्हें जेल में क्यों रखना चाहिए या फिर उनके खिलाफ चल रहे व्यापम के सभी मुकदमे वापस ले लेना चाहिए। 
        चिट्ठी है.., तो चल दी है... कमलनाथ सरकार कितनी संजीदगी से दिग्गी राजा के सोच को आगे बढ़ाते हैं यह तो आने वाला कल ही बताएगा, बावजूद इसके बीते 25 साल में दिग्विजय सिंह की सोच के कारण मध्यप्रदेश में खासतौर से न सिर्फ कांग्रेश पार्टी को दिशा भटक गई बल्कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार की श्रृंखला खुल गई.... व्यापम के जरिए जो मौतें हुई उसके परिणाम भी कुछ नहीं नजर आए...., सब टाय टाय फिश हो गया ।
     यह सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार मूल रूप से माना जाए तो कच्चे चावल के रूप में शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार के जरिए पहली बार दिग्विजय सिंह की सरकार में खेल खेल में पनप गया था , उस समस्या को नजदीक से हम देख रहे थे, कि जो तब में यूपीएससी अथवा पीएससी के जरिए लोग नौकरी पर आए थे वह शिक्षाकर्मी भर्ती की नौकरी देने का काम कर रहे थे..... जो काम पीएससी का था.., विहित प्रणाली के जरिए नौकरी देने का था, उसे चंद मुट्ठी भर भ्रष्टाचारियों ने जनपद स्तर पर..., जिला पंचायत स्तर पर बैठकर जमकर बंदरबांट की । राजनीति के खेल में कुछ भ्रष्टाचारी न्यायालय की चौखट तक पहुंच गए या पहुंचा दिए गए, तो बहुत लोग बच निकले। 
जो बच ने निकले...., वे स्वतंत्र आजाद होकर सफल भ्रष्टाचारी के रूप में या तो सचिवालय में या फिर जिला स्तर पर प्रशासन के अहम अंग बने हुए हैं...। तब शायद प्रशिक्षित सफल भ्रष्टाचारी वर्ग ने  यानी शिक्षाकर्मी भर्ती भ्रष्टाचार का प्रशिक्षण भारतीय जनता पार्टी की सरकार में डिजिटल तरीके से अपनाने का काम हुआ । मंत्री और सेक्रेटरी स्तर के लोग से लेकर निरपराध 16, 17, 18 ,19और 20 साल के होशियार बच्चे भी आंकड़ों की जादू गिरी में उलझ गए। यह भ्रष्टाचार के आंकड़े किसी योग्यता की नहीं भ्रष्टाचारियों की फैक्ट्री में बीते दिन का प्रशिक्षण शिक्षाकर्मी भर्ती भ्रष्टाचार में हुआ था। व्यापम के जरिए इस प्रकार से एक प्रणाली के जरिए अपनाया गया ।
 कैसे भोपाल में बैठा हुआ भ्रष्टाचारी- सिस्टम  पुष्पराजगढ़ के आदिवासी से राजगढ़ के किसी आदिवासी के घर में कब घुस गया, पता ही नहीं चला। और आज वह आदिवासी छात्र जो अबोध है, भ्रष्टाचार का आतंक किसी जाति के दायरे में नहीं है उतना ही खतरनाक आदिवासियों के लिए था जितना कि सवर्ण के लिए यह तो देश की सीमाओं को बी पार करके कहीं भी उतना ही सफल है जितना कि किसी अद्वासी बस्ती में हमने आदिवासियों की पहल इसलिए बताइए क्योंकि हम आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं, जो पढ़ने की चाहत में किसी भी रास्ते के जरिए पढ़ना चाहता था.... वह व्यापम का भ्रष्टाचारी बनकर कानून का अपराधी बना हुआ है।
 हम मान सकते हैं भ्रष्टाचारियों की जमात में परिपक्व लोग.., प्रशिक्षित भ्रष्टाचारी वर्ग शामिल होता है । उसमें माता पिता से लेकर भ्रष्टाचारी सिस्टम तक  है ।किंतु अबोध छात्रों का क्या अपराध है.... जिन्हें भ्रष्टाचार के आंकड़ों ने अपने गिरफ्त में ले लिया। हो सकता है यह बात दिग्विजय सिंह ने राजनीति की शतरंज में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया हो... क्योंकि  ऐसा लोग बताते हैं। अमूमन देखा भी गया शतरंज की तरह राजनीतिक को चलाते हैं। उसका परिणाम कुछ भी हो... निजी जीवन को भी उन्होंने इस रूप में डाला।
