शनिवार, 6 जुलाई 2019

संविधान की चाहत में हमारे वृद्धा आश्रम ( त्रिलोकीनाथ )..................

संविधान की चाहत में हमारे वृद्धा आश्रम 
कलेक्टर दाहिमा का कदम.... देश के लिए मॉडल
आनंद और अध्यात्म मंत्रालय के
 मुख्यालय बन सकते हैं वृद्धा आश्रम....?

 ......................... (  त्रिलोकीनाथ   )....................................

इसमें कोई शक नहीं है वृद्ध आश्रम खोलने के बाद एक संवेदनशील प्रशासन की जो संवेदना बुजुर्गों को चाहिए वह बतौर कलेक्टर शायद सपरिवार किसी भी कलेक्टर ने आगे बढ़कर स्वयं को बुजुर्गों के साथ संवेदना बांटने का काम नहीं किया। वह भी चाहते तो कर सकते थे....., अपनी नियमित दिनचर्या से समय निकालकर ।और यह तब संभव है जब आप दिखावे के लिए ही सही, आंतरिक रूप से यह सोच पाने में समर्थ हो की आप में प्रशासनिक संवेदना की क्षमता जीवित भी है अथवा नहीं ......,? 
हम लोग वाणिज्य शास्त्र के विद्यार्थी थे जिसमें कंपनी की परिभाषा  में उसे एक "कृत्रिम-व्यक्ति" के रूप में भी देखा गया और पैसे को यानी मुद्रा को कृत्रिम-व्यक्ति के खून के संचरण के रूप में देखा गया ।लोकतंत्र के प्रशासन में संवेदना के यही भूमिका है। यदि वह संवेदनशील प्रशासन नहीं है खोखला प्रशासन.... अहम और दंभ का प्रशासन... काफी हद तक दम घोटू प्रशासन बन जाता है।
 आप कह सकते हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां को बेहद संवेदना के साथ मिलते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री निवास में संवेदना के साथ रखते हैं और उसका वह प्रदर्शन भी करते हैं......, ठीक है वे एक प्रशासक भी हैं.....। निजी जीवन में उसका क्या महत्व है वह सार्वजनिक रूूप से महत्वपूर्ण नहीं है...। सार्वजनिक जीवन में यह एक अत्यावश्यक विषय है, यदि प्रशासन संवेदनहीन बनेगा. य दिखेगा, तो लोकतंत्र में महात्मा गांधी की कथनानुसार "अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति की अभिव्यक्ति वह नहीं बन सकता"।
 शहडोल जिला कलेक्टर ललित दाहिमा शायद पहले कलेक्टर हैं। जिन्होंने इस नवाचार का आत्मिक रूप से, उनके साथ मिल बैठकर वृद्धा आश्रम को जानने समझने का प्रयास किया ।उनका यह नीतिगत निर्णय दूरदर्शी सिद्ध होगा.... जिसमें उन्होंने प्रत्येक बुजुर्ग का स्वास्थ्य कार्ड बनाने का काम किया ।यह पहले के लोग भी कर सकते थे... लेकिन नहीं किए ।इसका अर्थ यह नहीं कि वे संवेदनसील नहीं थे, किंतु जब तक संवेदना की पवित्र-मनसा आपको प्रेरित नहीं करते , आप उस विषय-वस्तु का बोध नहीं कर पाते.... जिसकी चाहत विषय-सामग्री को होती है। फिर वृद्धाश्रम तो एक खुली किताब है... हर व्यक्ति की एक अपनी कहानी है.. हर प्रशासक को इसे पढ़ना ही चाहिए ।शायद लोकतंत्र में जीने का अंदाज के कुछ नए आनंद ढूंढ सकें....?
 आनंद से याद आया जब पूरा मंत्रालय ही खुल गया है... इन आश्रमों को क्यों ना मुख्यालय बनाकर, पूरे प्रयोग किए जाएं ...। ताकि हर छोटी मोटी चीज का संवेदना के साथ उपयोग हो। पूर्ण आनंद   ...,  पूर्ण परमानंद के शायद हमारे वृद्ध आश्रम की खुली किताब.., अवसर बन सकें।
 धन्यवाद ललित दाहिमा जी, आप की प्रेरणा से ही शायद, इस विषय के निकट हम जा सके । आशा करनी चाहिए की पूरा प्रदेश में यह मॉडल बने। 
बल्कि पूरे देश में "शहडोल-मॉडल" बनाया जाए और आनंद मंत्रालय का अध्यात्म मंत्रालय का मुख्यालय भी 

1 टिप्पणी:

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...