मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

महंगी पड़ रही है मंत्री, सांसद और विधायकों की निष्क्रियता......( त्रिलोकीनाथ)

 


क्या कोरोनावैक्सीन  लाभ की

प्राथमिकता में आदिवासी क्षेत्र होंगे....? 

महंगी पड़ रही है मंत्री, सांसद और

विधायकों की निष्क्रियता...... 

मध्यप्रदेश में शहडोल पांचवी पायदान पर क्यों पहुंचा...?

(त्रिलोकीनाथ)

हालांकि अभी दिल्ली दूर है... यह कहना जल्दबाजी होगी कि कोरोना वायरस से संबंधित वैक्सीन कब लांच हो रही है और कब तक जनता को इस महामारी से निजात मिलेगा ....। किंतु अनुभव के आधार पर यह जरूर कहा जा सकता है कि कम से कम भारत के संविधान में संरक्षित आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल वैक्सीन सप्लाई के मामले में प्राथमिकता में जगह पाएगा अथवा नहीं ...?

क्योंकि जैसे ही वैक्सीन आएगी ताकतवर राजनीतिक अपने अपने क्षेत्र के लोगों को कोविड-19 से निजात दिलाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन का लाभ दिलाएंगे किंतु शहडोल के सांसद हो अथवा सीधी क्षेत्र के सांसद इन आदिवासी क्षेत्रों में कोई सशक्त राजनीतिक नेतृत्व दिख नहीं रहा है, जो ताकतवर मोदी सरकार से प्राथमिकता क्रम पर अपने नागरिकों को वैक्सीन दिला सके...? इस तरह भगवान भरोसे आदिवासी क्षेत्र के नागरिक इस रासायनिक जैविक कोविड-19 के हमले की प्रताड़ना को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक रोग की महामारी में फंसे रहेंगे।


 दुनिया की बात कि कौन सबसे ज्यादा संक्रमित राष्ट्र है इस पर चर्चा एक बेमानी होकर रह गई है क्योंकि भारत सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र होने के बावजूद भी आंकड़ों में वह पीछे है । इसी तरह मध्यप्रदेश में 4 बड़े शहरों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर के बाद आदिवासी क्षेत्र शहडोल जिसके तीन हिस्से हैं शहडोल अनूपपुर और उमरिया सर्वाधिक संक्रमित क्षेत्र के रूप में स्थापित हैं।

 याने भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल होने के बाद भी भारत के राजनेता


अथवा उसका लोकतंत्र शहडोल क्षेत्र को लेकर कभी इतना सतर्क नहीं हुआ जिसके कारण इस क्षेत्र में नागरिकों के संक्रमण की संख्या तेजी से बढ़ गई है। इसके लिए पृथक से कोई सर्वे दल भी अथवा किसी प्रकार का अनुसंधान विशेष संवैधानिक सुरक्षा मैं होता नहीं दिख रहा है ।जो यह बताता है कि भारत के लोकतंत्र में शहडोल क्षेत्र सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों को शोषण कार्य करने का जरिया मात्र बन गया है।

 यह स्थानीय प्राकृतिक संसाधन उद्योगपतियों और माफियाओं की स्वर्गगाह भलाई बन जाए, माफिया और सरकारी कर्मचारी उच्च अधिकारियों के भ्रष्टाचार की बातें ऑडियो में भलाई वायरल होती रहे... स्थानीय सांसद अथवा विधायकों को अपनी जिम्मेदारी के साथ अपनी बात रखने का जरा भी ख्याल नहीं आता....... शायद उन्हें विधायक अथवा सांसद की पद मात्र सुख भोगने और मामूली सी नौकरी पाने जैसा अवसर जैसा है, जिसमें पेंशन मिलता है और जिंदगी आराम से कट जाती है।

स्थानीय नागरिकों की समस्याओं और उससे होने वाली दूरगामी परिणामों को लेकर ना ही कभी किसी राजनीतिक मंच ने मुद्दा बनाया है , हां अब यह जरूर देखने को मिला है कि जिस प्रकार से अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग माफिया शोषण कर रहे हैं उसी प्रकार से राजनीतिक दलों में भी संगठन में अलग-अलग माफिया के रूप में कार्यकर्ता विकसित हो रहे हैं और एक सिंडिकेट के रूप में अपने नेता की बातों को जमीन तक पहुंचाने के अलावा कोई जिम्मेदारी पूर्ण प्रस्तुति नहीं दे पा रहे हैं...?

