शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

"भटकते मुद्दे" पर फौजियों की मीडिया को फटकार..

 "भटकते मुद्दे" पर फौजियों की मीडिया को फटकार...

(त्रिलोकीनाथ )


लाइव टेलीकास्ट की पत्रकारिता याने इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल की मीडिया गिरी में सिर्फ बुराई नहीं है कि वह किसी की गोद में जाकर के बैठ जाती है... या फिर उनके दरबार में घुंघरू पहन करो मनोरंजन करती रहती है... कभी-कभी बहुत अच्छी चीजें निकल आती है। इसी प्रकार से  राग दरबारीओं में आज जो दरबार आजतक में 5:00 बजे शाम के लगाया उसमें  फौज के दो ऑफिसर्स जनरल बक्शी और जनरल विशंभर दयाल ने मन की बात कह दी....


 क्यों मुद्दे को भटकाया जा रहा है मुद्दा आपसी विवाद का नहीं है मुद्दा इस बात का है कि क्या भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय अथवा संगठनों के सामने इस मुद्दे को  उठाने जा रही है.. या नहीं... मुद्दा इस बात का है कि उन्होंने खुलेआम स्वीकार कर लिया है कि पुलवामा में उन्होंने सरकार की सहमति से घुसकर हमारे 40 जवानों को  मारा.., अब इंतजार किस बात का है...?

 क्या अभी हर हमले को.., जब कहेंगे की उन्होंने संसद पर घुसकर मारा या अन्य जगह तभी आप यहां पर बैठकर गलत मुद्दों पर बहस करेंगे....?

 सीधा जवाब या हमला क्यों नहीं होना चाहिए..

 आर्मी के लोगों की यह फाड़फड़ाहट आम नागरिक की फड़फड़ाहट है किंतु राजनेता ऐसा क्या सोचते..? क्या सचमुच कोई राजनीति हो रही है.... देखना होगा।




रविवार, 25 अक्तूबर 2020

भारत का जीरो माइल सीता

 दुर्गा मां  का मंदिर,

नागपुर का सीताबर्डी

 स्थानीय लोक विज्ञान कहता है यह भारत का  जीरो माइल है.. जहां से केंद्र बनता है भारत का... 

परिस्थितियों बस आज दशहरा में नागपुर में रहा..



                    ( त्रिलोकीनाथ )










गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

चुनाव आयोग का ऐतिहासिक सबसे बड़ा झूठ ...?

चुनाव आयोग का ऐतिहासिक सबसे बड़ा झूठ ...?

                  (त्रिलोकी नाथ )
चुनाव आयोग की इतिहास में स्वर्णिम हस्ताक्षर सिर्फ एक शख्स थे, उनका नाम था टी एन सेशन और इसकी ऊंचाई ने चुनाव आयोग की शायद चरम ऊंचाई की पदवी हासिल कर ली थी, इसके बाद जो पतन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई  वह  भारत की जीडीपी से कमजोर नहीं है......  

ठीक इसी आधार पर चुनाव आयोग का यह बयान,  वह भी वर्तमान सत्ता के  परिवेश में  सबसे बड़ा झूठ माना जा सकता है।  क्योंकि  सब जानते हैं  लाख के ऊपर आदमी मर गए है कोरोना इन डिस्ट्री में। भारत दुनिया का सर्वाधिक बड़ा संक्रमित राष्ट्र अघोषित तौर पर स्थापित है। इसकेेे बावजूद भी तथा कथित लोकतंत्र के लिए विधायिका को जीवित रखने के नाम पर चुनाव कराना एक औपचारिकता केेे रूप में सामने आया है। जब ढेर सारी तानाशाही दबे पांव भारत पर कब्जा कर ली है ऐसे में मृत्यु का तांडव  देने वाली  कोरोना इंडस्ट्री  के दौर में  चुनाव कराना चुनाव आयोग का सबसे बड़ा मजाक था । जिसे वह  कोर्णाक आल से हटकर  ऐतिहासिक निर्णय लेकर  अपनी बात को बजन दे सकती थी यह करने की बजाय चुनाव आयोग का यह बयान नहले पर दहला अथवा कहना चाहिए करेला ऊपर से नीम चढ़ा जैसा प्रतीत होता है।

 एक ऐसा चुनाव आयोग की इतिहास का सबसे बड़ा झूठ जो सार्वजनिक तौर पर भारत की जनता पर ऊपर थोपा जा रहा है जिसे जनसत्ता जैसे अखबार ने लीड न्यूज़ ही बनाया है कि सोशल डिस्टेंसिंग  ना मानने पर कड़ी कार्यवाही होगी  जबकि  जैसे चुनाव चालू हुए हैं  तब से लॉकडाउन के जरिए ही 5,10,50 बढ़ाकर 100 लोग को जमा करके चुनाव का रंग चढ़ाने का काम हुआ।  जनता जनार्दन  कोरोना के सभी नियमों की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं ऐसे में 2 गज की दूरी कि यह हेडिंग अगर चुना तो इसे प्रधानमंत्री नरेंद्रर मोदी, मोदी की भाजपा  का चुनाव मंत्र  के रूप में ब्रांडेड वाक्य संबंध नहीं हैै। और यह बात खुुुुुुद चुनाव आयोग चुनाव मे क्यों कहा,  फिर क्या क्या कारण है आयोग ने भारत की जनता पर ठोकने वाला झूठ बोला...?

 यह भी चुनाव आयोग की संस्थागत पतन का प्रमाण है ऐसे मेंं यदि उन्हेंं स्वयं को साबित करना है तो कार्यवाही भी करके दिखाना चाहिए और फिलहाल ऐसी कोई उम्मीद  चुनाव आयोग से करना  अंधेरे में तीर मारना जैसा है?

  फिर भी उनकी सोच  जिंदा है  इसके लिए उन्हें बहुत बधाई ..... और शुभकामनाएं कि लोकतंत्र के लिए कर्तव्यनिष्ठ बन सके....

अपडेट 23 अक्टूबर 20

 चुनाव आयोग के निर्देश के अनुरूप  कि ग्वालियर  हाई कोर्ट पीठ में  समुचित न्याय पारित किया है ।किंतु देश में कोरोना के लाने के लिए जिम्मेवार मध्यप्रदेश की राजनेता इसे नहीं मान रहे है और बिहार के समकक्ष आपदा निमंत्रण के लिए न्याय मांगने हेतु सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रहेे हैं.....

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

दुनिया में संक्रमण चार करोड़ पार

 दुनिया में कोरोना का संक्रमण चार करोड़ पार ...

भारत, अमेरिका से सिर्फ आठ लाख से पीछे...

