बुधवार, 30 जून 2021

पुलिस की दीवार, क्या ढहेगी इस बार...?

स्वागतम आसमानी फरिश्ते....?


पुलिस की दीवार,

क्या ढहेगी इस बार...?

(त्रिलोकीनाथ)

आदिवासी विशेष शहडोल क्षेत्र के पत्रकार चाहे भी तो अपनी पत्रकारिता के तकनीकी दक्षता बढ़ाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि वह महंगा होता है और पत्रकारों की आमदनी तो सरकारों की भीख पर निर्भर होती है या फिर माफिया (आपराधिक प्रवृत्ति के व्यापारी, राजनेता, पार्टियों के नेता और प्रशासन में बैठे हुए कतिपय कर्मचारी का गठजोड़) की दी हुई भीख पर निर्भर होता है। क्योंकि लोकतंत्र में संविधान ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई है कि पत्रकारों के निर्भरता इस गुलामी से मुक्त हो सके। तो पत्रकारिता की दक्षता के लिए आधुनिक संसाधन मे ड्रोन का इस्तेमाल यदि होता तो वह देख पाता कि महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष संरक्षण वाले शहडोल संभाग में कहां-कहां, कितना जंगल काटा, खनिज निकला अथवा वर्तमान में खनिज माफिया गिरी का सबसे बड़ा आकर्षण बना नदियों को मनमानी तरीके से बर्बाद करने वाला रेत खनन  कितना बड़ा है,  कानूनी तौर पर और कितना बड़ा  माफिया के संरक्षण में निकल रहा है। रेत खनन में विशेषता यह है कि हर बरसात में नदियां तस्करों को या माफिया के अपराधों पर पर्दा डाल देती हैं। तो बहुत कम समय में इसकी निगरानी हो पाती है। इसी तरह अन्य विकास पुरुषों याने उद्योगों के कारनामों का भी ड्रोन के जरिए पता करना आसान रहता। अब तो यह प्रमाणित भी हो चुका है कि जम्मूकश्मीर में आतंकवादी कार्यवाही को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन का इस्तेमाल होने लगा है। तो सरकारें क्या अभी तक ताली,थाली, घंटा,घंटी बजाने लगी रही अथवा चुनाव जीतने की अपनी हवस को मिटाने में लगी रही। जिस कारण उन्हें नहीं पता चला कि ड्रोन की योग्यता का इस्तेमाल कैसे किया जाए...?

 तो मान लेते हैं कि अनूपपुर जिले में खनिज विभाग में एक अधिकारी 1,2 इंस्पेक्टर है.. कह सकते हैं बिचारा क्या करेगा। अगर वह अपने कलेक्टर का परामर्श लेकर उसकी सहायता से कैमरे लगे ड्रोन के जरिए खनिज-तस्करी को विशेषकर रेत माफिया को निगरानी करता तो उसे ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ता। और चौकीदारी बेहतर तरीके से कर सकता था। किंतु क्या एक ईमानदार कलेक्टर इस दिशा में सोच पाएंगे। यह उनकी योग्यता पर प्रश्नचिन्ह भी है..?कि जब कलेक्टर होकर वह नहीं सोच सकतीं ।क्योंकि स्वअनुशासन की गुलामी के नजरिए से वे प्रशासन नहीं चलाना चाहती जबकि आर्थिक रूप से संपूर्ण स्वतंत्रता के साथ खुलकर खर्चा कर सकती हैं।

 ऐसे में गरीब-पत्रकार-समाज कैसे ड्रोन से निगरानी कर सकता है कि माफिया कहां-कहां कैसे काम कर रहा है..? हलां कि जिस तरह से अकुशल पत्रकार समाज के हाथ में मोबाइल कैमरा आ गए हैं तो उन्होंने सैकड़ों की संख्या में कीड़े-मकोड़े की तरह काम करते दिखाई देते हैं। और कभी सरकार तो, कभी माफिया इन कीड़ों-मकोड़ों को थोड़ा सा शक्कर डालकर कहीं भी इकट्ठा कर देती है। क्योंकि पत्रकार भलाई नहीं पहचाने, कि उसकी ताकत क्या है, किंतु माफिया पहचानता है कि प्रेस से कैसे बचा जा सकता है।

 इसलिए सरकारों के साथ माफिया भी अपने अपने तरीके से बड़ी संख्या में बने पत्रकारों की भीड़ में शक्कर डालती रहती है। ताकि वे किसी एक जगह इकट्ठे रहें उसके क्षेत्र में ना आए। 

 अब बात करते हैं की ड्रोन करता क्या है...? ड्रोन जब अपने रंगत में आता है तो वह रिमोट कंट्रोल के जरिए हवा में चिड़िया की तरह कहीं भी चला जाता है और वहां से अपने कैमरे के जरिए वह सब कुछ देखता है जो आम पत्रकार जमीन में कीड़े-मकोड़ों की तरह नहीं देख पाता ।

 ड्रोन पर डान 

 तो ड्रोन अपने मालिक यानी डॉन को सब कुछ बता देता है और दिखा देता है। जो पहले कभी कलेक्टर लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन करके पत्रकार समाज को हर दो-तीन महीने में विकास के कार्यों को जीप में अथवा कार में ले जाकर निष्पक्षता के लिए  कर्तव्यनिष्ठा का पालन दिखाकर करते थे।

 तो ड्रोन तो खरीद नहीं सकते और वर्तमान प्रशासन , अपने शासन के निर्देश में बंधा हुआ "बाहुबली का कटप्पा" है। तो उसे पत्रकारों को फील्ड में ले जाने से भाजपा के रामराज्य में तो मना ही कर दिया है।

 पेमेंट ,इतना पत्रकारों को मिलता नहीं कि वह स्वयं अपने संसाधन से अपने लोकतांत्रिक दायित्व का निगरानी कर सकें।

 शहडोल में एक पत्रकार जरूर हैं जो बछावत वेतन आयोग पत्रकारों की मिलने वाली वेतन के अधिकार की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं। लेकिन लग रहा है कि जल्द ही उनका मालिक उन्हें बस चले तो जिंदा जमीन में गाड़ देगा बजाएं उसे उसका हक देने के। यह उसकी अपनी लड़ाई है।

 हम बात कर रहे थे ड्रोन की योग्यता की। भलाई 21वीं सदी में 20 साल बाद हमें नजर आई हो किंतु विधायिका के प्रतिनिधि मुख्यमंत्री उनके नौकरशाह अथवा उद्योगपति ऐसे ड्रोन में साक्षात अलग-अलग समय पर तफरी करने निकलते थे जिन्हें हेलीकॉप्टर अथवा हवाई जहाज का स्वरूप मिला हुआ था।

 छत्तीसगढ़ बनने के बाद मृत हो चुके कभी कलेक्टर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए समस्या यह थी कि वह अपना ड्रोन कहां-कहां उड़ावें। क्योंकि छत्तीसगढ़ बहुत छोटा सा राज्य था। तो वहां के नागरिक परेशान रहते थे कि आए दिन मुख्यमंत्री उनके यहां आ जाते हैं। 

बहरहाल हमारे यहां मध्यप्रदेश फिलहाल बड़ा है इसे और टुकड़े-टुकड़े कर देने से तब यह समस्या खड़ी होगी जैसे शहडोल जिले के तीन टुकड़े हो गए ।

हैप्पी न्यू मंथ......

 हम विषयांतर हो जाते हैं क्योंकि विषय ही ड्रोन का बहुत बड़ा है बस कहीं भी भटक जाता है। खबर है इस बार ड्रोन , हैप्पी न्यू मंथ मनाने शहडोल क्षेत्र में आ रहा है।

 तो भलाई पत्रकारों के पास यह संसाधन ना हो और वह न देख सकें कि कहां कितनी माफियागिरी बरसात के पूर्व कहां कितना रेट का स्टॉक संग्रहित कर के रखा गया हो। किंतु हेलीकॉप्टर में बैठे हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी चौहान जरूर यह देखेंगे। अब शहडोल आ रहे हैं तो शहडोल के आसपास उमरिया और अनूपपुर जिले के नदियों के आसपास संग्रहित रेत की खदानों को भी देखेंगे और ठेकेदार के भी संग्रहित किए गए रेत और माफिया के भंडारण को भी देख सकेंगे। जो पत्रकार नहीं देख पाते।

 अब एक ही रास्ता है की पत्रकार मुख्यमंत्री से मिल कर उनसे पूछें कि आपने अवैध रेत भंडारण के कितनी खदानों का निगरानी किया है...? किंतु यह तब संभव है जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पत्रकारों से मिले...?

