सोमवार, 29 जुलाई 2019

भ्रष्टाचार को बलिदान हो रहा....? बलिदानियो का जयस्तंभ चौक ( त्रिलोकीनाथ )अथ आदिवासी क्षेत्रे-1


अथ आदिवासी क्षेत्रे-1

 भ्रष्टाचार को बलिदान हो रहा....?
 बलिदानियो का जयस्तंभ चौक

(  त्रिलोकीनाथ )

बेहतर होता कि लोकतंत्र के सभी प्रतिनिधि नव निर्मित हो रहे शहडोल नगर कि विकासशील धारा के सड़ी हुई व्यवस्था ना बन कर एक मजबूत भविष्य का निर्माण करने के बारे में एकमत हो। और प्रत्येक जमीनी विकास के लिए फूंक-फूंक कर कदम रखें। यह बात इसलिए कहीं जा रही है क्योंकि बार-बार उदाहरण सामने आने के बावजूद भी हमारी नपुंसक विचारधारा हमें ठोस निर्णय लेने से डराती है ...? 




कौन नहीं जानता कि कटनी से लेकर के गुमला तक कहीं भी सड़क के टायर कभी इस प्रकार से नहीं फ़ूटते जिस प्रकार नियमित रूप से जय स्तंभ चौक शहडोल में टायर फूट से रहे हैं..... यह स्थान बमबारी का अक्सर जाना पहचाना स्थल बन गया, हमें तब भी दिखा था जब 1998 में हमने तब "स्वतंत्र मत" में एक रिपोर्ट छापी थी विजय स्तंभ चौक यातायात अभियांत्रिकी के विरुद्ध बना हुआ है। इस कारण इस सड़क में दुर्घटना आम हो चली है। और प्रत्येक दुर्घटना के लिए संबंधित निर्माण करता अधिकारी दोषी होना चाहिए। बहरहाल बातें नहीं सुंंनी गये, इसी टायर बम विस्फोट में एक राहगीर की मौत भी हो गई। घायल करने वाली दुर्घटनाएं आम बात है। धारा 144 में शामिल जयस्तंभ चौक क्षेत्र अक्सर बम विस्फोट का अड्डा बन गया ।

 बहरहाल कमिश्नर श्री  जैन ने इसे संज्ञान में लिया जब उन्हें यह बातें प्रकाशित की गई नतीजतन जयस्तंभ चौक का निर्माण करीब 21 वर्ष बाद तय हुआ, स्वाभाविक है निर्माण के लिए कुछ ना कुछ अगल बगल प्रभाव पड़ेगा.. लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई.., कहते हैं जबलपुर के इंजीनियर ने आकर अपनी राय दी....। नतीजतन दबाव में आकर भ्रष्टाचार ने अपने अवसरों का काम करना चालू किया। अब यह बात समझ से बाहर है कि वर्तमान में बन रही जयस्तंभ चौक की सड़क की मोटाई, जिस स्तर की है उससे दोगुनी स्तर पर सड़क निर्माण इसी ठेकेदार द्वारा कराया गया है। फिर अचानक आधी मोटाई की सड़क निर्माण में ठेकेदार को..., य संबंधित इंजीनियर को जयस्तंभ चौक सड़क में गुणवत्ता की गारंटी कहां से मिल गई ....?  यदि आपत्तियां दर्ज थी... तो जमीन की गहराई करके सड़क उसी गुणवत्ता स्तर की क्यों नहीं बनाई जा रही है.....? जिस गुणवत्ता में कमिश्नर ऑफिस के सामने की सड़क बनाई गई।
 फिर यह बात भी सामने आ चुकी है कि कटनी रोड में बनाई गई सड़कें जगह-जगह से टूट रही हैं और खराब हो रही हैं, कारण कुछ भी बताए जाएं किंतु निर्माण कार्य की गुणवत्ता और जयस्तंभ चौक में सड़क की मोटाई से भी दुगने मोटाई वाले सड़क में अगर टूट रही हैं तो जयस्तंभ चौक की सड़क टूट कर नष्ट भ्रष्ट नहीं होगी इसकी कौन गारंटी लेगा.......? याने सड़क निर्माण कर्ता  अपना बिल निकालेगा... पैसा लेगा और भाग जाएगा। अफसर भी, नेता भी अपना अपना  निर्माण के अनुसार  भाग प्राप्त कर चले जाएंगे ।

रह जाएगी शहडोल की जनता, तो इस सड़क से संघर्ष करती रहेगी......  क्योंकि वह अभी जागरुक नहीं है ....और ना ही जागरूकता उसके फितरत में है.... फिर भी जिन अफसरों को नेताओं को अथवा ठेकेदारों को भी शहडोल में रहना है उन्हें तो अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति समझदार और जागरूक होना चाहिए....। क्योंकि उन्हें यहां मरना भी है... और मरने तक कोई उन्हें गाली दे .....श्राप दे..., उससे भयभीत होना ही चाहिए ।

भ्रष्टाचार कहीं भी किया जा सकता है.... लेकिन जयस्तंभ चौक जोकि देश की आजादी के बलिदानयों के नाम पर बनाया गया है। उन्हें अपमानित करने का साहस, खून में क्यों पैदा हो जाता है ......  ? ऐसा करके हम अपने पूर्वजों को भी अपमानित कर रहे हैं.... जिन्होंने देश की आजादी में अहम योगदान दिया था ।जिनके पूर्वजों ने नहीं दिया.   यह नहीं सोचा., उन्हें इस भ्रष्ट व्यवस्था की गुलामी के लिए जरूर बधाई दी जा सकती है।

हालांकि नगर पालिका के जानकार सूत्र स्पष्ट करते हैं कि जिस बजट से कमिश्नर ऑफिस के सामने वाला डबल मजबूती का सड़क निर्माण हुआ है उस बजट से जयस्तंभ चौक का सड़क निर्माण नहीं हो रहा है इसकी लागत भी कोई 4000000 रुपए के आसपास बताई जाती है जिसका काम पेट्रोल पंप के सामने से जनपद सुहागपुर कार्यालय के सामने तक ही होना है और यही कारण है की उच्च स्तर पर मजबूती जयस्तंभ चौक को नहीं मिल पाएगी। जिस स्तर पर मजबूती आगे की सड़क को मिली है यह एक अलग बात है ऐसे मापदंड तय करने वाले अमीर सड़क और गरीब सड़क बनाकर क्या संदेश देते हैं और अगर गरीब सड़क बनी रही है तो फिर उसकी गरीबी की शिकायत हमको क्यों करना चाहिए.....?

 यह एक उदाहरण था.., देखने और समझने का नजरिया था ,विशेष आदिवासी क्षेत्र में, यही दायित्व सभी प्रशासनिक राजनैतिक लोगों का होना चाहिए ।तभी बन रही नई कालोनियों के लिए सुरक्षित पा सुनिश्चित आवास दिए जा सकते हैं ।और यही विकास है..., नहीं तो भ्रष्ट व्यवस्था में "सबका साथ-सबका विकास" हो ही रहा है, शायद यही मंंसा भी है....?

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