बुधवार, 27 मार्च 2019

"जिंदा मक्खी मैं कैसे लीलू": ज्ञान सिंह /मुखर होती-आदिवासी-राजनीति भाग-2




मुखर होती  ..
 आदिवासी-राजनीति  भाग-2






======त्रिलोकीनाथ=========



कमोवेश यही मुखरता  शहडोल संसदीय सीट में देखी गई है जो अक्सर आदिवासी वर्ग के लोगों में शोषण को चुपचाप सह जाने की परंपरा रही। एक और कांग्रेस पार्टी के कबीलाई राजनीतिज्ञों ने राजनीतिक घराने की हिमाद्री सिंह को सक्रिय राजनीति से दूर रखने का संकेत दिया और अपनी कृपा दृष्टि नहीं दी जिससे हिमाद्री सिंह ने अपनी पारिवारिक  व समर्थकों  के समझ  के बाद मुखर राजनीति के तहत जो अच्छा लगा वह कदम उठाया और यह भान कबीलाई राजनीति में मस्त कांग्रेसियों को शायद ही रहा होगा...? वह तो अभी भी आदिवासियों में नेतृत्व की क्षमता की संभावनाओं को नहीं देखना चाहते... ? ,
यही चीज भारतीय जनता पार्टी में भी देखी गई जो पैराशूट राजनीति पर शहडोल क्षेत्र के बाहर की निवासी प्रमिला सिंह को टिकट देकर  जैसीनगर क्षेत्र में  विधायक बनाया  किंतु शहडोल की राजनीति में मोहताज बना कर रखना चाहते थे और जब दोबारा चुनाव हुआ तो कथित रूप से सभी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के बाद भी धोखाधड़ी करते हुए उन्हें टिकट नहीं दिया, उन्होंने पूरी मुखरता के साथ एक झटके में भाजपा से नाता तोड़ कर कांग्रेस से नाता जोड़ लिया। यह विधानसभा चुनाव की ही बात है।
 और अब कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें शहडोल संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया है जो इस बात का प्रमाण है कि आप भलाई आदिवासी राजनीतिज्ञों  को अनदेखा करना चाहते हैं किंतु  यह लोकतंत्र की ताकत ही है की राजनीतिक नेतृत्व की मूर्ति को वह  संंवार देती है।
 गौरतलब यह भी होगा की भलाई भारत की राजनीति में महिलाओं को संसदीय प्रणाली में आरक्षण नहीं दिया गया हो यह सोच कहीं भी विकसित हो कि अभी भी पुरुष प्रधान समाज है किंतु यह आदिवासी नेतृत्व की खूबसूरती ही है शहडोल में पांचवी अनुसूची क्षेत्र में शहडोल संसदीय क्षेत्र से दो प्रमुख पार्टियों में सिर्फ महिलाएं ही प्रमुख दावेदार बन कर उतारी गई हैं। इसका एक संदेश साथ यह भी है कि राजनीतिक खासतौर से कबीलाई राजनीति करने वाले किसी भी दल के नेता हो, उन्हें यह भान हो जाना चाहिए , समय बदल गया है आप ज्यादा देर तक शोषण और दमन की राजनीति को आगे नहीं ले जा सकते ...?
 शायद इसके पीछे शहडोल की भौगोलिक स्थिति ज्यादा जिम्मेवार है जिसका पर्यावरण परिवेस उसे स्वतंत्र करता है कि वह किसी प्रांत विशेष का हिस्सा नहीं है बल्कि वह एक संगम है ।भारतीय राजनीति में एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां अलग-अलग क्षेत्रों के देश की अलग अलग नागरिकों का निवास है जो प्राकृतिक संसाधनों की समस्त प्रकार की भंडार से भरा पड़ा है जल थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में वह परिपूर्ण है। यह एक अलग बात है की अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए अलग-अलग विचारधारा के व्यक्तियों मैं यहां अजीबका हेतु स्वयं को बसा दिया है ।और यही इसकी नैतिक स्वतंत्रता है कभी यह क्षेत्र बिंंन्ध्य की राजनीत से नियंत्रित होता रहा किंतु स्वर्गीय अर्जुन सिंह की राजनीति को खत्म करने के लिए दिग्विजय सिंह ने जो जिस कूटनीति का इस्तेमाल किया उससे परंपरागत राजनीति को आदिवासी नेतृत्व ने अलविदा कह दिया। 
समीक्षा के दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि यदि आपसी राजनीतिक विश्वास राजनीति में, यदि ट्रस्टीशिप की भावना जीवित नहीं रखेंगे और राजनीति को ट्रस्ट के रूप में किसी न्यास की तरह नहीं चलाएंगे खुद सिर्फ एक न्यासी बनकर, बजाय इसके कि किसी सामंतवाद की तरह आदिवासी क्षेत्रों के प्राकृतिक संपदा, भंडार, वैभव को सिर्फ लूटपाट करने के लिए राजनीति का उपयोग होगा तो शायद  बीता हुआ सोच कहलायेगा...?
 उम्मीद की जानी चाहिए दोनों ही दलों में जब आदिवासी नेतृत्व में युवा महिला विचारधारा को अपना प्रत्याशी बनाया है तो शहडोल जैसे संगम क्षेत्र मैं राजनीत का नकाब पहनकर लूटपाट शोषण और दमन को विदा करने का समय आ गया है और यह बात शहडोल की राजनीति राजनीति में उभर रहे राजनीतिक सोच प्रणाली मैं आपसी समन्वय से विकसित हो सकता है। भलाई प्रदेश या देश की राजनीतिक किसी नूरा कुश्ती में यह सपने बुन रहे हो कि हमेशा आदिवासियों को कठपुतली बना कर नचाया जाता रहेगा शायद वह वक्त अब बीतता नजर आ रहा है ।
और नए दौर की नई राजनीति में या यूं कहें कांग्रेस पार्टी से ठुकराई हिमाद्री सिंह भाजपा से तो भारतीय जनता पार्टी  से ठुकराई प्रमिला सिंह कांग्रेस पार्टी से प्रत्याशी बनकर बदलाव की बयार में सवार भारतीय संसद का रास्ता देख रही हैं और यही शायद पांचवी अनुसूची में शामिल संविधान की मनसा भी रही होगी ।
जीत और हार तो किसी एक की होनी है किंतु इन दोनों आदिवासी नेतृत्व को भारतीय राजनीति का निजी वर्तमान स्वरूप समझ आ गया है और यह भी समझ आ गया है शहडोल जैसे संगम वाले भौगोलिक संसदीय क्षेत्र में आपसी तालमेल से ही शहडोल के शोषण व दमन खासतौर से राजनीतिक नकाब पहनकर लूटपाट कर रही राजनीति को आंख दिखाना होगा ...? तथा आदिवासी नेतृत्व के राजनीतिक स्वाभिमान को नागरिक ट्रस्ट को किस प्रकार से बचाए रखना होगा। कम से कम मजबूरी में लिए गए इन दोनों प्रत्याशियों के चयन से यह सबक सीखने को मिल सकता है।

