21 जून के रिकॉर्ड वैक्सीनेशन पर
खुश हुये..
मोदी.
आखिर
वैक्सीनेशन पर क्यों नहीं हो रहा है डाटा कलेक्शन
( त्रिलोकीनाथ )
म.प्र. के एक IAS उच्च अधिकारी से संवाद हो रहा था की शहडोल कलेक्टर का यह निर्णय कि एक तरफ दुकान खुली रहेंगी और दूसरी तरफ बंद रहेंगे इससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होगा, क्या गलत नहीं है..? क्योंकि लोगों की भीड़ निश्चित समय में इस तरफ ही चली जाएगी.., उन्होंने कहा वर्तमान समय ही गलत है, और इस समय कोई भी निर्णय लिए जाएंगे वह गलत लगने लगेंगे... एक उदाहरण उन्होंने दिया कि मैं सोचता हूं कि लोगों को पूरी छूट होनी चाहिए बाजार में जाने की ताकि जो सतर्क बुद्धिमान तबका है वह भीड़ से बचकर रात के वक्त पर परचेकिंग कर सकता है। इससे सोशल डिस्टेंसिंग को लाभ मिलेगा। किंतु यह भी गलत है। तो वक्त गलत है इसलिए हर निर्णय गलत साबित होते हैं, और कोई बात नहीं है।
कल 21 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जाहिर की है की उनके मनपसंद " योग दिवस 21 जून " को रिकॉर्ड कोविड- वैक्सीनेशन का काम हुआ है।
हालांकि पिछले 6 महीने में 1 दिन की यह एक बड़ी सफलता भी है, कार्य की प्रगति के तरीकों से। किंतु पिछले 6 माह में "पोस्ट कोविड-19 वैक्सीनेशन इफेक्ट" के लिए क्या जानकारियां इकट्ठा की गई हैं....? अभी तक इस पर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं आया है, बावजूद इसके भारत में करोड़ों लोग एक प्रयोगशाला की तरह लैब में टेस्ट हो रहे हैं...।
बीमारी के तौर पर ब्लैक फंगस प्रमाणित तौर पर पहला बड़ा प्रभाव के रूप में प्रमाणित हुआ है शहडोल में पत्रकारिता समाज के दो पत्रकार "ब्लैक फ॔गस" की बीमारी में मृत हो गये और अन्य क्या प्रभाव किस किस व्यक्ति को कैसे कैसे पड़ रहा है ना तो सरकार के पास इसका कोई प्रोग्राम है और ना ही सरकार की कार्यप्रणाली से यह लगता है कि वह जानना चाहती है, कि उसका एक-एक नागरिक इस वैक्सीनेशन कार्यक्रम से किस प्रकार की सर्वाइवल-सिचुएशन से गुजर रहा है।
यह बात इसलिए समझना और कहना भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि कोविड-19 के संपूर्ण इलाज के लिए टीकाकरण कार्यक्रम एक हल नहीं है बल्कि एक बड़े बूस्टर के रूप में मनुष्य को यह है सुरक्षा चक्र प्रदान करता है ताकि चिन्हित कोरोनावायरस से वह स्वयं में लड़ने की क्षमता पैदा कर सके। लेकिन जिस प्रकार से कोरोना लगातार बदलाव हो रहे हैं कोरोनावायरस को लेकर एक खुला युद्ध की तरह हो गया है। कोविड-19 अपनी सेना के साथ रूप बदल-बदल कर मानव सभ्यता पर हमला कर रहा है।
भारतीय पुराण ग्रंथों में श्री दुर्गा सप्तशती में रक्तबीज नामक राक्षस का उल्लेख आता है कि जहां उसकी खून की बूंदें गिरती थी वहां नया रक्त बीज राक्षस पैदा हो जाता था उतनी ही शक्तिशाली शक्ति के साथ जितनी की देवी जगदंबा रक्तबीज से लड़ रही थी। तो सांकेतिक तौर पर ही सही यह स्पष्ट रहा कि वर्तमान में कोरोनावायरस रक्तबीज राक्षस की तरह बल्कि उससे भी ज्यादा नए रूप में वह मानव सभ्यता पर कतिपय क्षेत्र में जानवर सभ्यता पर भी हमला कर रहा है। और भारत में डेल्टा प्लस अथवा उसके अन्य वेरिएंट के तौर तरीके हमारे लिए चिंता का विषय है ।
तो हमें इस बात के लिए क्यों खुश होना चाहिए की टीकाकरण ने रिकॉर्ड कायम किया है। क्योंकि उससे ज्यादा रिकॉर्ड अज्ञात तरीके से कोविड-19 का नया वंश अपना समाज विकसित कर रहा है हमारा ध्यान टीकाकरण में अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग प्रभावों को डाटा एकत्र करने पर क्यों नहीं होना चाहिए...? फिर यदि आज इस पर कोई नवाचार कोई बड़ा कार्यक्रम तय नहीं करने की स्वतंत्रता दी जाती है तो यह चिन्हित करना मुश्किल हो जाएगा कि किस प्रकार के नागरिक मनुष्य पर कौन सा वायरस कितना सफलता के साथ अथवा कितनी असफलता के साथ लड़ रहा था....? क्या मनुष्य जीता अथवा वायरस जीत रहा है...?
