
मुखर होती ..
आदिवासी-राजनीति भाग-2
======त्रिलोकीनाथ=========
कमोवेश यही मुखरता शहडोल संसदीय सीट में देखी गई है
जो अक्सर आदिवासी वर्ग के लोगों में शोषण को चुपचाप सह जाने की परंपरा रही। एक और
कांग्रेस पार्टी के कबीलाई राजनीतिज्ञों ने राजनीतिक घराने की हिमाद्री सिंह को
सक्रिय राजनीति से दूर रखने का संकेत दिया और अपनी कृपा दृष्टि नहीं दी जिससे
हिमाद्री सिंह ने अपनी पारिवारिक व समर्थकों के समझ के बाद मुखर राजनीति के तहत जो अच्छा लगा वह कदम उठाया और यह भान
कबीलाई राजनीति में मस्त कांग्रेसियों को शायद ही रहा होगा...? वह तो अभी भी आदिवासियों में
नेतृत्व की क्षमता की संभावनाओं को नहीं देखना चाहते... ? ,




गौरतलब यह भी होगा की भलाई भारत की
राजनीति में महिलाओं को संसदीय प्रणाली में आरक्षण नहीं दिया गया हो यह सोच कहीं
भी विकसित हो कि अभी भी पुरुष प्रधान समाज है किंतु यह आदिवासी नेतृत्व की
खूबसूरती ही है शहडोल में पांचवी अनुसूची क्षेत्र में शहडोल संसदीय क्षेत्र से दो
प्रमुख पार्टियों में सिर्फ महिलाएं ही प्रमुख दावेदार बन कर उतारी गई हैं। इसका
एक संदेश साथ यह भी है कि राजनीतिक खासतौर से कबीलाई राजनीति करने वाले किसी भी दल
के नेता हो, उन्हें यह
भान हो जाना चाहिए , समय बदल
गया है आप ज्यादा देर तक शोषण और दमन की राजनीति को आगे नहीं ले जा सकते ...?
शायद इसके पीछे शहडोल की भौगोलिक स्थिति ज्यादा जिम्मेवार है जिसका पर्यावरण परिवेस उसे
स्वतंत्र करता है कि वह किसी प्रांत विशेष का हिस्सा नहीं है बल्कि वह एक संगम है
।भारतीय राजनीति में एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां अलग-अलग क्षेत्रों के देश की
अलग अलग नागरिकों का निवास है जो प्राकृतिक संसाधनों की समस्त प्रकार की भंडार से
भरा पड़ा है जल थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में वह परिपूर्ण है। यह एक अलग बात है
की अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए अलग-अलग विचारधारा के व्यक्तियों मैं यहां अजीबका
हेतु स्वयं को बसा दिया है ।और यही इसकी नैतिक स्वतंत्रता है कभी यह क्षेत्र
बिंंन्ध्य की राजनीत से नियंत्रित होता रहा किंतु स्वर्गीय अर्जुन सिंह की राजनीति
को खत्म करने के लिए दिग्विजय सिंह ने जो जिस कूटनीति का इस्तेमाल किया उससे
परंपरागत राजनीति को आदिवासी नेतृत्व ने अलविदा कह दिया।
समीक्षा के दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि यदि आपसी
राजनीतिक विश्वास राजनीति में, यदि ट्रस्टीशिप की भावना जीवित नहीं रखेंगे और राजनीति को
ट्रस्ट के रूप में किसी न्यास की तरह नहीं चलाएंगे खुद सिर्फ एक न्यासी बनकर, बजाय इसके कि किसी सामंतवाद की
तरह आदिवासी क्षेत्रों के प्राकृतिक संपदा, भंडार, वैभव को सिर्फ लूटपाट करने के लिए
राजनीति का उपयोग होगा तो शायद बीता हुआ सोच कहलायेगा...?
उम्मीद की जानी चाहिए दोनों ही
दलों में जब आदिवासी नेतृत्व में युवा महिला विचारधारा को अपना प्रत्याशी बनाया है
तो शहडोल जैसे संगम क्षेत्र मैं राजनीत का नकाब पहनकर लूटपाट शोषण और दमन को विदा
करने का समय आ गया है और यह बात शहडोल की राजनीति राजनीति में उभर रहे राजनीतिक
सोच प्रणाली मैं आपसी समन्वय से विकसित हो सकता है। भलाई प्रदेश या देश की
राजनीतिक किसी नूरा कुश्ती में यह सपने बुन रहे हो कि हमेशा आदिवासियों को कठपुतली
बना कर नचाया जाता रहेगा शायद वह वक्त अब बीतता नजर आ रहा है ।
और नए दौर की नई राजनीति में या
यूं कहें कांग्रेस पार्टी से ठुकराई हिमाद्री सिंह भाजपा से तो भारतीय जनता पार्टी से ठुकराई प्रमिला सिंह
कांग्रेस पार्टी से प्रत्याशी बनकर बदलाव की बयार में सवार भारतीय संसद का रास्ता
देख रही हैं और यही शायद पांचवी अनुसूची में शामिल संविधान की मनसा भी रही होगी ।
जीत और हार तो किसी एक की होनी
है किंतु इन दोनों आदिवासी नेतृत्व को भारतीय राजनीति का निजी वर्तमान स्वरूप समझ
आ गया है और यह भी समझ आ गया है शहडोल जैसे संगम वाले भौगोलिक संसदीय क्षेत्र में
आपसी तालमेल से ही शहडोल के शोषण व दमन खासतौर से राजनीतिक नकाब पहनकर लूटपाट कर
रही राजनीति को आंख दिखाना होगा ...? तथा आदिवासी नेतृत्व के
राजनीतिक स्वाभिमान को नागरिक ट्रस्ट को किस प्रकार से बचाए रखना होगा। कम से कम
मजबूरी में लिए गए इन दोनों प्रत्याशियों के चयन से यह सबक सीखने को मिल सकता है।
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