शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

जैसीहनगर का तालाब सौंदर्यीकरण विकास वन रहा है विनाश का कारक

 तालाबों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन.....


 प्रतीकात्मक छायाचित्र

दक्षिण भारत में तालाबों के 

विनाश से बर्बाद होते शहर

जैसीहनगर का तालाब सौंदर्यीकरण  विकास वन रहा है विनाश का कारक

 (त्रिलोकी नाथ)

 शहडोल क्षेत्र में तालाबों की बहुतायत ही इनकी विनाश का कारण बनती जा रही है भू माफिया हो चाहे नेता,अफसर या फिर नामधारी बड़ी-बड़ी संस्थाएं जो अपने आप को राष्ट्रवाद से जोड़ती हैं कम से कम शहडोल में उन सबकी बुनियाद पर तालाबों का विनाश के छुपा है।

 यह प्रश्न इसलिए खड़ा होता जा रहा है क्योंकि तालाबों के विकास को लेकर जो भी रूपरेखा बनाई जाती है उसकी बुनियाद पर विनाश अपनी जड़े जमा लेती है। कुछ इसी प्रकार की तलाब विनाश की कहानी जेसिहनगर के बस स्टैंड के पीछे हनुमान तालाब पर गढ़ी जा रही है। वैसे तो यह तालाब गहरीकरण और सफाई के लिए पहले भी चर्चित हो चुका है लेकिन इस बार चर्चा इस तालाब की इस बात के लिए है कि कैसे 62 लाख रुपए खर्च करके इस तालाब के नाम पर बंदरबांट कैसे किया जाए। एस्टीमेट के आधार पर कार्यों का क्रियान्वयन दूर-दूर तक होता नहीं दिख रहा है ।एस्टीमेट में यह बात भी स्पष्ट नहीं की गई है कि तालाब में जल आवक के लिए क्या नैसर्गिक प्राकृतिक स्रोत हैं...?


 सूत्र बतलाते हैं की बोरवेल करके तालाब को भरने की एक झूठी कहानी भी इसलिए गढ़ी गई है ताकि कल आपके बोरवेल करके उसमें भी भ्रष्टाचार किया जा सके...। स्थानीय नागरिकों ने इसे लगातार जागरूकता का प्रतीक बनाकर संबंधित प्रशासनिक व उच्च प्रशासनिक अमले पर अपना दबाव बनाने का काम किया है किंतु जैसीहनगर जैसी बस्तियों में राजनेता किसी माफिया की तरह  तालाब सौंदर्यीकरण के भ्रष्टाचार की राशि में अपना नजर गड़ाए हुए हैं और दबाव डालकर के फर्जी बिलों का भुगतान करवाते रहते हैं। हनुमान तालाब में भी कुछ इसी प्रकार का होता दिख रहा है ऐसा ग्रामीणों और नगर वासियों ने अपने आवेदन पर अपनी बात प्रशासन के समक्ष रखी है।


 किंतु प्रशासन का मूक बधिर हो करके ठेकेदार के लिए समर्पित रहना आश्चर्यजनक है। जबकि एस्टीमेट में दिखने वाले दर्शाए गए कथित तौर पर एक बाई एक पिचिंग के पत्थरों की जगह बोल्डर पिचिंग करना स्पष्ट दिख रहा है। बावजूद ऊपरी टेलीफो का दवाब कार्यों को सही ढंग से एस्टीमेट के अनुसार करने की बजाय ठेकेदार को फर्जी बिलों के भुगतान का दबाव बनाया जाना राजनीतिक माफिया गिरी को स्पष्ट बताता है। और जब बसस्टैंड के पीछे के दिखने वाले सार्वजनिक तालाब में खुला भ्रष्टाचार का नंगा नाच करने की साहस पढ़ रही है तो अन्य तालाबों के बारे में कुछ कहना अंधेरे में तीर मारना जैसा है ।

यही हाल शहडोल के तालाबों का भी स्पष्ट तौर पर है जहां की तालाबों को भाट करके या तो उनका रखवा छोटा कर दिया गया है या फिर उसे  संस्थाएं पाटकर अपने कार्यालय के लिए उपयोग कर रही हैं। उदाहरणार्थ जेल बिल्डिंग के बगल का ताला तालाब शहडोल का पहला ऐसा ताला था जिसकी प्लाटिंग की कल्पना भी प्रशासन ने कर ली थी किंतु जागरूकता से बचाया जा सका दुर्भाग्य से नगर के पार्षद गण तालाबों के संरक्षण के बारे में सोचना शायद छोड़ ही दिया है जिस कारण प्रशासन इन तालाबों की रक्षा कर पाने में स्वयं को अक्षम पा रहा है।

 वर्तमान दौर में जबकि यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि दक्षिण भारत में तालाबों के विनाश के कारण ही बाढ़ के हालात नगरों के विनाश का प्रतीक बन रहे हैं क्या शहडोल नगर के तालाबों के संरक्षण की बात प्रशासनिक अमला सोच भी पा रहा है ...? यदि हम दक्षिण भारत के शहरों की बर्बाद हालात से कुछ सीखा नहीं जा रहा है तो भविष्य में शहडोल में भयानक बाढ़ और बाढ़ से होने वाली तबाही को आप नहीं रोक सकते..। क्योंकि जब तालाब जो बरसात के जल ग्रहण सोत के बड़े आश्रय थे और बहाव के क्रमिक अवरोध थे तब भी उन्हें आप पाटकर नकली नक़ली बाढ़ के लिए और आपदा को निमंत्रण देने का काम कर रहे हैं।

 और यदि शहडोल कमिश्नर मुख्यालय में तालाबों का संरक्षण प्रशासन नहीं कर पा रहा है तो शहडोल क्षेत्र में तालाबों को भू माफियाओं से कैसे बचाया जा सकता है याने अगर बाड़ ही खेत खाने लगेगी तो रक्षा कौन करेगा....? आशा करनी चाहिए तालाबों के संरक्षण के लिए कमिश्नर स्तर पर विशेष बैठक करके जैसीहनगर के तालाब भ्रष्टाचार को केंद्र में रखकर बड़े नीतिगत निर्णय लिए जाएं ताकि तालाब व जल संसाधन से परिपूर्ण भविष्य का शहडोल क्षेत्र भू माफिया गिरी से बच सके...।



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