 कोरोना का जन्मदाता देश चीन कोरोना संक्रमण की स्क्रीनशॉट से बाहर हुआ, 53 वां स्थान

5000 की संख्या के करीब पहुंचने वाला शहडोल, प्रदेश का पांचवा संक्रमित क्षेत्र बन गया है








दुनिया में कोरोना के संक्रमित घोषित व्यक्तियों की संख्या 4 करोड़ से ज्यादा हो गई है इसी क्रम में वर्ल्डोमीटर के अनुसार बताई गई संक्रमित राष्ट्रों की सूची में कोरोनावायरस को जन्म देने वाला राष्ट्रीय चिन्ह पूरी सफलता के साथ संक्रमित राष्ट्रों की स्क्रीनशॉट से बाहर हो गया है क्योंकि स्क्रीनशॉट में सिर्फ 50 राष्ट्र ही प्रदर्शित हो रहे हैं जबकि चीन 53 वा राष्ट्र बन गया है


चीन का पड़ोसी देश भारत दुनिया का अघोषित तौर पर पहला संक्रमित राष्ट्र बन चुका है क्योंकि भारत ने अमेरिका के टेस्ट किए हुए संक्रमित व्यक्तियों की संख्या के मुकाबले सिर्फ 7% के करीब अपनी टेस्टिंग की है जबकि अमेरिका ने 35% से ज्यादा लोगों का टेस्ट कर लिया है बावजूद भारत को जान है और जहान है का मंत्र फूटने वाले नारे के बीच में कोरोनावायरस से बचाव और सतर्कता की कोई चिंता नहीं दिखती है चुनावों में जमकर भीड़ जुटाई जा रही है आम नागरिक भी इन हालातों पर जबकि नेता अपना धंधा कर रहे हैं इन सबसे प्रोत्साहित होकर आम नागरिक मजबूरी में  निश्चिंत होकर धंधा करता दिखाई देता है। और दूसरी ओर कोरोना से संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़ों को चुनाव और वोट बैंक के मध्य नजर छुपाया भी ताकि मतदाताओं को चुनाव केेे रुझान में वोट डालने तक लायाा जा सके .....?

शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा

आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा....?

क्या चुनौती को अवसर बना पाएंगे हम .....?

क्या,आत्मनिर्भरभारत बनेगा....?

 (त्रिलोकीनाथ)

7 जून को देश के एक बैरिस्टर को साउथ अफ्रीका में ट्रेन से धक्का देकर उतारा गया था. 7 जून 1893 के दिन स्टेशन से उठकर गांधी ने पूरी रात वेटिंग रूम में बिताई और वहीं से सत्याग्रह की नींव रख दी.दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी ने अपनी पहली रेल यात्रा की थी और उन्होंने जो त्रासदी इस यात्रा में झेली,उससे दक्षिण अफ्रीका की जमीन से एशिया के अपनी मातृभूमि भारत में गुलामी से मुक्ति की भूमिका रच डाली थी। क्योंकि वह महात्मा गांधी थे।

 और वह दौर था जब ईमानदारी और नैतिकता का उपहास और मार्केटिंग का आधार नहीं हुआ करता था। आज 18 अक्टूबर 2020 में मैंने आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद की गुलामी की पृष्ठभूमि पर मार्च 2020 के बाद अपनी पहली ट्रेन यात्रा की है। 

गाड़ी नंबर 2854  स्पेशल अमरकंटक एक्सप्रेस शहडोल से 1:26पर यात्रा आरंभ की।


अनूपपुर में निर्धारित 2:20 पर  पहुंच गई। यहां से मुझे दुर्ग -अंबिकापुर की ट्रेन 8241नं0 सुबह बैकुंठपुर पहुंचाएगी ।
यह मेरी आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा है।
 


क्योंकि कोरोनावायरस कोविड-19 चीनी रासायनिक जैविक हमले के 8 माह बाद मै डरा सहमा और थका सा आदिवासी क्षेत्र शहडोल की निवासी हूं। क्योंकि मजबूरी है इसलिए यह यात्रा प्रारंभ करनी पड़ी।

तो यात्रा में रेल की यात्रा का जिक्र करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी महामारी के उत्सव में वर्तमान सत्ता भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक परिवहन मार्ग रेल की यात्रा का निजीकरण करने का फैसला  की वैसे तो जो शुरुआत में आर एस एस की पृष्ठभूमि से आए गुजरात के निवासी नरेंद्र मोदी ने जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने विपक्षियों पर ताल ठोक कर इस खबर को उठाते हुए  निराधार घोषित किया था, कि वह रेल को सेवा का किसी भी प्रकार से निजीकरण नहीं करने जा रहे हैं।

किंतु कोविड-19 के दौर में  डराये गये और सहमे भारतीय नागरिकों के देश में आज तक 151 रेल मार्गों का निजीकरण आर्थिक साम्राज्यवाद के देसी और विदेशी मित्रों और पूंजी पतियों के हवाले कर दिया है।
 परसों ही रेल की पास पड़ी भूमियों का भी निजी करण करने की नीति के फैसले की प्रेस विज्ञप्ति रेल मंत्रालय ने जारी की है

 यानीं पूरे भारत में रेलवे की निजी भूमि पर बीते 70 साल में जो आम आदमी अपनी रोजी रोटी कमा रहा था अब निजी उद्योग पतियों की लीज पर ली हुई जमीन पर उसे अपनी अजीबका तलाश करना पड़ेगा ।वह इसलिए भी क्योंकि इन लोगों के लिए भारत सरकार ने कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया था। 


इस तरह अपनी पहली ट्रेन यात्रा मैं शहडोल से अनूपपुर तक की बुकिंग की गई टिकट नंबर और धन राशि का विवरण का उल्लेख करना उचित होगा और

ठीक उसी प्रकार से अनूपपुर से बैकुंठपुर तक का रेल मार्ग की यात्रा का विवरण पत्र भी देना उचित होगा जिसमें कई बातें साफ-साफ हैं यह अलग बात है की वर्तमान में चल रही स्पेशल ट्रेनों में निजी पूजी पतियों का दखल नहीं है किंतु जिस कल्पना की दुनिया में सुविधाओं का आकलन करके ट्रेनों की निजी करण की सोच सामने लाई गई है उसकी झलक चीनी वायरस कोविड-19 के भारत में सुनियोजित तरीके से लाए गए और बाद में उसका मार्केटिंग करके है के वातावरण के बीच में जो कुछ भी स्पेशल ट्रेनों में नया परिवर्तन होता देता उससे भी अगर बची कुची ट्रेनों को निजी करण करने के अनुभव से बचाया जा सकता है

