बुधवार, 30 जून 2021

पुलिस की दीवार, क्या ढहेगी इस बार...?

स्वागतम आसमानी फरिश्ते....?


पुलिस की दीवार,

क्या ढहेगी इस बार...?

(त्रिलोकीनाथ)

आदिवासी विशेष शहडोल क्षेत्र के पत्रकार चाहे भी तो अपनी पत्रकारिता के तकनीकी दक्षता बढ़ाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि वह महंगा होता है और पत्रकारों की आमदनी तो सरकारों की भीख पर निर्भर होती है या फिर माफिया (आपराधिक प्रवृत्ति के व्यापारी, राजनेता, पार्टियों के नेता और प्रशासन में बैठे हुए कतिपय कर्मचारी का गठजोड़) की दी हुई भीख पर निर्भर होता है। क्योंकि लोकतंत्र में संविधान ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई है कि पत्रकारों के निर्भरता इस गुलामी से मुक्त हो सके। तो पत्रकारिता की दक्षता के लिए आधुनिक संसाधन मे ड्रोन का इस्तेमाल यदि होता तो वह देख पाता कि महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष संरक्षण वाले शहडोल संभाग में कहां-कहां, कितना जंगल काटा, खनिज निकला अथवा वर्तमान में खनिज माफिया गिरी का सबसे बड़ा आकर्षण बना नदियों को मनमानी तरीके से बर्बाद करने वाला रेत खनन  कितना बड़ा है,  कानूनी तौर पर और कितना बड़ा  माफिया के संरक्षण में निकल रहा है। रेत खनन में विशेषता यह है कि हर बरसात में नदियां तस्करों को या माफिया के अपराधों पर पर्दा डाल देती हैं। तो बहुत कम समय में इसकी निगरानी हो पाती है। इसी तरह अन्य विकास पुरुषों याने उद्योगों के कारनामों का भी ड्रोन के जरिए पता करना आसान रहता। अब तो यह प्रमाणित भी हो चुका है कि जम्मूकश्मीर में आतंकवादी कार्यवाही को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन का इस्तेमाल होने लगा है। तो सरकारें क्या अभी तक ताली,थाली, घंटा,घंटी बजाने लगी रही अथवा चुनाव जीतने की अपनी हवस को मिटाने में लगी रही। जिस कारण उन्हें नहीं पता चला कि ड्रोन की योग्यता का इस्तेमाल कैसे किया जाए...?

 तो मान लेते हैं कि अनूपपुर जिले में खनिज विभाग में एक अधिकारी 1,2 इंस्पेक्टर है.. कह सकते हैं बिचारा क्या करेगा। अगर वह अपने कलेक्टर का परामर्श लेकर उसकी सहायता से कैमरे लगे ड्रोन के जरिए खनिज-तस्करी को विशेषकर रेत माफिया को निगरानी करता तो उसे ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ता। और चौकीदारी बेहतर तरीके से कर सकता था। किंतु क्या एक ईमानदार कलेक्टर इस दिशा में सोच पाएंगे। यह उनकी योग्यता पर प्रश्नचिन्ह भी है..?कि जब कलेक्टर होकर वह नहीं सोच सकतीं ।क्योंकि स्वअनुशासन की गुलामी के नजरिए से वे प्रशासन नहीं चलाना चाहती जबकि आर्थिक रूप से संपूर्ण स्वतंत्रता के साथ खुलकर खर्चा कर सकती हैं।

 ऐसे में गरीब-पत्रकार-समाज कैसे ड्रोन से निगरानी कर सकता है कि माफिया कहां-कहां कैसे काम कर रहा है..? हलां कि जिस तरह से अकुशल पत्रकार समाज के हाथ में मोबाइल कैमरा आ गए हैं तो उन्होंने सैकड़ों की संख्या में कीड़े-मकोड़े की तरह काम करते दिखाई देते हैं। और कभी सरकार तो, कभी माफिया इन कीड़ों-मकोड़ों को थोड़ा सा शक्कर डालकर कहीं भी इकट्ठा कर देती है। क्योंकि पत्रकार भलाई नहीं पहचाने, कि उसकी ताकत क्या है, किंतु माफिया पहचानता है कि प्रेस से कैसे बचा जा सकता है।