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 "जिंदा मक्खी मैं कैसे लीलू" :पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह

सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी है ,के अंदाज पर वरिष्ठतम भारतीय जनता पार्टी के नेता व पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह बगावत के अंदाज में आज नजर आए। अपने शीर्ष नेताओं को जमकर कोसा और कहा कि वे सीधे-साधे आदिवासियों को बेच देते हैं। उन्होंने कहा मैंने पार्टी के हर संघर्ष के अवसर पर जब भी उन्होंने कहा, आदेश मानकर कार्य किया ,आज भी मेरे साथ धोखा किए हैं.... उन्होंने कहा "जिंदा मक्खी मैं कैसे लीलू "

मंगलवार, 26 मार्च 2019

हरप्रसाद पांडे का निधन.....



हरप्रसाद पांडे का निधन...... 🙏🙏 

                                                                                                                                                   (त्रिलोकी नाथ गर्ग)

आज एक दुखद खबर आई की मोहन राम मंदिर शहडोल के दानदाता स्व. मोहनराम पांडे के ग्राम असरार ,अमरपाटन जिला सतना में परिवार के वरिष्ठतम प्रतिनिधि हर प्रसाद पांडे का निधन 18 मार्च 2019 को ग्राम असरार में हो गया । हरप्रसाद जी की उम्र करीब 94 साल रही होगी। वैसे तो उनका भरा पूरा परिवार है जो पूर्ण रूप से संपन्न  है किसानी मुख्य पेशा होने से बहुतायत किसान परिवार के प्रतिनिधि के रूप में हैं ।कई लोग शासकीय सर्विस में हैं ।
  हरप्रसाद जी का मेरा संपर्क 1998 के आसपास हुआ शहडोल मोहनराम मंदिर ट्रस्ट मुझे भी प्रस्ताव करके ट्रस्टी बनाया गया ।बता दे इसकी जानकारी रजिस्टार आफ ट्रस्ट सुहागपुर को दी गई ।बाद में पता चला कब शहडोल मैं मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की विवादत के खिलाफ समानांतर ट्रस्ट बनाकर लड़ाई लड़ी गई थी। हालांकि 2011  में जीत भी मिली किंतु इसके साथ यह भी तय हो गया कि हमें शहडोल में नए राम-रहीम और आसाराम से भी एक युद्ध करना है। 
हर प्रसाद पांडे जी के साथ 22-23 साल संपर्क में रहा वे सहज ,सरल स्पष्ट स्वभाव के धनी थे। शहडोल मोहनराम मंदिर के बारे में भी जान गए थे जिन हाथों में यह मंदिर धोखे से चला गया है वह इसे नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे।