तो भी यह भारत की आजादी के लिए बहुत बड़ा खत्म होगा क्योंकि अब तक भेड़िया धसान या फिर तंत्र में मनमानी तरीके से चल रही रेल यात्राओं के कारण जो परेशानियां होती थी उनके उस पर काफी कुछ नियंत्रण होता दिख रहा है एक पहलू तो यह भी है कि क्या इस प्रकार की स्पेशल ट्रेनों के जरिए निजीकरण करने वाली ट्रेनों की अभ्यास प्रक्रिया तो प्रारंभ नहीं की गई ताकि ट्रेनों की निजी करण को एक स्तर पर लाकर के पूंजी पतियों के हवाले कर दी जाए यदि इसी हालात में रेल यात्रियों की सुविधाओं को उच्च गुणवत्ता पूर्ण तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। तो निजीकरण की कल्पना सिर्फ भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी परिवहन क्षेत्र को आर्थिक साम्राज्यवाद के पूंजी पतियों के गुलामी में समर्पण करने जैसा होगा। यह अलग बात है कि इसे यह बताकर किया जाए की इससे गुणवत्ता का सुधार होगा और रेल का घाटा भी कम होगा। किंतु रेलवे ही एकमात्र ऐसी बड़ी सबसे बड़ी सेवा का जरिया है जिससे भारत के लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी मजबूती से बचाई जा सकती है। भारत एकरूपता मैं आम समझ पैदा करने की खुली मंच के रूप में रेल को अब तक एक दूसरे से समझने का सबसे बड़ा जरिया बन गया था। हो सकता है इससे लोकतंत्र मजबूत होता रहा हो। बावजूद इसके कि भ्रष्टाचार के कारण यह सेवा भी भ्रष्टाचारियों की कीमत के हवाले हो गया था। किंतु चीनी वायरस के हमले से जो बड़ा नुकसान हुआ है और व जो मजबूरी में पैदा हुई है इसी कमजोरी से जो अनुभव गुणवत्ता सुधार अथवा बीमारी से बचने के तरीके के आधार पर प्रयोग हो रहे हैं ।उससे रेल शेवा निजीकरण से बचाया जा सकता है। सिर्फ शीर्ष भ्रष्टाचारियों को यकीन व हित के भारतीय रेल की विशाल संपदा को आर्थिक साम्राज्यवाद के हवाले करने से बचाया जा सकता है। किंतु क्या ट्रेड यूनियंस लीडर व हमारे देश के नेता कोविड-19 के दौर में नए अनुभवों से देश की आजादी को आर्थिक साम्राज्यवाद के विश्वव्यापी गुलामी से बचाने की 10% भी सोच रखते हैं...? और बैकुंठपुर रोड जैसे रेलवे स्टेशन भी  अद्यतन परिस्थिति में सब सीखनेे को तैयार भीी तो है फिर क्यों रेल की संपदा को नेता बेचने में लगेे हैं


अगर नेता 
 सच्ची सोच  नहीं रखते होंगे तो रेलवे का निजीकरण सिर्फ षड्यंत्र पूर्ण तरीके से आत्मसमर्पण के अलावा कुछ नहीं होगा यह भारत की हार होगी परिस्थितियों ने जो हालात पैदा किए हैं यदि उसमें भी हमने रास्ते नहीं निकाले तो यह देश को बेचने का एक बड़ा रास्ता बेहतर होगा कि अब तक जितनी भी निजी करण की कार्यवाही या हो चुके हैं उस पर तत्काल रोक लग जाए और निजीकृत रेल यात्रा की सेवाओं को रोल मॉडल मानकर शासकीय रेल के साथ प्रतिस्पर्धा की जाए ....। यही भारतीय रेल को और रेल के बहाने देश की स्वतंत्रता को बचाए रखने का एकमात्र जरिया है ।
यह मेरी  रेल यात्रा से निष्कर्ष निकलता है किंतु मैं महात्मा गांधी की तरह है दक्षिण अफ्रीका का यात्री नहीं हूं, और ना ही अंग्रेजों की गुलामी के भारत का यात्री ...। बल्कि मैं राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भ्रामक धुंध में विकसित हो रहे आर्थिक साम्राज्यवाद और मल्टीनेशनल कंपनियों की मिलीभगत की गुलामी का यात्री हूं इसलिए मेरी भी बातों को उपहास व मार्केटिंग के जरिए दबा देने  का पूरी आशंका बलवती है फिर भी हमें अपने "कर्तव्य मार्ग पर डट जाने" की प्रेरणा से अपनी बातों को रखना चाहिए। और मैं बस इतना ही कर रहा हूं .....।नर्मदे हर।


लेकिन जब मैं ऐसी बात करता हूं तो भारतीय जनता पार्टी की कभी फायरब्रांड नेता रही,   उमा भारती का हाल का गंगा के किनारे अकेले लेट जाना, मेरे संग-संग चले गंगा की धरा अक्सर याद आताहै। 

जैसीहनगर का तालाब सौंदर्यीकरण विकास वन रहा है विनाश का कारक

 तालाबों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन.....


 प्रतीकात्मक छायाचित्र

दक्षिण भारत में तालाबों के 

विनाश से बर्बाद होते शहर

जैसीहनगर का तालाब सौंदर्यीकरण  विकास वन रहा है विनाश का कारक

 (त्रिलोकी नाथ)

 शहडोल क्षेत्र में तालाबों की बहुतायत ही इनकी विनाश का कारण बनती जा रही है भू माफिया हो चाहे नेता,अफसर या फिर नामधारी बड़ी-बड़ी संस्थाएं जो अपने आप को राष्ट्रवाद से जोड़ती हैं कम से कम शहडोल में उन सबकी बुनियाद पर तालाबों का विनाश के छुपा है।

 यह प्रश्न इसलिए खड़ा होता जा रहा है क्योंकि तालाबों के विकास को लेकर जो भी रूपरेखा बनाई जाती है उसकी बुनियाद पर विनाश अपनी जड़े जमा लेती है। कुछ इसी प्रकार की तलाब विनाश की कहानी जेसिहनगर के बस स्टैंड के पीछे हनुमान तालाब पर गढ़ी जा रही है। वैसे तो यह तालाब गहरीकरण और सफाई के लिए पहले भी चर्चित हो चुका है लेकिन इस बार चर्चा इस तालाब की इस बात के लिए है कि कैसे 62 लाख रुपए खर्च करके इस तालाब के नाम पर बंदरबांट कैसे किया जाए। एस्टीमेट के आधार पर कार्यों का क्रियान्वयन दूर-दूर तक होता नहीं दिख रहा है ।एस्टीमेट में यह बात भी स्पष्ट नहीं की गई है कि तालाब में जल आवक के लिए क्या नैसर्गिक प्राकृतिक स्रोत हैं...?


 सूत्र बतलाते हैं की बोरवेल करके तालाब को भरने की एक झूठी कहानी भी इसलिए गढ़ी गई है ताकि कल आपके बोरवेल करके उसमें भी भ्रष्टाचार किया जा सके...। स्थानीय नागरिकों ने इसे लगातार जागरूकता का प्रतीक बनाकर संबंधित प्रशासनिक व उच्च प्रशासनिक अमले पर अपना दबाव बनाने का काम किया है किंतु जैसीहनगर जैसी बस्तियों में राजनेता किसी माफिया की तरह  तालाब सौंदर्यीकरण के भ्रष्टाचार की राशि में अपना नजर गड़ाए हुए हैं और दबाव डालकर के फर्जी बिलों का भुगतान करवाते रहते हैं। हनुमान तालाब में भी कुछ इसी प्रकार का होता दिख रहा है ऐसा ग्रामीणों और नगर वासियों ने अपने आवेदन पर अपनी बात प्रशासन के समक्ष रखी है।


 किंतु प्रशासन का मूक बधिर हो करके ठेकेदार के लिए समर्पित रहना आश्चर्यजनक है। जबकि एस्टीमेट में दिखने वाले दर्शाए गए कथित तौर पर एक बाई एक पिचिंग के पत्थरों की जगह बोल्डर पिचिंग करना स्पष्ट दिख रहा है। बावजूद ऊपरी टेलीफो का दवाब कार्यों को सही ढंग से एस्टीमेट के अनुसार करने की बजाय ठेकेदार को फर्जी बिलों के भुगतान का दबाव बनाया जाना राजनीतिक माफिया गिरी को स्पष्ट बताता है। और जब बसस्टैंड के पीछे के दिखने वाले सार्वजनिक तालाब में खुला भ्रष्टाचार का नंगा नाच करने की साहस पढ़ रही है तो अन्य तालाबों के बारे में कुछ कहना अंधेरे में तीर मारना जैसा है ।

