पुलिस,अपराध और हम ...
पुलिस का क्या... "चित भी मेरा, पट भी मेरा; अंटा मेरे बाप का ...।. इस प्रकार की कार्यशैली में आम शहरी का फसते जाना दैनिक जीवन हिस्सा का एक सिस्टम बन जाएगा ...,क्या इन सब से बचा जा सकता है....? तो क्यों ना साथ बैठकर, इन पाखंडी-शांति समितियों से हटकर, नागरिक निवास का शहर बनाने के रास्ते मोहल्ले-मोहल्ले बैठक कर सुरक्षा की गारंटी पुलिस-संवाद के जरिए शहर को देना चाहिए....., ताकि शहर के अंदर यह सुनिश्चित हो सके कि अपराधियों को शहर में ऐसी छूट नहीं है..
जंगल ,नदी, पहाड़ वे जाएं और लूटे ....क्योंकि अपनी मंशा किसी की आमदनी को चाहे वह गैरकानूनी हो ... खत्म करने की बिल्कुल नहीं है । इसलिए भी कि हम चाहे भी लें, तो किसी अरविंद-टीनू जोशी को या फिर हालिया सहायक आयुक्त आबकारी खरे को उसकी खरी खरी आमदनी खत्म करने का कोई दावा नहीं कर सकते ।
तो जो, जैसा जंगलराज है हमको उसी में जीने के तरीके सीखने चाहिए।
गांधी जी की डेढ़ 100 जयंती में सबको बधाइयां।
सरेआम सीसीटीवी की नजर में शहरी पर हो रहे हमले......
( त्रिलोकीनाथ )
यदि शहडोल पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने यातायात पुलिस महिला अधिकारी हेलमेट अनिवार्य है इस बिना पर कई लोगों पर चालानी कार्यवाही करती हैं और उसमें अगर ज्यादातर पुलिस कर्मचारी या पुलिस का अपना स्टाफ चालान से जुर्माना भरता है इसका एक संदेश है इससे पुलिस जमा जुर्माना राशि की बढ़ोतरी अब कोई विशेष मतलब नहीं है, शायद सर्वाधिक मतलब इस संदेश से है कि हम हेलमेट-अनिवार्य के लिए, अपने घर से ही; अपने ऑफिस से ही, कचरा साफ करें... लोगों को अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनने के लिए और हेलमेट से होने वाली सुरक्षा के प्रति आत्मबोध कराएं.
इस संदेश को फैलाने में ट्रैफिक चीफ काफी हद तक सफल रहे इसके और भी विकल्प हो सकते हैं जैसे मोटरसाइकिल में अनिवार्य रूप से हेलमेट देने के साथ ही हेलमेट हैंग करने के लिए और उसे सुरक्षित मोटरसाइकिल में लटके रहने के लिए लॉक करने की व्यवस्था मोटरसाइकिल में सुनिश्चित करना चाहिए .ताकि जब भी मोटरसाइकिल में कोई बैठे तो उसे हेलमेट दिख जाए फिर वह न पहने और तब ऐसा कोई जुर्माना जायज भी होगा.... आदि आदि... तरीके से संदेश हो सकता है ।
बहरहाल जब इस संदेश को हम जायज मानते हैं तो शहर में कोई भी घटना यदि घट रही है तो उसके लिए संबंधित पुलिस थाना अधिकारी और उस वक्त और गंभीरता के साथ देखा जाना चाहिए। जब सीसीटीवी लगे हो और उसे कंट्रोल करने वाला कंट्रोल बोर्ड उसे दिशानिर्देश देने की अधिकार हो तब यदि कोई अपराध करके भाग जाता है तो इसका साफ मतलब है कि एक संदेश है .....,यह सब कुछ संबंधित पुलिस क्षेत्राधिकारी की सहमति से अथवा उसके संरक्षण से या फिर उसकी लापरवाही से घटित हो रहा है.... जिसकी जिम्मेवारी भी सुनिश्चित होना चाहिए।
ऐसा नहीं माना जाना चाहिए की अवैध खनिज कारोबार से जुड़े हुए अथवा किसी भी अवैध क्रियान्वित हो रहे गैरकानूनी कारोबार की सूचना पुलिस क्षेत्राधिकारी के पास नहीं है। न सिर्फ घट रही प्रत्येक घटनाओं बल्कि उसके जिम्मेदार अपराधियों से पुलिस के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध होते ही हैं । .....
इसमें कोई शक नहीं है ,चलिए पहली बार घटना घट गई उसे दुर्घटना बस घटित घटना के रूप में देखा जा सकता है, किंतु बार-बार कोई अवैध कानूनी कार्यवाही में संलिप्त व्यक्ति यदि घटनाओं को खुलेआम अंजाम देता है तो इसे पुलिस की अप्रत्यक्ष अवैध कमाई का एक सेल की तरह देखना चाहिए क्योंकि पुलिस ऐसे अपराधियों को प्रतिबंधित करके या अपना खौफ जमा करके उनके अवैध मनोबल को खत्म कर अपने ही किसी अवैध सेल को बंद नहीं करेगी....?
