अतिक्रमण कारी है कि
मानता नहीं.........
त्रिलोकीनाथ
अतिक्रमणकारियों के खून में है अगर वे अपराध नहीं करते हैं तो उन्हें नींद नहीं आती ....और इसीलिए न सिर्फ जैन धर्मशाला बल्कि कई की बस्ती अपना बाजार बना ली है इन सबके लिए पानी की व्यवस्था, रहने की व्यवस्था हेतु, बोरिंग की गई और भारी मात्रा में पानी निकाला गया।
अब यह अलग बात है कि इसके लिए 15 वर्ष सत्ता में रही हिंदूवादी सरकार जिस की अवधारणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदुत्व के एजेंडे के तहत करता है ,सरकार ने अपने प्रशासनिक अमले को भेजकर सब नाजायज काम होने दिया.... क्योंकि नेताओं को भ्रष्टाचार से अपने सिस्टम को चलाना होता है इसलिए संगठित माफिया के शरण में रहे और इसकी कीमत हजारों वर्षों से अविरल बहती हुई नर्मदा नदी , गर्मी में पहली बार विलुप्त हो गई
याने सूख गई.., यानी , वह जलधारा; जो साल के वृक्षों क्षेत्रीय पर्यावरण और पहाड़ियों के द्वारा संरक्षित होते हुए नर्मदा के रूप में अविरल बहती थी, वह विलुप्त हो गई।
याने ...,सूख गई, याने आर एस एस की हिंदुत्व की सरकार है माफिया को संरक्षित करके नर्मदा नदी की उनके उद्गम स्थल पर हत्या किया, यह हत्या का अपराध है ....कानून इसे कुछ जुर्माना लगाकर जमानत भी कर सकता है।
क्या फर्क पड़ता है यह उस आदत का हिस्सा है जोकि नया गांधी चौराहे में नेमचंद जैन जैसे अतिक्रमणकारियों और उनको पालने पूछने वाला भ्रष्ट लोकतंत्र माफिया नुमा संगठन करता चला आ रहा है। इसलिए फर्क नहीं पड़ता जब नर्मदा नदी की स्रोत को नष्ट करने के लिए जैन माफिया संगठित है । तो नए गांधी चौराहा में कानून और व्यवस्था की क्या औकात है ....
.,बहुत जल्द 560 वर्ग फीट में "स्थगन-हुए-स्थल" पर भव्य शोरूम का उद्घाटन होगा, आशा यह करनी चाहिए कि उसमें कोई ऐसे अधिकारी या न्यायालय के लोग शामिल नहीं होंगे जिन्होंने यहां पर स्थगन आदेश पारित करने का या क्रियान्वित करने का अथवा नेम चंद जैन के अतिक्रमण से मुक्त इस अंश को घोषित करने का काम किया होगा...।
तो यही है व्यवस्था और यही है लोकतंत्र. जो भाजपा की सरकार में r.s.s. से संरक्षित होता है। और कांग्रेस के सरकार में भ्रष्ट-कर्तव्यनिष्ठ नेताओं ।
भैया,जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो उसकी रक्षा कौन करेगा यानी कोई नहीं...... और इसे ही राजकाज बोलते हैं, अब इस राजकाज में नर्मदा नदी खत्म हो जाए या सोन नदी ...,यह लोकतंत्र है क्या फर्क पड़ता है।
हो सकता है इस आलेख को पढ़ने के बाद अधिकारी कर्मचारियों और नगर पालिका न्यायालय में का जमीर जगे, अगर ऐसा होता है तो हमारी शुभकामनाएं ...
मानता नहीं.........