 कोविड-काल में 3 घंटा पत्रकार कलेक्ट्रेट


शहडोल के गेट के सामने कड़क दुपहरी में खड़े रहे कि उनके मुख्यमंत्री उनसे मिलेंगे, किंतु चौहान कुछ इस अंदाज में निकल गए जैसे कि किसी ने उन्हें समझा रखा था "...मत चूके चौहान.."।

 तो चौहान साहब कार के अंदर, कोरोना वायरस से बचने के लिए, बिना देखे धूप में खड़े कीड़े-मकोड़ों के लिए पुलिस का बंदोबस्त कर दिया था।  पुलिस ने पत्रकारों को अलग-थलग करने का प्रबंध भी कर दिया था। तो मुख्यमंत्री जी निकल गए। यह अलग बात है की डिजिटल मीडिया के जरिए जो ज्ञापन भेजा गया उसे दूसरे दिन आंशिक रूप से पालन करते हुए भोपाल में उन्होंने अपना वचन दिया। कि "गैर अधिमान्य पत्रकारों को कोरोना फ्रंट वर्कर्स में शामिल किया जाएगा। लोकप्रिय फिल्म बाहुबली मे नायिका का यह बहुचर्चित डायलॉग कि "मेरा वचन ही, मेरा शासन है" कितना कामयाब हुआ इसके कोई आंकड़े अपने पास नहीं है।

 हम तो यह जानते हैं कि शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में अर्ध उद्घाटित शहडोल मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से कई लोग कथित तौर पर मर गए थे। हालांकि प्रबंधन ने इसका खंडन भी किया था। क्योंकि पहली बार भारत में ऐसा होता दिखा...। इसलिए हमारी ताकत हमें समझने का इजाजत नहीं दे रही थी किंतु जब भोपाल में और दिल्ली मे, आगरा या पूरे भारत में ऐसा होने लगा तो हमें लगा शहडोल में भी हुआ होगा...? जिस की निष्पक्ष जांच की हत्या उसी समय हो गई थी जब उसका खंडन हो गया था।

 तो यह शहडोल क्षेत्र ही है जहां यह प्रश्न बनता है कि सबसे पहले दो पत्रकारों को पोस्ट कोविड-19 "ब्लैक फंगस" ने अंततः उन्हें मृत्यु तक पहुंचा दिया। अब कौन पूछेगा कि उस वचन का क्या हुआ जो मुख्यमंत्री जी ने शहडोल लौटकर भोपाल में दिया था इसका लाभ ब्लैक फंगस के मृतक परिवारों को क्या मिला.., क्या हुआ...? 

 क्योंकि अभी कोरोना कहीं गया नहीं है, ऐसा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हमें भ्रमित कर रखे हैं। और हमें भी लगता है कि वह ब्याज सहित "डेल्टा-प्लस कोरोना भाईसाहब के नए रूप में आया है। इसलिए जब पिछली बार वे अपने ड्रोन से आए थे तो हमें नहीं मिल सके। तो इस बार मिलेंगे जरा समझने में दिक्कत जा रही है। क्योंकि जनसंपर्क विभाग ने अभी तक कोई एडवाइजरी जारी नहीं की है। और जबरदस्ती मिलने का मतलब कड़ी धूप अथवा लगातार बारिश या फिर पुलिस के कड़क प्रबंधन जो पत्रकारों के लिए दीवार बना कर खड़ा कर दिया जाएगा, उसका सामना करना पड़ेगा।

 ऐसे में यह प्रश्न अधूरा ही रह जाएगा की सीएम के "वचन का शासन" क्या ब्लैकफंगस के पत्रकारों को लाभ दिला पाया या फिर अनूपपुर के ईमानदार महिला कलेक्टर ही बता पाएंगे। किंतु वह वही बोलेंगे जो उनका स्वअनुशासन का जमीर उन्हें इजाजत देगा। क्योंकि अभी तक कोई प्रेस विज्ञप्ति में ब्लैकफ॔गस से मरे हुए पत्रकारों के बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं आई है।

 तो एक प्रश्न यह भी है कि क्या आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के जंगल में रेत माफिया जिसमें एक महिला रेंजर किसी रेत तस्कर से ओपन सौदा कर रही थी उसके लिए क्या कार्रवाई हुई...? अथवा नए-नए माफिया, कहां-कहां कितना रेतभंडारण बरसात पूर्व कर लिए हैं। प्रश्न तो और भी खड़े होते हैं जो लोक जनहित के हैं उसमें एक यह भी कि जिस भगवान राम के नाम पर भाजपा का राम राज चल रहा है उस शहडोल के मोहन राम मंदिर में आखिर खुला डाका किसके संरक्षण और किसके निर्देश पर चल रहा है। मंदिर की अचल संपत्ति को लूटने वाला पंडित और पुजारी कैसे समाज में सम्मानित होकर अपना तथाकथित सभ्य समाज गढ़ रहा है। क्योंकि हाई कोर्ट जबलपुर 2012 में जो आदेश करता है उसका पालन कराने की बजाय मंदिर लूटने की इजाजत कौन दे रहा है...? यह कौन सा रामराज्य है..? एक प्रश्न तो यह भी बनता है कि जब पिछली बार आप हेलीकॉप्टर से व्यवहारी आए थे तब सड़क को नहीं देखे थे और बाद उस सड़क के कारण 50 से ज्यादा लोग बाणसागर के नहर में नरसंहार कर दिए गए थे। तो जो एमपीआरडीसी में सस्पेंशन का नाटक हुआ, क्या उसमें कुछ हुआ... जो अभी तक अनुत्तरित है. अब तो मुख्यमंत्री भूल भी गए होंगे कि जब वे  केलमनिया मनिया आए थे तब एक अंसारी नाम के व्यक्ति को अयोग्य ठहराया था वह कैसे तृतीय वर्ग का कर्मचारी सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग से आदिवासियों का कल्याण कर रहा है और अपनी योग्यता से कितने करोड़ रुपए का निकासी कर चुका है यह प्रश्न भी मुख्यमंत्री से अपेक्षित है...?

 प्रश्न ढेर सारे हैं, किंतु हवा से प्रश्न होंगे नहीं...? और ड्रोन में बैठकर आए हुए मुख्यमंत्री पत्रकारों से मिलेंगे नहीं...? क्योंकि कोरोना कहीं उन्हें अस्वस्थ ना कर दे..? इसलिए पत्रकारों के बीच में पुलिस की दीवार खड़ी करके वे स्वयं को किसी डॉन की तरह सुरक्षित कर लेंगे।

 तो यह भी देखना होगा हेलीकॉप्टर में बैठकर जब मुख्यमंत्री आसमानी फरिश्ते की तरह अवतरित होंगे और क्या-क्या सब्जबाग का लोकहितकारी योजनाओं को परोसेंगे..। अब यह अलग बात है कि वह अपने प्रेस अटैची के जरिए शहडोल के पत्रकार समाज के कीड़े मकोड़ों को समाचार का कचरा भेजेंगे या फिर कोई संवाद के जरिए किसी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कोई संवाद करेंगे। क्योंकि ड्रोन की योग्यता पत्रकारों के पास है नहीं, और ड्रोन में बैठकर आए हुए आसमानी फरिस्ते पत्रकारों से कितनी दूरी बनाएंगे..., यह हमारे लोकतंत्र की व्यवस्था पर निर्भर करता है...? तो देखते चलिए आगे आगे होता है क्या...?


रविवार, 27 जून 2021

मामला जहर देकर हत्या और गुमशुदा महिला का

 

मामला जहर देकर हत्या और  गुमशुदा महिला का

और एसपी को गोलमोल जलेबी बनाकर परोस दी गई....

(अपराध संवाददाता)


(क्योंकि वर्तमान में आदमी की औकात खत्म होती जा रही है वह एक नंबर या प्रकरण बनकर रह जाता है। इसलिए इस लेख में व्यक्ति के सम्मान को बचाने के दृष्टिकोण से प्रकरण क्रमांक और काल्पनिक नामों का सहारा लिया गया है पक्षकारों को लेकर बाकी पुलिस अधिकारी वही हैं जो वास्तव में रहे।)
 
तो समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर हुआ क्या कि इस प्रकरण में न्यूज़ बनाना पड़ रहा है क्योंकि पुलिसिया कार्यवाही गोलमोल जलेबी घुमाकर अपने आपको सही साबित करते रहते हैं। और हितग्राही पक्ष लगातार प्रताड़ित होता रहता है। परिणाम यह होता है कि  इमानदार पुलिस अधीक्षक होने के बाद भी वह भ्रम के जाल में इस कदर घिर जाते हैं कि उन्हें प्रताड़ित हितग्राही पक्षकार को न्याय देने की बजाय और प्रताड़ित करने में जरा भी हिचक नहीं लगती। क्योंकि उन्हें लगता है जो उन्होंने किया वह एक ईमानदार कार्यवाही है। किंतु सच बात यह है कि उन्हें गलत तरीके से फीड-बैक देकर अधीनस्थ पुलिस कर्मचारियों ने अपने लाभ का धंधा जमकर किया।
 पूरे भ्रम के मायाजाल में प्रकरण पर जब आरटीआई के जरिए जानकारी ली गई तो पता चला कि शहडोल कोतवाली द्वारा अपने पत्र क्रमांक777/19 दिनांक 09 जनवरी 2021 को

पत्र भेजकर पुलिस अधीक्षक को जो जानकारी दी गई वह अपने आप में एक प्रकार का प्रमाणपत्र है कि पुलिस ने पूरी इमानदारी से यह स्वीकार किया कि उसने कई वर्षों पुराने एक गुमशुदा के

मामले पर तो दूसरा जहर देकर की गई हत्या के मामले पर मूक-बधिर बनी रहे। और यदि शिकायतकर्ता वीके पांडे (काल्पनिक नाम) न्याय की अपेक्षा में   बार-बार इस बात की शिकायत करता रहा तो उसके बारे में भी लिख दिया गया कि वह शिकायत करने का आदी है।
 तो हमारी स्थानीय पुलिस पूरी ईमानदारी के साथ यह सोचती है यह उसका हक है कि वह अगर वीके पांडे के छोटे भाई कमांडो पांडे (काल्पनिक नाम) का मामला जहर देकर की गई हत्या हो (जैसा कि आरोप है) अथवा थाना शहडोल में मृत कमांडो पांडे की बहन इंदिरा मिश्रा (काल्पनिक नाम) महिला को लाकर उसे गुमशुदा की हालात तक पहुंचा देने का मामला लंबित हो तो यह कोई अपराध नहीं है....?  स्थानीय पुलिस पूरी इमानदारी से यह भी कहती है कि इस मामले में अपने भाई व बहन के मामले पर कार्यवाही चाहने वाला  पक्षकार वीके पांडे आदतन शिकायत करता रहता है..., उसे कहीं से भी कहीं अनैतिक, कहीं अन्याय या कहीं भी गलत होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है....
 और यदि प्रताड़ित पक्षकार वीके पांडे इस पूरी घटना की पृष्ठभूमि में यानी (2 मिनट के लिए झूठा ही सही ) पुलिस द्वारा संरक्षित प्रकरण में हत्या और गुमशुदा मामले के लाभार्थी, प्रोत्साहित होकर संबंधित अपराधिक मानसिकता अन्य अपराध करती है अथवा षड्यंत्र करती रहती है जिसे संबंधित पुलिस-वकील और अपराधी शामिल हैं अगर उसमें पुलिस के साथ कोई तिवारी नाम का अधिवक्ता भी शामिल होता है  तो संबंधित पुलिस को कोई गलत नहीं लगता...। क्योंकि इतने लंबित प्रकरणों में आपराधिक संगठनों में कुछ वायरस तो जन्म लेंगे ही। तो क्या संबंधित लोगों ने इस प्रकरण में षड्यंत्र पूर्ण  अपराध के जरिए अजीबका का साधन खोज रखा है....?और वह उसे बरकरार रखने के लिए शिकायतकर्ता वीके पांडे तथा उसके परिवार को तमाम प्रकार के अपनी कानूनी धाराओं में घेराबंदी करके उसे पारदर्शी तरीके से परेशान करते रहना चाहता है....?
 और यह सब बातें अधीनस्थ अमला पूरी इमानदारी से पुलिस अधीक्षक को पत्र के जरिए  सूचना भी देती है। फिर भी अगर पुलिस अधीक्षक भ्रमित होकर हत्या अथवा महिला गुमशुदा के मामले में बजाय सकारात्मक कार्यवाही करने के, अधीनस्थ पुलिस के बताए अनुसार कि "शिकायतकर्ता वीके पांडे शिकायत करने का आदी है", वीके पांडे को और उसके परिवार को शांति भंग करने वाला बता कर 107 /116 की गंभीर कार्रवाई हो तक ले जाने की हालात में पहुंचा देती है। तो न्याय की मनसा को ग्रहण लग ही जाता है।
 किंतु अगर पवित्र मंसा का पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी जैसे सुलझे हुए अधिकारी होने के बाद भी यह सब होता रहा तो कर्तव्यनिष्ठा की साधना में कहीं ना कहीं खोट प्रकट हो जाती है। कि आप चूक गए गोस्वामी जी, साधना व्यर्थ जा रही है। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि इस प्रकरण को लगातार हम नजदीकी से देख और समझ रहे और अब बताने की भी जरूरत नहीं रह गई है क्योंकि अधीनस्थ शहडोल कोतवाली का पुलिस अमला लिखित में उच्च अधिकारी पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी को पत्र भेजकर सूचित कर रहा है कि हां अपराध भी हुए हैं कोई निराकरण भी नहीं हुआ है और इन सब के पीछे जो षड्यंत्र से घटनाएं चल रही हैं पुलिस से शिकायतकर्ता वीके पांडे जो शिकायत कर रहा है वह आदतन-शिकायत-मात्र है।

 तो ऐसे हालात में क्या उचित नहीं है की बजाए हत्या और गुमशुदा के मामले में पारदर्शी तरीके से सभी परिस्थितियां स्पष्ट होनी चाहिए ताकि जो नए संडयंत्रों का माफिया नुमा जमघट तैयार करने वाले तमाम लोग जो कोतवाली पुलिस में लंबे समय से है कुछ नए लोग जो अधिवक्ता बन कर इस हत्या और महिला की गुमशुदा में अपने बच्चों के लिए रोजी-रोटी तलाश रहे हैं उन्हें अपने षड्यंत्र करने का अवसर ना मिल सके।
 किंतु यह तब संभव है जब इमानदार दिखने वाले भी पुलिस अधीक्षक इमानदारी से स्वतंत्र वा निष्पक्ष जांच के लिए मामले को हकीकत को अंजाम तक पहुंचाएंगे। देखना होगा कि अगर एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस उच्च अधिकारी के रहते यह सब नहीं हो पा रहा है तो आने वाली पुलिस की नए संबंधित लोग किस प्रकार से प्रकरण को देखेंगे अथवा वह भी "लकीर के फकीर" की तरह इस हत्या व गुमशुदा की तथा इसके पृष्ठभूमि में पलने वाले तमाम अपराधों की घटनाओं से अपनी अवैध कमाई को बरकरार रखना चाहेंगे...? अथवा न्याय की मंसा को अपनी देशभक्ति और जन सेवा के नारे के साथ खड़े दिखेंगे...?
 किंतु सूत्र बताते हैं की गुमशुदा महिला की कुछ जानकारियां पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आई हैं किंतु अभी तक पुलिस उस पर कुछ कार्यवाही करती दिख नहीं रही है..... और यदि उसने कोतवाली के हवाले गुमशुदा की जानकारी दी तो वह उस महिला के लिए भी उतना ही खतरनाक साबित होगा जितना कि शिकायतकर्ता वी के पांडे और उसके परिवार को इस मामले की पृष्ठभूमि के चलते प्रताड़ित होना पड़ रहा है.. तो देखते हैं आगे आगे होता है क्या....?


कांटेक्ट ट्रेसिंग से समाप्त हो सकता है नशा का कारोबार (त्रिलोकीनाथ)



सुनहरे अवसर का लाभ दिखता क्यों नहीं...?

कांटेक्ट ट्रेसिंग के जरिए समाप्त हो सकता है नशा का कारोबार 

फिर पकड़ाया गांजे का खेप

(त्रिलोकीनाथ)

 पिछली बार जब मादक पदार्थों की बड़ी खेप पकड़ी गई थी तो पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी स्वयं प्रेस वालों से इसको शेयर किया  उनकी चर्चा के बाद यह बात स्पष्ट हुई कि अभी तक जो मादक पदार्थों को लेकर कार्यवाही की गई हैं उनकी नजर में उसमें 60% तस्करों पर कार्रवाई हुई है और इससे तस्करों का गठजोड़ टूटने का की उम्मीद की थी। किंतु देखा यह जा रहा है कि अगर मादक पदार्थों के व्यापार का बाजार किसी एक तस्कर के यहां से खत्म होता है तो उस बाजार में कब्जा करने के दशकों से मादक पदार्थों के व्यापारी वहां पर सेटिंग करने लगते हैं। आज फिर एक कारोबारी पकड़ा गया  जैसा कि पुलिस की


प्रेस विज्ञप्ति बताती है कि पकड़ा गया पवन जेल में रहा और छूट कर आया था इसलिए उसने  गोहपारू  में गांजे का कारोबार कर रहा था। पुलिस अधीक्षक श्री गोस्वामी के कार्यकाल में मादक पदार्थों पर की गई कार्यवाही अब तक की की गई कार्यवाहीयों मैं अब्बल कहीं जाएंगी और निश्चित तौर पर शहडोल जिले के नागरिकों को खास तौर से युवा पीढ़ी को गांजा का व्यापार करने वाले खुलेआम तरीके से आकर्षित नहीं कर पाएंगे। किंतु इसकी सफलता और सुनिश्चितता तब तक संभव नहीं है जब तक कि इस पर गांजा के सेवन करने वाले व्यक्ति से पूरे चैनल का लिंक ना ढूंढा जाए। इसमें गुप्त तरीके से गांजा के ग्राहकों की मदद से तस्करों को "कांटेक्ट ट्रेसिंग" के जरिए पकड़ना आसान होगा और फिलहाल तो कोरोना महामारी के दौरान "कांटेक्ट ट्रेसिंग" क्या होती है पुलिस विभाग को बताने की जरूरत नहीं है,वह भली-भांति इस पर काम कर रहे हैं।
 इसके बावजूद भी यदि 1 किलो गांजा भी विभिन्न थाना क्षेत्रों में सफलता के साथ बिक रहा है तो कोई शक नहीं होना चाहिए की पहली नजर में वहां का बीट प्रभारी के सीआर में यह बात दर्ज होनी चाहिए और इतनी कड़ाई पर, निश्चित तौर पर जो कि बीट प्रभारी पूरे संज्ञान में रखता है हर अपराध उनकी नजर से गुजरता है गांजा को अथवा अन्य मादक पदार्थों के बाजार को नेस्तनाबूद किया जा सकता है। और क्योंकि पुलिस अधीक्षक की मंसा मादक पदार्थों को लेकर पवित्र दिखती है और इस दौर पर भी अगर कांटेक्ट रेसिंग के जरिए माधक कारोबारी चिन्हित होकर पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किए जाते हैं तो शायद पुलिस विभाग अपना सुनहरा अवसर खो देगा। देखना होगा कि अपने पुलिस कप्तान के साथ पुलिस का सिपाही कितनी ईमानदारी के साथ फर्ज को अदा करता है क्योंकि उसके किए गए कार्यों का जमीन में युवा वर्ग के पूरी पीढ़ी का भविष्य उस से जुड़ा हुआ है और अगर एक भी युवा गांजा पीता अथवा ड्रग्स लेता पाया जाता है तो निश्चित तौर पर उसका हिस्सा क्षेत्रीय पुलिस पीठ प्रभारी अथवा थानेदार को मिलता ही होगा ऐसे में पुलिस कप्तान की मंशा के साथ धोखाधड़ी भी होगी और जिले के साथ गद्दारी तो है ही।