 किंतु जिन भ्रष्टाचारियों की जमात को कच्चे चावल के रूप में तैयार किया गया.., उस सोच को पल्लवित किया गया.. वह सोच व्यापम के रूप में विकसित होकर भारतीय जनता पार्टी के कमल के रूप में खिल गया । 
भ्रष्टाचार राजनीतिक पार्टी को नहीं देखती वह तो एक अमरबेल है किसी भी वृक्ष पर पनप जाती है.... आज राजनीति का लबादा, किसी साधु संत के नकाब से ज्यादा नहीं है ...जो सिद्धांत का ढोंग, पाखंड ओढ़ कर अलग अलग चेहरों के जरिए सत्ता पर कब्जा करती है । और भ्रष्टाचार इनके लिए एक आदर्श जरिया होता है। यही आदर्श जरिया, व्यापम में सु-संगठित तरीके से पनपा और इसे एक बड़ी दुर्घटना मान कर, भलाई माता पिता को उनकी आपराधिक मनोवृत्ति की तरफ बनी व्यवस्था के लिए दोषी माना जा सकता है। कि अपना घर द्वार  जमीन जायजात अथवा भ्रष्ट कमाई के जरिए शॉर्टकट तरीका अपनाकर व्यापम घोटाला में शामिल हो गए और अपने बच्चों का भविष्य भ्रष्टाचार की छाया में पाना चाहा.....
 किंतु ये बच्चे स्वयं नहीं गए थे...... उन्हें 25 वर्षों की राजनीति ने ले जाकर के भ्रष्टाचार की आग में झोंक दिया था। उसी प्रकार से जैसे पूरा समाज किसी विधवा को पकड़कर चिता की आग में पति के मरने के साथ ही झोंक देता है। सती प्रथा की तरह उसे महिमामंडित करता है ।सती प्रथा इसी प्रकार की व्यवस्था थी जो एक जीवन को मृत्यु देती थी.....।
 16 साल का युवा छात्र 25 साल की राजनीति में और उसके समाज के जरिए भ्रष्टाचार की आग में विधवा की तरह झोंक दिया गया ।आज जो भी जेल में बंद हैं या वे जो इस आग में झुलस कर मर गए, जिनकी मौत की जांच भ्रष्टाचारियों ने स्वतंत्र तरीके से नहीं होने दिया या उसे प्रभावित किया या वह यह मौतें 25 वर्ष की भ्रष्ट राजनीति की वजह से कारणों को विलुप्त कर गई हूं ..., इस पूरे सिस्टम में नवोदित-युवा-जीवन छात्रों का कोई अपराध नहीं है.....
 लोकतंत्र में न्यायालयों को यह बात कैसे समझ में आएगी कि जिस प्रकार से सती प्रथा पवित्र होने के बावजूद अपराध के लिए आमानवीय कृत्य  और समाज की की गई एक बड़ी हत्या थी। उसी प्रकार लोकतंत्र के चारों स्तंभों में विशेषकर न्यायपालिका की जिम्मेदारी या लापरवाही अथवा उसकी देरी ज्यादा जिम्मेदार है । न्यायाधीश बड़ा अपराधी है अगर वह कम समय में न्याय सुनिश्चित कर पाने के रास्ते तय नहीं कर पा रहा है। न्यायपालिका को अपनी जिम्मेदारियों का वहन अब ठीक उसी प्रकार से करना चाहिए जिस प्रकार से अति प्रदूषित हो चुके राम मंदिर बाबरी मस्जिद अयोध्या का विवाद के लिए सुनिश्चित समय तय किए जाते हैं। अथवा यह सोच मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय श्री  गोगोई के उस कार्य प्रणाली की तरह पहल में अमल लाना चाहिए जैसे उन्होंने मान लिया जनहित याचिका के जरिए बाल अपराधों को स्वयं क्यों ना उठाया जाए.... क्योंकि यह अति संवेदनशील मामले हैं।
...
 तो दिग्विजय सिंह को बहुत-बहुत बधाई कि उन्होंने शतरंजी चाल में  पवित्र कदम  या चाल चली है...  यह पहल हो सकती है इसे तत्काल निराकृत करने की जरूरत है और तत्काल कम से कम  उन सभी छात्रों को  जोकि  लोकतंत्र के मर जाने के कारण राष्ट्र समाज  मैं  विधवा की तरह  जेल में बंद है,  तत्काल रिहा किया जाना चाहिए इसमें किसी दिग्विजय सिंह का उमा भारती का या शिवराज सिंह का रूप रंग नहीं देखना चाहिए कौन सही या गलत रहा। यह देखना चाहिए कि हम युवाओं की जवानी को विधवाओं की तरह जबरजस्ती भ्रष्टाचार की आग में  ना झोंके.....।
 कमलनाथ को सती प्रथा अंत करने वाले राजा राममोहन राय की तरह ठोस निर्णय लेने की जरूरत है....