बावजूद इसके हमने 2009 में कमिश्नर शहडोल अरुण तिवारी जी के कार्यकाल में एक बैठक की जिसमें हर प्रसाद पांडे जी की सराहनीय भूमिका रही। बैठक में कमिश्नर अरुण तिवारी, कलेक्टर अजीत कुमार एसडीएम एस एन राय जल संसाधन के कार्यपालन यंत्री, हर प्रसाद पांडे जी व मैं स्वयं बैठक में उपस्थित रहा। बैठक मुख्य रूप से मोहन राम तालाब के संरक्षण पर केंद्रित थी और जिसके परिणाम स्वरूप मोहन राम तालाब ही नहीं बल्कि शहडोल के पूरे तालाबों पर संरक्षण का काम हुआ है। मोहन राम तालाब एक मॉडल तालाब था जिस पर दो-तीन बार सफाई हुई ,किंतु कहा जाता है की भ्रष्टाचारी एक कदम आगे चलते हैं...... मोहन राम मंदिर और अन्य तालाब में यही होता रहा।  बहरहाल श्री पांडे हमेशा मोहन राम तालाब की साफ सफाई और संरक्षण ,कहना चाहिए शहडोल के अन्य तालाबों को संरक्षित करने में एक मार्गदर्शक के रूप में याद रखे जाएंगे। अगर वे नहीं होते तो शायद तालाब संरक्षण की यह महत्वपूर्ण बैठक प्रशासन के लिए अनुगामी पहल नहीं हो पाती।
 यह ठीक है कि मोहन राम तालाब ही केंद्र में था किंतु वही एक तालाब 19वीं और 20वीं सदी में शहडोल नकल का रोल मॉडल तालाब है यदि इसे आप ठीक कर पाए तो शहर के तमाम तालाबों को ठीक किया जा सकता है अगर नहीं कर पाए तो यह तालाब संरक्षण में असफलता का बड़ा प्रमाण पत्र भी होगा हमारी संपूर्ण योग्यता तकनीकी ज्ञान और भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का यह एक बड़ा पैमाना भी है यह प्रशासन और शासन को हमेशा याद रखना चाहिए कम से कम शहडोल के मामले में अन्यथा जो हो रहा है वह हम सब लंबे समय से देख ही रहे.......?
 जो हुआ भी एक वाक्यआ यह भी याद आता है न्यायालय जीत के बाद न्यायालय निर्देशों के अनुरूप जिला न्यायालय द्वारा निर्देशित कटनी निवासी भास्कर राव जीके खैरहनी  फाटक बगल स्थित उनकेंं निवास अपने निजी वाहन से गए ताकी जिला न्यायालय द्वारा नियुक्त कार्यकारी न्यासी एम भास्कर राव और हरप्रसाद जी  बैठकर यह निर्णय ले सकें ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया क्या हो ।
किंतु वहां पर देखा और पाया गया की अवैध रूप से पुलिस थाने का उपयोग करके पुरानी लंका चित्रकूट के मठाधीश रोहनी प्रपन्नाचार्य जी लगभग भास्कर राव जी को बंधक बनाकर  के रखे थे ताकि शहडोल मोहनराम मंदिर ट्रस्ट में दवाव बनाकर नए ट्रस्ट का गठन किया जाए। हालात की जानकारी हरप्रसाद जी पांडे व साथ में आए श्याम बाबू जी जयसवाल को दी गई और पांडे जी इससे बड़े नाराज हुए उन्होंने इस मीटिंग को रद्द कर दिया ।भास्कर राव अति वृद्ध होने के कारण कई जगह से कई जगह से हड्डियां टूटने से करीब 2 साल से  अवस्था में पड़े रहे। इसके बाद जो हुआ मैं मंदिर ट्रस्ट शहडोल को लूटने जैसा काम हुआ इसकी शिकायत कलेक्टर व एसपी कटनी को दे दी गई और हम सब वापस आ गए ।
स्व.मोहनराम पांडे के विरासत को संभालने वाले हर प्रसाद पांडे धर्म के नाम पर इस पाखंड पूर्ण आवरण के सख्त खिलाफ थे और 2011 के बाद वे रोहनी प्रपन्नाचार्य और उनके सभी साथियों से सख्त नाराज थे जो एक गिरोह बनाकर शहडोल मोहनराम मंदिर ट्रस्ट जो उनकी पारिवारिक विरासत है मैं अवैध कब्जा से हमेशा नाराज रहे वह इसकी शिकायत व कार्रवाई हेतु जिला प्रशासन शहडोल को लिखते रहे। प्रशासन भी शायद गुलामी के दौर में भारतीय जनता पार्टी शासन काल में गुजर रहा था इसलिए स्वयं को लावारिस पाकर निष्क्रिय रहा जिसका परिणाम शहडोल मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की वर्तमान दुर्दशा है ....?
हालात यह है रघुराज स्कूल के बगल में स्थित मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की अचल संपत्ति और मकानों को तोड़ कर व वृक्षों को काटकर कब्जा करने के उद्देश से हाईकोर्ट शहडोल से 2012 में अपदस्थ किए गए रोहनी प्रपन्नाचार्य के साथी ट्रस्टी गण लव कुश प्रसाद और अन्य ट्रस्टी  जो वर्तमान में शहडोल भारतीय जनता पार्टी के अनेक पदों पर हैं मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी पर कब्जा करने के लिए व लूटने  के लिए वक्त देखकर विधानसभा चुनाव के दौरान पूरी प्रॉपर्टी पर तोड़फोड़ कर कब्जा कर अवैध निर्माण किया ।जिसकी शिकायत होने पर तहसीलदार सुहागपर स्थगन-आदेस तो जारी कर दिया किंतु भारतीय जनता पार्टी के शासन पर मंदिर को लूटने से बचाने में असफल रहे नतीजतन स्थगन लगा रहा और नगर पालिका  के सार्वजनिक हैंडपंप से मोटर लगाकर पूरी प्रॉपर्टी को नष्ट भ्रष्ट करके अवैध डबल स्टोरी मकान खड़ा करने का काम तत्कालीन प्रशासन ने स्थगन की अवमानना की छूट करते हुए सहयोग किया ....? अन्यथा मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी बच सकती है।
 यह तो उदाहरण था इसी प्रकार की तमाम सोना, चांदी वा मंदिर के अंदर कि तमाम प्रबंधन कब्जा करके हाई कोर्ट के निर्देशों के विपरीत कार्यों को होने दिया गया....? जोकि स्वर्गीय मोहन राम पांडे की दान की सुधा प्रॉपर्टी पर निर्मित ट्रस्ट का हिस्सा है। भारतीय जनता पार्टी का धार्मिक मंदिर ,मठों में लूटपाट करने व कराए जाने का इससे बड़ा उदाहरण नजदीक में देखने को मुझे नहीं मिला।
 कमोबेश आज भी वही हालात हैं तहसीलदार सुहागपुर द्वारा जारी स्थगन की खुली अवमानना व 2012 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद निर्देशित गठित स्वतंत्र समिति शहडोल को पूर्ण रूप से प्रबंधन पर प्रभार न दिया जाना धर्म का नकाब पहनने वाले पंडित और पुजारियों व मठाधीश का तथा राजनीतिज्ञों की मिलीभगत का एक माफिया जैसा बड़ा कृत्य शहडोल में होता रहा।
 हर प्रसाद पांडे निश्चित तौर पर अपने वयोवृद्ध उम्र पर बिना कानूनी सहायता के कुछ भी नहीं कर सकते थे ,हाई कोर्ट में व्यस्ततम पेशियों के कारण  भी देरी होती रही। जिला प्रशासन शहडोल लावारिस और असहाय सा के हालात में तत्कालीन शासन का गुलाम रहा और इस प्रकार हर प्रसाद पांडे अपने पूर्वज स्वर्गीय मोहनराम पांडे द्वारा गठित की गई धार्मिक समिति "पांडे मोहनराम मंदिर" को आजाद भारत में लूट खसोत से बचा पाने में असफल रहे और न्याय ,पारदर्शिता की आशा में बूढ़ी आंखें अंततः 18 मार्च 2019 को हताशा और निराशा के माहौल में बंद हो गई....?
 यह हमारी आजाद भारत की दुर्भाग्य जनक कानूनी हालात को भी दर्शाता है कि जो भारतीय जनता पार्टी और आर एस एस हिंदुत्व का ढिंढोरा पीटकर राम मंदिर निर्माण के दावे का ठेका लेना चाहती है वह वास्तव में सत्ता पाने के बाद मध्यप्रदेश के शहडोल में में अपने कार्यकर्ताओं के सहयोग से शहडोल मोहन राम मंदिर को नष्ट भ्रष्ट करने वालों ने का खुला खेल किया और आज भी वह कर रही है नैतिकता और आदर्श की बातें सिर्फ एक ढकोसला का दस्तावेज पर हरप्रसाद पांडे का निधन एक जीवित हस्ताक्षर हमेशा -हमेशा के लिए बना रहेगा ।
क्या आज भी शासन व प्रशासन इन सब के बारे में गंभीरता से सोचने की काबिलियत रखता है ....?क्या वह  धार्मिक कार्यों के लिए दी गई दान सुधा वस्तुओं को सुरक्षित करने में सक्षम है.....?  यह आज हमें सोचने को विवश करता है... यदि लोकतंत्र ऐसा कर पाता है तो यह हर प्रसाद पांडे जी के लिए एक बड़ी श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने अंतिम सांस तक शहडोल मोहन राम मंदिर के सुरक्षा के लिए प्रयास किया....? उनके इस सराहनीय प्रयासों को हम हमेशा प्रेरणा के तौर पर संरक्षित रखेंगे और उनकी लड़ाई को जारी रखने का काम भी करेंगे ताकि जिन उद्देश्यों के लिए धार्मिक केंद्र बने होते हैं वे बचे रहें  और यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी..............⚘⚘⚘⚘⚘

