शनिवार, 13 जुलाई 2019

अतिक्रमण कारी है कि मानता नहीं......... त्रिलोकीनाथ

अतिक्रमण कारी है कि 
मानता नहीं.........


 त्रिलोकीनाथ






इन्हीं सब को साबित करने के लिए पर्याप्त है शहडोल नगर के मुख्य गांधी चौराहा स्थित  नजूल आराजी खसरा नंबर 119 /120 का अंश भाग 560 वर्ग फीट में चलाया गया मुकदमा । यह मुकदमा शहडोल के नजूल भूमि में जिला न्यायालय में चलाए गए मुकदमे की घोषित आराजी से संबंधित है, जिसमें जिला न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर 560 वर्ग फीट जमीन को अतिक्रमण कारी नेम चंद्र जैन से मुक्त बताया था ।बावजूद इसके, इसी न्यायालय में शहडोल नगर पालिका द्वारा चार मुकदमे नेमचंद जैन के खिलाफ लाए गए तीन अतिक्रमण कारी नेमचंद जैन को आरोपी घोषित करते हुए दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित किया। एक मुकदमा इसी नजूल भूमि में पीपल के वृक्ष को जो करीब 70- 80 वर्ष पुराना रहा होगा नजूल भूमि को हथियाने के लिए कटवा दिया गया और वहां पर अवैध, बिना नगर पालिका की अनुमति के तीन मंजिला भवन बना दिया गया । 
भ्रष्टाचार जिंदाबाद के नारा के तहत वह खुलेआम गांधी चौराहे में पूरी निश्चिंता के साथ अपनी जमानत कराने के बाद शेष भवन को तोड़ते हुए उसके सटर व ताले पुरानी पहचान स्वरूप परिवर्तन करते हुए एक शोरूम वहां बना लिया है और बहुत जल्दी, कहीं ऐसा ना हो किन्ही प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने स्थगन आदेश जारी करने का काम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किया है या दंडात्मक कार्रवाई की है, वही.., इस शोरूम का उद्घाटन करने पहुंच जाएं .. ? क्योंकि यह खुले भ्रष्टाचार का स्वरूप है..., कोई चोरी छिपे नहीं किया, कोई डाका नहीं...,  वह तो सिर्फ सहमति से हुआ भ्रष्टाचार मे संरक्षित अतिक्रमणकारी है। और यही लोकतंत्र दिखता है, यही कारण है कि जो काम नेमचंद जैन शहडोल में किया मुख्य गांधी चौराहे में और क्यों न करें....., पुराने गांधी चौक में सरेआम गांधी जी की मूर्ति को गले से काटकर तोड़ दिया गया....., आज तक अपराधी नहीं पकड़े गए ..,क्योंकि वे गांधी थे .......! 
उसका सम्मान सब को करना चाहिए.., क्योंकि वह धर्म का हिस्सा है, जैन धर्म का प्रतीक। अमरकंटक में हो इसमें किसी को एतराज नहीं। किंतु जैन मुनियों को निस्वार्थ भावना और पूर्ण निष्काम प्रदर्शन के लिए जाना जाता है जिन्हें माया मोह ने अपने जाल में नहीं फंसा रखा उनके नाम पर 2 स्टार स्तर की जैन धर्मशाला और इन सबके लिए एक जैन बस्ती भी उस पहाड़ी पर बसा देना, पूरी जंगल काट कर कब्जा कर लेना, अवैध रूप से कहां तक  जायज है...? तो मतलब यह है  यह भी नाजायज है.., क्या फर्क पड़ता है नाजायज होना .....
अतिक्रमणकारियों के खून में है अगर वे अपराध नहीं करते हैं तो उन्हें नींद नहीं आती ....और इसीलिए न सिर्फ जैन धर्मशाला बल्कि कई की बस्ती अपना बाजार बना ली है इन सबके लिए पानी की व्यवस्था, रहने की व्यवस्था हेतु, बोरिंग की गई और भारी मात्रा में पानी निकाला गया।
 अब यह अलग बात है कि इसके लिए 15 वर्ष सत्ता में रही हिंदूवादी सरकार जिस की अवधारणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदुत्व के एजेंडे के तहत करता है ,सरकार ने अपने प्रशासनिक अमले को भेजकर सब नाजायज काम होने दिया.... क्योंकि नेताओं को भ्रष्टाचार से अपने सिस्टम को चलाना होता है इसलिए संगठित माफिया के शरण में रहे और इसकी कीमत हजारों वर्षों से अविरल बहती हुई नर्मदा नदी , गर्मी में पहली बार विलुप्त हो गई 
याने सूख गई.., यानी , वह जलधारा; जो साल के वृक्षों क्षेत्रीय पर्यावरण और पहाड़ियों के द्वारा संरक्षित होते हुए नर्मदा के रूप में अविरल बहती थी, वह विलुप्त हो गई।
 याने ...,सूख गई, याने आर एस एस की हिंदुत्व की सरकार है माफिया को संरक्षित करके नर्मदा नदी की उनके उद्गम स्थल पर हत्या किया, यह हत्या का अपराध है ....कानून इसे कुछ जुर्माना लगाकर जमानत भी कर सकता है।
 क्या फर्क पड़ता है यह उस आदत का हिस्सा है जोकि नया गांधी चौराहे में नेमचंद जैन जैसे अतिक्रमणकारियों और उनको पालने पूछने वाला भ्रष्ट लोकतंत्र माफिया नुमा संगठन करता चला आ रहा है। इसलिए फर्क नहीं पड़ता जब नर्मदा नदी की स्रोत को नष्ट करने के लिए जैन माफिया संगठित है । तो नए गांधी चौराहा में कानून और व्यवस्था की क्या औकात है ....
.,बहुत जल्द 560 वर्ग फीट में "स्थगन-हुए-स्थल" पर भव्य शोरूम का उद्घाटन होगा, आशा यह करनी चाहिए कि उसमें कोई ऐसे अधिकारी या न्यायालय के लोग शामिल नहीं होंगे जिन्होंने यहां पर स्थगन आदेश पारित करने का या क्रियान्वित करने का अथवा नेम चंद जैन  के अतिक्रमण से मुक्त इस अंश को घोषित करने का काम किया होगा...।
 तो यही है व्यवस्था और यही है लोकतंत्र. जो भाजपा की सरकार में r.s.s. से संरक्षित होता है। और कांग्रेस के सरकार में भ्रष्ट-कर्तव्यनिष्ठ नेताओं ।
 भैया,जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो उसकी रक्षा कौन करेगा यानी कोई नहीं...... और इसे ही राजकाज बोलते हैं, अब इस राजकाज में नर्मदा नदी खत्म हो जाए या सोन नदी ...,यह लोकतंत्र है क्या फर्क पड़ता है।
 हो सकता है इस आलेख को पढ़ने के बाद अधिकारी कर्मचारियों और नगर पालिका न्यायालय में का जमीर जगे, अगर ऐसा होता है तो हमारी शुभकामनाएं ...

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