रविवार, 20 अक्तूबर 2019

क्या तब से आज ज्यादा खतरनाक हो गई है स्वतंत्रता की लड़ाई...? (त्रिलोकीनाथ)


पतित भारत-रत्न, याने सावरकर 
संपूर्ण स्वतंत्रता के साथ कैसे हुआ था धोखा ....
क्या तब से आज ज्यादा खतरनाक हो गई है स्वतंत्रता की लड़ाई...?

(त्रिलोकीनाथ)
कुमार प्रशांत जी के बापू कथा प्रवचन से यह तो स्पष्ट हुआ कि समाज सुधारक और राजनेता यानी सत्ता की राजनीति करने वाले प्रथक प्रथक व्यक्ति होते हैं।       समाज सुधारक महात्मा गांधी वास्तव में संपूर्ण स्वराज और संपूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे किंतु साम्राज्यवाद इस स्वतंत्रता को सम्मान तो देना चाहता था किंतु अपनी शर्त पर.... और इसीलिए इंग्लैंड ने जब भी किसी को भारत भेजा तो उसने यह कह कर भेजा कि  गांधी से बचकर स्वतंत्रता की बात करनी चाहिए.. यही कारण था कि जब इंग्लैंड में उदारवादी स्वतंत्रता के पक्षधर लेबर पार्टी सत्ता में थी उसने माउंटबेटन वायसराय को भारत को जल्द से जल्द छोड़कर इसी स्थित में भाग जाना चाहती थी.., क्योंकि भारत की स्थितियां बेकाबू होती जा रही थी।