सोमवार, 25 मार्च 2019

List of Candidates won on Shahdol election ; Tribal Politics



मुखर होती, आदिवासी-राजनीति : भाग-1


  ======त्रिलोकीनाथ=========

1957: कमल नारायण सिंह / आनंद चंद्र जोशी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1962: बुद्धू सिंह उटिया, सोशलिस्ट पार्टी
1967: गिरजा कुमारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1971: धन शाह प्रधान, निर्दलीय
1977: दलपत सिंह परस्ते, भारतीय लोक दल
1980: दलबीर सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा)
1984: दलबीर सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1989: दलपत सिंह परस्ते, जनता दल
1991: दलबीर सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1996: ज्ञान सिंह, भारतीय जनता पार्टी
1998: ज्ञान सिंह, भारतीय जनता पार्टी
1999: दलपत सिंह परस्ते, भारतीय जनता पार्टी
2004: दलपत सिंह परस्ते, भारतीय जनता पार्टी
2009: राजेश नंदिनी सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2014: दलपत सिंह परस्ते, भारतीय जनता पार्टी
2016: ज्ञान सिंह, भारतीय जनता पार्टी 

बीसवीं सदी के अंत में शहडोल संविधान की पांचवी नुसूची में शामिल हुआ ।आदिवासी विशेष क्षेत्र के रूप में चिन्हित होने के बाद आदिवासी समाज मुखर हुआ प्रतीत होता है और अब तक जो चुपचाप सब कुछ से करता हुआ राष्ट्रीय मुख्य धारा की तलाश में संभावनाओं को टटोलता रहता था ।
यह पहला अवसर था 2016 में जब मध्य प्रदेश के एकमात्र आदिवासी संभाग शहडोल की शहडोल लोकसभा संसदीय चुनाव में शहडोल के इतिहास का सबसे महंगा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के नेता शिवराज सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया ।ना चाहते हुए भी विधायक ज्ञान सिंह को सांसद बनाया गया। यह अलग बात है कि हाईकोर्ट में सूचना को निरस्त कर दिया ।


