सोमवार, 28 जनवरी 2019

जॉर्ज फर्नांडीज एक प्रेरणादायक ऊर्जावान संग्रह थे : त्रिलोकीनाथ


जॉर्जफर्नांडीज एक प्रेरणादायक ऊर्जावान संग्रह थे। 


George Fernandis at the
time of emergency
   ==================त्रिलोकीनाथ==================

आज सुबह 10 बजे जब मैं अपनी मा को तेल-मालिश कर रहा था, खबर बेटे शुभांश ने बताया जॉर्जफर्नांडीज का निधन हो गया है. मेरी माता ने भी सुना तो काफी दुखी हुई, दरअसल वे अक्सर मुझसे पूछती रहती, "ना रे.., जारे-फन्नारे(जॉर्ज फर्नांडीज ) का अ-वै जियत  है..?" यानी जॉर्ज फर्नांडीज अभी भी जीवित है, क्योंकि शायद जिन बड़े नेताओं का मेरे घर में अक्सर पिताजी भोलाराम जी गर्ग के रहते आना-जाना लगा रहता था, उनमें मेरी माता श्रीमती बैजंतीदेवी (92) कम लोगों को याद करती थी. जॉर्ज फर्नांडिस उनकी स्मृति चित्र पटल पर छाए रहे. मुझे भी याद है कि घर के आंगन में, खाट में जॉर्जफर्नांडीज भोजन करने के बाद बैठे हुए कार्यकर्ताओं से बातचीत करते. तब मैं बहुत छोटा था.
 1994 में विधानसभा चुनाव को कवरेज के दौरान कांग्रेस के संपर्क में आया, क्योंकि कांग्रेस ऑब्जर्वर पवनसिंह घाटोवर और चंद्रकांता दायमा मुझे प्रो-कांग्रेश विचारधारा का माना तथा कांग्रेस के साथ काम करने की राय दी. तब सुशीलकुमार शिंदे प्रदेश के प्रभारी थे, उन्होंने भी दिल्ली में अपने बंगले पर मुझे कांग्रेस के साथ काम करने का प्रोत्साहन किया. किंतु जल्द ही मैं समझ गया कि तत्कालीन कांग्रेश वह नहीं है जो देश की आजादी के दौर में जागरूक रही. राजनीतिक पृष्ठभूमि का होने के कारण राजनीतिक उत्साह व हमारी समाजवादी पृष्ठभूमि के जॉर्ज फर्नांडीज के नजदीक आ गया. उन्होंने अपने साथ काम करने को प्रोत्साहित किया. समता पार्टी में राष्ट्रीयकार्यकारिणी सदस्य बनाए जाने कि नजदीकी के कारण मैं जॉर्जसाहब के संपर्क में रहा.
George Fernandis at Shahdol
 वे राजनीतिक संत थे. डॉ राममनोहर लोहिया की सोच के बाद, समाजवाद किसी विचारधारा में वर्तमान में कैसे जीवित रहा यह जॉर्ज फर्नांडीज के संपर्क और सानिध्य में होने के कारण देखने को मिला. राजकोट के सम्मेलन में जब अवसर मिला तो भीड़ के कारण वे मंच से नीचे उतरने वाली सीढ़ी पर ही जमीन पर बैठ गए, ताकि बाकी समाजवादी भी उनके साथ बैठ सकें. तब वे देश के रक्षा मंत्री थे. मैं ठीक उनके पास नीचे की सीडी में बैठा था. मैंने उन्हें टटोलने के लिए उनके घुटने में हाथ रखा, उन्होंने मुझे देखा, मेरे शरीर में अजीब रोमांच हो गया, जैसे किसी बड़ी ऊर्जा ने मुझे देखा. वह राजनीतिक रूप से सिद्ध संत थे, यह मुझे आभास हुआ.
 उसके बाद समतापार्टी का पतन और जैसा कि राजनीति में धोखाधड़ी-विश्वासघात,कूटनीति की परिभाषा में समझे जाते हैं हुआ. वे शायद इन्हीं सब के कारण भूल जाने की बीमारी से प्रभावित हो गए और लंबे समय से बीमार थे.
न भूतो न भविष्यति
21वीं सदी में अपनी छोटी समझ से अगर परिभाषित करता हूं तो दुनिया का समाजवाद का सबसे बड़ा नेता भारत  ने खो दिया है. समाजवादी नेता जॉर्जफर्नांडीज का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से बड़ी क्षति है. और उसे ही मेरी माता श्रीमती बैजंतीदेवी, जब चर्चा कर रही थी; तो परिभाषित कर रही थी. कि वे किस प्रकार से एक पल में ही जन-जन के नेता बन जाते थे. जॉर्जफर्नांडीज एक प्रेरणादायक ऊर्जावान संग्रह थे.
George Fernandis on Pokhran Site 
 संसद को बमविस्फोट से उड़ाने के आरोप लगने वाले जॉर्जफर्नाडिस ; भारतवर्ष को मजबूत दुनिया की ताकत के रूप में स्थापित करने के लिए पोखरण परमाणु विस्फोट का बड़ा नायक माना जाएगा. उन्होंने अपनी कुशल राजनीतिक प्रणाली से या कहें समाजवादी प्रणाली से प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व का पूरा उपयोग किया और परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में ताकतवर देश के रूप में स्थापित करने के लिए दुनिया में भारत का परचम लहराया. बावजूद इसके परमाणु संपन्न कोई पांच देश दुनिया को अपनी मुट्ठी में बंधा न देख सकें , दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को आखिर यह अधिकार सुरक्षित करने का तो दावा बनता ही था. की भारत एक सर्वशक्तिमान परमाणु संपन्न देश है. और उसकी घोषणा पर विस्पोट ने मोहर लगाया था . ऐसे थे समाजवादी नेता जॉर्ज साहब, उनकी गिनती दुनिया के समाजवादी नेताओं में हमेशा होती रहेगी और हम जैसे लोगों के दिलों में वह हमेशा बने रहेंगे. इसलिए भी कि भारत ऐसे ही राजनीतिक संतो के भरोसे आगे बढ़ रहा है.
हालांकि आलोचक उन्हें तमाम प्रकार से आलोचना का केंद्र बनाते हैं, किंतु खासतौर से आर एस एस के नेता अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व को स्वीकारने की आलोचना के लिए. किंतु राजकोट सम्मेलन में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था की आप सब मुझ पर आरोप लगाते हैं कि मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ हो लिया किंतु क्या आपको मालूम है कि भारत की सबसे बड़ी अनुशासनिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काम कर रहा है और यदि आप सबको लगता है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता गलत दिशा में काम कर रहा है या वह गलत है, तो क्या उसे ठीक करने के लिए हम उसके पास जाकर, उन्हें समझा नहीं सकते...? कि देश की राष्ट्रीय मुख्यधारा में कैसे चले.. आप क्या चाहते हैं कि क्या एक टुकड़ा भारत के अंदर और करने का काम हो...?” शायद वे आशंकित थे आर एस एस सही दिशा में काम नहीं कर रहा...? किंतु उनके इन प्रयासों को इसके लिए वे वियतनाम और अमेरिका के संबंधों का हवाला भी देते, कि किस प्रकार से वियतनाम के बड़े दुश्मन से विकास के लिए उनकी दोस्ती हो गई . जहां राष्ट्रीय हित का, राष्ट्रीय एकता की सोच की दूरदर्शी परिणाम देख रहे हो वहां फर्नांडीस हर प्रकार का जोखिम उठाने को तैयार थे...? और हम भी सहमत हुए, कि हां जॉर्ज साहब सही कह रहे हैं. आखिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी भारत के ही लोग हैं हम उनसे असहमत हो सकते हैं किंतु उनके साथ काम ना कर सकें, यह अपने आप को धोखा देना जैसा है. बाकी जिस को धोखा देना है, विश्वासघात करना है.. वह सेना के अंदर घुसकर.. प्रधानमंत्री भवन के अंदर घुसकर प्रधानमंत्री की हत्या भी करता है... इसलिए जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा. और सुधार भी लाने पड़ेंगे.

