= दिग्विजय का पवित्र काम, निरपराध छात्र छोड़े जाएं
= जरूरत है राजा राममोहन राय की
= विधवाओं की तरह भ्रष्टाचार की चिता में झोंके गए
युवा जीवन के लिए
( त्रिलोकीनाथ )
10 साल दिग्विजय सिंह के और 15 साल उमा-शिवराज सिंह की बीते 25 साल बाद दिग्विजय सिंह की एक बात जंच गई.., यह बात हो सकता है उनके दिमाग से निकली हो, लेकिन बात दिल की कही है । प्राकृतिक न्याय की कही है। जो देश की आजादी के बाद काले धब्बे के रूप में बच्चों के साथ भ्रष्टाचारियों की आपसी खेल में भविष्य बर्बाद हो रहा था क्या हो रहा है, उनके पक्ष में। दिग्गी राजा ने कहा है कि, जिन बच्चों का कोई अपराध नहीं उन्हें जेल में क्यों रखना चाहिए या फिर उनके खिलाफ चल रहे व्यापम के सभी मुकदमे वापस ले लेना चाहिए।
चिट्ठी है.., तो चल दी है... कमलनाथ सरकार कितनी संजीदगी से दिग्गी राजा के सोच को आगे बढ़ाते हैं यह तो आने वाला कल ही बताएगा, बावजूद इसके बीते 25 साल में दिग्विजय सिंह की सोच के कारण मध्यप्रदेश में खासतौर से न सिर्फ कांग्रेश पार्टी को दिशा भटक गई बल्कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार की श्रृंखला खुल गई.... व्यापम के जरिए जो मौतें हुई उसके परिणाम भी कुछ नहीं नजर आए...., सब टाय टाय फिश हो गया ।
यह सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार मूल रूप से माना जाए तो कच्चे चावल के रूप में शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार के जरिए पहली बार दिग्विजय सिंह की सरकार में खेल खेल में पनप गया था , उस समस्या को नजदीक से हम देख रहे थे, कि जो तब में यूपीएससी अथवा पीएससी के जरिए लोग नौकरी पर आए थे वह शिक्षाकर्मी भर्ती की नौकरी देने का काम कर रहे थे..... जो काम पीएससी का था.., विहित प्रणाली के जरिए नौकरी देने का था, उसे चंद मुट्ठी भर भ्रष्टाचारियों ने जनपद स्तर पर..., जिला पंचायत स्तर पर बैठकर जमकर बंदरबांट की । राजनीति के खेल में कुछ भ्रष्टाचारी न्यायालय की चौखट तक पहुंच गए या पहुंचा दिए गए, तो बहुत लोग बच निकले।
जो बच ने निकले...., वे स्वतंत्र आजाद होकर सफल भ्रष्टाचारी के रूप में या तो सचिवालय में या फिर जिला स्तर पर प्रशासन के अहम अंग बने हुए हैं...। तब शायद प्रशिक्षित सफल भ्रष्टाचारी वर्ग ने यानी शिक्षाकर्मी भर्ती भ्रष्टाचार का प्रशिक्षण भारतीय जनता पार्टी की सरकार में डिजिटल तरीके से अपनाने का काम हुआ । मंत्री और सेक्रेटरी स्तर के लोग से लेकर निरपराध 16, 17, 18 ,19और 20 साल के होशियार बच्चे भी आंकड़ों की जादू गिरी में उलझ गए। यह भ्रष्टाचार के आंकड़े किसी योग्यता की नहीं भ्रष्टाचारियों की फैक्ट्री में बीते दिन का प्रशिक्षण शिक्षाकर्मी भर्ती भ्रष्टाचार में हुआ था। व्यापम के जरिए इस प्रकार से एक प्रणाली के जरिए अपनाया गया ।
कैसे भोपाल में बैठा हुआ भ्रष्टाचारी- सिस्टम पुष्पराजगढ़ के आदिवासी से राजगढ़ के किसी आदिवासी के घर में कब घुस गया, पता ही नहीं चला। और आज वह आदिवासी छात्र जो अबोध है, भ्रष्टाचार का आतंक किसी जाति के दायरे में नहीं है उतना ही खतरनाक आदिवासियों के लिए था जितना कि सवर्ण के लिए यह तो देश की सीमाओं को बी पार करके कहीं भी उतना ही सफल है जितना कि किसी अद्वासी बस्ती में हमने आदिवासियों की पहल इसलिए बताइए क्योंकि हम आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं, जो पढ़ने की चाहत में किसी भी रास्ते के जरिए पढ़ना चाहता था.... वह व्यापम का भ्रष्टाचारी बनकर कानून का अपराधी बना हुआ है।
हम मान सकते हैं भ्रष्टाचारियों की जमात में परिपक्व लोग.., प्रशिक्षित भ्रष्टाचारी वर्ग शामिल होता है । उसमें माता पिता से लेकर भ्रष्टाचारी सिस्टम तक है ।किंतु अबोध छात्रों का क्या अपराध है.... जिन्हें भ्रष्टाचार के आंकड़ों ने अपने गिरफ्त में ले लिया। हो सकता है यह बात दिग्विजय सिंह ने राजनीति की शतरंज में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया हो... क्योंकि ऐसा लोग बताते हैं। अमूमन देखा भी गया शतरंज की तरह राजनीतिक को चलाते हैं। उसका परिणाम कुछ भी हो... निजी जीवन को भी उन्होंने इस रूप में डाला।
