सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

नीलकंठ "वह शक्ति हमें दे दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं...." --🕊🇮🇳 🌴 त्रिलोकीनाथ 🌴 🇮🇳🕊--


कट पेस्ट -----

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

 "वह शक्ति हमें दे दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं...."

--🕊🇮🇳  🌴 त्रिलोकीनाथ  🌴 🇮🇳🕊---

 नीलकंठ 


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नीलकंठ
आज घर लौटते समय कार की खिड़की से बाहर खेतों की हरियाली का आनंद  था कि अचानक तारों पर बैठा हुआ नीलकंठ दिख गया। कितने वर्षों बाद आज नीलकंठ के दर्शन हुए वो भी अक्टूबर  में ! मन प्रफुल्लित हो गया…
नीलकंठ को हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला और देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गर्मी से जलने लगे। सबकी रक्षा हेतु भोलेनाथ उस भंयकर विष को अपने शंख में भरकर पी गए।  भगवान विष्णु ने  विष को शिवजी के कंठ में ही रोककर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया परंतु विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भगवान राम जो स्वयं विष्णु का अवतार थे, परम शिव भक्त थे। कहा जाता है कि लंका युद्ध के निर्णायक दिन, भगवान राम ने प्रातः नीलकंठ के दर्शन कर युद्ध-भूमि की ओर प्रस्थान किया था और रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की जीत के शाश्वत सत्य को स्थापित किया था। सत्य के उसी विजयोत्सव को दशहरे के रूप में मनाया जाता है। और तभी से दशहरे के दिन सुबह-सुबह नीलकंठ के दर्शन करना शुभ माना जाता है।
मुझे याद है कि बचपन दशहरे के दिन हम सुबह से टकटकी लगाए बैठे रहते थे कि कब हमें नीलकंठ के दर्शन हों और हम गर्व से सबके सामने अपने सौभाग्य की घोषणा कर सकें। आजकल की तरह, उन दिनों नीलकंठ के दर्शन दुर्लभ नहीं थे। खासकर अक्टूबर में प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ नीलकंठ भी बहुधा दिखाई दे जाते थे।
वैसे यहाँ एक बात स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि नीलकंठ का गला नीला नहीं होता है जैसा कि नाम से प्रतीत होता है बल्कि बहुत ही हल्का नीलापन लिए होता है। गहरा नीला रंग इसके सिर, पंखों व पूँछ पर पाया जाता है और बाकी शरीर प्रमुखतः भूरे रंग का होता है। नीलकंठ को इंडियन रोलर या ब्लू जे भी कहते हैं। कई लोग किंगफिशर नामक पक्षी को , जिसकी गर्दन नीली होती है, नीलकंठ समझ बैठते हैं जोकि गलत है।
नीलकंठ कृषकों का मित्र पक्षी होता है। ये खेतों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों, टिड्डों आदि को खाकर अपना पेट भरता है। पर यह बहुत ही दुख की बात है कि कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण यह विलुप्ति की कगार पर है। इसलिए मैंने जब आज नीलकंठ को देखा तो बहुत अच्छा लगा।
कभी-कभी लगता है कि अगर समुद्र मंथन इस युग में हुआ होता तो क्या कोई शिव हलाहल पीता… अगर कोई ऐसा भोला भंडारी मिल भी जाता तो लोग उसकी पूजा करते या फिर इसे एक मूर्खतापूर्ण कृत्य कहकर उसकी आलोचना करते ? क्या कोई विष्णु यूँ विष को शिव के कंठ में रोक देता या फिर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए विष का प्रभाव समाप्त करने खुद को अक्षम दिखाकर अपना पल्ला झाड़ लेता ? ऐसे ही कई प्रश्न आज मन को विचलित कर रहे हैं…
वैसे अगर गहराई से विचार करें तो लगता है कि समुद्र मंथन आज भी हो रहा है, कालकूट विष आज भी अपने दुष्प्रभाव से जीवन हर रहा है बस उसका स्वरूप बदल चुका है… कभी कीटनाशक कभी कर्ज़ तो कभी आरक्षण,दहेज, भ्रूणहत्या, भ्रष्टाचार आदि असंख्य रूपों में में ये हज़ारों जीवन लील चुका है..
पर सबसे ज़्यादा क्षोभ की बात यह है कि कितने ही नीलकंठ आज भी विषपान कर रहे हैं पर आज कोई विष्णु नहीं है इन्हें बचाने के लिए… कहते हैं कि कलयुग में विष्णु पुनः अवतरित होंगे पर क्या तब तक नीलकंठ यूँ ही मरते रहेंगे???

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