गुरुवार, 24 जून 2021

इवेंट में बुढार पाया जादूगरी का लक्ष्य

इवेंट की दुनिया में बुढार ने

पाया जादूगरी का लक्ष्य


2011 की जनगणना मे वैक्सीनेशन के 100% लक्ष्य प्राप्त किया नगर पंचायत बुढार ने 

जिले में जनपद पंचायत सोहागपुर के ग्राम पंचायत जमुई में शत-प्रतिशत टीकाकरण कराकर प्रदेश में पहली ग्राम पंचायत होने का गौरव प्राप्त किया था। इसी क्रम नगर परिषद बुढ़ार ने शत-प्रतिशत टीकाकरण कराकर जिले कीर्तिमानो में एक और सफलता दर्ज की। नगर परिषद बुढ़ार में जिसकी जनसंख्या 19289 है, (2011 के जनसंख्या के अनुसार)। जिसमें पुरूष 9269 तथा महिला 10020 है। नगर परिषद बुढ़ार में कोई मतदाता 13854 एवं 18 वर्ष से उपर के मतदाता 8030 तथा 45 वर्ष के उपर के कुल मतदाता 5994 दर्ज है। नगर परिषद बुढ़ार में 18 वर्ष के उपर के सभी का टीकाकरण किया गया। 70 गर्भवती माताएं एवं 54 जो कोविड पाॅजिटिव व्यक्ति है, उनका टीकाकरण शासन के प्रोटोकाॅल के अनुसार किया जाएगा। 2011 की जनगणना पश्चात पिछले 10 साल में नए बालिक लोगों को कितना वैक्सीनेट कियाा गया जो 18+ के रहे होंगे। इसके आंकड़े अभी सामने नहीं आए हैं। और शायद इसीलिए अभी नगर में जगह-जगह वैक्सीनेशन सेंटर पर वैक्सीन का काम लगातार हो रहा है हालांकि स्थानीय निवासियों इन वैक्सिंग सेंटर पर अन्य लोगों केेे वैक्सीन होने संतोष जताया है ।




              

बुधवार, 23 जून 2021

इक हसीना थी... इक दीवाना था... (त्रिलोकीनाथ)

बक्सवाहा आंदोलन को समर्पित---- 

इक हसीना थी...


इक दीवाना था....


कलेक्टर के बंगले में भालू

बक्सवाहा जंगल विनाश की ओर

(त्रिलोकीनाथ)

एक ताजा खबर है कि कलेक्टर अनूपपुर के बंगले में भालू याने जामवंत जी तफरी करने पहुंचे, एक थोड़ा सा बासी  है इन्हीं कलेक्टर के अंडर में अमरकंटक तीर्थनगरी, "मिनी स्मार्टसिटी" में कथित तौर पर एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायालय) के आदेश के अनुसार यूकेलिप्टस (ओरियंट पेपर मिल्स अमलाई कागज कारखाना का कच्चा माल) को हटाए जाने मैं अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और एक बहुत बासी खबर है कि मुंबई नगर निगम में हमारे हीरो ऋषि कपूर के बंगले में बरगद के पेड़ की डाली ज्यादा काटने के कारण उनके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज हुआ।

 किंतु जो सबसे बासी खबर है वही सबसे ताजा खबर है। क्योंकि बासी खबर बताती है की जिस हीरो को विलन बताकर मुंबई ने बरगद की कुछ


डाली ज्यादा काटने के कारण अपराधी बता दिया अब बक्सवाहा के जंगलों में हीरा निकालने के जुगत में बैठे उद्योगपति बिरला को पूरा जंगल काटने की अनुमति दे दी गई ताकि वह हीरा निकाल सके और हीरा निकलेगा तो नेता उद्योगपति माफिया यह सब मिलकर उसे भ्रष्टाचार के जरिए मिल बांट कर खाएंगे इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि "विकास" तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला बड़ा जुमला है। जो उत्तरप्रदेश के सहनामी विकास नाम के अपराधी को उज्जैन में महाकाल की कसम खाकर लाया गया और ले जाकर फिर से उत्तरप्रदेश में काउंटर कर दिया गया ।तो विकास का तीसरा रूप बक्सवाहा की हीरा खदान में कितना जिंदा रहेगा, यह एक मिथक ही है... इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हीरो ऋषि कपूर भी बिना अनुमति के अगर बरगद की डालियों को ज्यादा काट देते हैं अपने घरेलू विकास के नजरिए से और जड़ को बचा कर रखते हैं तो पूरा सिस्टम उन पर टूट पड़ता है कि आपने

पर्यावरण या सांस लेने की सिस्टम को नष्ट करने का काम किया है ।क्योंकि मुंबई नगर निगम को अपने अनुभव के हिसाब से मालूम है एक बरगद के पेड़ में लगी शाखाएं कितना बड़ा प्रकृति का वरदान है ,उसे अंदाजा है की असल में हीरो ऋषि कपूर हमारा हीरा नहीं है बल्कि वास्तविक हीरा, बरगद में लगी शाखाएं हैं। इसलिए हमारे चहेते हीरो ऋषि कपूर मुजरिम ठहराए जाते हैं।

 कौन नहीं जानता उनकी यादगार फिल्म "कर्ज" का यह अंदाज कि, क्या समा था..., क्या उमर थी..., क्या जमाना था। एक हसीना थी ......एक दीवाना था......।

 आज भी और हमेशा वे हमारे हीरो बने रहेंगे। बावजूद इसके उन्हें कोई भी कितना बड़ा अपराधी ना घोषित कर दे। उनकी इस छोटी सी गलती के लिए की उन्होंने पेड़ नहीं काटा बल्कि शाखाएं छांट दी थी।

अगर यह उदाहरण माना जाए कि हीरो के चरित्र की हत्या हो सकती है एक बरगद के पेड़ की शाखाएं को काटने के लिए। तो अब जबकि यह तय हो चुका है महान नरेंद्र मोदी की सरकार में की ऑक्सीजन की बहुत बड़ी कीमत होती है, ऑक्सीजन की कमी से  आदमी कीड़े-मकोड़े की तरह मर जाता है। बावजूद इसके उम्मीद तो थी कि विकास के नाम पर हीरा निकालने के लिए बक्सवाहा के जंगल विनाश को दी गई सरकारी अनुमति तत्काल निरस्त कर दी जाए, सरकार में बैठा हुआ माफिया तंत्र उसे संरक्षण देता हुआ नजर आता है। तो न्यायपालिका आखिर संज्ञान क्यों नहीं ले रही है.... यह प्रश्न तो खड़ा ही होता है की हीरा जरूरी है या फिर ऑक्सीजन के लिए जंगल जरूरी है....?

 न सिर्फ ऑक्सीजन बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जैवविविधता के लिए भी जंगल बहुत जरूरी है। 

तो माना कि हमारी जननेता गुलाम है पूजीपतियों के और बंधुआ मजदूर भी। तो भी उन्हें दिखाने वाले लोकतंत्र में दिखनेवाली लोकतांत्रिक नीतियों का अनुसरण क्यों नहीं करना चाहिए...? ताकि संविधान सम्मत दिखावे का विकास भी दिखे......।   2 मिनट के लिए हम मान भी लें कि बक्सवाहा के जंगल को काट कर ही हीरा निकाला जा सकता है तो ऐसी अनुमतिया तब क्यों नहीं दिया जाना चाहिए जबकि उद्योगपति कोई ऐसे मरुस्थल में अपनी साहस और उद्योग से उससे दुगना जंगल पहले खड़ा ना कर दे। या 5 या 10 साल के लिए उसे जीवित करके न दिखाएं। तब उन्हें यह आवश्यक हीरा निकालने की अनुमति दी जा सकती है। यह एक विकल्प हो सकता है।किंतु माफिया को तत्काल धन चाहिए ताकि वह सत्ता पर अपना कब्जा बनाकर रह सके।

यही कारण है कि शहडोल जैसे महामहिम राष्ट्रपति जी के संवैधानिक संरक्षण में विशेष आदिवासी


क्षेत्र पांचवी अनुसूची में शामिल होने के बाद भी सिर्फ ओरियट पेपर मिल का कच्चा माल बनकर रह गया यह अनुभव आज प्रमाण पत्र के रूप में शहडोल की जमीनी धरातल में देखा जा सकता है। यूकेलिप्टस वृक्ष का जैविक भंडार बना दिया गया तो क्या फायदा ऐसे संविधान और ऐसे राष्ट्रपति के होने का जिसमें विशिष्ट क्षेत्र होने के बाद भी उसे कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है...? तो यहां माफिया सफलता के साथ जैवविविधता की प्राकृतिक संरक्षण को लगभग नष्ट कर दिया।

 और अगर धोखे से कुछ वर्ष की बासी खबर पर जाएं तो पर्यावरण संरक्षण के लिए गठित राष्ट्रीय हरित न्यायालय (एनजीटी) का आदेश भी कूड़े और कचरे की तरह रद्दी की टोकरी में डाला हुआ नजर आता है क्योंकि अनूपपुर जिले के अधीन उनकी कथित तीर्थनगरी और अब मिनी स्मार्ट सिटी भी अमरकंटक कलेक्टर अनूपपुर के अधीन यूकेलिप्टस वृक्ष के सड़क के किनारे लगे दिखने वाले कतार को जड़ से उखाड़ कर नहीं हटवा पाए हैं। तो अंदर जंगल में माफिया जिसने खुद तत्कालीन कलेक्टर का संरक्षण, नेताओं का संरक्षण और उद्योगपतियों की सोच शामिल है उसका प्लांटेशन कैसे हटवा पाएंगे...? अब युवा कलेक्टर संवेदनशील महिला होने के नाते कैसे कर पाएंगी, यह उनके लिए चुनौती है, और यह चुनौती हम सिर्फ पत्रकारिता के नाते उन्हें नहीं दे रहे; बिल्कुल ताजी खबर है


उनके घर के अंदर एक भालू घुस गया था, चुनौती देने के लिए कि आपने मेरा भालुवों का निवास "भालूमाड़ा" कोतमा के पास रहने का ठिकाना बर्बाद कर दिया है इसलिए मैं कलेक्टर के बंगले में ही रहना चाहता हूं। अभी तो तफरी किया है ऐसा मानकर चलना चाहिए।

 इन हालातों में जब आप जंगल को नष्ट कर रहे हैं चाहे भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई हो या फिर महामहिम राष्ट्रपति जी के नाक के नीचे पांचवी अनुसूची में शामिल संविधान की सुरक्षा में अनूपपुर जिला अथवा शहडोल संभाग  हो दोनों ही जगह पर्यावरण संरक्षण की चुनौती आज की शैक्षणिक योग्यता के लिए भी एक चुनौती है ऐसा मानकर यदि पढ़ा-लिखा आईएएस समाज, या न्यायपालिका के न्याय अधिकारी, छतरपुर की बक्सवाहा के जंगल को विनाश करने में तुले हुए माफिया सिस्टम के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेकर कोई काम करते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं तो मानना चाहिए सिस्टम सड़ रहा है फिर कोई भालू किसी कलेक्टर के बंगले में घुस कर रहना चाहता है या फिर कोई वन का निवासी दर-दर शहरों में भटकता है, दोनों के लिए ही हमारा लोकतांत्रिक ढांचा जिम्मेदार है। और उन्हें इन सब पर पुनर्विचार करना चाहिए और उसकी शुरुआत के लिए बक्सवाहा की जंगल की रक्षा पहला बड़ा प्रमाण पत्र होगा  अन्यथा माफिया जो हमारे और आपके दिल और दिमाग में विकास के नाम पर कब्जा कर लिया है वह अपना काम कर ही रहा है..........।                                                                                    (भाग 1 समाप्त, भाग-2 जारी)



मंगलवार, 22 जून 2021

इमानदारी पर कायल हुए लोग

युवा आईएएस ने दिया जवाब
जनता ने जज्बे पर संवेदना के साथ की टिप्पणी

भलाई वे मरुस्थल केेे शुतुर्ग मुर्ग की तरह, चल रही ईमानदारी की आंधी से बचने के लिए अपना सिर रेत के ढेर में छुपा ले किंतु जनता जनार्दन ने युवा आईएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ के ईमानदारी को सिर माथे लिया है उनके इंटरव्यू सराहते  हुए अपनी भावनाओं को शेयर किया है। बता दें मध्यप्रदेश शासन ने विवाद आने पर श्री जांगिड़ को स्पष्टीकरण देने का नोटिस दिया जिसका जवाब उन्होंने आज दिया है



पिछले दिन चर्चा में आने के बाद आम नागरिकों ने अपनी भावनाएं शेयर की है जिनमें से कुछ इस प्रकार की देखी गई जो बताती हैं आज भी ईमानदारी व कर्तव्य निष्ठा का सम्मान बरकरार  है....

















 

मोगैंबो खुश हुआ (त्रिलोकीनाथ)

21 जून के रिकॉर्ड वैक्सीनेशन पर


 
खुश हुये.. 

 मोदी.

आखिर
  वैक्सीनेशन पर क्यों नहीं हो रहा है डाटा कलेक्शन
( त्रिलोकीनाथ )

म.प्र. के एक IAS उच्च अधिकारी से संवाद हो रहा था की शहडोल कलेक्टर का यह निर्णय कि एक तरफ दुकान खुली रहेंगी और दूसरी तरफ बंद रहेंगे इससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होगा, क्या गलत नहीं है..? क्योंकि लोगों की भीड़ निश्चित समय में इस तरफ ही चली जाएगी.., उन्होंने कहा वर्तमान समय ही गलत है, और इस समय कोई भी निर्णय लिए जाएंगे वह गलत लगने लगेंगे... एक उदाहरण उन्होंने दिया कि मैं सोचता हूं कि लोगों को पूरी छूट होनी चाहिए बाजार में जाने की ताकि जो सतर्क बुद्धिमान तबका है वह भीड़ से बचकर रात के वक्त पर परचेकिंग कर सकता है। इससे सोशल डिस्टेंसिंग को लाभ मिलेगा। किंतु यह भी गलत है। तो वक्त गलत है इसलिए हर निर्णय गलत साबित होते हैं, और कोई बात नहीं है।

 कल 21 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जाहिर की है की उनके मनपसंद " योग दिवस 21 जून " को रिकॉर्ड कोविड- वैक्सीनेशन का काम हुआ है।

हालांकि पिछले 6 महीने में 1 दिन की यह एक बड़ी सफलता भी है, कार्य की प्रगति के तरीकों से। किंतु पिछले 6 माह में "पोस्ट कोविड-19 वैक्सीनेशन इफेक्ट" के लिए क्या जानकारियां इकट्ठा की गई हैं....? अभी तक इस पर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं आया है, बावजूद इसके भारत में करोड़ों लोग एक प्रयोगशाला की तरह लैब में टेस्ट हो रहे हैं...।

 बीमारी के तौर पर ब्लैक फंगस प्रमाणित तौर पर पहला बड़ा प्रभाव के रूप में प्रमाणित हुआ है शहडोल में पत्रकारिता समाज के दो पत्रकार "ब्लैक फ॔गस" की बीमारी में मृत हो गये और अन्य क्या प्रभाव किस किस व्यक्ति को कैसे कैसे पड़ रहा है ना तो सरकार के पास इसका कोई प्रोग्राम है और ना ही सरकार की कार्यप्रणाली से यह लगता है कि वह जानना चाहती है, कि उसका एक-एक नागरिक इस वैक्सीनेशन कार्यक्रम से किस प्रकार की सर्वाइवल-सिचुएशन से गुजर रहा है।

 यह बात इसलिए समझना और कहना भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि कोविड-19 के संपूर्ण इलाज के लिए टीकाकरण कार्यक्रम एक हल नहीं है बल्कि एक बड़े बूस्टर के रूप में मनुष्य को यह है सुरक्षा चक्र प्रदान करता है ताकि चिन्हित कोरोनावायरस से वह स्वयं में लड़ने की क्षमता पैदा कर सके। लेकिन जिस प्रकार से कोरोना लगातार बदलाव हो रहे हैं कोरोनावायरस को लेकर एक खुला युद्ध की तरह हो गया है। कोविड-19 अपनी सेना के साथ रूप बदल-बदल कर मानव सभ्यता पर हमला कर रहा है।

 भारतीय पुराण ग्रंथों में श्री दुर्गा सप्तशती में रक्तबीज नामक राक्षस का उल्लेख आता है कि जहां उसकी खून की बूंदें गिरती थी वहां नया रक्त बीज राक्षस पैदा हो जाता था  उतनी ही शक्तिशाली शक्ति के साथ जितनी की देवी जगदंबा रक्तबीज से लड़ रही थी। तो सांकेतिक तौर पर ही सही यह स्पष्ट रहा कि वर्तमान में कोरोनावायरस रक्तबीज राक्षस की तरह बल्कि उससे भी ज्यादा नए रूप में वह मानव सभ्यता पर कतिपय क्षेत्र में जानवर सभ्यता पर भी हमला कर रहा है। और भारत में डेल्टा प्लस अथवा उसके अन्य वेरिएंट के तौर तरीके हमारे लिए चिंता का विषय है । 

तो हमें इस बात के लिए क्यों खुश होना चाहिए की टीकाकरण ने रिकॉर्ड कायम किया है। क्योंकि उससे ज्यादा रिकॉर्ड अज्ञात तरीके से कोविड-19 का नया वंश अपना समाज विकसित कर रहा है हमारा ध्यान टीकाकरण में अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग प्रभावों को डाटा एकत्र करने पर क्यों नहीं होना चाहिए...? फिर यदि आज इस पर कोई नवाचार कोई बड़ा कार्यक्रम तय नहीं करने की स्वतंत्रता दी जाती है  तो यह चिन्हित करना मुश्किल हो जाएगा कि किस प्रकार के नागरिक मनुष्य पर कौन सा वायरस कितना सफलता के साथ अथवा कितनी असफलता के साथ लड़ रहा था....? क्या मनुष्य जीता अथवा वायरस जीत रहा है...?

