शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

कलेक्टर ने तय किया रेत का दर

 गुड न्यूज़

कलेक्टर ने तय किया रेत का दर 

1हजार प्रति ट्राली


कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य ने बताया कि “प्रधानमंत्री आवास योजना” के हितग्राहियों को रेत का दाम ज्यादा होने के कारण रेत खरीदने में कठिनाई हो रही थी, जिसको दृष्टिगत रखते हुए 1 हजार रुपए प्रति ट्रॉली के दर से नियंत्रित दर पर रेत प्राप्त करने की व्यवस्था की है।


बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

पत्रकारिता की विश्वसनीयता में एक कदम और

 

विजयआश्रम सोशल मीडिया नियामक संस्था एससीडीएन से जुड़ा

सोशल मीडिया पत्रकारिता के दुनिया में विश्वसनीयता स्वच्छता और पवित्रता समाचार जगत में समर्पण का भाव तथा लोकहित में कर्तव्य निष्ठा के दिखाने वाले सत्य के प्रति कटिबद्ध होने की प्रतिबद्धता हेतु विजयआश्रम स्वनियामक बोर्ड एससीडीएन की सदस्यता प्राप्त की है














मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

इति वोटतंत्र part-1

 इति वोटतंत्र part-1

खान का पुत्र खान, 

गंजहो का शिकार....?


(त्रिलोकीनाथ)

माइ नेम इज़ ख़ान वर्ष 2010 में बनी एक हिन्दी फ़िल्म है। फिल्म के मुख्य कलाकार शाहरुख खान और काजोल देवगन हैं। धर्मा प्रोडक्शन और


रेड चिलीस एंटरटेनमेंट ने 100 करोड़ के बजट में जिसके कारण ये 2006 में बालीवुड की सबसे महँगी फिल्म थी |

माइ नेम इज़ खान अंतर्राष्ट्रीय रूप से 12 फरबरी को रिलीज़ हुई |
इसकी रिलीज़ पर इस फिल्म ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए | ये फिल्म उस समय की सबसे कमाऊ  फिल्म का जन्म कथित तौर पर अमेरिका में शाहरुख खान के अपमान से जुड़ा है जहां उनकी चेकिंग हो गई थी।

 अब 11 वर्ष बाद  शाहरुख खान का पुत्र आर्यन खान , क्या खान होने की कीमत चुका रहा है ...?यह ड्रामा मुंबई की मायानगरी में उनकी गोदी-मीडिया के लिए टाइमपास चनेभुने के रूप में इंडियन टेलीविजन न्यूज़ चैनल पर भारत का मनोरंजन कर अपनी टीआरपी और धंधा कर लाभ कमा रहा है। क्योंकि भारत में कुछ उपचुनाव तो कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।  और चुनाव के धंधे में हिंदू-मुस्लिम की वोट बैंक पर यह कितना असर डालता है यह तो चुनाव के बाद दिखेगा।

ड्रग्स के कारोबार में बड़े-बड़े शहरों में छोटी-मोटी बातें होती रहती है बड़े-बड़े राजनेताओं अफसरों के बीच में करोड़ों के भ्रष्टाचार की चर्चा के केंद्र  का ड्रामा का मुख्य किरदार  "प्रिय गांजा" जिसे ऊंचे लोग के ऊंची पसंद की भाषा में "ड्रग्स" भी कहा जाता है। किसी यज्ञ में हवन करते वक्त जो धुआं उठता है उसमें तमाम प्रकार की आकृतियां बनती और बिगड़ती रहती हैं जिसे देवता बनाकर लोग तुष्टि का धंधा भी करते हैं इसका वास्तविक धरातल से बहुत ज्यादा महत्व नहीं होता कुछ इसी तरह भारत की राजनीति हाल की भ्रष्ट तंत्र का गौरवशाली विरासत के रूप में स्थापित है और एक अज्ञात देवता की तरह हमारे पूरे छत्तीसगढ़  उड़ीसा मध्यप्रदेश उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में विशेष कारीडोर  में कई भ्रष्ट लोकतंत्र के लोगों प्रिय गांजादेवता हर प्रकार के उच्च शिक्षित अशिक्षित गैर शिक्षित तथा अनपढ़ गवार परिवार को  पालता रहता है । जैसे इन दिनों मुंबई में चर्चित होकर भारत की राजनीति का हीरो कम खलनायक बना हुआ है । यदा-कदा उस पर कार्यवाही भी हो जाती है। क्योंकि इमानदार दिखने वाली व्यवस्था उसे प्रमाणित करना होता है और वह पकड़ जाता है। तो यह एक प्रकार से भ्रष्ट तंत्र का उतना ही लाभकारी "प्रिय गांजा" है जितना कि इमानदार देखने वाली व्यवस्था को रिकॉर्ड बनाने का "प्रिय गांजा" है। ऐसा हमारे शहडोल क्षेत्र में पुलिस विभाग का समाचार हेडिंग भी बन जाता है हाल में जब शहडोल पुलिस ने गांजा का बड़ा खेप पकड़ मीडिया में चर्चा का कारण बना तो एक पूर्व पुलिस अधीक्षक को उस पर एतराज था क्योंकि उससे भी बड़ा लोगों ने करोड़ों का खेप पकड़ाय जा चुका था ऐसा बताया गया तो ऐसा माने शहडोल में एक बड़ा गोदाम न्यायपालिका को गांजा के बरामद स्टाक के रूप में बनाना चाहिए क्योंकि गांजा तस्करों के परिवहन होते गांजा कारोबार में इन बरामद गांजा स्टॉक का भंडार बढ़ता जा रहा है।

 दुनिया के ढाई प्रतिशत लोग भारत में नशा-खोर है भारत में जिन संस्थाओं पर ड्रग्स नियंत्रण की जड़ों पर वार करने की जिम्मेवारी है उसमें एनसीबी।       


भी महत्वपूर्ण भूमिका रखती स्वापक नियंत्रण ब्युरो या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), ड्रग तस्करी से लड़ने और अवैध पदार्थों के दुरुपयोग के लिए भारत की नोडल ड्रग कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसी है। एनसीबी के महानिदेशक भारतीय पुलिस

सेवा (आईपीएस) या भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के एक अधिकारी होते हैं।

 इन दिनो एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेडे तो फिल्मी स्टाइल में गोदी मीडिया के हीरो है तो खलनायक के रूप में महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक हैं और लगे हाथ वहां की गैर भाजपा सरकार भी है। पिछले एक पखवाड़े से लगातार टीवी के परदे पर इस फिल्म में नया-नया रोमांच आ रहा है। किंतु हम लोगों के लिए उबाऊ है।

 श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध उपन्यास रागदरबारी कि केंद्र में एक गांव शिवपाल गंज का जिक्र आता है जहां से पूरे किरदार अपना प्रकाश फैलाते हैं शिवपाल गंज के रहने वालों को प्यार से गंजहा भी कहा जाता था। उसी तरह इन दिनों भारत में समाचार जगत में चल रही इस फिल्म का महत्वपूर्ण किरदार "गांजा भाईसाहब" का जलवा हमारे यहां बरकरार है। जब "हम होने" की बात करते हैं तो हमारे साथ यानी मध्य प्रदेश के साथ हम से टूटा छत्तीसगढ़ भी होता है जहां गांजा का कारोबार अपने रिकॉर्ड तोड़ता रहता है। और रिकॉर्ड तोड़ने की गति इतनी तेज होती है कि वह लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा की अपने पिता के धमकी  के अनुसार किसानों को सबक सिखाने के लिए आंदोलन में चल रहे किसानों को कायरों की तरह पीछे से कुचल कर मार डालता है। ऐसा टीवी वालों का कहना है। पुत्र मिश्रा जी जेल के अंदर हैं पिता मिश्रा जी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं। सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। अब यह संयोग ही है कि गांजा के तस्कर इस चर्चित किसानों की हत्या के मामले की राजनीतिक नाटक नौटंकी में जशपुर नगर में एक धार्मिक स्थल यात्रा में ठीक उसी स्टाइल पर गांजा पार्टी तेजी से गाड़ी चलाते हुए पीछे से लोगों को कुचलती हुई निकल जाती है