यही हाल शहडोल के तालाबों का भी स्पष्ट तौर पर है जहां की तालाबों को भाट करके या तो उनका रखवा छोटा कर दिया गया है या फिर उसे  संस्थाएं पाटकर अपने कार्यालय के लिए उपयोग कर रही हैं। उदाहरणार्थ जेल बिल्डिंग के बगल का ताला तालाब शहडोल का पहला ऐसा ताला था जिसकी प्लाटिंग की कल्पना भी प्रशासन ने कर ली थी किंतु जागरूकता से बचाया जा सका दुर्भाग्य से नगर के पार्षद गण तालाबों के संरक्षण के बारे में सोचना शायद छोड़ ही दिया है जिस कारण प्रशासन इन तालाबों की रक्षा कर पाने में स्वयं को अक्षम पा रहा है।

 वर्तमान दौर में जबकि यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि दक्षिण भारत में तालाबों के विनाश के कारण ही बाढ़ के हालात नगरों के विनाश का प्रतीक बन रहे हैं क्या शहडोल नगर के तालाबों के संरक्षण की बात प्रशासनिक अमला सोच भी पा रहा है ...? यदि हम दक्षिण भारत के शहरों की बर्बाद हालात से कुछ सीखा नहीं जा रहा है तो भविष्य में शहडोल में भयानक बाढ़ और बाढ़ से होने वाली तबाही को आप नहीं रोक सकते..। क्योंकि जब तालाब जो बरसात के जल ग्रहण सोत के बड़े आश्रय थे और बहाव के क्रमिक अवरोध थे तब भी उन्हें आप पाटकर नकली नक़ली बाढ़ के लिए और आपदा को निमंत्रण देने का काम कर रहे हैं।

 और यदि शहडोल कमिश्नर मुख्यालय में तालाबों का संरक्षण प्रशासन नहीं कर पा रहा है तो शहडोल क्षेत्र में तालाबों को भू माफियाओं से कैसे बचाया जा सकता है याने अगर बाड़ ही खेत खाने लगेगी तो रक्षा कौन करेगा....? आशा करनी चाहिए तालाबों के संरक्षण के लिए कमिश्नर स्तर पर विशेष बैठक करके जैसीहनगर के तालाब भ्रष्टाचार को केंद्र में रखकर बड़े नीतिगत निर्णय लिए जाएं ताकि तालाब व जल संसाधन से परिपूर्ण भविष्य का शहडोल क्षेत्र भू माफिया गिरी से बच सके...।



शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

रेल - निजी निवेश



रेल- निजी निवेश 




के माध्यम से छोटे और सड़क के किनारे स्टेशनों पर गुड्स  शैडों के विकास पर नीति जारी 


नीति में नए गुड्स शैडों की सुविधाओं की स्थापना और मौजूदा गुड्स शैडों के विकास करने की अनुमति देकर निजी भागीदारी के माध्यम से टर्मिनल क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य

रेल मंत्रालय ने बड़ी संख्या में रेलवे स्टेशनों पर नई गुड्स शैडों की सुविधाओं की स्थापना और मौजूदा गुड्स शैडों (संसाधनों की कमी के कारण जिन शैडों का विकास करने में रेलवे असमर्थ है) विकसित करके निजी भागीदारी के माध्यम से टर्मिनल क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य रखते हुए, निजी निवेश के माध्यम से छोटे और सड़क के किनारे स्थित स्टेशनों पर गुड्स शैडों के विकास पर एक नीति जारी की है।

पॉलिसी की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं -

निजी व्यवसाइयों को सामान लदान के स्थान, सामान चढ़ाने ध्तारने की सुविधाओं, मजदूरों के लिए सुविधाएं (छाया के साथ आराम की जगह, पीने का पानी, स्नान की सुविधा आदि) सम्पर्क सड़क, हुई शेड और अन्य संबंधित बुनियादी को विकसित करने की अनुमति दी। निजी व्यवसाइयों द्वारा अपने स्वयं के निवेश के माध्यम से सुविधाओं का निर्माण  विकास किया जाना है।प्रस्तावित सुविधा के लिए सभी विकास कार्य रेलवे के स्वीकृत डिजाइनों के अनुसार होंगे और स्वीकृत रेलवे मानकों और विशिष्टताओं के अनुसार इनका निर्माण किया जाएगा।रेलवे निर्माण के लिए कोई विभागीय या कोई अन्य शुल्क नहीं लेगा।

निजी व्यवसायी द्वारा बनाई गई सुविधाओं का उपयोग आम उपयोगकर्ता की सुविधा के रूप में किया जाएगा, और अन्य ग्राहकों के आवागमन पर व्यवसायी के यातायात को अन्य ग्राहकों पर कोई वरीयता या प्राथमिकता नहीं दी जाएगी।समझौते के दौरान बनाई गई संपत्ति और सुविधाओं के रखरखाव की जिम्मेदारी निजी व्यवसायी के साथ निहित होगी।इस योजना के तहत प्रोत्साहन टर्मिनल प्रभार (टीसी) और टर्मिनल एक्सेस चार्ज (टीएसी) में हिस्सेदारी, जैसा भी मामला हो, काम पूरा होने की तारीख से पांच (05) साल के लिए गुड्स-शेड में सभी आने और जाने वाले यातायात के लिए।

कम से कम शेयर (टीसी ध् टीएसी) की मांग करने वाले व्यवसायी को प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से चुना जाएगा, यह कार्य डिवीजन स्तर पर किया जाएगा।व्यवसायी के लिए अतिरिक्त राजस्व - छोटी कैंटीन  चाय की दुकान, विज्ञापन, आदि की स्थापना के लिए उपलब्ध स्थान का उपयोग।

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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

महंगी पड़ रही है मंत्री, सांसद और विधायकों की निष्क्रियता......( त्रिलोकीनाथ)

 


क्या कोरोनावैक्सीन  लाभ की

प्राथमिकता में आदिवासी क्षेत्र होंगे....? 

महंगी पड़ रही है मंत्री, सांसद और

विधायकों की निष्क्रियता...... 

मध्यप्रदेश में शहडोल पांचवी पायदान पर क्यों पहुंचा...?

(त्रिलोकीनाथ)

हालांकि अभी दिल्ली दूर है... यह कहना जल्दबाजी होगी कि कोरोना वायरस से संबंधित वैक्सीन कब लांच हो रही है और कब तक जनता को इस महामारी से निजात मिलेगा ....। किंतु अनुभव के आधार पर यह जरूर कहा जा सकता है कि कम से कम भारत के संविधान में संरक्षित आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल वैक्सीन सप्लाई के मामले में प्राथमिकता में जगह पाएगा अथवा नहीं ...?