 21 जून को  व्यायाम के तरीके चित्रों में दिखाकर उसे गौरवशाली योग पद्धति के रूप में जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थापित कर दिया गया है क्या उसी तरह से हम टीका वैक्सीनेशन के कार्यक्रम को कोविड-19 का एकमात्र हल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं...? यह बात भी बहुत विचारणीय है।

 हमें याद रखना चाहिए कि किसी को खुश करने के लिए कोई भी लोक हितकारी कार्यक्रम जबरजस्ती किए जाने से उसके कुप्रभाव सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से पड़ने लगते हैं। जनसंख्या परिवार नियोजन-नसबंदी का कार्यक्रम जबरजस्ती किए जाने से उस लोकप्रिय कार्यक्रम को कितना बड़ा धक्का लगा यह आज बताने की जरूरत नहीं है। कहीं टीकाकरण का यह तरीका जो 21 जून को योग दिवस के बाजार में स्थापित करने का काम किया गया है उससे कहीं रिएक्शन ना हो जाए।

 बहरहाल यह स्पष्ट तौर पर देखने में आया है की "पोस्ट कोविड-19 वैक्सीनेशन रिएक्शन हो अथवा कोविड-वैक्सीनेशन हो फिर चाहे हजार व्यक्ति में किसी 10000 में या लाख व्यक्ति में एक असर डाल रहा हो, पर असर डाल रहा है और वही कोविड-19 की वंश वृद्धि के लिए खाद बीज का काम कर रहा है वहां से वह अपना नया वेरिएंट नया रूप बना रहा है तो जब तक हर नागरिक का डाटा कलेक्शन प्रथक प्रथक होकर से किसी पर भी कैसा प्रभाव पड़ रहा है उसका डाटा सामने नहीं आ रहा है और इस अंधकार की हालात में हमें खुश होने की जरूरत नहीं है । 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी क्यों खुश हो रहे हैं यह उनका अपना निजी मामला होगा किंतु एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के नाते जब तक एक-एक नागरिक सुरक्षा चक्र में कोविड वैक्सीनेशन प्रभावों से मुक्त होता नहीं दिखाई देता तब तक बहुत खुशी की बात नहीं है ....।

बेहतर होता कि जिन जिन नागरिकों का वैक्सीनेशन कर दिया गया है उन पर उसके क्या प्रभाव पड़ रहे हैं कौन सा नागरिक किस तरह से नई समस्याओं से ग्रस्त है शारीरिक/आर्थिक/ मानसिक क्या व्यवहार कैसा असर डाल रहा है उसका डाटा एकत्र नहीं किया जाता है खुश होने की जरूरत नहीं है।

जहां तक खुश होने की बात है, खुश होने के लिए मिस्टर इंडिया फिल्म में अमरीश पुरी का डायलॉग

बहुत चर्चित हुआ था

 "मुगैंबो.., खुश हुआ..."   

लेकिन हम व्यावहारिक जीवन में हैं इसलिए विचारणीय है डाटा कलेक्शन उतना ही जरूरी है 

जितना की कोविड-19 का वैक्सीनेशन। 

और  "आशा पर आकाश टिका है,

 स्वास्थ्य तंतु कभी टूटे......"

 इस अंदाज में नागरिक कर्तव्य बोध पर सांसे ले रहे हैं शायद उनका जमीर जाग जाए....



सोमवार, 21 जून 2021

मरणोपरांत पदाधिकारी ,चर्चा में बनी है कमल की भाजपा

 मरणोपरांत पदाधिकारी नवाजे जाने पर


 चर्चा में बनी है कमल की भाजपा

शहडोल भाजपा के अध्यक्ष कमल प्रताप करीब 14 महीने की लंबी गहन चर्चा और विचार विमर्श पश्चात  आनन-फानन में घोषणा की इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 18 अप्रैल को जिस भाजपा नेता की शहडोल में ही मौत हो गई थी, उसे कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया

शहडोल। शहडोल भाजपा में हलचल गर्म है बीते वर्ष 19 जून 2020  से लेकर अब तक जिले भर में कमल  की नई टीम को लेकर लगातार सुगबुगाहट रही और उस टीम में जगह पाने के लिए कार्यकर्ता अपनी-अपनी जुगत भिड़ाते नजर आते रहे। लगभग 14 महीने  बाद कमल प्रताप का कमल खिला । 19 जून को जब अपनी टीम की घोषणा की तो यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इतना समय लेने के कारण कम से कम बड़ी सूझबूझ और विचार विमर्श करने के बाद ही कमल प्रताप सिंह ने अपनी टीम बनाई होगी।  कार्यसमिति सदस्यों के अलावा जिला इकाई में 29 पदाधिकारियों को शामिल किया गया, इस नई टीम में जिन जिला कार्य समिति का सदस्य बनाया गया है,उस सूची में 34 में स्थान पर बिंदेश्वरी सिंह चतुर्वेदी को जिला कार्य समिति का सदस्य बनाया गया है, सूची बनाने से पहले या तो कमल प्रताप और उनके खास सलाहकारों ने इस सूची के संदर्भ में कोई जानकारी एकत्र नहीं की, या फिर अपनों को पद देने के बाद जिन भी नामों के बारे में उन्हें जानकारी थी उन्हें भरकर सूची जारी कर दी गई। बिंदेश्वरी सिंह चतुर्वेदी बीती 18 अप्रैल को कोरोना संक्रमण के कारण काल-कवलित हो चुके हैं, मेडिकल कॉलेज शहडोल में ही 18 अप्रैल की शाम कोरोना संक्रमण से उनकी मौत हुई थी और इसी दिन शहडोल में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था। स्रोत (सतीश तिवारी, हल-चल)



शनिवार, 19 जून 2021

विधायक सांसद मिलकर कार्यकारिणी में नहीं दिला पाए आदिवासियों को उनका हिस्सा.

🤗बहुप्रतीक्षित भाजपा कि शहडोल जिला ज॔बो कार्यकार्णी अंततः घोषित


😯-भाजपा संगठन में  पुनःखारिज किया विशेष आदिवासी क्षेत्र की संविधान की व्यवस्था

 🙁 -तीन विधायक और एक सांसद भी मिलकर कार्यकारिणी में नहीं  दिला पाए आदिवासियों को उनका हिस्सा...

😪आदिवासियों का प्रतिनिधित्व आर्मो के पास

😎कैट के प्रदेश उपाध्यक्ष मनोज बने जिला भाजपा कोषाध्यक्ष

🤔शैलेंद्र को मिला पुनः मीडिया का दायित्व

अंततः कमल प्रताप कि भारतीय जनता पार्टी की जिला कार्यकारिणी जंबो जेट की तरह जिले में उतर गई।


करीब एक सैकड़ा संगठन पदाधिकारी व कार्यकारिणी के सदस्यों में शहडोल विशेष आदिवासी क्षेत्र की संवैधानिक

व्यवस्था को लगभग खारिज कर दिया गया ।

29 पदाधिकारियों में सिर्फ एक पदाधिकारी आदिवासी बनाए गए हैं। जो बताता है की भलाई संविधान ने विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र की हैसियत बीसवीं सदी में ही शहडोल को दे दी हो और पांचवी अनुसूची में शामिल करके, उसे आदिवासियों के हित में सुरक्षित व सुनिश्चित करने का काम किया हो किंतु अभी तक यानी 24 साल बाद भी नागरिकों की मानसिकता ने आदिवासियों को संगठन में स्वीकार नहीं किया है।


 यह बात सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के साथ लागू नहीं होती उतनी ही तत्परता से कांग्रेस में भी दिखाई देती है। अगर आरक्षण की व्यवस्था ना

हो तो शायद ही इस बहुसंख्यक समाज का पार्टी संगठन के अंदर कोई जगह होगी। कम से कम कमल प्रताप सिंह के घोषित जंबो संगठन

कार्यकारिणी में प्रदर्शित होता है । कार्यकारिणी में संविधान की मंसा को लगभग खारिज करते हुए 90 पदाधिकारियों में सिर्फ 7 पदाधिकारी आदिवासी वर्ग के बनाए गए हैं। पदाधिकारियों में मनोज आर्मो को रखा गया है जबकि छह कार्यकारिणी में शामिल किए गए हैं। अनुसूचित जाति के एक भी पदाधिकारी नहीं बनाया गया है। जबकि ओबीसी से यानी पिछड़ा वर्ग के 6 पदाधिकारी और 13 ब्राह्मण 3 ठाकुर 6 बनिया पदाधिकारी बनाए गए हैं। जबकि कार्यकारिणी में 17 ब्राह्मण चार ठाकुर 17 बनिया दो अनुसूचित जाति और 6 अनुसूचित जनजाति तथा 12 पिछड़ा वर्ग से लिए गए हैं। इस तरह कुल मिलाकर देखा जाए तो 90 सदस्यों वाली इस जिला कार्यकारिणी में 59 लोग अनारक्षित हैं और शेष आरक्षित वर्ग के हैं।