यह वीडियो लखीमपुर खीरी में कुछ चलते हुए किसानों की घटना से ज्यादा खतरनाक दिखती है इससे गृह राज्य मंत्री के बेटे का विवाद थोड़ा सा डाइवर्ट हो जाता है। किंतु इस खतरनाक विचलित कर देने वाले वीडियो के बाद हम लोगों की पुलिस यानी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की पुलिस मिल बैठकर गांजा के तस्करों को पकड़ने की कोई जड़ में मट्ठा डालने के कोई काम करता नहीं दिखाई देता। मामला जुलूस में मारे गए लोगों की मौत जा में हो हल्ला हो कर चुप हो जाता। किंतु आर्यन खान के मामला टीवी न्यूज़ चैनल में लगातार छाया रहता क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह के अधीन काम करने वाली एनसीबी की निष्ठा भारत सरकार की कर्तव्य निष्ठा ज्यादा दिखाई देती हमारे आदिवासी क्षेत्र तो राग दरबारी के शिवपाल गंज के गंजहों की बस्ती जो ठहरी।                   (शेष भाग 2 में)



सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

25 नवम्बर तक दस्तावेज दें अन्यथा वाहन होंगे राजसात

मामला अवैध रेत में पकडे गए वाहनो का

 


25 नवम्बर तक दस्तावेज दें



 अन्यथा वाहन होंगे राजसात

शहडोल 25 अक्टूबर 2021- कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट  श्रीमती वंदना वैद्य ने खनिज के अवैध उत्खनन परिवहन की रोकथाम के लिए राजस्व, पुलिस एवं खनिज अमले के साथ संयुक्त रूप से ग्राम सौता तहसील जयसिंहनगर झापर नदी पर आकस्मिक रूप से जांच के दौरान

 ट्रैक्टर ट्राली क्र. निल सोनालिका DI734 (नीला रंग) चेचिस क्रमांक FZOSV350189M, 

ट्रैक्टर ट्राली क्र. निल महिन्द्रा DI265 (लाल रंग)  सीरियल क्रमांक JCH03046DC,

ट्रक क्र. UP76E96  चेचिस क्रमांक MEC2542BMGPO36656 एवं

 ट्रैक्टर ट्राली क्र. निल महिन्द्रा युवा 415DI (लाल रंग) चेचिस क्रमांक MBNSFAVEJNGO2554 

को अवैध उत्खनन करते पाए जाने पर जप्त की गई थी। जिसमें वाहन क्रमांक अंकित न होने के कारण सर्वसंबंधित को निर्देश दिए हैं कि जिनके वाहन है वे अपना दावा 25 नवंबर 2021 तक कलेक्टर कार्यालय शहडोल में वाहन के कागज के साथ प्रस्तुत करें सकते है। उन्होंने कहा कि इस अवधि में यदि कोई अपना दावा प्रस्तुत नहीं करता तो वाहन को शासन के पक्ष में  राजसात की कार्यवाही की जाएगी।


शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

अब 31 मार्च तक हफ्ते मैं होंगे 5 दिन

 ओन्ली कट पेस्ट

हफ्ते में होंगे 5 दिन























दामिनी मे दमन के खिलाफ किसानों का अनशन

 दामिनी मे दमन के खिलाफ किसानों का अनशन 


 भूमि अधिग्रहण के बाद भी नहीं मिली नौकरी

शहडोल । जिले में लगातार उद्योगों के नाम पर किसानों के साथ अन्याय ही हो रहा है। ऐसा ही एक मामला एसईसीएल सोहागपुर क्षेत्र की दामिनी कोयला खदान का है। किसानों की भूमियों का अधिग्रहण कर कालरी प्रबंधन ने कालरी तो खोल दी किन्तु भूमिस्वामियों को उचित मुआवजा अब तक नहीं दिया गया। अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए अब किसान, हितग्राही दामिनी भूमिगत खदान के मुख्य द्वार पर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठ गए हैं, इनका कहना है कि जब तक हमें हमारा हक नहीं मिल जाता हम हड़ताल पर ही रहेंगे।

10 वर्ष पूर्व किया गया था अधिग्रहण

दामिनी भूमिगत खदान की शुरूआत वर्ष 2003-


04 में हुई कालरी प्रबंधन द्वारा वर्ष 2010-11 में ग्राम खैरहा एवं कदौंहा के किसानों की भूमि अधिग्रहित करते हुए किसानों को प्रथम लाभ मुआवजा तो कालरी प्रबंधन द्वारा दिया गया किन्तु द्वितीय लाभ रोजगार अधिग्रहण के 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक भूमिस्वामियों को रोजगार नहीं दिया गया। जबकि अनुविभागीय अधिकारी सोहागपुर की अध्यक्षता में किसानों व प्रबंधन के बीच डीआरसीसी बैठक खैरहा एवं कदौंहा की दिनांक 20.10.2019 एवं 04.12.2019 की गई । प्रबंधन के द्वारा किसानों को प्रति 02 एकड़ व क्लाविंग कर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, जिसकी अनुशंसा अनुविभागीय अधिकारी सोहागपुर द्वारा की गई।

कालरी प्रबंधन करता रहा गुमराह

डीआरसीसी की बैठक में लगभग 219 किसानों को नौकरी की पात्रता बनती थी जिसकी अनुशंसा की गई किन्तु कालरी प्रबंधन द्वारा लगातार किसानों को गुमराह किया गया। बैठक के समय सभी को आश्वासन दिया गया था कि आप सभी को 6-8 महीने के भीतर नौकरी दी जायेगी। किन्तु आज दिनांक तक किसी को भी नौकरी नहीं दी गई अंततः कालरी प्रबंधन भी अब इस मामले से अपना पल्ला झाड़ रहा है चूंकि खदान से लगभग कोयला निकाला जा चुका है संभवतः 2-3 वर्ष का काम शेष बचा है। कालरी प्रबंधन अब कह रहा है कि अब आप लोगों को नौकरी नहीं मिल सकती है। इसी तरह शहडोल संभाग में अलग-अलग उद्योग के प्रभावित किसानों को सिर्फ बरगला कर टाइम पास किया जा रहा है और उसकी जमीन ए उनसे छीन कर अपने उद्योगों के हित में उपयोग की जाती हैं किंतु इस मामले में ना तो सांसद मुखर दिखाई देते हैं नाही विधायक हस्तक्षेप कर अपने वोटरों की आजीविका सुनिश्चित करने की गारंटी देते दिखाई देते हैं देखना होगा संवेदनशील प्रशासन नागरिकों के पक्ष में क्या कदम उठाते हैं



गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले अंसारी ने दिखाया जलवा...

 22 अक्टूबर समीक्षा बैठक जबलपुर में आयुक्त आदिवासी विकास करेंगे चर्चा...

अपर संचालक संजय का शहडोल में निरीक्षण... 

"दिखाने के दांत और खाने के और..."

करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी ने दिखाया जलवा...

सहायक आयुक्त धुर्वे पीछे-पीछे घूमते रहे

मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र मरावी की अमरकंटक विश्वविद्यालय को लेकर यह शिकायत कि विश्वविद्यालय प्रबंधन आदिवासियों का अपमान करता है..., उसकी एक झलक अपर संचालक संजय वाष्णेय  के शहडोल दौरे पर देखने को मिली; जहां शहडोल आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त रंजीत सिंह धुर्वे दौरे के दौरान अपमानित होते देखे गए।


क्योंकि अपर संचालक के बगल में तृतीय वर्ग कर्मचारी व पूर्व सहायक आयुक्त एमएस अंसारी अपर संचालक के साथ बैठा हुआ देखा गया। वहीं सहायक आयुक्त श्री धुर्वे दूर किनारे खड़े फोटो पर नजर आते हैं ।क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार के उन गुणों को आत्मसात पूरी तरह से नहीं किया है जिन पर महारत हासिल करने वाले तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी तत्कालीन कलेक्टर सत्येंद्र सिंह की कृपा से जब गैर कानूनी तरीके तमाम विकल्प होते हुए भी  सहायक आयुक्त का प्रभार न सिर्फ लिया बल्कि अपने 6 महीने के प्रभार में करोड़ों  रुपए का गैर कानूनी शासकीय कोषालय, जो  विधि विरुद्ध होने के साथ भ्रष्टाचार पूर्ण प्रक्रिया का प्रमाण भी रहा निर्भीक होकर आहरण करता रहा। इतना ही नहीं उन्होंने करीब 25 वर्ष लंबित विवादित एक निजी शिक्षा संस्थान पांडे शिक्षा समिति जैसीहनगर को कर्मचारियों के लंबित एरियर की रकम करीब 8 करोड़ 34 लाख रुपए का भी ना सिर्फ आहरण किया बल्कि कथित कर्मचारियों का भुगतान उनकेेे खाते में शिक्षा समिति के खाते में डलवाने का भी भ्रष्टाचार पूर्ण संरक्षण दिया। ताकि शासकीय धन की बंदरबांट हो सके। 

क्योंकि अब यह खबरें छनकर आ रही हैं कि कई कर्मचारी जिनके नाम पर भुगतान हुआ है वे वहां नाममात्र के कर्मचारी थे कुछ कर्मचारियों का कम तो कुछ कर्मचारियों का ज्यादा भुगतान दिखाया गया है। हालांकि जबलपुर में होने वाली आयुक्त अनुसूचित जन जाति विकास का बैठक मे संजीव सिंह के सामने अपर संचालक संजय इन बातों को कैसे रखेंगे, तब जबकि आज भी पदस्थ सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री धुर्वे का उनके सामने लगातार अपमान होता रहा।


और वह भी अधिकारियों के नजरिए को समझ कर भ्रष्ट अंसारी के पीछे पीछे चुपचाप चलना जैसे स्वीकार लिए थे और इस तरह अपर संचालक यह सब जानकर जिस प्रकार की चुप्पी साधे रहे बल्कि उन्होंने अंसारी को उसकी उंगली के इशारे पर ऑफिस संभालने मौन सहमति देते रहे, उससे लगता है कि उन्होंने भी अंसारी के भ्रष्टाचार को आत्मसात करने की हरी झंडी दे दी है ।

इस तरह आदिवासी मुख्यालय संभाग शहडोल में आदिवासी विभाग में पदस्थ वर्षों से अंसारी के भ्रष्टाचार का सिक्का एक बार फिर से जमता दिख रहा है क्योंकि अपर संचालक में एक बार भी अंसारी को यह नहीं टोका कि सहायक आयुक्त श्री धुर्वे अगर हैं तो तुम क्यों निरीक्षण करवा रहे हो...? इसका अर्थ साफ है कि करोड़ों रुपए की चमक के सामने आदिवासी समाज के अधिकारियों की अहमियत उतनी ही है जितनी की मध्य प्रदेश जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और शहडोल सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह के पति  इंजीनियर नरेंद्र कुमार मरावी अमरकंटक विश्वविद्यालय में कुलपति के संरक्षण में हुए अपमान की शिकायत को जितना उजागर किया था..। ऐसे में आदिवासी विकास के करोड़ों करोड़ रुपए सिर्फ भ्रष्टाचार और बंदरबांट में अगर खानापूर्ति हो रहे हैं तो यह कोई नई बात नहीं दिखती। 

देखना होगा की 22 अक्टूबर की बैठक में किसी तृतीय वर्ग कर्मचारी के द्वारा गैरकानूनी आहरण और आदिवासी अधिकारियों के अपमान के बातें बैठक में मुद्दा बनता है या नहीं....?




विश्वविद्यालय में भेदभाव नहीं रुक रहा

 विश्वविद्यालय में भेदभाव नहीं रुक रहा 


स्थानीय छात्रों को लाभ क्यों नहीं..? नरेंद्र मरावी

दिनांक : 21 October 21।अनुपपुर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कार्य परिषद सदस्य नरेंद्र सिंह मरावी ने विश्व विद्यालय की  कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह उठाते हुए विज्ञप्ति जारी कर बताया कि दिनांक 20 जून 2021 को कार्यपरिषद की 47 वीं बैठक में8 महत्वपूर्ण कार्यसूची (अजेंडा) को कार्यपरिषद से पारित करवाना था जिसमें - विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2021-22 में स्नातक एवं स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए मेरीट बनाने की नियमावली में “अंकसूची मेरिट से 50% तथा ऑनलाइन साक्षात्कार से 50% अंक” जोड़कर प्रवेश मेरिट बनाने के प्रस्ताव की मंजूरी; बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय शोध पीठ की स्थापना के प्रस्ताव की मंजूरी, प्रवेश हेतु स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश सीटों की संख्या बढ़ाने के प्रस्ताव की मंजूरी, महान ग्रंथ भक्त श्रीमद्भ भगवतगीता तथा श्रीमद् रामायण, वेद, पुराण एवं उपनिषद् को पाठ्यक्रम में एक ऑप्शनल विषय के रूप में सम्मिलित करने के प्रस्ताव की मंजूरी; जनजातीय धर्म संस्कृति एवं जनजाति इतिहास लेखन के लिए टास्क फोर्स का गठन की मंजूरी; जनजाति धर्म संस्कृति पर सात दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला के आयोजन की मंजूरी; राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा जनजाति विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन मेला के प्रस्ताव का अनुमोदन; पीएचडी में प्रवेश के लिए ऑनलाइन परीक्षा कराने हेतु तत्काल विज्ञापन जारी करने की मंजूरी को लेकर कार्यपरिषद से प्रस्ताव पास कराने के लिए दिनांक 20 जून 2021 को कुलपति श्री त्रिपाठी को पत्र दिया गया था।