किंतु जिन भ्रष्टाचारियों की जमात को कच्चे चावल के रूप में तैयार किया गया.., उस सोच को पल्लवित किया गया.. वह सोच व्यापम के रूप में विकसित होकर भारतीय जनता पार्टी के कमल के रूप में खिल गया ।
भ्रष्टाचार राजनीतिक पार्टी को नहीं देखती वह तो एक अमरबेल है किसी भी वृक्ष पर पनप जाती है.... आज राजनीति का लबादा, किसी साधु संत के नकाब से ज्यादा नहीं है ...जो सिद्धांत का ढोंग, पाखंड ओढ़ कर अलग अलग चेहरों के जरिए सत्ता पर कब्जा करती है । और भ्रष्टाचार इनके लिए एक आदर्श जरिया होता है। यही आदर्श जरिया, व्यापम में सु-संगठित तरीके से पनपा और इसे एक बड़ी दुर्घटना मान कर, भलाई माता पिता को उनकी आपराधिक मनोवृत्ति की तरफ बनी व्यवस्था के लिए दोषी माना जा सकता है। कि अपना घर द्वार जमीन जायजात अथवा भ्रष्ट कमाई के जरिए शॉर्टकट तरीका अपनाकर व्यापम घोटाला में शामिल हो गए और अपने बच्चों का भविष्य भ्रष्टाचार की छाया में पाना चाहा.....
किंतु ये बच्चे स्वयं नहीं गए थे...... उन्हें 25 वर्षों की राजनीति ने ले जाकर के भ्रष्टाचार की आग में झोंक दिया था। उसी प्रकार से जैसे पूरा समाज किसी विधवा को पकड़कर चिता की आग में पति के मरने के साथ ही झोंक देता है। सती प्रथा की तरह उसे महिमामंडित करता है ।सती प्रथा इसी प्रकार की व्यवस्था थी जो एक जीवन को मृत्यु देती थी.....।
16 साल का युवा छात्र 25 साल की राजनीति में और उसके समाज के जरिए भ्रष्टाचार की आग में विधवा की तरह झोंक दिया गया ।आज जो भी जेल में बंद हैं या वे जो इस आग में झुलस कर मर गए, जिनकी मौत की जांच भ्रष्टाचारियों ने स्वतंत्र तरीके से नहीं होने दिया या उसे प्रभावित किया या वह यह मौतें 25 वर्ष की भ्रष्ट राजनीति की वजह से कारणों को विलुप्त कर गई हूं ..., इस पूरे सिस्टम में नवोदित-युवा-जीवन छात्रों का कोई अपराध नहीं है.....
लोकतंत्र में न्यायालयों को यह बात कैसे समझ में आएगी कि जिस प्रकार से सती प्रथा पवित्र होने के बावजूद अपराध के लिए आमानवीय कृत्य और समाज की की गई एक बड़ी हत्या थी। उसी प्रकार लोकतंत्र के चारों स्तंभों में विशेषकर न्यायपालिका की जिम्मेदारी या लापरवाही अथवा उसकी देरी ज्यादा जिम्मेदार है । न्यायाधीश बड़ा अपराधी है अगर वह कम समय में न्याय सुनिश्चित कर पाने के रास्ते तय नहीं कर पा रहा है। न्यायपालिका को अपनी जिम्मेदारियों का वहन अब ठीक उसी प्रकार से करना चाहिए जिस प्रकार से अति प्रदूषित हो चुके राम मंदिर बाबरी मस्जिद अयोध्या का विवाद के लिए सुनिश्चित समय तय किए जाते हैं। अथवा यह सोच मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय श्री गोगोई के उस कार्य प्रणाली की तरह पहल में अमल लाना चाहिए जैसे उन्होंने मान लिया जनहित याचिका के जरिए बाल अपराधों को स्वयं क्यों ना उठाया जाए.... क्योंकि यह अति संवेदनशील मामले हैं।
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तो दिग्विजय सिंह को बहुत-बहुत बधाई कि उन्होंने शतरंजी चाल में पवित्र कदम या चाल चली है... यह पहल हो सकती है इसे तत्काल निराकृत करने की जरूरत है और तत्काल कम से कम उन सभी छात्रों को जोकि लोकतंत्र के मर जाने के कारण राष्ट्र समाज मैं विधवा की तरह जेल में बंद है, तत्काल रिहा किया जाना चाहिए इसमें किसी दिग्विजय सिंह का उमा भारती का या शिवराज सिंह का रूप रंग नहीं देखना चाहिए कौन सही या गलत रहा। यह देखना चाहिए कि हम युवाओं की जवानी को विधवाओं की तरह जबरजस्ती भ्रष्टाचार की आग में ना झोंके.....।
कमलनाथ को सती प्रथा अंत करने वाले राजा राममोहन राय की तरह ठोस निर्णय लेने की जरूरत है....