21 जून को व्यायाम के तरीके चित्रों में दिखाकर उसे गौरवशाली योग पद्धति के रूप में जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थापित कर दिया गया है क्या उसी तरह से हम टीका वैक्सीनेशन के कार्यक्रम को कोविड-19 का एकमात्र हल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं...? यह बात भी बहुत विचारणीय है।
हमें याद रखना चाहिए कि किसी को खुश करने के लिए कोई भी लोक हितकारी कार्यक्रम जबरजस्ती किए जाने से उसके कुप्रभाव सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से पड़ने लगते हैं। जनसंख्या परिवार नियोजन-नसबंदी का कार्यक्रम जबरजस्ती किए जाने से उस लोकप्रिय कार्यक्रम को कितना बड़ा धक्का लगा यह आज बताने की जरूरत नहीं है। कहीं टीकाकरण का यह तरीका जो 21 जून को योग दिवस के बाजार में स्थापित करने का काम किया गया है उससे कहीं रिएक्शन ना हो जाए।
बहरहाल यह स्पष्ट तौर पर देखने में आया है की "पोस्ट कोविड-19 वैक्सीनेशन रिएक्शन हो अथवा कोविड-वैक्सीनेशन हो फिर चाहे हजार व्यक्ति में किसी 10000 में या लाख व्यक्ति में एक असर डाल रहा हो, पर असर डाल रहा है और वही कोविड-19 की वंश वृद्धि के लिए खाद बीज का काम कर रहा है वहां से वह अपना नया वेरिएंट नया रूप बना रहा है तो जब तक हर नागरिक का डाटा कलेक्शन प्रथक प्रथक होकर से किसी पर भी कैसा प्रभाव पड़ रहा है उसका डाटा सामने नहीं आ रहा है और इस अंधकार की हालात में हमें खुश होने की जरूरत नहीं है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी क्यों खुश हो रहे हैं यह उनका अपना निजी मामला होगा किंतु एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के नाते जब तक एक-एक नागरिक सुरक्षा चक्र में कोविड वैक्सीनेशन प्रभावों से मुक्त होता नहीं दिखाई देता तब तक बहुत खुशी की बात नहीं है ....।
बेहतर होता कि जिन जिन नागरिकों का वैक्सीनेशन कर दिया गया है उन पर उसके क्या प्रभाव पड़ रहे हैं कौन सा नागरिक किस तरह से नई समस्याओं से ग्रस्त है शारीरिक/आर्थिक/ मानसिक क्या व्यवहार कैसा असर डाल रहा है उसका डाटा एकत्र नहीं किया जाता है खुश होने की जरूरत नहीं है।
जहां तक खुश होने की बात है, खुश होने के लिए मिस्टर इंडिया फिल्म में अमरीश पुरी का डायलॉग
बहुत चर्चित हुआ था
"मुगैंबो.., खुश हुआ..."
लेकिन हम व्यावहारिक जीवन में हैं इसलिए विचारणीय है डाटा कलेक्शन उतना ही जरूरी है
जितना की कोविड-19 का वैक्सीनेशन।
और "आशा पर आकाश टिका है,
स्वास्थ्य तंतु कभी टूटे......"
इस अंदाज में नागरिक कर्तव्य बोध पर सांसे ले रहे हैं शायद उनका जमीर जाग जाए....
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