नरेंद्र सिंह मरावी ने आगे बताया कि विश्वविद्यालय छात्र के सभी मुद्दों को दरकिनार करते हुए इस पर कोई सुनवाई नहीं की थी। इस संबंध में आज स्मरण-पत्र दिया गया है क्योंकि प्रवेश देने में विश्वविद्यालय ने कुल मिलाकर 3 से 4 महीने की विलंब कर दी है।  जिससे अनावश्यक रूप से छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है विश्वविद्यालय का यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है। विश्वविद्यालय को हित को ध्यान में रखना विश्वविद्यालय की नैतिक जिम्मेदारी है लेकिन विश्वविद्यालय लगातार छात्रों के अहित में ही कार्य कर रहा है और मेरे द्वारा उठाए गए मुद्दों को सम्मिलित नहीं कर एक

  जनजाति छात्रों को लगातार अपमानित करने का कार्य किया जा रहा

अमरकंटक क्षेत्र में यहाँ के छात्रों का प्रवेश ना होकर केरल के छात्र आ रहे है इसमें विश्वविद्यालय की भूमिका बेहद ख़तरनाक है,अमरकंटक क्षेत्र के लिए विश्वविद्यालय ख़तरा बन गया है। 

नरेंद्र सिंह मरावी ने आगे बताया कि मैंने 20 जून को ही प्रवेश संबंधी नियमों का समाधान करके उचित समय पर प्रवेश अधिसूचना जारी करने के लिए पत्र लिखा था लेकिन विश्वविद्यालय को छात्र हित का कोई परवाह नहीं है, गैरकानूनी रूप से स्नातक एवं स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए अधिसूचना जारी की गई है जिसमें कोई चीज स्पष्ट नहीं है, जिससे मध्य प्रदेश एवं स्थानीय जनजाति छात्रों का बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है और आपके द्वारा ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है।20 जून 2021 को मेरे पत्रों मेरे द्वारा दिए गए कार्यसूची का अनदेखा करने के कारण छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया है और दीपावली आने जा रहा है अभी तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है और प्रवेश प्रक्रिया इतना धीमा किया जा रहा है कि छात्र दूसरी स्थानों पर प्रवेश ले चुके हैं, दूसरे महाविद्यालय या अन्य विश्वविद्यालय में प्रवेश ले चुके हैं। इसका नुकसान जनजाति विश्वविद्यालय को भी हुआ है तथा स्थानीय छात्रों को भी हुआ है। बार-बार छात्रों को नुकसान करना किसी गलत मानसिकता की ओर इंगित करता है।




बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

कुपोषण के खिलाफ जंग

कुपोषित बच्ची अंकिता बैगा 

के परिजनों से मिलने


घर पहुंची कलेक्टर वैद्य

कलेक्टर ने कुपोषित बच्चों को एनआरसी में भर्ती करवाने हेतु दी समझाइश 

शहडोल 20 अक्टूबर 2021- कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट श्रीमती वंदना वैद्य आज शहरी क्षेत्र शहडोल के आईटीआई के पास बैगा मोहल्ला पहुंचकर कुपोषित बच्ची अंकिता बैगा पिता श्री उड़ई बैगा के परिजनों से घर जाकर गृह भेंट किया।

कलेक्टर ने बच्ची के पोषण आहार, स्वास्थ्य इत्यादि की जानकारी प्राप्त की तथा कुपोषित बच्चों के परिजनों को उनके स्वास्थ्य हेतु एनआरसी में भर्ती कराने की समझाइश दी। उन्होंने कहा कि बच्चों को आवश्यक रूप से एनआरसी में भर्ती कराएं तथा उन्हें कुपोषण मुक्त करें। एनआरसी में भर्ती कराने से बच्चों को पोषण आहार तथा उनके स्वास्थ्य में अच्छा प्रभाव पड़ेगा। कलेक्टर की बात सुनते ही कुपोषित बच्चों के परिजनों ने कलेक्टर को आश्वासन दिया कि वह गुरुवार को ही अपने बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराएंगे तथा अपने बच्चों को कुपोषण मुक्त बनाएंगे। 

इस दौरान कलेक्टर ने कुपोषित बच्चों के परिजनों को कुपोषण से बचाने हेतु घर में ही हरी सब्जियों का प्रयोग करने, सफाई अपनाने, लोहे की कढ़ाई में सब्जी पकाकर खाने तथा अन्य बातों की समझाइश दी। इस दौरान कलेक्टर ने कुपोषित बच्ची की माता से भी चर्चा की तथा उनसे जानकारी ली कि बच्चों को क्या खिलाती हैं तथा खुद भी क्या पोषण आहार करती हैं। कलेक्टर ने पोषण सभी को पोषण किट का वितरण किया।

इस दौरान जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास श्रीमती शालिनी तिवारी सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।



बुढ़ार के होटल में तीन कोविड-

  शहडोल जिले बुढ़ार में कोरोना  

बुढ़ार के होटल विलासा में मिले कोरोना पॉजिटिव मरीज

शहडोल। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बुढ़ार के होटल विलासा में मिजोरम से आई 2 लड़कियां और 1 लड़के की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। खबर है कोविड- पेशेंट मिजोरम से ट्रेवल करके आए किंतु नेगेटिव रिपोर्ट के साथ आए थे इस तरह का शहडोल जिले में हाल में यह नया वाकया है।

जिले में कोरोना के दस्तक देने से हड़कंप मच गया है। खबर है प्रशासन की टीम तीनों कोरोना पॉजिटिव मरीजों की कांटेक्ट हिस्ट्री तलाश करने में जुटी है।





अन्यथा..."हमारा विंध्य-हमें लौटा दो"

 अन्यथा..."हमारा विंध्य-हमें लौटा दो"

लोकहित के विरुद्ध बना रोहनियाटोल

संविधान निर्माता शंभूनाथ शुक्ला के संविधान के साथ धोखाधड़ी है,


टोल टैक्स की वसूली...

(त्रिलोकीनाथ)

20 अक्टूबर से होने वाली वसूली हालांकि एक पत्र के जरिए रोहनिया टोल पर वसूली अब 25 अक्टूबर से होनी है।


एमपीआरडीसी (मध्य प्रदेश राज्य सड़क विकास निगम) के एक अधिकारी के अनुसार रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग 15 साल के लिए  बी ओ टी (बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर) की शर्त पर बनाई गई थी। उनका कहना है यह सड़क सिर्फ 15 साल के लिए बनाई गई थी क्योंकि टोल टैक्स 15 वर्ष वसूलना था। वे अधिकारी पूरी बेशर्मी के साथ यह स्पष्ट करते हैं की ऐसी सड़क की लाइफ भी 15 साल ही होती है जबकि बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर जिस अनुमान में बनाया गया था उसके बारे में एक बड़े उच्च अधिकारी का कहना है की ऐसी सड़कों की लाइफ 30 से 40 वर्ष तक होती हैं और इस गुणवत्ता पर बनाई जाती है तो फिर क्या कारण था कि "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" जिसकी कुल लागत दिग्विजय सिंह के सरकार में 110 करोड़ रुपए थी और उसमें भी करीब आधी रकम यह ने 55करोड़ रुपये मध्यप्रदेश शासन ने   बी ओ टी ठेकेदार को दिए थे। याने सिर्फ ₹55 करोड़ में 15 साल की लाइफ वाली सड़क बनाकर करीब 5000 करोड़ पर इस आदिवासी अंचल से क्यों लूटने दिया गया...? जिस आदिवासी अंचल में आदिवासी विकास के नाम पर अरबों  रुपए निवेश किए जाते हैं क्योंकि आदिवासी प्रक्षेत्र में अरबों खरबों रुपए का प्राकृतिक संसाधन भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार को निकालना होता है तो जब आप प्राकृतिक संसाधनों की लूट मचाए हुए होते हैं और इसका उपयोग करने वाले अरबपति खरबपति व्यक्ति और संस्थाएं जिस सड़क सुविधा की कीमत पर प्राकृतिक संसाधन निकालती हैं उसी कीमत पर स्थानीय गरीब, आम आदमी, आदिवासी समाज के लोगों से वसूली क्यों की जाती है...?उन्हें अपने जमीन पर चलने की कीमत किसी अरबपति-खरबपति व्यक्ति के समानांतर क्यों वसूला जाता है..?