शनिवार, 13 जुलाई 2019

अतिक्रमण कारी है कि मानता नहीं......... त्रिलोकीनाथ

अतिक्रमण कारी है कि 
मानता नहीं.........


 त्रिलोकीनाथ






इन्हीं सब को साबित करने के लिए पर्याप्त है शहडोल नगर के मुख्य गांधी चौराहा स्थित  नजूल आराजी खसरा नंबर 119 /120 का अंश भाग 560 वर्ग फीट में चलाया गया मुकदमा । यह मुकदमा शहडोल के नजूल भूमि में जिला न्यायालय में चलाए गए मुकदमे की घोषित आराजी से संबंधित है, जिसमें जिला न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर 560 वर्ग फीट जमीन को अतिक्रमण कारी नेम चंद्र जैन से मुक्त बताया था ।बावजूद इसके, इसी न्यायालय में शहडोल नगर पालिका द्वारा चार मुकदमे नेमचंद जैन के खिलाफ लाए गए तीन अतिक्रमण कारी नेमचंद जैन को आरोपी घोषित करते हुए दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित किया। एक मुकदमा इसी नजूल भूमि में पीपल के वृक्ष को जो करीब 70- 80 वर्ष पुराना रहा होगा नजूल भूमि को हथियाने के लिए कटवा दिया गया और वहां पर अवैध, बिना नगर पालिका की अनुमति के तीन मंजिला भवन बना दिया गया । 
भ्रष्टाचार जिंदाबाद के नारा के तहत वह खुलेआम गांधी चौराहे में पूरी निश्चिंता के साथ अपनी जमानत कराने के बाद शेष भवन को तोड़ते हुए उसके सटर व ताले पुरानी पहचान स्वरूप परिवर्तन करते हुए एक शोरूम वहां बना लिया है और बहुत जल्दी, कहीं ऐसा ना हो किन्ही प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने स्थगन आदेश जारी करने का काम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किया है या दंडात्मक कार्रवाई की है, वही.., इस शोरूम का उद्घाटन करने पहुंच जाएं .. ? क्योंकि यह खुले भ्रष्टाचार का स्वरूप है..., कोई चोरी छिपे नहीं किया, कोई डाका नहीं...,  वह तो सिर्फ सहमति से हुआ भ्रष्टाचार मे संरक्षित अतिक्रमणकारी है। और यही लोकतंत्र दिखता है, यही कारण है कि जो काम नेमचंद जैन शहडोल में किया मुख्य गांधी चौराहे में और क्यों न करें....., पुराने गांधी चौक में सरेआम गांधी जी की मूर्ति को गले से काटकर तोड़ दिया गया....., आज तक अपराधी नहीं पकड़े गए ..,क्योंकि वे गांधी थे .......! 
उसका सम्मान सब को करना चाहिए.., क्योंकि वह धर्म का हिस्सा है, जैन धर्म का प्रतीक। अमरकंटक में हो इसमें किसी को एतराज नहीं। किंतु जैन मुनियों को निस्वार्थ भावना और पूर्ण निष्काम प्रदर्शन के लिए जाना जाता है जिन्हें माया मोह ने अपने जाल में नहीं फंसा रखा उनके नाम पर 2 स्टार स्तर की जैन धर्मशाला और इन सबके लिए एक जैन बस्ती भी उस पहाड़ी पर बसा देना, पूरी जंगल काट कर कब्जा कर लेना, अवैध रूप से कहां तक  जायज है...? तो मतलब यह है  यह भी नाजायज है.., क्या फर्क पड़ता है नाजायज होना .....
