मुख्यमंत्री की गोद में...,
लूट सके तो लूट
कौन कितना लूट सकता है....?
वायरल हो रहे ऑडियो,
लोकतंत्र के लिए चुनौती ......
(त्रिलोकीनाथ)
क्या 16 वर्षों से भाजपा के राज में पल्लवित हो रहा है "पाकिस्तान का कालाधन"....? शहडोल में विकसित हो रहा है कैसे कोई कबाड़ी मां-बहन की गाली दे रहा है पुलिस अधिकारी को ......?
इन दिनों आदिवासी क्षेत्र शहडोल में अधिकारी स्तर के लोगों का भ्रष्ट सिस्टम के आडियो वायरल हो रहे हैं, रेंजर पुष्पा सिंह के वायरलआडियो की आंच अभी ठंडी भी नहीं हुई थी और किसी निष्कर्ष में भी नहीं पहुंची एक उच्चअधिकारी कथित तौर पर पुलिस अधिकारी से संबंधित एक आडियो वायरल हो गया.....।
पहले वाले आडियो में दबंग और भ्रष्ट महिला रेंजर पुष्पा सिंह शहडोल के जंगल को, अपनी दबंगई से खनिज माफिया को बेचने का अपनी बेहतरीन अदाकारी के साथ प्रस्तुति दी थी ताकि खनिज माफिया कटनी का नवाब नाम का व्यक्ति उसके ऊपर पैसों की बरसात कर दे.... और इन रुपयों और पैसों से वह जंगल विभाग में अपने उच्च अधिकारियों के साथ मंगल गीत गाए। इस बात की भी जांच नहीं की गई होगी कि कथित तौर पर पुष्पा सिंह ने एक ₹50000 का मोबाइल फोन उच्च अधिकारी की पत्नी को यूं ही गिफ्ट किया था। सवाल यह है कि जब अधिकारियों को ही सब जांचे करनी है एक अधिकारी दूसरे अधिकारी की जांच क्यों करेगा..? जबकि उसे स्वयं उस जांच से आंच आने वाली हो
आज ही पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश उमा भारती का शेयर किया हुआ यह चित्र बहुत कुछ बताता है आदिवासी क्षेत्र के लिए
भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित विशेष आदिवासी क्षेत्र मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमित जिलों में इंदौर भोपाल ग्वालियर जबलपुर केेेे बाद पांचवें पायदान पर है फिर भी माफियाओंं का यह स्वर्ग बना हुआ है
आदिवासी क्षेत्र शहडोल में यह कोई नई बात नहीं है इसीलिए इस जांच का कोई निष्कर्ष लोकतंत्र की चुनावी मौसम में शायद ही आ पाती इसके पहले नहले पर दहला मारते हुए एक दूसरे अब जबलपुर का कबाड़ी नसीम एक पुलिसउच्च अधिकारी से जिस अंदाज में बात करते हुए उन्हें डांट रहा था और मां की गाली दे रहा था उससे यह लगता है कि अगर आडियो सही है तो कबाड़ माफिया को भ्रष्टाचार का डीजीपी होना चाहिए था..? भ्रष्टाचार की गंगा आदिवासी क्षेत्र में शायद इसलिए ज्यादा बह रही है क्योंकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का दावा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी क्षेत्र को गोद में ले रखा है। और इनकी गोद में भ्रष्टाचार का पाकिस्तान कहीं कटनी में तो कहीं जबलपुर में जिस अंदाज में पनप रहा है, वह आश्चर्यजनक है.....
हमने एक लेख लिखा था शहडोल के आदिवासी विभाग में कैसे एक अंसारी नाम का आदमी अदना सा कर्मचारी बेनामी तौर पर सहायक आयुक्त शहडोल के सभी भ्रष्टाचार ओं पर नकेल जमा कर रखता है । जिसे हटाने की सोच भी नेताओं के दिमाग में इसलिए जन्म नहीं लेती क्योंकि उसका ब्लैक मनी नेताओं को पल्लवित करता है... अन्यथा आदिवासी विभाग में आदिवासियों के विकास की लूट को जब एक छोटी सी सोच से नियंत्रित किया जा सकता है। वह भी पाकिस्तान विरोधी भाजपा के राज में 25 वर्ष से एक ही स्थान पर बैठे भ्रष्ट कर्मचारी को नहीं छुआ गया है और वह आदिवासी विभाग का माफिया बन गया है..। इन हालात पर जिला और प्रदेश तथा देश में भ्रष्टाचार के काला धन से नियंत्रित होने वाला पाकिस्तानी माफिया को हटाने का साहस क्या हिंदुत्व वाली भाजपा जुटा पाएगी....?
यह बड़ा प्रश्न इसलिए भी है क्योंकि भाजपा का दिखाने का दांत कम से कम कालाधन पैदा करने वाले पाकिस्तान परस्त माफिया को तो चबा ही सकता था... किंतु भाजपाा की राजनीति माफियाओं की नूरा-कुश्ती से ज्यादा कुछ नहीं दिखती....?
