शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा

आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा....?

क्या चुनौती को अवसर बना पाएंगे हम .....?

क्या,आत्मनिर्भरभारत बनेगा....?

 (त्रिलोकीनाथ)

7 जून को देश के एक बैरिस्टर को साउथ अफ्रीका में ट्रेन से धक्का देकर उतारा गया था. 7 जून 1893 के दिन स्टेशन से उठकर गांधी ने पूरी रात वेटिंग रूम में बिताई और वहीं से सत्याग्रह की नींव रख दी.दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी ने अपनी पहली रेल यात्रा की थी और उन्होंने जो त्रासदी इस यात्रा में झेली,उससे दक्षिण अफ्रीका की जमीन से एशिया के अपनी मातृभूमि भारत में गुलामी से मुक्ति की भूमिका रच डाली थी। क्योंकि वह महात्मा गांधी थे।

 और वह दौर था जब ईमानदारी और नैतिकता का उपहास और मार्केटिंग का आधार नहीं हुआ करता था। आज 18 अक्टूबर 2020 में मैंने आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद की गुलामी की पृष्ठभूमि पर मार्च 2020 के बाद अपनी पहली ट्रेन यात्रा की है। 

गाड़ी नंबर 2854  स्पेशल अमरकंटक एक्सप्रेस शहडोल से 1:26पर यात्रा आरंभ की।


अनूपपुर में निर्धारित 2:20 पर  पहुंच गई। यहां से मुझे दुर्ग -अंबिकापुर की ट्रेन 8241नं0 सुबह बैकुंठपुर पहुंचाएगी ।
यह मेरी आजाद भारत में आर्थिक साम्राज्यवाद के गुलामी की पहली ट्रेन यात्रा है।
 


क्योंकि कोरोनावायरस कोविड-19 चीनी रासायनिक जैविक हमले के 8 माह बाद मै डरा सहमा और थका सा आदिवासी क्षेत्र शहडोल की निवासी हूं। क्योंकि मजबूरी है इसलिए यह यात्रा प्रारंभ करनी पड़ी।

तो यात्रा में रेल की यात्रा का जिक्र करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी महामारी के उत्सव में वर्तमान सत्ता भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक परिवहन मार्ग रेल की यात्रा का निजीकरण करने का फैसला  की वैसे तो जो शुरुआत में आर एस एस की पृष्ठभूमि से आए गुजरात के निवासी नरेंद्र मोदी ने जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने विपक्षियों पर ताल ठोक कर इस खबर को उठाते हुए  निराधार घोषित किया था, कि वह रेल को सेवा का किसी भी प्रकार से निजीकरण नहीं करने जा रहे हैं।

किंतु कोविड-19 के दौर में  डराये गये और सहमे भारतीय नागरिकों के देश में आज तक 151 रेल मार्गों का निजीकरण आर्थिक साम्राज्यवाद के देसी और विदेशी मित्रों और पूंजी पतियों के हवाले कर दिया है।
 परसों ही रेल की पास पड़ी भूमियों का भी निजी करण करने की नीति के फैसले की प्रेस विज्ञप्ति रेल मंत्रालय ने जारी की है

 यानीं पूरे भारत में रेलवे की निजी भूमि पर बीते 70 साल में जो आम आदमी अपनी रोजी रोटी कमा रहा था अब निजी उद्योग पतियों की लीज पर ली हुई जमीन पर उसे अपनी अजीबका तलाश करना पड़ेगा ।वह इसलिए भी क्योंकि इन लोगों के लिए भारत सरकार ने कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया था। 


इस तरह अपनी पहली ट्रेन यात्रा मैं शहडोल से अनूपपुर तक की बुकिंग की गई टिकट नंबर और धन राशि का विवरण का उल्लेख करना उचित होगा और

ठीक उसी प्रकार से अनूपपुर से बैकुंठपुर तक का रेल मार्ग की यात्रा का विवरण पत्र भी देना उचित होगा जिसमें कई बातें साफ-साफ हैं यह अलग बात है की वर्तमान में चल रही स्पेशल ट्रेनों में निजी पूजी पतियों का दखल नहीं है किंतु जिस कल्पना की दुनिया में सुविधाओं का आकलन करके ट्रेनों की निजी करण की सोच सामने लाई गई है उसकी झलक चीनी वायरस कोविड-19 के भारत में सुनियोजित तरीके से लाए गए और बाद में उसका मार्केटिंग करके है के वातावरण के बीच में जो कुछ भी स्पेशल ट्रेनों में नया परिवर्तन होता देता उससे भी अगर बची कुची ट्रेनों को निजी करण करने के अनुभव से बचाया जा सकता है