अतिक्रमणकारियों के खून में है अगर वे अपराध नहीं करते हैं तो उन्हें नींद नहीं आती ....और इसीलिए न सिर्फ जैन धर्मशाला बल्कि कई की बस्ती अपना बाजार बना ली है इन सबके लिए पानी की व्यवस्था, रहने की व्यवस्था हेतु, बोरिंग की गई और भारी मात्रा में पानी निकाला गया।
 अब यह अलग बात है कि इसके लिए 15 वर्ष सत्ता में रही हिंदूवादी सरकार जिस की अवधारणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदुत्व के एजेंडे के तहत करता है ,सरकार ने अपने प्रशासनिक अमले को भेजकर सब नाजायज काम होने दिया.... क्योंकि नेताओं को भ्रष्टाचार से अपने सिस्टम को चलाना होता है इसलिए संगठित माफिया के शरण में रहे और इसकी कीमत हजारों वर्षों से अविरल बहती हुई नर्मदा नदी , गर्मी में पहली बार विलुप्त हो गई 
याने सूख गई.., यानी , वह जलधारा; जो साल के वृक्षों क्षेत्रीय पर्यावरण और पहाड़ियों के द्वारा संरक्षित होते हुए नर्मदा के रूप में अविरल बहती थी, वह विलुप्त हो गई।
 याने ...,सूख गई, याने आर एस एस की हिंदुत्व की सरकार है माफिया को संरक्षित करके नर्मदा नदी की उनके उद्गम स्थल पर हत्या किया, यह हत्या का अपराध है ....कानून इसे कुछ जुर्माना लगाकर जमानत भी कर सकता है।
 क्या फर्क पड़ता है यह उस आदत का हिस्सा है जोकि नया गांधी चौराहे में नेमचंद जैन जैसे अतिक्रमणकारियों और उनको पालने पूछने वाला भ्रष्ट लोकतंत्र माफिया नुमा संगठन करता चला आ रहा है। इसलिए फर्क नहीं पड़ता जब नर्मदा नदी की स्रोत को नष्ट करने के लिए जैन माफिया संगठित है । तो नए गांधी चौराहा में कानून और व्यवस्था की क्या औकात है ....
.,बहुत जल्द 560 वर्ग फीट में "स्थगन-हुए-स्थल" पर भव्य शोरूम का उद्घाटन होगा, आशा यह करनी चाहिए कि उसमें कोई ऐसे अधिकारी या न्यायालय के लोग शामिल नहीं होंगे जिन्होंने यहां पर स्थगन आदेश पारित करने का या क्रियान्वित करने का अथवा नेम चंद जैन  के अतिक्रमण से मुक्त इस अंश को घोषित करने का काम किया होगा...।
 तो यही है व्यवस्था और यही है लोकतंत्र. जो भाजपा की सरकार में r.s.s. से संरक्षित होता है। और कांग्रेस के सरकार में भ्रष्ट-कर्तव्यनिष्ठ नेताओं ।
 भैया,जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो उसकी रक्षा कौन करेगा यानी कोई नहीं...... और इसे ही राजकाज बोलते हैं, अब इस राजकाज में नर्मदा नदी खत्म हो जाए या सोन नदी ...,यह लोकतंत्र है क्या फर्क पड़ता है।
 हो सकता है इस आलेख को पढ़ने के बाद अधिकारी कर्मचारियों और नगर पालिका न्यायालय में का जमीर जगे, अगर ऐसा होता है तो हमारी शुभकामनाएं ...