 बहरहाल प्रभावशाली व्यवसायिक संगठन कैट के प्रदेश उपाध्यक्ष मनोज गुप्ता को जिला कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण दायित्व जिला कोषाध्यक्ष का सौंपा गया है। जबकि मीडिया का काम पुनः शैलेंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में दिया गया है।

अनारक्षित वर्ग को विशेष तौर से ब्राह्मणों को ज्यादा तवज्जो दी गई है बावजूद इसके ब्राह्मणों का हित पार्टी का नेतृत्व संगठन नहीं कर पा रहा है तो यह पार्टी संगठन दिखावे का संगठन रह जाएगा अथवा उन गुलाम और बंधुआ मजदूरों का संगठन रह जाएगा जो अपने प्रतिनिधित्व और दायित्व का निर्वहन स्वतंत्रता पूर्वक नहीं कर सकते। बहरहाल सभी पदाधिकारियों को बधाई व शुभकामनाएं जो भी हैं जैसे भी हैं समाज हित में सकारात्मक कार्य करते दिखाई देंगे। क्योंकि पार्टी संगठन ने अनारक्षित वर्ग के लोगों को पर्याप्त तवज्जो दिया है जो उनकी एक कठिन परीक्षा भी है



कोरोना में खोया भारत का नगीना, अलविदा मिल्खा

अलविदा उड़न सिख


कोरोना मे तय हुई 


                         अंतिम उड़ान 

                          मिल्खा सिंह

(त्रिलोकीनाथ)

 फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर 91 वर्षीय मिल्खा सिंह को कोरोना होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां गुरुवार को उनकी रिपोर्ट निगेटिव तो आ गई थी लेकिन कल उनकी हालत नाजुक हो गई और उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया. शनिवार की शाम पूरे राजकीय सम्मान के साथ चंडीगढ़ में उनका अंतिम संस्कार किया. भारत की शान करोड़ों लोगों के आइडियल रहे हमारे खिलाड़ी रहे मिल्खा सिंह को विजयआश्रम की विनम्र श्रद्धांजलि।


 










बुधवार, 16 जून 2021

स्वतंत्रता में शहीद क्यों हो रहे हैं आईएएस अफसर

कर्तव्यनिष्ठ-स्वतंत्रता और ईमानदारी ....

 


खतरनाक जोखिम बना

 आईएएस 

लोकेश कुमार के लिए




क्या हमारे लोकतंत्र में अब ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए धीरे धीरे जगह खत्म होती जा रही है..? या लोकतंत्र को मारने वाला "स्लो-पाइजन" अपना रंग दिखाने लगा अन्यथा अपने ऊपर आरोप झेल रहे अयोध्या के राम मंदिर ट्रस्ट के चंपत राय को यह कहने में जरा भी शर्म क्यों नहीं आई की हम पर आरोप तो महात्मा गांधी की हत्या के भी लग चुके हैं। अथवा अगर करोड़ों हिंदुओं के चंदा से एकत्र हुई करोड़ों की राशि पर नेताओं का हिंदू का नकाब पहनकर कोई भ्रष्टाचार किया जाता है तो वह शर्म की बात नहीं है;शर्त होनी चाहिए कि वह हिंदू हो और इसके लिए उसे "सनातन हिंदू" होने की कोई जरूरत नहीं है। अगर ऐसे हिंदू में मुसलमान भी, माफिया भी और धनाढ्य पूंजीपति भी घुसकर लूटपाट करते हैं, फिर वह कोई उपाध्याय हो तिवारी हो या अंसारी हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या हमारे नए इंडिया में सभ्य नागरिक होने की यही एकमात्र पहचान रह गई है....?

 अन्यथा तब शहडोल में रह चुके युवा आईएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ को सिर्फ इसलिए शहडोल जिले की  माफिया गिरी से टक्कर लेने पर स्थानांतरण नहीं किया जाता क्योंकि वह कानून का पालन करवा रहे थे, जो दिखने वाला था और अंदर का जो कानून था ,वह यह था कि कोई कैलाश बिश्नानी का जाति प्रमाण पत्र जो कथित तौर पर जैसा कि कांग्रेस पार्टी के रतन सोनी ने चिल्ला चिल्ला कर आरोप लगाया है कि वह फर्जी है और डॉक्यूमेंटल तौर पर प्राथमिक तौर में फर्जी ही है, उसके खत्म हो जाने का खतरा भी लोकेश कुमार जांगिड़ की कोर्ट में बना हुआ था। क्योंकि जांगिड़ इमानदार व्यक्ति थे। उसे फर्जी करार दे सकते थे तब भारतीय जनता पार्टी का सिंधी समाज का यह बड़ा चेहरा जो नगर पंचायत बुढार का अध्यक्ष है अपने पद व गरिमा को खो देते। क्या यही खतरा एकमात्र जांगिड़ के स्थानांतरण का पहला कारण बना..? तो कई कारण और भी जुड़ते चले गए और उनकी ईमानदारी मध्य प्रदेश शासन के लगभग भ्रष्ट हो चुके शासन और प्रशासन के सिस्टम के लिए खतरा साबित होने लगी। जांगिड़ के जाने के बाद किसी आईएएस में यह ताकत नहीं बची है कि वह फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर कोई इमानदार निर्णय ले सके अब तो एसडीएम का कार्यालय भी कैलाश के घर में याने बुढार में लगने जा रहा है ऐसे में एसडीएम की क्या विसात रहेगी कि वह कैलाश को हिला सके। अब अपने कम समय में दुगना स्थानांतरण की मार झेल चुके लोकेश कुमार को उनकी भारतीय लोकतंत्र के मध्यप्रदेश  में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा उनके सार्वजनिक अपमान का कारण बन रही है। क्योंकि माफिया उन्हें जीने नहीं दे रहा है और वे माफिया को सांस लेने की इजाजत नहीं दे रहे हैं।

 फिर चाहे माफिया का "किचन-केबिनट" किसी आई ए एस की पत्नी और मुख्यमंत्री की पत्नी का गठजोड़ ही क्यों ना हो..? तो नए घटनाक्रम को समझने का प्रयास करते हैं कि हमारा लोकतंत्र किस प्रकार से स्लो-पाइजन का शिकार हो रहा है... "बेबाक शक्ति" में यह बातें प्रकाश में लाई गई हैं।

(त्रिलोकीनाथ)