इसी चुना में कांग्रेस नेता कमलनाथ के प्रस्ताव पर  शहडोल के सांसद रह चुके पति-पत्नी श्रीदलवीरसिंह तथा श्रीमती राजेश नंदनी सिंह की पुत्री सुश्री हिमाद्री सिंह को चुनाव पर उतारा गया था ।कुछ भी हो आदिवासी संघर्ष कार्यकाल की राजनीति में मध्यप्रदेश में दलवीर सिंह का बड़ा नाम रहा ।।वे केंद्रीय मंत्री भी रहे और अर्जुन सिंह की राजनीति को अनुसरण करने वाले कुशल नेता भी रहे । दुर्भाग्य परिस्थितियों में दलवीर सिंह और उनकी धर्मपत्नी का निधन हो गया किंतु उनकी लोकप्रियता उनकी राजनीतिक मुखरता स्पष्ट होने के कारण शहडोल संसदीय क्षेत्र के लोगों में वे नेता थे ।इसकी कमी लगातार बरकरार रही। 
कहने के लिए शहडोल क्षेत्र विंध्य प्रदेश का हिस्सा रहा किंतु विंध्य की राजनीति सिर्फ  उपयोग करने की रही।   तरह  विन्ध्य का होते हुए भी वर्तमान शहडोल  बिंध्य का नहीं रहा,महाकौशल  का इसलिए नहीं था  क्योंकि चंदिया के आसपास उसकी सीमा समाप्त हो जाती थी, छत्तीसगढ़  का  भाग इसलिए नहीं था  क्योंकि अमरकंटक  में व सीमा बंद हो जाता था।  बावजूद इसके  आदिवासी क्षेत्र होने के कारण तीनों राज्यों के तीनों प्रांतों के  बीच में  विन्ध्य- मेंकल पर्वत की गोद में प्राकृतिक रूप से  हरा-भरा  प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण शहडोल क्षेत्र  एक प्रकार का राजनीतिक संगम है,  जहां  छत्तीसगढ़ी , बुंदेलखंडी  और  बघेलखंडी की राजनीति अपना छाप रखती है।
 शहडोल क्षेत्र का अपराध सिर्फ यह था कि यह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र था, प्राकृतिक संसाधनों का धनाढ्य, वैभवशाली पुरातात्विक परिपूर्णता के कारण पूरे भारत से इस क्षेत्र में लोगों का जमावड़ा होने लगा ।इसके बावजूद भी आदिवासी नेतृत्व की मुखरता का अभाव शहडोल की कमी बन गई। बहरहाल 2016 में कांग्रेसी विरासत का प्रायः सर्वसंपन्न परिवार की सुश्री हिमाद्री सिंह पर भाजपा की नजर बनी हुई थी तब उसने संजय पाठक मंत्री को चौकीदार भी नियुक्त कर दिया था कि वह हिमाद्री सिंह को भाजपा से चुनाव लड़ामें। 
  किंतु जैसा कि आदिवासियों संस्कार-बस प्राथमिकता अपनी विरासत की राजनीति के लिए होता है उन्होंने थोड़ा सा जगह मिलने पर कांग्रेस पार्टी से ही चुनाव लड़ना सही समझा। और शायद यही समझ  हिमाद्री सिंह की गलती थी...?, अपने विरासत की राजनीतिक पूंजी को लगाकर कांग्रेस से चुनाव तो लड़ गई किंतु जैसा कि तब उनके चुनाव में आई हुई पूर्व राज्यपाल श्रीमती उर्मिला सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ चुनाव का टिकट दे दिया है चुनाव जिताने में शायद किसी भी नेता की रुचि नहीं थी। वह सब भगवान भरोसे सत्ता विरोधी हवा की लहर में सवार होकर आदिवासी क्षेत्र को जीतने का सेहरा अपने सिर में लगाने के लिए शहडोल शहर के बाहर एक होटल के अंदर बंद कमरों में एसी का आनंद लेते रहे। स्वयं कमलनाथ जिन्होंने कहा था की हिमाद्री सिंह और शहडोल उनकी जिम्मेदारी है उन्होंने भी जबलपुर के अधिवक्ता सांसद विवेक तंखा के भरोसे इस जीती हुई सीट को जीतने के लिए छोड़ दिया ..?
    नतीजतन जहां एक और सर्व संपन्न साली मुख्यमंत्री शिवराज सिंह साम-दाम-दंड-भेद से सशक्त होकर अपनी इज्जत दांव में लगा कर  लोकसभा उपचुनाव को जिताने के लिए लगने लगे थे, वही कांग्रेस के नेता एयरकंडीशन से बाहर निकालने में परहेज कर रहे थे.. बल्कि कहना ज्यादा उचित होगा बंद कमरों के अंदर किसी चुनावी कोष का इंतजार कर रहे थे.... ताकि उसका प्रबंधन कर सकें। और इस ऊहापोह में अंत अंत में चुनाव प्रत्याशी हिमाद्री सिंह की रिश्तेदार पूर्व गवर्नर उर्मिला सिंह ने किसी तरह अपने निजी कोष से चुनाव को संवारने का भी काम किया ।इन हालातों में जो होना था वह हुआ, जो तय था....? कुछ नाम मात्र के वोटों पर भाजपा के ज्ञान सिंह चुनाव जीत गए। यह कोई डेढ़-2 साल पहले की बात है।
 किंतु कांग्रेस पार्टी ने इस घटना से कुछ भी नहीं सीखा ...? की किस प्रकार से बिखरते हुए आदिवासी-कांग्रेस-परिवार का ट्रस्ट जीता जाए...? बहरहाल चतुर-चालाक भारतीय जनता पार्टी इस भावनात्मक बिखराव पर नजर रखे रही , संयोगवश हिमाद्री सिंह की विवाह भाजपा नेता नरेंद्र मरावी के साथ हो गया। सोने में सुहागा के अंदाज में भाजपा, कांग्रेसी-विचारधारा परिवार के घर में घुस चुकी थी बस थोड़े से  और अविश्वास  की जरूरत थी।
 जो सत्ता में आने के बाद  कांग्रेस  का प्रदेश नेतृत्व अपनी कबीलाई-राजनीति को मजबूत करने में ही जुटा रहा बजाए 15 साल कि भाजपा शासन से कुछ सबक लेने के...? यह भी हो सकता है की तब कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को किसी  नूरा-कुश्ती के तहत कबीलाई राजनीति ने शिवराज सिंह के सम्मान को बचाए रखने के लिए जानबूझकर हराया गया हो...?
 किंतु इन सब के पीछे राजनेता यह भूल गए की करीब दो दशक पूर्व पांचवी अनुसूची में शामिल और सात दशक से स्वतंत्र भारत में रहने के बाद आदिवासी समाज राष्ट्रीय मुख्य धारा में भी मुखर हो रहा है, बल्कि हो गया है । जिसको सिद्ध किया शहडोल के ही प्रभारी मंत्री डिंडोरी निवासी ओमकार सिंह मरकाम ने। जहां उन्होंने मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल की कार्यप्रणाली जो डिंडोरी के दौरे पर देखी व पाई तो अपनी आसंतुष्टि जाहिर करने के लिए अंततः अपने समर्थकों के साथ कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद सर्किट हाउस डिंडोरी में गवर्नर के खिलाफ नारेबाजी करवाई और जब कलेक्टर द्वारा इस बात पर आपत्ति प्रकट की गई तो उन्होंने नारेबाजी को संवैधानिक अधिकार भी बताया। साथ ही स्वयं को आदिवासी बताते हुए बड़ी विनम्रता से अज्ञानी कहकर कानून का ज्ञान समझाने की बात भी कही..? जो नई पीढ़ी के आदिवासी समाज कि मुखरता प्रमाण भी है। 




   

सोमवार, 18 मार्च 2019

"चौकीदार-कुरान"-भाग 2 
=========त्रिलोकीनाथ=========

म अक्सर लिखते थे राजनीति को लेकर ,कि वह शतरंज की बिसात पर चलती है । क्योंकि हमेशा राजनीतिक या राजे महाराजे शतरंज के शौकीन होते थे। महाभारत काल में यह बात आई कि उस समय राजनीत में चौपड़ का जुआ हुआ था ,जिसमें अंततः द्रौपदी के नाम पर एक महिला का दांव लगा था। नतीजा सबके सामने है, धर्म और अधर्म का महाभारत हुआ और धर्म विजय हुआ।
    ऐसे ही कुछ हालात भारत की राजनीति में अब दिख रहा है जिसमें जुए की चाल की तरह, शतरंज की चाल की तरह नहीं ...,जुए की चाल की तरह है नहले पर दहला फेंकते हुए अक्सर नरेंद्र मोदी अपने पत्ते खोलते रहे हैं । इसी दौर पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह "देश के चौकीदार हैं" ,प्रथम सेवक हैं तो राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि "चौकीदार चोर है" क्योंकि उसने उद्योगपति अनिल अंबानी को रफाल डील में नाजायज लाभ पहुंचाया । नरेंद्र मोदी ने  मौन व्रत साधे रहे,  हालांकि मोनी बाबा के नाम से  पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेस के ही डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रचारित रहे  बावजूद इसके मौन व्रत  नरेंद्र मोदी ने साधा  और जब चुनाव नजदीक आया  तो उन्होंने अपना  मुंह खोला और "चौकीदार  चोर है" के जवाब में  उन्होंने अपना पत्ता फेंका  और एक कैंपेन चालू किया जिसका नाम था "मैं भी चौकीदार"।
 उन्होंने शायद सोचा रहा होगा इससे बात बनेगी  किंतु  उन्हें नहीं मालूम  अपने भाई को इस प्रकार पराजित  नहीं देखने वाली प्रियंका गांधी  प्रयागराज से  जब  गंगा  का आशीर्वाद लेकर  अपनी वोट यात्रा प्रारंभ की,  एक बड़ा बयान दिया  तथा  ताश के पत्ते की तरह फिर नहले पर दहला फेंका  और कहा  कि "चौकीदार  तो अमीरों के होते हैं",  गरीब किसान  अपने खेतों की चौकीदारी खुद करता है  । 
इस तरह  प्रधानमंत्री पर  निशाना साध राजनीति की  जुए का  पत्ता फेंकते हुए  जवाब दिया  कि वह कुछ चुनिंदा उद्योगपति  अमीरों के  चौकीदार हैं .....? ,गरीबों को चौकीदारों की जरूरत नहीं पड़ती । स्वाभाविक है यह देश  किसानों और बहुतायत गरीब परिवारों का देश है  जहां चौकीदार की जरूरत नहीं है।  ऐसे में अगर चौकीदारी  के रिक्त पद पर भर्ती भी की जाए  तो भी  मैं भी चौकीदार की योग्यता रखने वाले  भाजपा कार्यकर्ता के लिए रिक्त पद ही नहीं है ....? तो फिर उनकी नियुक्ति क्यों होगी..?
  यह प्रश्न  लोकसभा के आम चुनाव में अभी कितना अहम होगा यह कहना जल्दबाजी होगी  की जनता  अपने नए चौकीदारों को  जो योग्यता का प्रमाण पत्र लेकर  मतदाता के पास पहुंच रहा है कि "मैं भी चौकीदार" , उन्हें नियुक्ति देती है या नहीं...? क्योंकि वह  स्वयं देखेगी कि रोजगार का वादा   5 साल में 10 करोड़  रोजगार के अवसर पैदा करने  का काम  क्यों नहीं हुआ...? या नहीं।  और ऐसी स्थिति में आज स्वयं "मैं भी चौकीदार"  की योग्यता का प्रमाण पत्र लेकर  अगर आप मतदाता के द्वार पर पहुंचते हैं तो वह आप को रोजगार क्यों देगा.....  आदि आदि।