तो भी यह भारत की आजादी के लिए बहुत बड़ा खत्म होगा क्योंकि अब तक भेड़िया धसान या फिर तंत्र में मनमानी तरीके से चल रही रेल यात्राओं के कारण जो परेशानियां होती थी उनके उस पर काफी कुछ नियंत्रण होता दिख रहा है एक पहलू तो यह भी है कि क्या इस प्रकार की स्पेशल ट्रेनों के जरिए निजीकरण करने वाली ट्रेनों की अभ्यास प्रक्रिया तो प्रारंभ नहीं की गई ताकि ट्रेनों की निजी करण को एक स्तर पर लाकर के पूंजी पतियों के हवाले कर दी जाए यदि इसी हालात में रेल यात्रियों की सुविधाओं को उच्च गुणवत्ता पूर्ण तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। तो निजीकरण की कल्पना सिर्फ भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी परिवहन क्षेत्र को आर्थिक साम्राज्यवाद के पूंजी पतियों के गुलामी में समर्पण करने जैसा होगा। यह अलग बात है कि इसे यह बताकर किया जाए की इससे गुणवत्ता का सुधार होगा और रेल का घाटा भी कम होगा। किंतु रेलवे ही एकमात्र ऐसी बड़ी सबसे बड़ी सेवा का जरिया है जिससे भारत के लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी मजबूती से बचाई जा सकती है। भारत एकरूपता मैं आम समझ पैदा करने की खुली मंच के रूप में रेल को अब तक एक दूसरे से समझने का सबसे बड़ा जरिया बन गया था। हो सकता है इससे लोकतंत्र मजबूत होता रहा हो। बावजूद इसके कि भ्रष्टाचार के कारण यह सेवा भी भ्रष्टाचारियों की कीमत के हवाले हो गया था। किंतु चीनी वायरस के हमले से जो बड़ा नुकसान हुआ है और व जो मजबूरी में पैदा हुई है इसी कमजोरी से जो अनुभव गुणवत्ता सुधार अथवा बीमारी से बचने के तरीके के आधार पर प्रयोग हो रहे हैं ।उससे रेल शेवा निजीकरण से बचाया जा सकता है। सिर्फ शीर्ष भ्रष्टाचारियों को यकीन व हित के भारतीय रेल की विशाल संपदा को आर्थिक साम्राज्यवाद के हवाले करने से बचाया जा सकता है। किंतु क्या ट्रेड यूनियंस लीडर व हमारे देश के नेता कोविड-19 के दौर में नए अनुभवों से देश की आजादी को आर्थिक साम्राज्यवाद के विश्वव्यापी गुलामी से बचाने की 10% भी सोच रखते हैं...? और बैकुंठपुर रोड जैसे रेलवे स्टेशन भी  अद्यतन परिस्थिति में सब सीखनेे को तैयार भीी तो है फिर क्यों रेल की संपदा को नेता बेचने में लगेे हैं


अगर नेता 
 सच्ची सोच  नहीं रखते होंगे तो रेलवे का निजीकरण सिर्फ षड्यंत्र पूर्ण तरीके से आत्मसमर्पण के अलावा कुछ नहीं होगा यह भारत की हार होगी परिस्थितियों ने जो हालात पैदा किए हैं यदि उसमें भी हमने रास्ते नहीं निकाले तो यह देश को बेचने का एक बड़ा रास्ता बेहतर होगा कि अब तक जितनी भी निजी करण की कार्यवाही या हो चुके हैं उस पर तत्काल रोक लग जाए और निजीकृत रेल यात्रा की सेवाओं को रोल मॉडल मानकर शासकीय रेल के साथ प्रतिस्पर्धा की जाए ....। यही भारतीय रेल को और रेल के बहाने देश की स्वतंत्रता को बचाए रखने का एकमात्र जरिया है ।
यह मेरी  रेल यात्रा से निष्कर्ष निकलता है किंतु मैं महात्मा गांधी की तरह है दक्षिण अफ्रीका का यात्री नहीं हूं, और ना ही अंग्रेजों की गुलामी के भारत का यात्री ...। बल्कि मैं राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भ्रामक धुंध में विकसित हो रहे आर्थिक साम्राज्यवाद और मल्टीनेशनल कंपनियों की मिलीभगत की गुलामी का यात्री हूं इसलिए मेरी भी बातों को उपहास व मार्केटिंग के जरिए दबा देने  का पूरी आशंका बलवती है फिर भी हमें अपने "कर्तव्य मार्ग पर डट जाने" की प्रेरणा से अपनी बातों को रखना चाहिए। और मैं बस इतना ही कर रहा हूं .....।नर्मदे हर।


लेकिन जब मैं ऐसी बात करता हूं तो भारतीय जनता पार्टी की कभी फायरब्रांड नेता रही,   उमा भारती का हाल का गंगा के किनारे अकेले लेट जाना, मेरे संग-संग चले गंगा की धरा अक्सर याद आताहै। 

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