 गांधीजी नोवाखाली में थे जब सत्ता परिवर्तन की बात आई तो जो लोग जल्दबाजी में थे सत्ता की राजनीति करते थे उन्होंने स्वतंत्रता मैं अपना हिस्सा ढूंढना चाहा। साम्राज्यवाद की भ्रामक ताकते और उससे नियंत्रित भारतीय संगठन तत्कालीन कांग्रेस,  जो  असंतोष को  दबाने के लिए निर्माण की गई थी  वह धीरे से  स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गई ... किंतु सत्ता परिवर्तन में "आंदोलन" का मकसद भटक चुका था इसलिए गांधी की बिना राय लिए कॉन्ग्रेस ने आजाद भारत का ताना-बाना बनाने में सत्ता की राजनीति में व्यस्त हो गए। कोई "मुस्लिम लीग" बनाकर जिन्हा बन बैठा तो कोई "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" के जरिए सत्ता के पर्दे की पीछे की राजनीति साम्राज्यवाद को मजबूती दे रहा था ।गांधीजी चूकी अनशन में सांप्रदायिकता से लड़ रहे थे उन्हें सब कुछ स्पष्ट नहीं दिख रहा था.... कोई उन्हें संदेश भी नहीं दे रहा था...।
 और यदि सच माना जाए तो वर्तमान में हमने सत्याग्रह के अनशन का जो शुरू अन्ना हजारे के आंदोलन में देखा 21वीं सदी में वह गांधी के आंदोलन का तत्कालीन सत्य था। तब लड़ाई "संपूर्ण स्वतंत्रता" के लिए लड़ी जा रही थी ,अन्ना के कार्यकाल में "भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई" थी अंततः अन्ना के इर्द-गिर्द बुद्धिमान वर्ग ने राजनीति में आकर सत्ता परिवर्तन का सपना देखा और जल्दबाजी में अन्ना को अकेला छोड़ गए...।
 हम समझ सकते हैं कि तब गांधी जी के साथ भी संपूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई में यही सब कुछ हुआ होगा। तब भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर्दे के पीछे से अपनी अंग्रेजी निष्ठा  में अपने स्वार्थ पूर्ण मकसद के लिए काम करता रहा। अन्ना के आंदोलन में भी स्वयंसेवक संघ ने पर्दे के पीछे से अन्ना का साथ दिया और फिर एक झटके में दोनों ने मिलकर उन्हें अकेला छोड़ दिया....।
 बेशक अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम इतनी बेईमान नहीं है किंतु अगर वह "पिछवाड़े में लात मार कर" योगेंद्र यादव या प्रशांत भूषण को अलग कर देती है तो वह असहमति के साथ सहमत होने के सिद्धांत को भी लात मार देती है।
 तब महात्मा गांधी संपूर्ण स्वतंत्रता और तत्कालीन स्वतंत्र हो रहा है भारत के प्रस्तुत योजना मैं जल्दबाजी से काम नहीं करना चाहते थे क्योंकि वह भारत को संपूर्ण स्वतंत्र भारत के रूप में देखना चाहते थे। किंतु सांप्रदायिकता ने उन्हें अवसर नहीं दिया....। और सत्ता की राजनीति ने साम्राज्यवाद के विस्तार में अपने उद्देश्य पूर्ति "भारत के विभाजन" के मसौदे पर जिन्हा और नेहरू दोनों को भ्रम में डाल कर देश का विभाजन का खाका तैयार करा दिया । 
इस पर कुमार प्रशांत स्पष्ट करते हैं की वायसराय से गांधी जी ने कहा था जल्दबाजी न करें, उन्होंने दोनों पक्षों से बात भी की क्योंकि वे जानते थे, उनकी दूरदृष्टि देख रही थी कि इसके खतरनाक परिणाम तत्कालीन "ट्रांसफर ऑफ पॉपुलेशन" के रूप में गहरे घाव छोड़ेंगे... और दूरगामी परिणाम उसके प्रदूषण को नष्ट करने में सदियां लग जाएंगी... शायद इसीलिए उन्होंने मध्य मार्ग अपनाना चाहा किंतु साम्राज्यवाद ने सांप्रदायिकता के जरिए, अपने  भारतीय एजेंटों के जरिए भारत को संपूर्ण स्वतंत्रता ना देने में सफलता पूर्ण योजना पर काम कर चुकी थी।
 शायद तब वह पाशविक सांप्रदायिकता भ्रामक चाल बना चुकी थी, अफवाह वैमनस्यता और झूठ का बाजार तब फैलने में समय लगता था क्योंकि संचार के माध्यम आज जैसे तत्काल फैलने वाला नहीं था.... अब वह सुविधा सांप्रदायिकता को फैलाने वाली सोच बहुत सशक्त है... इसलिए वर्तमान की तुलना में तत्कालीन परिस्थितियों में भ्रामकता का धुंध कमजोर था...
 शायद यही कारण था कि तमाम गंदी राजनीति का खेल करने वाले लोगों के उपस्थिति के बावजूद देश एक अर्धसत्य की तरह एक "अर्ध-स्वतंत्र-राष्ट्र" के रूप में हमें विरासत में मिला....। इस प्रकार स्वतंत्रता की लड़ाई आज भी जारी है या यू कहना चाहिए कि अब हमें सांप्रदायिकता के अपने-हिंदुओं और अपने-मुसलमानों या क्रिश्चियनओ या फिर अलग-अलग  ढेर सारे पैदा हो गए कबीलाई वामपंथी, दक्षिणपंथी कश्मीरी, पूर्वांचल के विचारधाराओं  के साथ लड़ना है.....।


 गांधीजी को 6 बार हत्या के प्रयास हुए अंततः आजाद भारत में उन्हें किसी अंग्रेज ने नहीं मारा.... यह कलंक  स्वतंत्र भारत के नागरिक पर गया.... लेकिन इस सबसे ज्यादा खतरनाक परिस्थिति यह है गांधीजी की हत्या के बाद हत्यारों ने उनके बढ़ते महामानव बनने के स्वरूप से घबराने लगे.... और गांधीजी का नकाब पहनकर साम्राज्यवाद के लिए काम किया है। इससे सिर्फ गांधी बनकर ही स्वतंत्र भारत में हम संपूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए काम कर सकते हैं। क्योंकि तब से ज्यादा वर्तमान खतरनाक परिस्थितियों इसलिए अब हैं, क्योंकि तब वीर सावरकर व उनकी विचारधारा अंग्रेजों के एजेंट थे.... अब वीर सावरकर भारतरत्न के अधिकारी हैं...? क्योंकि वे सत्ता पर हैं.. गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख श्री कुमार प्रशांत कहते हैं आप जितना भारत रत्न का पतन करना चाहते हैं करें... इससे गांधी को फर्क नहीं पड़ने वाला...।
                      (बहस अभी बाकी है..)

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

पुलिस,अपराध  और हम ...
 सरेआम सीसीटीवी की नजर में शहरी पर हो रहे हमले......

( त्रिलोकीनाथ  )
यदि शहडोल पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने यातायात पुलिस महिला अधिकारी हेलमेट अनिवार्य है इस बिना पर कई लोगों पर चालानी कार्यवाही करती हैं और उसमें अगर ज्यादातर पुलिस कर्मचारी या पुलिस का अपना स्टाफ चालान से जुर्माना भरता है इसका एक संदेश है इससे पुलिस जमा जुर्माना राशि की बढ़ोतरी अब कोई विशेष मतलब नहीं है, शायद सर्वाधिक मतलब इस संदेश से है कि हम हेलमेट-अनिवार्य के लिए, अपने घर से ही; अपने ऑफिस से ही, कचरा साफ करें... लोगों को अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनने के लिए और हेलमेट से होने वाली सुरक्षा के प्रति आत्मबोध कराएं.  
 इस संदेश को फैलाने में ट्रैफिक चीफ काफी हद तक सफल रहे इसके और भी विकल्प हो सकते हैं जैसे मोटरसाइकिल में अनिवार्य रूप से हेलमेट देने के साथ ही हेलमेट हैंग करने के लिए और उसे सुरक्षित मोटरसाइकिल में लटके रहने के लिए लॉक करने की व्यवस्था मोटरसाइकिल में सुनिश्चित करना चाहिए .ताकि जब भी मोटरसाइकिल में कोई बैठे तो उसे हेलमेट दिख जाए फिर वह न पहने और तब ऐसा कोई जुर्माना जायज भी होगा.... आदि आदि... तरीके से संदेश  हो सकता है ।

बहरहाल जब इस संदेश को हम जायज मानते हैं तो शहर में कोई भी घटना यदि घट रही है तो उसके लिए संबंधित पुलिस थाना अधिकारी और उस वक्त और गंभीरता के साथ देखा जाना चाहिए। जब सीसीटीवी लगे हो और उसे कंट्रोल करने वाला कंट्रोल बोर्ड उसे दिशानिर्देश देने की अधिकार हो तब यदि कोई अपराध करके भाग जाता है तो इसका साफ मतलब है कि एक संदेश है .....,यह सब कुछ संबंधित पुलिस क्षेत्राधिकारी की सहमति से अथवा उसके संरक्षण से या फिर उसकी लापरवाही से घटित हो रहा है.... जिसकी जिम्मेवारी भी सुनिश्चित होना चाहिए।  
ऐसा नहीं माना जाना चाहिए की अवैध खनिज कारोबार से जुड़े हुए अथवा किसी भी अवैध क्रियान्वित हो रहे गैरकानूनी कारोबार की सूचना पुलिस क्षेत्राधिकारी के पास नहीं है। न सिर्फ घट रही प्रत्येक घटनाओं बल्कि उसके जिम्मेदार अपराधियों से पुलिस के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध होते ही हैं     । .....
 इसमें कोई शक नहीं है ,चलिए पहली बार घटना घट गई उसे दुर्घटना बस घटित घटना के रूप में देखा जा सकता है, किंतु बार-बार कोई अवैध कानूनी कार्यवाही में संलिप्त व्यक्ति यदि घटनाओं को खुलेआम अंजाम देता है तो इसे पुलिस की अप्रत्यक्ष अवैध कमाई का एक सेल की तरह देखना चाहिए क्योंकि पुलिस ऐसे अपराधियों को प्रतिबंधित करके या अपना खौफ जमा करके उनके अवैध मनोबल को खत्म कर अपने ही किसी अवैध सेल को बंद नहीं करेगी....?
 एक उदाहरण देते हैं पिछले पुलिस अधीक्षक सौरभ कुमार अपनी कार्यशैली के चलते आरक्षण विरोधी आंदोलन में अनायासी लाठीचार्ज करवा देते हैं, भगदड़ में कुछ लोगों को चोटे भी लगती हैं जब जांच होती है तो एक तरफ प्रशासन मजिस्ट्रियल इंक्वायरी कर रहा होता है तो दूसरी तरफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शहर में लगे सीसीटीवी के फुटेज को दिखाकर कुमार सौरभ अपनी सफाई देते हैं, उनका दोष नहीं है... आदि आदि.. यानी सीसीटीवी के जरिए बहुत कुछ नियंत्रित हो रहा होता है ...यह अलग बात है की ऐसी सीसीटीवी के फुटेज कितने कट के साथ किसके हित के लिए प्रयोग होता है..... याने अपराध को नियंत्रित करने का सिस्टम का तत्काल लाभ अपराधियों को पकड़ने के लिए यदि नहीं हो रहा है तो यह पुलिस की लापरवाही या फिर अपराध को समर्थन की बात को प्रमाणित करती है....?

 आखिर कैसे कोई अपराधी अपराध करके भाग जाता है ....विगत रात्रि ऐसी ही सीसीटीवी फुटेज में किरण टॉकीज के पास शहडोल का उचानी परिवार सिर्फ इस बात के लिए अपराधियों से चाकूबाजी से प्रताड़ित होता है कि उसने घटित हो रहे अपराध में हस्तक्षेप किया.... अगर कहा जाए तो देश में चल रही "मॉब लिंचिंग" की तरह ही इस मामले  पर उचानी परिवार के सदस्यों ने नैतिकता का प्रदर्शन करना चाहा तो उसे भी अपराधियों के बढ़े हुए मनोबल के चलते छुरा बाजी से प्रताड़ित होना पड़ा.... और हमेशा के लिए अपराध जगत के नये नायको की नजर में चढ़कर हमेशा का भयभीत जीवन जीने की बाध्यता बन गई ....।  यह इसलिए हुआ क्योंकि ज्यादातर चिन्हित अपराधी पुलिस के संरक्षण में गैरकानूनी कार्यों को अंजाम दे रहे थे। छूरा-बाजी उन्हीं गैरकानूनी कार्यो की दुकानदारी में एक छोटा सा नमूना था।

 शहडोल में अवैध खनिज कारोबार भारतीय जनता पार्टी के द्वारा जिस प्रकार का उद्योग बन गया है अब वह 
 इन कबीलाई अपराधियों का पनाहगाह बना हुआ है और गलत नहीं है इस पनाहगाह की ताकत यह है कि किसी पुलिस अधीक्षक का स्थानांतरण 24 घंटे में रुक जाता है.... यही अवैध खनिज उद्योग की ताकत है कि वह किसी पुलिस अधिकारी की हत्या करा देता है.... किंतु इन सब के बावजूद अवैध खनिज कारोबार पुलिस विभाग का अब तक अप्रत्यक्ष आमदनी का सर्वाधिक बड़ा जरिया है..... जिसे संरक्षित न करके पुलिस इस जरिया को खत्मा
 नहीं करना चाहती और इसीलिए इस कारोबार में जुड़े सभी चिन्हित अपराधी वे चाहे व्यवहारी में उमरिया जिले में या फिर अनूपपुर जिले में कहीं भी खुलेआम डंके की चोट में अवैध खनिज कारोबार को करते रहते हैं।
 यह उनकी ताकत ही है कि कोई भी खनिजअधिकारी, रेंजर अथवा कोई एसडीएम या फिर तहसीलदार यदि रोक नहीं पाता है ...,तो उसे मारपीट करके घेराबंदी करके हत्या करने का प्रयास "माब लिंचिंग" के जरिए किया जाता है।
 शहडोल में भी ऐसे उदाहरण आम होते जा रहे हैं   .. ऐसे में यदि आम  निर्दोष शहरी नागरिक किसी अपराधी को उसके कार्य पर आपत्ति करता है तो अपराध जगत द्वारा आपत्तिकर्ता की हत्या कर देना कोई बड़ी बात नहीं है..., भगवान भरोसे वह बच जाए उसकी किस्मत है......

 पुलिस का क्या... "चित भी मेरा, पट भी मेरा; अंटा मेरे बाप का   ...।.   इस प्रकार की कार्यशैली में आम शहरी का फसते जाना दैनिक जीवन हिस्सा का एक सिस्टम बन जाएगा ...,क्या इन सब से बचा जा सकता है....? तो क्यों ना साथ बैठकर, इन पाखंडी-शांति समितियों से हटकर,  नागरिक निवास का शहर बनाने के रास्ते मोहल्ले-मोहल्ले बैठक कर सुरक्षा की गारंटी पुलिस-संवाद के जरिए शहर को देना चाहिए....., ताकि शहर के अंदर यह सुनिश्चित हो सके कि अपराधियों को शहर में ऐसी छूट नहीं है..

जंगल ,नदी, पहाड़ वे जाएं और लूटे ....क्योंकि अपनी मंशा किसी की आमदनी को चाहे वह गैरकानूनी हो      ... खत्म करने की बिल्कुल नहीं है । इसलिए भी कि हम चाहे भी लें, तो किसी अरविंद-टीनू जोशी को या फिर हालिया सहायक आयुक्त आबकारी खरे को उसकी खरी खरी आमदनी खत्म करने का कोई दावा नहीं कर सकते              ।
 तो जो, जैसा जंगलराज है हमको उसी में जीने के तरीके सीखने चाहिए।
 गांधी जी की डेढ़ 100 जयंती में सबको बधाइयां।

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

नीलकंठ "वह शक्ति हमें दे दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं...." --🕊🇮🇳 🌴 त्रिलोकीनाथ 🌴 🇮🇳🕊--


कट पेस्ट -----

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

 "वह शक्ति हमें दे दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं...."

--🕊🇮🇳  🌴 त्रिलोकीनाथ  🌴 🇮🇳🕊---

 नीलकंठ 


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नीलकंठ
आज घर लौटते समय कार की खिड़की से बाहर खेतों की हरियाली का आनंद  था कि अचानक तारों पर बैठा हुआ नीलकंठ दिख गया। कितने वर्षों बाद आज नीलकंठ के दर्शन हुए वो भी अक्टूबर  में ! मन प्रफुल्लित हो गया…
नीलकंठ को हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला और देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गर्मी से जलने लगे। सबकी रक्षा हेतु भोलेनाथ उस भंयकर विष को अपने शंख में भरकर पी गए।  भगवान विष्णु ने  विष को शिवजी के कंठ में ही रोककर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया परंतु विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भगवान राम जो स्वयं विष्णु का अवतार थे, परम शिव भक्त थे। कहा जाता है कि लंका युद्ध के निर्णायक दिन, भगवान राम ने प्रातः नीलकंठ के दर्शन कर युद्ध-भूमि की ओर प्रस्थान किया था और रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की जीत के शाश्वत सत्य को स्थापित किया था। सत्य के उसी विजयोत्सव को दशहरे के रूप में मनाया जाता है। और तभी से दशहरे के दिन सुबह-सुबह नीलकंठ के दर्शन करना शुभ माना जाता है।
मुझे याद है कि बचपन दशहरे के दिन हम सुबह से टकटकी लगाए बैठे रहते थे कि कब हमें नीलकंठ के दर्शन हों और हम गर्व से सबके सामने अपने सौभाग्य की घोषणा कर सकें। आजकल की तरह, उन दिनों नीलकंठ के दर्शन दुर्लभ नहीं थे। खासकर अक्टूबर में प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ नीलकंठ भी बहुधा दिखाई दे जाते थे।
वैसे यहाँ एक बात स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि नीलकंठ का गला नीला नहीं होता है जैसा कि नाम से प्रतीत होता है बल्कि बहुत ही हल्का नीलापन लिए होता है। गहरा नीला रंग इसके सिर, पंखों व पूँछ पर पाया जाता है और बाकी शरीर प्रमुखतः भूरे रंग का होता है। नीलकंठ को इंडियन रोलर या ब्लू जे भी कहते हैं। कई लोग किंगफिशर नामक पक्षी को , जिसकी गर्दन नीली होती है, नीलकंठ समझ बैठते हैं जोकि गलत है।
नीलकंठ कृषकों का मित्र पक्षी होता है। ये खेतों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों, टिड्डों आदि को खाकर अपना पेट भरता है। पर यह बहुत ही दुख की बात है कि कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण यह विलुप्ति की कगार पर है। इसलिए मैंने जब आज नीलकंठ को देखा तो बहुत अच्छा लगा।
कभी-कभी लगता है कि अगर समुद्र मंथन इस युग में हुआ होता तो क्या कोई शिव हलाहल पीता… अगर कोई ऐसा भोला भंडारी मिल भी जाता तो लोग उसकी पूजा करते या फिर इसे एक मूर्खतापूर्ण कृत्य कहकर उसकी आलोचना करते ? क्या कोई विष्णु यूँ विष को शिव के कंठ में रोक देता या फिर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए विष का प्रभाव समाप्त करने खुद को अक्षम दिखाकर अपना पल्ला झाड़ लेता ? ऐसे ही कई प्रश्न आज मन को विचलित कर रहे हैं…
वैसे अगर गहराई से विचार करें तो लगता है कि समुद्र मंथन आज भी हो रहा है, कालकूट विष आज भी अपने दुष्प्रभाव से जीवन हर रहा है बस उसका स्वरूप बदल चुका है… कभी कीटनाशक कभी कर्ज़ तो कभी आरक्षण,दहेज, भ्रूणहत्या, भ्रष्टाचार आदि असंख्य रूपों में में ये हज़ारों जीवन लील चुका है..
पर सबसे ज़्यादा क्षोभ की बात यह है कि कितने ही नीलकंठ आज भी विषपान कर रहे हैं पर आज कोई विष्णु नहीं है इन्हें बचाने के लिए… कहते हैं कि कलयुग में विष्णु पुनः अवतरित होंगे पर क्या तब तक नीलकंठ यूँ ही मरते रहेंगे???

बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

महात्मा गांधी150 साल -2 (त्रिलोकीनाथ)


 महात्मा गांधी150 साल -2 

                   (त्रिलोकीनाथ)
संपूर्ण स्वराज के लिए महात्मा गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी और उनके त्याग का संकल्प लिया था। चरखा काटने का सूत पैदा करने का स्वाबलंबन इतिहास से समन्वय कर वर्तमान में आगे बढ़ने का रास्ता था। भारत के नेता खादी पहनने का यही कारण है मूलतः खादी हैंडलूम मजदूर श्रमिकों का उत्पादन है जिसका मूल्य मजदूरों की मजदूरी के लिए सुनिश्चित था।
 वर्तमान संदर्भ में हमारे जो भी नेता दिखते हैं वे सूट पहनकर अंग्रेज बनने का, दिखने का काम करते हैं । अब तो  जींस और टीशर्ट पहनने में  उन्हें कोई शर्म नहीं है,  बेशर्मी की सीमा के आगे  भी वह जाने में नहीं वही जाने में नहीं हिचकते। हमारे प्रधानमंत्री तो 14 लाख के सूट के लिए फेमस हो गए थे ।इसका अर्थ यह नहीं कि हम आधुनिक व्यवहार से न जोड़ें, किंतु हम अपने इतिहास से क्या समन्वय कर पा रहे हैं .....,यदि नहीं, तो हम सीखें.... मित्रों का निर्माण करें, पहला मित्र अपनी पत्नी, फिर बच्चे, फिर परिवार, समाज और देशकॉल परिस्थिति इस क्रम से हम भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, शर्त यह है की मित्रता में सुचिता और पवित्रता नैतिकता के साथ होनी चाहिए। हम उनके साथ षडयंत्र न करें उन्हें धोखा ना दे। लेकिन हम कहां पहुंच गए हैं ...
जो दिखने वाला धार्मिक संस्थान का आडंबर है जहां हमारे नेता नतमस्तक होते हैं वहां बाबा राम रहीम, आसाराम और हनीप्रीत निकल आती है....
मध्यप्रदेश में 15 साल भाजपा की चाल, चरित्र और चेहरा की सरकार थी... "हनी ट्रैप" निकल आई ...,यह प्रदूषण, गांधी की सोच से न चलने के कारण हुआ और अभी भी गोडसे का बखान करने वाले गांधी के हत्यारों का सम्मान का प्रयास होता है.... उन्हें महिमामंडित किया जाता है... तो क्या भारत "हनी ट्रैप" का भी बड़ा बाजार बन सकता है....?  क्या हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं...? जरूर मंथन करना चाहिए।
 नकल के लिए गांधीजी का क्या दर्शन था आइए देखें।महात्मा गांधी कहते थे:-

"यूरोपीय सभ्यता बेशक यूरोप के निवासियों के लिए  अनुकूल है; लेकिन यदि हमने उसकी नकल करने  की कोशिश की, तो भारत के लिए उसका अर्थ अपना नाश कर लेना होगा।"
 "इसका मतलब यह नहीं कि उसमें जो कुछ और हम पचा सकें ऐसा हो, उसे हम लें नहीं या पचायें नहीं। इसी तरह उसका यह मतलब भी नहीं है कि उस सभ्यता में जो दोष घुस गये हैं, उन्हें यूरोप के लोगों को दूर नहीं करना पड़ेगा। शारीरिक सुख-सुविधाओं की सतत खोज और उनकी संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि ऐसा ही एक दोष है; और मैं साहसपूर्वक यह घोषणा करता हूँ कि जिन सुख-सुविधाओं के वे गुलाम बनते जा रहे हैं उनके बोझ से यदि उन्हें कुचल नहीं जाना है, तो यूरोपीय लोगों को अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा। संभव है मेरा यह निष्कर्ष गलत हो, लेकिन यह मैं निश्चयपूर्वक जानता हूँ कि भारत के लिए इस सुनहरे मायामृग के पीछे दौड़ने का अर्थ आत्मनाश के सिवा और कुछ न होगा।" (इस श्रंखला का उद्देश्य गांधी के विचारों को वर्तमान संदर्भ में मंथन का है जिसमें पूरे वर्ष उनके विचारों को समय-समय पर संदर्भ में प्रकट किया जाएगा)


"यदि भारत ने हिंसा को स्वीकार लिया , तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा।"महात्मा गांधी

गांधी जयंती : 2 अक्टूबर 2019
"यदि भारत ने हिंसा को स्वीकार लिया , तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा। तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा।" महात्मा गांधी


         ( त्रिलोकीनाथ)
गांधी यदि एक हिंसक गोली से मरने वाले होते तो शायद उनकी हत्या के बाद उसी विचारधारा से निकला हुआ कोई नागरिक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर बैठकर यह नहीं कहते की मैं प्रज्ञा ठाकुर को "आत्मा से कभी माफ नहीं करूंगा"।
 जब उनकी ही विचारधारा के सांसद प्रज्ञा ठाकुर भारत के हृदय स्थल भोपाल से सांसद बनकर यह बोलती हूं कि गांधी का हत्यारा गोडसे एक देशभक्त था।
 तो बात है  "महात्मा गांधी अमर रहें " यूं ही मोहनदास करमचंद गांधी जैसेे व्यक्ति को महात्मा गांधी बना, उन्हें अमरता का वरदान कैसे मिल जाता  ? किंतु हमारा इतिहास  और अनुभव बताता है कि हर काल में देव और दानव रहेे हैं.. ,और एक दूसरे के दुश्मन भी। यह कोई नई बात नहीं है, अलग-अलग प्रकार के हिंदू-मुस्लिमआदि अनेक धर्मों में उनके अपने देव और दानव हमेशा रहे हैं। उनमेंं संघर्ष भी रहा है..., किंतु हमेशा सत्य जीता है....।
 चाहे असत्य कितना ही बलवान क्योंं ना रहा.... ?चाहे वह "हाउडि मोदी" में के बाजारबाद मैं झूठा ही सही, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से यह मार्केटिंग  करने को कहता हो...  कि मोदी "फादर ऑफ नेशन" है ...?
हो सकते हैं बाजारवाद की संज्ञा में राष्ट्रपिता के मायने "फादर आफ नेशन" न हो ....? ,हो सकता है महात्मा गांधी की प्रेरणा से अमेरिका का आदर्श पुरुष  मार्टिन लूथर अमेरिका को स्वतंत्रता की राह दिखाता हो...?  मैं इतना नहीं देखना चाहता की दुनिया में कहां कहां महात्माा गांधी की मूर्तियां या उनकेे अमर होने का प्रमाण कैसे स्थापित है...? और यह भी नहीं देखना चाहता कि भारत के नागपुर में  r.s.s. मुख्यालय में  महात्मा गांधी  किस रूप में स्वीकार किए जाते हैं...?,  जहां  तिरंगा को स्वीकारने में  बरसों बरस लग गए...। मैं तो इतना जानता हूं कि सीधा-साधा सरल आदिवासी सा दिखने वाला ज्ञान का यह भंडार महात्मा गांधी एक चलती फिरती लाइब्रेरी है। ज्ञान की, आध्यात्मिता की और संपूर्ण स्वतंत्रता की भी । गर योग्यता है तो आप लाइब्रेरी जाकर ज्ञान हासिल करिये, अन्यथा लूट सके तो लूट के गिरोह में शामिल हो जाएं...।  और  कोई  गोंडसे की  पिस्तौल की नीलामी  को करोड़ों रुपए में  महिमामंडित करें....?  बावजूद इसके,  आप गांधी की  अमरता के पैर की धूल भी नहीं होंगे..  यह  एकमात्र  कड़वा सत्य है. .।
 हमें गांधी को ऐसे ही याद रखना चाहिए।  गांधी जयंती के  2 अक्टूबर 2019 में बापू को शत-शत नमन। आइए इस वक्त उनके विचारों के कुछ अंश को समझने का प्रयास करें... जो वर्तमान का एक संघर्ष भी है...

 महात्मा गांधी ने अपने लेखों में कहे है:

"मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओं से मर्यादित नहीं है। यदि उसमें मेरा जीवंत विश्वास है तो वह मेरे भारत-प्रेम का भी अतिक्रमण कर जायेगा। मेरा जीवन अहिंसा-धर्म के पालन द्वारा भारत की सेवा के लिए समर्पित है।"
"यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा। तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा। मेरा देशप्रेम मेरे धर्म द्वारा नियंत्रण है। मैं भारत से उसी तरह बंधा हुआ हूँ, जिस तरह कोई बालक अपनी माँ की छाती से चिपटा रहता है; क्योंकि मैं महसूस करता हूँ कि वह मुझे मेरा आवश्यक आध्यात्मिक पोषण देता है। उसके वातावरण से मुझे अपनी उच्चतम आकांक्षाओं की पुकार का उत्तर मिलता है। यदि किसी कारण मेरा विश्वास हिल जाय या चला जाय, तो मेरी दशा उस अनाथ के जैसी होगी जिसे अपना पालक पाने की आशा ही न रही हो।"


"मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूँ, क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह दुनिया के भले के लिए स्वेच्छापूर्वक अपनी पवित्र आहुति दे सके। भारत की स्वतंत्रता से शांति और युद्ध के बारे में दुनिया की दृष्टि में जड़मूल से क्रांति हो जायेगी। उसकी मौजूदा लाचारी और कमजोरी का सारी दुनिया पर बुरा असर पड़ता है।"


"मैं यह मानने जितना नम्र तो हूँ ही कि पश्चिम के पास बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हम उससे ले सकते हैं, पचा सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं। ज्ञान किसी एक देश या जाति के एकाधिकार की वस्तु नहीं है। पश्चात्य सभ्यता का मेरा विरोध असल में उस विचारहीन और विवेकाहीन नकल का विरोध है, जो यह मानकर की जाती है कि एशिया-निवासी तो पश्चिम से आने वाली हरेक चीज की नकल करने जितनी ही योग्याता रखते हैं।....मैं दृढ़तापूर्वक विश्वास करता हूँ कि यदि भारत ने दुःख और तपस्या की आग में गुजरने जितना धीरज दिखाया और अपनी सभ्यता पर- जो अपूर्ण होते हुए भी अभी तक काल के प्रभाव को झेल सकी है-किसी भी दिशा से कोई अनुचित आक्रमण न होने दिया, तो वह दुनिया की शांति और ठोस प्रगति में स्थायी योगदान कर सकती है।"


"भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त-रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते-चलते पश्चिम अब खुद थक गया है; उसका भविष्य तो सरल धार्मिक जीवन द्वारा  प्राप्त शांति के अहिंसक रास्ते पर चलने में ही है। भारत के सामने इस समय अपनी आत्मा को खोने का खतरा उपस्थित है। और यह संभव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके।  इसलिए आलसी की तरह उसे लाचारी प्रकट करते हुए  ऐसा नहीं कहना चाहिये कि ‘‘पश्चिम की इस बाढ़ से मैं बच नहीं सकता।’’ अपनी और दुनिया की भलाई के लिए उस बाढ़ को रोकने योग्य शक्तिशाली तो उसे  बनना ही होगा।"


भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...