रविवार, 27 जून 2021

मामला जहर देकर हत्या और गुमशुदा महिला का

 

मामला जहर देकर हत्या और  गुमशुदा महिला का

और एसपी को गोलमोल जलेबी बनाकर परोस दी गई....

(अपराध संवाददाता)


(क्योंकि वर्तमान में आदमी की औकात खत्म होती जा रही है वह एक नंबर या प्रकरण बनकर रह जाता है। इसलिए इस लेख में व्यक्ति के सम्मान को बचाने के दृष्टिकोण से प्रकरण क्रमांक और काल्पनिक नामों का सहारा लिया गया है पक्षकारों को लेकर बाकी पुलिस अधिकारी वही हैं जो वास्तव में रहे।)
 
तो समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर हुआ क्या कि इस प्रकरण में न्यूज़ बनाना पड़ रहा है क्योंकि पुलिसिया कार्यवाही गोलमोल जलेबी घुमाकर अपने आपको सही साबित करते रहते हैं। और हितग्राही पक्ष लगातार प्रताड़ित होता रहता है। परिणाम यह होता है कि  इमानदार पुलिस अधीक्षक होने के बाद भी वह भ्रम के जाल में इस कदर घिर जाते हैं कि उन्हें प्रताड़ित हितग्राही पक्षकार को न्याय देने की बजाय और प्रताड़ित करने में जरा भी हिचक नहीं लगती। क्योंकि उन्हें लगता है जो उन्होंने किया वह एक ईमानदार कार्यवाही है। किंतु सच बात यह है कि उन्हें गलत तरीके से फीड-बैक देकर अधीनस्थ पुलिस कर्मचारियों ने अपने लाभ का धंधा जमकर किया।
 पूरे भ्रम के मायाजाल में प्रकरण पर जब आरटीआई के जरिए जानकारी ली गई तो पता चला कि शहडोल कोतवाली द्वारा अपने पत्र क्रमांक777/19 दिनांक 09 जनवरी 2021 को

पत्र भेजकर पुलिस अधीक्षक को जो जानकारी दी गई वह अपने आप में एक प्रकार का प्रमाणपत्र है कि पुलिस ने पूरी इमानदारी से यह स्वीकार किया कि उसने कई वर्षों पुराने एक गुमशुदा के