 इसलिए जॉर्ज फर्नाडीज हमेशा मेरे दिल और दिमाग में जगह बना पाए. मेरे अग्रज साथी सुरेंद्र शर्मा के घर सतना में जॉर्जफर्नांडिस का घरेलू रिश्ता उनके पिता श्री मुरलीधर शर्मा जी की विरासत के रूप में रहा, सुरेंद्र भाई ने कहा कि जब तक जॉर्ज फर्नांडिस है तब तक हमारी डोर समाजवाद से जॉर्ज के विचारों से जुड़ी रहनी चाहिए. जो डॉक्टर राममनोहर लोहिया के वैश्विक समाजवाद की डोर से जुड़ती है. और इस कारण हम उनसे लगातार संपर्क में रहे. अब यह एक अलग बात है किसी समाजवाद को हाईजैक करने वाले तमाम नेताओं ने जॉर्जसाहब को जातिगत तुष्टीकरण की राजनीति और आरक्षण के विशेष अवसर के जरिए दलित उत्थान का सपना देखने के विशेष अवसरों का दुरुपयोग, जातिगत वोट की राजनीति में बदल चुकी, आरक्षण की व्यवस्था के कारण कई भीतर घाट जवाब के साथ हुए उन्होंने जिन्हें बढ़ाया वहीं समाजवाद को सीमित करनेजिस कारण जॉर्ज फर्नांडीज के दिल और दिमाग में आंतरिक विश्वासघात उनकी बीमारी के रूप में शायद बदल गया..? और आज सुबह 88 वर्ष की उम्र पार करने के बाद जॉर्ज दुनिया से विदा ली. मेरी परम श्रद्धांजलि ऐसे राजनीतिक संत के लिए जिन्होंने अपने लिए कुछ नहीं सोचा, देश-दुनिया और राष्ट्रहित में समर्पित होकर राजनीति किया. यह हमेशा-हमेशा के लिए भारत के युवाओं को प्रेरणा देती रहेगी. जो राष्ट्रीय हित में अपने सरोकार को जोड़ने के लिए कुछ करने की सोच सकते हैं. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.

" व्हाट्सएप चैटिंग" में पकड़ा गया एक आरोपी..

    " व्हाट्सएप चैटिंग"  में  पकड़ा गया  एक आरोपी.. 
 *  पुलिस कर रही है  गहन छानबीन। 
  *  जल्द ही  दूध का दूध और पानी का पानी होने की संभावना। 
  *  पकड़ा गया आरोपी  कथित तौर पर अधिवक्ता..?

                   ***शहडोल पुलिस ,भारत के केंद्र बिंदु में **
                                            (  त्रिलोकीनाथ   )         
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 जनवरी मध्य में तथाकथित "शहडोल के कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर के बीच व्हाट्सएप चैटिंग" के  मामले ने  शहडोल ही नहीं, मध्यप्रदेश की राजनीति को; या थोड़ा और ऊपर जाएं देश की राजनीति को गर्म कर दिया था. कि "ऐसा भी होता है....?" बात आई-गई हो चुकी डिप्टी कलेक्टर पूजा तिवारी ने  थाने में रिपोर्ट कर दी, कि कुछ गड़बड़ है, जांच की जाए ?
 हालांकि शहडोल के तीनों  विधानसभा सीट गवा चुकी कांग्रेस पार्टी ने चैटिंग के मामले को कुछ इस अंदाज में लिया की "भल मारे , मोही रोय का रहा.."  यानी ठीक मारा मैं रोना ही चाहता था , क्योंकि 3-3 सीट हार चुकी कांग्रेस पार्टी ने अभी तक गुहार मार कर रोया नहीं था | यह मामला आते ही की कथित तौर पर कलेक्टर शहडोल ने षड्यंत्र करके भाजपा के पक्ष में विधानसभा चुनाव के लिए वातावरण बनाया व काम किया तथा  इस कारण कांग्रेस चुनाव हार गई और एक नहीं कांग्रेस के एक ही गुट के दो टुकड़ों ने अलग-अलग पत्रकार वार्ता करके विंध्य-प्रदेश के हारे हुए नेता अजय सिंह के प्रति निष्ठा दिखाते हुए हार का ठीकरा कलेक्टर शहडोल के सिर पर फोड़ना चाहा ,किंतु सांच को आंच क्या  के अंदाज पर शहडोल का प्रशासन सकपकाया जरूर था और अपने आत्मविश्वास को जताते हुए उसने रिपोर्ट भी कर दिया था, कि हां गड़बड़ हुआ है... किंतु यह व्हाट्सएप मैसेज कोई फेक न्यूज़ है..? और  एक अखबार के अनुसार 26 जनवरी को सुखद खबर उड़ी की व्हाट्सएप चैटिंग का मामला एक फेक न्यूज़ थी..? जिस पर जांच चल रही है और शहडोल प्रशासन को क्लीन चिट मिल चुकी है |
     अपन तो नहीं जानते अंदर की क्या बात है, तो अखबार की माने तो विश्वास झूठा ही सही करना ही चाहिए.. आज उसी खबर को आगे बढ़ाते हुए दबे पांव यह खबर आई कि करीब दो-तीन दिन पहले एक व्यक्ति को पुलिस ने गिरफ्तार कर चैटिंग मामले की जांच कर रहे हैं.. कहा तो यह भी जा रहा है . जिसे शहडोल पुलिस  ने पकड़ कर रखा है वह एक कानूनविद भी है.. तो क्या एक कानून अधिवक्ता, गैर कानूनी कार्य कर रहा था...?, ज्यादा खुली बातें सामने तो नहीं आए किंतु उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही पूरे मामले का खुलासा शहडोल पुलिस कर देगी.
   बताते चलें की 18 जनवरी को चर्चा में आया यह पूरा घटनाक्रम 28 जनवरी तक कुछ पिक्चर यानी षड्यंत्र को साफ करता दिखाई दे रहा है. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि शहडोल पुलिस एक नजर से देखा जाए तो पूरे भारत के केंद्र बिंदु में है, जो अफवाह ब्रिटेन में बैठकर  सैयद सूजा ने बकायदा  पत्रकार वार्ता करके दवा ठोकते हुए उसे सही ठहराने का काम किया कि भारत की ईवीएम मशीन को हैक किया...? और चुनाव को प्रभावित करने का दावा भी किया, उसने तो यह भी दावा किया कि इस मामले से जुड़े हुए करीब 9- 10 लोगों की भारत में हत्या भी हो गई है..?
 तो अगर तथाकथित "शहडोल के कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर के बीच व्हाट्सएप चैटिंग"मामला किसी सच्चाई की धरातल को छूता भी है तो यह ब्रिटेन में सैयद सूजा की पत्रकार वार्ता को प्रमाणित करेगा.. इसलिए भी इस चैटिंग की बाल की खाल निकालते हुए शहडोल की पुलिस को स्वयं को अपनी क्षमता के साथ प्रमाणित करने का काम करना होगा. देखना होगा कि देश के लोकतंत्र के चौकीदारी की जिम्मेदारी अगर शहडोल की पुलिस को मिली है तो वह कितने सफलता के साथ अंजाम को आगाज दे पाती है फिलहाल तो सूत्र. मिले हैं..?
 समझा जाना चाहिए, ईश्वर यह भी करें कि; यह फेक न्यूज़ साबित हो. 

रायडू किए गए निलंबित। जानिए क्या है कारण?

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने आज घोषणा की कि अंबाती रायडू को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में गेंदबाजी से निलंबित कर दिया गया है।

खिलाड़ी को संदिग्ध कावाई के लिए सूचित किए जाने के 14 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर अपने गेंदबाजी एक्शन का परीक्षण करने के लिए नहीं चुना जाता है, और इसलिए उसे आईसीसी नियमों के खंड 4.2 के अनुसार तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
 परीक्षण होने तक निलंबन यथावत रहेगा, और यह प्रदर्शित कर सकता है कि वह कानूनी कार्रवाई के साथ गेंदबाजी करने में सक्षम है।
33 वर्षीय भारत के खिलाड़ी को 13 जनवरी को सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी श्रृंखला के पहले एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान संदिग्ध कार्रवाई के लिए सूचित किया गया था।
हालांकि, विनियमों के अनुच्छेद 11.5 के अनुसार और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सहमति से, रायडू को बीसीसीआई के तत्वावधान में खेले जाने वाले घरेलू क्रिकेट कार्यक्रमों में गेंदबाजी करने की अनुमति दी जा सकती है।

रविवार, 27 जनवरी 2019

रद्द हुया राज्यपाल का कार्यक्रम, आनंदी बेन पटेल से जुड़ी कुछ खास बाते जानिए......

              । रद्द हुया राज्यपाल का कार्यक्रम ।

  • किन्ही कारण से रद्द हुया राज्यपाल का कार्यक्रम। 
  • आने वाली थी शहडोल। 
  • मनानीया आनंदी बेन पटेल का था प्रथम नगर आगमन।
  • 700 लड़कों के बीच वे अकेले लड़की थीं 
  • विद्यालीय शिक्षा के दौरान एथलेटिक्स में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए उन्हें "बीर वाला" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  •   IGNTU और शहडोल मे था कार्यक्रम।               

                                    आनंदी बेन पटेल से जुड़ी कुछ खास बाते 

आनंदीबेन पटेल का जन्म मेहसाणा जिले के विजापुर तालुका के खरोद गांव में, 21 नवम्बर 1941 को एक पाटीदार परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम आनंदी बेन जेठाभाई पटेल है। उनके पिता जेठाभाई पटेल एक गांधीवादी नेता थे। उन्हें कई बार लोगों ने गाँव से निकाल दिया था क्योंकि वह ऊंच-नीच और जातीय भेदभाव को मिटाने की बात करते थे। आनंदी के ऊपर अपने पिता का भरपूर प्रभाव पड़ा। उनके आदर्श भी उनके पिता हीं हैं। उस समय जब कोई लड़कियों को स्कूल नहीं भेजता था उन्होंने मम्मी को हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया। उन्हीं की तरह आनंदीबेन भी किसी में भेदभाव नहीं रखती और पैसे खाने वाले और चापलूस लोगों को अपने करीब नहीं आने देतीं। उन्होंने कन्या विद्यालय में चतुर्थ कक्षा तक की पढ़ाई की। तत्पश्चात उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए ब्याज स्कूल में भर्ती कराया गया, जहां 700 लड़कों के बीच वे अकेले लड़की थीं। आठवीं कक्षा में उनका दाखिला विसनगर के नूतन सर्व विद्यालय में कराया गया। विद्यालीय शिक्षा के दौरान एथलेटिक्स में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए उन्हें "बीर वाला" पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1960 में उन्होंने विसनगर के भीलवाई कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां पूरे कॉलेज में प्रथम वर्ष विज्ञान में वे एकमात्र लड़की थी। उन्होंने यहाँ से विज्ञान स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्नातक करने के बाद उन्होने पहली नौकरी के रूप में महिलाओं के उत्थान के लिए संचालित महिला विकास गृह में शामिल हो गईं, जहां उन्होने 50 से अधिक विधवाओं के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत की। वे अपने पति मफ़तलाल पटेल के साथ 1965 में अहमदाबाद आ गईं, जहां उन्होने विज्ञान विषय के साथ स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। शिक्षा क्षेत्र में अभिरुचि के कारण उन्होने यही से एम॰एड॰ की भी पढ़ाई पूरी की और 1970 में प्राथमिक शिक्षक के रूप में अहमदाबाद के मोहनीबा कन्या विद्यालय में अध्यापन कार्य में संलग्न हो गईं। वे इस विद्यालय की पूर्व प्रधानाचार्या रह चुकी हैं।
                                                                                                                          Source: wikipedia
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गुरुवार, 24 जनवरी 2019

व्यापम-घोटाला स्थापित भ्रष्टाचार का स्ट्रक्चर




पंचायत शिक्षाकर्मी भर्ती का परिपक्व रूप , व्यापम-घोटाला स्थापित भ्रष्टाचार का स्ट्रक्चर



शहडोल: वैसे तो यह मामला दिग्विजय सिंह के शासनकाल का है, जो कांग्रेसपार्टी के मुख्यमंत्री थे किंतु जिला पंचायत शहडोल में शिक्षाकर्मी भर्ती अगर कच्चे चावल के रूप में परिपक्व हो रहा था तो व्यापम घोटाला मध्यप्रदेश शासन में स्थापित भ्रष्टाचार का स्ट्रक्चर जैसा बन कर सामने आया. और जब करीब आधा सैकड़ा लोग मर गए तथा सैकड़ों की, बल्कि हजारों की संख्या में मध्यप्रदेश के छात्र-छात्राएं और उनका परिवार भ्रष्टाचार में रोजगार की संभावना के अवसर की तलाश में कानूनी दांवपेच में कई लोग जेल में हैं, तो कई लोग बाहर किसी ना किसी के संरक्षण में दबीकुचली जिंदगी जीने को विवश है. भाजपा के तो एक मंत्री ही कई अफसरों के साथ जेल में भी रहे. शहडोल के पुष्पराजगढ़ विधानसभा के विधायक फुन्देलाल अपने बच्चे के मामले में व्यापमं के आरोपी व्यक्तियों में एक हैं. और शायद उनका मंत्री पद जो संभावित था, इसी कारण छिन गया.
बहरहाल बावजूद इसके भी पारदर्शिता के मामले में दो दशक होने के  शहडोल जिला पंचायत के शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार का मामला इस कदर गंभीर हो चला है कि अब उसकी पूरी की पूरे दस्तावेज गायब कर दिए गए हैं. यह बात जिलापंचायत के ही लोकसूचना अधिकारी ने मध्यप्रदेश सूचनाआयुक्त को जानकारी देते हुए बताएं. आश्चर्य है जो कार्य जिलापंचायत शहडोल को स्वयं संज्ञान लेकर करना चाहिए था वह मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त के निर्देशों के बावजूद भी बार-बार कहने पर भी जिलापंचायत शहडोल संबंधित दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से हिचक रहा है. शायद उसे मालूम है कि शिक्षाकर्मी भर्ती भ्रष्टाचार में न सिर्फ नेता बल्कि आईएएस अफसर भी लपेटे में आ सकते हैं और इसी कारण पूरा का पूरा दस्तावेज गायब कर दिया जैसा है. पहले तो यह बनाया जा रहा था की क्योंकि 20 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं इसलिए सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता किंतु मध्यप्रदेश उच्चन्यायालय के हस्तक्षेप के बाद, निर्देश पर समय अवधि में सूचना सामग्री देने की बाध्यता के चलते यह बात उजागर हुई कि वास्तव में शिक्षाकर्मी भर्ती के दस्तावेज अफसर और नेताओं ने मिलकर गायब करा दिया है..?
 वास्तव में यदि इसी प्रकार से लोकतंत्र चलता रहा जो प्रकट होकर जो परिपक्व हो कर व्यापम घोटाले के रूप में सामने आया और अभी तक जिसमें कोई भी अपराधी बड़ा अपराधी खासतौर से जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व का जिम्मेदार मंत्री अथवा मुख्यमंत्री स्तर का व्यक्ति जेल नहीं गया है. यह सिद्ध होता है कि किस प्रकार से नूरा-कुश्ती करते हुए लोकतंत्र के खेल को कांग्रेस और भाजपा के नेता मिलकर खेलते हैं...? और शायद यही लोकतंत्र है, मध्यप्रदेश में शायद यही लोकतंत्र चल रहा है.. अन्यथा कोई कारण नहीं एक छोटा सा भी दागदार व्यक्ति राजनीति में तटस्थ रखा जाना चाहिए.
जिला पंचायत में 1998 को की गई शिक्षा कर्मी भर्ती से संबंधित फाइलों के गायब होने का मामला अब तूल पकड़ता नजर आ रहा है क्योंकि मामले के लोक सूचना अधिकारी पी सातपुते को अंततः मध्यप्रदेश  सूचना आयुक्त ने दंड निर्धारित करने की अंतिम  चेतावनी भी दे दी है .शिक्षाकर्मी भर्ती मामले में सूचना आयुक्त अपनी नियमित सुनवाई करते हुए कहते हैंलापरवाह लोक सूचना अधिकारी  सातपुते को दी चेतावनी
आरटीआई-कार्यकर्ता नरेंद्रसिंह गहरवार की अपील पर हुई कड़ी कार्यवाही

तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी पी सातपुते ने अपने बचाव में कोई भी तथ्य प्रस्तुत नहीं किए हैं. आवेदन अवधि में अभिलेख गुमने की सूचना उन्होंने अपीलार्थी यानी नरेंद्र सिंह गहरवार को दी है अथवा नहीं. अतः तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी द्वारा जारी कारण बताओ सूचना पत्र पर कार्यवाही लंबित रखते हुए दिए गए निर्देश के पालन उपरांत लोकसूचना अधिकारी को पक्ष प्रस्तुत करने हेतु दिनांक 26 .2.2019 को सुनवाई नीयत की जाती है. यह सुनवाई दिनांक को तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी उपस्थित होकर प्रस्तुत नहीं करते हैं तो यह मानते हुए कि इस संबंध में उन्हें कुछ नहीं कहना है, आयोग शस्ति आरोपित करते हुए करने को स्वतंत्र होगा.”
ज्ञातव्य है 1998 में शिक्षाकर्मी भर्ती की प्रक्रिया तत्कालीन सीईओ जिलापंचायत संजय दुबे ने के कार्यकाल में हुई थी. तब जिलापंचायत उपाध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह शिक्षा समिति के सभापति थे जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता हैं. 15 साल भाजपा की सत्ता होने के कारण यह मामला दवा चला आ रहा था. चोर की दाढ़ी में तिनका की भांति जब सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत इसकी जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता नरेंद्रसिंह गहरवार ने चाही, तब यह बात उभरकर आई कि वास्तव में शिक्षाकर्मी भर्ती के भ्रष्टाचार से संबंधित नियुक्ति प्रक्रिया की फाइलें ही जिला पंचायत से गायब हैं.
राज्य सूचना आयुक्त विजयमनोहर तिवारी ने आदेश पारित करते हुए कहां है की अपील आरती नरेंद्र सिंह गहरवार को उपलब्ध दस्तावेजों का अवलोकन कराया जाए श्री तिवारी के अनुसार शहडोल जिला पंचायत सूचना अधिकारी ने बताया कि मुख्यकार्यपालन अधिकारी द्वारा संबंधित शाखा में तथा समस्त शाखा प्रभारी लिपको को शिक्षाकर्मी भर्ती संबंधी अभिलेख एवं प्रकोष्ठ शाखा का प्रभाव लेने एवं सौंपने संबंधित सूचना दिनांक 3 -9- 2018 तक सत्यापित प्रस्तुत करने की हेतु संबंधित शाखा प्रभारियों से प्राप्त होने वाली सूची का परीक्षण एवं संबंधित नस्ती जिसके अभिरक्षा से गुमी है, जिम्मेदारी तय करने हेतु समिति का गठन किया गया. गठित समिति के माध्यम से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा लिखकर सूचित किया गया है कि प्रार्थी नरेंद्रसिंह द्वारा चाही गई जानकारी जांचसमिति के पंचनामा समिति द्वारा सूचीबद्ध लोगों का अवलोकन करा कर प्रदान की जा सकती है. उन्होंने यह भी बताया कि अपीलार्थी के आवेदन के बिंदु क्रमांक 8 की जानकारी अभी प्राप्त नहीं हुई है.
 आयोग ने लोकसूचना अधिकारी शहडोल जिला पंचायत को आदेश किया है कि अपीलार्थी नरेंद्रसिंह गहरवार को उपलब्ध अभिलेखों का  निशुल्क अवलोकन करावे एवं चिन्हित अभिलेखों को निशुल्क प्रदान करें.