क्योंकि जैसे ही वैक्सीन आएगी ताकतवर राजनीतिक अपने अपने क्षेत्र के लोगों को कोविड-19 से निजात दिलाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन का लाभ दिलाएंगे किंतु शहडोल के सांसद हो अथवा सीधी क्षेत्र के सांसद इन आदिवासी क्षेत्रों में कोई सशक्त राजनीतिक नेतृत्व दिख नहीं रहा है, जो ताकतवर मोदी सरकार से प्राथमिकता क्रम पर अपने नागरिकों को वैक्सीन दिला सके...? इस तरह भगवान भरोसे आदिवासी क्षेत्र के नागरिक इस रासायनिक जैविक कोविड-19 के हमले की प्रताड़ना को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक रोग की महामारी में फंसे रहेंगे।


 दुनिया की बात कि कौन सबसे ज्यादा संक्रमित राष्ट्र है इस पर चर्चा एक बेमानी होकर रह गई है क्योंकि भारत सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र होने के बावजूद भी आंकड़ों में वह पीछे है । इसी तरह मध्यप्रदेश में 4 बड़े शहरों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर के बाद आदिवासी क्षेत्र शहडोल जिसके तीन हिस्से हैं शहडोल अनूपपुर और उमरिया सर्वाधिक संक्रमित क्षेत्र के रूप में स्थापित हैं।

 याने भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल होने के बाद भी भारत के राजनेता


अथवा उसका लोकतंत्र शहडोल क्षेत्र को लेकर कभी इतना सतर्क नहीं हुआ जिसके कारण इस क्षेत्र में नागरिकों के संक्रमण की संख्या तेजी से बढ़ गई है। इसके लिए पृथक से कोई सर्वे दल भी अथवा किसी प्रकार का अनुसंधान विशेष संवैधानिक सुरक्षा मैं होता नहीं दिख रहा है ।जो यह बताता है कि भारत के लोकतंत्र में शहडोल क्षेत्र सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों को शोषण कार्य करने का जरिया मात्र बन गया है।

 यह स्थानीय प्राकृतिक संसाधन उद्योगपतियों और माफियाओं की स्वर्गगाह भलाई बन जाए, माफिया और सरकारी कर्मचारी उच्च अधिकारियों के भ्रष्टाचार की बातें ऑडियो में भलाई वायरल होती रहे... स्थानीय सांसद अथवा विधायकों को अपनी जिम्मेदारी के साथ अपनी बात रखने का जरा भी ख्याल नहीं आता....... शायद उन्हें विधायक अथवा सांसद की पद मात्र सुख भोगने और मामूली सी नौकरी पाने जैसा अवसर जैसा है, जिसमें पेंशन मिलता है और जिंदगी आराम से कट जाती है।

स्थानीय नागरिकों की समस्याओं और उससे होने वाली दूरगामी परिणामों को लेकर ना ही कभी किसी राजनीतिक मंच ने मुद्दा बनाया है , हां अब यह जरूर देखने को मिला है कि जिस प्रकार से अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग माफिया शोषण कर रहे हैं उसी प्रकार से राजनीतिक दलों में भी संगठन में अलग-अलग माफिया के रूप में कार्यकर्ता विकसित हो रहे हैं और एक सिंडिकेट के रूप में अपने नेता की बातों को जमीन तक पहुंचाने के अलावा कोई जिम्मेदारी पूर्ण प्रस्तुति नहीं दे पा रहे हैं...?

 इसलिए यह बात स्पष्ट हो जाती है क्योंकि सक्रिय होने के बावजूद भी सांसद हिमाद्री सिंह ने अभी तक कोरोनावायरस को लेकर विधायकों के साथ कोई आत्मचिंतन नहीं किया है पत्रकारिता उनके लिए सिर्फ प्रचार का प्रयोगंडा के अलावा कुछ नहीं है...? जबकि इस महामारी के लिए जनप्रतिनिधि के साथ लोकज्ञान का तालमेल दिखना चाहिए था जो बिल्कुल होता नहीं दिख रहा है.... 

जिसका परिणाम बड़ा साफ है की प्राकृतिक संसाधन से भरपूर शहडोल क्षेत्र में बावजूद इसके यह मुख्यमंत्री के कथित गोद में बैठा हुआ क्षेत्र है, रेत माफिया, कोयला माफिया, कबाड़
माफिया, जंगल माफिया, शिक्षा माफिया तमाम प्रकार के माफियाओं के साथ एक राजनीतिक माफिया से भरपूर क्षेत्र में विशेषकर कोविड-19 आने के बाद विधायक और सांसदों ने आम आदमियों से संवाद करना छोड़ दिया है....?

 यदि अनूपपुर का चुनाव नहीं होता तो शायद जनप्रतिनिधि अपने बंद सुरक्षा कवच में घुसे रहते...। यही कारण है की शहडोल क्षेत्र मध्यप्रदेश का सर्वाधिक पांचवां बड़ा कोरोनावायरस से संक्रमित क्षेत्र के रूप में दर्ज हो चुका है। अब तो यह बातें और भी गंभीर होती दिख रही हैं की प्रशासनिक स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व इस बात का निर्देश दे रहा है फीवर क्लीनिक के जरिए होने वाली टेस्टिंग को सार्वजनिक न किया जाए... जो एक प्रकार से संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़ों को छुपाने जैसा है। और यदि यह सब प्रयोग हो रहे हैं , चुनाव के हिसाब से तो वैक्सीन आने के बाद शहडोल जैसे दलित आदिवासी क्षेत्र में आम नागरिकों को तत्काल वैक्सीन प्राथमिकता क्रम पर मिलेगी फिलहाल अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि बहुत कम उम्मीद करना चाहिए

की तत्काल लाभ मिलेगा हो सकता है।

 तब हो सकता है  तब के जागृत चिकित्सा माफिया के लिए वैक्सीन को आम पहुंच से दूर रखा जाए....? क्योंकि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान भी चिकित्सा क्षेत्रों में लगे व्यक्तियों ने मुफ्त की चिकित्सा, दान की चिकित्सा का ना अनुसरण किया और ना ही नेताओं ने अपील की...।

 जैसे हाल में ट्रेन की निजीकरण की प्रक्रिया के चलते बांधवगढ़ जैसा अंतरराष्ट्रीय स्थान होने के बावजूद भी वहां से गुजरने वाली कई ट्रेनों को अब नहीं रोका जा रहा है और उमरिया जिले के लोगों ने जागृत होकर अपने हक के लिए प्रशासन और रेलवे से गुहार लगाई है। किंतु क्या इतनी जागरुकता अनूपपुर शहडोल जिले के नागरिकों में तक जीवित रहेगी....? यह कहना मुश्किल है ।

इसलिए माफियाओं के स्वर्गागाह शहडोल क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों को पत्रकारिता वाह आम नागरिकों को भी थोड़ा सा महत्व देते हुए के साथ तालमेल करते हुए लोकज्ञान के जरिए न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा बल्कि इस अंतरराष्ट्रीय साजिश में कोरोनावायरस की हमले से निजात पाने की प्राथमिक क्रम का संघर्ष बा रास्ते सुनिश्चित करना चाहिए।

 देखना है होगा कि लोकतंत्र में नेतृत्व करने वाला सांसद और विधायक चाहे वह सीधी अथवा शहडोल क्षेत्र के हों.., क्या कोई जिम्मेदारी दिखा पाते हैं........? 