 


क्या संविधान की पांचवी अनुसूची में विशेष प्रावधान का यही उद्देश्य था...? यह प्रश्न खड़ा होता है; और उससे ज्यादा यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि जो परंपरागत सड़कें  बी ओ टी ठेकेदारों को दी गई थी वह बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर के, किसी लागत के साथ ट्रांसफर की गई थी अगर उन्हें 15 वर्ष मे "रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग" से 5000 करोड़ रुपए वसूलने की छूट दी गई थी तो उन्होंने अपना सड़क क्यों नहीं बनाया...?

 बनी बनाई हुई सड़क में मरम्मत करके हजारों करोड़ रुपए लूटने की छूट देना, कितना जन हितकारी फैसला कहा जा सकता है....? तब जबकि 15 साल की समय सीमा के लिए टोल टैक्स वसूली के लिए बनाई गई सड़कों से सैकड़ों एक्सीडेंट में लोग मारे गए और  उस मूर्खता बनी पूर्ण नीति का परिणाम यह भी रहा की पूरी की पूरी बस इस घटिया सड़क के चलते नहर में जा समाई जिसमें 55 लोग अकाल मृत्यु की गोद में समा गए थे।

 यह सही है उसमें अफसरों के लड़के नहीं थे, उसमें मंत्री के लड़के नहीं थे, उस में मुख्यमंत्री के लड़के नहीं थे और ना ही प्रधानमंत्री के और शायद इसीलिए इन हत्याओं के बाद भी हमारा शासन और एमपीआरडीसी जैसी संस्थाएं आदिवासी क्षेत्रों में उसकी धैर्यता और सहजता को जान समझ कर अपने ठेकेदार से  अमरकंटक सड़क मार्ग में खुली डकैती डलवाने के बाद अब घटिया सड़क के मरम्मत के नाम पर टोल वसूलना चाहती है। तो फिर वह रोड टैक्स माफ क्यों नहीं कर देती है ताकि रोड टैक्स से मिलने वाले पूरी राशि सड़क के मरम्मत के काम आ जाए ।शायद सरकारों को ज्ञान हो गया है आम आदमी को जितना लूट सकते हो उतना लूटने की योजना बनानी चाहिए...?

 और शायद एमपीआरडीसी के उस अनुबंध में जिसके शर्तें समय अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी पारदर्शी तरीके से रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग के लोगों को नहीं बताई गई हैं अब उन्हें पुनः नए सिरे से मरम्मत के नाम पर मनमानी टोल वसूलने की अनुमति कैसे दी जा सकती है  ...? 

यह तो अंग्रेजी शासन की गुलामी भरी फैसलों की याद दिलाती है जिसमें खेत तो हमारे होते थे किंतु नील की खेती करने की बाध्यता अंग्रेजी शासन प्रणाली की तानाशाही का प्रमाण था। अब वही प्रक्रिया को नए सिरे से लागू करना इस प्रकार के नीति निर्धारकों का खुलेआम तानाशाही को प्रमाणित करता है।

 जिन कारणों से "रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग" बर्बाद हो गई है या अपने लाइफटाइम को पूर्ण नहीं कर पा रही है इसे तत्काल प्रतिबंधित कर देना चाहिए।



शायद संविधान की पांचवी अनुसूची में भारत के संविधान निर्माताओं का यही उद्देश्य रहा होगा, कम से कम विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और संविधान निर्माता मे एक पंडित शंभूनाथ शुक्ला के सोच में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग निर्माण के वक्त यही उद्देश्य रहा होगा की सड़क आम आदमी विंध्य प्रदेश के आम नागरिकों के सुविधा के लिए बनाई जाए ना कि भविष्य में इस सड़क को  बी ओ टी नामक ठेकेदार नुमा राक्षस के जरिए खून चूसने का कारण बनाया जाए ।किंतु वर्तमान शासन और प्रशासन संविधान निर्माता शंभूनाथ शुक्ला के साथ अब धोखाधड़ी करते दिखाई देते हैं... जो पांचवी अनुसूची मे संविधान में दिए गए आदिवासी स्थानीय आम आदमियों के हितों  के विपरीत भी प्रतीत होता है।




सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

अपने अपने रागदरबारी

 उनका चांद डी सी यादव निकला 

सूर्या होटल में ...

रागदरबारीयों ने किया भव्य आयोजन


हालांकि चौदहवीं का चांद शरद, पूर्णिमा के रूप में चमकता हुआ आज दिखेगा किंतु उनके के लिए उसका चांद शनिवार को निकला था और फिर उन्होंने इस गाने के बोल में उनका अभिनंदन भी किया 

चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो

कुछ इस अंदाज में अपने पूर्व सहायक आयुक्त जेपी यादव (वर्तमान में डीसी होशंगाबाद) का भव्य संगीत में कार्यक्रम के साथ स्वागत अभिनंदन पूर्व


सहायक आयुक्त एमएस अंसारी रघुराज स्कूल के प्राचार्य पीके मिश्रा, जिला खेल प्रमुख अजय द्विवेदी वर्षों से एक ही स्थान  पदस्थ लोगों ने होटल सूर्या में उपस्थित होने का आदेश किया ।ऐसा विभागीय सूत्र बताते हैं। जो अचानक उनके बुलावे में वहां पहुंचे थे ।शहडोल में कभी पदस्थथ रहे नाच गाने संगीत से सरोवार रहने वाले जेपी यादव के टेस्ट को जानते हुए सभी शिरकतकारों ने अपनी अपनी भूमिकाएं प्रस्तुत की।

तो दूसरी तरफ   अमरकंटक विश्वविद्यालय में अपनी दलित छात्रा के दुष्कर्म के आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एनएसयूआई ने पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपा।

 इधर जनजातीय कार्य विभाग की प्रमुख सचिव जहां विभागीय योजनाओं की समीक्षा हेतु प्रदेश


स्तर के अधिकारियों को जिले में भेज कर मैदानी हकीकत जानने का प्रयास कर रही है वहीं इनके भ्रष्ट अधिकारी पूर्व सहायक आयुक्त अंसारी संगीत संध्या का आयोजन कर इन्हे ठेंगा दिखा रहे है। 

नाचगाने पूर्ण कार्यक्रम  के शौकीन डीसी होशंगाबाद जे पी यादव  तो इसमें शिरकत करने  पहुंचे थे। उनके कार्यकाल में सरकारी पैसे से पारदर्शी भ्रष्टाचार करने वाले पूर्व सहायक आयुक्त एमएस अंसारी  के अलावा शहडोल डीसी भी उपस्थित रहे। हालांकि सहायक आयुक्त शहडोल के अनुसार उन्हें किसी ऐसे सरकारी कार्यक्रम की जानकारी नहीं थी वे अचानक बुलावे पर वहां पहुंचे थे बावजूद इसके आदिम जाति कल्याण विभाग के ढेर सारे कर्मचारियों की उपस्थिति ने इसे सरकारी रंग रूप में सजा दिया था । 

एक खबर यह भी है की प्रमुख सचिव कि जबलपुर के बैठक के मद्देनजर प्रतिभा खोज के दृष्टिकोण में यह कार्यक्रम सभी आदिवासी विभाग के लोगों ने इकट्ठा करके किया गया था। ज्ञातव्य है गैर कानूनी तरीके से अपने पदों पर पदस्थ कुछ लोगों ने इससे भव्यता प्रदान की थी तो अंसारी जैसे तृतीय वर्ग कर्मचारी चंद महीनों के लिए सहायक आयुक्त बनकर बहुचर्चित 8 करोड़ 34 लाख रुपए का गैरकानूनी हरण किया था जिसका एक निजी पांडे शिक्षा समिति के नाम पर भुगतान हुआ था जबकि उसके कर्मचारियों की पुष्टि करना उचित भी नहीं समझा गया यह जानते हुए की कई कर्मचारी नाम मात्र के कर्मचारी थे...? इस तरह हुए बंदरबांट को छुपाने के लिए होटल सूर्या की चमक में कार्यक्रम को अधिकारी को खुश करने का तरीका बनाया गया ताकि जबलपुर में होने वाली बैठक में इस अनियमित भ्रष्टाचार गैरकानूनी आहरण की समीक्षा ना हो सके, इसे पूर्वप्रबंध की संज्ञा भी दी गई है। क्योंकि जानकार जानते हैं कि जातिगत धंधे में जेपी यादव का दलित होना अधिकारियों के लामबंदी का अहम हिस्सा है तो क्या इस राग दरबार संगीत सभा से निकले निष्कर्ष प्रमुख सचिव की समीक्षा बैठक मे शहडोल के भ्रष्टाचार को पटाक्षेप का संगीत समझा जाए...?

 किंतु ऐसा होता नहीं दिखता क्योंकि प्रमुख सचिव ने जगह-जगह अपने अधिकारियों को भेज कर निरीक्षण का निर्देश दिया है फिलहाल सूर्या होटल मैं गत शनिवार संपन्न हुए भव्य कार्यक्रम किसी उप आयुक्त आदिवासी विकास का अभिनंदन समारोह गलत परंपराओं को अपने समूह के सदस्यों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए प्रचलित करने जैसा प्रयास है । देखना होगा प्रमुख सचिव आदिवासी विकास होटल सूर्या मे निकले चौदहवीं के चांद में की समीक्षा करते हैं या नहीं...? अन्यथा शहडोल आदिवासी क्षेत्र का आदिवासी मुख्यालय तो है ही। ऐसे कार्यक्रमों से ना तो विधायक मतलब रखते हैं ना ही सांसद।









रविवार, 17 अक्तूबर 2021

बाल आयोग का काम-बाण अर्जुन पुत्र अजय को साध पाएगा...? (त्रिलोकीनाथ)

मामला बाल आयोग की नोटिस का


बाल आयोग का काम-बाण

अर्जुन पुत्र अजय को साध पाएगा...?

(त्रिलोकीनाथ)

उच्चतम उद्देश्यों की पवित्र मंसा से जन्मी भारत  में आरक्षण अब वोट की राजनीति का अत्यधिक प्रदूषित कारण बन गया है। क्योंकि आरक्षण के सभी वर्गों के उत्थान के लिए कोई काम होता नहीं दिखा कुछ वर्ग या परिवार सामंतवादियों की तरह पनपते दिखे मात्र हैं और 21वीं सदी के प्रथम चरण में जातिगत राजनीति सत्ता पाने का सबसे सस्ता और घटिया रास्ता भी बन गया है। ऐसे में विंध्य प्रदेश की राजनीति में पहले पहल ठाकुर और ब्राह्मणों की राजनीति को पैदा करने वाले अर्जुन सिंह को अंततः श्रीनिवास तिवारी की ब्राह्मण जातिगत राजनीति का शिकार होना पड़ा और भारत का एक विद्वान राजनीतिक अर्जुन सिंह पतन की अंधकूप में जा समाये।


अब विंध्य प्रदेश की राजनीति को साधने के लिए राष्ट्रीय बाल आयोग का हमला अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह के ऊपर किया गया है।

 कभी कामदेव ऋषि-मुनियों को उनके ब्रम्हचर्य नष्ट करने के लिए काम धनुषबाण का उपयोग किया करते थे। अब राजनीतिक लोग  ब्लैकमेल करने के लिए कभी सीडी तो कभी ईडी तो कभी अलग-अलग आयोग का उपयोग होने लगा है। इसीलिए राष्ट्रीय बाल आयोग से अजय सिंह का शिकार किया जा रहा है...?, अन्यथा अगर उन्होंने अनुभव से कह दिया कि अक्सर बच्चे नशा करते हैं तो क्या गलत कहा...? उनकी मंशा ज्यादातर भटके हुए बालकों पर थी और इसका उदाहरण ट्रेन की उच्चतम क्लास में चलने वाले "मिडिल क्लास वीआईपी" अंत्री-मंत्री, सेक्रेटरी-पीकेट्री स्टेशनों में 100% बाल श्रमिक नशाखोरी के, कहना चाहिए गंभीरतम नशाखोरी के शिकार हैं; तब राष्ट्रीय बाल आयोग का संज्ञान जीवित नहीं होता। वह इसी क्लास में सत्ता के मद में नशे में चूर रहता है उसे दिखाई नहीं देते की कैसे बच्चों का बचपना भारत की अराजक कार्य प्रणाली का शिकार हो रहा है। 

किंतु बात मध्यप्रदेश के रैगांव विधानसभा चुनाव के जरिए राजनीतिक शिकार की थी, क्योंकि कुछ ही दिन पहले भाजपा के तमाम  प्रदेश के


दिग्गज इन्हीं अर्जुन पुत्र अजय सिंह से मिलकर या मुलाकात का अवसर देकर अपनी तस्वीरें सार्वजनिक कराई थी और इस भ्रम को बल देने का काम किया गया था मध्य प्रदेश की राजनीति का यह "विंध्य का ठाकुर सितारा" अब भाजपा की ओर रुख कर रहा है। किंतु शायद प्रलोभन में दम नहीं था और वह गुब्बारे की तरह फुस्स हो गया। 

तभी रैगांव विधानसभा मे अर्जुन पुत्र अजय ने सहज भाव में  बालकों की नशा करने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी की और राष्ट्रीय बाल आयोग में शिकायत भी पहुंच गई। बाल आयोग तत्काल जीवित हो गया उसने नोटिस कि क्यों ना  अजय के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाए और यह नोटिस ना तो कोई सीडी थी और ना ही कोई ईडी थी यह दिखने वाली कानूनी नोटिस थी। जिसे भारतीय जनता पार्टी निमंत्रण पत्र के रूप में अक्सर अपने अवसरों के रूप में देखती है। तो क्या इस निमंत्रण के जरिए अर्जुन पुत्र अजय भाजपा में जा रहे हैं., यह बड़ा प्रश्न है..? 

तो आइए एक नजर उस नोटिस कम आमंत्रण पत्र पर गौर करें अब सवाल यह है कि केंद्र सरकार के पास ऐसे कई आयोग बने हैं जिसमें मानव अधिकार आयोग, महिला आयोग, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग आदि-आदि। तो जब किसान अपने भविष्य की चिंता को लेकर करीब 1 साल से गांधीवादी तरीके से धरना आंदोलन कर रहे हैं सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग किसान भी मर गए तब संबंधित आयोग स्वयं संज्ञान लेता हुआ दिखाई क्यों नहीं देता....?