    इस प्रकार भारत की राजनीति में  यह मनोरंजक होगा कि अगर राजनीति और संसदीय प्रणाली  जुआ घर की तरह  निर्वाचन की प्रक्रिया  को बदलने का प्रयास करती है वास्तविक मुद्दों से किनारा काटती है  तथा ताश के पत्तों में  निर्वाचन के अवसर देखती है तो क्या मतदाता  ऐसे  वातावरण को भारतीय राजनीति में जगह भी देता है अथवा नहीं...?  क्या वह इसे  कि "चौकीदार चोर है " अथवा "मैं भी चौकीदार " या फिर   "चौकीदार अमीरों के होते हैं"  की जरूरत होती है  आदि आदि  निर्वाचन का मुद्दा बन पाएगा....?
     फिलहाल  "चौकीदार-कुरान,भाग 2  में  यहीं पर समापन करते हैं।  उम्मीद करते हैं  चौकीदार पुनह  कोई नया अध्याय लिखने का अवसर देंगे,  क्योंकि कहने सुनने और देखने के लायक  क्या है यह स्वयं मतदाता या मत-मालिक तय करेगा ; सिर्फ चौकीदार नहीं ........?

शनिवार, 16 मार्च 2019

Yeh duniya nahin jagir kisi ki Chowkidar




चौकीदार....

यह दुनिया नहीं जागीर किसी की.., राजा हो या रंक यहां सब है चौकीदार ..,
कुछ तो आकर चले गए, कुछ जाने को तैयार ; 
खबरदार ..।

------त्रिलोकीनाथ------------------
    जब यह फिल्म "चौकीदार"  शंकर टॉकीज, शहडोल में लगी थी। पोस्टर ओम प्रकाश और एक कुत्ता जो मुंह में लालटेन दवाए था। हम लोगों ने देखा तो फिल्म देखने के लिए लालायित हो गए। और किसी भी प्रकार से, उस समय किसी प्रकार का मतलब छुप-कर ,लुक कर फिल्में देखना भी हुआ करता थ, इस फिल्म को देखा। ओम प्रकाश, ओम प्रकाश थे...,अदाकारी मे वे अमिताभ बच्चन के चाचा लगते हैं.., अमिताभ बच्चन ने भी स्वीकारा है। जो उन्हें बहुत रेस्पेक्ट करते थे ।
   बहरहाल यह फिल्म थी, तब नैतिकता का जमाना था, जमाना में बदलाव आया, हम भी बड़े हो गए ।बड़े होते-होते एक रेडियो स्टेशन पर हुई चर्चा में, बच्चों ने जो माहौल बन गया था ,भारतीय जनता पार्टी ने ही शायद माहौल बनाया था। इसलिए शनिवार को  बच्चों की सभा में यह गीत के रूप में चल पड़ा की "गली-गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है..।   शायद सबसे पहली बार किसी प्रधानमंत्री को बीजेपी ने चोर कहा था और वह बच्चों के लिए गाना बन चल पड़ा था।   संबंधित अकाशवानी के खिलाफ कार्यवाही भी हुई। बात शायद बोफोर्स तोप के मामले की थी... जिसमें कुछ भ्रष्टाचार हुआ था ।
   समय में बदलाव आया और राजीव गांधी के बच्चे राहुल गांधी रफाल हवाई जहाजों की आपूर्ति में सबसे पहले कहा कि "चौकीदार चोर है...", वे  भाजपा केंं नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कस रहे थे, जिन्होंने स्वयं को देश का चौकीदार बताया था ।और यह बात उन्होंने तब कहा था जब  हाइटेक बीजेपी का सिस्टम रिलीज कर दिया था कि राहुल गांधी पप्पू है। याने राजनीति में जागरूक नहीं है । 
और अब इन्हीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को और उनकी हाईटेक बीजेपी को स्वीकार करना पड़ा कि "पप्पू पास हो चुके हैं।, वे जो स्लोगन दे रहे हैं वह रोल मॉडल हो सकता है और इसलिए आज नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा ने स्लोगन को थोड़ा सा हेरफेर कर कहा "मैं भी चौकीदार"  पीएम मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो जारी कर 'मैं भी चौकीदार' (Main Bhi Chowkidar) से चुनावी मुहिम की शुरुआत की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो के साथ अपने ट्वीट में कहा, ‘आपका यह चौकीदार राष्ट्र की सेवा में मजबूती से खड़ा है, लेकिन मैं अकेला नहीं हूं'. उन्होंने कहा कि हर कोई जो भ्रष्टाचार, गंदगी, सामाजिक बुराइयों से लड़ा रहा है, वह एक चौकीदार है. मोदी ने कहा कि हर कोई जो भारत की प्रगति के लिये कठिन परिश्रम कर रहा है, वह एक चौकीदार है. .. । 
  तो  साहब तय हो गया है, कि "पप्पू पास हो गए हैं "और पप्पू ही भाजपा और नरेंद्र मोदी के स्लोगन तय कर रहे हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी की भाजपा का यह अपना मार्केटिंग-स्टाइल है कि वह सामने वाले की बात को पकड़ कर ताश के पत्ते की तरह "नहले पर दहला मारने" का प्रयास करते हैं और इस प्रकार उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के "चौकीदार चोर है" के स्लोगन को "मैं भी चौकीदार "के रूप में दहला मारने का प्रयास किया है।
    किंतु राजनीति की इस जुआगिरी में वास्तविक मुद्दे खत्म करने का प्रयास है। उन्हें भटका कर "राजनीतिक सेवा है" देश की संसदीय प्रणाली को जुआघर बनाने का काम हो रहा है ।दरअसल मुद्दे, जो चुनाव के वक्त उठाए जाते हैं नैतिकता के साथ उनका पालन हो, शिष्टता और सभ्यता के साथ मधुर भाषा के रूप में उसकी प्रस्तुति की जाए, वर्तमान राजनीतिज्ञ इन मर्यादाओं को भूल रहे हैं। और इसलिए हड़बड़ी में जैसे चुनाव एक खजाना हो और उसके लूटने के लिए कुछ भी करने के लिए कुछ इस रूप में की "मोदी है तो मुमकिन है" कि अंदाज पर चुनाव लड़ा जा रहा है..?
   बेहतर होता राजनेता स्वस्थ राजनीति को प्रोत्साहित करते हैं। जो समय की मांग भी है,
 आशा पर आकाश टिका है, कि स्वांस-तंतु कब टूटे.... के अंदाज पर देश का मतदाता देश की आजादी में अपने  मत के अधिकार के बदले स्वच्छ सरकार चाहता है और कुछ नहीं..? तो चलिए हम आपको उस फिल्म "चौकीदार" का प्रसिद्ध गाना सुनाते चलते हैं.., फिलहाल तो आप इसी से काम चलाएं।