अथवा नागरिकों में क्या कोई संबाद पूर्ण दायित्व प्रकट कर पाते हैं .....? अन्यथा मुख्यमंत्री की गोद शहडोल आदिवासी संभाग क्षेत्र में "राम" नाम की लूट है लूट सके तो लूट का भजन चल ही रहा है......


सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

मुख्यमंत्री की गोद में लूट सके तो लूट(... त्रिलोकीनाथ)

मुख्यमंत्री की गोद में...,

लूट सके तो लूट

कौन कितना लूट सकता है....?

वायरल हो रहे ऑडियो, 

 लोकतंत्र के लिए चुनौती ......

(त्रिलोकीनाथ)

क्या 16 वर्षों से भाजपा के राज में पल्लवित हो रहा है "पाकिस्तान का कालाधन"....? शहडोल में  विकसित हो रहा है कैसे कोई कबाड़ी मां-बहन की गाली दे रहा है  पुलिस अधिकारी को ......?


इन दिनों आदिवासी क्षेत्र शहडोल में अधिकारी स्तर के लोगों का भ्रष्ट सिस्टम के आडियो वायरल हो रहे हैं, रेंजर पुष्पा सिंह के  वायरलआडियो की आंच अभी ठंडी भी नहीं हुई थी और किसी निष्कर्ष में भी नहीं पहुंची एक उच्चअधिकारी कथित तौर पर पुलिस अधिकारी से संबंधित एक आडियो वायरल हो गया.....।


 पहले वाले आडियो में दबंग और भ्रष्ट महिला रेंजर पुष्पा सिंह शहडोल के जंगल को, अपनी दबंगई से खनिज माफिया को बेचने का अपनी बेहतरीन अदाकारी के साथ प्रस्तुति दी थी ताकि खनिज माफिया कटनी का नवाब नाम का व्यक्ति उसके ऊपर पैसों की बरसात कर दे.... और इन रुपयों और पैसों से वह जंगल विभाग में अपने उच्च अधिकारियों के साथ मंगल गीत गाए। इस बात की भी जांच नहीं की गई होगी कि कथित तौर पर पुष्पा सिंह ने एक ₹50000 का मोबाइल फोन उच्च अधिकारी की पत्नी को यूं ही गिफ्ट किया था।

 सवाल यह है कि जब अधिकारियों को ही सब जांचे करनी है एक अधिकारी दूसरे अधिकारी की जांच क्यों करेगा..? जबकि उसे स्वयं उस जांच से आंच आने वाली हो

 आज ही पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश उमा भारती का शेयर किया हुआ यह चित्र बहुत कुछ बताता है आदिवासी क्षेत्र के लिए


भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित विशेष आदिवासी क्षेत्र मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमित जिलों में इंदौर भोपाल ग्वालियर जबलपुर केेेे बाद पांचवें पायदान पर है फिर भी माफियाओंं का यह स्वर्ग बना हुआ है


  आदिवासी  क्षेत्र शहडोल में यह कोई नई बात नहीं है इसीलिए इस जांच का कोई निष्कर्ष लोकतंत्र की चुनावी मौसम में शायद ही आ पाती इसके पहले नहले पर दहला मारते हुए एक दूसरे अब जबलपुर का कबाड़ी नसीम एक पुलिसउच्च अधिकारी से जिस अंदाज में बात करते हुए उन्हें डांट रहा था और मां की गाली दे रहा था उससे यह लगता है कि अगर आडियो सही है तो कबाड़ माफिया को भ्रष्टाचार का डीजीपी होना चाहिए था..?

 भ्रष्टाचार की गंगा आदिवासी क्षेत्र में शायद इसलिए ज्यादा बह रही है क्योंकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का दावा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी क्षेत्र को गोद में ले रखा है। और इनकी गोद में भ्रष्टाचार का पाकिस्तान कहीं कटनी में तो कहीं जबलपुर में  जिस अंदाज में पनप रहा है, वह आश्चर्यजनक है.....

हमने एक लेख लिखा था शहडोल के आदिवासी विभाग में कैसे एक अंसारी नाम का आदमी अदना सा कर्मचारी बेनामी तौर पर सहायक आयुक्त शहडोल के सभी भ्रष्टाचार ओं पर नकेल जमा कर रखता है । जिसे हटाने की सोच भी नेताओं के दिमाग में इसलिए जन्म नहीं लेती क्योंकि उसका ब्लैक मनी नेताओं को पल्लवित करता है... अन्यथा आदिवासी विभाग में आदिवासियों के विकास की लूट को जब एक छोटी सी सोच से नियंत्रित किया जा सकता है। वह भी पाकिस्तान विरोधी भाजपा के राज में  25 वर्ष से  एक ही स्थान पर बैठे भ्रष्ट कर्मचारी को नहीं छुआ गया है और वह आदिवासी विभाग का माफिया बन गया है..। इन हालात पर जिला और प्रदेश तथा देश में भ्रष्टाचार के काला धन से नियंत्रित होने वाला पाकिस्तानी माफिया को हटाने का साहस क्या हिंदुत्व वाली भाजपा जुटा पाएगी....?


यह बड़ा प्रश्न इसलिए भी है क्योंकि भाजपा का दिखाने का दांत कम से कम कालाधन पैदा करने वाले पाकिस्तान परस्त माफिया को तो चबा ही सकता था... किंतु भाजपाा की राजनीति माफियाओं की नूरा-कुश्ती से ज्यादा कुछ नहीं दिखती....?

 कम से कम आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल मे तो यह है की आदिवासी क्षेत्र को लूट का बड़ा अड्डा बना रखा है। काला धन का बड़ा कारोबार शहडोल में खनिज माफिया और कबाड़ माफिया ही नहीं जंगल माफिया, कोयला माफिया और तरह-तरह के माफियाओं के हवाले कर दिया गया है... अब कहीं कुछ माफियाओं में जब अनबन हो जाती है नेताओं के साथ मिलीभगत में बात टेढ़ी हो जाती है तब ऐसे वीडियो या ऑडियो लीक हो जाते हैं.....?

 तथा आम जनता-जनार्दन को पता चल जाता है कि कैसे लोकतंत्र के यह जनार्दन चाहे नेता हो अथवा अफसर मिलकर आदिवासी क्षेत्र को लूट रहे हैं, और डाका डलवा रहे हैं.. 

और हो भी क्यों ना,यदि शहडोल का एक भी सांसद अथवा विधायक इस लूट के खिलाफ, माफिया गिरी के खिलाफ सरकार को पत्र लिखकर चेतावनी भी नहीं देता अथवा धरना आंदोलन की बात भी नहीं करता तो इसका मतलब माफियाओं की   हिस्सा अथवा छोटा सा टुकड़ा सत्ता में बैठे हुए नेताओं की रोजी-रोटी चलाने के लिए फेंका जाता है.... और इसीलिए शहडोल के विधायक अथवा सांसद ऐसे मामलों में मौनव्रत धारण करके माफियाओं को संरक्षण देते महसूस होते हैं.....?

