मामला बाल आयोग की नोटिस का
बाल आयोग का काम-बाणअर्जुन पुत्र अजय को साध पाएगा...?
(त्रिलोकीनाथ)
उच्चतम उद्देश्यों की पवित्र मंसा से जन्मी भारत में आरक्षण अब वोट की राजनीति का अत्यधिक प्रदूषित कारण बन गया है। क्योंकि आरक्षण के सभी वर्गों के उत्थान के लिए कोई काम होता नहीं दिखा कुछ वर्ग या परिवार सामंतवादियों की तरह पनपते दिखे मात्र हैं और 21वीं सदी के प्रथम चरण में जातिगत राजनीति सत्ता पाने का सबसे सस्ता और घटिया रास्ता भी बन गया है। ऐसे में विंध्य प्रदेश की राजनीति में पहले पहल ठाकुर और ब्राह्मणों की राजनीति को पैदा करने वाले अर्जुन सिंह को अंततः श्रीनिवास तिवारी की ब्राह्मण जातिगत राजनीति का शिकार होना पड़ा और भारत का एक विद्वान राजनीतिक अर्जुन सिंह पतन की अंधकूप में जा समाये।
अब विंध्य प्रदेश की राजनीति को साधने के लिए राष्ट्रीय बाल आयोग का हमला अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह के ऊपर किया गया है।
कभी कामदेव ऋषि-मुनियों को उनके ब्रम्हचर्य नष्ट करने के लिए काम धनुषबाण का उपयोग किया करते थे। अब राजनीतिक लोग ब्लैकमेल करने के लिए कभी सीडी तो कभी ईडी तो कभी अलग-अलग आयोग का उपयोग होने लगा है। इसीलिए राष्ट्रीय बाल आयोग से अजय सिंह का शिकार किया जा रहा है...?, अन्यथा अगर उन्होंने अनुभव से कह दिया कि अक्सर बच्चे नशा करते हैं तो क्या गलत कहा...? उनकी मंशा ज्यादातर भटके हुए बालकों पर थी और इसका उदाहरण ट्रेन की उच्चतम क्लास में चलने वाले "मिडिल क्लास वीआईपी" अंत्री-मंत्री, सेक्रेटरी-पीकेट्री स्टेशनों में 100% बाल श्रमिक नशाखोरी के, कहना चाहिए गंभीरतम नशाखोरी के शिकार हैं; तब राष्ट्रीय बाल आयोग का संज्ञान जीवित नहीं होता। वह इसी क्लास में सत्ता के मद में नशे में चूर रहता है उसे दिखाई नहीं देते की कैसे बच्चों का बचपना भारत की अराजक कार्य प्रणाली का शिकार हो रहा है।
किंतु बात मध्यप्रदेश के रैगांव विधानसभा चुनाव के जरिए राजनीतिक शिकार की थी, क्योंकि कुछ ही दिन पहले भाजपा के तमाम प्रदेश के
दिग्गज इन्हीं अर्जुन पुत्र अजय सिंह से मिलकर या मुलाकात का अवसर देकर अपनी तस्वीरें सार्वजनिक कराई थी और इस भ्रम को बल देने का काम किया गया था मध्य प्रदेश की राजनीति का यह "विंध्य का ठाकुर सितारा" अब भाजपा की ओर रुख कर रहा है। किंतु शायद प्रलोभन में दम नहीं था और वह गुब्बारे की तरह फुस्स हो गया।
तभी रैगांव विधानसभा मे अर्जुन पुत्र अजय ने सहज भाव में बालकों की नशा करने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी की और राष्ट्रीय बाल आयोग में शिकायत भी पहुंच गई। बाल आयोग तत्काल जीवित हो गया उसने नोटिस कि क्यों ना अजय के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाए और यह नोटिस ना तो कोई सीडी थी और ना ही कोई ईडी थी यह दिखने वाली कानूनी नोटिस थी। जिसे भारतीय जनता पार्टी निमंत्रण पत्र के रूप में अक्सर अपने अवसरों के रूप में देखती है। तो क्या इस निमंत्रण के जरिए अर्जुन पुत्र अजय भाजपा में जा रहे हैं., यह बड़ा प्रश्न है..?
