पंचायत शिक्षाकर्मी भर्ती का परिपक्व रूप , व्यापम-घोटाला स्थापित भ्रष्टाचार का स्ट्रक्चर
शहडोल: वैसे तो यह मामला दिग्विजय सिंह के शासनकाल का है, जो कांग्रेसपार्टी के मुख्यमंत्री थे
किंतु जिला पंचायत शहडोल में शिक्षाकर्मी भर्ती अगर कच्चे चावल के रूप में परिपक्व
हो रहा था तो व्यापम घोटाला मध्यप्रदेश शासन में स्थापित भ्रष्टाचार का स्ट्रक्चर
जैसा बन कर सामने आया. और
जब करीब आधा सैकड़ा लोग मर गए तथा सैकड़ों की, बल्कि हजारों की संख्या में मध्यप्रदेश के छात्र-छात्राएं और उनका
परिवार भ्रष्टाचार में रोजगार की संभावना के अवसर की तलाश में कानूनी दांवपेच में
कई लोग जेल में हैं, तो
कई लोग बाहर किसी ना किसी के संरक्षण में दबीकुचली जिंदगी जीने को विवश है. भाजपा के तो एक मंत्री ही कई अफसरों
के साथ जेल में भी रहे.
शहडोल के पुष्पराजगढ़ विधानसभा के विधायक फुन्देलाल अपने बच्चे के मामले में व्यापमं के
आरोपी व्यक्तियों में एक हैं. और
शायद उनका मंत्री पद जो संभावित था,
इसी कारण छिन गया.
बहरहाल बावजूद इसके भी पारदर्शिता के मामले में
दो दशक होने के शहडोल जिला पंचायत के
शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार का मामला इस कदर गंभीर हो चला है कि अब उसकी पूरी की पूरे
दस्तावेज गायब कर दिए गए हैं. यह
बात जिलापंचायत के ही लोकसूचना अधिकारी ने मध्यप्रदेश सूचनाआयुक्त को जानकारी देते
हुए बताएं.
आश्चर्य है जो कार्य जिलापंचायत शहडोल को स्वयं संज्ञान लेकर करना चाहिए था वह
मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त के निर्देशों के बावजूद भी बार-बार कहने पर भी जिलापंचायत शहडोल
संबंधित दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से हिचक रहा है. शायद उसे मालूम है कि शिक्षाकर्मी
भर्ती भ्रष्टाचार में न सिर्फ नेता बल्कि
आईएएस अफसर भी लपेटे में आ सकते हैं और इसी कारण पूरा का पूरा दस्तावेज गायब कर
दिया जैसा है.
पहले तो यह बनाया जा रहा था की क्योंकि 20 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं इसलिए सूचना
का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता किंतु मध्यप्रदेश उच्चन्यायालय के हस्तक्षेप के
बाद, निर्देश पर समय
अवधि में सूचना सामग्री देने की बाध्यता के चलते यह बात उजागर हुई कि वास्तव में
शिक्षाकर्मी भर्ती के दस्तावेज अफसर और नेताओं ने मिलकर गायब करा दिया है..?
वास्तव
में यदि इसी प्रकार से लोकतंत्र चलता रहा जो प्रकट होकर जो परिपक्व हो कर व्यापम
घोटाले के रूप में सामने आया और अभी तक जिसमें कोई भी अपराधी बड़ा अपराधी खासतौर
से जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व का जिम्मेदार मंत्री अथवा मुख्यमंत्री स्तर का व्यक्ति जेल
नहीं गया है. यह
सिद्ध होता है कि किस प्रकार से नूरा-कुश्ती करते हुए लोकतंत्र के खेल को कांग्रेस और भाजपा के नेता मिलकर
खेलते हैं...? और
शायद यही लोकतंत्र है,
मध्यप्रदेश में शायद यही लोकतंत्र चल रहा है.. अन्यथा कोई कारण नहीं एक छोटा सा भी दागदार व्यक्ति राजनीति में
तटस्थ रखा जाना चाहिए.
जिला पंचायत में 1998 को की गई शिक्षा कर्मी भर्ती से
संबंधित फाइलों के गायब होने का मामला अब तूल पकड़ता नजर आ रहा है क्योंकि मामले
के लोक सूचना अधिकारी पी सातपुते को अंततः मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त ने दंड निर्धारित करने की
अंतिम चेतावनी भी दे दी है .शिक्षाकर्मी
भर्ती मामले में सूचना आयुक्त अपनी नियमित सुनवाई करते हुए कहते हैं लापरवाह लोक सूचना अधिकारी सातपुते को दी चेतावनी
आरटीआई-कार्यकर्ता नरेंद्रसिंह गहरवार की अपील पर हुई कड़ी कार्यवाही
“तत्कालीन
लोकसूचना अधिकारी पी सातपुते ने अपने बचाव में कोई भी तथ्य प्रस्तुत नहीं किए हैं. आवेदन अवधि में अभिलेख गुमने
की सूचना उन्होंने अपीलार्थी यानी नरेंद्र सिंह गहरवार को दी है अथवा नहीं. अतः तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी द्वारा
जारी कारण बताओ सूचना पत्र पर कार्यवाही लंबित रखते हुए दिए गए निर्देश के पालन
उपरांत लोकसूचना अधिकारी को पक्ष प्रस्तुत करने हेतु दिनांक 26 .2.2019 को सुनवाई नीयत की जाती है. यह सुनवाई दिनांक को तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी उपस्थित होकर प्रस्तुत
नहीं करते हैं तो यह मानते हुए कि इस संबंध में उन्हें कुछ नहीं कहना है, आयोग शस्ति आरोपित करते हुए करने को
स्वतंत्र होगा.”
