जॉर्जफर्नांडीज एक प्रेरणादायक ऊर्जावान संग्रह थे।
आज सुबह 10 बजे जब मैं अपनी
मा को तेल-मालिश
कर रहा था,
खबर बेटे शुभांश ने
बताया जॉर्जफर्नांडीज का निधन हो गया है. मेरी माता ने भी सुना तो काफी दुखी हुई, दरअसल वे अक्सर मुझसे पूछती रहती, "ना रे.., जारे-फन्नारे(जॉर्ज फर्नांडीज ) का अ-वै जियत है..?" यानी जॉर्ज फर्नांडीज अभी भी जीवित है, क्योंकि शायद जिन बड़े नेताओं का मेरे
घर में अक्सर पिताजी भोलाराम जी गर्ग के रहते आना-जाना लगा रहता था,
उनमें मेरी माता श्रीमती बैजंतीदेवी (92) कम
लोगों को याद करती थी.
जॉर्ज फर्नांडिस उनकी स्मृति चित्र पटल पर छाए रहे. मुझे भी याद है कि घर के आंगन में, खाट में जॉर्जफर्नांडीज भोजन करने के बाद बैठे हुए कार्यकर्ताओं से
बातचीत करते. तब मैं बहुत छोटा
था.
1994
में
विधानसभा चुनाव को कवरेज के दौरान कांग्रेस के संपर्क में आया, क्योंकि कांग्रेस ऑब्जर्वर पवनसिंह
घाटोवर और चंद्रकांता दायमा मुझे प्रो-कांग्रेश विचारधारा का माना तथा कांग्रेस के साथ काम करने की राय दी. तब सुशीलकुमार शिंदे प्रदेश के
प्रभारी थे,
उन्होंने भी दिल्ली में अपने बंगले पर मुझे कांग्रेस के साथ काम करने का
प्रोत्साहन किया.
किंतु जल्द ही मैं समझ गया कि तत्कालीन कांग्रेश वह नहीं है जो देश की आजादी के
दौर में जागरूक रही.
राजनीतिक पृष्ठभूमि का होने के कारण राजनीतिक उत्साह व हमारी समाजवादी पृष्ठभूमि
के जॉर्ज फर्नांडीज के नजदीक आ गया.
उन्होंने अपने साथ काम करने को प्रोत्साहित किया. समता पार्टी में राष्ट्रीयकार्यकारिणी सदस्य बनाए जाने कि नजदीकी के
कारण मैं जॉर्जसाहब के संपर्क में रहा.
George Fernandis at Shahdol |
उसके
बाद समतापार्टी का पतन और जैसा कि राजनीति में धोखाधड़ी-विश्वासघात,कूटनीति की परिभाषा में समझे जाते हैं
हुआ. वे शायद इन्हीं
सब के कारण भूल जाने की बीमारी से प्रभावित हो गए और लंबे समय से बीमार थे.
“न
भूतो न भविष्यति”
21वीं सदी में अपनी छोटी समझ से अगर परिभाषित
करता हूं तो दुनिया का समाजवाद का सबसे बड़ा नेता भारत ने खो दिया है. समाजवादी नेता जॉर्जफर्नांडीज का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से
बड़ी क्षति है. और
उसे ही मेरी माता श्रीमती बैजंतीदेवी, जब चर्चा कर रही थी; तो
परिभाषित कर रही थी. कि
वे किस प्रकार से एक पल में ही जन-जन
के नेता बन जाते थे.
जॉर्जफर्नांडीज एक प्रेरणादायक ऊर्जावान संग्रह थे.
George Fernandis on Pokhran Site |
हालांकि आलोचक उन्हें तमाम प्रकार से आलोचना का
केंद्र बनाते हैं,
किंतु खासतौर से आर एस एस के नेता अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व को स्वीकारने की
आलोचना के लिए.
किंतु राजकोट सम्मेलन में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था की “आप सब मुझ पर आरोप लगाते हैं कि मैंने
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ हो लिया किंतु क्या आपको मालूम है कि भारत की सबसे बड़ी अनुशासनिक संगठन
के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काम कर रहा है और यदि आप सबको लगता है की
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता गलत दिशा में काम कर रहा है या वह गलत है, तो क्या उसे ठीक करने के लिए हम उसके
पास जाकर, उन्हें समझा
नहीं सकते...? कि
देश की राष्ट्रीय मुख्यधारा में कैसे चले.. आप क्या चाहते हैं कि क्या एक टुकड़ा भारत के अंदर और करने का काम
हो...?” शायद वे आशंकित
थे आर एस एस सही दिशा में काम नहीं कर रहा...? किंतु उनके इन प्रयासों को इसके लिए वे वियतनाम
और अमेरिका के संबंधों का हवाला भी देते, कि किस प्रकार से वियतनाम के बड़े दुश्मन से विकास के लिए उनकी
दोस्ती हो गई . जहां
राष्ट्रीय हित का,
राष्ट्रीय एकता की सोच की दूरदर्शी परिणाम देख रहे हो वहां फर्नांडीस हर प्रकार का
जोखिम उठाने को तैयार थे...? और
हम भी सहमत हुए, कि
हां जॉर्ज साहब सही कह रहे हैं.
आखिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी भारत के ही लोग हैं हम उनसे असहमत हो सकते
हैं किंतु उनके साथ काम ना कर सकें, यह
अपने आप को धोखा देना जैसा है.
बाकी जिस को धोखा देना है,
विश्वासघात करना है.. वह
सेना के अंदर घुसकर..
प्रधानमंत्री भवन के अंदर घुसकर प्रधानमंत्री की हत्या भी करता है... इसलिए जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा. और सुधार भी लाने पड़ेंगे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें