बुधवार, 23 जून 2021

इक हसीना थी... इक दीवाना था... (त्रिलोकीनाथ)

बक्सवाहा आंदोलन को समर्पित---- 

इक हसीना थी...


इक दीवाना था....


कलेक्टर के बंगले में भालू

बक्सवाहा जंगल विनाश की ओर

(त्रिलोकीनाथ)

एक ताजा खबर है कि कलेक्टर अनूपपुर के बंगले में भालू याने जामवंत जी तफरी करने पहुंचे, एक थोड़ा सा बासी  है इन्हीं कलेक्टर के अंडर में अमरकंटक तीर्थनगरी, "मिनी स्मार्टसिटी" में कथित तौर पर एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायालय) के आदेश के अनुसार यूकेलिप्टस (ओरियंट पेपर मिल्स अमलाई कागज कारखाना का कच्चा माल) को हटाए जाने मैं अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और एक बहुत बासी खबर है कि मुंबई नगर निगम में हमारे हीरो ऋषि कपूर के बंगले में बरगद के पेड़ की डाली ज्यादा काटने के कारण उनके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज हुआ।

 किंतु जो सबसे बासी खबर है वही सबसे ताजा खबर है। क्योंकि बासी खबर बताती है की जिस हीरो को विलन बताकर मुंबई ने बरगद की कुछ


डाली ज्यादा काटने के कारण अपराधी बता दिया अब बक्सवाहा के जंगलों में हीरा निकालने के जुगत में बैठे उद्योगपति बिरला को पूरा जंगल काटने की अनुमति दे दी गई ताकि वह हीरा निकाल सके और हीरा निकलेगा तो नेता उद्योगपति माफिया यह सब मिलकर उसे भ्रष्टाचार के जरिए मिल बांट कर खाएंगे इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि "विकास" तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला बड़ा जुमला है। जो उत्तरप्रदेश के सहनामी विकास नाम के अपराधी को उज्जैन में महाकाल की कसम खाकर लाया गया और ले जाकर फिर से उत्तरप्रदेश में काउंटर कर दिया गया ।तो विकास का तीसरा रूप बक्सवाहा की हीरा खदान में कितना जिंदा रहेगा, यह एक मिथक ही है... इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हीरो ऋषि कपूर भी बिना अनुमति के अगर बरगद की डालियों को ज्यादा काट देते हैं अपने घरेलू विकास के नजरिए से और जड़ को बचा कर रखते हैं तो पूरा सिस्टम उन पर टूट पड़ता है कि आपने

पर्यावरण या सांस लेने की सिस्टम को नष्ट करने का काम किया है ।क्योंकि मुंबई नगर निगम को अपने अनुभव के हिसाब से मालूम है एक बरगद के पेड़ में लगी शाखाएं कितना बड़ा प्रकृति का वरदान है ,उसे अंदाजा है की असल में हीरो ऋषि कपूर हमारा हीरा नहीं है बल्कि वास्तविक हीरा, बरगद में लगी शाखाएं हैं। इसलिए हमारे चहेते हीरो ऋषि कपूर मुजरिम ठहराए जाते हैं।

 कौन नहीं जानता उनकी यादगार फिल्म "कर्ज" का यह अंदाज कि, क्या समा था..., क्या उमर थी..., क्या जमाना था। एक हसीना थी ......एक दीवाना था......।

 आज भी और हमेशा वे हमारे हीरो बने रहेंगे। बावजूद इसके उन्हें कोई भी कितना बड़ा अपराधी ना घोषित कर दे। उनकी इस छोटी सी गलती के लिए की उन्होंने पेड़ नहीं काटा बल्कि शाखाएं छांट दी थी।

अगर यह उदाहरण माना जाए कि हीरो के चरित्र की हत्या हो सकती है एक बरगद के पेड़ की शाखाएं को काटने के लिए। तो अब जबकि यह तय हो चुका है महान नरेंद्र मोदी की सरकार में की ऑक्सीजन की बहुत बड़ी कीमत होती है, ऑक्सीजन की कमी से  आदमी कीड़े-मकोड़े की तरह मर जाता है। बावजूद इसके उम्मीद तो थी कि विकास के नाम पर हीरा निकालने के लिए बक्सवाहा के जंगल विनाश को दी गई सरकारी अनुमति तत्काल निरस्त कर दी जाए, सरकार में बैठा हुआ माफिया तंत्र उसे संरक्षण देता हुआ नजर आता है। तो न्यायपालिका आखिर संज्ञान क्यों नहीं ले रही है.... यह प्रश्न तो खड़ा ही होता है की हीरा जरूरी है या फिर ऑक्सीजन के लिए जंगल जरूरी है....?