 इसलिए सरकारों के साथ माफिया भी अपने अपने तरीके से बड़ी संख्या में बने पत्रकारों की भीड़ में शक्कर डालती रहती है। ताकि वे किसी एक जगह इकट्ठे रहें उसके क्षेत्र में ना आए। 

 अब बात करते हैं की ड्रोन करता क्या है...? ड्रोन जब अपने रंगत में आता है तो वह रिमोट कंट्रोल के जरिए हवा में चिड़िया की तरह कहीं भी चला जाता है और वहां से अपने कैमरे के जरिए वह सब कुछ देखता है जो आम पत्रकार जमीन में कीड़े-मकोड़ों की तरह नहीं देख पाता ।

 ड्रोन पर डान 

 तो ड्रोन अपने मालिक यानी डॉन को सब कुछ बता देता है और दिखा देता है। जो पहले कभी कलेक्टर लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन करके पत्रकार समाज को हर दो-तीन महीने में विकास के कार्यों को जीप में अथवा कार में ले जाकर निष्पक्षता के लिए  कर्तव्यनिष्ठा का पालन दिखाकर करते थे।

 तो ड्रोन तो खरीद नहीं सकते और वर्तमान प्रशासन , अपने शासन के निर्देश में बंधा हुआ "बाहुबली का कटप्पा" है। तो उसे पत्रकारों को फील्ड में ले जाने से भाजपा के रामराज्य में तो मना ही कर दिया है।

 पेमेंट ,इतना पत्रकारों को मिलता नहीं कि वह स्वयं अपने संसाधन से अपने लोकतांत्रिक दायित्व का निगरानी कर सकें।

 शहडोल में एक पत्रकार जरूर हैं जो बछावत वेतन आयोग पत्रकारों की मिलने वाली वेतन के अधिकार की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं। लेकिन लग रहा है कि जल्द ही उनका मालिक उन्हें बस चले तो जिंदा जमीन में गाड़ देगा बजाएं उसे उसका हक देने के। यह उसकी अपनी लड़ाई है।

 हम बात कर रहे थे ड्रोन की योग्यता की। भलाई 21वीं सदी में 20 साल बाद हमें नजर आई हो किंतु विधायिका के प्रतिनिधि मुख्यमंत्री उनके नौकरशाह अथवा उद्योगपति ऐसे ड्रोन में साक्षात अलग-अलग समय पर तफरी करने निकलते थे जिन्हें हेलीकॉप्टर अथवा हवाई जहाज का स्वरूप मिला हुआ था।

 छत्तीसगढ़ बनने के बाद मृत हो चुके कभी कलेक्टर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए समस्या यह थी कि वह अपना ड्रोन कहां-कहां उड़ावें। क्योंकि छत्तीसगढ़ बहुत छोटा सा राज्य था। तो वहां के नागरिक परेशान रहते थे कि आए दिन मुख्यमंत्री उनके यहां आ जाते हैं। 

बहरहाल हमारे यहां मध्यप्रदेश फिलहाल बड़ा है इसे और टुकड़े-टुकड़े कर देने से तब यह समस्या खड़ी होगी जैसे शहडोल जिले के तीन टुकड़े हो गए ।

हैप्पी न्यू मंथ......

 हम विषयांतर हो जाते हैं क्योंकि विषय ही ड्रोन का बहुत बड़ा है बस कहीं भी भटक जाता है। खबर है इस बार ड्रोन , हैप्पी न्यू मंथ मनाने शहडोल क्षेत्र में आ रहा है।

 तो भलाई पत्रकारों के पास यह संसाधन ना हो और वह न देख सकें कि कहां कितनी माफियागिरी बरसात के पूर्व कहां कितना रेट का स्टॉक संग्रहित कर के रखा गया हो। किंतु हेलीकॉप्टर में बैठे हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी चौहान जरूर यह देखेंगे। अब शहडोल आ रहे हैं तो शहडोल के आसपास उमरिया और अनूपपुर जिले के नदियों के आसपास संग्रहित रेत की खदानों को भी देखेंगे और ठेकेदार के भी संग्रहित किए गए रेत और माफिया के भंडारण को भी देख सकेंगे। जो पत्रकार नहीं देख पाते।

 अब एक ही रास्ता है की पत्रकार मुख्यमंत्री से मिल कर उनसे पूछें कि आपने अवैध रेत भंडारण के कितनी खदानों का निगरानी किया है...? किंतु यह तब संभव है जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पत्रकारों से मिले...?