 इसलिए यह बात स्पष्ट हो जाती है क्योंकि सक्रिय होने के बावजूद भी सांसद हिमाद्री सिंह ने अभी तक कोरोनावायरस को लेकर विधायकों के साथ कोई आत्मचिंतन नहीं किया है पत्रकारिता उनके लिए सिर्फ प्रचार का प्रयोगंडा के अलावा कुछ नहीं है...? जबकि इस महामारी के लिए जनप्रतिनिधि के साथ लोकज्ञान का तालमेल दिखना चाहिए था जो बिल्कुल होता नहीं दिख रहा है.... 

जिसका परिणाम बड़ा साफ है की प्राकृतिक संसाधन से भरपूर शहडोल क्षेत्र में बावजूद इसके यह मुख्यमंत्री के कथित गोद में बैठा हुआ क्षेत्र है, रेत माफिया, कोयला माफिया, कबाड़
माफिया, जंगल माफिया, शिक्षा माफिया तमाम प्रकार के माफियाओं के साथ एक राजनीतिक माफिया से भरपूर क्षेत्र में विशेषकर कोविड-19 आने के बाद विधायक और सांसदों ने आम आदमियों से संवाद करना छोड़ दिया है....?

 यदि अनूपपुर का चुनाव नहीं होता तो शायद जनप्रतिनिधि अपने बंद सुरक्षा कवच में घुसे रहते...। यही कारण है की शहडोल क्षेत्र मध्यप्रदेश का सर्वाधिक पांचवां बड़ा कोरोनावायरस से संक्रमित क्षेत्र के रूप में दर्ज हो चुका है। अब तो यह बातें और भी गंभीर होती दिख रही हैं की प्रशासनिक स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व इस बात का निर्देश दे रहा है फीवर क्लीनिक के जरिए होने वाली टेस्टिंग को सार्वजनिक न किया जाए... जो एक प्रकार से संक्रमित व्यक्तियों के आंकड़ों को छुपाने जैसा है। और यदि यह सब प्रयोग हो रहे हैं , चुनाव के हिसाब से तो वैक्सीन आने के बाद शहडोल जैसे दलित आदिवासी क्षेत्र में आम नागरिकों को तत्काल वैक्सीन प्राथमिकता क्रम पर मिलेगी फिलहाल अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि बहुत कम उम्मीद करना चाहिए

की तत्काल लाभ मिलेगा हो सकता है।

 तब हो सकता है  तब के जागृत चिकित्सा माफिया के लिए वैक्सीन को आम पहुंच से दूर रखा जाए....? क्योंकि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान भी चिकित्सा क्षेत्रों में लगे व्यक्तियों ने मुफ्त की चिकित्सा, दान की चिकित्सा का ना अनुसरण किया और ना ही नेताओं ने अपील की...।

 जैसे हाल में ट्रेन की निजीकरण की प्रक्रिया के चलते बांधवगढ़ जैसा अंतरराष्ट्रीय स्थान होने के बावजूद भी वहां से गुजरने वाली कई ट्रेनों को अब नहीं रोका जा रहा है और उमरिया जिले के लोगों ने जागृत होकर अपने हक के लिए प्रशासन और रेलवे से गुहार लगाई है। किंतु क्या इतनी जागरुकता अनूपपुर शहडोल जिले के नागरिकों में तक जीवित रहेगी....? यह कहना मुश्किल है ।

इसलिए माफियाओं के स्वर्गागाह शहडोल क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों को पत्रकारिता वाह आम नागरिकों को भी थोड़ा सा महत्व देते हुए के साथ तालमेल करते हुए लोकज्ञान के जरिए न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा बल्कि इस अंतरराष्ट्रीय साजिश में कोरोनावायरस की हमले से निजात पाने की प्राथमिक क्रम का संघर्ष बा रास्ते सुनिश्चित करना चाहिए।

 देखना है होगा कि लोकतंत्र में नेतृत्व करने वाला सांसद और विधायक चाहे वह सीधी अथवा शहडोल क्षेत्र के हों.., क्या कोई जिम्मेदारी दिखा पाते हैं........? 

अथवा नागरिकों में क्या कोई संबाद पूर्ण दायित्व प्रकट कर पाते हैं .....? अन्यथा मुख्यमंत्री की गोद शहडोल आदिवासी संभाग क्षेत्र में "राम" नाम की लूट है लूट सके तो लूट का भजन चल ही रहा है......


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