 हाल में  विजयमत अखबार ने आपूर्ति विभाग के चावल घोटाले का बड़ा पर्दाफाश किया था जिसमें कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल का संरक्षण भी होना बताया था किंतु अखबार का उजागर होने के बाद सब कुछ जैसे ठंडे बस्ते में चला गया.. क्योंकि चावल माफिया ने उस पर पानी डाल दिया।

 इस मामले में जैसा भी हो व्यवहारी के विधायक शरद कोल विधायको की नाक बचाते हुए नजर आते हैं ...वे खनिज माफिया का चाहे जिस भी कंडीशन में हो दबाव बनाने का प्रयास करते दिखते हैं... हो सकता है माफियाओं से उनके तालमेल सही ना हो..? किंतु दिखने-वाले-सत्य के रूप में सिर्फ उन्ही की प्रशंसा किया जा सकता है।

 शहडोल की मीडिया गिरी मैं चाहे जितनी बुराई हो, जितनी कमियां हो जब इस प्रकार के ऑडियो अथवा वीडियो वायरल होते हैं तो लगता है संभावना कभी मरती नहीं है...? बहराल यह कांग्रेस पार्टी की बड़ी कमजोरी है की ऑडियो के वायरल होने के बावजूद भी वह इन्हें मुद्दे के रूप में जनता तक पहुंचा नहीं पा रही है... और अगर यह बातें आदिवासी क्षेत्र में खुली लूट की बातें मुद्दा नहीं बन पा रही है इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता ही नहीं उच्च स्तर के नेता भी शहडोल को, माफियाओं के चंगुल में रखना चाहते हैं... बस उनका मुद्दा सिर्फ यह होगा कि जो माफिया भाजपा को टुकड़ा फेंक रहा था और उनकी राजनीति चला रहा था अब वह कांग्रेस के लिए काम करें..... इस तरह आदिवासी क्षेत्र मैं एक खतरनाक भविष्य पल्लवित हो रहा है....।

 किंतु लोकतंत्र में जनता जनार्दन क्या कभी जागती है यदि जागती होती तो पुलिस के जनार्दन को इस प्रकार से कोई टुकड़एल माफिया यूं ही मां की गाली देकर माफिया गिरी नहीं करने पाता...। इस बात के लिए मुंबई पुलिस की प्रशंसा इसलिए भी करनी चाहिए की प्रेस माफिया बन कर कोई मुंबई पुलिस के  सम्मान के खिलाफ काम करता है तो वह उसका बदला ले लेती है क्या शहडोल क्षेत्र की पुलिस अथवा मध्य प्रदेेश की मैं इतनााा जमीर बचा कि वह  संगठित माफिया  को  मां की गाली देने  का जवाब दे सके ....? यह भी देखना होगा क्या आजाद भारत की पुलिस में  और उसके संगठन में  जीवन जिंदा है..?  वह आदिवासी क्षेत्र को  लूटने से बचा सकता है ..?

 देखना तो यह भी होगा कि पुलिस का जनार्दन और सत्ता का जनार्दन कितना माफियाओं से डरता है.. ? 

इसका असर रेत की खुली लूट में सांकेतिक रूप से उसके घटे हुए रेत की दर से महसूस हो सकता है.. क्योंकि अगर कांग्रेसका कोई विधायक क्षेत्र के उमरिया जिला शहडोल और अनूपपुर जिला में रेत का ठेका लेता है तो भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता उसे खुलेआम कैसे चला सकता है ...?

इसे ही  नूरा-कुश्ती की माफिया गिरी कहते हैं.., क्या सांसद और विधायक इतनी समझ रखते हैं शायद नहीं...? अन्यथा उनका प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए खुली चेतावनी माफिया सफाई की क्यों नहीं होनी चाहिए... अथवा उनकी चुप्पी या फिर कांग्रेस की चुप्पी नूरा कुश्ती से संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित आदिवासी क्षेत्र को खुली लूट का अड्डा बनाते दिखेंगे....?



रविवार, 11 अक्तूबर 2020

देश पहले पायदान पर, शहडोल पांचवें स्थान पर..,बावजूद प्राथमिकता में घंटा...( त्रिलोकीनाथ)

आभाषी दुनिया में देश पहले पायदान पर तो प्रदेश में शहडोल पांचवें स्थान पर....., बावजूद प्राथमिकता में घंटा....

(त्रिलोकीनाथ)
पौने चार करोड़ दुनिया की कुल कोरोना संक्रमित व्यक्तियों का आंकड़ा वर्ल्डोमीटर बता रहा है अनुमान की दुनिया में अकेले भारत इस आंकड़े के इर्द-गिर्द है...इन सबके बावजूद भारतीय सरकार की नजर में अयोध्या में घंटा लगाने का काम सर्वोच्च प्राथमिकता में एक है ताकि रामराज्य आ सके .....

 यूं तो भारत दुनिया का सर्वाधिक कोरोनावायरस से संक्रमित राष्ट्र बन चुका है यह अलग बात है कि भारत की स्वास्थ्य सेवाएं इसे सरकारी आंकड़ों में प्रदर्शित नहीं कर रही है क्योंकि ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ गुजरात में अंतिम सबसे बड़ी सर्वजनिक सभा किए थे और इसके बाद कोरोनावायरस दोनों ही राष्ट्रों में एक साथ विकसित हुआ था

चीन जो दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है और कोरोनावायरस कोविड-19 का जन्मदाता भी, उसने इस वायरस को सीमित क्षेत्र में नियंत्रित कर स्वयं को  संक्रमित राष्ट्रों की सूची में 49 में स्थान पर ला खड़ा कर दिया है,जो उसकी सफलता का प्रतीक है| यह अलग बात है कि कोरोनावायरस जैविक रासायनिक अस्त्र से कमजोर नहीं है और यह एक खतरनाक प्रयोग भी है किंतु भारत में इस लड़ाई में स्वयं को पराजित मान लिया है यही कारण है कि भारत में जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी प्रेसिडेंट-डिबेट में कहां है कि संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़े छुपाए गए हैं..., उनकी बातों में काफी हद तक सच्चाई प्रकट होती है।


 अमेरिका ने अपनी कुल आबादी का 35% से ज्यादा लोगों की कोरोनावायरस टेस्टिंग की है जबकि भारत में सिर्फ 6.5 % प्रतिशत आबादी की टेस्टिंग की है और 35% टेस्टिंग के बाद वर्तमान में भारत अमेरिका से सिर्फ 9लाख  संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़ों में पीछे है| भारत, समान रूप से चलते हुए 35% लोगों की टेस्टिंग किया होता तो करीब 6 गुना आंकड़े भारत के संक्रमित लोगों के बढ़ गए होते..... इस प्रकार भारत दुनिया का सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र के रूप में स्थापित है|





 और इस सच्चाई को स्वीकार करने की बजाय भारत में भयानक आपदा या जैविक हमला के दौर में भी लोकतांत्रिक पद्धति को कमजोर कर के आर्थिक उपायों पर अपनी सहमति व्यक्त करता नजर आ रहा है..?

इस तरह दुनिया का सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र होने के बावजूद भी भारत अपनी लोकतांत्रिक ताकत को कमजोर करता नजर आ रहा है। बहरहाल यह दुनियादारी की बातें मानकर हमें अपने आदिवासी अंचल के बारे में थोड़ा चिंतन करने की जरूरत है| कि क्या हम विश्व के इस जैविक हमले में आदिवासी क्षेत्र होने के नाते किन हालातों में गुजर रहे हैं.... और किस प्रकार से हम अपनी स्वतंत्रता खासतौर से स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सतर्क है... क्या.? 