ज्ञातव्य है 1998 में शिक्षाकर्मी भर्ती की प्रक्रिया तत्कालीन
सीईओ जिलापंचायत संजय दुबे ने के कार्यकाल में हुई थी. तब जिलापंचायत उपाध्यक्ष हर्षवर्धन
सिंह शिक्षा समिति के सभापति थे जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता
हैं. 15 साल भाजपा की सत्ता होने के कारण यह
मामला दवा चला आ रहा था.
चोर की दाढ़ी में तिनका की भांति जब सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत इसकी जानकारी
आरटीआई कार्यकर्ता नरेंद्रसिंह गहरवार ने चाही, तब यह बात उभरकर आई कि वास्तव में शिक्षाकर्मी भर्ती के भ्रष्टाचार
से संबंधित नियुक्ति प्रक्रिया की फाइलें ही जिला पंचायत से गायब हैं.
राज्य सूचना आयुक्त विजयमनोहर तिवारी ने आदेश
पारित करते हुए कहां है की अपील आरती नरेंद्र सिंह गहरवार को उपलब्ध दस्तावेजों का
अवलोकन कराया जाए श्री तिवारी के अनुसार शहडोल जिला पंचायत सूचना अधिकारी ने बताया कि मुख्यकार्यपालन अधिकारी
द्वारा संबंधित शाखा में तथा समस्त शाखा प्रभारी लिपको को शिक्षाकर्मी भर्ती
संबंधी अभिलेख एवं प्रकोष्ठ शाखा का प्रभाव लेने एवं सौंपने संबंधित सूचना दिनांक 3
-9- 2018 तक
सत्यापित प्रस्तुत करने की हेतु संबंधित शाखा प्रभारियों से प्राप्त होने वाली
सूची का परीक्षण एवं संबंधित नस्ती जिसके अभिरक्षा से गुमी है, जिम्मेदारी तय करने हेतु समिति का गठन
किया गया. गठित समिति के
माध्यम से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा लिखकर
सूचित किया गया है कि प्रार्थी नरेंद्रसिंह द्वारा चाही गई जानकारी जांचसमिति के
पंचनामा समिति द्वारा सूचीबद्ध लोगों का अवलोकन करा कर प्रदान की जा सकती है. उन्होंने यह भी बताया कि अपीलार्थी के आवेदन के
बिंदु क्रमांक 8 की जानकारी अभी प्राप्त नहीं हुई है.
आयोग
ने लोकसूचना अधिकारी शहडोल जिला पंचायत को आदेश किया है कि अपीलार्थी नरेंद्रसिंह
गहरवार को उपलब्ध अभिलेखों का निशुल्क
अवलोकन करावे एवं चिन्हित अभिलेखों को निशुल्क प्रदान करें.
पारदर्शिता में राज्य सूचना आयुक्त ने अपनाया खड़कपुर कड़क रुख ,
कहा, गुमशुदा फाइलों पर करावें एफ आई आर
विजय मनोहर तिवारी राज्य सूचना आयुक्त ने शहडोल
जिला पंचायत में शिक्षाकर्मी भर्ती1998 संबंधी दस्तावेजों के गायब होने पर कड़क रूप रुख अपनाया कथा जिला पंचायत शहडोल को
आदेशित किया है कि वे साथ
ही गुमशुदा अभिलेखों का विधिवत एफ आई आर दर्ज कराते हुए उसकी प्रति अपीलार्थी नरेंद्रसिंह
गहरवार को भेजते हुए पालन प्रतिवेदन आयोग में प्रस्तुत करें .
ज्ञातव्य है कि आरटीआई कार्यकर्ता लंबी लड़ाई हासिल करके अंततः मामले को उच्च
न्यायालय जबलपुर के निर्देश पर सूचना सामग्री हासिल करने के लिए कार्यवाही करवाई
थी. जिसके लिए उन्हें तमाम प्रकार से परेशानियों का सामना करना पड़ा . बावजूद इसके
अभी यह पारदर्शिता के मामले में अब यह
लड़ाई कितनी लंबी खींचे की कुछ कहा नहीं जा सकता. क्योंकि माना जाता है की 1998
में
शिक्षाकर्मी भर्ती में शहडोल जिला पंचायत में जमकर भ्रष्टाचार हुआ था और 50000
से 100000
रुपये
तक शिक्षाकर्मी भर्ती के पद लेन-देन हुए थे. नियुक्ति प्रक्रिया के दस्तावेजों में
भारी हेरफेर की गई थी और इसके लिए तत्कालीन आईएएस अधिकारी संजय दुबे काम करते
प्रतीत होते हैं देखना होगा कि भाजपा शासन मैं संरक्षण प्राप्त
डीपीसी को कांग्रेस शासन में भी इतना सहयोग मिल पाता है या नहीं..? यह बात शहडोल जिला पंचायत में
शिक्षाकर्मी भ्रष्टाचार से प्रमाणित होगी.
स्मरणीय है कि जिला पंचायत शहडोल के वर्तमान
अध्यक्ष नरेंद्रसिंह मरावी सितंबर माह में
धरना प्रदर्शन देखकर डीपीसी के भ्रष्टाचार
को लेकर बड़ा आंदोलन किया था.
जिसमें अंततः एक जांच कमेटी बनाई गई जिसका प्रतिवेदन जिला प्रशासन के पास
कार्यवाही हेतु लंबित है यह अलग बात है की जांच कमिटी ने शिक्षाकर्मी भर्ती 1998
के
प्रकरण और गायब दस्तावेजों के मामले में क्या कार्यवाही की है अथवा नहीं..?
⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇
⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇆⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇⇇
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें