गांधी जयंती : 2 अक्टूबर 2019
"यदि भारत ने हिंसा को स्वीकार लिया , तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा। तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा।" महात्मा गांधी
( त्रिलोकीनाथ)
गांधी यदि एक हिंसक गोली से मरने वाले होते तो शायद उनकी हत्या के बाद उसी विचारधारा से निकला हुआ कोई नागरिक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर बैठकर यह नहीं कहते की मैं प्रज्ञा ठाकुर को "आत्मा से कभी माफ नहीं करूंगा"।
जब उनकी ही विचारधारा के सांसद प्रज्ञा ठाकुर भारत के हृदय स्थल भोपाल से सांसद बनकर यह बोलती हूं कि गांधी का हत्यारा गोडसे एक देशभक्त था।
तो बात है "महात्मा गांधी अमर रहें " यूं ही मोहनदास करमचंद गांधी जैसेे व्यक्ति को महात्मा गांधी बना, उन्हें अमरता का वरदान कैसे मिल जाता ? किंतु हमारा इतिहास और अनुभव बताता है कि हर काल में देव और दानव रहेे हैं.. ,और एक दूसरे के दुश्मन भी। यह कोई नई बात नहीं है, अलग-अलग प्रकार के हिंदू-मुस्लिमआदि अनेक धर्मों में उनके अपने देव और दानव हमेशा रहे हैं। उनमेंं संघर्ष भी रहा है..., किंतु हमेशा सत्य जीता है....।
चाहे असत्य कितना ही बलवान क्योंं ना रहा.... ?चाहे वह "हाउडि मोदी" में के बाजारबाद मैं झूठा ही सही, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से यह मार्केटिंग करने को कहता हो... कि मोदी "फादर ऑफ नेशन" है ...?
हो सकते हैं बाजारवाद की संज्ञा में राष्ट्रपिता के मायने "फादर आफ नेशन" न हो ....? ,हो सकता है महात्मा गांधी की प्रेरणा से अमेरिका का आदर्श पुरुष मार्टिन लूथर अमेरिका को स्वतंत्रता की राह दिखाता हो...? मैं इतना नहीं देखना चाहता की दुनिया में कहां कहां महात्माा गांधी की मूर्तियां या उनकेे अमर होने का प्रमाण कैसे स्थापित है...? और यह भी नहीं देखना चाहता कि भारत के नागपुर में r.s.s. मुख्यालय में महात्मा गांधी किस रूप में स्वीकार किए जाते हैं...?, जहां तिरंगा को स्वीकारने में बरसों बरस लग गए...। मैं तो इतना जानता हूं कि सीधा-साधा सरल आदिवासी सा दिखने वाला ज्ञान का यह भंडार महात्मा गांधी एक चलती फिरती लाइब्रेरी है। ज्ञान की, आध्यात्मिता की और संपूर्ण स्वतंत्रता की भी । गर योग्यता है तो आप लाइब्रेरी जाकर ज्ञान हासिल करिये, अन्यथा लूट सके तो लूट के गिरोह में शामिल हो जाएं...। और कोई गोंडसे की पिस्तौल की नीलामी को करोड़ों रुपए में महिमामंडित करें....? बावजूद इसके, आप गांधी की अमरता के पैर की धूल भी नहीं होंगे.. यह एकमात्र कड़वा सत्य है. .।
हमें गांधी को ऐसे ही याद रखना चाहिए। गांधी जयंती के 2 अक्टूबर 2019 में बापू को शत-शत नमन। आइए इस वक्त उनके विचारों के कुछ अंश को समझने का प्रयास करें... जो वर्तमान का एक संघर्ष भी है...