गुरुवार, 14 मार्च 2019

"देशभक्ति -जनसेवा" दरकार एक पत्रकार-वार्ता की... : त्रिलोकी नाथ


                     "देशभक्ति -जनसेवा"  

             कार ,एक पत्रकार-वार्ताकी.......


एक अरसा हो गया दिल और दिमाग दोनों ही तरस गए कि कलेक्टर और एसपी एक साथ बैठकर पत्रकार वार्ता करें ,संयुक्त रूप से पत्रकार वार्ता में खुली बहस भी हो सके। पूर्व में कभी यह दो महान शख्सियत जिले की अक्सर साथ- साथ होकर पत्रकार वार्ता करती थी, शायद पत्रकारों को भी इस बात की जरूरत थी और एसपी और कलेक्टर को भी।
   अब समय बीत गया है पत्रकारिता के साथ मीडिया, मल्टी-मीडिया, पोर्टल -चैनल ,इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिस्ट आदि -आदि स्वरूप में पत्रकारिता ने स्वयं जाकर अफसरों की सुविधा के हिसाब से संवाद बना लेते हैं। इससे दोनों ही पक्षों को सुविधा रहती है...। नतीजतन पत्रकारिता के लिए सामूहिक संवाद 
------त्रिलोकीनाथ------------------
,पत्रकार-वार्ता के हालात तभी पैदा होते हैं जब कभी खासतौर से पुलिस विभाग में ,जब कभी कोई पुलिस के अनुसार बड़ा क्राइम हो गया होता है ...? जरूरी नहीं है पत्रकारिता के हिसाब से वह बड़ा क्राइम हो। किंतु सुविधा का संतुलन पुलिस की पत्रकारिता को कवर करती है ।
बहरहाल शहडोल आदिवासी संभाग का मुख्यालय भी है और जिला मुख्यालय भी, इसलिए खासतौर से चुनाव के वक्त पुलिस विभाग को या पुलिस के अफसरों को पत्रकार वार्ता करनी ही चाहिए अगर लोकतंत्र में ऐसी पत्रकार वार्ताएं कानून व्यवस्था के मद्देनजर नहीं की जाती हैं ,लोकहित की पूर्ति गुलामी की व्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है और यह गुलामी कम से कम पुलिसिया आंकड़ों में प्रदर्शित ही होते हैं....।    जोभौतिक रूप से गैर कानूनी आदतन या नियमित रूप से होने वाले अपराधों को ही कानून और व्यवस्था बना देती है, जिससे; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की भाषा में "काला धन" का जमावड़ा होता है और यह प्रधानमंत्री जी की सोच के हिसाब से उचित नहीं है । यह अलग बात है की पूरी की पूरी व्यवस्था ही इस काला -धन या ब्लैक-मनी से ही कंट्रोल हो रही है। दुर्भाग्य से कानून और व्यवस्था भी कहीं ना कहीं इस ब्लैक मनी से नियंत्रित होती दिख रही है।
 शहडोल मुख्यालय ,हो सकता है आदिवासी क्षेत्र हो, हो सकता है महाकौशल विंध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का किसी का हिस्सा ना हो , बल्कि इनका संगम हो और यहां पर भारत के समस्त प्रकार की विविधता पूर्ण जातियां व जनजातियां पाई जाती हों, इसलिए ब्लैक-मनी कंट्रोल -माइंड का मॉडल शहडोल में फल -फूल रहा है।
 बावजूद इसके यह बड़ी कड़वी सच्चाई है कि हम सब स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं और यहां संविधान के अनुरूप कार्य करने की व्यवस्था की गई है इसलिए भी अगर जिला प्रशासन गाहे-बगाहे नियमित रूप से पत्रकार वार्ता, कम से कम चुनाव के वक्त तो करते ही हैं तो पुलिस को भी अपना प्रदर्शन पत्रकारों के साथ दिखाना चाहिए कि किस प्रकार से वह जिले में अथवा संभाग में कानून व्यवस्था नियंत्रित करने में सफल भी है अथवा प्रयास कर रही है...।
   