 बाल आयोग अभी यह तब क्यों पता चलता है जब रैगांव विधानसभा सीट में अर्जुन पुत्र अजय एक बड़ी समस्या की ओर प्रश्न उठाते दिखते हैं....? हो सकता है वर्तमान में फिल्म स्टार "माय नेम इज खान" का पुत्र आर्यन गांजा की पुडिया के चक्कर में हवालात में बंद हो... और उससे जो नफरत का धंधा पैदा करने का प्रयास हो रहा हो उस पर अर्जुन पुत्र प्रश्न उठा दिया हो..?

 तो सवाल यह है कि सत्ता के नशा में जब लखीमपुर खीरी में कोई क्षेत्र की ब्राह्मण वोट का केंद्र बिंदु ब्राह्मण नेता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का पुत्र मिश्रा सरेआम कायरों की तरह रोड में चल रहे किसानों को कुचलता हुआ हत्या कर देता है तब केंद्र सरकार का कोई आयोग जीवित होता नहीं दिखाई देता...? और परमानेंट नशा के कारोबार की इंडस्ट्री चलाने वाला एक कोरकारीडोर में छत्तीसगढ़ की एक धार्मिक यात्रा पर मिश्रा की तरह पीछे से गाड़ी चढ़ा दे कर हत्या कर देने वाला गांजा गिरोह पर ऐसे आयोग स्वत संज्ञान लेते क्यों दिखाई नहीं देते....? इसका साफ मतलब है कि इन मौतों से इन आयोगों का कोई लेना देना नहीं है ..

यह नए तरह के राजनीतिक शतरंजी बिसात के टूलकिट बनकर रह गए हैं । जिसका परिणाम अर्जुन पुत्र अजय सिंह पर काम-बाण चलाना है ताकि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से "विंध्य" की नाराज ठाकुर चेहरा अर्जुन पुत्र अजय को भाजपा में पलटी कर सके। क्योंकि वह सीधी उंगली से नहीं निकल पा रहे थे तो भी टेढ़ी उंगली से निकालने का प्रयास हो रहा है... यह साफ साफ दिखता है ।

अन्यथा कोई कारण नहीं है की बाल आयोग को कोई प्रदेश का बौद्धिक प्राणी शिकायत करने लायक ज्ञान प्राप्त करें और बाल आयोग एक्शन में आ जाए। यह भी भारतीय राजनीति की जातिवादी प्रदूषण का परिणाम मात्र प्रतीत होता है। और सच में यदि बाल आयोग अपने आयोग होने का दंभ भरता है तो उसके और उससे प्रेरित या उसे प्रेरित करने वाला "मिडिल क्लास वीआईपी" एसी क्लास से निकलकर जरा भी ट्रेन के डब्बे में बाल श्रमिकों की दुर्दशा को देखता तो शायद अर्जुन पुत्र अजय सिंह कि कहीं बातों को शत प्रतिशत सही पाता। लेकिन उसे जमीनी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है वह तो सिर्फ अर्जुन पुत्र अजय को कामबाण चलाकर राजनीतिज्ञों की वासना को तुष्ट कर रहा है।

 फिलहाल तो यही दिखता है, किंतु आशा करेंगे अगर अजय सिंह ने गंभीर मुद्दा उठाया है तो भारत के तमाम ट्रेनों में और स्टेशनों के जरिए बाल श्रमिकों की दुर्दशा में बाल सेक्स, बाल नशाखोरी और बाल जीवन को सुधारने का कोई बड़ा कदम होता दिखेगा अन्यथा वोट के प्रदूषण में कुछ कीड़े और बिलबिलाते नजर आएंगे ऐसा अर्जुन पुत्र अजय को मिली नोटिस का सार मात्र समझा जाना चाहिए।


प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्(2 त्रिलोकीनाथ)

 प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्

टाइम लिमिट की परवाह किसे......? संयुक्त संचालक नगर प्रशासन

आखिर धृतराष्ट्र क्यों ...?


संभाग मुख्यालय मे नपा अध्यक्ष के वार्ड में नहीं भरे गए गड्ढे....

(त्रिलोकीनाथ) 

27 सितंबर को शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा ने उच्च अधिकारियों के साथ बैठक करके यह सुनिश्चित किया था कि 7 अक्टूबर तक नगरी क्षेत्र की सड़कों के गड्ढे पैक किए जाएं और संभाग में 15 अक्टूबर तक इस कार्य को पूर्ण कर लिया जाए ।

तो संभाग मुख्यालय शहडोल नगर को देखें तो


कमिश्नर के आदेश का पालन नगर पालिका अध्यक्ष उर्मिला कटारे के वार्ड में बिल्कुल भी नहीं हुआ है, पुरानी गांधी चौक से सिंधी बाजार होकर रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाला मार्ग अपनी दुर्दशा पर आज भी उतना ही आंसू बहा रहा है जितना कि पिछले कई समय से भाजपा के सभी अध्यक्षों के कार्यकाल में यह रोता रहा।


जगह-जगह गड्ढे वाली सड़क भारतीय जनता पार्टी की नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती  कटारे की प्रशासनिक  हैसियत और उनकी कार्यक्षमता को भी उतना ही प्रमाणित करता है जितना कि प्रशासनिक लापरवाही को नया गांधी चौक से लेकर बुढार चौराहा तक बनने वाली कई पंचवर्षीय योजनाओं की नालियां अपना रोना रो


रहे हैं; अब तो बकायदा महात्मा गांधी की मूर्ति के पास मुख्य चौराहे में नालियों में बड़े गड्ढे खोदकर उसे प्रमाण पत्र की तरह नगर पालिका प्रशासन आम जनता को दर्शनार्थ रख छोड़ा है। ऐसे में शेष नगर पालिक शहडोल ही नहीं संभाग के तमाम नगर पालिक संस्थाएं कितनी जर्जर हालत में अपनी बर्बरता से अपने नागरिकों का सम्मान कर रही हैं। जिसे समझा जा सकता है।

 बहरहाल जबकि संभाग के सर्वोच्च अधिकारी ने गंभीरता से आम आदमी की पीड़ा को समझते हुए उसे राहत देने का आदेश दिया तो भी पालिका प्रशासन के लोग कितने लापरवाह हो सकते हैं यह नगर पालिका अध्यक्ष के वार्ड में और मुख्य गांधी चौक में स्पष्ट देखा जा सकता है। आशा करनी चाहिए संयुक्त संचालक नगर प्रशासक कम से कम आयुक्त के आदेशों का पालन संभाग मुख्यालय में कराने में गंभीर रहेंगे, अन्यथा प्रशासन ऐसे ही चलता है यह प्रमाणित होता रहा है

 आखिर, प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम।



शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

जिलापंचायत अफसरशाही मे महिला हुई प्रताड़ित

  इति आदिवासी क्षेत्रे......

दिव्यांग आदिवासी महिला को

रोजगार हटाने का किया षड्यंत्र....?

मनरेगा अधिकारी ने

 मैं चाहे ये करूं,


 मैं चाहे वो करुं... 

 मेरी मर्जी....