एक उदाहरण देते हैं पिछले पुलिस अधीक्षक सौरभ कुमार अपनी कार्यशैली के चलते आरक्षण विरोधी आंदोलन में अनायासी लाठीचार्ज करवा देते हैं, भगदड़ में कुछ लोगों को चोटे भी लगती हैं जब जांच होती है तो एक तरफ प्रशासन मजिस्ट्रियल इंक्वायरी कर रहा होता है तो दूसरी तरफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शहर में लगे सीसीटीवी के फुटेज को दिखाकर कुमार सौरभ अपनी सफाई देते हैं, उनका दोष नहीं है... आदि आदि.. यानी सीसीटीवी के जरिए बहुत कुछ नियंत्रित हो रहा होता है ...यह अलग बात है की ऐसी सीसीटीवी के फुटेज कितने कट के साथ किसके हित के लिए प्रयोग होता है..... याने अपराध को नियंत्रित करने का सिस्टम का तत्काल लाभ अपराधियों को पकड़ने के लिए यदि नहीं हो रहा है तो यह पुलिस की लापरवाही या फिर अपराध को समर्थन की बात को प्रमाणित करती है....?
आखिर कैसे कोई अपराधी अपराध करके भाग जाता है ....विगत रात्रि ऐसी ही सीसीटीवी फुटेज में किरण टॉकीज के पास शहडोल का उचानी परिवार सिर्फ इस बात के लिए अपराधियों से चाकूबाजी से प्रताड़ित होता है कि उसने घटित हो रहे अपराध में हस्तक्षेप किया.... अगर कहा जाए तो देश में चल रही "मॉब लिंचिंग" की तरह ही इस मामले पर उचानी परिवार के सदस्यों ने नैतिकता का प्रदर्शन करना चाहा तो उसे भी अपराधियों के बढ़े हुए मनोबल के चलते छुरा बाजी से प्रताड़ित होना पड़ा.... और हमेशा के लिए अपराध जगत के नये नायको की नजर में चढ़कर हमेशा का भयभीत जीवन जीने की बाध्यता बन गई ....। यह इसलिए हुआ क्योंकि ज्यादातर चिन्हित अपराधी पुलिस के संरक्षण में गैरकानूनी कार्यों को अंजाम दे रहे थे। छूरा-बाजी उन्हीं गैरकानूनी कार्यो की दुकानदारी में एक छोटा सा नमूना था।
शहडोल में अवैध खनिज कारोबार भारतीय जनता पार्टी के द्वारा जिस प्रकार का उद्योग बन गया है अब वह
इन कबीलाई अपराधियों का पनाहगाह बना हुआ है और गलत नहीं है इस पनाहगाह की ताकत यह है कि किसी पुलिस अधीक्षक का स्थानांतरण 24 घंटे में रुक जाता है.... यही अवैध खनिज उद्योग की ताकत है कि वह किसी पुलिस अधिकारी की हत्या करा देता है.... किंतु इन सब के बावजूद अवैध खनिज कारोबार पुलिस विभाग का अब तक अप्रत्यक्ष आमदनी का सर्वाधिक बड़ा जरिया है..... जिसे संरक्षित न करके पुलिस इस जरिया को खत्मा
नहीं करना चाहती और इसीलिए इस कारोबार में जुड़े सभी चिन्हित अपराधी वे चाहे व्यवहारी में उमरिया जिले में या फिर अनूपपुर जिले में कहीं भी खुलेआम डंके की चोट में अवैध खनिज कारोबार को करते रहते हैं।
यह उनकी ताकत ही है कि कोई भी खनिजअधिकारी, रेंजर अथवा कोई एसडीएम या फिर तहसीलदार यदि रोक नहीं पाता है ...,तो उसे मारपीट करके घेराबंदी करके हत्या करने का प्रयास "माब लिंचिंग" के जरिए किया जाता है।
शहडोल में भी ऐसे उदाहरण आम होते जा रहे हैं .. ऐसे में यदि आम निर्दोष शहरी नागरिक किसी अपराधी को उसके कार्य पर आपत्ति करता है तो अपराध जगत द्वारा आपत्तिकर्ता की हत्या कर देना कोई बड़ी बात नहीं है..., भगवान भरोसे वह बच जाए उसकी किस्मत है......पुलिस का क्या... "चित भी मेरा, पट भी मेरा; अंटा मेरे बाप का ...।. इस प्रकार की कार्यशैली में आम शहरी का फसते जाना दैनिक जीवन हिस्सा का एक सिस्टम बन जाएगा ...,क्या इन सब से बचा जा सकता है....? तो क्यों ना साथ बैठकर, इन पाखंडी-शांति समितियों से हटकर, नागरिक निवास का शहर बनाने के रास्ते मोहल्ले-मोहल्ले बैठक कर सुरक्षा की गारंटी पुलिस-संवाद के जरिए शहर को देना चाहिए....., ताकि शहर के अंदर यह सुनिश्चित हो सके कि अपराधियों को शहर में ऐसी छूट नहीं है..
जंगल ,नदी, पहाड़ वे जाएं और लूटे ....क्योंकि अपनी मंशा किसी की आमदनी को चाहे वह गैरकानूनी हो ... खत्म करने की बिल्कुल नहीं है । इसलिए भी कि हम चाहे भी लें, तो किसी अरविंद-टीनू जोशी को या फिर हालिया सहायक आयुक्त आबकारी खरे को उसकी खरी खरी आमदनी खत्म करने का कोई दावा नहीं कर सकते ।
तो जो, जैसा जंगलराज है हमको उसी में जीने के तरीके सीखने चाहिए।
गांधी जी की डेढ़ 100 जयंती में सबको बधाइयां।
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