 कोविड-काल में 3 घंटा पत्रकार कलेक्ट्रेट


शहडोल के गेट के सामने कड़क दुपहरी में खड़े रहे कि उनके मुख्यमंत्री उनसे मिलेंगे, किंतु चौहान कुछ इस अंदाज में निकल गए जैसे कि किसी ने उन्हें समझा रखा था "...मत चूके चौहान.."।

 तो चौहान साहब कार के अंदर, कोरोना वायरस से बचने के लिए, बिना देखे धूप में खड़े कीड़े-मकोड़ों के लिए पुलिस का बंदोबस्त कर दिया था।  पुलिस ने पत्रकारों को अलग-थलग करने का प्रबंध भी कर दिया था। तो मुख्यमंत्री जी निकल गए। यह अलग बात है की डिजिटल मीडिया के जरिए जो ज्ञापन भेजा गया उसे दूसरे दिन आंशिक रूप से पालन करते हुए भोपाल में उन्होंने अपना वचन दिया। कि "गैर अधिमान्य पत्रकारों को कोरोना फ्रंट वर्कर्स में शामिल किया जाएगा। लोकप्रिय फिल्म बाहुबली मे नायिका का यह बहुचर्चित डायलॉग कि "मेरा वचन ही, मेरा शासन है" कितना कामयाब हुआ इसके कोई आंकड़े अपने पास नहीं है।

 हम तो यह जानते हैं कि शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में अर्ध उद्घाटित शहडोल मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से कई लोग कथित तौर पर मर गए थे। हालांकि प्रबंधन ने इसका खंडन भी किया था। क्योंकि पहली बार भारत में ऐसा होता दिखा...। इसलिए हमारी ताकत हमें समझने का इजाजत नहीं दे रही थी किंतु जब भोपाल में और दिल्ली मे, आगरा या पूरे भारत में ऐसा होने लगा तो हमें लगा शहडोल में भी हुआ होगा...? जिस की निष्पक्ष जांच की हत्या उसी समय हो गई थी जब उसका खंडन हो गया था।

 तो यह शहडोल क्षेत्र ही है जहां यह प्रश्न बनता है कि सबसे पहले दो पत्रकारों को पोस्ट कोविड-19 "ब्लैक फंगस" ने अंततः उन्हें मृत्यु तक पहुंचा दिया। अब कौन पूछेगा कि उस वचन का क्या हुआ जो मुख्यमंत्री जी ने शहडोल लौटकर भोपाल में दिया था इसका लाभ ब्लैक फंगस के मृतक परिवारों को क्या मिला.., क्या हुआ...? 

 क्योंकि अभी कोरोना कहीं गया नहीं है, ऐसा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हमें भ्रमित कर रखे हैं। और हमें भी लगता है कि वह ब्याज सहित "डेल्टा-प्लस कोरोना भाईसाहब के नए रूप में आया है। इसलिए जब पिछली बार वे अपने ड्रोन से आए थे तो हमें नहीं मिल सके। तो इस बार मिलेंगे जरा समझने में दिक्कत जा रही है। क्योंकि जनसंपर्क विभाग ने अभी तक कोई एडवाइजरी जारी नहीं की है। और जबरदस्ती मिलने का मतलब कड़ी धूप अथवा लगातार बारिश या फिर पुलिस के कड़क प्रबंधन जो पत्रकारों के लिए दीवार बना कर खड़ा कर दिया जाएगा, उसका सामना करना पड़ेगा।