( त्रिलोकीनाथ )

अमरकंटक विश्वविद्यालय में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र मरावी के आरोप में जनजातियों को प्रताड़ित करने का मामला ठंडा हुआ नहीं था की शहडोल जिला पंचायत में दिव्यांग आदिवासी महिला को षड्यंत्र कर हटाने की बात सामने आई है और हो भी क्यों ना जब तक उच्च प्रशासनिक अधिकारी भ्रष्टाचार के समंदर में गोते लगाता रहता है तब तक निचला अमला उसी रफ्तार से अपनी छलांग की लगाने का प्रयास करता है, फिर उसे जरा भी शर्म नहीं आती कि चाहे यह अपराध 50 किलोमीटर दूर  से आकर काम करने वाले आदिवासी महिला के रोजगार से जुड़ी हो...। वैसे तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं आदिवासी उत्थान के लिए किंतु एक भी यदि घटना फाइलों में दर्ज होकर यह सिद्ध करती है की जिम्मेदार तबका ने जानबूझकर किसी दिव्यांग महिला के साथ मानसिक प्रताड़नापूर्ण न सिर्फ व्यवहार किया बल्कि उसे रोजगार से हटाकर रोड में लाने का भी काम किया और तब जबकि शासन के उच्च स्तरीय निर्देश रहे हो कि दिव्यांग महिला को रोजगार देना सुनिश्चित किया जाए।फिर क्या कारण था यह गंभीर चिंतन का विषय माना जाएगा।

  सवाल यह है जब तक "भ्रष्टाचार मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे पाकर रहूंगा..." इस अंदाज पर अधिकारी वर्ग अपनी कार्यशैली से जो संदेश दे रहे थे उसका परिणाम यह हुआ कि निचले स्तर पर जिला पंचायत शहडोल में निर्भीक होकर संबंधित अधिकारी रविंद्र अग्रवाल ने राहुल सक्सेना के साथ मिलकर  जमकर मनमानी की और कथित तौर पर दिव्यांग महिला कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे जो वाटर सेड सेल पर डाटा सेंटर में संविदा डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में मनरेगा योजना पर पदस्थ थी, उसे अपनी तानाशाही और अपवित्र मंशा के चलते नोटशीट में हेराफेरी करते हुए भ्रामक जानकारी पैदा करके अंततः दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया। शायद पद के मद् में मस्त रविंद्र-राहुल की जोड़ी को यह भी भान नहीं रहा होगा  जो वर्तमान में भ्रष्ट वातावरण है वह भविष्य में साफ सुथरा हो जाएगा और जवाबदेही का सामना करना पड़ जाएगा।

 अब जबकि वर्तमान प्रशासन व्यवस्था साफ-सुथरा और इमानदार छवि वाला हो चुका है इसके बावजूद भी यदि दिव्यांग गायत्री को तत्काल फौरी राहत नहीं मिलती दिखाई देती। तब प्रश्न जरूर खड़े होते हैं कि आखिर गायत्री में क्या कमी थी जिस वजह से जिला पंचायत शहडोल में अधिकारियों ने मिलकर कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे को सड़क में फेंक दिया।

 क्रम से देखें तो जिला पंचायत शहडोल की नोट शीट 26 मार्च 21 को यह निर्देश दिए जाते की वाटर सेड सेल में डाटा सेंटर में कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटर जिनकी नियुक्ति जिला स्तर से की गई थी उन्हें कृषि सिंचाई योजना वाटर सेड में अन्य योजनाओं के तहत रिक्त डाटा एंट्री ऑपरेटर के पदों पर नियमानुसार अनुबंधित किया जाए।


परियोजना अधिकारी पी. सातपुते ने  29 मार्च को गायत्री सिंह को

उच्चाधिकारियों के निर्देश पत्र अनुसार नियुक्त करने का प्रस्ताव भी किया। इस संबंध में संबंधित ओआईसी रविंद्र अग्रवाल से जो जानकारी ली गई उसके अनुसार रिक्त पदों के भरे हुए होने की सूचना 14 जून को दी गई। जबकि 26 मार्च को उक्त  रविंद्र अग्रवाल ने अपने पत्र क्रमांक 1260  में को उच्च अधिकारी को पत्र लिखते हुए यह स्पष्ट रूप से जानकारी दी थी की डाटा एंट्री ऑपरेटर मैं एक पद रिक्त है।व रिक्त पद विरुद्ध सुश्री श्वेता जयसवाल कार्यरत हैं जिनकी मूल स्थापना बुढ़ार जनपद की है। और कार्य की अधिकता होने के कारण श्वेता जयसवाल को जिला स्तर पर संलग्न किया गया है।

 इस तरह जबकि कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे का प्रोजेक्ट जब समाप्त होना था और उन्हें रोजगार की अत्यंत आवश्यकता थी तब भ्रामक जानकारी देकर रविंद्र अग्रवाल ने रिक्त पद के भरे होने की नोटशीट चलाकर उच्चाधिकारियों को न सिर्फ भ्रमित किया बल्कि गायत्री सिंह धुर्वे को रोजगार ना मिल सके इसके लिए अर्धसत्य लिखकर नोटशीट चला दी। और क्योंकि  रिक्त पद भरे थे इसलिए शासन के निर्देश के अनुसार गायत्री सिंह धुर्वे को बंद हो रहे प्रोजेक्ट से अन्य प्रोजेक्ट में रोजगार नहीं दिया जा सका। जबकि अपने ही दूसरे पत्र में स्पष्ट तौर पर पद रिक्त होने की सूचना 3 महीने पहले उनके द्वारा उच्च अधिकारी को दी गई थी। जिससे यह स्पष्ट होता है कि रविंद्र अग्रवाल ने जानबूझकर पहले पद रिक्त होने की बात कही और जब उसने जान लिया कि गायत्री सिंह धुर्वे को उसमें निर्देश अनुसार भर्ती किया जाएगा तब भ्रामक नोट शीट चलाकर जब तक प्रोजेक्ट समाप्त हो जाने के कारण गायत्री की नौकरी समाप्त नहीं हो जाती रिक्त पद की जानकारी छुपा कर रखी गई।


 क्योंकि रविंद्र अग्रवाल जानते थे कि महिला दिव्यांग है मैं उतना दौड़-धूप नहीं कर सकती उन्होंने मानसिक प्रताड़ना देते हुए उच्चाधिकारियों के साथ षड्यंत्र करके दिव्यांग आदिवासी महिला को लगेलगाए रोजगार से बाहर कर दिया। ताकि अपने भ्रष्ट मंसा के अनुरूप जिला पंचायत में "भ्रष्टाचार का अपना रामराज्य" चला सके और यह बात तब सही थी जब भ्रष्टाचार का वातावरण उनके इर्द-गिर्द पल रहा हो तो उन्हें निर्भीकता से भ्रष्टाचार में गोते लगाने पर कोई नहीं रोका । अन्यथा संलग्न किए गए श्वेता जयसवाल को वह अपने पास क्यों रखना चाहते थे ...? जबकि शासन के निर्देश स्पष्ट हैं कि संलग्नी करण न किया जाए।

 अब जबकि शहडोल में एक ईमानदार प्रशासन है संवेदनशील एक महिला कलेक्टर है क्या आदिवासी कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे, दिव्यांग महिला को न्याय मिलेगा...? यह देखने की बात होगी। और उससे ज्यादा यह क्या,आदिवासी दिव्यांग महिला को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करने वाला रविंद्र राहुल यह जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाएगा ताकि मनरेगा जैसे संवेदनशील रोजगार परक संस्थाओं में अज्ञात अपवित्र मंसा की कार्यशैली  कि सभी संभावनाएं नष्ट हो सके।


भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...