मामले पर तो दूसरा जहर देकर की गई हत्या के मामले पर मूक-बधिर बनी रहे। और यदि शिकायतकर्ता वीके पांडे (काल्पनिक नाम) न्याय की अपेक्षा में   बार-बार इस बात की शिकायत करता रहा तो उसके बारे में भी लिख दिया गया कि वह शिकायत करने का आदी है।
 तो हमारी स्थानीय पुलिस पूरी ईमानदारी के साथ यह सोचती है यह उसका हक है कि वह अगर वीके पांडे के छोटे भाई कमांडो पांडे (काल्पनिक नाम) का मामला जहर देकर की गई हत्या हो (जैसा कि आरोप है) अथवा थाना शहडोल में मृत कमांडो पांडे की बहन इंदिरा मिश्रा (काल्पनिक नाम) महिला को लाकर उसे गुमशुदा की हालात तक पहुंचा देने का मामला लंबित हो तो यह कोई अपराध नहीं है....?  स्थानीय पुलिस पूरी इमानदारी से यह भी कहती है कि इस मामले में अपने भाई व बहन के मामले पर कार्यवाही चाहने वाला  पक्षकार वीके पांडे आदतन शिकायत करता रहता है..., उसे कहीं से भी कहीं अनैतिक, कहीं अन्याय या कहीं भी गलत होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है....
 और यदि प्रताड़ित पक्षकार वीके पांडे इस पूरी घटना की पृष्ठभूमि में यानी (2 मिनट के लिए झूठा ही सही ) पुलिस द्वारा संरक्षित प्रकरण में हत्या और गुमशुदा मामले के लाभार्थी, प्रोत्साहित होकर संबंधित अपराधिक मानसिकता अन्य अपराध करती है अथवा षड्यंत्र करती रहती है जिसे संबंधित पुलिस-वकील और अपराधी शामिल हैं अगर उसमें पुलिस के साथ कोई तिवारी नाम का अधिवक्ता भी शामिल होता है  तो संबंधित पुलिस को कोई गलत नहीं लगता...। क्योंकि इतने लंबित प्रकरणों में आपराधिक संगठनों में कुछ वायरस तो जन्म लेंगे ही। तो क्या संबंधित लोगों ने इस प्रकरण में षड्यंत्र पूर्ण  अपराध के जरिए अजीबका का साधन खोज रखा है....?और वह उसे बरकरार रखने के लिए शिकायतकर्ता वीके पांडे तथा उसके परिवार को तमाम प्रकार के अपनी कानूनी धाराओं में घेराबंदी करके उसे पारदर्शी तरीके से परेशान करते रहना चाहता है....?
 और यह सब बातें अधीनस्थ अमला पूरी इमानदारी से पुलिस अधीक्षक को पत्र के जरिए  सूचना भी देती है। फिर भी अगर पुलिस अधीक्षक भ्रमित होकर हत्या अथवा महिला गुमशुदा के मामले में बजाय सकारात्मक कार्यवाही करने के, अधीनस्थ पुलिस के बताए अनुसार कि "शिकायतकर्ता वीके पांडे शिकायत करने का आदी है", वीके पांडे को और उसके परिवार को शांति भंग करने वाला बता कर 107 /116 की गंभीर कार्रवाई हो तक ले जाने की हालात में पहुंचा देती है। तो न्याय की मनसा को ग्रहण लग ही जाता है।
 किंतु अगर पवित्र मंसा का पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी जैसे सुलझे हुए अधिकारी होने के बाद भी यह सब होता रहा तो कर्तव्यनिष्ठा की साधना में कहीं ना कहीं खोट प्रकट हो जाती है। कि आप चूक गए गोस्वामी जी, साधना व्यर्थ जा रही है। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि इस प्रकरण को लगातार हम नजदीकी से देख और समझ रहे और अब बताने की भी जरूरत नहीं रह गई है क्योंकि अधीनस्थ शहडोल कोतवाली का पुलिस अमला लिखित में उच्च अधिकारी पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी को पत्र भेजकर सूचित कर रहा है कि हां अपराध भी हुए हैं कोई निराकरण भी नहीं हुआ है और इन सब के पीछे जो षड्यंत्र से घटनाएं चल रही हैं पुलिस से शिकायतकर्ता वीके पांडे जो शिकायत कर रहा है वह आदतन-शिकायत-मात्र है।

 तो ऐसे हालात में क्या उचित नहीं है की बजाए हत्या और गुमशुदा के मामले में पारदर्शी तरीके से सभी परिस्थितियां स्पष्ट होनी चाहिए ताकि जो नए संडयंत्रों का माफिया नुमा जमघट तैयार करने वाले तमाम लोग जो कोतवाली पुलिस में लंबे समय से है कुछ नए लोग जो अधिवक्ता बन कर इस हत्या और महिला की गुमशुदा में अपने बच्चों के लिए रोजी-रोटी तलाश रहे हैं उन्हें अपने षड्यंत्र करने का अवसर ना मिल सके।
 किंतु यह तब संभव है जब इमानदार दिखने वाले भी पुलिस अधीक्षक इमानदारी से स्वतंत्र वा निष्पक्ष जांच के लिए मामले को हकीकत को अंजाम तक पहुंचाएंगे। देखना होगा कि अगर एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस उच्च अधिकारी के रहते यह सब नहीं हो पा रहा है तो आने वाली पुलिस की नए संबंधित लोग किस प्रकार से प्रकरण को देखेंगे अथवा वह भी "लकीर के फकीर" की तरह इस हत्या व गुमशुदा की तथा इसके पृष्ठभूमि में पलने वाले तमाम अपराधों की घटनाओं से अपनी अवैध कमाई को बरकरार रखना चाहेंगे...? अथवा न्याय की मंसा को अपनी देशभक्ति और जन सेवा के नारे के साथ खड़े दिखेंगे...?
 किंतु सूत्र बताते हैं की गुमशुदा महिला की कुछ जानकारियां पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आई हैं किंतु अभी तक पुलिस उस पर कुछ कार्यवाही करती दिख नहीं रही है..... और यदि उसने कोतवाली के हवाले गुमशुदा की जानकारी दी तो वह उस महिला के लिए भी उतना ही खतरनाक साबित होगा जितना कि शिकायतकर्ता वी के पांडे और उसके परिवार को इस मामले की पृष्ठभूमि के चलते प्रताड़ित होना पड़ रहा है.. तो देखते हैं आगे आगे होता है क्या....?


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