मंगलवार, 9 जुलाई 2019




रीवा
रियासत के "इलाकेदार"
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(लोक ज्ञान पर आधारित)
रीवा रियासत में 40 इलाका और 1 हजार पबाई रही है। सन 1934 में पवाई कानून लग गया था। दीवानी, फौजदारी, एक्साइज और वैन अधिकार से बंचित होने के कारण "पवाईदार संघ" का गठन किया गया। एक नाम, इलाका, रकबा और सालाना आमदनी इस तरह थी।

1. राव साहब कृष्णपाल सिंह  (रामपुर नैकिन)
    229 वर्गमील और आमदनी ₹ 120421 थी।

2. राजा साहब शिव बहादुर सिंह (चोरहट)
   आमदनी ₹ 101876 थी।

3. सरदार गोपाल शरण सिंह ( नईगढ़ी)
    99 वर्गमील और आमदनी ₹ 101449 थी।

4. भइया बहादुर राजेन्द्र सिंह (सोहागपुर)
     773 वर्गमील और आमदनी ₹ 99096 थी।

5. लाल उपेंद्र रमन सिंह (चंदिया)
    454 वर्गमील और आमदनी ₹ 80037 थी।

6. सरपरस्त दादू जगदीश सिंह (आनंदगढ़)
    56 वर्गमील और आमदनी ₹ 61115 थी।

7. लाल रामकुमार सिंह (कोठी)
    281 वर्गमील और आमदनी ₹ 56181 थी।

8. लाल यशवंत सिंह (ताला)
    49 वर्गमील और आमदनी ₹ 56181 थी।

9. कर्नल बलवंत सिंह (देवराज नगर)
    58 वर्गमील और आमदनी ₹ 37963 थी।

10. कोर्ट आफ वार्ड (जैतपुर)
      403 वर्गमील और आमदनी ₹ 28386 थी।

11. तथैव (देवरी)
      26 वर्गमील और आमदनी ₹ 26368 थी।

12. सरदार रामप्रताप सिंह (गंगेव)
      25 वर्गमील और आमदनी ₹ 26368 थी

13. सरदार जागेश्वर सिंह (जोधपुर)
      17 वर्गमील और आमदनी ₹ 22276 थी।

14. राजा वीरेंद्र प्रताप सिंह (बरदी)
       186 वर्गमील और आमदनी ₹ 20967 थी।

15. लाल रुद्र प्रताप सिंह (निगवानी)
      99 वर्गमील और आमदनी ₹ 18391 थी।

16. इंद्र बहादुर सिंह (खैरहा)
      166 वर्गमील और आमदनी ₹ 17579 थी।

17. कोर्ट आफ वार्ड (खन्नौधी)
      192 वर्गमील और आमदनी ₹ 17132

18. सरदार भुवनेश्वर प्रसाद सिंह (पहारी)
      29 वर्गमील और आमदनी ₹ 16776

19. बालेन्द्र आनंद बहादुर सिंह (मड़वास)
      589 वर्गमील और आमदनी ₹ 15574

20. राज्यपूज पाण्डेय महेश प्रसाद (तमरा)
      10 वर्गमील और आमदनी ₹ 14712 थी।

21. लाल प्रताप सिंह (बड़ा नादन)
      10 वर्गमील और आमदनी ₹ 13004

22. लाल सुदर्शन सिंह (चामू)
      9 वर्गमील और आमदनी ₹ 12443

23. लाल विष्णु बहादुर सिंह (खैरा)
      83 वर्गमील और आमदनी ₹ 12237 थी।

24. सरदार लाल बहादुर सिंह (सीधी)
      67 वर्गमील और आमदनी ₹ 21353 थी।

25. कोर्ट आफ वार्ड (बुढ़वा)
      66 वर्गमील और आमदनी ₹ 13522 थी।

26. लाल हनुमान प्रसाद सिंह (कुआँ)
      123 वर्गमील और आमदनी ₹ 12782 थी।

27. हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह (बैकुंठपुर)
      8 वर्गमील और आमदनी ₹ 11907 थी।