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श्री कुमार सौरभ 
 यह बात यूं ही नहीं कही जा रही है अगर हम शहडोल के ही पुलिस विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते 1 हफ्ते में बड़े स्पष्ट रूप से यह बात उभरकर आई है कि नियमित रूप से आबकारी विभाग याने शराब से संबंधित प्रकरण 42 प्रकरण दर्ज किए गए हैं, जो अन्य अपराधों के मुकाबले करीब करीब दुगने हैं ।अन्य अपराध 25 हैं तथा पुलिस ने जिन्हें गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा है वह 12 ही हैं। तो मान के चला जाए कि सबसे ज्यादा अपराधिक प्रकरण अवैध शराब बिक्री के ही हैं। किंतु संभाग का हर आदमी जानता है की जितने शराब के अवैध व्यापार के प्रकार पैदा हो सकते हैं उससे ज्यादा और दोगुना बल्कि कई गुना ज्यादा अवैध खनिज परिवहन के मामले नियमित रूप से बल्कि 24 घंटा चलता रहता है और वह चलने वाली एक प्रक्रिया है। जब सरकार बदली या कांग्रेस गवर्नमेंट आई तो दिखाने के लिए ही सही खनिज अधिकारी शहडोल ने प्रशासन के साथ सिर्फ रीवा रोड मार्ग पर एक बड़ी कार्यवाही की, जिसमें एक रात में ही 50 से ज्यादा हाईवे डंपर्स अलग-अलग स्थानों में खड़े कर दिए गए ...? यह अलग बात है  कि ऐसे पकड़े गए  अवैध खनिज के मामलों में  क्या कुछ राजसात भी हुए  अथवा  वे दोबारा पकड़े गए तो उन पर क्या कार्यवाही हुई  आदि आदि ..?जबकि बीते 1 हफ्ते में सिर्फ दो ट्राली रेता जिसमें कोई एक सुखलाल बैगा व दूसरा रसीद आदि अपराधी बनाए गए, बिना नंबर के वाहन थे।
    किंतु नंबर एक जैसे दिखने वाले दिन रात अलग अलग नदियों और खदानों में हो रहे अवैध रेत परिवहन , जी हां ,सिर्फ रेत परिवहन, पत्थर-कोयला-लकड़ी-लोहा आदि के अवैध परिवहन की बात नहीं कर रहा हूं.. सिर्फ रेत परिवहन भारी संख्या में जो कम से कम 100 से ऊपर ही है प्रतिदिन परिवहन कार्य हो रहा है। और जिला पुलिस प्रशासन खनिज के अवैध परिवहन पर मूक बधिर रहे क्योंकि उसका मानना है यह जिम्मेदारी खनिज विभाग की है...?
  दो महिला कर्मचारियों, साहित्यिक भाषा में बोले तो अबलाओ और नाम मात्र के पुरुष कर्मचारी के भरोसे सैकड़ों की संख्या में अवैध परिवहन सिर्फ इसलिए हो पा रहा है क्योंकि वे असहाय हैं ..और उन्होंने अपनी आ सहायता के चलते ही अवैध-खनिज-परिवहन के कारोबार को "सुविधा के संतुलन" के हिसाब से स्वयं को ढाल लिया है क्योंकि उन्हें जीने का भी अधिकार है, क्योंकि वे जानते हैं कि पुलिस अवैध शराब को तो पकड़ सकता है किंतु खनिज विभाग के अवैध परिवहन को पकड़ने की क्षमता शायद उसेम इसलिए भी नहीं है ,   क्योंकि रे कार्टून में बोतल मेंं जिंद तरह बंद नहीं हैं बल्कि या  16 , 20 चकिया हैवीवाहन, पोकलेन आदि में होने वाले कारोबार हैं। जिनका सिर्फ "सुविधा के संतुलन" के हिसाब से व्यवस्थापन करना होता है और इसलिए भी पुलिस विभाग पत्रकार वार्ता से दूरी बनाए रखता है ...? वह भी चाहता है कि पत्रकार जगत के अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग लोगों से मिले और "सुविधा के संतुलन" में शामिल हो जाएं । 
इसलिए पत्रकार वार्ता जिला पुलिस की चाहत नहीं  होती दिख रही ..?  
किंतु लोकतंत्र में ऐसा नहीं चलता  ,यदि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए "देश-भक्ति जन-सेवा" की निष्ठा नाममात्र की भी स्वयं में जीवित होने का ख्याल पुलिस विभाग को हो तो उसे सामूहिक पत्रकार वार्ता कम से कम लोकतंत्र के चुनाव के वक्त करना ही चाहिए । वैसे तो उन्हें ठीक उसी प्रकार से करना चाहिए जैसे जिला प्रशासन अपने कर्तव्य का निर्वहन करता है। हो सके तो जिला प्रशासन के साथ ही जिला पुलिस प्रमुख को पत्रकारों के साथ बैठना चाहिए। और हर शंकाओं का या उठ रहे लोकप्रतिनिधी प्रश्नों का चाहे वे अनपढ़ ,आदिवासी क्षेत्र के  स्तरीय प्रश्न ही क्यों ना हो ,उन्हें समाधान करके एक सकारात्मक बड़े प्रश्न की खोज भी करनी चाहिए। हो सकता है इसमें कई बड़े अपराधों पर स्वस्थ बहस हो सके ...?और घर और परिवारों में कानून और व्यवस्था की सुकून की गारंटी लोगों को मिल सके ...
अन्यथा "दुल्हा बिकता है, बोलो खरीदोगे" के अंदाज में थाने और चौकी चल ही रहे हैं ....? क्या इसमें सुधार की संभावनाओं को नहीं तलाशना चाहिए.....?
   किंतु यह तब सुनिश्चित किया जा सकता है जब पवित्र मंंसा, लोकतंत्र के प्रति समर्पित हो ...
अन्यथा "चलती का नाम गाड़ी" होता ही है और लोकतंत्र की गाड़ी चल भी रही है.... पुलिस विभाग के खासतौर से "सुविधा के संतुलन" की भाषा में समझें तो शानदार.... प्रधानमंत्री जी के सपनों की "बुलेट-एक्सप्रेस" की तरह.........
 आशा की जानी चाहिए हम सब लोकतंत्र के प्रति जवाबदेही; दिखने-वाले-सच के साथ और आंशिक रूप से होने-वाले-सच के साथ भी अपने आजीविका, काम के प्रति
 "देशभक्ति -जनसेवा के नारा को बुलंद कर सकें ...?

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...