पारदर्शिता  में राज्य सूचना आयुक्त ने अपनाया खड़कपुर कड़क रुख ,
कहा, गुमशुदा फाइलों पर करावें एफ आई आर
विजय मनोहर तिवारी राज्य सूचना आयुक्त ने शहडोल जिला पंचायत में शिक्षाकर्मी भर्ती1998 संबंधी दस्तावेजों के गायब होने पर  कड़क रूप रुख अपनाया कथा जिला पंचायत शहडोल को आदेशित किया है कि वे साथ ही गुमशुदा अभिलेखों का विधिवत एफ आई आर दर्ज कराते हुए उसकी प्रति अपीलार्थी नरेंद्रसिंह गहरवार को भेजते हुए पालन प्रतिवेदन आयोग में प्रस्तुत करें .
ज्ञातव्य है कि आरटीआई कार्यकर्ता  लंबी लड़ाई हासिल करके अंततः मामले को उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्देश पर सूचना सामग्री हासिल करने के लिए कार्यवाही करवाई थी. जिसके लिए उन्हें तमाम प्रकार से परेशानियों का सामना करना पड़ा . बावजूद इसके अभी यह  पारदर्शिता के मामले में अब यह लड़ाई कितनी लंबी खींचे की कुछ कहा नहीं जा सकता. क्योंकि माना जाता है की 1998 में शिक्षाकर्मी भर्ती में शहडोल जिला पंचायत में जमकर भ्रष्टाचार हुआ था और 50000 से 100000 रुपये तक शिक्षाकर्मी भर्ती के पद लेन-देन हुए थे. नियुक्ति प्रक्रिया के दस्तावेजों में भारी हेरफेर की गई थी और इसके लिए तत्कालीन आईएएस अधिकारी संजय दुबे काम करते प्रतीत होते हैं देखना होगा कि भाजपा शासन मैं संरक्षण प्राप्त डीपीसी को कांग्रेस शासन में भी इतना सहयोग मिल पाता है या नहीं..? यह बात शहडोल जिला पंचायत में शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार से प्रमाणित होगी.
स्मरणीय है कि जिला पंचायत शहडोल के वर्तमान अध्यक्ष नरेंद्रसिंह मरावी सितंबर माह में धरना प्रदर्शन देखकर  डीपीसी के भ्रष्टाचार को लेकर बड़ा आंदोलन किया था. जिसमें अंततः एक जांच कमेटी बनाई गई जिसका प्रतिवेदन जिला प्रशासन के पास कार्यवाही हेतु लंबित है यह अलग बात है की जांच कमिटी ने शिक्षाकर्मी भर्ती 1998 के प्रकरण और गायब दस्तावेजों के मामले में क्या कार्यवाही की है अथवा नहीं..?
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बुधवार, 23 जनवरी 2019

तूने मारी एंट्री और दिल में बजी घंटी यार ...... : त्रिलोकीनाथ



                                             

  “प्रियंकागांधी कमिंग एंड मोदी-साह गोइंग.......
==========================(त्रिलोकीनाथ )===================================


जिस प्रकार से फिल्म इंडस्ट्री में शोले की लोकप्रियता के शिखर को कोई छू नहीं पाया.., जैसे शोले फिल्म
इंडस्ट्री की भगवान हो गई
. इसी फिल्म का अंश भाग है, जिसमें धर्मेंद्र या बीरू शराब पीकर पानी की टंकी में चले जाते हैं और चिल्ला कर भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं ताकि बसंती यने हेमामालिनी से कोई उनकी शादी करा दे.. उसकी शुरुआत में डायलॉग हैजिसमें वीरू कहता है “..पुलिस, कमिंग - बुढ़िया गोइंग, जेल..” कुछ उसी अंदाज में “..प्रियंका गांधी कमिंग एंड मोदी साह गोइंग....... की तरह गांधी परिवार की विरासत को बढ़ाते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने घोषित तौर पर राजनीति में एंट्री किया है. और कांग्रेस का दावा या प्रायोजित किया गया है कि लोगों के दिल में राजनैतिक घंटी बज गई
है
’.




कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी की एंट्री देश की राजनीति के पूर्वी उत्तर प्रभार के साथ कराई है, जिसमें महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी का संसदीय क्षेत्र भी है...?
1924 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सृजन भारतीयजनता पार्टी को लोकतंत्र में अपना ब्रांड-एंबेस्डर बनाने के लिए करीब 3000 करोड़ रुपया खर्च करके सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति मध्यप्रदेश के नर्मदानदी को ले जाकर गुजरात में उसके पीछे भी बनाना पड़ा.  वर्तमान भाजपा के लोकतंत्र अज्ञात रूप से अदृश्य रूप से महात्मागांधी और दृश्य रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन की मूर्ति गुजरात में बनाई गई है. वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक विचारधारा भी है, जिस पर आरोप भी लगते रहे हैं उसी विचारधारा के कारण महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई और भाजपा की सरकार में हत्यारे नाथूराम गोडसे की मूर्ति का अनावरण भी हुआ जिस का प्रचार प्रसार भी, तथाकथित तौर पर उसे नजरबंद भी करने का काम हुआ. इस तरह भाजपा का लोकतंत्र उधार के मॉडल पर अपनी सच्चाई के साथ कभी उभरता तो कभी डूबता रहा है..
 बहरहाल वर्तमान में जबकि 3 राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार के कांग्रेस अध्यक्ष राहुलगांधी के नेतृत्व में बन गई है तो तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद स्थापित हो गया है नेहरू -गांधी का परिवार ही लोकतंत्र का जैविक मॉडल है. और यही जैविक लोकतांत्रिक ब्रांड-एंबेस्डर है. अब भाजपा चाहती है कि दागदार प्रचारित कर लोकतंत्र के ब्रांड-एंबेस्डर को ब्लॉक कर दिया जाए. लगे हाथ तथाकथित कांग्रेस मुक्त भारत का ब्रांड भी स्थापित कर दिया जाए.
 तथाकथित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि भारतीयजनता पार्टी किंतु वास्तव में गुजराती नरेंद्रमोदी और अमित शाह के सपनों की का लोकतंत्र ही वास्तविक लोकतंत्र है, एक तरफ तो यह दोनों गुजराती भाई आरोप लगाते हैं यह गांधी परिवार के बिना कांग्रेस चल ही नहीं सकता तो दूसरी तरफ तथाकथित हिंदुत्व के ब्रांड के तले गुजराती बंधु पूंजीवादी-व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र में ठोकने में लगे हैं और इसीलिए जिस विचारधारा से जन्म लेने का घोषणा करते हैं उसी विचारधारा से हत्या कर दिए गए अदृश्य महात्मा गांधी तथा दृश्य सरदार वल्लभ भाई पटेल का एक आईकॉन तैयार करते हैं, ताकी बता सकें गुजराती-बंधु ही वास्तविक डेमोक्रेटिक पार्टी के विचारक हैं.
किंतु इन सब को धता बताते हुए 1947 देश की आजादी के बाद अनेकता में एकता के सिद्धांतों ,बल्कि वसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा करने वाले महावाक्य का समावेश करते हुए जातिगत मर्यादा को तोड़कर बने गांधी परिवार के जैविक आईकॉन अपनी विश्वसनीयता को तमाम झंझाबतों के बावजूद बरकरार रखे हुए हैं.
 आदिवासी नजर से देखा जाए तो लगता है यह सही भी है कि जैसे भी हैं आदिवासी वास्तविक तो है.., उनमें सच्चाई तो है. हो सकता है वे उतने चालाक, शातिर और कुटिल न हो..?, हो सकता है विश्व के पूंजीपति, विश्व बाजार पर नजर रखने वाले बाजारये भारतीय नागरिकों को अपने हिसाब से चलाते हो..?, किंतु निजी जीवन में सच्चाई का बड़ा महत्व होता है. व्यक्ति मानव है इसलिए उस में त्रुटियां हैं. अन्यथा महामानव होता. जिसे बाबासाहेब आंबेडकर ने उसके अस्तित्व को स्वीकारने से इनकार किया था.
 जिसे सनातन धर्म, भगवान की संज्ञा देता है. और यह विवाद विश्व के हर कोने में बरकरार भी है. किंतु पहले आर एस एस की विचारधारा बाद में हिंदुत्व का ब्रांड और गुजराती बंधुओं मोदी-शाह की जोड़ी लोकतंत्र बनाम कांग्रेस मुक्त भारत का सपना में  जैविक आईकॉन ब्रांड-एंबेस्डर की पुनर्स्थापना सी हो गई है. जिसका अवतरण श्रीमती प्रियंकागांधी के रूप में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर भारत में ओले-भरी ठंड मे कंपा देने के लिए बाध्य कर रही है.
 क्योंकि चौकीदार चोर है इस आरोप के साथ तीन राज्यों पर सत्ता में आने वाली कांग्रेस पार्टी के मंसूबे काफी हाई प्रोफाइल हैं. उन्हें अपना रास्ता सहज और सरल दिख भी रहा है इस तरह अपनी नई संगठनात्मक विस्तार में एक तरफ मध्यप्रदेश के कचरे से ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा चेहरा को निकाल कर सकारात्मक कार्य में लगा दिया है, तो दूसरी तरफ प्रियंकागांधी के आने से इंदिरागांधी का स्वरूप कांग्रेस पार्टी के लिए वरदान साबित हो सकता है. आखिर उत्तरप्रदेश में बुरी तरह से विफल कांग्रेस दो युवा चेहरों को लेकर काफी उत्साहित भी है. यह देखना होगा कि परिणाम क्या होते हैं बहरहाल आवाज जबरदस्त है.. ब्रांडिंग जरूर कमजोर है और कांग्रेस को नरेंद्र मोदी के इवेंट-मैनेजमेंट से ब्रांड-एंबेस्डर की ब्रांडिंग की प्रस्तुति के बारे में बार-बार सोचना चाहिए.

शनिवार, 19 जनवरी 2019

उत्कृष्ट वैभव का प्राचीन इतिहास विलुप्त होने की कगार पर


 उत्कृष्ट वैभव का प्राचीन इतिहास विलुप्त होने की कगार पर
======(त्रिलोकीनाथ)========
मित्रों ठीक ठीक तो नहीं मालूम किंतु 1983 में एक लेखक श्री देवशरण मिश्र की पुस्तक सोन के पानी का रंग  को पढ़ने से महसूस होता है कि 70 या 80 के दशक में लेखक  स्वयं सोन के उद्गम स्थान सोनवनचाचर  (मध्यप्रदेश) से बिहार के सोनभद्र जिले तक की पदयात्रा की और जो कुछ पाया उसका वर्णन उन्होंने इस पुस्तक में किया है. करीब 48 वर्ष बाद हम यह टटोलने का प्रयास करेंगे कि श्री मिश्र ने जिन चीजों का उल्लेख पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक जैवविविधता को समझने का प्रयास किया था, आज वह किस हालत में है. इससे हमें शहडोल के विकास क्रम का एक झलक भी मिलेगा कि, विकास वास्तव में किस दिशा में और कैसा हुआ है...?