महात्मा गांधी ने अपने लेखों में कहे है:
"मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओं से मर्यादित नहीं है। यदि उसमें मेरा जीवंत विश्वास है तो वह मेरे भारत-प्रेम का भी अतिक्रमण कर जायेगा। मेरा जीवन अहिंसा-धर्म के पालन द्वारा भारत की सेवा के लिए समर्पित है।"
"यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा। तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा। मेरा देशप्रेम मेरे धर्म द्वारा नियंत्रण है। मैं भारत से उसी तरह बंधा हुआ हूँ, जिस तरह कोई बालक अपनी माँ की छाती से चिपटा रहता है; क्योंकि मैं महसूस करता हूँ कि वह मुझे मेरा आवश्यक आध्यात्मिक पोषण देता है। उसके वातावरण से मुझे अपनी उच्चतम आकांक्षाओं की पुकार का उत्तर मिलता है। यदि किसी कारण मेरा विश्वास हिल जाय या चला जाय, तो मेरी दशा उस अनाथ के जैसी होगी जिसे अपना पालक पाने की आशा ही न रही हो।"
"मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूँ, क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह दुनिया के भले के लिए स्वेच्छापूर्वक अपनी पवित्र आहुति दे सके। भारत की स्वतंत्रता से शांति और युद्ध के बारे में दुनिया की दृष्टि में जड़मूल से क्रांति हो जायेगी। उसकी मौजूदा लाचारी और कमजोरी का सारी दुनिया पर बुरा असर पड़ता है।"
"मैं यह मानने जितना नम्र तो हूँ ही कि पश्चिम के पास बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हम उससे ले सकते हैं, पचा सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं। ज्ञान किसी एक देश या जाति के एकाधिकार की वस्तु नहीं है। पश्चात्य सभ्यता का मेरा विरोध असल में उस विचारहीन और विवेकाहीन नकल का विरोध है, जो यह मानकर की जाती है कि एशिया-निवासी तो पश्चिम से आने वाली हरेक चीज की नकल करने जितनी ही योग्याता रखते हैं।....मैं दृढ़तापूर्वक विश्वास करता हूँ कि यदि भारत ने दुःख और तपस्या की आग में गुजरने जितना धीरज दिखाया और अपनी सभ्यता पर- जो अपूर्ण होते हुए भी अभी तक काल के प्रभाव को झेल सकी है-किसी भी दिशा से कोई अनुचित आक्रमण न होने दिया, तो वह दुनिया की शांति और ठोस प्रगति में स्थायी योगदान कर सकती है।"
"भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त-रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते-चलते पश्चिम अब खुद थक गया है; उसका भविष्य तो सरल धार्मिक जीवन द्वारा प्राप्त शांति के अहिंसक रास्ते पर चलने में ही है। भारत के सामने इस समय अपनी आत्मा को खोने का खतरा उपस्थित है। और यह संभव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके। इसलिए आलसी की तरह उसे लाचारी प्रकट करते हुए ऐसा नहीं कहना चाहिये कि ‘‘पश्चिम की इस बाढ़ से मैं बच नहीं सकता।’’ अपनी और दुनिया की भलाई के लिए उस बाढ़ को रोकने योग्य शक्तिशाली तो उसे बनना ही होगा।"
"मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूँ, क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह दुनिया के भले के लिए स्वेच्छापूर्वक अपनी पवित्र आहुति दे सके। भारत की स्वतंत्रता से शांति और युद्ध के बारे में दुनिया की दृष्टि में जड़मूल से क्रांति हो जायेगी। उसकी मौजूदा लाचारी और कमजोरी का सारी दुनिया पर बुरा असर पड़ता है।"
"मैं यह मानने जितना नम्र तो हूँ ही कि पश्चिम के पास बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हम उससे ले सकते हैं, पचा सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं। ज्ञान किसी एक देश या जाति के एकाधिकार की वस्तु नहीं है। पश्चात्य सभ्यता का मेरा विरोध असल में उस विचारहीन और विवेकाहीन नकल का विरोध है, जो यह मानकर की जाती है कि एशिया-निवासी तो पश्चिम से आने वाली हरेक चीज की नकल करने जितनी ही योग्याता रखते हैं।....मैं दृढ़तापूर्वक विश्वास करता हूँ कि यदि भारत ने दुःख और तपस्या की आग में गुजरने जितना धीरज दिखाया और अपनी सभ्यता पर- जो अपूर्ण होते हुए भी अभी तक काल के प्रभाव को झेल सकी है-किसी भी दिशा से कोई अनुचित आक्रमण न होने दिया, तो वह दुनिया की शांति और ठोस प्रगति में स्थायी योगदान कर सकती है।"
"भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त-रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते-चलते पश्चिम अब खुद थक गया है; उसका भविष्य तो सरल धार्मिक जीवन द्वारा प्राप्त शांति के अहिंसक रास्ते पर चलने में ही है। भारत के सामने इस समय अपनी आत्मा को खोने का खतरा उपस्थित है। और यह संभव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके। इसलिए आलसी की तरह उसे लाचारी प्रकट करते हुए ऐसा नहीं कहना चाहिये कि ‘‘पश्चिम की इस बाढ़ से मैं बच नहीं सकता।’’ अपनी और दुनिया की भलाई के लिए उस बाढ़ को रोकने योग्य शक्तिशाली तो उसे बनना ही होगा।"
गांधी और वर्तमान का सटीक प्रसांगिक व भावपूर्ण चित्रण करता ज्ञानवर्धक व मार्मिक आलेख। आज सत्ता सुख के लिए चाटुकारिता की राजनीति करने वाले वातावरण में ऐसे यथार्थता पूर्ण विचारक-चितक-लेखक कम ही हैंं जो आज की पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकें।
जवाब देंहटाएंविजय आश्रम की ओर से इस लेख को गंभीरता से पढ़ने के लिए धन्यवाद ।
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