 न सिर्फ ऑक्सीजन बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जैवविविधता के लिए भी जंगल बहुत जरूरी है। 

तो माना कि हमारी जननेता गुलाम है पूजीपतियों के और बंधुआ मजदूर भी। तो भी उन्हें दिखाने वाले लोकतंत्र में दिखनेवाली लोकतांत्रिक नीतियों का अनुसरण क्यों नहीं करना चाहिए...? ताकि संविधान सम्मत दिखावे का विकास भी दिखे......।   2 मिनट के लिए हम मान भी लें कि बक्सवाहा के जंगल को काट कर ही हीरा निकाला जा सकता है तो ऐसी अनुमतिया तब क्यों नहीं दिया जाना चाहिए जबकि उद्योगपति कोई ऐसे मरुस्थल में अपनी साहस और उद्योग से उससे दुगना जंगल पहले खड़ा ना कर दे। या 5 या 10 साल के लिए उसे जीवित करके न दिखाएं। तब उन्हें यह आवश्यक हीरा निकालने की अनुमति दी जा सकती है। यह एक विकल्प हो सकता है।किंतु माफिया को तत्काल धन चाहिए ताकि वह सत्ता पर अपना कब्जा बनाकर रह सके।

यही कारण है कि शहडोल जैसे महामहिम राष्ट्रपति जी के संवैधानिक संरक्षण में विशेष आदिवासी


क्षेत्र पांचवी अनुसूची में शामिल होने के बाद भी सिर्फ ओरियट पेपर मिल का कच्चा माल बनकर रह गया यह अनुभव आज प्रमाण पत्र के रूप में शहडोल की जमीनी धरातल में देखा जा सकता है। यूकेलिप्टस वृक्ष का जैविक भंडार बना दिया गया तो क्या फायदा ऐसे संविधान और ऐसे राष्ट्रपति के होने का जिसमें विशिष्ट क्षेत्र होने के बाद भी उसे कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है...? तो यहां माफिया सफलता के साथ जैवविविधता की प्राकृतिक संरक्षण को लगभग नष्ट कर दिया।

 और अगर धोखे से कुछ वर्ष की बासी खबर पर जाएं तो पर्यावरण संरक्षण के लिए गठित राष्ट्रीय हरित न्यायालय (एनजीटी) का आदेश भी कूड़े और कचरे की तरह रद्दी की टोकरी में डाला हुआ नजर आता है क्योंकि अनूपपुर जिले के अधीन उनकी कथित तीर्थनगरी और अब मिनी स्मार्ट सिटी भी अमरकंटक कलेक्टर अनूपपुर के अधीन यूकेलिप्टस वृक्ष के सड़क के किनारे लगे दिखने वाले कतार को जड़ से उखाड़ कर नहीं हटवा पाए हैं। तो अंदर जंगल में माफिया जिसने खुद तत्कालीन कलेक्टर का संरक्षण, नेताओं का संरक्षण और उद्योगपतियों की सोच शामिल है उसका प्लांटेशन कैसे हटवा पाएंगे...? अब युवा कलेक्टर संवेदनशील महिला होने के नाते कैसे कर पाएंगी, यह उनके लिए चुनौती है, और यह चुनौती हम सिर्फ पत्रकारिता के नाते उन्हें नहीं दे रहे; बिल्कुल ताजी खबर है


उनके घर के अंदर एक भालू घुस गया था, चुनौती देने के लिए कि आपने मेरा भालुवों का निवास "भालूमाड़ा" कोतमा के पास रहने का ठिकाना बर्बाद कर दिया है इसलिए मैं कलेक्टर के बंगले में ही रहना चाहता हूं। अभी तो तफरी किया है ऐसा मानकर चलना चाहिए।

 इन हालातों में जब आप जंगल को नष्ट कर रहे हैं चाहे भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई हो या फिर महामहिम राष्ट्रपति जी के नाक के नीचे पांचवी अनुसूची में शामिल संविधान की सुरक्षा में अनूपपुर जिला अथवा शहडोल संभाग  हो दोनों ही जगह पर्यावरण संरक्षण की चुनौती आज की शैक्षणिक योग्यता के लिए भी एक चुनौती है ऐसा मानकर यदि पढ़ा-लिखा आईएएस समाज, या न्यायपालिका के न्याय अधिकारी, छतरपुर की बक्सवाहा के जंगल को विनाश करने में तुले हुए माफिया सिस्टम के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेकर कोई काम करते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं तो मानना चाहिए सिस्टम सड़ रहा है फिर कोई भालू किसी कलेक्टर के बंगले में घुस कर रहना चाहता है या फिर कोई वन का निवासी दर-दर शहरों में भटकता है, दोनों के लिए ही हमारा लोकतांत्रिक ढांचा जिम्मेदार है। और उन्हें इन सब पर पुनर्विचार करना चाहिए और उसकी शुरुआत के लिए बक्सवाहा की जंगल की रक्षा पहला बड़ा प्रमाण पत्र होगा  अन्यथा माफिया जो हमारे और आपके दिल और दिमाग में विकास के नाम पर कब्जा कर लिया है वह अपना काम कर ही रहा है..........।                                                                                    (भाग 1 समाप्त, भाग-2 जारी)



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