 तो सबसे पहले मैं यह बताऊंगा कि सोन नदी जो हमारी लिए शहडोल संभाग के लिए जीवन रेखा थी या फिर है वास्तव में लोकतंत्र ने उसका कैसा उपयोग या उपभोग किया है. अपनी पहली श्रृंखला में शहडोल संभाग मुख्यालय, जो कभी वर्तमान में दिख रहे उमरिया, अनूपपुर और शहडोल जिले का जिला मुख्यालय भी कहलाता था. उससे कोई 13-14 किलोमीटर की दूरी पर सोननदी के तट पर बसा रोहनिया गांव को केंद्र में रखकर हमने विश्लेषण करने का प्रयास किया है. रोहनिया गांव दीयापीपर सोनपुल के बगल में बसा हुआ गांव है .सोननद शहडोल के दो विकासखंडों को यानी सुहागपुर विकासखंड और गोहपारू विकासखंड को अलग-अलग करता है. दीयापीपर जो मुसलमान बहुल क्षेत्र है तो दूसरी तरफ सोहागपुर विकासखंड का  रोहनिया गांव है जिसका वर्णन विशेषरूप से श्री मिश्र ने अपनी पुस्तक में किया है.

तो सबसे पहले हम बताते हैं कि 48 वर्ष पहले श्री देवशरण मिश्रा ने क्या कहा अथवा क्या लिखा.

....................सोहागपुर शहडोल से लगभग 15 किलोमीटर उत्तर है,  सोनतटीय रोहनिया. यही 19वीं शदी का बना यही मत 19वीं शताब् का बना सोन का पक्का पुल है... .रोहनिया एक साधारण गांव में अधिकांश रूप में आदिवासियों की बस्ती से घर वालों के हैं 8-10 गोणों के हैं, 4-5 घरों अहीरों के और 3 घर ठाकुरों के. राजकीय आवास योजना के अंतर्गत पास में एक नई बस्ती बसाई जा रही है धर्मपुरी, जहां बस गए हैं उनके लिए तो धर्मपुरी ही है लेकिन जो वहां नहीं गए हैं उन्होंने उसका नामकरण किया है, यमपुरी. यमपुरी क्योंकि वहां पानी कोई व्यवस्था नहीं है. आसपास के स्रोतों के निकट में गंदा पानी मिलता है उसी से धर्मपुरी में बसे लोगों का काम चलता है.
 यमपुरी हो या धर्मपुरी रोहनिया रोहनिया अत्यंत प्राचीन स्थान है. इसमें संदेह नहीं है. वहां पूरा-पाषाण काल के उपकरण पाए गए हैं और भी मध्य-पाषाण काल के भी. अर्थात सोनतट का लाभ उठाते हुए पाषाणकालीन मानव आहार संग्रह की चिंता में व्यस्त घुमंतु प्राणी रहा होगा और यहां और उसके पास-पड़ोस में शरण अवश्य लेता रहा लेता था. इसके बाद की स्थिति अंधकार में लिपटी है. लेकिन इतिहास के मध्यकाल की अनेक मूर्तियां कि बतलाती हैं कि रोहनिया के वे दिन उत्कर्ष के अवश्य रहे होंगे. यद्दपि इतिहास में उसका नाम हमें कहीं पढ़ने को नहीं मिलता.
 वास्तव में रोहनिया के उत्कर्ष कालीन दिनों का आभास गांव के ठाकुर के चौधरी की किनारी देखकर हुआ था. यह किनारी भी अलंकरण बड़े पूर्वमध्यकालीन पत्थर की है. यह पत्थर घिस गया था अवश्य, लेकिन अपनी बुलंदी के दिनों का उपयुक्त उदाहरण था. पास पड़ोस में पाई गई मूर्तियों को दिखाने जब शुक्ला जी शाला में कुछ दूर झुरमुट के खंडहर-जैसे दिखने वाले स्थान पर ले गए तो रहा-सहा  संदेह भी जाता रहा . एक निहायत मामूली झोपड़ी में बाहर भी एक अनेक देव मूर्तियां, गणेश और गणिकाओ की, रखी हुई थी. हवन-कुंड, धूपदीप, पूजा किए जाने के समस्त चिन्ह. एक देव मूर्ति विष्णु की भी थी; लेकिन शुक्ल जी ने बताया, स्थानीय जनों के द्वारा विष्णुमूर्ति को पूजा देवीमूर्ति मानकर की जाती है. वहां अनेक उत्कीर्ण  शिलाखंड तो है ही, कई स्थान यहां ऐसे भी हमने देखे जहां गड्ढे खोदे गए हैं, यानी खुदाई करके मूर्तियां निकाली गई है बची खुची यह मूर्तियां पूर्व मध्ययुगीन तक्षण कला के उत्कृष्ट उदाहरण है.
 पूर्व माध्यमिक पाठशाला के प्रधानाध्यापक राधेश्याम शुक्ल ने हमें वही एक पक्का फर्श भी दिखाया बार-बार उस पर पैर पटकते और कहते- आवाज पहचानिए. भद-भद की आवाज; नीचे खोखली जमीन है. मालूम होता है यहां पहले कोई गुफा रही होगी. यह खंडहर और मूर्तियां जो देवी देव-देवी और गणिकाओ की हैं, प्राचीन देवालय के अंग मालूम होते हैं. स्थानीय ऋषि ईसी नीचे गुफा में विश्राम करते रहे होंगे अथवा योग साधन .”
शुक्ल जी और भी कुछ दिखाने चले. चलिए, सोनतट पर चलें. वहां देखी गई सोन की पैट से काफी ऊंची, लेकिन तट के सीध से अधिक गहरी जमीन के भीतर घुसी ही जगह- गलीदार गहरी भूमि, जिसे हम लोग खरोह कहते हैं. इस खरोह में घनी हरियाली छाई हुई थी, मझोले कद की. उस खरोह में एक गुफा जैसी खोखली जगह थी. शुक्ल जी बोले ऋषि लोग जून के स्नान करके कुछ समय यही ध्यान चिंतन करते रहे होंगे. बड़ी शांत जगह है चारों ओर फैली हरि वनस्पति एकांत प्रिय व्यक्ति के योग साधन के बिल्कुल उपयुक्त है.”
 कहां पूर्व मध्यकालीन मूर्तियां कहां पर अनेक विषयों का योग हमें उनकी बात में रस नहीं रहा था लेकिन उस समय क्या पता था कि ठीक इसी तरह दृश्य हम पुणे दो दिनों बाद देखेंगे रोहन इया सोन के पार भी वह हमें ले गए वहां भी अनेक उत्कीर्ण शीला खंड पड़े हैं उत्तर अलंकरण तो है ही अपने चिट्ठे डीलडोल के कारण वे रनिया की मूर्तियां से भिन्न जान पड़ती हैं रोहनिया की देवी मंदिर के मूर्तियों में जो शुगर पान है चिकन है सफाई है तराश का परिश्रम है वह रोहनिया सोनपाल की उन मूर्तियों या प्रस्तर अलंकरण में नहीं है पत्थर विभिन्न प्रकार के हैं दिया पीपा पुल के पार की बलुआ पत्थर वाली मूर्तियां तत्कालीन भारत की लोक कला का प्रतिनिधित्व करती हैं संभवत मौर्योत्तर काल की जवनिया झोपड़ी देवी मंदिर की मूर्तियां उसमें प्रवर्तित काल की जान पड़ती हैं उससे परवर्ती काल की जान पड़ती है दो कला शैलियों के उदाहरण बिल्कुल पास पड़ोस में प्राप्त होने के कारण यह भी संदेह होता है कि दोनों सहेलियां समकालीन थी और समानांतर रूप से सांप सांप रही थी इस तरह की तक ला के दो भिन्न रूपों के उदाहरण हमें बाद में वर्दी में भी देखने को मिले संभव है रोहनिया में प्राप्त काले पत्थर की पूर्व मध्यकालीन कलचुरी कालीन मूर्तियां बाहर से लाई गई हूं इस कारण भी ऐसे विश्वास की पुष्टि मिलती है कि पूर्व काल में रोहनिया एक महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा . डुमरिया का घोर जंगल पठार की ऊंची नीची जमीन जगह-जगह सोन के सहायक नाले इन डुमरिया जंगल के बीच कुछ ही दूर जाने के बाद एक पक्का मकान मिला संभवत पहले यह वन विभाग का डाक बंगला था अच्छे मनोरम और शांति स्थल पर बना था जिसके सामने बरसात में चौड़े सोन हिलोरे लेता होगा. लेकिन आजकल इस परित्यक्त डाक बंगले की छत उजड़ गई है दीवार ध्वस्त हो गई है.
 इस दुर्दशा का कारण ही है सोन का वर्तमान रूप, जिसका विषाक्त-जल पीने के काम नहीं आ सकता यह मनोरम स्थल जिसे पहले तपोभूमि कहा जाता था आज भूतों के रहने लायक जगह बन गया है ..................