28. लाल मनुजेंद्र सिंह (सरिया)
      9 वर्गमील और आमदनी ₹ 11834

29. लाल सूर्य प्रताप सिंह (मनउरा)
      118 वर्गमील और आमदनी ₹ 11190 थी।

30. लाल रामगोविन्द्र सिंह (लउआ)
      7 वर्गमील और आमदनी ₹ 11531 थी।

31. लाल दिग्विजय प्रताप सिंह (बरदाडीह)
      8 वर्गमील और आमदनी ₹ 10778 थी।

32. लाल गदाधर सिंह (कृपालपुर)
      8 वर्गमील और आमदनी ₹ 2664 थी।

33. उर्मिला प्रसाद सिंह (भीषमपुर)
       आमदनी ₹ 10000 थी।

34. लाल माधव सिंह (सेजहटा)
      आमदनी ₹ 2000 थी।

35. लाल उपेन्द्र सिंह (बीड़ा)
      6 वर्गमील और आमदनी ₹ 6913 थी।

36. कोर्ट आफ वार्ड (लालगांव)
       6 वर्गमील और आमदनी ₹ 5436 थी।

37. लाल नारायण बहादुर सिंह (पनासी)
       4 वर्गमील और आमदनी ₹ 5138 थी।

38. कोर्ट आफ वार्ड (गौरैया)
       7 वर्गमील और आमदनी ₹ 4664 थी।

39. महाराज कमलाकर सिंह (कसौटा)
       2 वर्गमील और आमदनी ₹ 3230 थी।

40. कोर्ट आफ वार्ड (पथरेही)
       128 वर्गमील और आमदनी ₹ 2028 थी।

शनिवार, 6 जुलाई 2019

संविधान की चाहत में हमारे वृद्धा आश्रम ( त्रिलोकीनाथ )..................

संविधान की चाहत में हमारे वृद्धा आश्रम 
कलेक्टर दाहिमा का कदम.... देश के लिए मॉडल
आनंद और अध्यात्म मंत्रालय के
 मुख्यालय बन सकते हैं वृद्धा आश्रम....?

 ......................... (  त्रिलोकीनाथ   )....................................

इसमें कोई शक नहीं है वृद्ध आश्रम खोलने के बाद एक संवेदनशील प्रशासन की जो संवेदना बुजुर्गों को चाहिए वह बतौर कलेक्टर शायद सपरिवार किसी भी कलेक्टर ने आगे बढ़कर स्वयं को बुजुर्गों के साथ संवेदना बांटने का काम नहीं किया। वह भी चाहते तो कर सकते थे....., अपनी नियमित दिनचर्या से समय निकालकर ।और यह तब संभव है जब आप दिखावे के लिए ही सही, आंतरिक रूप से यह सोच पाने में समर्थ हो की आप में प्रशासनिक संवेदना की क्षमता जीवित भी है अथवा नहीं ......,? 
हम लोग वाणिज्य शास्त्र के विद्यार्थी थे जिसमें कंपनी की परिभाषा  में उसे एक "कृत्रिम-व्यक्ति" के रूप में भी देखा गया और पैसे को यानी मुद्रा को कृत्रिम-व्यक्ति के खून के संचरण के रूप में देखा गया ।लोकतंत्र के प्रशासन में संवेदना के यही भूमिका है। यदि वह संवेदनशील प्रशासन नहीं है खोखला प्रशासन.... अहम और दंभ का प्रशासन... काफी हद तक दम घोटू प्रशासन बन जाता है।
 आप कह सकते हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां को बेहद संवेदना के साथ मिलते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री निवास में संवेदना के साथ रखते हैं और उसका वह प्रदर्शन भी करते हैं......, ठीक है वे एक प्रशासक भी हैं.....। निजी जीवन में उसका क्या महत्व है वह सार्वजनिक रूूप से महत्वपूर्ण नहीं है...। सार्वजनिक जीवन में यह एक अत्यावश्यक विषय है, यदि प्रशासन संवेदनहीन बनेगा. य दिखेगा, तो लोकतंत्र में महात्मा गांधी की कथनानुसार "अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति की अभिव्यक्ति वह नहीं बन सकता"।
 शहडोल जिला कलेक्टर ललित दाहिमा शायद पहले कलेक्टर हैं। जिन्होंने इस नवाचार का आत्मिक रूप से, उनके साथ मिल बैठकर वृद्धा आश्रम को जानने समझने का प्रयास किया ।उनका यह नीतिगत निर्णय दूरदर्शी सिद्ध होगा.... जिसमें उन्होंने प्रत्येक बुजुर्ग का स्वास्थ्य कार्ड बनाने का काम किया ।यह पहले के लोग भी कर सकते थे... लेकिन नहीं किए ।इसका अर्थ यह नहीं कि वे संवेदनसील नहीं थे, किंतु जब तक संवेदना की पवित्र-मनसा आपको प्रेरित नहीं करते , आप उस विषय-वस्तु का बोध नहीं कर पाते.... जिसकी चाहत विषय-सामग्री को होती है। फिर वृद्धाश्रम तो एक खुली किताब है... हर व्यक्ति की एक अपनी कहानी है.. हर प्रशासक को इसे पढ़ना ही चाहिए ।शायद लोकतंत्र में जीने का अंदाज के कुछ नए आनंद ढूंढ सकें....?
 आनंद से याद आया जब पूरा मंत्रालय ही खुल गया है... इन आश्रमों को क्यों ना मुख्यालय बनाकर, पूरे प्रयोग किए जाएं ...। ताकि हर छोटी मोटी चीज का संवेदना के साथ उपयोग हो। पूर्ण आनंद   ...,  पूर्ण परमानंद के शायद हमारे वृद्ध आश्रम की खुली किताब.., अवसर बन सकें।
 धन्यवाद ललित दाहिमा जी, आप की प्रेरणा से ही शायद, इस विषय के निकट हम जा सके । आशा करनी चाहिए की पूरा प्रदेश में यह मॉडल बने। 
बल्कि पूरे देश में "शहडोल-मॉडल" बनाया जाए और आनंद मंत्रालय का अध्यात्म मंत्रालय का मुख्यालय भी 