कम से कम आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल मे तो यह है की आदिवासी क्षेत्र को लूट का बड़ा अड्डा बना रखा है। काला धन का बड़ा कारोबार शहडोल में खनिज माफिया और कबाड़ माफिया ही नहीं जंगल माफिया, कोयला माफिया और तरह-तरह के माफियाओं के हवाले कर दिया गया है... अब कहीं कुछ माफियाओं में जब अनबन हो जाती है नेताओं के साथ मिलीभगत में बात टेढ़ी हो जाती है तब ऐसे वीडियो या ऑडियो लीक हो जाते हैं.....?
तथा आम जनता-जनार्दन को पता चल जाता है कि कैसे लोकतंत्र के यह जनार्दन चाहे नेता हो अथवा अफसर मिलकर आदिवासी क्षेत्र को लूट रहे हैं, और डाका डलवा रहे हैं..
और हो भी क्यों ना,यदि शहडोल का एक भी सांसद अथवा विधायक इस लूट के खिलाफ, माफिया गिरी के खिलाफ सरकार को पत्र लिखकर चेतावनी भी नहीं देता अथवा धरना आंदोलन की बात भी नहीं करता तो इसका मतलब माफियाओं की हिस्सा अथवा छोटा सा टुकड़ा सत्ता में बैठे हुए नेताओं की रोजी-रोटी चलाने के लिए फेंका जाता है.... और इसीलिए शहडोल के विधायक अथवा सांसद ऐसे मामलों में मौनव्रत धारण करके माफियाओं को संरक्षण देते महसूस होते हैं.....?
हाल में विजयमत अखबार ने आपूर्ति विभाग के चावल घोटाले का बड़ा पर्दाफाश किया था जिसमें कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल का संरक्षण भी होना बताया था किंतु अखबार का उजागर होने के बाद सब कुछ जैसे ठंडे बस्ते में चला गया.. क्योंकि चावल माफिया ने उस पर पानी डाल दिया।
इस मामले में जैसा भी हो व्यवहारी के विधायक शरद कोल विधायको की नाक बचाते हुए नजर आते हैं ...वे खनिज माफिया का चाहे जिस भी कंडीशन में हो दबाव बनाने का प्रयास करते दिखते हैं... हो सकता है माफियाओं से उनके तालमेल सही ना हो..? किंतु दिखने-वाले-सत्य के रूप में सिर्फ उन्ही की प्रशंसा किया जा सकता है।
शहडोल की मीडिया गिरी मैं चाहे जितनी बुराई हो, जितनी कमियां हो जब इस प्रकार के ऑडियो अथवा वीडियो वायरल होते हैं तो लगता है संभावना कभी मरती नहीं है...? बहराल यह कांग्रेस पार्टी की बड़ी कमजोरी है की ऑडियो के वायरल होने के बावजूद भी वह इन्हें मुद्दे के रूप में जनता तक पहुंचा नहीं पा रही है... और अगर यह बातें आदिवासी क्षेत्र में खुली लूट की बातें मुद्दा नहीं बन पा रही है इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता ही नहीं उच्च स्तर के नेता भी शहडोल को, माफियाओं के चंगुल में रखना चाहते हैं... बस उनका मुद्दा सिर्फ यह होगा कि जो माफिया भाजपा को टुकड़ा फेंक रहा था और उनकी राजनीति चला रहा था अब वह कांग्रेस के लिए काम करें..... इस तरह आदिवासी क्षेत्र मैं एक खतरनाक भविष्य पल्लवित हो रहा है....।
किंतु लोकतंत्र में जनता जनार्दन क्या कभी जागती है यदि जागती होती तो पुलिस के जनार्दन को इस प्रकार से कोई टुकड़एल माफिया यूं ही मां की गाली देकर माफिया गिरी नहीं करने पाता...। इस बात के लिए मुंबई पुलिस की प्रशंसा इसलिए भी करनी चाहिए की प्रेस माफिया बन कर कोई मुंबई पुलिस के सम्मान के खिलाफ काम करता है तो वह उसका बदला ले लेती है क्या शहडोल क्षेत्र की पुलिस अथवा मध्य प्रदेेश की मैं इतनााा जमीर बचा कि वह संगठित माफिया को मां की गाली देने का जवाब दे सके ....? यह भी देखना होगा क्या आजाद भारत की पुलिस में और उसके संगठन में जीवन जिंदा है..? वह आदिवासी क्षेत्र को लूटने से बचा सकता है ..?
देखना तो यह भी होगा कि पुलिस का जनार्दन और सत्ता का जनार्दन कितना माफियाओं से डरता है.. ?
इसका असर रेत की खुली लूट में सांकेतिक रूप से उसके घटे हुए रेत की दर से महसूस हो सकता है.. क्योंकि अगर कांग्रेसका कोई विधायक क्षेत्र के उमरिया जिला शहडोल और अनूपपुर जिला में रेत का ठेका लेता है तो भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता उसे खुलेआम कैसे चला सकता है ...?
इसे ही नूरा-कुश्ती की माफिया गिरी कहते हैं.., क्या सांसद और विधायक इतनी समझ रखते हैं शायद नहीं...? अन्यथा उनका प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए खुली चेतावनी माफिया सफाई की क्यों नहीं होनी चाहिए... अथवा उनकी चुप्पी या फिर कांग्रेस की चुप्पी नूरा कुश्ती से संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित आदिवासी क्षेत्र को खुली लूट का अड्डा बनाते दिखेंगे....?