पुरातत् संरक्षण भी होगा और वर्तमान समस्या का समाधान भी

उत्कृष्ट प्राचीन इतिहास कला का केंद्र रहा सोन नद के तटवर्ती गांवों में वर्तमान  रोहनिया गांव और बताई गई  स्थानों पर जब हम गए तो हालात तो बताते थे कि यहां कुछ है किंतु सिर्फ खंडहर के अलावा और पुरातत्व संपदा की भारी लूटपाट के अलावा गत 48 सालों में कोईविकास नहीं हुआ. रोहनिया की

प्राचीन मंदिर संरक्षण नहीं किया गया बल्कि बगल में रेत खदान की लीज मंजूर कर दिए जाने के कारण, अवैध रेत खनन के कारण रही-सही पुरातत्व संपत्तियां भी रातों रात गायब हो गई . सोन के इस बार याने शहडोल की दिशा में जहां रेत खदान के भंडारण और  अवैध रेत परिवहन को खनिज विभाग ने खुला संरक्षण दिया, गैरकानूनी तरीके से वहीं दूसरी तरफ  कभी शराब कारखाने की डिशलरी के लिए बने बिल्डिंग के पीछे एक शिव मंदिर के आसपास तमाम पुरातत्व की संपत्तियां पत्थर बाउंड्री वाल के रूप में देखे गए हैं. जबकि अन्य पुरातत्व लगभग आज भी इतिहास को दबाए हुए बैठा है की कोई उसकी खोज खबर करें....?

चपरासी के भरोसे संग्रहालय..?

 यहीं पर देखने को मिला एक अवैध निर्माण ,प्राचीन मंदिर के ऊपर करने के लिए गड्ढे खोदे गए थे जो शायद स्थानीय लोगों ने अथवा किसी विशिष्ट व्यक्ति ने अपनी नींहित भावना  के लिए बनवा रहे है भलाई निर्माण कर्ता की मनसा खराब ना हो किंतु उनकी इस कार्यवाही से दवि-कुची ही सही, पुरातत्व संपदा को क्षति पहुंच रही  है और शायद वे इसके महत्व को समझ  ना पा रहे हो..? और समझें भी तो कैसे.. क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार तबका खासतौर से पुरातत्व अनुसंधान व संग्रहण का शहडोल स्थित संग्रहालय को एक चपरासी के भरोसे छोड़ दिया गया है. जिससे कुछ भी आशा करना स्वयं को मूर्ख बनाना ही है.?


              “विषाक्त-जल ; 36 गांव के पीने के पानी पर जल निगम का बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर
और इसीलिए उत्कृष्ट वैभव का प्राचीन इतिहास जाने अनजाने विलुप्त होने की कगार पर है. हां.. इसी के ऊपर और गुफा वाले प्राचीन मंदिर जो विष्णु का अथवा सूर्य का मंदिर है उसके बीच में अचानक नवगठित संस्था सरकारी संस्था मध्य प्रदेश जल निगम मर्यादित को लगा कि आदिवासी अंचल में पीने के पानी की सुलभता देने की क्षमता सोन नद में है और इसलिए 36 गांव के लिए यहां पर एक बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर 2019 तक कराए जाने की संभावना पर आधारित बांध का निर्माण हो रहा है. अब यह अलग बात है कि इस बांध के निर्माण से पुरातत्व की संपदा को कोई नुकसान होता भी है या नहीं....? जिसके लिए यदि संबंधित संस्थान चाहेगा तो सोच सकता है क्योंकि जब हम बताए गए दृष्टांत स्थल पर पहुंचे तभी जान पाए कि देवशरण मिश्र की बताए स्थान पर कभी विषाक्त-जल का भंडार था.. जिस कारण सोन नदी के पानी को कोई व्यक्ति नहीं पीता था. अब 48 साल बाद हमारे जल निगम के इंजीनियर इस पानी को ही 36 गांव के पानी में पेयजल योग्य बनाकर सप्लाई करेंगे. किंतु यह देखने और सोचने की भी बात होगी कि अवैध खनिज परिवहन जो खनिज विभाग की कृपा पर चल रहा है और जल निगम की पेयजल योजना के  "सब का साथ-सबका विकास" की गति में पुरातत्व संपदा जल्द विलुप्त होती है अथवा उसके लिए जिला प्रशासन अपने रहम दिल से कोई संरक्षण पूर्ण कदम उठाएगा....?
                       समीक्षा का आश्वासन






हालांकि वर्तमान  शहडोल कलेक्टर श्रीमती अनुभा श्रीवास्तव के संज्ञान में इन हालातों को लाया गया तो उन्होंने  पुरातत्व संपदा के संरक्षण की दिशा में समीक्षा का आश्वासन दिया है, जिससे आशा किया जाना चाहिए की पुरातत्व की संरक्षण भी होगा और वर्तमान समस्या का समाधान भी.


 
 








भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...