भोपाल:- देश में मप्र कैडर के ब्यूरोक्रेट्स को कर्तव्यनिष्ठ और बेहतर अधिकारी माना जाता रहा है। पिछले डेढ़ दशक में प्रदेश में ऐसे ब्यूरोक्रेट्स हाशिए पर रखे गए हैं जो जनता के बीच में लोकप्रिय और ईमानदार हैं। ऐसे अफसरों को फुटबॉल बनाकर यहां से वहां ट्रांसफर हो रहा है। पोस्टिंग से नाराज कई अफसर प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गए हैं। वहीं कई जाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। एक युवा आईएएस अधिकारी की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी नेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों की आंख की किरकिरी बन गई है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले साढ़े 4 साल में जांगिड़ का 8 बार तबादला किया जा चुका है। इससे परेशान उक्त अफसर ने अपने गृह राज्य महाराष्ट्र कैडर के लिए 3 साल की प्रतिनियुक्ति मांगी है। 2014 बैच के आईएएस लोकेश कुमार जांगिड़ की आप बीती है। साढ़े 4 साल के कार्यकाल में जांगिड़ को सरकार ने जहां पदस्थ किया है, वहां उन्होंने जनता के बीच विश्वास अर्जित किया। कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी के कारण जांगिड़ व्यवस्था में व्याप्त भर्राशाही को समाप्त करने के लिए कठोर कदम उठाते हैं, ताकि जनता तक सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सके। लेकिन व्यवस्था में घुन की तरह बैठे नेता और अफसर यह पसंद नहीं करते हैं। इस कारण उनका बार-बार तबादला कर दिया जाता है। इससे परेशान होकर जांगिड़ मप्र से पयालन करने जा रहे हैं। -ब्यूरोक्रेट्स का उठा भरोसा करीब एक दशक पहले तक मप्र कैडर में आना हर ब्यूरोक्रेट्स का सपना होता था। लेकिन अब राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने और काम करने की आजादी नहीं होने के कारण प्रदेश में पदस्थ आईएएस अफसरों का मप्र से भरोसा उठ गया है। अब सीनियर से लेकर जूनियर आईएएस प्रदेश से पलायन कर रहे है। प्रदेश से आईएएस अधिकारियों के मोहभंग का प्रमुख कारण अफसरों पर दिन- प्रतिदिन बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप को माना जा रहा है। पिछले कुछ अर्से से एक के बाद एक कई अफसरों ने दिल्ली की राह पकड़ीद। यह अधिकारी जल्द प्रदेश भी लौटने के इच्छुक नहीं हैं। प्रशासनिक सूत्रों की माने तो देश में मप्र ही ऐसा राज्य है जहां ट्रांसफर पोस्टिंग के कोई नियम नहीं है। अधिकारी राजनैतिक दबाव में प्रताडित हो रहे हैं। -सिस्टम की प्रताड़ना के शिकार हुए जांगिड़ 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ भी उन अधिकारियों में शामिल हैं जो सिस्टम की प्रताड़ना से तंग आकर मप्र से जाने का मन बना चुके है। जांगिड़ ने पारिवारिक कारणों का हवाला देकर महाराष्ट्र कैडर के लिए 3 साल की प्रतिनियुक्ति मांगी है। केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से उन्हें हरी झंडी मिल चुकी है। अब मप्र सरकार से हरी झंडी मिलना बाकी है। -जनता के बीच लोकप्रिय दरअसल लोकेश कुमार जांगिड़ की गिनती ईमानदार और तेजतर्रार आईएएस अधिकारी में की जाती है। लोकेश जहां भी पोस्टेड रहे हैं जनता के बीच उन्होंने कुशल कठोर प्रशासनिक अधिकारी की छाप छोड़ी है। पोस्टिंग के दौरान वे एसी चेंबर से निकलकर फिल्ड पर ज्यादा रहते है। लोकेश को जितना जनता पसंद करती है उतना ही राजनेता और अधिकारी उन्हें नापसंद करते है। लोकेश का चार साल में 8 बार ट्रांसफर हो चुका है। इस बार लोकेश अपने 40 दिन में हुए ट्रांसफर से मायूस हो गए और उन्होंने मप्र छोडने का मन बना लिया। लोकेश को सरकार ने कोरोना के नियंत्रण के लिए बड़वानी में अपर कलेक्टर के पद पर पोस्टेड किया था। इस दौरान लोकेश को कोरोना प्रभारी बनाया गया। लोकेश ने जिले में कोरोना को तो नियंत्रण कर लिया। इसके साथ ही वे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को भी नियंत्रित करने की भूल कर बैठे, और यह भूल उनको भारी पड़ गई। नतीजा 40 रोज के अंदर उन्हें वापस भोपाल बुला लिया गया। सूत्रों की माने तो बड़वानी में कोरोना महामारी में उपकरणों की खरीदी में भारी हेरफेर हुआ था। 39 हजार के ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटर 60 हजार में खरीदे गए। इसके साथ ही अन्य उपकरणों की खरीदी में करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ था। लोकेश ने चार्ज लेते ही भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगा दी थी। लोकेश की कार्यप्रणाली सिस्टम के ही लोगों को रास नहीं आई और उन्हें रातोरात हटवा दिया गया। -चैट हुआ वायरल सिस्टम की पोल खोलता एक चैट वायरल हो रहा है। यह चैट आईएएस एसोसिएशन के ग्रुप से हुआ है। चैट के दौरान इस बात का जिक्र किया गया है कि किस तरह एक अफसर को ईमानदारी की सजा मिली है। चैट में नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार की बातें भी सामने आई हैं। -सीनियर आईएएस भी प्रताडना से अछूते नहीं कभी सरकार के संकट मोचक रहे सीनियर आईएएस मनोज श्रीवास्तव भी सिस्टम का शिकार हुए है। श्रीवास्तव को रिटारमेंट से 21 रोज पहले पंचायत विभाग से अलविदा कर दिया गया। शिवराज सरकार के बहुत करीब रहे आईएएस अधिकारी की फजीहत से दूसरे आईएएस भी आसुरक्षित महसूस कर रह हैं। ऐसे कई आईएएस अधिकारी हैं जो आज साइड लाइन कर दिए गए हैं। जांगिड़ की अब तक पदस्थापना एसडीएम – विजयपुर एसडीएम – शहडोल अवर सचिव राजस्व उपसचिव नगरीय प्रशासन सीईओ जिला पंचायत – हरदा अपर कलेक्टर – गुना अपर मिशन संचालक राज्य शिक्षा केंद्र अपर कलेक्टर – बड़वानी अपर मिशन संचालक राज्य शिक्षा केंद्र इनका कहना है :- ट्रांसफर-पोस्टिंग राज्य शासन का विशेषाधिकार है। बड़वानी से ट्रांसफर के बाद मैंने 11 जून को 3 साल के लिए महाराष्ट्र कैडर में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया है- लोकेश कुमार जांगिड़ ।


मध्य प्रदेश से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अफसरों का मोहभंग भोपाल:-प्रदेश में पदस्थ मध्य प्रदेश कैडर के करीब आधा दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारियों ने मप्र से अन्य प्रदेशों में जाने का मन बना लिया है। इसमें कुछ को जहां सफलता मिल गई है वहीं कुछ अभी भी केंद्र और राज्य सरकार की अनुमति के इंतजार में हैं। प्रदेश से आईएएस अधिकारियों के मोहभंग का प्रमुख कारण अफसरों पर दिन-प्रतिदिन माफियाओं के हमले और बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप को माना जा रहा है।उल्लेखनीय है कि अन्य प्रदेशों की अपेक्षा मध्य प्रदेश में शांति और शुकून को देखते हुए प्रदेश में पदस्थ आईएएस अफसरों का प्रदेश से भरोसा उठ गया है। गत फरवरी में प्रदेश के चंबल संभाग के तहत मुरैना के बामोर में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की खनिज माफिया द्वारा तथाकथित हत्या के बाद प्रदेश के आईएएस अफसरों का मोहभंग हो गया है। इस हत्या के बाद नरेंद्र कुमार की आईएएस पत्नी मधुरानी तेवतियां ने प्रदेश सरकार को आवेदन देकर कैडर बदलने की मांग की है। उन्होंने कहा कि उन्हें पारिवारिक कारणों से मध्य प्रदेश में सेवा देना मुश्किल पड़ रहा है। ऐसे में उनका मध्य प्रदेश कैडर बदल दिया जाए। बताया जाता है कि श्रीमती तेवतिया दिल्ली में पदस्थापना चाहती हैं। उन्होंने सरकार को दिए आवेदन में कहा है कि उनका ससुराल पक्ष यूपी में है ऐसे में वह मप्र में इन परिस्थितियों में सेवाएं देने में परेशानी महसूस कर रही हैं। हालांकि, प्रदेश सरकार ने अभी तक उनके आवेदन पर फैसला नहीं किया है। इसके साथ ही प्रदेश में पदस्थ मप्र कैडर के अन्य आईएएस अधिकारियों ने भी कैडर चेंज करने का आवेदन दिया है, जिसमें कुछ को स्वीकृति भी मिल गई है। इस मामले में सागर कलेक्टर डॉ. ई रमेश कुमार अपना कैडर चेंज करवा लिया है। वह अब अपने गृह प्रदेश आंध्र प्रदेश में सेवाएं देंगे। इसके साथ ही हाल ही में छिंदवाड़ा में पदस्थ कलेक्टर पवन शर्मा भी अपना कैडर चेंज करवा चुके हैं। उन्हें इसमें सफलता भी मिल चुकी है और वह वर्तमान में दिल्ली नगर निगम में उपायुक्त के पद पर पदस्थ हैं।. कलेक्टर और सीईओ भी कतार में
प्रदेश में पदस्थ एक कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी कैडर बदलने के इंतजार में हैं। इनमें 2000 बैच की सोनाली वायंगणकर शाजापुर कलेक्टर हैं वहीं भोपाल जिला पंचायत में सीईओ के पद पर पदस्थ आयरिन सिंथिया जेपी ने भी अपना कैडर बदलवाने का आवेदन दिया है। वह अपने गृह प्रदेश केरल के समीप राज्य तमिलनाडू में सेवाएं देना चाहती हैं। ज्ञात हो कि उनके आईएएस पति वहीं पर पदस्थ हैं। उधर, शाजापुर कलेक्टर वायंगणकर ने अपने आवेदन में पारिवारिक कारणों के चलते कैडर बदलने की मांग की है। वह महाराष्ट्र कैडर में जाना चाहती हैं। वह महाराष्ट्र की ही रहने वाली हैं और परिवार के साथ रहने की इच्छा के चलते उन्होंने यह निवेदन सरकार से किया है। वहीं श्योपुर कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटिल ने भी अपना कैडर बदलने की मांग की है। इतनी अधिक संख्या में आईएएस अधिकारियों द्वारा कैडर बदलने की मांग से प्रदेश सरकार भी सकते में हैं।. आईएएस एम. गीता का अनोखा मामला
प्रदेश से जहां एक ओर आईएएस अधिकारियों का मोहभंग होता जा रहा है और वह एक के बाद एक कैडर बदलवाने के लिए सरकार के पास आवेदन कर चुके हैं वहीं प्रदेश में पदस्थ एक कलेक्टर ऐसी भी हैं, जिन्हें मध्यप्रदेश इतना रास आ गया कि वह बुलाने और विवाद के बाद भी प्रदेश छोडऩा नहीं चाहतीं, जबकि वह मध्य प्रदेश के मूल निवासी नहीं हैं। मामला उज्जैन में पदस्थ कलेक्टर एम. गीता से जुड़ा हुआ है। मूलत: केरल निवासी एम. गीता को छत्तीसगढ़ कैडर आवंटित है, लेकिन वह मध्य प्रदेश छोडक़र वहां जानेे से साफ मना कर चुकी हैं, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार एम. गीता की सेवाएं वापस मांग रही है, लेकिन मप्र सरकार ने कोर्ट के स्टे का तर्क देकर इससे इनकार कर दिया है और फिलहाल उन्हें उज्जैन में कलेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ किया हुआ है।

(समाचार स्त्रोत सौजन्य व धन्यवाद :- बेबाक शक्ति और emsindia&mp2day)




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