बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

महात्मा गांधी150 साल -2 (त्रिलोकीनाथ)


 महात्मा गांधी150 साल -2 

                   (त्रिलोकीनाथ)
संपूर्ण स्वराज के लिए महात्मा गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी और उनके त्याग का संकल्प लिया था। चरखा काटने का सूत पैदा करने का स्वाबलंबन इतिहास से समन्वय कर वर्तमान में आगे बढ़ने का रास्ता था। भारत के नेता खादी पहनने का यही कारण है मूलतः खादी हैंडलूम मजदूर श्रमिकों का उत्पादन है जिसका मूल्य मजदूरों की मजदूरी के लिए सुनिश्चित था।
 वर्तमान संदर्भ में हमारे जो भी नेता दिखते हैं वे सूट पहनकर अंग्रेज बनने का, दिखने का काम करते हैं । अब तो  जींस और टीशर्ट पहनने में  उन्हें कोई शर्म नहीं है,  बेशर्मी की सीमा के आगे  भी वह जाने में नहीं वही जाने में नहीं हिचकते। हमारे प्रधानमंत्री तो 14 लाख के सूट के लिए फेमस हो गए थे ।इसका अर्थ यह नहीं कि हम आधुनिक व्यवहार से न जोड़ें, किंतु हम अपने इतिहास से क्या समन्वय कर पा रहे हैं .....,यदि नहीं, तो हम सीखें.... मित्रों का निर्माण करें, पहला मित्र अपनी पत्नी, फिर बच्चे, फिर परिवार, समाज और देशकॉल परिस्थिति इस क्रम से हम भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, शर्त यह है की मित्रता में सुचिता और पवित्रता नैतिकता के साथ होनी चाहिए। हम उनके साथ षडयंत्र न करें उन्हें धोखा ना दे। लेकिन हम कहां पहुंच गए हैं ...
जो दिखने वाला धार्मिक संस्थान का आडंबर है जहां हमारे नेता नतमस्तक होते हैं वहां बाबा राम रहीम, आसाराम और हनीप्रीत निकल आती है....
मध्यप्रदेश में 15 साल भाजपा की चाल, चरित्र और चेहरा की सरकार थी... "हनी ट्रैप" निकल आई ...,यह प्रदूषण, गांधी की सोच से न चलने के कारण हुआ और अभी भी गोडसे का बखान करने वाले गांधी के हत्यारों का सम्मान का प्रयास होता है.... उन्हें महिमामंडित किया जाता है... तो क्या भारत "हनी ट्रैप" का भी बड़ा बाजार बन सकता है....?  क्या हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं...? जरूर मंथन करना चाहिए।
 नकल के लिए गांधीजी का क्या दर्शन था आइए देखें।महात्मा गांधी कहते थे:-

"यूरोपीय सभ्यता बेशक यूरोप के निवासियों के लिए  अनुकूल है; लेकिन यदि हमने उसकी नकल करने  की कोशिश की, तो भारत के लिए उसका अर्थ अपना नाश कर लेना होगा।"
 "इसका मतलब यह नहीं कि उसमें जो कुछ और हम पचा सकें ऐसा हो, उसे हम लें नहीं या पचायें नहीं। इसी तरह उसका यह मतलब भी नहीं है कि उस सभ्यता में जो दोष घुस गये हैं, उन्हें यूरोप के लोगों को दूर नहीं करना पड़ेगा। शारीरिक सुख-सुविधाओं की सतत खोज और उनकी संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि ऐसा ही एक दोष है; और मैं साहसपूर्वक यह घोषणा करता हूँ कि जिन सुख-सुविधाओं के वे गुलाम बनते जा रहे हैं उनके बोझ से यदि उन्हें कुचल नहीं जाना है, तो यूरोपीय लोगों को अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा। संभव है मेरा यह निष्कर्ष गलत हो, लेकिन यह मैं निश्चयपूर्वक जानता हूँ कि भारत के लिए इस सुनहरे मायामृग के पीछे दौड़ने का अर्थ आत्मनाश के सिवा और कुछ न होगा।" (इस श्रंखला का उद्देश्य गांधी के विचारों को वर्तमान संदर्भ में मंथन का है जिसमें पूरे वर्ष उनके विचारों को समय-समय पर संदर्भ में प्रकट किया जाएगा)


1 टिप्पणी:

  1. गांधी जी के 150वीं जयंती पर बहुत ही प्रसांगिक आलेख...गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि है।

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