तो आइए एक नजर उस नोटिस कम आमंत्रण पत्र पर गौर करें अब सवाल यह है कि केंद्र सरकार के पास ऐसे कई आयोग बने हैं जिसमें मानव अधिकार आयोग, महिला आयोग, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग आदि-आदि। तो जब किसान अपने भविष्य की चिंता को लेकर करीब 1 साल से गांधीवादी तरीके से धरना आंदोलन कर रहे हैं सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग किसान भी मर गए तब संबंधित आयोग स्वयं संज्ञान लेता हुआ दिखाई क्यों नहीं देता....?
बाल आयोग अभी यह तब क्यों पता चलता है जब रैगांव विधानसभा सीट में अर्जुन पुत्र अजय एक बड़ी समस्या की ओर प्रश्न उठाते दिखते हैं....? हो सकता है वर्तमान में फिल्म स्टार "माय नेम इज खान" का पुत्र आर्यन गांजा की पुडिया के चक्कर में हवालात में बंद हो... और उससे जो नफरत का धंधा पैदा करने का प्रयास हो रहा हो उस पर अर्जुन पुत्र प्रश्न उठा दिया हो..?
तो सवाल यह है कि सत्ता के नशा में जब लखीमपुर खीरी में कोई क्षेत्र की ब्राह्मण वोट का केंद्र बिंदु ब्राह्मण नेता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का पुत्र मिश्रा सरेआम कायरों की तरह रोड में चल रहे किसानों को कुचलता हुआ हत्या कर देता है तब केंद्र सरकार का कोई आयोग जीवित होता नहीं दिखाई देता...? और परमानेंट नशा के कारोबार की इंडस्ट्री चलाने वाला एक कोरकारीडोर में छत्तीसगढ़ की एक धार्मिक यात्रा पर मिश्रा की तरह पीछे से गाड़ी चढ़ा दे कर हत्या कर देने वाला गांजा गिरोह पर ऐसे आयोग स्वत संज्ञान लेते क्यों दिखाई नहीं देते....? इसका साफ मतलब है कि इन मौतों से इन आयोगों का कोई लेना देना नहीं है ..
यह नए तरह के राजनीतिक शतरंजी बिसात के टूलकिट बनकर रह गए हैं । जिसका परिणाम अर्जुन पुत्र अजय सिंह पर काम-बाण चलाना है ताकि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से "विंध्य" की नाराज ठाकुर चेहरा अर्जुन पुत्र अजय को भाजपा में पलटी कर सके। क्योंकि वह सीधी उंगली से नहीं निकल पा रहे थे तो भी टेढ़ी उंगली से निकालने का प्रयास हो रहा है... यह साफ साफ दिखता है ।
अन्यथा कोई कारण नहीं है की बाल आयोग को कोई प्रदेश का बौद्धिक प्राणी शिकायत करने लायक ज्ञान प्राप्त करें और बाल आयोग एक्शन में आ जाए। यह भी भारतीय राजनीति की जातिवादी प्रदूषण का परिणाम मात्र प्रतीत होता है। और सच में यदि बाल आयोग अपने आयोग होने का दंभ भरता है तो उसके और उससे प्रेरित या उसे प्रेरित करने वाला "मिडिल क्लास वीआईपी" एसी क्लास से निकलकर जरा भी ट्रेन के डब्बे में बाल श्रमिकों की दुर्दशा को देखता तो शायद अर्जुन पुत्र अजय सिंह कि कहीं बातों को शत प्रतिशत सही पाता। लेकिन उसे जमीनी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है वह तो सिर्फ अर्जुन पुत्र अजय को कामबाण चलाकर राजनीतिज्ञों की वासना को तुष्ट कर रहा है।
फिलहाल तो यही दिखता है, किंतु आशा करेंगे अगर अजय सिंह ने गंभीर मुद्दा उठाया है तो भारत के तमाम ट्रेनों में और स्टेशनों के जरिए बाल श्रमिकों की दुर्दशा में बाल सेक्स, बाल नशाखोरी और बाल जीवन को सुधारने का कोई बड़ा कदम होता दिखेगा अन्यथा वोट के प्रदूषण में कुछ कीड़े और बिलबिलाते नजर आएंगे ऐसा अर्जुन पुत्र अजय को मिली नोटिस का सार मात्र समझा जाना चाहिए।