त्रिलोकीनाथ
ऐसा नहीं है यदि प्रशासन चाहे ले और उसकी इच्छा शक्ति हो तो वह अपनी संपत्ति को सुरक्षित नहीं कर सकते किंतु उसकी इच्छाशक्ति को भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के पिताजी जो भोपाल में बैठते हैं और वहां से पूरी व्यवस्था को अपने पैरों के तले दबा कर रखते हैं ऐसे लोग सरकारी संपत्ति को अतिक्रमण करा कर लूटपाट का लोकतंत्र बनाते हैं और इनके लिए यही लोकतंत्र है कानून और व्यवस्था यह अपने पैर की जूती की नोक पर रखते हैं ।
तो बात कर रहे थे....., जो काम शहडोल में भोपाल के संरक्षण में कोई जैन माफिया करता है तो वही काम अमरकंटक में जैन समाज के लोग जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर व्यक्ति शामिल हो सकते हैं.., कथित तौर पर बिना अनुमति के, बिना वन विभाग की अनुमति के, बिना कानूनी औपचारिकताओं को पूरा किए हुए. सिर्फ प्रशासनिक माफिया और बाहरी माफिया के साथ मिलकर अमरकंटक सबसे ऊंची पहाड़ी पर जैन मंदिर स्थापित हो जाता है...? जैन सर्वोदय तीर्थ के नाम पर मंदिर तक तो ठीक है
उसका सम्मान सब को करना चाहिए.., क्योंकि वह धर्म का हिस्सा है, जैन धर्म का प्रतीक। अमरकंटक में हो इसमें किसी को एतराज नहीं। किंतु जैन मुनियों को निस्वार्थ भावना और पूर्ण निष्काम प्रदर्शन के लिए जाना जाता है जिन्हें माया मोह ने अपने जाल में नहीं फंसा रखा उनके नाम पर 2 स्टार स्तर की जैन धर्मशाला और इन सबके लिए एक जैन बस्ती भी उस पहाड़ी पर बसा देना, पूरी जंगल काट कर कब्जा कर लेना, अवैध रूप से कहां तक जायज है...? तो मतलब यह है यह भी नाजायज है.., क्या फर्क पड़ता है नाजायज होना .....अतिक्रमणकारियों के खून में है अगर वे अपराध नहीं करते हैं तो उन्हें नींद नहीं आती ....और इसीलिए न सिर्फ जैन धर्मशाला बल्कि कई की बस्ती अपना बाजार बना ली है इन सबके लिए पानी की व्यवस्था, रहने की व्यवस्था हेतु, बोरिंग की गई और भारी मात्रा में पानी निकाला गया।
अब यह अलग बात है कि इसके लिए 15 वर्ष सत्ता में रही हिंदूवादी सरकार जिस की अवधारणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदुत्व के एजेंडे के तहत करता है ,सरकार ने अपने प्रशासनिक अमले को भेजकर सब नाजायज काम होने दिया.... क्योंकि नेताओं को भ्रष्टाचार से अपने सिस्टम को चलाना होता है इसलिए संगठित माफिया के शरण में रहे और इसकी कीमत हजारों वर्षों से अविरल बहती हुई नर्मदा नदी , गर्मी में पहली बार विलुप्त हो गई
याने सूख गई.., यानी , वह जलधारा; जो साल के वृक्षों क्षेत्रीय पर्यावरण और पहाड़ियों के द्वारा संरक्षित होते हुए नर्मदा के रूप में अविरल बहती थी, वह विलुप्त हो गई।
याने ...,सूख गई, याने आर एस एस की हिंदुत्व की सरकार है माफिया को संरक्षित करके नर्मदा नदी की उनके उद्गम स्थल पर हत्या किया, यह हत्या का अपराध है ....कानून इसे कुछ जुर्माना लगाकर जमानत भी कर सकता है।
क्या फर्क पड़ता है यह उस आदत का हिस्सा है जोकि नया गांधी चौराहे में नेमचंद जैन जैसे अतिक्रमणकारियों और उनको पालने पूछने वाला भ्रष्ट लोकतंत्र माफिया नुमा संगठन करता चला आ रहा है। इसलिए फर्क नहीं पड़ता जब नर्मदा नदी की स्रोत को नष्ट करने के लिए जैन माफिया संगठित है । तो नए गांधी चौराहा में कानून और व्यवस्था की क्या औकात है ....
.,बहुत जल्द 560 वर्ग फीट में "स्थगन-हुए-स्थल" पर भव्य शोरूम का उद्घाटन होगा, आशा यह करनी चाहिए कि उसमें कोई ऐसे अधिकारी या न्यायालय के लोग शामिल नहीं होंगे जिन्होंने यहां पर स्थगन आदेश पारित करने का या क्रियान्वित करने का अथवा नेम चंद जैन के अतिक्रमण से मुक्त इस अंश को घोषित करने का काम किया होगा...।
तो यही है व्यवस्था और यही है लोकतंत्र. जो भाजपा की सरकार में r.s.s. से संरक्षित होता है। और कांग्रेस के सरकार में भ्रष्ट-कर्तव्यनिष्ठ नेताओं ।
भैया,जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो उसकी रक्षा कौन करेगा यानी कोई नहीं...... और इसे ही राजकाज बोलते हैं, अब इस राजकाज में नर्मदा नदी खत्म हो जाए या सोन नदी ...,यह लोकतंत्र है क्या फर्क पड़ता है।
हो सकता है इस आलेख को पढ़ने के बाद अधिकारी कर्मचारियों और नगर पालिका न्यायालय में का जमीर जगे, अगर ऐसा होता है तो हमारी शुभकामनाएं ...
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