 तो आइए देखते हैं मध्यप्रदेश के तुलनात्मक आंकड़ों में शहडोल कहां है..? जिस प्रकार से दुनिया की नजर में भारत दूसरे नंबर पर है उसी तरह मध्यप्रदेश की नजर में भारत शहडोल जिला 13वें स्थान पर है

किंतु वास्तविक परिवेश को दिखाएं तो शहडोल4 अक्टूबर को कोविड-19 में दर्शाए गए उसमें शहडोल का 14 वां स्थान प्रदर्शित किया गया था जो इस प्रकार से है

वर्तमान में 11 अक्टूबर को शहडोल 13 में स्थान पर प्रदर्शित हो रहा है किंतु वास्तव में शहडोल क्षेत्र  मध्यप्रदेश में सर्वाधिक संक्रमित पांचवा क्षेत्र है विंध्य क्षेत्र का शहडोल जिला  अब तीन टुकड़े में राजनीतिक कारणों से बांध दिया गया है जिसमें उमरिया, शहडोल और अनूपपुर जिला शामिल है इस तरह संयुक्त रूप से यह आदिवासी क्षेत्र शहडोल संभाग के रूप में स्थापित है 



सर्वाधिक तथाकथित आदिवासी कल्याण की योजनाएं और जन हितैषी कार्य के समर्पण के बावजूद शहडोल क्षेत्रमैं जहां माइनिंग माफिया अपनी चरम सीमा पर खनिज संपदा को लूटने में व्यस्त है जहां सरकारी वन विभाग के रेंजर पुष्पा सिंह के वीडियो खुलेआम वायरल हो रहे हैं कि वह किस प्रकार से खनन माफिया के साथ गठजोड़ करके जंगलराज कायम करते हुए वन क्षेत्र की खनिज संपदा का लूट मचाए हुए हैं|


जिसका बटवारा वह उच्च स्तरीय अधिकारियों के साथ करती रहती है| ऐसे क्षेत्र में प्रमाणित क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य जनसंख्या वाले क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति नेताओं की क्या निष्ठा है..?
क्या 2-2  कैबिनेट मंत्री वाले और एक पूर्व आदिवासी मंत्री तथा एक वर्तमान आदिवासी मंत्री कल्याण मंत्री होने के बावजूद क्यों शहडोल मध्य प्रदेश का सर्वाधिक पांचवां बड़ा कोरोनावायरस संक्रमित क्षेत्र बन गया है...? इसके लिए आखिर कौन जिम्मेवार हैं, एक भी नेता क्या मेडिकल कॉलेज में जाकर वर्तमान हालत को देखने का साहस किया है, शायद नहीं...? इस कारण जो प्रताड़ना मरीजों को झेलनी पड़ रही है उसके लिए क्या संभव उपाय किए जाए|
 दुनिया का सबसे बड़ा सीबीएम गैस का भंडार रखने वाला क्षेत्र, क्या दुनिया की उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं ko दे पाया...?
 कोयला भंडार रखने वाला क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में दलित क्यों है...? या फिर वर्तमान में कोयला और माफिया कुछ जंगली माफिया कुछ छोड़ दें तो सैकड़ों बरसों की विरासत में पड़ी हमारी रेत की खदान  चाहे जंगल के क्षेत्र में हो अथवा राजस्व क्षेत्र में लूटपाट के बड़े अड्डे बन गए हैं...? इन्हें कोई कोरोनावायरस का खतरा महसूस नहीं होता .../ खदानों का लाभ स्थानीय व्यक्तियों के लिए न की तरह है, बाहरी व्यक्तियों के लूटपाट का शहडोल स्वर्ग बना हुआ है..? मनमानी तरीके से रेत के रेट बढ़ाना, जैसा कि रेंजर पुष्पा सिंह ने वीडियो में कहां है उस हिसाब से खुली लूट का निमंत्रण देना... सरकारी कर्मचारियों की फितरत बन गई है| नेताओं की इस मामले में और भी खतरनाक है..? चुनाव के वक्त अगर यह मुद्दा नहीं बन पाए हैं...? इसका मतलब है कि शहडोल पूरी तरह से माफियाओं के गुलामी को महसूस कर रहा है ...और नेता और अधिकारी इनके राग दरबारी बने हुए हैं |माफिया राज शहडोल में इसलिए बन पाया है क्योंकि यह 16 वर्षों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की गोद लिया हुआ क्षेत्र है ..?यह हम नहीं कह रहे हैं| खुद शिवराज सिंह ने इस चीज का दावा किया था , उन्होंने गोद लिया हुआ है|
 क्या मुख्यमंत्री जब किसी क्षेत्र को गोद लेता है तो वहां पर माफियाओं का स्वर्ग राज कायम हो जाता है...? कम से कम इस आदिवासी क्षेत्र में 2-2 कैबिनेट मंत्रियों की उपस्थिति के बाद यही आभास हो रहा है| 
तो आइए देखें कि अब इतने  माफिया के बावजूद क्या कारण है कि स्वास्थ्य सेवाओं में शहडोल क्षेत्र मध्यप्रदेश का सर्वाधिक पांचवा संक्रमित क्षेत्र क्यों बन गया है...? उसकी तुलना बड़े शहरों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर के स्तर पर होने लगी है|

रह गया किसी भी लोकतांत्रिक पद्धति को बाहर से मॉनिटरिंग करने वाला उस का चौथा स्तंभ तो वह है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की नजर में देखें तो भैंस के आगे बीन बजाता हुआ नजर आ रहा है

और खुद एक कोरोनावायरस बंद कर बनकर  स्वयं  अस्तित्व की लड़ाई  लड़ रहा है  उसका कोरोना  का रूप  राजनीति खिलौना बन गया है..  कभी  मुंबई की सड़कों में कभी उत्तर प्रदेश के हाथरस में हैं तो कभी  राजस्थान के करौली में मौत का नंगा जश्नन मना रहा है... स्वयं गिद्ध की तरह उतर कर पत्रकारिता को तार-तार कर रहा है... ऐसे में कोरोना के खिलाफ लड़ाई सिर्फ एक  पाखंड बनकर रह गई है.....
 तो दुनिया और देश  को समझते हुए और उससे सबक लेते हुए आदिवासी क्षेत्र  की गुलामी  की मानसिकता से मुक्त होते हुए  आप इस जैविक हमले से अपनी रक्षा स्वयं करें उसी में सार है.... कम से कम माक्स  का उपयोग आपकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए, अन्यथा कीड़े मकोड़ेे की जीते हुए दुनिया के सबसेेेेे बडे कोरोना संक्रमित  और रिकवर्ड  विजेता बन जाए  या फिर  यमलोक पहुंच जाएं... जब सब कुछ  कोरोनाराम के भरोसे ऐसे में स्वयं राम बने और अपना भगवान बने,  यही वर्तमान की मांग है अन्यथा जैविक हमले कोरोना का शिकार बन जाए.....





"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...