 ऐसे में यह प्रश्न अधूरा ही रह जाएगा की सीएम के "वचन का शासन" क्या ब्लैकफंगस के पत्रकारों को लाभ दिला पाया या फिर अनूपपुर के ईमानदार महिला कलेक्टर ही बता पाएंगे। किंतु वह वही बोलेंगे जो उनका स्वअनुशासन का जमीर उन्हें इजाजत देगा। क्योंकि अभी तक कोई प्रेस विज्ञप्ति में ब्लैकफ॔गस से मरे हुए पत्रकारों के बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं आई है।

 तो एक प्रश्न यह भी है कि क्या आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के जंगल में रेत माफिया जिसमें एक महिला रेंजर किसी रेत तस्कर से ओपन सौदा कर रही थी उसके लिए क्या कार्रवाई हुई...? अथवा नए-नए माफिया, कहां-कहां कितना रेतभंडारण बरसात पूर्व कर लिए हैं। प्रश्न तो और भी खड़े होते हैं जो लोक जनहित के हैं उसमें एक यह भी कि जिस भगवान राम के नाम पर भाजपा का राम राज चल रहा है उस शहडोल के मोहन राम मंदिर में आखिर खुला डाका किसके संरक्षण और किसके निर्देश पर चल रहा है। मंदिर की अचल संपत्ति को लूटने वाला पंडित और पुजारी कैसे समाज में सम्मानित होकर अपना तथाकथित सभ्य समाज गढ़ रहा है। क्योंकि हाई कोर्ट जबलपुर 2012 में जो आदेश करता है उसका पालन कराने की बजाय मंदिर लूटने की इजाजत कौन दे रहा है...? यह कौन सा रामराज्य है..? एक प्रश्न तो यह भी बनता है कि जब पिछली बार आप हेलीकॉप्टर से व्यवहारी आए थे तब सड़क को नहीं देखे थे और बाद उस सड़क के कारण 50 से ज्यादा लोग बाणसागर के नहर में नरसंहार कर दिए गए थे। तो जो एमपीआरडीसी में सस्पेंशन का नाटक हुआ, क्या उसमें कुछ हुआ... जो अभी तक अनुत्तरित है. अब तो मुख्यमंत्री भूल भी गए होंगे कि जब वे  केलमनिया मनिया आए थे तब एक अंसारी नाम के व्यक्ति को अयोग्य ठहराया था वह कैसे तृतीय वर्ग का कर्मचारी सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग से आदिवासियों का कल्याण कर रहा है और अपनी योग्यता से कितने करोड़ रुपए का निकासी कर चुका है यह प्रश्न भी मुख्यमंत्री से अपेक्षित है...?

 प्रश्न ढेर सारे हैं, किंतु हवा से प्रश्न होंगे नहीं...? और ड्रोन में बैठकर आए हुए मुख्यमंत्री पत्रकारों से मिलेंगे नहीं...? क्योंकि कोरोना कहीं उन्हें अस्वस्थ ना कर दे..? इसलिए पत्रकारों के बीच में पुलिस की दीवार खड़ी करके वे स्वयं को किसी डॉन की तरह सुरक्षित कर लेंगे।

 तो यह भी देखना होगा हेलीकॉप्टर में बैठकर जब मुख्यमंत्री आसमानी फरिश्ते की तरह अवतरित होंगे और क्या-क्या सब्जबाग का लोकहितकारी योजनाओं को परोसेंगे..। अब यह अलग बात है कि वह अपने प्रेस अटैची के जरिए शहडोल के पत्रकार समाज के कीड़े मकोड़ों को समाचार का कचरा भेजेंगे या फिर कोई संवाद के जरिए किसी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कोई संवाद करेंगे। क्योंकि ड्रोन की योग्यता पत्रकारों के पास है नहीं, और ड्रोन में बैठकर आए हुए आसमानी फरिस्ते पत्रकारों से कितनी दूरी बनाएंगे..., यह हमारे लोकतंत्र की व्यवस्था पर निर्भर करता है...? तो देखते चलिए आगे आगे होता है क्या...?


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