सोमवार, 1 जुलाई 2019

जीवन का कर्ज पटाये .... जितनी उम्र, उतने पेड़ लगाएं 🙏🙏🕊🐦🦅🐿🐦🐧🌲🌲🌲🌲




जीवन का कर्ज पटाये ....
जितनी उम्र, उतने पेड़ लगाएं

🙏🙏🕊🐦🦅🐿🐦🐧🌲🌲🌲🌲
आज पहली किस्त, शेष बाद में

  ( त्रिलोकीनाथ )

जब तक लक्ष्य निर्धारित नहीं होता, तब तक उत्साह और उमंग भी निर्धारित नहीं होता और बिना निर्धारण के कोई कार्य कैसे संभव है...? भाषण बाजी से बातचीत से या सरकारी योजना की गारंटी से शायद वह सफलता हासिल नहीं होती। जब स्वअनुशासित धर्म स्वरूप आराध्य कोई स्थापित कर व्यक्ति दृढ़ निश्चय होकर स्व-कर्तव्य करता है इस प्रकार किसी भी प्रकार का कोई भी कार्य सकारात्मक तरीके से स्वतंत्र उत्साहित होकर आनंद का कारण बनता है।
क्योंकि लक्ष्य पूर्ति का आनंद हमें स्फूर्ति देता है और हम बिना किसी का मुंह ताके अपने कार्य को अंजाम देते हैं । इसीलिए और सिर्फ इसीलिए, कम से कम मैंने अकेले अपने लिए नहीं निर्धारित किया है कि जितनी मेरी उम्र है पृथ्वी ने जितना मुझे जीवन दिया है इतने साल के बराबर अपनी उम्र की गणना के हिसाब से मैं वृक्षारोपण करूंगा ।
और आज पहला दिन था, जय हो नामक संस्था ने 25  पचगांव के शमशान घाट में डॉक्टर्स डे पर सभी डॉक्टरों को साथ लेते हुए वृक्षारोपण का मिशन जंगल का कार्यक्रम रखा। मैंने देखा और  पहुंचकर अपनी उम्र के हिसाब से 8 वृक्षों का वृक्षारोपण कर आया। सुबह करीब 8:00 बजे, शेष वृक्षारोपण के लिए मैं अवसर की तलाश पर रहूंगा ।कहीं भी सुन लूंगा , जान लूंगा मैं अवसर का लाभ उठा लूंगा और अपनी उम्र के बराबर गणना के हिसाब से शेष वृक्षारोपण कर आऊंगा।
इस प्रकार से पृथ्वी ने प्रकृति ने जो मुझे पाला पोसा है मैं उसका कर्जा पटाने का काम करूंगा। वृक्षारोपण के इस सीजन की यह पहली किस्त थी, शेष किस्त जल्द ही पटा दूंगा... । अपनी किस्त पटाने पर मुझे बेहद आनंद आया। धन्यवाद जय हो, आपका।
आप भी चाहें तो पृथ्वी का क़र्ज़ पटाने के लिए या तो मेरा रास्ता या फिर अपना सहज रास्ता चुन लीजिए .......,मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।हम सबके, वृक्षारोपण के लिए ।

"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...